सुनहरी खंजर
मेंजर वलवन्त को अपने सम्मुख पाकर इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने संतोष की सांस ली। - इन्स्पेक्टर के पास ही डाक्टर बनर्जी खड़े थे।
"आप पर किस चीज से हमला किया गया था ?” मेजर ने डाक्टर से पूछा ।
“एक सुनहरी खंजर से— वह अपने ढंग का अनोखा खंजर है। उसकी मुंडी पर हीरे जड़े हुए हैं। कोई बहुत ही पुराना खंजर मालूम होता है जिसकी आब साक अभी तक बाकी है।" डाक्टर की बजाय इन्स्पेक्टर ने उत्तर दिया|
"आप कितने बजे सो गए थे ? " मेजर ने डाक्टर से पूछा।
"मुझे नींद नहीं आई थी इसीलिए तो आप मुझे इस समय जिन्दा देख रहे हैं।" डाक्टर ने कहा, "इस घर में अवश्य ही कोई हत्यारा रहता है । आपने ठीक ही मुझे सावधान रहने के लिए कहा था- चलिए, आप मेरे सोने के कमरे में चलिए | मैं आपको दिखाता हूं कि किस भयानक ढंग से मेंरी हत्या करने की कोशिश की गई थी।"
वे सब डाक्टर के सोने के कमरे में पहुंचे । डाक्टर ने बिजली का बल्ब जला दिया | रोशनी हुई तो मेजर ने देखा कि डाक्टर के पलंग के सिरहाने के तख्ते में एक सुनहरी खंजर गड़ा हुआ था, जिसकी मुट्ठी प्रकाश में दमक रही थी। वह एक फुट लम्बा और दोधारा था। उसकी पूरी नोक पलंग की लकड़ी में धंसी हुई थी। अगर वह खंजर किसी प्राणी के लगता तो आर-पार हो जाता ।
मेजर ने उस खंजर की पोजीशन का अध्ययन किया। फिर उसने दरवाजे से लेकर पलंग तक के कोण का अनुमान लगाया उसके बाद मेजर ने खंजर की ओर हाथ बढ़ाया तो इन्स्पेक्टर धर्मवीर ने उसका हाथ पकड़ लिया, "आप अपना रूमाल इस्तेमाल कीजिए वर्ना खंजर की हत्थी पर उंगलियों के निशान आपकी उंगलियों के निशानों तले दब जाएंगे।" श
"नहीं।" मेजर ने मुस्कराते हुए कहा, "आप हमलावर को इतना अनाड़ी क्यों समझते हैं ? इस खंज़र की हत्थी पर उंगलियों के निशान बिल्कुल नहीं होंगे। जिस किसी ने इसका दस्ता पकड़कर इसे फेंका है, वह कच्ची गोलियां नहीं खेला है।"
यह कहकर मेजर ने जोर लगाकर खंजर तख्ते में से निकाल लिया। वह उस खंजर को बड़े ध्यान से देखने लगा । उसके दस्ते पर हीरों के नीचे कुछ लिखा हुआ था। मेजर ने वह खंजर डाक्टर की ओर बढ़ाकर पूछा, "आप बहुत-सी भाषाएं पढ़ सकते हैं। मुझे पढ़कर बताईए कि इस पर क्या लिखा है।"
डाक्टर ने अपने कांपते हुए हाथ में खंजर पकड़ लिया और अपनी आंखें सिकोड़कर उस पर लिखी हुई इबारत पढ़ने लगा, “मावोतो लोगों का अमर सम्राट हिनो | " डाक्टर ने एक ठंडी आह भरी, "ओह मेरे भगवान ! अफ्रीका की प्राचीन आत्माएं मेरे पीछे पड़ गई हैं। यह खंजर किसी ने प्रोफेसर मोरावियो के खजाने में से मेरी हत्या करने के लिए चुराया है।"
"प्रोफेसर मोरावियो का खजाना !" मेजर ने कहा, "वह खजाना किस कमरे में है।?"
“मेरी पत्नी के कमरे के भीतर एक छोटा-सा कमरा है जिसमें प्रोफेसर मोरावियो का सामान बंद है । "
"क्या आपकी पत्नी को मालूम था कि उसके पिता के खजाने में यह खंजर भी मौजूद है ?"
"जी हां — हम दोनों ने प्रोफेसर मोरावियो के सामान की सूची तैयार की थी । ऐसे दो खंजर थे । एक आप यह देख रहे हैं और दूसरा उनके सामान में होगा ।"
"आपकी पत्नी और आपके अलावा भी किसी को इन खंजरों के बारे में मालूम था ? "
“नहीं — लेकिन उस कमरे में कोई भी जा सकता है, क्योंकि उस कमरे का 'दरवाजा तो बंद रहता है, लेकिन उस पर कोई ताला - वाला नहीं लगाया जाता ।"
"क्या आप बता सकते हैं कि इधर हाल में प्रोफेसर मोरावियो के कमरे में कौन गया था ? "
डाक्टर ने इस प्रश्न का कोई उत्तर न दिया |
"देखिए डाक्टर साहब, अगर आप हमारी सहायता नहीं करेंगे तो दीवान साहब की हत्या का रहस्य कभी नहीं खुलेगा ।"
डाक्टर बनर्जी ने कुछ सोचते हुए कहा, "परसों मैंने राजेश को प्रोफेसर साहब की डायरी लाने के लिए उस कमरे में भेजा था.लेकिन राजेश मुझ पर ऐसा हमला..."
"नहीं, नहीं - हम राजेश पर आरोप नहीं लगा रहे हैं कि उसने आप पर हमला किया ।” इसके बाद मेजर ने कुछ सोचते हुए कहा, "डाक्टर साहब, क्या आप जानते हैं कि राजेश आपकी पत्नी के बहुत निकट है ?"
डाक्टर को भवें तन गई और उसके नथुने फैल गए । “कान खोलकर सुन लीजिए, मैं अपनी पत्नी के बारे में कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं हूं। ऐसी पत्नी किसी भाग्यवान को ही मिला करती है ।" उसके माथे पर पसीने की मोटी-मोटी बूंदें हो चुकी थीं।
ठीक उसी समय रजनी ने डाक्टर के सोने के कमरे में प्रवेश किया । उसने नीले रंग का फूलदार नाइट-सूट पहन रखा था। उसका यौवन उन वस्त्रों से छलका पड़ता था और आंखें नींद से बोझिल हो रही थीं ।
"आप रात के डेढ़ बजे यहां क्या कर रहे हैं ? " रजनी ने पूछा ।
"आपके पति पर किसी ने हमला किया है । " मेजर ने कहा ।
“इन पर हमला किया ? ....असंभव | ऐसा कौन व्यक्ति हो सकता है जो इन पर हमला करने का साहस कर सकता है ? "
"हमें अगर यह मालूम होता तो हम अब तक उसे उसके घातक हथियार सहित गिरफ्तार कर चुके होते।"
“घातक हथियार ?”
“जी हां, इस खंजर से इन पर वार किया गया है । हम जब यहां पहुंचे तो यह खंजर इनके पलंग के तख्ते में गड़ा हुआ था ।" मेजर ने खंजर रजनी की ओर बढ़ाते हुए कहा।
“यह खंजर तो मेरे पिता का है—यह यहां से आ गया ? इन पर कब इससे हमला हुआ और कैसे हुआ ?"
"यह किस्सा डाक्टर साहब स्वयं सुनाएंगे । हमने भी यह किस्सा अब तक इनसे नहीं सुना । "
"किस्सा ज्यादा लम्बा नहीं है।" डाक्टर ने कहा, "मैं आपकी हिदायत के अनुसार अपने सोने के कमरे में आ गया। रात का खाना मैंने यहीं मंगवाकर खाया । मैंने सोने की बहुतेरी कोशिश की लेकिन मुझे नींद नहीं आई। इसीलिए मैंने दरवाजा भीतर से बन्द करना जरूरी नहीं समझा। मैंने इस ख्याल से भी विजली का बल्ब बुझा दिया कि शायद अंधेरा होने पर मुझे नींद आ जाए। लेकिन नींद फिर भी न आई । मैं बिस्तर पर आंखें खोले लेटा रहा और सोचता रहा। जब मैंने घड़ी के चमकदार डायल की ओर देखा तो घड़ी में पौने बारह बज रहे थे। मैं देर तक ऊंघता रहा। इस प्रकार आधा घण्टा गुजर गया | मुझे रह-रहकर दीवान साहब का ध्यान आता रहा । लगभग सवा बारह बजे मुझे ऐसा लगा कि मैं दबे- दबे कदमों की आहट सुन रहा हूं। कोई सचमुच सीढ़िया चढ़ रहा था। मैं सोचने लगा कि इतनी रात गए यह कौन हो सकता है । एकाएक कदमों की चाप मेरे दरवाजे तक आकर रुक गई। मैंने अपना सांस रोक लिया। क्षण-भर के लिए भय ने मुझे पंगु कर दिया। लेकिन मैं जल्दी ही सम्भल गया । मैं उठकर खड़ा हो गया। मैंने तुरन्त अपने लिहाफ को इस प्रकार समेट दिया जैसे सचमुच कोई उसके भीतर सो रहा हो। यह काम कर चुकने के बाद मैं एक कोने में जा खड़ा हुआ ताकि अगर कोई हमलावर भीतर आए तो उस पर झपट पडूं। मेरे कमरे का दरवाजा थोड़ा-सा खुला। मैं चीखना चाहता था लेकिन भय से मेरा गला रुंध गया। किसी ने टार्च की रोशनी पलंग पर फेंकी। आने वाला भीतर नहीं आया । फिर मैंने एक चमकती हुई चीज देखी। उसके बाद लकड़ी से किसी चीज के टकराने की आवाज सुनाई दी। इसके बाद कोई दबे पांव बड़ी तेजी से वापस जा रहा था। डर से मेरे पांव जमकर रह गए थे। कुछ मिनटों तक मैं कोने में दुबका रहा। फिर मैंने अपने कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और बिजली का बल्ब जला दिया । मेरे बदन में झुरझुरी-सी दौड़ गई जब मैंने इस खंजर को अपने पलंग के तख्ते में घुसा देखा। मैं तुरन्त समझ गया कि किसी ने मेरी हत्या करने की कोशिश की थी। जब मेरे होश कुछ ठिकाने आए तो मैं यहां से निकलकर नीचे पहुंच गया और इस घटना को सूचना इंस्पेक्टर साहब को दी, जो संयोग से जाग रहे थे। "
रजनी अपने पति की ओर चिन्तित नजरों से देख रही थी। वह बोली, "इनके सोने के कमरे के पीछे ही मेरा सोने का कमरा है । संयोग से मैं भी आज आधी रात तक नहीं सो सकी थी। थोड़ी देर पहले मैंने इनके कमरे में लकड़ी से किसी चीज के टकराने को आवाज सुनी थी, लेकिन मैं यह समझकर चुप रही कि सोते में इनका सिर पलंग के तख्ते से टकरा गया होगा। न जाने इस घर में क्या हो रहा है। यह कितनी लज्जा की बात है ! अब इस घर में कौन रह सकता है जिसकी छत के नीचे हत्यारा दनदनाता फिर रहा है ! आप हत्यारे का शीघ्र पता लगाइए अन्यथा इस घर में रहना हम सबके लिए दूभर हो जाएगा।" रजनी बोली और अपने पति के गाल पर चुम्बन लेने के बाद अपने कमरे में चली गई।
"क्या इस खंजर की कोई म्यान भी थी ? " मेंजर ने पूछा।
"हां, चमड़े की म्यान थी ।" डाक्टर ने उत्तर दिया।
"उस म्यान को ढूंढ़ना पड़ेगा ।" मेजर ने कहा ।
"हमलावर खंजर की म्यान साथ ले गया होगा या म्यान कहीं छिपाकर नंगा खंजर अपने साथ लाया होगा ।" इंस्पेक्टर ने कहा ।
“कल सुबह आपको पहला काम यही करना होगा। इसके बाद प्रोफेसर मोरावियो के खजाने में दूसरा खंजर तलाश करना होगा। मैं समझता हूं कि इसके साथ का दूसरा खंजर भी गायब है।"
"क्यों, कल सुबह क्या आप नहीं आएंगे ?" इंस्पेक्टर ने पूछा ।
"नहीं, कल मुझे हवाई जहाज से एक जरूरी काम के लिए बम्बई जाना है।"
"आप कव लौटेंगे ?”
“अगर मेरा काम जाते ही हो गया तो मैं कल शाम को ही वापस आ जाऊंगा वर्ना परसों दोपहर से पहले तो जरूर ही यहां पहुंच जाऊंगा ।” मेजर ने दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा ।
उस दरवाजे के पास दाईं ओर की खिड़की के सामने एक काला बोर्ड टंगा था | मेजर ने वह बोर्ड पहले भी देखा था, लेकिन आज न जाने क्यों उसे बड़े ध्यान से देखने लगा । डाक्टर शभी कनखियों से उस बोर्ड की ओर देखने लगा। फिर बोला, "मैं यह बोर्ड ज्योमेट्री की कुछ शक्लें बनाने के लिए इस्तेमाल किया करता हूं । इस पर यहां तैयार होने वाली मूर्तियों के रेखाचित्र भी बनाया करता हूं।"
‘‘मेरे ख्याल में तो यह बोर्ड वेकार हो चुका है। इसमें छोटे-छोटे तिकोने गड्ढे पड़े हुए हैं जैसे कोई चाकू की नोक से इस बोर्ड को छीलता रहा हो।" मेजर ने कहा ।
"नहीं, यह बोर्ड ऐसा ही है । ये तिकोने निशान स्वयं मैंने बनाए हैं। इनसे विभिन्न कोणों का काम लिया जाता है।"
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