हुआ ये कि सविता के शब्द सुनते ही संग्राम के जिस्म में मानो विद्युत का संचार हुआ । भयानक तेजी के साथ वह झपटा और इससे पूर्व कि कोई भी कुछ समझ सके उसने उछलकर ब्रिगेंजा की कनपटी पर रिवॉल्वर रखा और चीखा- "अगर कोई भी हिला तो मैं ब्रिगेंजा को गोली मार दूंगा ।'' सभी स्तब्ध रह गए । स्वयं ब्रिगेंजा भी। किसी की समझ में संग्राम का यह परिर्वतन नहीं आया । अपनी रिवॉल्वर का दबाव ब्रिगेंजा की गरदन पर बढ़ाकर संग्राम गुर्राया ।
- "प्रोफेसर हेमंत के हाथ में वह अंगूठी नहीं है... उस पर एक सर्प बना हुआ है । तुम लोग शायद नकली हेमंत दिखाकर मुझे और सविता को किसी षड्यंत्र में फंसाना चाहते हो । किंतु तुम मुझे अभी तक नहीं पहचानते प्यारे आग के बेटों और मिस्टर ब्रिगेंजा... मेरा वास्तविक नाम संग्रामसिंह नहीं बल्कि अलफांसे है । "
- "अलफांसे...ऽऽऽ !" लगभग सभी के मुख से आश्चर्य के साथ निकला । सभी लोग हैरत से उसे देख रहे थे । अलफांसे फिर गुर्राया- "यस बेटे ब्रिगेंजा... मुझे अलफांसे कहते हैं । तुम्हें जो कहानी मैंने सुनाई वह मेरी काल्पनिक कहानी के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं थी । वास्तविकता ये है कि रैना भाभी के अपहरण के विषय में सुनकर मैं वहां पहुंचा, किंतु वहां कुछ भी नहीं हुआ... फिर होटल सेविना पहुंचा, क्योंकि मैं जानता था कि यह होटल आग के बेटों का है । तुम्हारी नजरों में आने के लिए जिम्बोरा को परास्त करने का मुझे अच्छा अवसर मिला । आग के स्वामी तक पहुंचने के लिए यह नितांत आवश्यक था कि मैं तुम्हें यह न बताऊं कि मैं अलफांसे हूं क्योंकि यह बताने पर तुम मुझे आग के बेटों वाले गिरोह में लेने से इंकार कर देते - तुमने सिर्फ ये समझा कि इस अधेड़ के पीछे वास्तविक चेहरा छुपा है । यह नहीं सोचा कि अधेड़ के मेकअप के नीचे भी एक मेकअप है और उसी मेकअप के पीछे मेरा वास्तविक चेहरा है- जो अलफांसे के अतिरिक्त किसी का नहीं।" समस्त हॉल इस रहस्योद्घाटन से स्तब्ध व सन्न रह गया- कोई कुछ करने की स्थिति में न था.. अलफांसे अत्यंत सतर्क नजर आता था । वह रिवॉल्वर का दबाव बढ़ाकरे गुर्राया ।
"बोलो, कहां है असली प्रोफेसर?"
सभी लोग स्तब्ध-से इस उलटती हुई बाजी को देख रहे थे । इस रहस्य पर विकास भी आश्यर्चचकित था कि संग्राम वास्तव में उसके क्राइमर अंकल अलफांसे है। अभी अलफांसे कुछ कहने ही वाला था कि ब्रगेंजा बड़े रहस्यमय स्वर में बोला ।
- 'मिस्टर अलफांसे, माना कि तुम आग के बेटों के अड्डे पर खड़े हो- तुमने इस समय रिवॉल्वर ब्रिगेंजा की गुद्दी पर लगा रखा है...जहां रिवॉल्वर बेकार हो जाते हैं!"
समस्त हॉल इस समय ब्रिगेजा के रहस्यमय वाक्य में उलझकर रह गया-उनकी समझ में नही आया कि रिवॉल्वर के साए में होने पर भी ब्रिगेंजा आखिर इतने दृढ़ शब्द कैसे प्रयोग कर रहा है? तभी अलफांसे गुर्राया ।
-''अधिक चालाक बनने की चेष्टा मत करो बेटे ब्रिगेंजा, वरना ये गोली तुम्हें अंतरिक्ष की सैर करा देगी ।"
-"कोशिश करके देख लो ।" ब्रिगेंजा रहस्यमय स्वर में बोला- ' ब्रिगेंजा इतना मूर्ख नहीं कि कोई इस हॉल में पहली बार आए और वह उसके रिवॉल्वर में गोलियां छोड़ दे ।" समस्त हॉल ब्रिगेंजा की बातों का रहस्य समझ गया।
अगले ही पल अलफांसे आग के बेटों की कैद में था । विकास ने पहली बार अलफांसे को मात खाते हुए देखा था । और वास्तव में अगले ही पल जो हरकत ब्रिगेंजा ने की वह इतनी आश्चर्यजनक थी कि हॉल में उपस्थित सभी व्यक्ति चौंक पड़े-- बल्कि इस प्रकार उछले--मानो अपनी आंखों के सामने सागर को सूखते देख रहे हो । वास्तव में ब्रिगेंजा द्वारा किया गया यह कार्य अपने अंदर इतने आश्चर्य समेटे हुए था कि प्रत्येक व्यक्ति की आंखें हैरत से फैल गई । हुआ यह था कि न जाने ब्रिगेजा ने क्या देखा था कि वह भयानक तेजी के साथ झपटा, इससे पूर्व कि कोई कुछ समझ पाता, ब्रिगेंजा ने अपना रिवॉल्वर निकालकर सविता के माथे पर लगा दिया और भयानकता के साथ गरजा ।
- " अगर किसी ने भी हिलने की कोशिश की, तो मैं इस लड़की को गोली मार दूंगा।" वास्तव में ब्रिगेंजा की हरकत चौंका देने वाली थीं-सभी आश्चर्यचकित रह गए । चौंककर आग का स्वामी बोला ।
."ब्रिगेंजा, ये क्या पागलपन है... इस लड़की से तुम्हारा क्या मतलब है?"
"मेरा तो नहीं-किंतु तुम्हारा संबंध बहुत गहरा है बेटे आग के स्वामी ।" ब्रिगेंजा सविता के माथे से रिवॉल्वर सटाए चीखा- "बेटे लूमड़ मियां ।" इस बार ब्रिगेंजा का स्वर बिल्कुल ही परिवर्तित हो चुका था। समस्त हॉल एक बार फिर इस नवीन रहस्योद्घाटन पर आश्चर्यचकित रह गया । स्वयं अलफांसे की आंखें आश्चर्य से फैलती चली गई । ब्रिगेंजा के मेकअप में विजय के अतिरिक्त कोई न था । विजय गरजा- "बेटे लूमड़ मियां ! तुमने यह तो अवश्य देखा कि सामने बैठे प्रोफेसर हेमंत की उंगली में खानदानी अंगूठी -
- नहीं है किंतु यह नहीं देखा कि यह अंगूठी स्टेज पर खड़े उस नकाबपोश की उंगली में है जो स्वयं को आग का स्वामी बताता है।"
विजय के द्वारा खोला गया यह नवीन रहस्योद्घाटन कम आश्चर्यजनक न था। उसके कहते ही हॉल में उपस्थित व्यक्तियों की निगाहें उसकी ओर घूम गई । वास्तव में वह अंगूठी उसकी एक उंगली में फंसी थी जिस पर सर्प बना हुआ था । विजय के इस वाक्य पर घबराई-सी सविता भी चौक पड़ी और स्वामी की उंगली में अंगूठी देखते ही बरबस ही उसके मुख से निकला ।
- "डैडी... ऽऽऽ ! " -
उस मासूम लड़की की आंखें आश्चर्य से फैल गई । उसे तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उसके पिता इतना बड़ा षड्यंत्र रच सकते हैं । वह फिर बोली- ' 'डैडी, आप...?" I
"हां बेटी, मैं...!" आग के स्वामी के मुख से वह भर्राहट समाप्त हो गई थी- जो प्राय: रहा करती थी । ये शब्द वास्तव में प्रोफेसर हेमंत के थे। समस्त हॉल के लिए यह भी एक ऐसा रहस्योद्घाटन था जिसके खुलने पर लोग सन्न रह गए । आग के बेटों को भी आज पहली बार मालूम पड़ा कि उनका चीफ प्रोफेसर हेमंत है ।
"धांय...!" अचानक एक फायर की तीव्र ध्वनि ने हॉल को न सिर्फ अपनी ओर आकर्षित कर लिया, बल्कि एक बार फिर सब चौंक पड़े । सबने देखा - गोली उस आदमी के सीने में लगी थी जो नकली प्रोफेसर हेमंत बना बैठा था- फिर सबकी निगाह उसके हत्यारे पर पड़ी, जो विकास के
अतिरिक्त और कोई न था । विकास लापरवाही के साथ कुछ ऐसे अंदाज में बैठा था कि मानो वह कोई भयानक शातिर रहा हो । अपने रिवॉल्वर से निकले धुएं पर फूंक मारता बोला ।
"ये नादान अपनी जेब से रिवॉल्वर निकालकर आपकी शान में गुस्ताखी करने की चेष्टा कर रहा था अंकल ।" कहने का ढंग ऐसा था मानो विकास कोई बहुत बड़ा बुजुर्ग शातिर रहा हो और जिसके लिए खून कर देना एक रसमलाई खाने से अधिक महत्त्व न रखता हो । यहां तक कि स्वयं विजय भी उसके कहने पर मुस्कराया और फिर बोला ।
- 'वेरी गुड भतीजे- अन्य सब पर भी निगाह रखो । सिर्फ अपने साथियों को छोड़कर तुम जानते हो कि मेरी टोली के कौन-से पांच आदमी हमारे हैं!" समस्त हॉल इस समय आश्चर्यचकित था । स्वयं अलफांसे इस बार चकित रह गया कि वह विजय को पहचान न सका। तभी स्वामी ने स्टेज से हिलना चाहा कि विजय गरजा !
- -"नहीं प्रोफेसर हेमंत - अब अगर कोई भी हरकत की तो अगली गोली तुम्हारी बेटी सविता के जिस्म में होगी ।" वाक्य सुनकर प्रोफेसर जहां-का-तहां रुक गया । उसके पैरों में मानो बेड़िया पड़ गई - विकास के मेकअप में जो दूसरा साथी था - वह विकास का मेकअप उतार चुका था । वह भी एक खूबसूरत लड़का था तथा उसके हाथ में भी रिवॉल्वर था । विकास और वह पूरी तरह हॉल के एक-एक आदमी पर नजर रखे हुए थे-विजय तो था ही पूर्णतया सतर्क । वह गरजा ।
-''प्रोफेसर हेमंत-अपने चमचों से कहो कि हमारे लूकड़ प्यारे को मुक्त कर दे ।" इस समय समस्त डोरियां विजय के हाथ में थीं । प्रोफेसर हेमंत की जान सविता के रूप में विजय की रिवॉल्वर की नोक पर थी । फिर भला वह विजय की आज्ञा का उल्लंघन किस प्रकार कर सकता था ? अत: परिणामस्वरूप अलफांसे को आजाद कर दिया गया। आग के बेटे कुछ करना चाहते थे, किंतु कुछ न कर पा रहे थे । यहां पर खुलने वाला प्रत्येक रहस्य हैरतअंगेज था- अभी तक तो वे यह भी नहीं सोच पाए कि यह सब कैसे और क्या हो रहा है? अचानक विजय फिर बोला ।
"प्यारे झानझरोखे - जरा हेमंत मियां को कंगन पहना दो ।" आग के बेटे के मेकअप में अशरफ प्रोफेसर के करीब पहुंचा और उसका नकाब नोच लिया ।
अगले ही पल ! कोई समझ भी न पाया कि एक अन् हौलनाक कारनामा । एक अन्य चौंका देने वाली घटना... इस बार विजय, अलफांसे, विकास तथा अन्य सभी धोखा खा गए । प्रोफेसर हेमंत के निकट ही खड़ा स्वयं अशरफ भी कुछ न समझ पाया कि उसने अपनी बल्बयुक्त पोशाक से एक बल्ब निकालकर हॉल में फेंक दिया । बल्ब के धरती से टकराते ही एक भयानक विस्फोट हुआ और चारों तरफ एक घुंध-सी छा गई, क्षणमात्र में सारे हॉल में अफरातफरी मच गई । अशरफ फुर्ती से हेमंत पर झपटा, किंतु वह खाली फर्श चाटता रह गया ।
विजय ने सविता को वहीं छोड़ा और स्टेज की ओर जम्प लगा दी । अलफांसे ने एक आग के बेटे को पकड़ लिया । विकास का रिवॉल्वर निरंतर शोले उगल रहा था । तमाम हॉल में गहरी धुंध व्याप्त हो गई थी। किसी को किसी का पता न था । उसके बाद बल्ब गिरने के और भी धमाके हुए । धुंआ और अधिक गहरा हो गया । हेमंत के जिस्म पर रोशन बल्ब भी शायद बुझ गए थे तभी तो वह इस धुंध में किसी को नजर नहीं आ रहा था । चारों ओर भयानक कोलाहल - फायर और चीखों की आवाज । एक-दूसरे के खून के प्यासे इंसान - किंतु भयानक धुंए से सभी परेशान....। कौन कहां है.. ? किसी को पता नहीं ।
अभी सविता कुछ समझ भी न पाई थी कि क्या हुआ? विजय उसे वहीं छोड़कर धुएं में विलुप्त हो गया । चारों ओर भयानक कोलाहल का साम्राज्य था अचानक किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया और एक तरफ को घसीटता हुआ बोला ।
- "इधर आओ।" सविता तुरंत आवाज को पहचान गई, यह आवाज उसके पिता प्रोफेसर हेमंत के अतिरिक्त किसी और की न थी ।
वह चाहती तो नहीं थी, किंतु खिंचती चली गई । खींचते हुए उसके पिता किन्हीं बटनों को दबाकर हॉल से अलग ले गए - अब यहां धुंआ न था । अत: अब वह अपने पिता को देख रही थी वह रह-रहकर चीख रही थी और अपने पिता का विरोध कर रही थी, किंतु ऐसा लगता था जैसे प्रोफेसर हेमंत पागल हो गए हैं। वह सविता के चीखने पर लेशमात्र भी ध्यान दिए बिना सिर्फ उसे खींचे लिए जा रहा था। उनके पीछे से अब भी फायर - चीखों और भयानक कोलाहल की आवाजें आ रही थीं- जो इस बात का प्रमाण थी कि हॉल में निरंतर जंग जारी है । एक स्थान पर आकर उसके पिता ने एक बटन दबाया । उसके दबाते ही उस कमरे के बीच का थोड़ा-सा फर्श धीमी- सी आवाज के साथ एक ओर को हट गया और वहां पर बनी लोहे की सीढ़ियां नजर आने लगी । सविता ने विरोध किया, किंतु हेमंत उसका हाथ थामे निरंतर सीढ़ियां उतरता रहा- लोहे की ये सीढियां नीचे एक गुफा-सी में समाप्त थीं । इस गुफा में पानी भरा था । सीढ़ियों का निचला भाग पानी में विलुप्त हो रहा था । पानी क्योंकि खारा था, अत: सविता देखते ही समझ गई कि पानी सागर का है । सीढ़ियों के पास ही पानी पर स्टीमर तैर रहा था । वे दोनों सीढियां तय करके स्टीमर में पहुंच गए। स्टीमर में पहुंचते ही हेमंत ने सविता को छोड़ दिया और स्वयं स्टीमर की रस्सियां खोलने लगे । ऐसा प्रतीत होता था कि यह स्टीमर पहले ही सतर्कतावश यहां बांधकर रखा गया हो । सविता निरंतर प्रत्येक संभव तरीके से अपने पिता का विरोध कर
रही थी, किंतु प्रोफेसर तो मानो पागल ही हो गया था । कुछ ही पलों में उसने वह रस्सा खोल दिया। जिससे स्टीमर सीढ़ियों के साथ बंधा था- इधर सविता की निगाह स्टीमर पर रखी एक एल. एम. जी. पर पड़ी - उसने तुरंत झपटकर वह उठा ली और जैसे ही प्रोफेसर हेमंत रस्सा खोलकर घूमा, तो एकदम स्तब्ध रह गया। उनकी बेटी सविता उन्हीं पर एल. एम. जी. ताने खड़ी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे-आंखों में आंसू-किंतु चेहरे पर दृष्टता--बड़े शक्ति के साथ एक-दूसरे से भिंचे हुए थे। इस समय वह भयानक बिफरी हुई शेरनी की भांति लग रही थी । उसे इस हालत में देखकर एक बार तो स्वरां हेमंत भी कांप उठे, फिर स्वयं को संभालकर बोले ।
- "सविता - ये क्या बेवकूफी है? यह एल. एम. जी. हैं-खिलौना नहीं । "
-" यही तो तुम्हें बताना चाहती हूं देशद्रोही ।" सविता खूनी निगाहों से अपने पिता को घूरती हुई बोली- "आगे मत बढ़ना-- वरना याद रखना यह एल. एम. जी. है-खिलौना नहीं । इसकी एक गोली तुम्हारे लिए काफी होगी ।"
- "ये तुम क्या कह रही हो बेटी-कहीं तुम पागल तो नहीं हो गई हो ?' चौंककर प्रोफेसर बोले ।
-"नहीं... S... S...!" सविता पूर्ण शक्ति के साथ चीखी- "मुझे बेटी मत कहो, मैं तुम्हारी बेटी नहीं हो सकती । तुम मेरे पिता नहीं एक भयानक देशद्रोही होऐसे देशद्रोही, जिसने भारत मां की गोद में पलकर उसी के साथ गद्दारी की, नीच कोई नहीं हो सकता देशद्राही व्यक्ति!" न जाने कौन-सी दुनिया में खोई हुई सविता चीख रही थी। उसके वाक्य और कटु शब्द सुनकर प्रोफेसर स्तब्ध रह गए बल्कि उन्हें तीव्र ग्लानि हो गई -- किंतु फिर भी वह स्थिति को संभालने का प्रयास करते हुए बोले ।
- "क्यों बेकार की बात कर रही हो? कोई आ जाएगा ।" कहते हुए वे आगे बढ़े।
-"वहीं ठहर जाओ देश के शत्रु ...!" सविता चीखी - "तुम्हें अपना पिता कहते हुए भी मुझे शर्म आती है वहीं ठहर जाओ देशद्रोही - वरना गोली मार दूंगी ।"
-"आज तक किसी बेटी ने अपने बाप को मारा है, जो तुम मार दोगी ।" प्रोफेसर यूं ही आगे बढ़ा, किंतु तभी भयानक शेरनी की भांति सविता थोड़ी पीछे हटकर गरजी- "आज भी एक बेटी आपने बाप को नहीं मारेगी बल्कि भारत मां की वीर लाड़ली भारत मां के उस कपूत को मार देगी - जिसने भारत मां के दूध की कीमत उसी के साथ गद्दारी करके चुकाई है । वहीं ठहर जाइए डैडी, वरना ये अंतिम चेतावनी होगी ।"
-"बको मत सविता...!" चीखते हुए प्रोफेसर उसकी ओर बढ़े-- किंतु...!
." धांय...!"
क्षणमात्र में सविता के हाथ में दबी एल. एम. जी. से निकला एक शोला प्रोफेसर हेमंत की छाती में प्रविष्ट हो गया । प्रोफेसर के चेहरे पर मानो समस्त संसार का आश्चर्य सिमट आया था । वास्तव में मरते हुए इस अंतिम समय में भी उन्हें विश्वास नहीं आ रहा था कि यह गोली उनकी बेटी सविता ने ही चलाई है - यूं ही हैरत से आंखें फाड़े वे लहराकर गिरे और उनके मुख से अंतिम शब्द निकला- सविता बेटी!" I
उसने आंसुओं से भरा चेहरा ऊपर उठाया तो वहां अपने उसी- भाई को पाया- जो वास्तव में अलफांसे था । उसे देखते ही सविता ने फिर एल. एम. जी. उठाई और अपने ही माथे से नाल सटाकर बोली- " अपनी बहन को क्षमा करना भैया !"
और...!
-'धांय...!'
-"सविता………ऽ……… ऽ…..!' अलफांसे शक्ति से चीखा ।
किंतु अब तो सविता इस संसार से बहुत दूर जा चुकी थी । उसकी लाश भी उसके पिता के पास ही पड़ी थी ।
अलफांसे जैसा व्यक्ति भी दहल उठा ।
यह रघुनाथ की कोठी का एक कमरा था । इस कमरे में विजय और विकास के अतिरिक्त विकास का वह दोस्त, जो नकली विकास बना था और रघुनाथ के साथ रैना भी बैठी थी । रैना और रघुनाथ विकास के इस प्रकार गायब हो जाने पर परेशान थे । किंतु इस समय वह सबके बीच बैठा हुआ अपनी कहानी सुना रहा था ।
- "हां तो झकझकिए अंकल-बात ये थी कि जब मैंने प्रोफेसर को उस स्टार से डराया तो मुझे लगा कि मेरे साथ कोई दुर्घटना होगी । अत: सतर्कता के नाते मैंने अपने दोस्त प्रकाश पर अपना मेकअप किया -- मैंने प्रकाश से कहा था कि कहीं भी बोलेगा नहीं, क्योंकि वह मेरी आवाज में बोल नहीं सकता था । इसने कैद में सिर्फ मुझसे बातें की।"
अब आग के बेटे वाला केस समाप्तप्राय हो गया था । विजय के निर्देश पर रघुनाथ पहले ही सेविना होटल में उपस्थित था फायरों की आवाज होते ही रघुनाथ ने विजय के बताए अनुसार सारा काम कर दिया। कुछ आग के बेटे मृत्यु प्राप्त हुए-कुछ पकड़े गए ।
स्टीमर में पड़ी हेमंत और सविता की लाशें मिलीं अलफांसे का कहीं पता न था । इस केस में वह आंधी की भांति आया और तूफान की भांति गायब हो गया । तभी...!
"खैर, प्यारे तुलाराशि... ।" विजय बोला- "बात ये है कि अब हम भी तुम्हें अपनी हरकतों की संक्षिप्त कथा सुनाते हैं । बात यह हुई कि हम, यानी विजय दी ग्रेट को उन लोगों ने कैद कर लिया । हम वहां सिर्फ एक रात और एक दिन रहे ।
अक्सर हमारे पास वह ब्रिगेंजा नामक व्यक्ति आया करता था। अत: दूसरी रात का श्रीगणेश होते ही हमने अच्छा अवसर जानकर बेचारे को उस समय धर दबोचा- जब वह हमारे लिए खाना लाया । अब जनाब, हमने उससे सारी जानकारियां ले ली । जैसे 'आग के बेटों' में उसका क्या स्थान और नंबर है ? यह अड्डा कहां है, इत्यादि । खैर उसे दुनिया से मोक्ष दिलाकर हमने अपनी गुप्त जेब से मेकअप का पिटारा निकाला और स्वयं को ब्रिगेंजा बना लिया । उस समय ब्रिगेंजा को अपने कपड़े पहनाकर कोठरी में डाल दिया । उपयुक्त अवसर मिलते ही ब्रिगेंजा की लाश को लेकर गुप्त रूप से रघु डार्लिंग तुम्हारे पास आया और तुम्हें बताया कि 'आग के बेटों' का गुप्त अड्डा सेविना होटल' के नीचे है। तुम जानते हो कि सेविना होटल सागरीय तट पर है और जब उस दिन अधेड़ के मेकअप में हमारे लूमड़ प्यारे ने उस साले नीग्रो को कमा दिया-ब्रिगेंजा होने के नाते मैंने उसे गिरफ्तार कर लिया । यहां यह कहने से नहीं चूकूंगा कि इस बार यह आश्चर्य की बात रही कि न तो मैं लूमड़ को पहचान सका और न लूमड़ मुझे । उसने मुझे ब्रिगेंजा समझकर ऐसी कहानी सुनाईजिस पर हमें विश्वास हो गया, किंतु हमने जो उसे अपने कमरे के बारे में ऊटपटांग बताया तो उसे भी विश्वास हो गया और झूठ भी सफल हो गया । वास्तविकता ये थी कि उस कमरे में कुर्सी के ऊपर उठने के अतिरिक्त कोई विशेषता नहीं थी । खैर, मियां उसके बाद तुम जानते हो क्या-क्या पवाड़े फैले ?"
- "लेकिन अंकल.. .यह तो आपने बताया ही नहीं कि आपके साथ वे पांच आदमी कौन थे जो आपके साथ थे? " विकास बोला ।
-"अबे ओ मियां दिलजले... जब तुम्हें मालूम है कि वह रिवॉल्वर बनाकर हमने तुम्हें सरलता से दे दिया तो पूछ क्यों रहे हो? रही उन पांच आदमियों की बात तो प्यारे वे अपने यार थे जो खुदा को प्यारे हो गए ।" विजय ने अपने अंतिम शब्द झूठ बोले । वास्तव में वे पांचों सीक्रेट सर्विस के सदस्य थे जिन्हें पांच आग के बेटे मारकर साथ ले लिया गया था और अब केस की समाप्ति पर सुरक्षित अपने घर चले गए थे, किंतु यह बात वह रघुनाथ इत्यादि के सामने कैसे खोल सकता था? तभी एक नौकर अंदर आया और विजय के हाथ में एक बड़ा-सा लिफाफा थमाकर बोला- "ये आपके लिए मेमसाब दे गई हैं।" .
सबने उत्सुकता से देखा, ऊपर लिखा था
मिसेज जैक्सन की ओर से विजय के लिए
पढ़कर विजय के होंठ सीटी बजाने के अंदाज में सिकुड़ गए - "मुझे पहले ही आशा थी ।" और तब जबकि जैक्सन का वह पत्र खोलकर पढ़ा गया ।
पत्र कुछ इस प्रकार था ।
'प्यारे दोस्त विजय,
यह जानकर अत्यत हुआ कि तुमने आग के बेटे समाप्त कर दिए। किंतु मैं जानती हूं कि इस समय भी तुम लोगों के दिमाग में कितने ही रहस्य घूम रहे होंगे जिनके उत्तर तुम्हें नहीं मालूम... उन्हीं प्रश्नों के उत्तर मैं दे रही हूं।
सबसे पहले ये बताना अपना फर्ज समझंगी कि दहकते शहर वाले अभियान में अपने मर्डरलैंड में अम्लराज के हौज में कूदने के पश्चात जीवित कैसे बच गई ? बात ये है कि तुम्हें याद होगा कि स्पेस में बसे मर्डरलैंड में कहा था कि धरती पर चाहे वह वस्तु भले ही न जिसे अम्लराज न घोल सके, किंतु स्पेस में वह धातु है। मैंने उसी का कवच पहन रखा था । सिर्फ आखें ही नंगी थी सो जब कूदी तो आंखों पर भी वही कवच पहन लिया था । खैर, अब मैं तुम्हें आग के बेटे वाले केस के विषय में कुछ बताती हूं । बात ये कि वास्तव में आग के बेटे मेरे सेवक थे । प्रोफेसर हेमंत मेरा सेवक था... उसने अपने दिमाग से आग के बेटों का निर्माण किया मेरी सेवा करने लगा । इस समय नए मर्डर लैंड की स्थापना कर रही हूं-अतः धन की आवश्यकता है- बैंक का खजाना मर्डरलैंड पहुंच चुका है। प्रोफेसर हेमंत जैसे मेरे अनेक सेवक अपने भिन्न-भिन्न तरीकों से मर्डरलैंड के लिए समस्त धरती से धन एकत्रित कर रहे हैं । शीघ्र ही मर्डरलैंड तैयार हो जाएगा और मैं वहां तुम्हें बुलाऊंगी । खैर... अब मैं रहस्य खोलना प्ररम्भ करती हूं। सबसे पहली घटना याद करो। बैंक मैनेजर के पास जो लड़की आई और बाद में धुंआ बन गई वह मैं स्वयं थी और धुंआ कैसे बन गई? यह रहस्य मैं अगली मुलाकात पर बताऊंगी । खैर... आगे बढ़ो... बैंक में बिजली के स्विच के पास तुम्हें बेहोश करने वाली भी मैं स्वयं थी... वैसे उस समय अदृश्य थी । रघुनाथ की कोठी के पीछे वाली गली में अदृश्य होकर विषैली से स्वयं मैंने ही पांच आग के बेटों को मारा क्योंकि उनका बचकर भागना असंभव हो गया था । नाटे के रूप में विकास डिक्की में चढ़ा... तब तक मैं सबकुछ मैं
मर्डरलैंड में रखी स्क्रीन से देखती रहती थी - किन्तु जैसे ही हेमंत को छोड़कर मैंने अन्य सेवकों का निरीक्षण किया कि तुम लोगों ने मर्डरलैंड की आय का स्त्रोत खत्म कर दिया । वैसे ये आग के बेटे कोई विशेष बात न थी । वे जीवित इंसान होते-- जो बुलेट-प्रूप कवच पहनकर ऊपर से एस्बेस्टॉस के कपड़े पहन लेते थे तथा पेट्रोल छिड़ककर आग लगा लेते थे । एस्बेस्टॉस के कपड़े होने के नाते इंसानों पर आग का प्रभाव नहीं पड़ता था। अपना काम समाप्त होते ही ये सागर में उतर जाते थे-जहां से पनडुब्बियों के जरिए सेविना के नीचे बसे अड्डे पर ले जाया जाता था । अड्डे और सागर का वही रास्ता था जहां हेमंत और उसकी लड़की की लाश पाई गई थी । अंत में सिर्फ एक ही बात रह जाती है वह यह है कि विकास द्वारा प्रोफेसर हेमंत को भयभीत करना । यह तो स्पष्ट हो जाता है कि विकास को किसी तरह ये मालूम हो गया था कि प्रोफेसर किसी तरह मर्डरलैंड का नागरिक है, किंतु इस बात ने मुझे भी चकरा दिया था कि इसे कैसे मालूम हो गया? उसे शक हो गया कि कहीं तुम लोग ये न समझ बैठो कि वास्तव में आग के बेटों का स्वामी वही है इसलिए उसने अपहरण का ये ढोंग रचा जबकि इसी में वह मारा गया । सिर्फ एक आदमी जानता था कि आग का स्वामी हेमंत है और वह वही था जो नकली हेमंत बना था । विकास का अपहरण भी उसने इसलिए किया था कि आगे कभी वह उसके मार्ग में न आ सके । खैर... वैसे यह पत्र मैं बहुत जल्दी में लिख रही हूं-वैसे तो मैंने सब कुछ खोल दिया है किंतु जो रह गया है वह अगली मुलाकात में मुझसे पूछ सकते हो । अच्छा अलविदाविकास स्ने मेरी तरफ से बहुत-बहुत प्यार |
प्रिंसेज ऑफ मर्डरलैंड-जैक्सन ।
"क्यों मियां दिलजले !" पत्र पढ़ने के बाद विजय विकास से बोला - "तुम्हें कैसे मालूम हुआ था कि हेमंत मर्डरलैंड का नागरिक है अथवा उससे संबंधित है ? "
"जब मैं भी आपके पीछे गया था अंकल, तो मैंने की-होल से झांककर कमरे में देखा उस समय प्रोफेसर अपनी कमीज पहन रहे थे अत: मैंने उनकी नंगी पीठ पर बना स्टार देखा था जो मर्डरलैंड की नागरिकता का प्रमाण है ।"
अवाक्-सा विजय विकास के चेहरे को देखता रहा गया । कदम-कदम पर इस लड़के ने उसे हैरत में डाल दिया था ।
***
समाप्त
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