कराची

यासिर ख़ान बोराही मोहल्ले से फारिग होकर कराची के कायदे-आजम एयरपोर्ट के टैक्सी स्टैंड पर पहुँचा। उसने अपनी गाड़ी वहाँ पार्किंग में लगा रखी थी। उसी वक्त उसके फोन में फिर से मैसेज आया।

उस मैसेज को देख वह पार्किंग से टैक्सी स्टैंड के ऑफिस में गया। वहाँ पर उसका एक जान-पहचान वाला बुकिंग सीट पर बैठा था। उससे उसने दुबई से कराची आने वाली फ्लाइट के समय की बुकिंग देखी लेकिन उधर से बोराही मोहल्ले के लिए कोई टैक्सी बुक नहीं थी। इस बात का पता लगाना बड़ा मुश्किल था कि अब्दील राज़िक वहाँ पर लौटा भी था कि नहीं और उन हालात में तो और भी मुश्किल था जबकि कोई प्राइवेट व्हीकल अब्दील राज़िक को ले गया हो।

“आखिर तुम इस सबसे हासिल क्या करना चाहते हो?” यासिर का दोस्त अनमने ढंग से बोला।

“मेरा एक दोस्त कल दुबई से आने वाला था। मुझे उसके वालिद ने यहाँ से ले जाने को बोला था लेकिन वह घर नहीं पहुँचा। मैंने सोचा कि तुम यहाँ पर हो तो मैं देख लेता हूँ कि वो आया या नहीं?”

“उस वक्त की सारी फुटेज तो हम देख चुके हैं। बस वीआईपी गेट वाली रहती है। उससे तुम्हारे दोस्त के बाहर निकालने का कोई आसार नहीं है?”

“क्यों?” यासिर ने पूछा।

“उस गेट से आम अवाम की आवा-जाही नहीं होती है। वहाँ से तो सरकार के वजीर, मिलिट्री के अफसर या बड़े बड़े शेख आते-जाते हैं।”

“चलो, मियाँ। बस एक बार दोस्ती की खातिर हमें भी वो नज़ारा करवा दो। हम वहाँ जा तो नहीं सकते, कम से कम देख तो लें कि अमीरों का आना-जाना कैसे होता है और उनकी गाड़ियाँ कैसी होती हैं।”

“तुम मरवाओगे मुझे। जल्दी से एक बार उड़ती नज़र डालो और हवा हो जाओ यहाँ से।” उसका दोस्त हँसता हुआ बोला।

इसके बाद उसने वीआईपी गेट की फुटेज चला दी। उस फुटेज को यासिर ध्यान से देखने लगा। पहली बार में कोई शेख निकला, उसके बाद वहाँ की सबसे खूबसूरत अदाकारा बाहर निकली जिसके जलवे पूरे अरब में मशहूर थे। फिर अचानक चार मिलिट्री के जवान स्क्रीन पर दिखाई दिये। उनके पीछे एक नर्स और एक लड़का व्हीलचेयर पर एक मरीज को लिए बाहर निकले, जिसे पूरी हिफाजत से सेना की एक बख्तरबंद गाड़ी में सवार करवा दिया गया।

यासिर ख़ान ने बड़ी मुश्किल से अपने चेहरे पर आते हुए हैरानी के भावों को दबाया। जिस आदमी के गायब होने पर हिंदुस्तान में हँगामा बरपा था, वह आदमी उस व्हील चेयर पर बेसुध बैठा हुआ था।

उस आदमी को सरहद पार पहुँचा दिया गया था और किसी को कानो-कान खबर भी नहीं हुई। सेना का इसमें दखल एक बड़े खेल की तरफ इशारा करता था जिसमें इसके बाद उसकी रुचि उस फुटेज में नहीं रही।

“दिखा तुम्हारा आदमी?”

“नहीं, तुमने सही कहा था। लेकिन हुस्न की मालिका का नज़ारा खूब करवाया तुमने। खैर, शुक्रिया दोस्त। खुदा हाफ़िज़।” इतना कहकर वह वहाँ से बाहर निकल गया।

उसकी पार्टी की फ्लाइट लैंड होने ही वाली थी इसीलिए वह तुरंत पार्किंग से निकला। उसने अपने पैसेंजर को उसके पते पर छोडने के बाद एक बार फिर बोराही मोहल्ले की तरफ जाने का निश्चय किया। इसके सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं था।

उसे अपने फोन के मैसेज में मिले फोटो को देख कर हैरानी हुई कि जिस शख़्स को उसके परिवार वाले मरने की कगार पर पहुँचा हुआ बीमार आदमी बता रहे थे, क्या वह एक आतंकवादी मानसिकता का आदमी हो सकता था ? इस सवाल का जवाब उसके पास नहीं था।

इसी उधेड़बुन में उसने अपनी गाड़ी गेट नंबर तीन के आगे खड़ी कर दी। कुछ ही देर में वह अपनी सवारी को लेकर कराची एयरपोर्ट से रवाना हो गया।

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मुंबई

श्रीकांत और सुधाकर शिंदे होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ पहुँचे। वहाँ पूरी तरह से अफरा-तफरी का माहौल था। नागेश कदम और मिलिंद राणे उस समय माधव अधिकारी के ऑफिस में थे।

प्रदीप जल्दबाज़ी में ऊपर से कूदने की वजह से अपनी टाँग तुड़ा बैठा था। उसे फौरन अस्पताल के लिए पुलिस की सुरक्षा में रवाना कर दिया गया था।

“आ गया भाऊ, तुम। तुम उधर बांद्रा में रेल देखता रह गया और इधर साला ताज होटल वाला कांड हो गया।” नागेश क्रोध में उबलते हुए बोला।

“क्या मतलब? तुम तो प्रदीप से पूछताछ करने आये थे न? फिर ये सब क्या हो रहा है?” श्रीकांत ने पूछा।

“ये सब धोखा है। प्रदीप को उन लोगों ने इसलिए छोड़ा ताकि उसकी आड़ में वे लोग इस होटल में हथियार पहुँचा सके।” नागेश ने जवाब दिया।

श्रीकांत और सुधाकर उसकी तरफ असमंजस के स्थिति में देख रहे थे।

“असल में प्रदीप कभी आज़ाद था ही नहीं। उसे गन की नोक पर यहाँ लाया गया था। जब वह यहाँ आया तो उसके हाथ में एक बड़ा सा बैग था जिसे वह अपने कमरे में लेकर गया था। हमने वीडियो रिकॉर्डिंग में देखा है कि एक आदमी उसके साथ था जो लगातार साये की तरह उसके साथ मौजूद था। उसने भी प्रदीप के फ्लोर पर कमरा बुक किया था। मुझे यकीन है कि उसके बैग में भी हथियार थे।”

तभी उन्हें होटल में ताबड़तोड़ गोलियाँ चलने की आवाज सुनाई दी जो ऊपर की मंजिलों से आ रही थी।

नागेश, मिलिंद राणे और सुधाकर अपनी कुर्सियों से उछलकर बाहर की तरफ भागे। तभी श्रीकांत उनके पीछे से ज़ोर से चिल्लाया :

“रुको तुम तीनों। जोश में अपने होश मत खोओ। हम अगर उन्हें अभी चुनौती देंगे तो वो जान माल की नुकसान अभी शुरू कर देंगे। पहले होटल में उनकी पोजीशन को समझो और उनको होटल में कम से कम जगह पर फैलने देना ही हमारी पहली कोशिश होनी चाहिए। साथ में फोर्स के यहाँ पर पहुँचने तक का समय भी हमें निकालना होगा।”

फिर वह माधव अधिकारी की तरफ देखकर बोला, “इस होटल का नक्शा निकालो जल्दी। तुम्हारे जितने भी सिक्योरिटी गार्ड हैं, उन्हें यहाँ पर बुलाओ। सभी फ्लोर पर जो भी कैमरे लगे हुए हैं, उन्हें ऑन करो। और तुम, संजय चुटानी, अपने इंटरकॉम से सभी फ्लोर पर मैसेज भेज दो कि सभी लोग अपने कमरों के अंदर रहें।”

संजय चुटानी इस बात पर अमल करने के लिए बाहर रिसेप्शन की तरफ भागा। तब तक माधव अधिकारी होटल का नक्शा निकाल लाया था।

“ये देखो, वे लोग छठे और सातवें माले पर पहुँच गए हैं।” सुधाकर स्क्रीन की तरफ देखता हुआ बोला। नागेश और मिलिंद की निगाहें भी स्क्रीन पर लगी थीं।

श्रीकांत ने तुरंत माधव के हाथ से नक्शा छीना और मेज पर रख कर देखने लगा।

“माधव, आठवें और नौवें माले पर क्या है?” श्रीकांत ने माधव से पूछा।

“आठवें माले पर पैंट्री है जहाँ से पूरे होटल में खाना सप्लाई होता है। नौवीं मंजिल पर बार, रेस्टोरेन्ट और जिम चलते हैं।” वह बोखलाया हुआ बोला।

“सत्यानाश। वो लोग उधर ही धावा बोलेंगे। तुम अभी के अभी वहाँ दोनों जगह फोन करो और पैंट्री का दरवाजा बंद करवाओ। बार, रेस्टोरेन्ट और जिम से बाहर कोई नहीं निकलेगा। होटल में जितनी भी लिफ्ट हैं, उन्हें बंद करवाओ?” श्रीकांत ने कहा।

“लिफ्ट बंद करवाने से क्या होगा? हमारे आदमी चूहों की तरह फँस जाएँगे।” माधव ने कलपते हुए कहा।

“अगर हमने लिफ्ट बंद नहीं की तो वो लोग सारी मंजिलों पर फैल जाएँगे और फिर सभी जगह आदमी गाजर मूली की तरह कटेंगे। तब अच्छा होगा क्या?” श्रीकांत चिल्लाते हुए बोला।

माधव सकपकाकर चुप हो गया।

“जहाँ बार जिम और रेस्टोरेन्ट हैं वहाँ पर होटल की कोई सिक्योरिटी भी तो होगी?” नागेश ने पूछा।

“हाँ। तीनों जगह दो-दो सिक्योरिटी गार्ड हैं।” माधव ने तुरंत जवाब दिया।

“हथियारबंद?” श्रीकांत ने पूछा।

“हाँ। हमारे लिए राहत की बात यह है कि उनमें से दो एक्स-सर्विसमेन है।” माधव ने हामी भरते हुए कहा।

“गुड। फिर तो हमें पहले वहाँ पर पहुँचना चाहिए।” सुधाकर अपनी जगह पर से खड़ा होते हुए बोला।

“सही कहा भाऊ, इधर जुगाली करके टाइम खोटी करने का कोई फायदा नहीं।” नागेश ने श्रीकांत की तरफ देखते हुए कहा।

“उधर जाकर सीधा मरने में भी कोई बहादुरी नहीं है। जब तक फोर्स नहीं आती है, हमें सिर्फ़ उन लोगों को एक जगह पर सीमित रखना है। ऊपर से हमारे पास हथियार तो हैं पर गोली कम है और बुलेट प्रूफ जैकेट भी नहीं हैं।” श्रीकांत बोला।

“भाऊ... सॉरी, सर। इस बात का कोई वांदा नहीं। इसमें जोखिम तो है पर हमें ड्यूटी करना ही है। ऊपर कम से कम आठ आदमियों की टोली है, जिसमें मैं तुमको बताता है कि दिलावर टकले नाम के मवाली के दो सबसे खतरनाक भिडु इस होटल में मौजूद है। वो दोनों आदमी को मच्छी के माफिक काटता है, मालूम?” नागेश ने बम फोड़ते हुए कहा। “भाऊ, स्क्रीन पर ध्यान से देख, उनमें से एक छठवें माले पर है और दूसरा सातवें माले पर मौजूद है।”

सुधाकर और मिलिंद की निगाहें स्क्रीन की तरफ घूमी। स्क्रीन नज़र आ रहे एक हथियारबंद आदमी को देखकर सुधाकर की निगाहों में हैरानी के साथ परेशानी के भाव भी उमड़े।

वह आदमी ऑलिवर था। दिलावर टकले के सबसे कुख्यात आदमियों में से एक। भारत से बाहर बैठे अपने ‘आका’ के लिए उसने मुंबई में कई खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया था। एक बार अदालत में घुसकर ‘भाई’ के विरोधियों को खुलेआम गोलियों से छलनी किया था जिसमें कुछ पुलिस वाले भी मारे गए थे। वह दुर्दांत हत्यारा एक शार्प शूटर भी था जिसका निशाना अचूक था। जहाँ ऑलिवर होता था वहाँ उसका जोड़ीदार अबरार भी जरूर मौजूद होता था। वे दोनों जहाँ पर मौजूद होते थे वहाँ पर मौत का नाच होता था।

“तुम्हें कैसे पता लगा कि ये दोनों यहाँ पर मौजूद है।” सुधाकर ने नागेश से पूछा।

“अपना सोर्स से। उसने मेरे को एक मीटिंग के बारे में बताया जिसमें दिलावर, ऑलिवर, अबरार के साथ वो ड्राइवर की अदला बदली करने वाला भिडु तात्या भी बैठा था। मेरे पास फोटो है उस मीटिंग का। ये देखो। यही दिखाने मैं अंधेरी गया पर तुम लोग...” नागेश ने अपने फोन में सेव किए हुए फोटो सुधाकर को दिखाए।

“इसमें एक आदमी तुम लोगों की पहचान में नहीं आया। वह आदमी लश्कर का खतरनाक आतंकवादी है, उस्मान ख़ान। मुझे लगता है कि इसने दिलावर टकले से मिलकर विस्टा के लोगों का अपहरण करवाया। आगे की कार्यवाही अब दिलावर के हाथ से उस्मान ने अपने हाथ में ले ली है।” श्रीकांत ने उन तस्वीरों को देखते हुए कहा।

“तो फिर अब?” मिलिंद ने पूछा।

“अब क्या? खेल शुरू करने का वक्त आ गया है। अपुन को अब इंतजार नहीं करने का। यूँ ये तो पूरा होटल बर्बाद कर डालेगा। सैकड़ों आदमी हैं इस होटल में।” नागेश फर्श को रौंदते हुए बोला।

“पूरे होटल में कुल कितने आदमियों के होने की संभावना है?” श्रीकांत ने पूछा।

“कुल मिलकर नौ सौ के आसपास।” माधव अधिकारी ने बताया।

तभी संजय सिक्योरिटी वालों के साथ ऑफिस में दाखिल हुआ। उसके साथ चार हथियारबंद और दो आदमी खाली हाथ थे। होटल की सभी लिफ्ट बंद की जा चुकी थी। ऊपर से गोलियाँ चलने की आवाज लगातार आ रही थी।

“वो लोग पैंट्री में घुसने की कोशिश कर रहें हैं। हम समय पर ऊपर सूचना देने में कामयाब हो गए इसलिए सिक्योरिटी वाले वहाँ का दरवाजा बंद करने में कामयाब हो गए हैं। लेकिन वे लोग कब तक मौत के कदमों को रोक पाएँगे?” संजय चुटानी बोला।

“हमे सीढ़ियों से ऊपर जाना होगा। हालाँकि लिफ्ट बंद है, हम उन्हें चालू कर लिफ्ट से जाने की कोशिश भी करते हैं तो वो लोग अगर लिफ्ट के बाहर घात लगाए बैठे हुए तो यह हमारे लिए सीधा मौत के मुँह में जाने जैसा होगा।” सुधाकर ने आशंका जताई।

“एक तरीका है जिससे आप लोग ऊपर जा सकते हैं।” माधव ने एक आशा की किरण जगाते हुए कहा।

“क्या?” श्रीकांत के मुँह से निकला।

“एक और लिफ्ट है जो सिर्फ पैंट्री और लगेज लेकर ऊपर जाती है। लेकिन वह बाकी लिफ्ट से अलग पार्किंग में है। बाकी फ्लोर्स से उसका कनेक्शन नहीं है। उसे हम इस्तेमाल कर सकते हैं।” माधव जल्दी से बोला।

“गुड, नागेश और सुधाकर तुम इन चारों सिक्योरिटी...” श्रीकांत की बात बीच में ही रह गयी

“ऊपर जिम और पैंट्री में छह सिक्योरिटी गार्ड बताते हैं ये लोग। मैं और भाऊ ऊपर जाते है और उन्हें जिम और रेस्टोरेन्ट वाले माले में घुसने से रोकते हैं, तब तक फोर्स आ जाएगी। मैनेजर साहब, अपने आदमियों से कह दो कि हम लोग उस लिफ्ट से पहुँच रहें हैं। कहीं वे लोग हम पर ही गोली चलाना शुरू न कर दें।” नागेश अपनी जगह से उठते हुए बोला।

“यह ठीक कह रहा है। हम जाते हैं। पहले ही बहुत लेट हो गए हैं हम।” सुधाकर नागेश के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ा।

उनको लिफ्ट तक ले जाने के लिए संजय भी बाहर निकल गया।

“मिलिंद, हम सीढ़ियों से ऊपर बढ़ेंगे। तुम चारों हमारे साथ सीढ़ियों से आगे बढ़ोगे। तुमने हमें बैक कवर देना है। मैं मानता हूँ कि हमारे पास हथियार कम है लेकिन हौसला नहीं। कोई शक?”

“नो सर।” मिलिंद की बुलंद आवाज के साथ उन चारों गार्ड्स की आवाज ऑफिस में गूँजी।

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ऑलिवर ने दाँत पीसते हुए अपने साथियों की तरफ देखा। इस वक्त वह पाँचवीं मंजिल पर था। उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ घुमाया जो उस आदमी की ठोड़ी पर पड़ा जो प्रदीप के ऊपर निगरानी के लिए रखा गया था।

“सिर्फ तेरी वजह से, साला, हमारा सारा प्लान चौपट हो गया है। अब पुलिस वाले तो इस होटल में मौजूद हैं ही, इसके अलावा होटल के बाकी लोग भी सतर्क हो गए हैं और उन्हें हमारी मौजूदगी का पता चल गया है।” ऑलिवर ने कहर भरे स्वर में कहा।

“अब मुझे क्या पता था कि वो दोनों पुलिस वाले हैं। मैंने सोचा कि होटल का स्टाफ या उसकी कोई पहचान वाले हैं। मैंने सोचा कि वो लड़का प्रदीप इससे पहले उन्हें चौकस करे, उन दोनों हरामियों को भी अपने कब्जे में ले लेते हैं।” वो आदमी कराहता हुआ बोला।

“सोचा, तूने सोचा... जो काम तेरे बस का नहीं हैं, वो काम तूने नहीं करना था। तुझे यहाँ पर सिर्फ़ घोड़ा दबाने का और आदमी टपकाने का, बस।” ऑलिवर दाँत पीसता हुआ बोला।

“अब साँप निकलने के बाद लाठी पटकने का कोई फायदा नहीं होने का। अब जल्दी से अपने प्लान पर काम शुरू करने का टाइम है। इससे पहले और पुलिस फोर्स यहाँ पर आए, इधर कोहराम मचाना है हम लोगों ने। इसी काम के लिए दिलावर भाई ने हम सब को भेजा। तुम लोग जितने लोग टपका सकते हो, उससे ज्यादा टपकाने का। समझे।” अबरार ऑलिवर को टोकता हुआ बोला।

तभी अबरार के हाथ वाले सैटेलाइट फोन में हरकत हुई। उसने कॉल रिसीव की -

“अबरार, हमारे प्लान के मुताबिक एक्शन करने का टाइम आ गया है। तुम लोग दो टीमों में तकसीम हो जाओ। दो-दो के ग्रुप में चार टीम में बँट कर उन काफ़िरों पर टूट पड़ो। जख्म पिछली बार की तरह गहरा होना चाहिए।”

“एक आदमी अब कम है।” अबरार बोला।

“कम? मतलब?” उस आवाज में तल्खी थी।

अबरार ने बताया कि किस तरह से उनका एक आदमी प्रदीप को निशाना बनाते हुए खुद गोली खा बैठा था।

एक पल के लिए दूसरी तरफ खामोशी छा गयी। फिर फोन पर वही आवाज उभरी -

“खैर, कोई बात नहीं। दूसरे प्लान पर काम शुरू करो। जल्दी। फ़तह तुम्हारी होगी।”

इसके बाद आवाज खामोश हो गयी।

अबरार फोन को वापस अपने ट्राउजर की एक जेब में रखता हुआ बोला, “ऑलिवर, इस वक्त हम पाँचवीं मंजिल पर हैं। तुमने अब नीचे की तरफ बढ़ना है और पार्किंग में आतिशबाजी शुरू करनी है। तुम्हारे साथ फैजी और कमाल जाएँगे। रास्ते में जो भी कोई आए, उसे बस उड़ाना है।”

“ठीक है। इसी वक्त का तो इंतजार था हमें।” ऑलिवर वहशी ढंग से मुस्कुराता हुआ बोला। इसी के साथ फैजी और कमाल ने अपने बैग अपनी पीठ पर लाद लिए जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत का सामान था।

“सन्नी, बट्ट और मुशी मेरे साथ होंगे। हम लोगों को बीच की मंजिलों से होते हुए आठवीं मंजिल पर पहुँचना हैं जहाँ पर बार, रेस्टोरेंट और जिम में सबसे ज्यादा लोग होंगे। वहीं पर हमें सबसे ज्यादा कामयाबी मिलेगी।” अबरार की बात सुन कर उन तीनों ने हामी भरी और उनके हाथ उनके हथियारों पर कस गए।

इसके बाद उन आतंकवादियों की दोनों टीमें कहर बनकर टूटने के लिए उस कमरे से बाहर निकल गयी।

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