“खरगोश" - सुषमा बोली- "इसकी मतलब है सावंत ने आत्महत्या की ?"


"हां ।" - प्रमोद बोला - "मुझे लाकअप में जोगेन्द्र ने बताया था कि वास्तव में क्या हुआ था, और शायद यही पहला मौका था जब उसने सच्ची बात बताई थी । उसने सावंत को बड़ी पस्ती की हालत में पाया था । उसको सान्त्वना देने की नीयत से जोगेन्द्र तुम्हारे फ्लैट पर चाउ कोह कोह की प्रतिमा लेने गया था लेकिन जब वह वापिस पहुंचा तो उसने सावंत को डरा पाया । आत्महत्या की हत्या बनाने के लिए किसी ने घटनास्थल से रिवॉल्वर गायब कर दी, यह बयान गायब कर दिया और वह लिफाफा भी गायब कर दिया जिसका जिक्र सावंत ने अपनी चिट्ठी में किया है । "


"तुम्हारा मतलब है राकेश टण्डन ने..."


"नहीं । एक ही शख्स है जो यह काम कर सकता था । अगर तुम सब तथ्यों पर ज्यादा गम्भीरता से गौर करो तो... यह कैसी आवाज थी ?"


"क्या ?"


"मुझे लगा था जैसे..."


तभी एक खट की आवाज हुई और गोदाम में तीव्र प्रकाश फैल गया । उस अप्रत्याशित प्रकाश से दोनों की आंखें चौंधिया गई ।


"वाह-वाह ! वाह वाह !" - इन्स्पेक्टर आत्माराम की खनखनाती हुई आवाज आई- "यह तो प्रमोद साहब हैं । आप कहां-कहां नहीं पहुंच जाते, साहब ! और सुषमा जी, आप प्रमोद साहब के साथ । ये तो कहते थे वो आपके बारे में कुछ नहीं जानते । वैसे मुझे उम्मीद थी कि देर सबेर प्रमोद साहब यहां एक चक्कर जरूर लगायेंगे लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि साथ में आप भी होंगी। आपके हाथ में क्या है, प्रमोद साहब ?"


प्रमोद ने चुपचाप कागज उसे थमा दिया ।


आत्माराम ने जल्दी-जल्दी उसे पढा ।


"फिर कोई चालाकी !" - वह बोला ।


“सवाल ही नहीं पैदा होता ।" - प्रमोद बोला "इन्स्पेक्टर साहब, क्या आप अभी भी नहीं समझे कि हकीकत क्या है ? यहां जीवन गुप्ता को कोई ऐसी चीज मिली थी जिसने उसे चौंका दिया था, कोई ऐसी चीज जिसके बारे में वह अपने भागीदारों से भी बात करना चाहता था । वह नरूला से तुरन्त सम्पर्क स्थापित नहीं कर सका लेकिन टण्डन से उसकी बात हो गई । गुप्ता ने उसे गोदाम में बुलाया |"


"फिर ?"


"गुप्ता को गोदाम से कुछ हासिल करना था । वह यहां पर पहुंचा। गोदाम में जोगेन्द्र छुपा हुआ था । गुप्ता के गोदाम में दाखिल होते ही वह खिड़की से कूदकर भाग गया । तब उसने फोन पर टण्डन को यहां बुलाया था । टन्डन के इन्तजार के दौरान उसने थोड़ी छानबीन करने का फैसला किया । उस छानबीन के परिणामस्वरूप उसे यह कागज मिला । इस कागज से निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि सावंत ने आत्महत्या की थी। अब इस आधार पर जरा उपलब्ध तथ्यों पर गौर करो और सोचो कि सावंत के आत्महत्या कर लेने के बाद क्या हुआ ? सम्भावित बात एक ही थी जो हो सकती थी । जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची थी तो उसने चूल्हे पर चढी केतली में पानी को बुरी तरह उबलता हुआ पाया और ओवन में सावंत की घड़ी पड़ी पाई । घड़ी से ऐसा लगता था जैसे वह भीतर से भीग गई हो और सुखाने की नीयत से ओवन में रखी गई हो । मेरा दावा है कि जोगेन्द्र के पहली मुलाकात के बाद वहां से चले जाने के बाद सावंत का नौकर अमरनाथ घर लौटा था । किचन में आते ही उसने सावंत के लिए चाय बनाने के लिए केतली चूल्हे पर चढा दी थी और ओवन चालू कर दिया था। लेकिन फिर उसने सावंत को मरा पाया । यह कागज, एक लिफाफा मेज पर पड़े थे और रिवॉल्वर सावंत की उंगलियों से फिसलकर फर्श पर आ गिरी थी । उसने मौके का फायदा उठाकर पैसा कमाने की सोची। उसने रिवॉल्वर, लिफाफा और वह कागज तीनों चीजें वहां से उठा लीं फिर वह बाकी के तीनों भागीदारों में से किसी एक के पास पहुंचा । उसने उन चीजों के बदले में धन की मांग की जो कि पूरी कर दी गई। फिर वह वापिस घटनास्थल पर लौटा और उसने आकर पुलिस को फोन कर दिया । तभी उसे किचन में उबलते पानी की केतली और गर्म । ओवन का खयाल आया। वे दोनों चीजें इस बात का सबूत थीं कि वह पहले भी एक बार वहां आ चुका था । अगर वह पानी को बहा भी देता तो भी ओवन जल्दी ठण्डा होने वाला नहीं था। पुलिस घटनास्थल पर किसी भी क्षण पहुंच सकती थी । उस समय उसने बड़ी होशियारी दिखाई । उसने जाकर सावंत की घड़ी उतार ली, उसका ढक्कन खोलकर उसने उसे गीला किया और उसे ओवन में रख दिया । तभी पुलिस वहां पहुंची। पुलिस ने जब चूल्हे पर चढी उबलती हुई केतली और ओवन में पड़ी घड़ी को देखा तो वह इसी नतीजे पर पहुंची कि नौकर की गैरहाजिरी में शायद कोई सावंत से मिलने आया था । सावंत ने उसके लिए चाय बनाने की कोशिश की थी । केतली में पानी भरते समय उसकी घड़ी गीली हो गई थी जो कि उसने सूखने के लिए ओवन को चालू करके उसमें रख दी थी और केतली चूल्हे पर चढा दी थी। अदालत में पुलिस इन दोनों ही बातों की कोई सफाई नहीं पेश कर पाई थी । जोगेन्द्र खुद अपने ही झूठ में फंस गया था इसलिए इस बात की जरूरत ही नहीं पड़ी थी। लेकिन हकीकत में हुआ वही था जो मैंने आपको बताया है । "


"अगर इस कागज में आपकी कोई शरारत शामिल नहीं" - आत्माराम बोला- "तो आपकी बात दमदार हो सकती है । लेकिन फिलहाल तो मुझे इसमें आपकी कोई शरारत ही दिखाई देती है । "


"इसमें मेरी कोई शरारत मुमकिन नहीं।"


“आप यह करना चाहते हैं कि सावंत के भागीदारों को मालूम था कि जोगेन्द्र ने उसकी हत्या नहीं की लेकिन फिर भी उन्होंने उसे सावंत की हत्या के इल्जाम में सजा पा जाने दिया ?"


"उस वक्त उन्हें कहां मालूम था कि जोगेन्द्र सावंत के कत्ल के इलजाम में फंस जाएगा ? तब तो शायद उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि सावन्त की मौत से पहले जोगेन्द्र उससे मिला था । वे तो अपने लाभ की खातिर आत्महत्या को हत्या में परिवर्तित कर रहे थे। उन्हें तो यह सपने में नहीं सूझा होगा कि जोगेन्द्र सावन्त की हत्या के इल्जाम में पकड़ा जाएगा।"


आत्माराम सोच में पड़ गया ।


"बचे हुए भागीदारों में जीवन गुप्ता एक निहायत ईमानदार आदमी था" - प्रमोद फिर बोला - "बाकी पार्टनरों की बदमाशी में वह शामिल नहीं था । उसे यही बताया गया था कि सावंत इस्पात के धन्धे में जो कुछ कर रहा था, पार्टनरशिप के लिए कर रहा था । गुप्ता ने इस बात पर विश्वास कर लिया । फिर जोगेन्द्र पकड़ा गया । उस पर केस चला और उसे फांसी की सजा हो गई। टन्डन और नरूला बड़ी दुविधा में पड़ गए। उन्हें यह गवारा न हुआ कि जो अपराध जोगेन्द्र ने किया नहीं, उसके लिए वह फांसी पर चढ जाए । हकीकत बयान करने की उनमें हिम्मत नहीं थी । इसीलिए उन्होंने जोगेन्द्र के हित में यह किया कि उन्होंने जोगेन्द्र को पुलिस की गिरफ्त से रिहा करवाने का इन्तजाम कर दिया ।"


"और यह कागज ?"


“यह कागज उन्होंने यहां गोदाम में छुपा दिया । वे लोग इसे नष्ट करने की हिम्मत इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि यह एक प्रकार से सावंत की वसीयत भी थी। अगर उनके दुर्भाग्य के किसी झटके से इस्पात के धन्धे का मुनाफा उनके हाथ से निकल कर वास्तविक हकदार अर्थात् सुषमा के पास पहुंच भी जाता तो भी इस कागज की वजह से कम से कम उनका सर्वनाश तो न होता । उस सूरत में गुप्ता और नरूला को कम से कम सावंत की विरासत में तो हिस्सा मिल जाता । लिहाजा गुप्ता की मौत के बाद इस कागज को फिर इसकी असली जगह पर छुपा दिया गया था ।”


"फिर ?"


“अब गुप्ता की सुनो । गुप्ता फोन पर नरूला से सम्पर्क नहीं स्थापित कर पाया था । लेकिन टण्डन से उसकी बात हो गई थी । टण्डन उससे मिलने यहां आया ।”


“और उसने गुप्ता का कत्ल कर दिया । "


"नहीं । उसने गुप्ता को बताया कि नरूला से कहां बात हो सकती थी और खुद खिसक गया ।"


"तो फिर गुप्ता का कत्ल किसने किया ?"


"जरा कल्पना करो कि वास्तव में क्या हुआ था ! गुप्ता ने टण्डन के चले जाने के बाद पहले क्लब में नरूला से बात की और फिर मुझसे बात की। फिर नरूला यहां पहुंचा...


"गलत । नरूला यहां नहीं पहुंचा था बल्कि उससे मिलने के लिए गुप्ता उसके क्लब में गया था।”


“नहीं । नरूला यहां आया था ।”


"तुम पागल तो नहीं हो गए हो? नरूला के साथ के सारे साथी इस बात के गवाह हैं कि..."


"किस बात के गवाह हैं ?"


"कि नरूला ने टेलीफोन पर गुप्ता से बात की थी और उसे मिलने के लिए क्लब आने के लिए कहा था क्योंकि वह खुद उस समय क्लब छोड़ कर जाने की स्थिति में नहीं था । "


"क्या कोई ऐसा भी गवाह है जिसने क्लब में या क्लब के बाहर नरूला और गुप्ता को वार्तालाप करते देखा हो ?"


"नहीं।" - आत्माराम कठिन स्वर से बोला ।


"वास्तव में नरूला ने झूठ बोला था । गुप्ता नरूला से मिलने क्लब में नहीं आया था । नरूला ही उसके पास गोदाम में पहुंचा था ।"


"इस बात का कोई सबूत ?"


"है । गुप्ता की कार ।"


“मतलब ?”


"गोदाम के पास फुटपाथ पर चढाकर खड़ी की गई गुप्ता की फियेट कार की विंडस्क्रीन पर कोहरा इस बुरी तरह जम गया था कि विंडस्क्रीन एकदम धुंधला गई थी । नमी की कुछ बूंदे जमा होकर पानी की लम्बवत् पतली धाराओं के रूप में विंडस्क्रीन पर बह निकली थीं । "


“इसमें असाधारण बात क्या है ? कोहरे में ऐसा हो ही जाता है।"


"लेकिन जरा खयाल करो अगर उस कार के वाइपर इस्तेमाल हुए होते तो कोहरा जमे शीशे की क्या स्थिति होती? तब कोहरा स्क्रीन पर वाइपरों से बने दो अर्धवृत्तों की सूरत में पुंछा हुआ होता । लेकिन उस फियेट के साथ ऐसा नहीं हुआ था । उसका कारण यह था कि वातावरण में कोहरा रात दस और ग्यारह के बीच में फैला था और गुप्ता की कार उस दौरान हरकत में नहीं आई थी। कार चली होती तो वाइपर चले होते । वाइपर चले होते तो कोहरे से धुंधलाई विंडस्क्रीन पर वाइपर चलने से अर्धवृत्ताकार निशान बने हुए हेाते । यही बात यह सिद्ध करने के लिए काफी है कि गुप्ता कार चलाकर क्लब में नरूला से मिलने नहीं गया था । कार की हालत निर्विवाद रूप से यह सिद्ध कर देती है कि नरूला झूठ बोल रहा है।"


“कमाल है !” - आत्माराम अपना सिर खुजलाता हुआ बोला ।


"अब आप कल्पना कर सकते हैं कि वास्तव में क्या हुआ था । नरूला के गोदाम में पहुंचते ही गुप्ता को खतरे का आभास हो गया होगा और वह टेलीफोन की ओर लपका होगा । शायद वह पुलिस को फोन करना चाहता था । तभी नरूला ने उसे शांत कर दिया होगा । मेरा खयाल है कि बात टण्डन को भी नहीं मालूम होगी कि गुप्ता की हत्या नरूला ने करी थी ।”


प्रमोद एक क्षण चुप रहा और फिर बोला- "नरूला जरूरत पर तुरन्त अमल करने वाला आदमी है । गुप्ता ने उसे फोन पर इतना काफी कुछ बता दिया होगा कि वह समझ जाए कि वास्तव में क्या हुआ था । शायद तभी उसने गुप्ता का कत्ल कर देने का फैसला कर लिया था । गुप्ता के वार्तालाप समाप्त करके रिसीवर रख चुकने के बाद भी वह अपने ताश के साथियों को धोखे में रखने के लिए फोन पर बोलता रहा होगा । उसने डैड लाइन में जानबूझ कर यह कहा होगा कि वह उस वक्त क्लब से कहीं नहीं जा सकता था ताकि उसके साथी सुन लें । उसने कहा होगा कि अगर कोई बहुत महत्वपूर्ण बात है तो गुप्ता ही क्लब में आ जाए । वह क्लब के बाहर पहुंचकर कार का हॉर्न बजा दे । वह बाहर निकल आएगा और उससे बात कर लेगा । नरूला कम से कम बीस मिनट ताश के खेल में से गायब रहा होगा । उतने समय में वह गोदाम जाकर वहां गुप्ता का खून करके वापिस आ सकता था । आप नरूला के ताश के साथियों से दोबारा बड़ी बारीकी से पूछताछ करेंगे तो आपको मालूम होगा कि वास्तव में गुप्ता की कार का हॉर्न बजने की आवाज किसी ने भी नहीं सुनी होगी । नरूला ने ही कहा होगा कि हॉर्न बज रहा था, वह बाहर गुप्ता से बात करके अभी वापिस आता था । उसने कहा होगा कि एक-दो हाथ उसके पत्ते न बांटे जाए क्योंकि बाहर पहुंचे अपने पार्टनर के साथ उससे कोई धन्धे की बात करनी थी । उसने कहा होगा कि वह पांच-सात मिनट में वापिस आ जाएगा लेकिन वास्तव में उसने कम से कम बीस मिनट लगाए होंगे क्योंकि गोदाम तक आने-जाने में कम से कम इतना समय जरूर चाहिए । वापिस आकर भी उसने बड़ी चतुराई से अपने साथियों के मन में यह बात जमा दी होगी कि वह केवल पांच-सात मिनट के लिए बाहर गया था । खेल में मशगूल लोगों को वक्त का खयाल तो रहता नहीं इसलिए उन्होंने नरूला की बात को सहज ही स्वीकार कर लिया होगा । हर किसी ने यही सोचा होगा कि वह पांच-सात मिन्ट के लिए क्लब के कम्पाउण्ड में खड़ी अपने पार्टनर की कार में बैठा उससे बिजनेस की बात करता रहा होगा । बात को जरा बारीकी से सोचो तो नरूला के पास वास्तव में कोई एलीबाई थी ही नहीं, फिर गुप्ता की कार की स्थिति भी यही साबित करती है कि नरूला झूठ बोल रहा था ।"


"जोगेन्द्र की कहानी सुनने के बाद मुझे भी लगने लगा था कि ऐसा ही कुछ हुआ था ।" - आत्माराम बोला ।


"जोगेन्द्र की कहानी ?"


"हां । उसकी नई कहानी । सच्ची कहानी । जो उसने पहले कभी किसी को नहीं सुनाई थी ।"


“आपने कैसे सुन ली वह कहानी ?"


“प्रमोद साहब" - आत्माराम हंसता हुआ बोला. "आपके खयाल से हमने आपको और जोगेन्द्र को एक ही कोठरी में क्यों बन्द किया था ? हमने आपको उस फांसी की सजा पाये मुजरिम के साथ इसीलिए बन्द किया था कि हमें उम्मीद थी कि हमें कोई नई कहानी सुनने को मिलेगी । हमें उम्मीद थी कि वह आपके सामने अपनी जुबान खोल देगा ।"


“आपने उस कोठरी में माइक्रोफोन लगवाया हुआ था ?"


"रहस्य की तह तक पहुंचने के लिए हमें ऐसे काम करने ही पड़ते हैं।" 


प्रमोद चुप रहा ।


 "वैसे मैं आपकी समझदारी की तारीफ करता हूँ । गुप्ता की कार की ओर तो हमने कतई ध्यान नहीं दिया था और आपने उसके माध्यम से इतनी जोरदार बात साबित कर दी । लेकिन प्रमोद साहब, आप ही की भलाई के लिए कह रहा हूं, भविष्य में अगर कभी ऐसी कोई समझदारी की बात सूझे तो सीधे पुलिस हैडक्वार्टर में मेरे पास तशरीफ ले आइएगा ।


आप ही उसका तिया-पांचा करने मत बैठ जाइएगा ।"


"भगवान न करे भविष्य में ऐसी नौबत आए।"


"अब जोगेन्द्र का क्या होगा, इन्स्पेक्टर साहब ?" - सुषमा ने पूछा । ने


“अगर नरूला ने अपना अपराध कबूल कर लिया, जो कि उसे करना ही पड़ेगा, तो जोगेन्द्र की फांसी की सजा तो शर्तिया रद्द हो जाएगी। बाकी रही उसके फरार होने की बात ! उसमें देखते हैं कि क्या होता है !"


"इन्स्पेक्टर साहब" - प्रमोद बोला- "क्या आप हम पर एक मेहरबानी कर सकते हैं ?"


"हुक्म कीजिए, साहब" - आत्माराम बोला- "मैं तो आपका सेवक हं ।"


“क्या आप कोई ऐसा इन्तजाम कर सकते हैं कि यह खबर कि वह हत्या का अपराधी नहीं है, जोगेन्द्र सबसे पहले सुषमा की जुबान से सुने ।"


“जरूर।" - आत्माराम बोला- "आप यहीं रहिए, मिस सुषमा, थोड़ी देर में मैं आपको जोगेन्द्र के पास ले चलूंगा।"


“थैंक्यू, इन्स्पेक्टर ।" - प्रमोद बोला- “अब मुझे इजाजत है ?"


“फिलहाल है । लेकिन कल सुबह पुलिस स्टेशन पहुंच जाइएगा।"


“पहुंच जाऊंगा ।”


"तुम जा रहे हो ?" - सुषमा व्यग्र स्वर में बोली ।


"हां" - प्रमोद बोला - "लेकिन तुम्हें एक बहुत महत्वपूर्ण काम करने के लिए पीछे छोड़ कर जा रहा हूं । जोगेन्द्र जीवन से निराश हो चुका है । तुम्हें उसको उसकी बेगुनाही की खबर इस प्रकार सुनानी है कि उसका जीवन में फिर से विश्वास पैदा हो उसे यह अनुभव हो कि अन्त में सच्चाई की जीत अवश्य होती है । "


"लेकिन अगर तुम न लौटे होते तो क्या सच्चाई की जीत होती ?”


" ऐसी कोई बात उसके सामने मत कहना वर्ना सब गड़बड़ हो जाएगी ।"


सुषमा चुप रही । प्रमोद ने देखा, उसकी आंखें डबडबा आई थीं ।


“मैं चलता हूं, सुषी ।" - प्रमोद बोला ।


सुषमा डबडबाई आंखों से अपने 'खरगोश' को गोदाम से जाता देखती रही ।


उसके चले जाने के बाद इन्स्पेक्टर आत्माराम प्रशंसात्मक स्वर में बोला - "बहुत काबिल नौजवान हैं ।”


“एक नम्बर का गधा है।" - सुषमा रुधे स्वर में बोली"एक काबिल नौजवान को जो बातें आनी चाहिएं, उसके बारे में यह कुछ भी नहीं जानता ।” -


आत्माराम उलझनपूर्ण निगाहों से सुषमा को देखता रहा ।


समाप्त