14 सितम्बर, शुक्रवार

“क्या बात है ? आज ऑफिस नहीं जाना है, इंस्पेक्टर साहब को ?” रणवीर के कानों में सौम्या की मीठी-सी शरारत भरी आवाज सुनाई दी ।

“क्या तुम भी सौम्या ! सारा दिन वर्दी जिस्म से चिपकी रहती है । कम-से-कम घर में तो एक आम इंसान की तरह रहने दो ।”

“अजी, आम तो हम हैं ! आप तो खास हैं । ऊपर से इंस्पेक्टर भी ।”

“ठहर... ।” रणवीर ने हँसते हुए सौम्या का हाथ पकड़ने की कोशिश की ।

“हम भी कोई मुजरिम नहीं, जो तुम बस यूँ ही पकड़ लो । मैं पूछ रही थी कि आज छुट्टी पर हो ? नौ बज गए हैं और अभी तक जनाब तैयार नहीं हुए !”

“नहीं, बस जा रहा हूँ । बस तुम्हारे साथ एक कप चाय हो जाये ।” रणवीर ने बातों-बातों में अपनी फरमाइश की । इतना कहकर वह तैयार होने के लिए दूसरे कमरे में चला गया और सौम्या चाय के लिए किचन में ।

तैयार होने के बाद दोनों ड्राइंगरूम में चाय ले रहे थे कि रणवीर ने सरसरी तौर पर देखने के लिए अखबार उठा लिया ।

“अब चाय तो कम-से-कम आराम से पी लो । अखबार उठाकर बैठ गए ।” सौम्या ने शिकायती अंदाज में कहा ।

“अब शहर में क्या हुआ है, पता तो होना चाहिए, मैडम !” रणवीर ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा ।

“जो तुमने कल चोर-उचक्के पकड़े होंगे, उनकी खबर ही तो होगी और वह तुम्हें पता ही है । हाँ, अपना नाम अखबार में देखकर खुश होना हो तो बात अलग है ।” सौम्या की खनकदार हँसी के साथ हवा में ताजगी भर गई ।

“तुम... । अच्छा, ठीक है । जा रहा हूँ मैं ।” रणवीर ने अपना कप रखते हुए कहा ।

“ठीक है जी । जाते हो तो जाओ पर इतना सुन लो, आज भव्या के स्कूल में एक कल्चरल मीट है । तुम आओगे क्या ?”

“हम्म, यार ! ये तुम संभाल लो न, प्लीज ! मुझे अगर टाइम मिला, तो मैं आ जाऊँगा ।” अपनी रॉयल एनफ़ील्ड पर सवार होता हुआ ।” वह बोला तो सौम्या ने सहमति में अपनी गार्डन हिलाई ।

जब रणवीर सिटी पुलिस स्टेशन अपने ऑफिस में पहुँचा तो ‘वेलकेयर फार्मा’ के एरिया डिस्ट्रिब्यूटर पुनीत खन्ना को अपने ऑफिस में इंतजार करते हुए पाया ।

“इंस्पेक्टर साहब, मैं पुनीत खन्ना !”

“मुझे याद है मिस्टर खन्ना ! आपसे संत नगर में मुलाक़ात हुई थी । कहिए, जो सैंपल्स आपने संजय बंसल के घर से लिए थे, उनकी रिपोर्ट आई क्या ?”

“उसी सिलसिले में मुझे आपसे मिलना था, इंस्पेक्टर साहब !”

“मैं अंदाजा लगा सकता हूँ, आप क्या कहना चाहते हैं । फिर भी मैं आपके मुँह से सुनना चाहूँगा ।”

“संजय बंसल के घर से जो भी सैंपल्स हमने लिए थे, उनके ऊपर जो बैच नंबर और मेन्यूफैक्चरिंग डेट दिखायी गई है, वह ‘वेलकेयर फार्मा’ कंपनी के रिकॉर्ड्स से मेल नहीं खाते हैं ।”

“तो फिर ? आप कहना चाह रहे हैं कि संत नगर से जो दवाइयाँ हमने बरामद की हैं, वह नकली दवाइयाँ हैं ! आपकी कंपनी ने बनाई ही नहीं !”

“हाँ । और मैंने अपनी सभी रीटेल आउटलेट्स पर जाकर छानबीन की है और कुछ ऐसे ठिकाने मेरी नजर में आए हैं जहाँ पर यही लॉट बिक रहा है ।”

“तो फिर जाइए, आप यहाँ के ड्रग इंस्पेक्टर नरेश मल्होत्रा को कम्प्लेंट करें या सीधे चीफ़ मेडिकल ऑफिसर को रिपोर्ट करें ! हम लोग इस मामले में सीधी कार्यवाही नहीं कर सकते हैं । वहाँ से जब फोर्स माँगी जाएगी तो मैं कानूनन आपकी सहायता कर सकता हूँ ।”

“वह काम मैं कर चुका हूँ । सीएमओ साहब आज कमेटी बना देंगे ।”

“ठीक है । आप तब हमें अपना रूट चार्ट भेज देना । मैं एक गार्द आपके साथ भेज दूँगा । आपने जो रिपोर्ट संजय बंसल के मामले में बनाई है, उसकी एक कॉपी आप मुझे दे दें और मुझे मेल भी कर दें ।”

पुनीत खन्ना ने अपनी रिपोर्ट की एक कॉपी इंस्पेक्टर रणवीर को दे दी । इसके बाद वह सीएमओ ऑफिस की तरफ रवाना हो गया ।

रणवीर ने वह रिपोर्ट अपने पास रख ली, फिर उसका ध्यान अखबार में छपी हुई उस फोटो की तरफ गया जो उसने घर से आते हुए देखी थी । उसने वरुण को फोन मिलाया ।

“गुड मॉर्निंग, बड़े दारोगा जी !” वरुण की मस्का लगाती आवाज कॉल रिसीव करते ही उसके कानों में पड़ी ।

“क्या हाल है, गोस्वामी साहब ?” रणवीर विनोदपूर्ण स्वर में बोला ।

“कौन गोस्वामी ? सॉरी, रोंग नंबर !”

“अबे, रुक ! खबरदार जो फोन काटा तो ।” रणवीर ने हँसते हुए कहा ।

“बड़े दारोगा जी, सुबह-सुबह मैं ही मिला आपको टाँग खींचने के लिए ! आप तो मुझे वह हुकुम कीजिये जो आपने अभी मुझे करना है !”

“ठीक है । ये बता, गेरा की जो फोटो आज लोकल अखबार में तुम्हारी रिपोर्ट के साथ छपी है, इसका क्या किस्सा है ?”

“कोई खास बात नहीं है, दारोगा जी ! कल रोहित गेरा के अंतिम संस्कार के बाद शमशेर सिंह जब शमशान घाट से बाहर निकल रहा था, तो एक बूढ़ा-सा आदमी अचानक उसके गले पड़ गया था । बस गेरा ने गुस्से में उसे वहीं बुरी तरह पीट दिया । वही घटना मैंने अपने कैमरे में कैद कर ली । तब तक आप लोग, मतलब पुलिस वहाँ से जा चुकी थी ।”

“वह आदमी जो शमशेर से पिटा था, वह कौन था ? ये क्या मामला है ? तुम्हें कुछ पता है ?”

“पता तो है बड़े दरोगा जी, पर अभी मैं... !”

“कोई बात नहीं, वरुण ! मुझे बिलकुल संक्षेप में बता । जल्दी... ।”

वरुण ने आगे की कहानी रणवीर को बयान की । उस कहानी को सुनकर रणवीर ने फोन कॉल काट दी । अभी वह इस बारे में सोच ही रहा था कि अनिल ने आकर उसकी तंद्रा भंग की ।

“सर, वह तीन गुमशुदा लड़कियों के परिवार वाले आये हुए हैं !”

“हम्म । रतनलाल ने कागजों के हिसाब से उनसे दरियाफ्त कर ली ?”

“जी सर ! उनके केस फ़ाइल हमने निकाल ली हैं ।”

“ठीक है । उनके परिवार से दो-दो लोगों को साथ ले जाओ और मोर्ग में उन्हें उस लड़की की लाश दिखाओ । देखें, उसकी कोई शिनाख्त हो पाती है या नहीं । अगर किसी को लगे कि हत्प्राण का संबंध उनसे हो सकता है तो वहीं लैब में उनका डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल भी दिलवा देना । अपने साथ कृष्ण को भी ले जाओ !”

इस बात पर हामी भरता हुआ अनिल ऑफिस से बाहर चला गया । रणवीर का फोन वाइब्रेट हुआ तो उसने उसकी स्क्रीन पर निगाह डाली । एक नए ई-मेल मैसेज का नोटिस स्क्रीन पर जगमगा रहा था । मेल-बॉक्स खोलने पर लोकेश की ई-मेल स्क्रीन पर झाँक रही थी । उसने मेल चेक की, जो उस नंबर के बारे में थी जो उसने वजीरे से मिली लिस्ट से लोकेश को पता लगाने के लिए दिया था । उस नंबर की लोकशन लगातार पिछले एक महीने से दुर्गा कॉलोनी में दिखाई दे रही थी । वीरू के ढाबे के पास भी वह फोन उसी वक्त एक्टिव था, जब वह संजय बंसल के घर तलाशी ले रहे थे ।

रणवीर ने एक बार दुर्गा कॉलोनी का फेरा लगाने का निश्चय किया और दिनेश को तैयार होने के लिए कहा । कुछ ही देर में रणवीर और दिनेश रॉयल एनफ़ील्ड पर सवार होकर दुर्गा कॉलोनी की तरफ बढ़ चले । उनकी मंजिल था मकान नंबर 59/11 ।

मकान के सामने पहुँचने पर दिनेश ने डोर-बैल पर अंगूठा रखा तो घर के अंदर किसी मंत्र की धुन बजने लगी । मकान के बाहर ‘अशोक भवन’ का बोर्ड लगा हुआ था । एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने दरवाजा खोला । पुलिस को देखकर वह सकपकाया ।

“जी, कहिए !” उस व्यक्ति ने पूछा ।

“आपका नाम अशोक कुमार है ?” दिनेश ने पूछा । इतने में रणवीर अपनी बाइक को स्टैंड पर लगाकर वहाँ पर पहुँचा ।

“जी, हाँ ! कहिए, क्या बात है ?”

“मेरे साथ यहाँ के एसएचओ रणवीर कालीरमण हैं । हमें आपसे कुछ पूछताछ करनी थी ।”

“हमसे ! क्या बात है ? बात कुछ समझ नहीं आई ।”

“कोई खास बात नहीं है, मिस्टर अशोक !” रणवीर बात का सूत्र अपने हाथ में लेता हुआ बोला, “बस आपसे एक फोन नंबर के बारे में जानकारी लेनी है ।”

“बिल्कुल पूछिए ! पर ये सारी कवायद है किस सिलसिले में ?”

रणवीर ने अशोक को नंबर बताया पर उसके चेहरे पर कोई ऐसे भाव नहीं आए जिससे यह लगे कि वह टेलीफोन नंबर उसकी पहचान का हो ।

“क्या ये नंबर आपका या आपके परिवार के किसी सदस्य का है ?”

“वह सर, क्या है कि ये तो मुझे फोन से चैक करना पड़ेगा ! मुझे तो सिर्फ अपना और अपनी बीवी का नंबर याद है या बच्चों का ।” वह झेंपता हुआ बोला ।

“सही कह रहे है आप । आपके साथ ही नहीं, लगभग सभी के साथ यही समस्या है । आप अपना फोन दिनेश को दे दीजिए । ये चेक कर लेगा ।”

अशोक ने न चाहते हुए भी अपना फोन दिनेश के हवाले कर दिया । दिनेश ने कॉल-ऑप्शन पर जाकर वह फोन नंबर डायल कर दिया । उसकी एड्रेस बुक में एक नाम उभरा ।

अविनाश चौधरी !

दिनेश ने फोन रणवीर के हाथ में थमा दिया ।

“आपको तो याद नहीं हैं पर आपके फोन ने हमें बता दिया । ये फोन नंबर किसी अविनाश चौधरी का है ।”

“ओह ! मैं कह रहा था न, सर ! याद नहीं था । अविनाश तो हमारा किरायेदार है । पिछले तीन महीने से वह यहाँ पर रह रहा है ।”

“तो अब कहाँ है, आपका ये अविनाश चौधरी ?”

“जी, ऊपर ही होगा । आप कहें तो मैं फोन कर देता हूँ, वह नीचे आ जाएगा । लेकिन बात क्या है इंस्पेक्टर साहब ?”

“कहा न, कोई खास बात नहीं है । खास बात होती तो क्या हम दो ही लोग यहाँ आते । बस मामूली पूछताछ करनी है । अगर आप इजाजत दें तो हम... ।” दिनेश को इशारा करता हुआ रणवीर उठ खड़ा हुआ, “आपके किरायेदार से मिल लें ।”

“जरूर जी ! आइये, मैं साथ... ।”

“आप क्यों नाहक तकलीफ करते है, जनाब ! आप बस ऊपर जाने का रास्ता दिखा दीजिये ।”

वे दोनों तीसरी मंजिल पर पहुँचे । वह सिंगल बेडरूम का एक सेट था । जब दरवाजा खटखटाया तो दरवाजा एक बारीक-सी दाढ़ी रखे हुए एक गोरे रंग के नौजवान ने खोला । कद में वह रणवीर के बराबर का ही निकला । एक बार पुलिस को देख वह सकपकाया पर फिर संभलकर बोला –

“कहिए, आप लोग ! क्या बात हो गई ? सब कुछ ठीक तो है ? आइये, अंदर आइये ।” वह सकपकाते हुए बोला ।

“तुम्हें हमारे आने का अंदाजा था ?” रणवीर ने पूछा ।

“आपके आने का ! सात जन्मों में भी नहीं, सर ! वह तो ब्रेकफ़ास्ट करते हुए मैं ‘सिंघम’ देख रहा था और दरवाजे पर आपको देखकर लगा जैसे साक्षात ‘अजय देवगन’ ही आ गया ।” वह हँसते हुए बोला ।

“हमें तुमसे मामूली-सी पूछताछ करनी है । तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं ।”

“अगर मैं ऐतराज करूँगा तो क्या आप लोग चले जाएँगे ? आपने जो काम करना है वह तो करना ही है और जो नहीं करना वह आपने नहीं करना है । वैसे अंदर बैठने की अच्छी जगह है मेरे हिसाब से ।”

“ठीक है । चलो, अंदर ही बैठते हैं ।” रणवीर सहमति जताता हुआ बोला ।

“हाँ, क्यों नहीं ! आइये, मैं ब्रेकफ़ास्ट कर रहा था । आप भी कुछ लेंगे ?”

“नहीं, बस कुछ बातें पूछनी हैं तुमसे ।” रणवीर ने कमरे का जायजा लेते हुए कहा ।

कमरा किसी कम्प्यूटर के शैदाई आदमी के कमरे की तरह बिखरा हुआ था । उसका ड्राइंगरूम किसी कम्प्यूटर वर्क शॉप की तरह लगता था ।

“जरूर सर ! मैं भी हैरान हूँ कि आप लोगों को बताने लायक आखिर क्या है मेरे पास ! मैं खुद भी जानना चाहता हूँ ।”

तभी कमरे में एक फोन बजने की आवाज आने लगी ।

“एक्सक्यूज मी, सर !” वह अपने मोबाइल फोन की तरफ बढ़ा, जो एक मेज पर रखा था । उस तक पहुँचते ही कॉल कट गई ।

“ये तुम्हारा ही नंबर है ?” रणवीर ने पूछा ।

“जी । ओह, आपने ही कॉल की थी !” दिनेश के हाथ में फोन देखते हुए उसने कहा, “ये मेरा ही नंबर है । क्यों, क्या हुआ ?”

“तुम्हें पता है, तुम्हारे बिल्कुल पीछे वाले घर में पिछले दिनों चार सितंबर को एक भयंकर हत्याकांड हुआ था, जिसमें संजय बंसल नाम का लड़का मरा हुआ पाया गया था ।”

“जी सर, पता है । बड़ा बुरा हुआ बेचारों के साथ ।”

“तुम कहाँ थे उस वक्त ?”

“मैंने कहाँ होना है, सर ! मैं अपने कमरे में था । अपना काम कर रहा था । मैं कम्प्यूटर का डाटा रिट्रीव, यानी जो डाटा उड़ जाता है या डिलीट हो जाता है, उसे वापिस रीस्टोर करता हूँ ।”

“तुम्हारे बगल में, यानी पीछे इतना बड़ा कांड हो गया, तुम्हें पता भी नहीं चला ।”

“जी, बिलकुल पता नहीं चला । वह तो जब बहुत बदबू फैली थी, तब शायद लोगों को पता चला था ।”

“तुम्हारी मोबाइल की लोकेशन हमें यहाँ मिली है । इस बारे में... । वैसे तुम्हारा जवाब पता है मुझे ।”

“सर, अब मैं यहाँ रहता हूँ तो नैचुरल है मेरी लोकेशन इसी जगह पर आएगी ! नीचे रहने वाले अशोक अंकल की लोकेशन अगर आप ट्रेस करवाएँ तो जब से मोबाइल नेटवर्क शुरू हुआ है, उनकी लोकेशन भी यहीं पर मिलेगी ।”

“स्मार्ट आन्सर ! वेरी गुड ! ग्यारह सितंबर को हमने संत नगर में एक लाश बरामद की थी । कुछ समय के लिए दोपहर को हम वीरू के ढाबे पर रुके थे । तुम उस वक्त कहाँ थे ?”

“ग्यारह सितंबर को ! आज हुआ चौदह सितंबर ।” वह कैलेंडर पर निगाह डालता हुआ बोला, “सर, मैं सीसीटीवी कैमरा इंस्टालेशन का काम भी देखता हूँ । उस दिन मैंने तीन कोचिंग इंस्टीट्यूट में और दो होटेल्स में पूरा सिस्टम इन्स्टाल किया था । दोपहर में जिस वक्त की बाबत आप पूछ रहे हैं तो मुझे याद आ रहा है, मैं वीरू भाई के ढाबे में था । अपना लंच भी मैंने वहीं तीन बजे के आसपास लिया था । आज भी मैंने वहाँ जाना है । उनके सिस्टम में कुछ प्रॉब्लम है शायद ।”

“क्या तुम मोहित गेरा को जानते हो ?”

“मोहित ! नहीं सर ! सीधी जान-पहचान तो नहीं है पर गेरा फ़ैमिली से है, इतना मुझे पता है ।”

“इतना मशहूर है वह ?” रणवीर ने जानबूझकर अंजान बनते हुए पूछा ।

“मशहूर है या बदनाम है, ये तो मुझे नहीं पता, सर ! ये प्रेम नगर छोटी-सी जगह है । मैंने लोगों की जबान से उनके किस्से तो सुने ही हैं । क्या आप लोगों तक नहीं पहुँचे ?”

“सिर्फ किस्सों की बिना पर पुलिस तो हर दिशा में पहुँच नहीं सकती, पर जो किस्से एफआईआर के रूप में दर्ज हो जाते हैं, हम उन पर जरूर काम कर सकते हैं । चलो, छोड़ो । खाने में क्या-क्या पसंद करते हो ?”

“जो भी कोई खिला दे । पर वैजिटैरियन ओन्ली । हा हा हा ।”

“हाँ, दूसरा कोई खिला दे तो वह नुकसान भी नहीं करता । हा हा... ओल्ड जोक !” रणवीर और दिनेश भी अपनी हँसी नहीं रोक सके ।

“पर सर, आपने ये सवाल क्यों पूछा ?” अविनाश ने गंभीर होते हुए पूछा ।

तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई । अविनाश ने दरवाजा खोला तो एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का चाय की ट्रे लिए खड़ा था ।

“भैया, मम्मी ने चाय भेजी है ?”

“हे, थैंक्स सन्नी ! तूने मेरी इज्जत रख ली, यार ! वरना सर तो कुछ ले ही नहीं रहे थे ।” ट्रे अपने हाथ में लेता हुआ अविनाश बोला । पुलिस वालों को देखते ही सन्नी वहाँ से उसी वक्त उल्टे पाँव वापिस हो लिया ।

“तुमसे मैंने इसलिए पूछा कि चार सितंबर को तुमने मिलन रेस्टोरेंट से कुछ खाने का ऑर्डर दिया था । वह तुमने कैसे दिया था ऑनलाइन या खुद ?”

“चार सितम्बर ! जी, मैं खुद ही जाकर दे आया था । क्यों, क्या हुआ ?”

“कितने आदमियों का ?”

“वह तो सर, पाँच आदमियों का ऑर्डर करके आया था ! मैं तो जब भी मिलन ढाबे से खाना मँगवाता हूँ, हमेशा पाँच ही आदमियों का खाना ऑर्डर करता हूँ ।”

“हमेशा !”

“वह सर क्या है, मैं यहाँ पेईंग गेस्ट के रूप में रहता हूँ । हर रोज ब्रेकफ़ास्ट और शाम का खाना आंटी के हाथ का खाता हूँ । जब भी मुझे कोई अच्छा ऑर्डर मिलता है तो उसे सेलिब्रेट करने के लिए बाहर से खाना मँगवा लेता हूँ और नीचे आंटी को दे देता हूँ । जब से मैं यहाँ पर आया हूँ, मेरा यही रूटीन है ।”

“उस दिन का ऑर्डर याद है ?”

अविनाश ने कुछ देर याद करने के बाद जो कुछ बताया वह वजीरे की दी गई ऑर्डर लिस्ट से मैच करता हुआ था ।

“अब इसमें कौन-सा कानून भंग हो गया, सर ?”

“कानून की बात ये है कि तुम्हारा ऑर्डर अनिकेत एंड पार्टी के ऑर्डर से मैच करता है और उनके खाने में नशीला पदार्थ मिलाया गया था । मुझे बात कुछ जम नहीं रही ।”

“हे भगवान ! मैंने वजीरे को कहा था कि कुछ अच्छा-सा भेज देना और हर बार की तरह मैंने उसी पर छोड़ दिया था । लगता है, उसने दोनों घरों का एक ही ऑर्डर रिपीट कर दिया । अब मुझे पता होता कि इसमें आगे कोई ऑबजेक्शन होगा तो मैं पड़ोसियों का मैन्यू चेक करके कुछ अलग लिखवा देता ।”

“तुम्हारी कभी अनिकेत, गौरव, संजय या गेरा बंधुओं से कोई मुलाक़ात या मेलजोल हुआ है ?”

“सर, मैं तो ये नाम आपसे ही सुन रहा हूँ ! इनमें से बस गेरा भाइयों के बारे में मैंने पहले सुन रखा था ।”

“तुम्हारी फ़ैमिली कहाँ से है, अविनाश ?”

“मेरी फ़ैमिली ! फैमिली के नाम पर बस मैं ही हूँ सर ! पापा और मम्मी का एक रोड एक्सिडेंट में दो साल पहले देहांत हो गया । इकलौती संतान होने की वजह से अब अकेला हूँ ।”

“ओह ! कोई और रिश्तेदार ?”

“एक चाचा हैं जो मुम्बई में सैटल हैं ।”

“तुम यहाँ कब से रहते हो ?”

“यहाँ रहते हुए मुझे तीन महीने के करीब का समय हो गया है, सर !”

“इससे पहले कहाँ रहते थे तुम ?”

“क्या बात है सर ? मेरे को गिरफ्तार करने का इरादा तो नहीं हैं आपका ? इतने सवाल !”

“कोई ऐतराज है तुम्हें ? अब यहाँ आ ही गए हैं तो सोचा, तुम्हारे बारे में अच्छी तरह से जान लें ।”

“नहीं सर, मैंने ऐतराज क्या करना ? बस डाउट होने लग गया, कहीं मुझे... आप अंदर ही न कर दें ।”

“क्यों ? पुलिस को क्या पागल समझ रखा है तुमने ? हमें तो उन्हीं लोगों से वास्ता है, जिन्होंने कानून की हदें पार की हैं । अगर तुमने ऐसा नहीं किया है तो तुम क्यों डर रहे हो ! हाँ, तो मैं पूछ रहा था, इससे पहले कहाँ रहते थे तुम ?”

“हमारा पुश्तैनी मकान तो पुरानी बस्ती में है, सर ! लेकिन अब वहाँ मेरे क्लाइंट्स का पहुँचना मुश्किल होता है और वहाँ पर थोड़ी जगह की भी समस्या है । इसलिए मैंने यहाँ अपना ऑफिस कम सर्विस-स्टेशन बना रखा है ।”

अविनाश ने अनिकेत, संजय बंसल या गौरव कालिया के बारे में अधिक जानकारी होने से इंकार कर दिया । अधिक समय लगाने का वहाँ कोई फायदा नहीं था इसलिए वह दोनों वहाँ से रवाना हुए । रणवीर ने अपनी रॉयल एनफ़ील्ड पुरानी बस्ती की तरफ मोड़ दी । लोकेश ने अविनाश का जो पता लिखवाया था, वह पुरानी बस्ती का ही था और वह उस पते पर एक बार जाना चाहता था ।

अविनाश के पुश्तैनी घर के एड्रेस पर एक पुराने समय का जर्जर हालत का मकान निकला, जिसे फौरी तौर पर देखभाल की सख्त जरूरत थी । उस मकान के बाहर एक जंग लगा हुआ ताला लगा हुआ था । पड़ोस में दिनेश ने अविनाश के बारे में पूछताछ की तो उन्हें लगभग वही जानकारी मिली जो अविनाश ने उन्हें बताई थी । अब ताला तोड़कर उस मकान में घुसना उनके लिए वर्दी पहने हुए मुनासिब न था । रणवीर ने वह काम अपने मुखबिर ‘कालिया’ के जिम्मे लगाने का निश्चय किया । वहाँ से फिर वह वापिस पुलिस स्टेशन की तरफ रवाना हो गए ।

दोपहर को रणवीर के पास वेदपाल का फोन आया ।

“तुमने वह रिपोर्ट देखी ? मैंने अभी तुम्हारे व्हाट्सएप पर भेजी है ।”

“नहीं, मैं एक इंक्वायरी के लिए बाहर गया हुआ था । बस अभी फुर्सत मिली है ।”

“तुम्हारे लिए एक नई पहेली शुरू हो गई है । रिपोर्ट पढ़ोगे तो... ।”

“क्यों ? डीएनए सैंपल में कोई खास बात निकल आई है ? कहीं उस लड़की और संजय बंसल के घर से लिए सैंपल मैच तो नहीं हो गए ?”

“हाँ, तुम्हारा अंदाजा सही निकला । उस सीवर में मिली लाश और जो सैंपल मैंने संजय बंसल के घर से लिए थे, वह दोनों बिल्कुल मैच करते हैं ।”

“इसका मतलब मेरा शक सही था । उस लड़की की हत्या का ठिकाना संजय बंसल का घर था । उन लोगों की मूर्खता की हद देखो कि उस पट्ठे ने उस लड़की की लाश अपने घर के पास ही ठिकाने लगाने की भी सोची ।”

“वह लोग शायद ये सोच बैठे थे, कोई उनका क्या बिगाड़ लेगा ।”

“हम्म । इन लड़कों के काले कारनामों में एक कांड और जुड़ गया है, वेद ! तुम पहेली की क्या बात कर रहे थे । ये तो पहेली की एक तरह से एक घुंडी सुलझी है । बस अब उस डेडबॉडी की शिनाख्त और हो जाये ।”

“सही कह रहे हो तुम । अभी तो इस पहेली की एक ही घुंडी सुलझी है मेरे भाई ! पर इसी के साथ एक पहेली और तुम्हारी राह देख रही है ।”

“कौन सी ?”

“जिस कमरे से मैंने पहला सैंपल लिया था, उसी कमरे के दूसरे कोने से एक दूसरा सैंपल और लिया था । तुम्हें दिखाया था, याद है ? तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, वह सैंपल तुम्हारे उन मारे गए लौंडों में से किसी से मैच नहीं करता । कमाल की बात यह है कि हलाक हुई उस लड़की से भी नहीं मिलता । यह लीड इस बात की तरफ इशारा करती है कि उस कमरे में उस लड़की के अलावा भी कोई और शख्स घायल था या कभी-न-कभी कोई और लड़की उनके हवस का शिकार बनी हो सकती थी ।”

“इसका मतलब उन लड़कों ने उस घर को मर्डर-हाउस बना रखा था ! क्या पता दो बहने हों या दो सहेलियाँ हों या ये भी हो सकता है कि दो लड़कियाँ अलग-अलग समय पर उन हरामजादों की हवस का शिकार बनी हों और ये सबूत हमारे हाथ अब इत्तफाकन आ गए हों ?”

“हालात तो यही कहते हैं और मुझे तुम्हारी आखिरी बात की संभावना ज्यादा लगती है ।”

“हम्म । अब तो हमारे लिए उस मोहित गेरा का मिलना और भी जरूरी हो गया है ।”

“ठीक है । मैं फोन रखता हूँ ।” वेदपाल ने रणवीर को एक और गुत्थी में उलझाकर फोन रख दिया ।

रणवीर ने सरकारी वकील जसवीर राणा का नंबर मिलाया और उसे सभी तथ्यों से अवगत कराया । उसके लिए जसवीर राणा ने कुछ कागजात की माँग की, जिनको रणवीर ने तुरंत उसके पास पहुँचाने का इंतजाम करने के लिए हवलदार अनिल कुमार को ज़िम्मेदारी सौंप दी ।

रणवीर को शाम तक या अगले दिन मोहित गेरा के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी होने की पूरी उम्मीद थी । रणवीर ने इस बात की सूचना अपने उच्च अधिकारी डीएसपी हरपाल सिंह को भी दे दी थी ।

मुंशी रतनलाल से पूछने पर पता चला कि आसपास के थानों से गुमशुदा लड़की का कोई फ़ाइल हुआ या अनसुलझा हुआ केस नहीं था । जो लोग उसने शिनाख्त के लिए हॉस्पिटल भेजे थे, उन लोगों का उस लड़की के साथ कोई संबंध नहीं निकला । अब उस लाश की शिनाख्त के लिए अखबारों में आम नोटिस निकालना ही एक आखिरी उपाय बचा था । रणवीर ने दिनेश को बुलाकर इस बारे में उसको निर्देश दे दिये कि अखबारों में उस लाश के बारे में ‘शोरे गोगा’ का इश्तिहार जल्द-से-जल्द हर हाल में निकल जाए ।

रणवीर ने फिर एक बार लोकेश का नंबर मिलाया । रणवीर ने उसको अविनाश चौधरी का फोन नंबर दिया और उसका पिछले दो हफ्ते का कॉल रिकॉर्ड निकालने को कहा । लोकेश ने इस काम के लिए अगले दिन तक का समय माँगा ।

शाम को उसके पास चीफ़ मेडिकल ऑफिसर के दफ्तर से दस्ती डाक लेकर पुनीत खन्ना आया, जिसमें उस कमेटी के गठन की सूचना थी जिसने ‘वेलकेयर फ़ार्मा’ कंपनी के दिये गए ठिकानों पर छापेमारी करनी थी । रणवीर ने वह फ़ाइल अपनी अलमारी में रख ली । उसने पुनीत खन्ना को अपनी टीम लेकर सुबह आने के लिये कहा ।

आखिर में रणवीर ने ‘कालिया’ का नंबर लगाया । वह उसका मुखबिर था, जो ताला खोलने में एक्सपर्ट था । रणवीर ने उसे अविनाश चौधरी के पुराने घर का पता लिखवाया और रात को ही वहाँ बारीकी से छानबीन करने को कहा, जिसका किसी को पता न लगे ।