उसके बाद फिर उसने दोबारा महाजन के कत्ल का जिक्र छेड़ने की कोशिश नहीं की। जो वह जानना चाहता था, जान चुका था । अगर अमीरी लाल जान-बूझकर झूठ नहीं बोल रहा था - जान-बूझकर झूठ बोल पाने की स्थिति में हालांकि वह था नहीं - तो बख्तावर सिंह ने केवल महाजन का कत्ल नहीं करवाया था, बल्कि वह कत्ल की धमकी वाली चिट्ठी भी उसने महाजन को नहीं भिजवाई थी ।


अमीरी लाल ने नशे में याद तक नहीं रहा था कि वार्तालाप किस विषय पर हो रहा था। उसने विकास को एक नया चुटकला सुनाना शुरू कर दिया । अपने नये जाम की चुस्कियां लेता हुआ वह बड़े सब्र के साथ उसका चुटकुला सुनता रहा ।


चुटकुला समाप्त होते ही वह उठता हुआ बोला - “मैं चलता हूं । कल जरा जल्दी रवाना होता है काम के लिए।"


अमीरी लाल ने गर्दन उठाकर बार के पीछे की दीवार पर लगी क्लाक पर निगाह डाली । वह बड़ी कठिनाई से घड़ी पर अपनी निगाह फोकस कर पाया।


"अरे ?" - हड़बड़ा कर बोला- "बारह बज गए ! मैं चलता हूं, तुम किधर जाओगे ?"


“सुभाष रोड ।” - विकास अनिच्छापूर्ण स्वर में बोला ।


"मेरे पास मोटर साइकल है" - वह बोला- "चलो, तुम्हें वहां उतारता चलूंगा ।”


"मैं चला जाऊंगा गुरु ! तुम तकलीफ मत करो।"


“अरे चलो । तकलीफ कैसी ? मुझे भी उधर ही जाना है।"


“अच्छी बात है ।"


अमीरी लाल इतना नशे में था कि विकास सोच रहा था कि वह मोटर साइकल चला भी पायेगा या नहीं ।


दोनों दरवाजे की तरफ बढे ।


रास्ते में वे फिर बख्तावर सिंह से टकरा गए ।


"चल दिए ?" - वह बोला- "अभी तो बार खुला है ।"


"बस साहब ?" - विकास संकोचपूर्ण स्वर में बोला "बहुत हो गई ।"


“भई, हमारी तरफ से।"


“शुक्रिया । लेकिन फिर कभी ।”


“मर्जी तुम्हारी ।" - वह अमीरी लाल की तरफ घूमा - " और तुम कहां जा रहे ?"


"इसे घर पहुंचाने।" - अमीरी लाल नशे में थरथराती आवाज में बोला ।


तुरन्त बख्तावर सिंह के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे ।


“भई, शिवकुमार ।" - वह बोला - "क्या जादू कर दिया है तुमने मेरे आदमी पर । किसी के लिए ऐसी यारी दिखाता तो मैंने इसे आज तक नहीं देखा ।"


उत्तर देने के स्थान पर विकास बड़े शिष्ट भाव से हंसा ।


फिर बख्तावर सिंह ने अपनी दोनों बाहें दोनों के कन्धों के गिर्द लिपटा दीं और उनके साथ चलता हुआ बोला - "शिवकुमार, अमीरी लाल की ड्राइविंग के बारे में तुम्हें एक बात बता दूं । यह नशे में टुन्न होकर भी कई होशमन्दों से बढिया ड्राइविंग कर सकता है । इसलिए यह सोच-सोच कर घबराना मत कि यह रास्ते में एक्सीडेन्ट कर देगा ।"


"मैं नहीं घबराता ।" - विकास बोला । -


खुला वे अभी दरवाजे से चार कदम दूर ही थे कि दरवाजा और एक नए आदमी ने भीतर कदम रखा ।


वे ठिठक गए ।


उसने बख्तावर सिंह और अमीरीलाल का अभिवादन किया । फिर उन दोनों पर से फिसलती हुई उसकी निगाह विकास पर पड़ी ।


तुरन्त उसका निचला जबड़ा लटक गया और नेत्र फैल गए।


“अरे !" - वह एकदम चिल्लाया - "यह तो वही आदमी है जिसे मैंने फियेट बेची थी । यह तो महाजन साहब का हत्यारा है ।”


अब विकास ने भी उसे पहचाना ।


वह कमर्शियल स्ट्रीट वाले सिन्धी कार डीलर मेहतानी का सेल्समैन था ।


विकास ने बख्तावर सिंह या अमीरी लाल में से किसी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा न की । वह बख्तावर की बांह की लपेट में से निकाला और उसने फौरन दरवाजे की तरफ छलांग लगा दी । सेल्समैन युवक को उसने पर धकेला और खाली हाल के दरवाजे का हैंडल पकड़ कर उसे घुमाया ।


लेकिन अपने नशे की उस हालत में भी अमीरी लाल ने लाजवाब फुर्ती का परिचय दिया ।


पलक झपकते ही उसके हाथ में एक रिवाल्वर प्रकट हुई । 


विकास ने अभी दरवाजा खोला ही था कि अमीरी लाल उसके पीछे पहुंच गया। उसने रिवाल्वर का नाल की तरफ से पकड़कर उसकी मूठ का एक भरपूर प्रहार विकास की खोपड़ी पर किया ।


विकास का सिर घूम गया। उसके घुटने मुड़ गए और उसका माथा अधखुले दरवाजे से जाकर टकराया । दरवाजा उसके माथे के धक्के से दोबारा बन्द हो गया । उसने अपने दोनों हाथ सामने फैलाकर बन्द दरवाजे का सहारा ले लिया और अपने घूमते सिर का काबू में करने की कोशिश करने लगा ।


उसने बख्तावर सिंह को दहाड़कर कुछ कहते सुना ।


फिर उसकी एक बांह बख्तावर सिंह और दूसरी अमीरी लाल ने थामी और उन्होंने उसे एक झटके से उठाकर उसके पैरों पर खड़ा कर दिया ।


“तुम !" - बख्तावर सिंह मेहतानी के सेल्समैन से बोला "क्या नाम है तुम्हारा ?"


"राजेन्द्र ।" - वह बोला ।


"राजेन्द्र ! जाकर बार में व्हिस्की पियो । मेरी तरफ से । इस बारे में तुम्हारी जुबान से कोई लफ्ज न निकले। मैं तुमसे बाद में बात करूंगा । समझ गये ?”


राजेन्द्र ने सहमति में सिर हिलाया ।


“जाओ।"


वह बार की तरफ लपका ।


फिर बख्तावर सिंह और अमीरी लाल उसे लगभग घसीटते हुए सीढियों की तरफ ले चले । विकास का सिर अभी भी झनझना रहा था और उसे अपनी टांगें अपना वजन सम्भाल सकने में सक्षम नहीं मालूम हो रही थीं । वे दोनों उसे धकेलते-घसीटते ऊपर की मंजिल पर ले गये । वहां वे उसे एक अन्धेरे गलियारे में ले चले । फिर एकाएक उसे बड़े जोर से सामने को धकेल दिया गया । वह एक दरवाजे से टकराया जो उसी के जिस्म के वजन से खुल गया था । वह खुले दरवाजे के भीतर अन्धेरे में कहीं जाकर गिरा ।


तभी वहां रोशनी फैल गई ।


विकास कराहता हुआ उठ कर अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करने लगा। उसकी आंखें एकाएक वहां हुई रोशनी से चौंधिया रही थीं और सिर अभी भी चक्कर खा रहा था । बड़ी मुश्किल से वह अपने आप पर काबू कर पाया । उसने अपने चारों तरफ निगाह फिराई ।


वह एक दफ्तरनुमा कमरा था ।


विकास ने समीप पड़ी एक कुर्सी से अपने झूमते जिस्म को सहारा दिया और फिर उसी पर ढेर हो गया ।


बख्तावर सिंह ने आफिस का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया ।


अमीरीलाल के हाथ में उसने एक पैंतालीस कैलीबर की रिवाल्वर देखी । रिवाल्वर उसी की तरफ तनी हुई थी और वह खा जाने वाली निगाहों से उसकी तरफ देख रहा था ।


अब वह नशे में तो कतई नहीं लग रहा था ।


"तुम मुझे फूंक दे रहे थे।" - वह नफरत-भरे स्वर में बोला - “तुम मेरी जुबान खुलवाने के लिये मुझसे यारी दिखा रहे थे।" -


और वह यूं विकास की तरफ बढा जैसे वह उसे कच्चा चबा जाना चाहता हो ।


"अमीरी !" - बख्तावर सिंह तीखे स्वर में बोला- "रुक जाओ।"


बड़ी कठिनाई से अमीरीलाल अपने आप पर काबू पा सका वह एक कदम पीछे हट गया लेकिन रिवाल्वर की नाल का रुख उसने विकास से परे नहीं किया। उसके होंठ भिंचे हुए थे और उसकी आंखें अभी भी विकास पर भाले-बछियां बरसा रही थीं । अपने खाली हाथ से वह बड़ी बेचैनी से अपने गाल के जख्म का निशान टटोल रहा था ।


बख्तावर सिंह विकास के समीप पहुंचा । उसने हाथ बढाकर एक झटके से विकास के सिर से उसकी टोपी उतार ली । वह कई क्षण बहुत गौर से उसकी सूरत का मुआयना करता रहा और फिर निश्चयपूर्ण स्वर में बोला- "तुम वही हो ।" - उसने विकास की टोपी उसकी गोद में डाल दी - "तुम शर्तिया वही आदमी हो ।"


विकास खामोश रहा । वह बड़ी मेहनत से अपने घूमते सिर पर काबू पाने की कोशिश कर रहा था।


"यहां किस चक्कर में आये थे तुम ?" - बख्तावर सिंह ने फिर सवाल किया ।


विकास ने अपने सिर को हौले से उस स्थान पर छुआ जहां अमीरी लाल की रिवाल्वर के प्रहार की वजह से एक अण्डे जितना बड़ा गूमड़ निकल आया था ।


"मैं यहां" - वह क्षीण स्वर में बोला - "अपने सिर से कत्ल की तोहमत हटाने की कोशिश में आया था ।"


"तोहमत कैसे हटाना चाहते थे तुम ? उसे मेरे सिर थोपकर ?"


"नहीं।" - विकास कठिन स्वर में बोला- "मैं सिर्फ अपनी खाल बचाने की फिराक में हूं । बन्दानवाज, मैंने महाजन का कत्ल नहीं किया । जिस वक्त घातक गोली चली थी, उस वक्त मैं क्लाक रूम में था ।"


"तो फिर तुम भागे क्यों थे ?"


"क्योंकि पुलिस को मेरी बात पर कभी विश्वास नहीं होता।"


"लेकिन तुम समझते हो कि मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूंगा ?”


“यह हकीकत है । यह हकीकत है कि मैंने महाजन का खून नहीं किया।" - विकास जिद भरे स्वर में बोला- "वर्ना मैं यहां क्यों आता ?" - "यहां क्यों आये तुम ?"


"क्योंकि मैं यहां से कोई ऐसा सबूत हासिल होने की उम्मीद कर रहा था जिससे यह स्थापित हो पाता कि महाजन का कत्ल तुमने करवाया था। अगर मैंने महाजन का कत्ल किया होता तो फिर क्या मैं ऐसी कोई कोशिश करता ?"


"तो तुम मुझे फंसवाने की फिराक में थे ?"


"बशर्ते कि तुम गुनहगार होते । खामखाह नहीं । अमीरी लाल से मेरी जो बात हुई थी, उससे मुझे विश्वास हो गया था कि तुम्हारा महाजन के कत्ल में कोई हाथ नहीं । आज अगर मैं निर्विघ्न यहां से निकल पाया होता तो दोबारा कभी तुमने यहां मेरी सूरत ने देखी होती ।”


“जानकर खुशी हुई कि तुम मुझे बेगुनाह समझ रहे हो ।" - बख्तावर व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला- "अब मुझे अपनी बेगुनाही का भी विश्वास दिलाओ ।”


"मैं उस आदमी का कत्ल भला क्यों करता, जिसे मैंने अपनी धोखाधड़ी और ठगी के शिकार के तौर पर चुना हुआ था । उसके कत्ल ने तो इतनी मेहनत से तैयार की गई मेरी सारी योजना बिगाड़ दी ।"


“क्या थी तुम्हारी योजना ?"


विकास ने अपनी योजना कह सुनाई। बात छुपाने से तो कोई फायदा था नहीं, अलबत्ता उसे बात पर विश्वास आ जाने पर उसे जरूर कोई फायदा पहुंच सकता था ।


“बन्दापरवर ।" - अन्त में विकास बोला - "अपनी जिंदगी की आखिरी घड़ियों में महाजन ऐन वही कुछ कर रहा था जो कि मैं चाहता था कि वह करे । पुलिस समझती है कि गिरफ्तारी से बचने के लिए मैंने उसका कत्ल कर दिया । लेकिन यह बात गलत है, मूर्खतापूर्ण है। गिरफ्तार तो मैं होना चाहता था । गिरफ्तार होने के लिए तो मैं सारे पापड़ बेल रहा था । मेरी गिरफ्तारी तो मेरे कॉनगेम का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग थी ।"


"हूं।"


"और यह धारणा भी सरासर गलत है कि मैं महाजन की बीवी द्वारा ठीक किया हुआ कोई किराये का कातिल था । महाजन की मौत से कुछ मिनट पहले मैंने अपनी जिन्दगी में पहली बार देखा था उस औरत को । जब मैं वहां पहुंचा था तो वह महाजन के साथ उसके आफिस में पहले से ही मौजूद थी लेकिन मेरे वहां पहुंचने के तुरन्त बाद वह वहां से चली गई थी।"


"महाजन की बीवी उस वक्त महाजन के पास थी ?" - वह तीखे स्वर में बोला ।


"हां । लेकिन वह मेरे सामने ही वहां से चली गई थी ।”


"लेकिन पुलिस को तो उसने यह बयान दिया है कि हत्या वाले दिन उसने अपने घर से बाहर कदम भी नहीं रखा था।"


“अच्छा !"


"हां ।”


"यह बात अखबार में तो नहीं छपी ।"- "मैं बख्तावर सिंह हूं।" - वह बड़े दबंग स्वर में बोला . 


"मुझे जानकारी हासिल करने के लिए अखबार का मोहताज नहीं होना पड़ता । जो जानकारी मैं चाहता हूं, वह हमेशा, मुझे सीधे हासिल होती है। अखबार में तो कई बातें नहीं छपतीं।" - वह ठिठका । उसने अमीरी लाल की तरफ देखा और बोला - "अमीरी, हो सकता है यह आदमी सच बोल रहा हो । हो सकता है कि सुनयना ने महाजन के कत्ल का सामान खुद ही किया हो । यह बेचारा तो बदकिस्मती से ही कत्ल के लफड़े में फंस गया मालूम होता है ।"


अमीरी लाल ने कोई उत्तर नहीं दिया । वह अभी भी खा जाने वाली निगाहों से उसे घूर रहा था ।


" हो सकता नहीं, बन्दानवाज ।" - विकास व्यग्र स्वर में बोला - "मैं बोल ही सच रहा हूं। मैं ठग हूं, हत्यारा नहीं । मेरा खून-खराबे से क्या मलतब ? मेरा पिस्तौल तमंचों से क्या काम ?”


“तुम ठीक कह रह हो ।" - बख्तावर सिंह सोचता हुआ बोला- "मैं जानता हूं तुम्हारे धन्धे के लोग खून-खराबे से बचने की हमेशा कोशिश करते हैं। लेकिन एक बात है, दोस्त ।”


"क्या ?"


“अगर मुझे तुम्हारी बेगुनाही पर विश्वास हो सकता है, तो हो सकता है पुलिस को भी हो जाये ।"


विकास ने उलझनपूर्ण भाव से उसकी ओर देखा ।


“अगर ऐसा हो गया तो फिर मेरा क्या होगा ?" - बख्तावर सहज स्वर में बोला- "अभी तो हर कोई तुम्हें अपराधी समझ रहा है लेकिन तब तो फिर हर कोई इस कत्ल के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराने की कोशिश करने लगेगा । फिर हर कोई उस कत्ल की धमकी की चर्चा करने लगेगा जो महाजन को डाक से मिली थी । "


"लेकिन पुलिस महाजन की बीवी पर भी तो शक कर सकती है । "


"शक ही कर सकती है, मेरे भाई, लेकिन कुछ साबित करने के लिए उन्हें दांतों पसीने आ जायेंगे।”


“फिर भी आपको क्या ? आपके खिलाफ कुछ साबित करने में भी तो पुलिस को दांतों पसीने आ जायेंगे ।”


"यहां की पुलिस तो मेरे खिलाफ ऐसी कोई कोशिश करने से भी डरेगी लेकिन अखबर वाले... अखबार वाले मेरा ढोल पीटकर मुझे इस सिलसिले में बदनाम करने से बाज नहीं आयेंगे । मरने से पहले के एक बयान में महाजन इस बात का इशारा भी दे गया है कि उसको मिली कत्ल की धमकी के पीछे वह मेरा हाथ समझता था । अखबार वाले मुझे बहुत बदनाम कर सकते हैं, दोस्त । इस सन्दर्भ में वे पुलिस पर भी यह इलजाम लगा सकते हैं कि पुलिस जान-बूझकर मुझे प्रोटेक्ट करने की कोशिश कर रही है । फिर हो सकता है पुलिस पर ऊपर से दबाव पड़ जाये । बड़ी विकट स्थिति है, मेरे भाई । "


“आपका इरादा क्या है ? आप मुझे पुलिस के हवाले करना चाहते हैं ?”


“मुझे नहीं लगता कि उसके कोई फायदा होगा । मैंने पहले ही कहा है कि पुलिस को तुम्हारी बेगुनाही पर विश्वास हो सकता है, जैसे कि मुझे विश्वास हो गया है। फिर तुम छूट जाओगे और हर किसी के कहर का रुख मेरी तरफ हो जायेगा । नहीं, तुम्हें पुलिस के हवाले करने में काई फायदा नहीं ।”


"किसे कोई फायदा नहीं ?"


"मुझे।" "लेकिन मुझे तो फायदा है । "


"मुझे तुम्हारे फायदे से क्या मतलब, मेरे दोस्त ?"


"तो... तो फिर आप क्या चाहते हैं ?"


बख्तावर सिंह ने उत्तर नहीं दिया । वह कई क्षण विचारपूर्ण मुद्रा बनाये विकास के सामने खड़ा रहा । फिर वह लम्बे डग भरता हुआ कमरे में लगी आफिस टेबल के पीछे पहुंचा । उसने वहां रखा टेलीफोन उठा लिया, एक नम्बर डायल किया और फिर माउथ पीस में बोला- "बक्शी, नीचे कौन-कौन है... ठीक है । हनुमान और जनक को ऊपर मेरे आफिस में भेज दो।"


उसने रिसीवर रख दिया ।


विकास ने अपनी गोद में पड़ी टोपी उठाकर अपने सिर पर जमाई और कुर्सी पर से उठता हुआ बोला- “अगर आप मुझे पुलिस में नहीं दे रहे हैं तो मुझे यहां से रुख्सत होने की इजाजत दीजिए । "


“हां-हां, क्यों नहीं !” - बख्तावर सिंह बड़ी लापरवाही से बोला - "अमीरी तुम्हें घर छोड़ने जा रहा था न । क्यों अमीरी ?"


"जी हां ।" - अमीरी लाल बोला ।


"हनुमान और जनक को भी साथ ले जाओ और साहब को बड़ी हिफाजत से इनके घर तक लेकर जाओ । घर है कहां इनका ?"


"सुभाष रोड पर ।"


"सुभाष रोड पर कहां ?"


अमीरी लाल ने विकास की तरफ देखा ।


“स्टार होटल में ।" - विकास बोला- "लेकिन मैं चला जाऊंगा, जनाब ।”


" अरे नहीं । अमीरी तुम्हें छोड़कर आयेगा । इतनी रात हो गई है, अगर रास्ते में तुम्हें कुछ हो गया तो ?"


"लेकिन..."


"रास्ते में तुम्हें हरगिज भी कुछ नहीं होना चाहिए। क्यों अमीरी ?”


अमीरी लाल ने सहमति में सिर तो हिला दिया लेकिन उसके चेहरे पर से उलझन के भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे थे ।


"अब इस केस का खातमा बड़ी नफासत से हो जायेगा ।


पुलिस की थ्योरी है कि महाजन का कातिल यह आदमी है। मेरे ख्याल से यही थ्योरी बढिया है ? अब महाजन की बीवी का नाम इस केस में घसीट कर क्यों खामखाह की पेचीदगियां पैदा की जायें ? फर्ज करो वह औरत कातिल है । अब अगर वह कत्ल की सजा पाने से बच भी जाती है तो हमारा क्या बिगड़ता है ? लेकिन अगर यह आदमी सजा पाने से बच जाता है तो हमारा बहुत कुछ बिगड़ता है। समझे अमीरी लाल ?"


"जी हां।" - अमीरी लाल उलझन पूर्ण स्वर में बोला ।


'अब तुमने ऐसा इन्तजाम करना है कि न रहे बांस और न बजे बांसुरी ।"


"जी हां ।" - इस बार अमीरी लाल बड़े तत्पर स्वर में बोला।


"स्टार होटल इस काम के लिए वैसे भी अच्छी जगह है । वहां तुम सहूलियत से ऐसा इन्तजाम कर सकोगे कि सारा सिलसिला एकदम स्वाभाविक लगे।"


"कैसा इन्तजाम ?” - विकास व्यग्र भाव से बोला. "कैसा सिलसिला ?" -


"तुम्हारी आत्महत्या का इन्तजाम ।" - बख्तावर सिंह बोला - "तुम्हारी आत्महत्या का सिलसिला । कत्ल के केस का समापन करने के लिए आत्महत्या से बेहतर कोई तरीका नहीं होता । च... च... च । बेचारे महाजन के हत्यारे ने कानून के हाथों अपने अंजाम से घबरा कर आत्महत्या कर ली ।"


बन्द दरवाजे पर बाहर से दस्तक पड़ी ।