वह सड़क पर पहुंच चुका और किसी खाली टैक्सी की तलाश में निगाहें दौड़ा रहा था । उस वक्त वह एक चौराहे के पास था । ट्रैफिक लाइट ग्रीन का सिगनल दे रही थी । इसके बावजूद एक टैक्सी, जिसके अन्दर रोशनी नहीं थी और जिसने प्रत्यक्षतः उसी दिशा में जाना था जिधर ग्रीन लाइट्स थी, बहुत ही धीमी रफ्तार से क्रासिंग की ओर आ रही थी । जबकि उसे कम-से-कम, औसत रफ्तार से चौराहा पार कर जाना चाहिए था ।
विक्रम के तजुर्बे ने उसे टैक्सी के प्रति फौरन संदिग्ध कर दिया और वह तत्क्षण पूरी तरह सतर्क हो गया ।
यही वजह थी कि उसकी साइड वाली टैक्सी की पिछली खिड़की से जब पहले फायर का शोला लपका, वह खुद को नीचे गिराकर फुटपाथ पर विपरीत दिशा में लुढ़कना शुरू कर चुका था ।
एक-एक करके तीन फायर हुए और तीनों ही गोलियां उससे मात्र कुछ इंचों की ऊंचाई से गुजरकर इमारत की दीवार से जा टकराई ।
टैक्सी की खिडकी से अपनी ओर झांकते चेहरे को, स्ट्रीट लाइट की रोशनी में, विक्रम बस एक ही निगाह देख सका । गहरी सांवली रंगत वाला बाज जैसा वो चेहरा खौफनाक था । चेहरे के मालिक के बाल लम्बे, घने और एकदम स्याह थे ।
जब तक विक्रम अपनी रिवॉल्वर निकालता टैक्सी तेजी से चौराहा क्रॉस करके बायीं और घूम चुकी थी ।
सड़क पर यातायात ज्यादा नहीं था । फिर भी फायरिंग की ओर खास ध्यान किसी ने नहीं दिया । यह ठीक था कि फायरों का ज्यादा शोर टैक्सी के अन्दर ही रहा था लेकिन बाहर भी काफी आवाज सुनाई दी थी ।
विक्रम भी अपनी ओर किसी का ध्यान आकर्षित नहीं करना चाहता था । इसलिए वह फटाफट उठा और तेजी से आगे बढ़ गया । वह तनिक निश्चित भी था कि जल्दी ही दोबारा उसकी जान लेने की कोशिश नहीं की जाएगी । अगर फायरकर्ता उतना ही हौसलामंद होता तो उसने भागने की बजाय टैक्सी से उतर कर ही उसे शूट कर देना था ।
"इस फायरिंग का मतलब था-उसका पीछा किया गया था । विक्रम मन-ही-मन सोच रहा था-'या किसी ने अनुमान लगा लिया था कि वह जीवन की तलाश में रेस्टोरेंट में आ सकता था । या फिर यह कि उस 'किसी' का अनुमान था कि यह बात विक्रम तक जरूर पहुंच जाएगी कि कोई उसे और जीवन को ढूंढ़ रहा था ।
चारों ओर से घेर कर उस पर दबाव डालते हुए घेरा बराबर छोटा किया जा रहा था । विक्रम बरबस मुस्करा दिया । यह सोचकर कि वे लोग नहीं जानते थे कि उसे घेरकर झुका पाना नामुमकिन था ।
सहसा उसने स्वयं को किरण वर्मा के बारे में सोचते पाया । उस सुन्दर एवं आकर्षक युवती ने अपने उद्देश्य की खातिर बेहिचक जान की बाजी लगा दी थी । वही किरण वर्मा अब उन लोगों के कब्जे में थी ।
जाहिर था कि किरण वर्मा को वापस लौटाने की एवज में वे माइक्रो फिल्म पाना चाहते थे । हालांकि देखने-सुनने में सौदा सीधा लगता था मगर हकीकतन ऐसा नहीं होना था । विक्रम बखूबी जानता था कि माइक्रो फिल्म हाथ में आने के बावजूद उन लोगों ने किरण वर्मा को जिंदा नहीं छोड़ना था ।
लेकिन इस सिलसिले का खतरनाक पहलु एक और भी था । इस तमाम बखेड़े की जड़ वो माइक्रो फिल्म एक नशाखोर के कब्जे में थी । और वह नशाखोर कहां था ? इसको कोई पता नहीं चल रहा था ।
उसका पता लगाना निहायत जरूरी था । मगर उससे भी ज्यादा जरूरी एक और काम फिलहाल विक्रम के सामने था ।
एस० आई० चमनलाल के कथनानुसार अब इंटेलीजेंस ब्यूरो वाले भी उसके पीछे पड़े हुए थे । लिहाजा कुछ और करने से पहले उसने उनसे सम्पर्क कर लेना बेहतर समझा ।
इस संदर्भ में सिर्फ एक ही नाम उसे सूझ सका ।
समरेन्द्र सान्याल ।
वह इंटेलीजेंस ब्यूरो में फील्ड एजेंट था । उसके एक मिशन पर विक्रम ने कोई तीन साल पहले पुलिस की अपनी नौकरी के दौरान किसी दबाव या औपचारिकता के बगैर उसकी मदद की थी । जिसकी वजह से सान्याल अपने उस मिशन में कामयाब हो गया था । हालांकि बाद में दोनों की कभी मुलाकात नहीं हुई । मगर तीन साल पहले सान्याल ने उसे बताया था कि जरूरत पड़ने पर उससे कैसे सम्पर्क किया जा सकता था । विक्रम को वे तमाम बातें अच्छी तरह याद थीं । उसे यह भी पूरा यकीन था कि उसका नाम सुनते ही सान्याल को उसके द्वारा की गई मदद का वाकया याद आ जाएगा । लेकिन साथ ही एक आशंका भी थी कि कहीं सान्याल का ट्रांसफर किसी दूसरे शहर में न हो गया हो । फिर भी विक्रम को ट्राई कर लेने में कोई हर्ज नजर नहीं आया ।
पास ही एक सिनेमाहॉल था । वहां पब्लिक टेलीफोन की सुविधा भी उपलब्ध थी ।
विक्रम उधर ही बढ़ गया ।
उसने सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाई, आसपास देखा फिर सतर्कतापूर्वक टेलीफोन बूथ में जा घुसा ।
उसने कोट की भीतरी जेब से अपना पर्स निकाला ।
उसके विजीटिंग कार्ड वाले खाने से एक पुराना कार्ड अलग निकाल लिया । उस पर लिखा था-एवन ट्रेवल एजेंसी । नीचे स्थानीय पता दिया हुआ था । कार्ड के ऊपर दायें कोने में तीन टेलीफोन नम्बर दिए हुए थे ।
विक्रम जानता था कि कार्ड में दिए गए पते पर वास्तव में एक बहुत बड़ी ट्रेवल एजेंसी थी । लेकिन एजेंसी का ऑफिस सिर्फ ग्राउंड फ्लोर पर था और उसके फोन नम्बर और थे । उस इमारत की शेष दो मंजिलें इंटेलीजेंस ब्यूरो की एक विशेष ब्रांच के पास थी । ट्रेवल एजेंसी की खूबसूरत आड़ होने की वजह से रात में भी उस ऑफिस के खुले होने या वहां आने-जाने वालों को देखने से किसी को हैरानी नहीं होती थी ।
विक्रम ने एक नम्बर डायल किया ।
दूसरी ओर घंटी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया ।
"एवन ट्रेवल एजेंसी !"
"मेरा नाम विक्रम खन्ना है ।" विक्रम ने कहा-"मैं समरेन्द्र सान्याल से बातें करना चाहता हूं ।"
"किससे ?"
"समरेन्द्र सान्याल से ।"
"माफ कीजिए, मेरी जानकारी में इस नाम का आदमी यहां नहीं है । फिर भी मैं पता कर लेता हूं । आप होल्ड कीजिए ।"
विक्रम रिसीवर थामे खड़ा रहा ।
वह जानता था दूसरी ओर से विशुद्ध व्यावसायिक स्वर में बोलने वाले ने सतर्कतावश ही वो सब कहा था ।
कुछ देर खामोशी छाई रहने के बाद लाइन पर असंहिष्णुतापूर्ण सर्द स्वर उभरा-
"हैल्लो ? हूम डू यू वांट, प्लीज ?"
विक्रम ने स्वर साफ पहचाना ।
"यू ।" वह बोला-"आई वांट टू सी यू सान्याल !"
संक्षिप्त मौन के बाद कड़वाहट भरे लहजे में पूछा गया ।
"किसलिए ?"
"तुमने शायद मुझे पहचाना नहीं । मैं विक्की...मेरा मतलब है, विक्रम खन्ना बोल रहा हूं ।"
"जानना हूं । किसलिए मिलना चाहते हो ?"
विक्रम को ताव आने लगा ।
"यह जानने के लिए कि तुम लोग मेरे पीछे क्यों पड़े हो ?"
"देखो, विक्की... !"
"अपनी सुनानी छोड़कर मेरी बात सुनो ।" विक्रम उसकी बात काटता हुआ बोला-"मैं तुमसे मिलना चाहता हूं । तुम कलामंदिर सिनेमा के सामने पहुंचो । वहां से कोर्ट रोड क्रासिंग की ओर पैदल चलना शुरू कर दो । जब मुझे यकीन हो जाएगा कि तुम अकेले आए हो मैं तुमसे कांटेक्ट कर लूंगा ।"
उसने रिसीवर वापस हुक पर लटका दिया ।
वह जानता था कि सान्याल हालात का आभास पा गया था, इसलिए उसने जल्दी-से-जल्दी आने की कोशिश करनी थी । अलबत्ता उसे शक था कि वह उसके कथन पर अक्षरशः अमल नहीं करेगा । सान्याल ने चालाकी जरूर करनी थी और विक्रम इस मामले में इससे ज्यादा अहतियात नहीं बरत सकता था ।
वह बूथ से निकलकर बाहर आ गया ।
उसने सड़क क्रास की और कोई डेढ़ सौ गज आगे जाकर एक इमारत की आड़ में छुपकर सिनेमा को वाच करने लगा ।
मुश्किल से बीस मिनट बाद एक टैक्सी आकर रुकी । उसमें मौजूद जो इकलौती सवारी नीचे उतरी । वह कोई और न होकर समरेन्द्र सान्याल ही था ।
उसने भाड़ा चुकाया और कोर्ट रोड क्रासिंग की ओर बढ़ गया ।
खाली टैक्सी उसकी बगल से गुजरकर तेजी से आगे दौड़ गई ।
विक्रम ने करीब पांच मिनट तक इंतजार किया । जब उसे यकीन हो गया कि किसी ने भी सान्याल का पीछा नहीं किया था तो वह अपने छुपने के स्थान से निकला और तेजी से क्रासिंग की ओर बढ़ गया ।
सडक की दूसरी साइड में सान्याल सिर झुकाए चला जा रहा था ।
विक्रम ने सतर्कतापूर्वक सड़क पार की और तेजी से मगर दबे पांव चलता हुआ उसके पास जा पहुंचा ।
"हैल्लो, सान्याल !" वह बोला ।
सान्याल फौरन रुक गया और सिर से पांव तक गौर से उसका मुआयना करने के बाद बोला-"हैल्लो ।" उसका स्वर भावहीन था-"तुम जरा भी नहीं बदले । जैसे तीन साल पहले थे वैसे ही आज भी हो ।"
विक्रम ने नोट किया, चालीस पार कर चुके सान्याल में भी तीन साल के अर्से में सिर्फ इतना फर्क आया था कि कनपटियों पर उसके बाल सफेद होने लगे थे ।
"तुममें भी खास तब्दीली नहीं आई है ।"
"मुझे किसलिए बुलाया है ?" सान्याल ने सीधा सवाल किया ।
विक्रम मुस्कराया ।
"बुलावे की वजह तुम भी जानते हो ।" वह बोला-"लेकिन बेहतर होगा कि खुली सड़क पर खड़े रहने की बजाय कहीं बैठकर इत्मीनान से बातें की जायें ।"
सान्याल ने पैनी खोजपूर्ण निगाहों से उसे घूरा ।
"इत्मीनान से ?"
विक्रम उसका आशय समझ गया ।
"हां ।" वह बोला-"अभी तो मैं जिंदा हूं ।"
"कितनी देर जिंदा रह सकोगे ?"
"यह तो शायद कोई ज्योतिषी ही बता सकता है ।"
"तमाम शहर में चप्पे-चप्पे पर तुम्हारी तलाश हो रही है ।" सान्याल उसके कथन को नजरअंदाज करता हुआ बोला-"अगर आफताब आलम तुम तक पहले पहुंच गया तो बाकी लोगों को तुम्हारी लाश ही देखने को मिलेगी ।"
"इसीलिए तो कहता हूं, कहीं बैठकर बातें करेंगे ।"
"अगले मोड़ पर, वही टैक्सी खड़ी होगी जिसमें मैं आया था । आओ, उसी में बैठकर बातें करेंगे ।"
"तुम कोई चालाकी तो नहीं करने वाले हो ?" विक्रम ने हिचकिचाहट भरे आशंकित स्वर में पूछा ।
सान्याल जवाब देने की बजाय आगे बढ़ गया ।
विक्रम ने भी उसका अनुकरण किया । वह समझ गया कि टैक्सी ड्राईवर भी आई० बी० का ही आदमी था । इसीलिए सान्याल उसकी मौजूदगी में बातें करने को तैयार था ।
टैक्सी अगले मोड़ पर ही खड़ी थी ।
दोनों उसमें जा बैठे ।
सान्याल के आदेश पर ड्राईवर ने इंजन स्टार्ट करके टैक्सी आगे बढ़ा दी ।
"अब तुम शुरू हो जाओ ।" सान्याल ने कहा ।
विक्रम ने डोम लाइट की रोशनी में उसकी ओर देखा ।
"तुम भी मेरे पीछे पड़े हुए हो ।"
"बहुत ज्यादा जानते हो विक्की !"
"मतलब ?"
"यही कि तुम बहुत ज्यादा जानते हो ।"
"ऐसी बात नहीं है ।" विक्रम ने कहा । फिर तनिक रुककर बोला-"मैं जिंदा रहना चाहता हूं । और तुमने इस मामले में मेरी मदद करनी है । करोगे न ?"
सान्याल ने जवाब नहीं दिया ।
विक्रम खामोशी से, उसके बोलने का इंतजार करने लगा ।
टैक्सी औसत रफ्तार से सुनसान-प्राय: सड़कों पर फिसलती रही ।
"तुमने जवाब नहीं दिया ।" अंत में विक्रम ने ही मौन भंग करते हुए पूछा ।
सान्याल ने जेब से पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली ।
"देखो, विक्रम !" वह कश लेकर धुआं उगलने के बाद बोला-"मैं जानता हूं, एक बार तुमने बिना किसी विभागीय दबाव या औपचारिकता के मेरी मदद की थी । तुम्हारी वजह से उस वक्त मैं अपने मिशन में कामयाब भी हुआ था । अगर तुम चाहते तो मदद करने से इंकार भी कर सकते थे । उस सूरत में शायद मैं कामयाबी हासिल नहीं कर पाता । लेकिन तुमने इन्कार नहीं किया ।" उसके तनिक रुककर पूछा-"क्या तुम अपनी उसी मदद की एवज में अब मुझसे मदद मांग रहे हो ?"
"नहीं ।"
"फिर ?"
"मैं किरण वर्मा की वजह से मदद मांग रहा हूं ।"
सान्याल ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा ।
"क्या मतलब ?"
"सीधी-सी बात है, मैं न तो बेवकूफ हूं और न ही बनना चाहता हूं । मौजूदा बखेड़े में मैं अपनी मर्जी से नहीं फंसा बल्कि तुम्हारे ही एक साथी ने मुझे इसमें फंसाया था । मुझे मोहरा बनाया जाना कतई पसंद नहीं है ।"
"तुम जानकारी कहां से हासिल करते हो, विक्की ?" सान्याल ने तनिक नम्र स्वर में पूछा ।
"मेरे अपने कांटेक्ट हैं ।" विक्रम ने जवाब दिया-"मत भूलो कि मैं पुलिस अफसर भी रह चुका हूं और हर कोई जानता है कि मैं कैसा अफसर था ।"
"लेकिन तुम अब क्या हो ? ट्रबल क्रिएटर ?"
"नो, बैटर काल मी ट्रबल शूटर । बीकाज आई शूट दी ट्रबल क्रिएटेड बाई अदर्स ।"
"आई सी ।" सान्याल कटुतापूर्वक बोला । फिर गहरी सांस लेने के बाद कहा-"खैर, बेहतर होगा कि किरण वर्मा के बारे में बातें करो ।"
"सिर्फ उसी के बारे में ?"
"हां ।"
"ओशियनोग्राफी के बारे में नहीं ?"
सान्याल चौंका ।
"क्या ?"
"और उस माइक्रो फिल्म के बारे में भी नहीं ?" विक्रम चटखारा-सा लेकर बोला-"जिसमें हमारे सागर तटों से दूर, पड़ौसी देश द्वारा बिछाये गए अंडरवाटर मिजाइल्स के ठिकानों का ब्यौरा मौजूद है ।"
सान्याल के हाथ मुट्टियों की शक्ल में भिंच गए । गर्दन की नसें तन गई और आंखों में क्रोधमिश्रित निराशा के भाव उत्पन्न हो गए ।
"तुम वाकई बहुत ज्यादा जानते हो ।" वह स्वयं को सामान्य बनाने का प्रयत्न करता हुआ बोला ।
"तारीफ के लिए शुक्रिया ।"
हम लोगों ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा हो जाएगा ।" सान्याल उसके हस्तक्षेप की ओर ध्यान न देकर बोला-"और किसी ऐसे अजीब इत्तिफाक के बारे में तो हमें गुमान तक भी नहीं था । हमने हर पहलू से सोचकर किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश की मगर कोई सही नतीजा न निकाल सके ।"
"इसका मतलब है, जो लोग किरण वर्मा का पीछा कर रहे थे । वे तुम्हारे मुकाबले में बहुत जल्दी और एकदम सही नतीजे पर पहुंचने में कामयाब हो गए थे ।"
सान्याल ने इस दफा भी उसके कथन पर कोई ध्यान नहीं दिया ।
"तुम्हारी बातों से जाहिर है ।" उसने अपनी ही रौ में कहना जारी रखा-"कि किरण वर्मा ने वो सुचना तुम्हें पास कर दी थी । उसने अस्पताल में होश में आने के बाद, तुम्हारा हुलिया बताते हुए तुम्हारे बारे में बताया तो था मगर वह पक्की शिनाख्त नहीं बता सकी थी ।"
तो फिर तुमने मेरे बारे में पुलिस को हिदायतें कैसे दे दी ?"
"वो सब किरण वर्मा के अपहरण के बाद हुआ । हास्पिटल में पूछताछ करने पर, वहां मौजूद रिपोर्टर्स ने बताया कि भरत सिन्हा किसी अपरिचित के साथ वहां आया था । बाकी काम आसान था । भरत सिन्हा को पकड़ा गया तो उसने बता दिया कि तुम उसके साथ थे । नतीजतन तुम्हारे बारे में पुलिस को हिदायतें दे दी गईं ।"
भरत सिन्हा ने सिर्फ यही बताया था कि मैं उसके साथ था ।"
"हां । क्यों ?"
"यह नहीं बताया कि मैं क्यों उसके साथ था ?"
"उसका कहना था कि तुम आफताब आलम से बचते फिर रहे थे । अचानक उसकी तुमसे मुलाकात हो गई थी और फिर उसके इसरार पर तुम उसके साथ हास्पिटल चले गए थे । उसके कथनानुसार, अकेला होने से उस पर शक किया जा सकता था इसलिए वह तुम्हें फोटोग्राफर बनाकर अपने साथ ले गया था ।"
"वे लोग कौन हैं, सान्याल ?" विक्रम ने वार्तालप को मोड़ देते हुए पूछा-"जो किरण वर्मा का पीछा कर रहे थे ?"
सान्याल ने जवाब देने की बजाय पूछा-"किरण वर्मा ने जो चीज तुम्हें दी थी वो कहां है ?"
"मैने पूछा था, वे लोग कौन हैं ?" विक्रम ने अपना सवाल दोहराया ।
"वह खुद को मनोज कक्कड कहता है । लेकिन उसका असली नाम करीम खान है । वह हमारे पड़ौसी देश का एजेंट है । मौजूदा हालात में यहां उसकी स्थिति एक चीफ जैसी है ।"
"यानी उसके बहुत से आदमी यहां मौजूद हैं ?"
"हां ।"
"थोड़ा खुलासा तौर पर बताने की मेहरबानी करोगे ?"
"जरूर ।" सान्याल ने कहा-"दरअसल यह पता लगाने के बाद कि हमारे सागर तटों से दूर समुद्र में अंडरवाटर मिजाइल्स फिट की जा रही हैं । हमने फौरन उन ठिकानों का पता लगाने का निश्चय किया और आननफानन तैयारियां करके 'आप्रेशन अंडरवाटर' के तहत उस पर काम शुरू कर दिया ।" उसने ताजा सिगरेट सुलगाने के बाद कहा-"हमारे आदमी प्रत्यक्षतः अपनी समुद्री सीमाओं पर रहकर अपने तटों पर ओशियनोग्राफी का अध्ययन कर रहे थे । ठीक उस समय, जब वे अपना आप्रेशन खत्म करके वापस लौटने वाले थे, उनके जलपोत को नष्ट कर दिया गया । संयोगवश किरण वर्मा और हरीश नामक हमारा एक आदमी मिजाइल्स के ठिकानों के नक्शों समेत भागने में कामयाब हो गए । वे बम्बई पहुंचे । वहां हरीश ने नक्शों की माइक्रो फिल्म बना दी । लेकिन करीम खान के आदमी बराबर उनका पीछा कर थे । बदकिस्मती से वे हरीश को ठिकाने लगाने में भी कामयाब हो गए । गनीमत सिर्फ इतनी रही कि उस वक्त माइक्रो फिल्म किरण के पास थी । क्योंकि करीम खान के आदमी पीछे लगे थे । इसलिए वह बम्बई स्थित हमारे ऑफिस में तो फिल्में डिलीवर नहीं कर पाई । मगर किसी प्रकार उन्हें यहां लाने में जरूर कामयाब हो गई । लेकिन इससे भी खास फायदा उसे नहीं हो सका क्योंकि करीम खान के आदमी यहां भी मौजूद थे । उन्होंने शहर के तमाम रास्ते कवर कर लिए थे और वे किरण के आने का इंतजार कर रहे थे । इत्तिफाक से किरण ने उन्हें भांप तो लिया । मगर साथ ही बहुत बड़ा दांव भी मजबूरन उसे लगाना पड़ा-बदकिस्मती से तुम पर ।" उसने सिगरेट का गहरा कश लेकर ढेर सारा धुआं उगलने के बाद पूछा-"अब यह बताओ वो फिल्म कहां है ?"
विक्रम ने गहरी सांस ली ।
इस सवाल का जवाब इतना आसान नहीं है ।"
सान्याल ने भौंहें चढ़ाकर उसे घूरा ।
"मतलब ?"
"मुझे इस बखेड़े से निकालो तभी तुम फिल्म मिलने की उम्मीद कर सकते हो ।"
"साफ-साफ बताओ ।" सान्याल ने सपाट स्वर में पूछा-"तुम कहना क्या चाहते हो ?"
"मैं जानता हूं, फिल्म कहां है ?"
"क्या ? वो तुम्हारे पास नहीं है ?"
"नहीं ।"
सान्याल ने खा जाने वाले भाव में उसे घूरा ।
"फिर कहां है ?"
"बताया तो है, मैं जानता हूँ और उसे दोबारा हासिल भी कर सकता हूं ।" विक्रम संक्षेप में नाम छुपाते हुए, सारा वाकया सुनाने के बाद शांत स्वर में बोला-"लेकिन पुलिस हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ी हुई है। मेरी खुश किस्मती कहो या इत्तिफाक कि अभी तक जिन्दा और आजाद हूं । मगर मैं भी सामान्य आदमी हूं, कोई सुपरमैन नहीं। पुलिस और आफताब आलम के आदमियों से एक साथ निपटना मेरे बस की बात नहीं है। इसलिए तुम फिलहाल पुलिस को तो मेरे पीछे से हटा दो ।"
"सॉरी विक्की !"
"तब तो मुझे भी सॉरी ही कहना पड़ेगा । और उस सूरत में तुम अपनी एक एजेंट और उसकी तमाम मेहनत से हमेशा के लिए हाथ धो बैठोगे ।"
"लानत है ! तुम...।"
"ताव खाने से कोई फायदा नहीं होगा । जो मैं कह रहा हूं उसी में हम दोनों की भलाई है । इस तरह मैं खुद को कुछ हद तक बेफिक्र महसूस करते हुए बेहतर ढंग से काम कर सकता हूं ।" कहकर विक्रम तनिक रुका फिर बोला-"मेरी समझ में नहीं आता कि आखिर तुम्हें ऐसा करने में दिक्कत क्या है । मेरा नहीं तो कम-से-कम अपनी एजेंट किरण वर्मा का तो ख्याल करो ।"
सान्याल तनिक मुस्कराया ।
"लगता है, तुम्हें बहुत ज्यादा ख्याल है उस का ?"
"हां ।" विक्रम ने नि:संकोच उत्तर दिया-"ख्याल ही नहीं मैं उसके लिए फिक्रमंद भी हूं । अब बोलो, मेरी मदद करोगे ?"
"हां ।" सान्याल विचारपूर्वक बोला-"लेकिन मैं कुछ और भी सोच रहा हूं ।"
विक्रम ने प्रश्नात्मक निगाहों से उसे देखा ।
"क्या ?"
"तुम हमारे लिए काम करना पसंद करोगे ?"
"तुम्हारे लिए ?" विक्रम ने असमंजसतापूर्वक पूछा ।
"हां, तुम्हें वक्ती तौर पर हमारे एजेंट की तरह काम करना होगा ।"
विक्रम ने हैरानी से उसे देखा ।
"बतौर एजेंट ?"
"हां, बदले में मैं तुम्हें आश्वासन दे सकता हूं कि अगर तुम बेगुनाह हो तो जब तक खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर दोगे पुलिस तुम्हें कुछ नहीं कहेगी । लेकिन बाकी झमेले से तुम्हें खुद ही निपटना पड़ेगा ।"
"ठीक है ।" विक्रम ने बेमन से जवाब दिया ।
सान्याल मुस्कराया ।
"अजीब होने के बावजूद अपने-आपमें यह एक बढ़िया इत्तिफाक है कि किरण वर्मा ने, लाखों की आबादी वाले इस शहर में, फिल्म देने के लिए तुम्हें ही चुना । क्योंकि तुम्हारे अन्दर वे तमाम खूबियां हैं जिनकी इस काम के लिए हर लिहाज से सही आदमी में अपेक्षा की जा सकती हैं ।"
"मसलन ?"
"हौसलामंद, ईमानदार और खासी सूझ-बूझ वाले होने के अलावा तुम भरोसेमंद भी हो ।"
"तारीफ के लिए शुक्रिया ।" विक्रम ने कहा-"मैं जान सकता हूं, मुझ पर इस खास मेहरबानी की वजह क्या है ?"
"दरअसल 'आप्रेशन अंडरवाटर' के दौरान नष्ट हुए जलपोत में हमारे कई आदमियों को जान से हाथ धोना पड़ा । अब मैं नहीं चाहता कि हमारे और आदमी करीम खान या उसके आदमियों की निगाहों में आएं ।"
"यानी अब तुम मुझे बलि का बकरा बनाना चाहते हो ?" विक्रम ने सीधा सवाल किया ।
"नहीं, ऐसी बात नहीं ।"
"फिर कैसी बात है ?"
"हमारे आदमी भी इस मिशन पर काम करेंगे । लेकिन वे परोक्ष रूप में और अपने ढंग से ही काम करेंगे ।"
"यानी वे मेरे कंधे पर बन्दूक रखकर चलाएंगे ?"
"नहीं ।"
"तो ?"
"करीम खान के आदमी तुम्हें ढूंढ़ रहे हैं । इसका मतलब है, उन लोगों को लगभग पूरा यकीन है कि वो फिल्म तुम्हारे पास है या फिर उस आदमी के पास, जो शूटिंग वाले रोज रेस्टोरेंट के पिछले दरवाजे के बाहर खडा तुम्हारा इंतजार कर रहा था और फिर जिसने तुम पर हमला कर दिया था । अगर मेरा अनुमान गलत नहीं है तो अंडरवर्ल्ड में तुम्हारी शोहरत से भी अब तक वे वाकिफ हो गए होंगे । लिहाजा वे तुम दोनों से ही उसे हासिल करेंगे । हमारे आदमी जाहिरा तौर पर सामने नहीं आएंगे, इसलिए वे लोग तुम्हारे साथ हमारा रिश्ता कायम नहीं कर सकेंगे ।"
"बाई दी वे, तुम्हारे आदमी इस सिलसिले में क्या करेंगे ?"
"किरण वर्मा को तलाश करने की कोशिश ।" सान्याल विचारपूर्वक बोला-"लेकिन यह काम आसान नहीं है । क्योंकि किरण वर्मा का अपहरण फिरौती के रूप में रकम वसूलने के लिए नहीं किया गया । उसे बहुत ही सोच-समझकर बाकायदा योजना बनाने के बाद एक खास मकसद की खातिर अगुवा किया गया है । और इस काम को अंजाम देने वाले बहुत ही साधन-सम्पन्न हैं ।"
"लेकिन साधन तो तुम्हारे पास भी कम नहीं हैं ।"
सान्याल ने सहमतिसूचक सिर हिलाया ।
"फिर भी हमें तुम्हारी जरूरत है । क्योंकि तुम इस मामले में गले तक फंसे हुए हो । और तुम्हें जाती तौर पर मौजूदा हालात में, हमारी बनिस्बत ज्यादा जानकारी है । दूसरे, तुम्हारा काम करने का ढंग हमसे अलग है ।" उसने कहा, फिर नया सिगरेट सुलगाने के बाद बोला-"तुम अपने ढंग से काम करने के लिए पूरी तरह आजाद हो । साथ ही हम यकीन दिलाते हैं कि हर मुमकिन मदद भी तुम्हारी की जाएगी । ठीक है ?"
विक्रम ने बे मन से सिर हिलाकर हामी भर दी ।
"गुड ।" सान्याल ने कहा और अपने कोट की जेब से पोस्टकार्ड साइज की एक फोटो निकालकर उसे थमा दी-"यह करीम खान की फोटो है । अच्छी तरह देख लो ताकि जरूरत पड़ने पर पहचानने में दिक्कत न हो ।"
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