क्लब चार बजे बंद हो गया ।
फारूख और अनवर के दो आदमी रोजाना की तरह सही साढ़े तीन बजे आ पहुंचे थे । दोनों सुबह नौ बजे सफाई कर्मचारियों के आने तक ड्यूटी दिया करते थे । बारी–बारी से एक ऑफिस में सोफे पर आराम करता और दूसरा क्लब की इमारत में घूमता रहता था ।
उस रात बलदेव मनोचा ने उन दोनों नाइट वाचमैन से बातें की । सेफ, किचिन वगैरा को आखिरी दफा चैक किया और पार्किंग में खड़ी अपनी एस्टीम में सवार होकर घर चला गया ।
बाकी स्टाफ भी यथासंभव जल्दी से चला गया । उनमें से ज्यादातर सीधे घर जाकर बिस्तर के हवाले हो जाना चाहते थे । लेकिन क्लॉकरूम वाली लड़की रमोला एक खास वजह से जल्दी जाने के लिये उतावली थी । उस रात उसने दो अन्य लड़कियों के साथ शेयरिंग में रह रही अपने फ्लैट में वापस जाने की बजाये रेस्टोरेंट के एक नौजवान वेटर सतीश से मिलना था । सतीश ने कहा था क्लब के बाहर उसका इंतजार करेगा ।
करीब तीन हफ्तों से सतीश उसमें बहुत ज्यादा दिलचस्पी ले रहा था । दोनों ने दो बार लंच साथ लिया था और मेटिनी शो देखा था । पिछली दफा सिनेमा हॉल के अंधेरे में सबसे पिछली कतार की कोने की सीट पर सतीश ने उसके ब्लाउज और स्कर्ट में हाथ डालकर अंगों को सहलाया तो वह एतराज नहीं कर सकी थी । तभी से दोनों हम बिस्तर होने के लिये उतावले हो रहे थे । लेकिन जगह का इंतजाम नहीं हो पा रहा था ।
उस रोज सतीश का रूम पार्टनर पास के कस्बे में अपने घर गया हुआ था । उसने यह बात रमोला को बता दी और दोनों ने मौके का भरपूर फायदा उठाने का फैसला कर लिया । पूरी शाम रमोला इसके अलावा कुछ और नहीं सोच पायी । मशीनी अंदाज़ में काम करती हुई रमोला सोच–सोच कर रोमांचित होती रही सतीश बिस्तर में उसके साथ कैसे पेश आयेगा, वह खुद कैसे उसकी हरकतों का जवाब देगी और दोनों उन अंतिम क्षणों का आनंद उठायेंगे । इन रोमांचक विचारों की सनसनी रह–रह कर उसके अंदर कुछ पिघला रहा थी आर वह रिसाव का गीलापन महसूस करती रही । संपूर्ण नग्नावस्था में अपने और सतीश के एकाकार जिस्मों की कल्पना उसके मस्तिष्क में तस्वीरों के रूप में सजीव होकर काम के बीच बाधा डालती रही थी ।
क्लब बंद होने के बाद उसने नोट किया कोई मेम्बर अपना ओवरकोट भूल गया था । किसी का गिफ्ट पैक जैसा एक पैकेट भी वहां छूट गया था । कोई नई बात नहीं थी । पहले भी ऐसा हो चुका था । लोग अपनी चीजें वहां भूल जाते थे । क्लब के नियमों के मुताबिक उसे इन चीजों की इत्तिला मिस्टर मनोचा को दे देनी चाहिये थी । लेकिन आज रात वह अपना मेकअप ठीक करने और इस मौके लिये ड्यूटी पर आते वक्त खासतौर पर खरीदकर लायी गयी नयी ब्रा और पैंटीज चेंज करने में इतनी मसरूफ थी कि इसे टाल गयी । इस तरह चीजें भूल जाने वाले कस्टमर अक्सर अगली रात आकर उन्हें ले जाते थे ।
गिफ्ट पैक वाले पैकेट को क्लॉक रूम के छोटे से कमरे में शेल्फ पर पड़ा छोड़कर रमोला चली गयी ।
पैकेट में प्लास्टिक के तीन चौकोर डिब्बे थे । पहला डिब्बा कोई फुट भर लंबा, छ: इंच चौड़ा और तीन इंच गहरा था । उसी के साथ वाला दूसरा डिब्बा सात इंच लंबा, चार इंच चौड़ा ओर दो इंच गहरा था ।
छोटा डिब्बा बड़े वाले के ठीक बीच में रखा था और उसके चारों ओर खाली जगह में काला पाउडर ठूस–ठूस कर भरा था । छोटे डिब्बे के अंदर मैगनीशियम, एल्युमीनियम और आइरन ऑक्साइड का मिश्रण भरा था । ढक्कन टेप के द्वारा मजबूती से बंद कर दिया गया था । सफाई से किये गये सुराख में एक इलेक्ट्रिक डेटोनेटर फिट कर दिया गया था ।
डेटोनेटर की तारें बड़े डिब्बे के ढक्कन में बनाये गये वैसे ही एक सुराख से अंदर गुजार दी गयी थीं । यह ढक्कन भी टेप द्वारा मजबूती से बंद था । वहां से दोनों तारें पहले डिब्बे के आकार के एक तीसरे डिब्बे के पैंदे में बने सुराख से अंदर गयी हुई थीं ।
तीसरा डिब्बा तीन भागों में बंटा था । बायें भाग में एक छोटी–सी अलार्म क्लॉक थी । दायें खाने में आयातित सैलों से बनी बैटरी थी । डेटोनेटर की दोनों तारें क्लॉक और बैटरी के साथ इस ढ़ंग से जुड़ी थीं अलार्म स्प्रिंग खुलने पर उनका कनेक्शन जुड़ता और इलेक्ट्रिकल सर्किट पूरा हो जाना था ।
तीसरे डिब्बे के बीच वाले खाने में मैंगनीशियम, एल्युमीनियम और आइरन ऑक्साइड के चूरे का एक और मिश्रण भरा था । बाकी दोनों डिब्बों की तरह इसका ढक्कन भी कसकर बंद करके टेप द्वारा सील कर दिया गया था । अलार्म की चाबी पूरी भरी थी और वो सुबह पांच बजे पर सैट था ।
* * * * * *
हसन भाई नजमा और टीना को साथ लिये जब हसन हाउस पहुंचे और अपने अलग–अलग अपार्टमेंटों में जाने के लिये सीढ़ियां चढ़ रहे थे तो परवेज़ अहमद का दरवाज़ा खुला पाकर फारूख ने पलटकर अपने भाई को आँख मारी ।
–"तुम्हारी अम्मी भी मौज ले रही हैं ।" धीरे से बोला । अनवर ने कुछ नहीं कहा ।
वह नजमा को साथ लिये अपने अपार्टमेंट में जाकर बंद हो गया ।
फारूख ने भी टीना सहित अपने अपार्टमेंट में जाकर दरवाज़ा लॉक कर लिया ।
* * * * * *
गुलशन ने हसन हाउस के प्रवेश द्वार के सामने से इम्पाला आगे बढ़ा दी ।
उसका दो कमरों का फ्लैट करीब तीन फर्लांग दूर गैराज के ऊपर था । उस वक्त वह काफी थकान महसूस कर रहा था । इसी बड़ी वजह थी समलैंगिक सहवास में उसके साथ सक्रिय रूप से भाग लेने वाला उसका मनपसंद साथी तीन रोज से मलेरिया की चपेट में आया हुआ था । उसकी कमी गुलशन को बुरी तरह खल रही थी । इसलिये अपने ख्यालों में गुम वह करीब सौ गज दूर खड़ी गहरे रंग की वॉक्स वेगन जैटा को देखकर भी अनदेखा करता हुआ गुजर गया ।
इम्पाला की डैशबोर्ड क्लॉक में उस वक्त एक बजकर सात मिनट हुये थे ।
* * * * * *
वॉक्स वैगन जैटा में मौजूद यासीन और मंसूर ने इम्पाला को जाते हुये देखा और इत्मिनान से सीटों में पसर गये ।
उन्हें अभी लम्बा इंतजार करना था ।
* * * * * *
इंसपेक्टर रंजीत मलिक ।
अपने बेडरूम में गहरी नींद में सोया पड़ा सपना देख रहा था । माथे पर बहते पसीने से जाहिर था किसी दुःस्वप्न में घिरा हुआ था ।
उसने देखा–अपने ड्राइंगरूम में खड़ा वह फर्श पर मुड़ी–तुड़ी सी पड़ी लाश को देख रहा था । लाश का सर तरबूज की तरह फटा पड़ा था । भेजा बाहर झांक रहा था । आस–पास खून का तालाब–सा बना था । किसी औरत की उस लाश का चेहरा बालों से ढंका था और कपड़े बुरी तरह अस्त–व्यस्त थे । रंजीत को फटे सर से ज्यादा औरत के कपड़ों की हालत ने विचलित किया । उसे नंगी टांगें, पेट, वक्षस्थल और बांहें परिचित लगीं–फिर पूरी तरह पहचान गया ।
लाश उसकी भूतपूर्व मंगेतर सूजी की थी ।
अचानक उसकी निगाहें दरवाजे की ओर घूम गयीं । वहां खड़े एस० पी० वर्मा को अपनी ओर यूं घूरता पाया मानों वह उसी को खूनी समझ रहा था ।
मलिक के पीछे एक और लड़की थी–सफेद चेहरा और आसुओं से भरी सुर्ख़ आँखें । लड़की ने अपना चेहरा ढंकने के लिये एक हाथ ऊपर उठाया । उसकी उंगलियां लम्बी और पतली थीं । उनमे से एक में अजीब से डिज़ाइन की बड़ी अंगठी थी ।
रंजीत हड़बड़ाकर जाग गया ।
कुछ देर सपने के बारे में सोचता रहा फिर दोबारा नींद की बाँहों में समा गया ।
* * * * * *
एस० आई० मनोज तोमर ।
अपने बेडरूम की खिड़की के पास सो रहा था । उसने सपना तो नहीं देखा लेकिन उस रात दो बार जागा । दोनों बार उसने खुद को उस लड़की के बारे में सोचता पाया जिसे पैराडाइज क्लब में देखा था ।
* * * * * *
चार बजकर बत्तीस मिनट पर ।
कमरे में दाखिल होते ही क्लॉक रूम गर्ल रमोला और वेटर सतीश ने अपने कपड़े उतार फेंके ।
दोनों इतने ज्यादा कामातुर थे । बिस्तर पर पहुंचते ही उनके शरीर एकाकार हो गये ।
जल्दी ही आनंदातिरेक के पलों से गुजरती रमोला ने सतीश का बांहों में कसकर जकड़ लिया । बुरी तरह हांफता हुआ सतीश उस पर पसरकर रह गया ।
मुश्किल से पांच–सात मिनट बाद दोनों दोबारा जोश में आ गये ।
सतीश पुनः रमोला पर सवार हो गया । दोनों एक–दूसरे में समा जाने की परजोर कोशिश करने लगे ।
* * * * * *
पैराडाइज क्लब...टॉप फ्लोर पर आफिस में ।
अपनी रफ्तार से घूमती घड़ी की सुईयां चार बजकर अट्ठावन मिनट तीस सैकेंड दर्शा रही थीं ।
नाइट वाचमैन सुंदरलाल सोफे पर सोया पड़ा था । उसका साथी हरनाम रेस्टोरेंट की किचिन में बैठा चिकन सैंडविच खाता हुआ ताजा बनायी चाय की चुस्कियां ले रहा था ।
एक मिनट तीस सैकेंड बाद ।
ठीक पांच बजे ।
पैकेट के अंदर क्लॉक का अलार्म बज उठा । खुलकर ढीली हुई स्प्रिंग ने संपर्क में आकर सर्किट पूरा कर दिया ।
धीमी आवाज़ के साथ बम फटा । मेगनीशियम, एल्युमिनियम और आयरन ऑक्साइड के मिश्रण से लगे आग मोटी लपट के रूप में बाहर उछलकर बड़े से गोले में बदल गयी ।
धीमी आवाज़ के बावजूद विस्फोट इतना जोरदार था कि क्लॉक रूम की वो दीवार उड़ गयी । जिसके पीछे क्लब में काम करने वाली लड़कियों का ड्रेसिंग रूम था । रैकों में हैंगरों पर लटकी विभिन्न डिजाइनों की दर्जनों पोशाकें कीमती थीं और नियमानुसार कोई भी लड़की मनोचा की इजाज़त के बगैर उन्हें बाहर नहीं ले जा सकती थी । वे तमाम पोशाकें तुरंत आग के गोले की चपेट में आ गयीं । फिर फ्लोर और वॉल कारपेट, पर्दे, फाल्स सीलिंग वगैरा भी जलने लगीं । तेजी से फैलती आग लॉबी में आ गयी ।
हरनाम उतनी तेजी से हरकत में नहीं आया जैसे कि उसे आना चाहिये था । जब तक वह फर्स्ट फ्लोर लैंडिंग पर पहुंचा आग और ज्यादा फेल चुकी थी । बुरी तरह बौखला गया हरनाम दीवार के साथ लगे आग बुझाने वाले सिलिंडरों को इस्तेमाल करके आग पर काबू पाने की कोशिश करने की बजाये वापस ऊपर दौड़ गया अपने साथी को जगाने के लिये ।
सुंदरलाल ने अक्ल से काम लिया और फायर ब्रिगेड को फोन कर दिया ।
लेकिन जब तक दोनों दोबारा सीढ़ियां उतरे बहुत देर हो चुकी थी ।
आग भीषण रूप ले चुकी थी ।
लपटें ऊंची होती जा रही थीं । धुएँ के बादल उठ रहे थे ।
गर्मी की झुलस, धुएँ की घुटन और दहशत ने एक साथ दोनों आदमियों को जकड़ लिया । वे पलटे और जान बचाने के लिये सैकेंड एग्जिट से बाहर दौड़ गये ।
बुरी तरह खांसते गिरते–पड़ते और अंधाधुंध भागते निकटतम पब्लिक टेलीफ़ोन बूथ में पहुंचे ।
तब तक फायर इंजिनों के सायरन सुनाई देने लगे थे ।
लेकिन उस बूथ का फ़ोन डैड पड़ा था । किसी खुँदकी ने लाइन ही काट दी थी ।
दूसरा बूथ ढूंढने में दस मिनट लग गये । फिर बलदेव मनोचा से सम्बन्ध स्थापित करने में और एक मिनट लगा ।
धीरे–धीरे नींद की आगोश में समाता मनोचा क्लब की उस लड़की के बारे में सोच रहा था, जिसे चार रोज बाद साथ ले जाकर उसने शहर से बाहर दो रोज की छुट्टियाँ गुजारनी थीं ।
वह रिसीवर उठाते ही गुर्राया ।
–"हलो ?"
–"मनोचा साहब ?"
–"हां ! कौन ?"
–"हरनाम बोल रहा हूं, सर ! किसी हरामजादे ने क्लब में आग लगा दी...पूरी...इमारत जल रही है...!"
मनोचा की नींद फौरन उड़ गयी ।
–"हे भगवान !"
–"हम क्या करें, सर ?"
मनोचा के मुंह से बोल नहीं फूटा ।
–"आप सुन रहे हैं, सर !"
–"हां...क्लब...ओह गॉड...!"
–"इमारत धू–धू करके जल रही है ।"
–"हरनाम ?"
–"जी, सर !"
–"ऊपर ऑफिस में जाओ...नहीं, तुम्हारे पास तो सेफ की चाबियां नहीं हैं...ओह मेरे परमात्मा...।"
–"भगवान के लिये कुछ कीजिये, सर ।"
–"तुम बाहर निकल आये ?"
–"जी हां, अगर बाहर नहीं भागते तो अब तक मर गये होते ।"
–"तुम वापस जाओ और देखो क्या कर सकते हो । मैं भी पहुंच रहा हूं...हमें सेफ तक पहुँचना ही होगा ।"
–"नामुमकिन है, सर...पूरी इमारत में आग...!"
–"फिर भी तुम वापस जाओ । भाइयों को फोन करके में भी पहुँच रहा हूं । तुम देखो क्या किया जा सकता है...सेफ को बचाना जरूरी हैं ।"
इससे पहले कि हरनाम बताता वे कुछ नहीं कर सकते, लाइन काट दी गयी थी ।
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