रुस्तम राव और बांकेलाल राठौर ने पारसनाथ को देखा, जो कंधे पर पाली को लादे निकला और तेजी से कुछ दूर अंधेरे में खड़ी कार की तरफ बढ़ गया।


“छोरे। ये तो कोई घायल हो गयो हो। "


"हां। ये तो वो लग रएला है जो मोना चौधरी के साथ उधर को गएला था। गोली लगेला है इसको बाप। " 


"वो फाइल—।" बांकेलाल राठौर ने कहना चाहा।


"इसके पास नेई होएला बाप मोना चौधरी और महाजन अम्भी अंदर होएला बाप। एक बात आपुन को समझ में नेई आएला कि ये घायल पक्का तिजोरी खोलने वाला होएला बाप। अगर ये तिजोरी खोलने से पैले ही घायल होएला तो तिजोरी कौन खोएला ?"


"छोरे वां देख। उधर, ऊपर की खिड़की पर। वां कुछ हौवे।"


दोनों की निगाह खिड़की पर जा टिकी।


उनके देखते ही देखते तिजोरी नीचे फेंकी गई थी। 


"ये तो म्हारे ख्यालों से तिजोरी हौवे--।"


"हां बाप।" रुस्तम राव की आंखें सिकुड़ चुकी थीं—"अब आपुन की समझ में आएला कि क्या चक्कर है। वो तिजोरी खोलने वाला, तिजोरी खोलने से पैले ही घायल होएला है। तिजोरी छुटैला होएला बाप और ये कोई और रास्ता न पाकर, तिजोरी को ही साथ ले उड़ेला है। "


"अंम भी ये ही सोचो।"


उधर पारसनाथ की कार स्टार्ट होने और जाने की आवाज आई। 


“वो, उनको साथी तो कारो लेकर चलो गयो। ये कैसो जावो?"


"भीतर कोई और कार खड़ी होएला, वो उसी में ही जाएला। आपुन अभ्भी आया। " कहने के साथ ही रुस्तम राव उस तरफ बढ़ गया, जहां एक कार में तीन आदमी मौजूद थे कुछ ही पलों बाद वापस लौट आया।


"का तीर मारो हो तन्ने?"


"आपुन बंदो को तैयार होने का बोएला है बाप कि वो कार निकलने को है। "


तभी बंगले से भीतर से उभरी, कार के ईजन की मध्यम सी आवाज आई।


"छोरे, म्हारे ख्याल में वो बाहर को आयो है। " 


“बांके, अपनी कार को तैयार रखेला जल्दी।" रुस्तम राव की पैनी निगाह बंगले के गेट पर थी।


बांकेलाल फौरन वहां से हट गया।


चौधे पल बंगले के गेट से कीमती कार निकली और उसके सामने से होकर गुजरती चली गई। रुस्तुम राव ने रात के अंधेरे में भी ड्राइविंग सीट पर बैठी मोना चौधरी को पहचाना।


फिर रुस्तम राव ने अपने बंदों की कार को उस कार के पीछे जाते देखा। उस कार की लाइट ऑफ थी। रुस्तम राव की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।


तभी पास आकर कार रुकी। ड्राइविंग सीट पर बांके लाल राठौर मौजूद था।


आ छोरे—।"


रुस्तम राव जल्दी से कार में बैठा तो बांकेलाल राठौर ने कार आगे बढ़ा दी।


"बाप अब आपुन को फाइल नेंई वो तिजोरी लेने का है। फाइल उसी में बंद होएला है। "


"जानो है जंम। " कहते हुए बांकेलाल राठौर ने कार की स्पीड बढ़ा दी।


***


पौने दो बजे हैदराबाद से ट्रेन आ पहुंची मुंबई सेंट्रल पर। देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल ट्रेन से उतरे और बाहर आकर पार्किंग में खड़ी अपनी कार तक पहुंचे और कार में बैठकर, बंगले की तरफ चल पड़े।


***


जिसमें तीन बंदे थे। उस कार ने पीछे से मोना चौधरी वाली कार को वेग के साथ टक्कर मारी। रात के अंधेरे में 'भड़ाक' की आवाज गूंजी।


मोना चौधरी की कार जोरों से लड़खड़ाई फिर संभली।


अगले ही पल कार को पुनः पहले से भी ज्यादा तेज टक्कर मारी गई। मोना चौधरी ने दांत भींचकर कार को कंट्रोल करने की भरपूर कोशिश की। 


'बेबी।" महाजन रिवॉल्वर निकालते हुए बोला "लगता है

शंकर भाई के आदमी पीछे लग गए हैं। "


"मेरा भी यही ख्याल है। वरना इस मामले में कोई और नहीं आ सकता। " मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी–“तुम पीछे वाली कार के टायर का निशाना लो। मैं कार को पूरी रफ्तार पर छोड़ती हूं।" 


ठीक तभी।


इस बार लगने वाली टक्कर ऐसी थी, जैसे दो ट्रेनें आपस में टकरा गई हों। कार मोना चौधरी के कंट्रोल से बाहर हो गई। उसने भरपूर कोशिश की कार को संभालने की। परंतु सामने से आती कार से उसकी कार टकरा गई। वे कार भी उलटते पलटते बची।


मोना चौधरी की कार रुक चुकी थी।


जिससे टक्कर हुई थी, वो कार भी आड़ी-तिरछी होकर रुकी पड़ी थी।


पीछे वाली कार भी रुकी और उसमें मौजूद तीनों बंदे निकले। उनके हाथों में रिवॉल्वरें थीं। फौरन आगे बढ़कर उन्होंने कार को घेर लिया।


महाजन का माथा डैशबोर्ड से टकराने की वजह से फट-सा गया था। वहां से खून बह रहा था। हाथ में पकड़ी रिवॉल्चर, कार में ही जाने कहां गिर गई थी।


मोना चौधरी ने खुद को संभाला और होंठ भींचे कार के गिर्द खड़े उन बंदों को देखा जो सूरत से ही खतरनाक लग रहे थे।


तभी पीछे से आती बांके रुस्तम की कार वहां आकर रुकी। दोनों बाहर निकले। कार के पास पहुंचे। उन पर निगाह पड़ते ही मोना चौधरी की आंखें सिकूड़ीं।


"तुम?" मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।


"हां, अंम।" कहने के साथ ही बांकेलाल राठौर ने जेब से रिवॉल्चर निकाली और दूसरा हाथ मूंछ पर पहुंच गया—"बाहरो आजा नेई तो अंम बारे को 'वड' के रख दागें।"


रुस्तम राव वहां खड़े तीनों बंदों से बोला।


"डिग्गी में तिजोरी होएला। वो तिजोरी निकालकर आपुन की कार में डालो।"


तीनों फौरन वहां से हट गए।


मोना चौधरी का चेहरा गुस्से से तप उठा था। वो दरवाजा खोलकर बाहर निकली और कहर भरी निगाहों से बारी-बारी दोनों को देखने लगी।


"सलाम बाप—।" रुस्तम राव फौरन मुस्कराकर बोला। 


"म्हारी भी हैलो हैलो ले ले। " बांकेलाल राठौर कड़वे स्वर में बोला।


तब तक दूसरी तरफ का दरवाजा खोलकर महाजन भी बाहर निकला। माथे से बहने वाले खून पर रूमाल रखा हुआ था। रुस्तम राव और बांकेलाल राठौर को देखकर मन ही मन वो हैरान था।


"बाप। " रुस्तम राव बोला


"इधर को आजा हथियार वगैरह हो तो उससे छुटकारा पाएला । "


महाजन खाली हाथ था। वो घूमकर, उनके पास आ पहुंचा।


"ये क्या कर रहे हो?" मोना चौधरी गुर्रा उठी।


"छोरे, ये तो गुस्सा खावे है।" बांकेलाल राठौर शब्दों को चबाकर बोला।


रुस्तम राव के मासूम चेहरे पर शांत मासूम मुस्कान उभरी। रात के अंधेरे में कारों में जल रही लाइटों में सारा नजारा स्पष्ट नजर आ रहा था।


तभी सबकी निगाहें उस कार की तरफ गई। जो सामने से आ रही थी। जिससे मोना चौधरी की कार टकराई थी और जो पलटते पलटते बची थी।


***


उस कार में देवराज चौहान जगमोहन और सोहनलाल थे। जो स्टेशन से बंगले पर लौट रहे थे और अचानक ही सामने आती कार ने जबर्दस्त टक्कर दे मारी थी। देवराज चौहान को टक्कर लगते ही पूरा विश्वास था कि कार पलट जाएगी। परंतु आखिरकार बच ही गई।


सोहनलाल पीछे वाली सीट पर आंखें बंद किए पड़ा था। उसका सिर दरवाजे से टकराया। परंतु बच गया। देवराज चौहान और जगमोहन ने होने वाली टक्कर को दो पर्ल पूर्व ही महसूस कर लिया था, इसलिए अपने बचाव की भरपूर चेष्टा की और मामूली सी खरोंचो के अलावा उन्हें कुछ न हुआ।


"बेवकूफ लोग गाड़ी चलानी भी नहीं आती।" जगमोहन

झल्ला उठा। देवराज की निगाह कार पर थी। जो रुक चुकी थी और पीछे रुकती कार और उसमें से निकलते तीनों बंदों को भी देखा। उसके बाद जो हुआ सब देखा। 


जब मोना चौधरी को देखा तो उसकी आंखें सिकुड़ गई। 


"मोना चौधरी।" जगमोहन के होंठों से हैरानी भरा स्वर निकला--"ओह, फकीर बाबा ने कहा था कि अगर पंद्रह दिन निकल गए तो, सब ठीक रहेगा और आज चौदहवां दिन है। " 


देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।


"मैं सच कह रहा हूं। एक-एक दिन का हिसाब रखा है मैंने। "


जगमोहन कह उठा।


देवराज चौहान पुनः सामने देखने लगा।


"मोना चौधरी को रुस्तम राव और बांकेलाल राठौर ने घेरा है। " जगमोहन हैरान ही था।


देवराज चौहान ने कार का दरवाजा खोला।


"कहां जा रहे हो?" जगमोहन ने व्याकुलता से पूछा । 


देवराज चौहान शांत भाव में मुस्कराया


सोहनलाल बोल पड़ा।


तभी पीछे बैठा "उनका मामला है। तुम क्यों बीच में आते हो। फकीर बाबा की बात याद करके ही रुक जाओ। हो सकता है तुम्हारा सामने जाना ही झगड़े की वजह बन जाए और --।"


"मैं झगड़ा करने नहीं जा रहा। हम यहां से चल रहे हैं। " देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा- "कम से कम मोना चौधरी को मालूम तो हो कि उसकी कार की टक्कर से हमारी जान भी जा सकती थी।" कहने के साथ ही देवराज चौहान बाहर निकल आया। 


जगमोहन और सोहनलाल भी बाहर निकले।


***