प्रतीक्षारत टैक्सी द्वारा नीलम को उसके आवास पर ड्रॉप करने के बाद अजय ने ड्राइवर को फिल्म स्टार अमरकुमार का पता बता दिया ।
टैक्सी पुनः सड़कों पर भागने लगी ।
लगभग आधा घंटा बाद ।
टैक्सी अपनी मंजिल पर पहुंचकर जा रुकी ।
अजय भाड़ा चुकाकर नीचे उतरा और इमारत में दाखिल हो गया ।
संयोगवश, सिक्योरिटी का कोई आदमी उस वक्त वहाँ मौजूद नहीं था ।
तेजी से लॉबी पार करके अजय लिफ्ट में जा घुसा ।
अमरकुमार टॉप फ्लोर पर रहता था । लेकिन अजय ने कहा–'सेवेंथ क्लोर ।'
लिफ्टमैन के चेहरे पर खीज मिश्रित बोरीयत भरे भाव थे । ऐसा लगता था मानों उसकी ड्यूटी खत्म हो चुकी थी । लेकिन अगली ड्यूटी वाला । लिफ्टमैन अभी नहीं आया था ।
उसने अजय की ओर ध्यान दिए बगैर दरवाजा बंद किया और पैनल पर सात के अंक वाला बटन दबा दिया ।
लिफ्ट तेजी से ऊपर जाने लगी ।
सातवें खंड पर पहुंचकर अजय बाहर निकला और धीरे–धीरे कॉरिडोर में आगे बढ़ गया ।
लिफ्ट पुनः नीचे चली गई ।
अजय शेष तीन खंडों की सीढ़ियां तय करके टॉप फ्लोर पर पहुंचा ।
उसने अमरकुमार के अपार्टमेंट के दरवाजे पर दस्तक दी ।
जवाब में, ज्योंहि दरवाजा खोलकर रोशन प्रगट हुआ । अजय ने फौरन उस पर रिवाल्वर तान दी ।
भयमिश्रित आश्चर्य के कारण उसकी आंखें फैल गई । वह चंदेकपल निश्चल खड़ा ताकता रहा । फिर धीरे–धीरे पीछे हट गया ।
अजय ने अन्दर आकर पैर की ठोकर से दरवाजा पुनः बंद कर दिया ।
–'कौन है, रोशन ?, भीतर किसी कमरे से अमरकुमार की आवाज आई ।
अजय, रोशन सहित ड्राइंग रूम में आ गया । उसने रिवाल्वर हिलाकर संकेत किया कि फिल्म स्टार को वहीं बुलाले ।
–'बाहर आ जाइए ।' रोशन कठिन स्वर में बोला–'आप से मिलने कोई आया है ।'
–'तुम खुद कुछ नहीं कर सकतें ?' अमरकुमार का झल्लाहट भरा स्वर सुनाई दिया । फिर वह पाँव पटकता हुआ सा आ पहुंचा । उसकी शर्ट के बटन खुले थे और टाई हाथ में लटकी हुई थी ।
अजय पर निगाह पड़ते ही वह ठिठककर रुक गया और मुंह बाए उसे देखने लगा ।
–'इस तरह क्या देख रहे हो, सितारे साहब ?' रोशन को पूर्ववत् कवर किए अजय बोला–'मैं कोई अजूबा नहीं, तुम्हारी तरह इंसान हूँ ।'
–'तुम यहाँ कैसे पहुंच गए ?'
–'मुझे जहाँ पहुंचना होता है पहुंच ही जाता हूँ ।'
–'लगता है, तुम या तो पागल हो गए हो या फिर नशे में हो ।' अमरकुमार खीजता सा बोला ।
–'मैं न तो पागल हूँ न ही नशे में ।'
–'तो फिर यह रिवाल्वर हम पर क्यों तानी हुई है ?'
–'यह बताने के लिए कि जो लोग सीधी तरह नहीं समझते उन्हें टेढ़े तरीके से समझाना भी मुझे आता है ।'
अमरकुमार ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा फिर रोशन की ओर देखा ।
–'तुम मेरे बॉडीगार्ड हो, रोशन ।' वह गुर्राता सा बोला–'इससे रिवाल्वर छीन लो ।'
रोशन ने धीरे से सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
–'अगर आपको रिवाल्वर चाहिए तो खुद ही छीन लीजिए ।'
अजय का चेहरा कठोर था और रिवाल्वर वाला हाथ स्थिर ।
–'हाँ, सितारे साहब ।' उसने ऊपर की ओर देखा–'तुम खुद ही क्यों नहीं छीन लेते ?' उसकी निगाहें पुनः रोशन पर केन्द्रित हो गई–'तुम्हारा यह बॉडीगार्ड तो मामूली टुच्चा बदमाश है । यह सिर्फ एक ही काम कर सकता है–औरतो की पिटाई करना और फिर उन्हें जान से मार डालना ।'
रोशन का चेहरा तनिक पीला पड़ गया ।
–'तुम कहना क्या चाहते हो ?'
–'मैं मंजुला सक्सेना की बात कर रहा हूँ ।'
–'इस नाम की किसी औरत को मैं नहीं जानता ।'
–'वह 'विशालगढ़ टाइम्स' की रिपोर्टर थी ।' अजय ने उसके प्रतिवाद की ओर ध्यान दिए बिना पैने स्वर में कहना जारी रखा–'उसके पास एक लिखित और दस्तखतशुदा बयान था । जिससे साबित होता था कि जिस रात मनमोहन की मृत्यु हुई तुम उसके अपार्टमेंट में मौजूद थे । मनमोहन की मौत के बाद तुम न जाने किस सीवर में जा छिपे । और जब अचानक प्रगट हुए तो मंजुला सक्सेना अपनी जान से हाथ धो बैठी । उसकी हत्या की गई थी और वो हत्या तुमने की थी । उसके फ्लैट की इस बुरी तरह तलाशी ली कि वहां मौजूद कोई चीज सही सलामत नहीं बची । वो बयान वाला कागज मिला तुम्हें ।'
–'तुम्हारी कोई बात मेरे पल्ले नहीं पड़ रही है ।'
अजय उसके पास पहुंचा और रिवाल्वर उसके चेहरे के एकदम पास कर दी ।
–'इसके सुराख को गौर से देखो तो सब कुछ याद आ जाएगा । इससे निकली गोली तुम्हारे इस थोबड़े में झरोखा खोल देगी ।'
–'तुम बेकार ब्लफ मार रहे हो, अजय ।' अमरकुमार हस्तक्षेप करता हुआ बोला–'रोशन के खिलाफ मामूली सा भी सबूत तुम्हारे पास नहीं है । ऐसा नहीं होता तो इस वक्त तुम्हारी जगह पुलिस ने यहाँ मौजूद होना था । तुम कहते हो मनमोहन की मौत वाली रात यह उसके पास था । मान लो मैं कह दूँ उस रात यह बराबर मेरे पास रहा था । एक मिनट के लिए भी यहाँ से बाहर नहीं गया । तब तुम क्या करोगे ?'
–'क्या तुम वाकई ऐसा कह सकते हो ?' अजय ने पूछा ।
–'हाँ ।' अमरकुमार ने कहा फिर टेलीफोन की ओर बढ़ता हुआ बोला–'और अब मैं सिक्योरिटी स्टाफ को बुलाता हूं ताकि तुम्हें यहाँ से बाहर फेंका जा सके ।'
ज्योहि उसने रिसीवर उठाने के लिए हाथ बढ़ाया, अजय लपककर उसके पास जा पहुंचा । उसकी बांह पकड़कर उसे अपनी ओर घुमाया और बाएं हाथ का हथौड़ा जैसा वजनी घूँसा उसके पेट के निचले भाग में जमा दिया ।
अमरकुमार के कंठ से कराह निकली । आंखों में आतंक झलकने लगा । चेहरा पीड़ा से विकृत हो गया । वह खड़ा नहीं रह सका । दोनों हाथों से पेट को दबाए नीचे झुकता चला गया ।
अजय ने उसकी गरदन पर तगड़ा हाथ जमा दिया ।
वह औंधे मुह फर्श पर जा गिरा और उसी तरह पड़ा हाँफता रहा ।
इस बीच एक्शन में आ चुके रोशन ने अजय पर छलांग लगा दी थी । लेकिन उसकी ओर से भी गाफिल अजय नहीं था । उसका दायाँ हाथ हवा में लहराया और उसमें थमी रिवाल्वर की नाल जोर से रोशन के चेहरे के साथ जा टकराई ।
पीड़ा से होठ काटते रोशन के शरीर में तुरन्त ब्रेक लग गया । तभी अजय ने उसके पेट में ठोकर जमा दी । संभलने की लाख कोशिश करने के बावजूद वह पीछे हटता चला गया । वह फिर एक कुर्सी से टकराया और उसे लिए दिए नीचे जा गिरा ।
अजय रिवाल्वर वापस जेब में रखकर उसके पास पहुंचा । उसे गिरहबान पकड़कर ऊपर उठाया और सीधा खड़ा कर दिया ।
रोशन की आंखों से पानी बह रहा था । वह अपना संतुलन कायम नहीं रख पा रहा था । उसके चेहरे पर, एक स्थान पर गूमड़ उभरना शुरू हो गया था । नाक और होठों से खून बह रहा था ।
–'मंजुला सक्सेना के फ्लैट में तुम्हें वो चीज मिली ।' अजय ने पूछा–'जिसे लेने तुम वहाँ गए थे ?'
रोशन यूं अपने सर को दाएं–बाएं घुमा रहा था मानों उसे स्थिर रख पाना उसके वश की बात नहीं थी । उसने बड़ी मुश्किल से अपनी आंखें अजय पर जमाईं ।
–'मैं इसका बदला लेकर रहूंगा ।' वह फंसी–सी आवाज में बोना–'मैं तेरी जान ले लूँगा ।'
–'ज्यादा फैलने की कोशिश मत करो । तुम सिर्फ औरतों की जान ले सकते हो । बस वहीं तक रहो ।' अजय ने कहा, फिर उसके चेहरे पर लगातार दो झापड़ रसीद करने के बाद बोला'–'तुम्हारी यह गत मैं मंजुला सक्सेना की खातिर बना रहा हूँ । जब भी तुम मुझे मिलोगे हर बार यही गत बनाऊंगा । और यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक कि मैं तुम्हें मंजुला का हत्यारा साबित नहीं कर दूंगा ।' उसने गिरहबान को यूं कसकर पकड़ा कि रोशन का दम घुटने लगा–'तुम्हें वो बयान वाला कागज मिला ?'
रोशन ने अपने होठों पर जीभ फिराते हुए धीरे से सर हिला दिया ।
–'बयान वाला कोई कागज न तो है और न ही कभी था । उस रात न तो मैं मनमोहन के पास गया था और न ही कोई साबित कर सकता है ।'
–'इसका मतलब है वो कागज तुम्हें मिल गया !' अजय ने कहा और गिरहबान छोड़कर उसे पीछे धकेल दिया ।
रोशन ढेर की शक्ल में फर्श पर जा गिरा । उसके तमाम कस बल निकल चुके थे ।
अजय, अमरकुमार के पास पहुंचा । उसकी स्थिति में सिर्फ इतना फर्क आया था कि वह उलटकर पीठ के बल पड़ गया । उसके हाथ अभी भी पेट पर रखे थे । साँसें भारी थीं और गले से कराह निकल रही थी ।
–'तुम अनाड़ी लोगों के साथ यही सबसे बड़ी दिक्कत है ।' अजय उसकी पसलियों में बूट से टहोका लगाकर बोला–'अपनी नादानी और नातजुर्बकारी की वजह से हर मामले में आँखें मींचकर टांग फंसा बैठते हो । मनमोहन की हत्या के इल्जाम से तो तुम बच सकते थे । लेकिन मंजुला सक्सेना की हत्या की कीमत तुम्हें चुकानी ही पड़ेगी ।'
अमरकुमार ने अपनी पीड़ा को पीने की नाकाम कोशिश करते हुए उसकी ओर देखा ।
–'तुमने अपनी मौत को न्यौता दे दिया है, अजय ।' वह हाँफता–सा बोला–'मनमोहन और उस औरत की तरह अब तुम्हें भी मरना पड़ेगा । शमशेर सिंह तुम्हें नहीं बख्शेगा ।'
–'तुम्हारे इन फिल्मी डायलॉगों में कोई दम नहीं है । तुम समझते हो तुम जैसे मामूली आदमी की खातिर शमशेर सिंह अपने हाथों को गंदा करेगा ?'
अमरकुमार कई पल गहरी साँसे लेता रहा । अन्त में कराहता सा बोला–'वह ऐसा ही करेगा । उसे करना पड़ेगा ।'
–'अच्छा ?'
–'हां, दुनिया की कोई ताकत अब तुम्हें नहीं बचा सकती ।'
अजय, पीठ के बल पड़े नीम बेहोशी की हालत में कराह रहे रोशन की ओर देखकर मुस्कराया ।
–'अगर ऐसी बात है तो अपने बाप शमशेर सिंह से कह देना कि तुम्हारे बॉडीगार्ड रोशन जैसे कार्टूनों की बजाय वह अपने चुनीन्दा आदमियों की फौज भेजे ताकि मुझे भी मुकाबला करने में मजा आ सके ।'
–'ऐसा ही होगा । तुम्हें चुनीन्दा आदमी के हाथों ही ठिकाने लगवाया जाएगा ।'
–'मैं उस मौके का इन्तजार करूंगा ।' अजय बोला–'मैं सिद्धार्थ होटल में ठहरा हूं । अगर यहां हुए इस वाकए की पुलिस को इत्तिला देना चाहो तो शौक से दे सकते हो ।'
–'तुम हमें गलत समझ रहे हो ।' अमरकुमार ने कहा–'अपना किस्सा हम खुद ही निपटाया करते हैं ।'
–'वो तो जाहिर ही है–पहले तुमने मनमोहन का किस्सा निपटा दिया और अब मंजुला सक्सेना का । और अभी तक किस्मत ने भी तुम्हारा साथ दिया है । लेकिन मैं चाहता हूँ किसी तीसरे का किस्सा निपटाने की कोशिश भी तुम करो । ताकि तुम्हारी गरदन तोड़ने का सही मौका मुझे मिल सके ।'
अमरकुमार बड़ी मुश्किल से कोहनियों के सहारे उठा और एक सोफा चेअर से पीठ सटाकर बैठ गया ।
–'तुम्हारी यह ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकेगी । क्योंकि अब तुम ज्यादा देर जिंदा नहीं रहोगे ।'
–'बेहतर होगा कि मेरी फ़िक्र छोड़कर अपनी और अपने कार्टून रोशन की खैर मनाओ ।' अजय ने कहा और पलटकर बाहर निकल गया ।
अमरकुमार मुश्किल से उठा और कुर्सी में गिर गया । हाथों से पेट को दबाये आँखें बन्द किए देर तक उसी तरह बैठा रहा ।
अन्त में, जब दर्द कुछ कम हुआ तो वह उठा । लड़खड़ाता हुआ सा चलकर बार के पास पहुंचा । और वहां रखा पानी भरा जग उठाकर फर्श पर पड़े कराहते रोशन के सर पर उलट दिया ।
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