इमरान ने फिर एक पी.सी.ओ. बूथ से कैप्टन फ़ैयाज़ का नम्बर डायल किया....और उससे आर्टामोनॉफ़ के बारे में पूछा।
‘‘तुम आख़िर क्या करते फिर रहे हो?’’ फ़ैयाज़ ने दूसरी तरफ़ से कहा। ‘‘मुझे बताओ....वरना मजबूरन....मुझे....’’
‘‘सब्र करना पड़ेगा।’’ इमरान ने जल्दी से जुमला पूरा कर दिया।
‘‘आर्टामोनॉफ़ के बारे में उस वक़्त तक नहीं बताऊँगा जब तक कि तुम मुझे सारे हालात से आगाह न करो।’’
‘‘अच्छा मेरी जान....मुझे न ग़ज़ाली में कोई दिलचस्पी है और न आर्टामोनॉफ़ से....मैं घर जा रहा हूँ। वैसे घर भी तुम्हारा ही है, लेकिन तुम्हारे फ़रिश्ते भी वहाँ से मुझे नहीं निकाल सकते।’’
इमरान रिसीवर रख कर बूथ से बाहर आ गया। वह जानता था कि फ़ैयाज़ अभी ख़ुद ही दौड़ा आयेगा। इसलिए अब उससे कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं। उसे यक़ीन था कि वह ख़ुद ही आ कर सब कुछ उगल देगा।
इस भाग-दौड़ में चार बज गये थे और रूशी फ़्लैट में उसका इन्तज़ार कर रही थी। न सिर्फ़ रूशी, बल्कि लेडी तनवीर भी।
इमरान लेडी तनवीर को देख कर बोला। ‘‘आप यहाँ से फ़ौरन चली जाइए। क्योंकि कैप्टन फ़ैयाज़ यहाँ आने वाला है।’’
‘‘सिर्फ़ एक बात सुन लो।’’
‘‘सुना जाइए जल्दी से।’’
‘‘ग़ज़ाली की मौत के बारे में मुझे कुछ नहीं पता। यह ज़रूरी नहीं कि उसकी मौत में मेरा हाथ हो....और मेरा राज़ इतना अहम नहीं हो सकता कि उसे क़त्ल करा दिया जाये।’’
‘‘मैं आपका राज़ नहीं मालूम करना चाहता....आप जा सकती हैं, लेकिन इतना मैं जानता हूँ कि सर तनवीर बड़ी मुसीबतों में फँस जायेंगे....पुलिस उन्हें सूँघ चुकी है। एक सरकारी डॉक्टर ने उन्हें ग़ज़ाली का कमरा खुलवाने की कोशिश करते देखा था....बस, अब जाइए....अगर कैप्टन फ़ैयाज़ ने आपको यहाँ देख लिया तो....घपला हो जायेगा। बस, जाइए।’’
लेडी तनवीर कुछ पल सोचती रही फिर धीरे से बोली, ‘‘बाक़ी चालीस हज़ार लायी हूँ।’’
‘‘उसे आप वापस ले जाइए। अगर मैं उसे हटाने में कामयाब हो गया होता तो ये रुपये यक़ीनन मेरे थे।’’
‘‘अब भी तुम्हारे ही हैं।’’
‘‘ज़बान बन्द रखने के लिए। क्यों?’’
‘‘ज़बान तो हर हाल में बन्द रखनी ही पड़ेगी....और हाँ मैंने पता लगा लिया है, तुम रहमान साहब ही के लड़के हो। ‘‘रहमान साहब, सर तनवीर के गहरे दोस्तों में से हैं और वे कभी हम लोगों की बदनामी बर्दाश्त नहीं करेंगे।’’
‘‘अच्छा....अच्छा....अब आप जाइए। कैप्टन फ़ैयाज़....’’
उसका जुमला पूरा भी नहीं हुआ था कि लेडी तनवीर उठ कर चली गई।
रूशी उर्दू नहीं जानती थी, इसलिए उनकी बातचीत उसकी समझ में नहीं आयी। लेडी तनवीर के जाने के बाद रूशी ने मेज़ के दरा ज़से नोटों की गड्डियाँ निकाल कर इमरान के सामने रख दीं।
‘‘ये क्या?’’
‘‘लेडी तनवीर ने दिये थे।’’
‘‘तुमने क्यों लिये?’’
‘‘ज़बर्दस्ती दे गयी है। मैं क्या करती। उसने कहा था कि तुम उसके दोस्त के लड़के हो।’’
बात इससे ज़्यादा नहीं बढ़ने पायी, क्योंकि फ़ैयाज़ सचमुच पहुँच गया....उसने नोटों की तरफ़ तीखी नज़रों से देखते हुए कहा, ‘‘बड़े मालदार हो रहे हो।’’
‘‘कब नहीं था। आओ बैठो दोस्त, बहुत दिनों बाद मुलाक़ात हुई। क्या आजकल बहुत बिज़ी हो?’’
‘‘लफ़्ज़ों में उड़ाने की कोशिश न करो।’’
‘‘मैं इस जुमले का मतलब नहीं समझा।’’ इमरान ने आँखें फाड़ कर कहा।
‘‘आर्टामोनॉफ़....!’’
‘‘आहा समझा....’’ इमरान ने उसकी बात काट दी। ‘‘मेरी क़ाबिलियत का इम्तहान लेना चाहते हो। आर्टामोनॉफ़ ख़ानदान का बयान मैक्सिम गोगोल ने अपने नॉवेल में किया था।’’
‘‘मैक्सम गोर्की....!’’ फ़ैयाज़ ने बुरा-सा मुँह बना कर कहा।
‘‘नहीं गोगोल, मैं शर्त लगाने के लिए तैयार हूँ।’’
‘‘तुम जाहिल हो....गोर्की....आर्टामोनॉव्स....गोर्की का नॉवेल है।’’
‘‘गोगोल! अगर ज़्यादा ताव दिलाओगे तो गोल-गोल कहूँगा। देखता हूँ कि तुम मेरा क्या....बना नहीं, बिगाड़....नहीं हुश....बना....क्या कहते हैं....जहन्नुम में जाये। हाँ, तो मैं अभी क्या कह रहा था।’’
‘‘इमरान, मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊँगा!’’ फ़ैयाज़ भन्ना गया।
‘‘आप के लिए चाय लाओ।’’ इमरान ने रूशी से अंग्रेज़ी में कहा....और रूशी दूसरे कमरे में चली गयी। फ़ैयाज़ उसे जाते देखता रहा फिर उसने एक लम्बी साँस ली।
‘‘आय हाय।’’ इमरान ने अपनी आँखें नचायीं। ‘‘ख़बरदार, बल्कि होशियार....तुम मेरी पार्टनर को देख कर ठण्डी आहें नहीं भर सकते। सुपर फ़ैयाज़, मैं तुम पर मुक़दमा चला दूँगा।’’
‘‘मैं यहाँ पर तुम्हारी फ़ालतू बातें सुनने नहीं आया।’’
‘‘तुम्हारी बड़ी मेहरबानी है कि कभी-कभी चले आते हो....मगर....ख़ैर टालो....तुम्हें आज हरी चाय पिलवाऊँगा।’’
‘‘तुम्हें ग़ज़ाली के कमरे का पता कैसे मालूम हुआ था?’’
‘‘कौन ग़ज़ाली?’’ इमरान ने आँखें फाड़ कर हैरत से पूछा।
‘‘इससे काम नहीं चलेगा। मैं तुम्हें दफ़्तर में तलब कर लूँगा।’’
‘‘और शायद उस दफ़्तर में वह तुम्हारा आख़िरी दिन होगा....’’ इमरान च्यूइंगम चबाता हुआ बोला।
फ़ैयाज़ कुछ देर ख़ामोशी से इमरान को घूरता रहा। फिर उसने कहा। ‘‘आख़िर तुम चाहते क्या हो?’’
‘‘मरने के बाद सिर्फ़ दो गज़ ज़मीन।’’ इमरान ठण्डी साँस ले कर मायूसी में बोला। ‘‘हाथी नहीं चाहता, घोड़ा नहीं चाहता....महल और मोहल्ला नहीं चाहता।
‘‘ये ज़िन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे।
अफ़सोस हम न होंगे, अफ़सोस हम न होंगे।।’’
शेर पढ़ने के बाद इमरान ने एक बड़ी लम्बी आह भरी....और ख़ामोश हो गया....
रूशी चाय की ट्रे लिये हुए कमरे में दाख़िल हुई। फ़ैयाज़ ख़ूँख़ार नज़रों से इमरान को देख रहा था....लेकिन रूशी को देखते ही उसकी मदद करने के लिए खड़ा हो गया। छोटी मेज़ खींच कर बीच में रखी और रूशी के हाथों से ट्रे ले कर उस पर रखने लगा।
‘‘इसे अपना ही घर समझो!’’ इमरान आँखें बन्द करके सिर हिलाने लगा। चाय के दौरान ज़्यादातर ख़ामोशी ही रही....फ़ैयाज़ और रूशी ने दो-एक रस्मी बातें कीं।
चाय ख़त्म करने के बाद फ़ैयाज़ ने सिगरेट सुलगाया और उसका मूड अचानक बदल गया। वह अच्छी तरह जानता था कि इमरान उसे ज़िन्दगी भर बातों में उड़ाता रहेगा।
‘‘हाँ! वह बात तो रह ही गयी!’’ फ़ैयाज़ मुस्कुरा कर बोला। ‘‘एक आर्टामोनॉफ़ का सुराग़ मिल गया है।’’
‘‘मिल गया न....हा-हा-हा।’’ इमरान पागलों की तरह हँसा। ‘‘मैं पहले ही जानता था कि मिल कर रहेगा।’’
‘‘एक हफ़्ता बीता यहाँ स्पेन की एक डांसिंग पार्टी आयी है। आर्टामोनॉफ़ उसी का एक मेम्बर है।’’
‘‘मगर आर्टामोनॉफ़ तो रूसी नाम है।’’ इमरान बोला।
‘‘क्या हुआ....स्पेन में रूस के बहुत-से लोग आबाद हैं।’’
‘‘हाँ ठीक है....!’’ इमरान कुछ सोचने लगा। फिर थोड़ी देर बाद बोला।
‘‘इसमें लड़कियाँ भी होंगी और एक स्पेशल डांसर तो यक़ीनन होगी।’’
‘‘यूरोप की मशहूर डांसर....मोरीना सलानियो!’’
‘‘मोरीना....मोरीना....सलानियो....!’’
इमरान ने रुक-रुक कर दोहराया। उसे अचानक याद आ गया कि ग़ज़ाली ने यही नाम लिया था। सौ फ़ीसदी यही।
‘‘प्लाज़ा....में प्रोग्राम हो रहे हैं। आज के ख़ास प्रोग्राम का नाम जहन्नुम की अप्सरा है....यह मोरीना का बहुत ही मशहूर डांस है.... यूरोप में उसे काफ़ी शोहरत हासिल हुई है.... वह आग में नाचती है।’’
इमरान कुछ न बोला। वह किसी गहरी सोच में था।
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