वजह तुम हो

समय की सबसे बुरी बात यही है कि समय सिर्फ आगे ही चलता है, पीछे नहीं जाता। हर कोई कभी न कभी यह ज़रुर सोचता होगा कि काश वक़्त कुछ पीछे चला जाए उन यादों में, जिन यादों को याद कर इंसान चेहरे पर एक मुस्कान ले आता है। वहाँ जाकर वह बहुत कुछ बदलना चाहता है, अपनी ग़लतियाँ सुधारना चाहता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है। समय अपनी रफ्तार से बस आगे बढ़ता रहता है। समय जिस तेज़ी के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा था, उसी तेज़ी के साथ वीर और माया का प्यार भी अपनी रफ़्तार पकड़ रहा था। बीच-बीच में दोनों के प्यार ने बहुत करवटें लीं, अनेकों ऐसी घटनाएं घटी, जिसके कारण उनके प्यार में बहुत उतार-चढ़ाव आए। इन्हीं उतार–चढ़ावों के कारण कभी उनका प्यार उनको गहरा महसूस करवाता था, तो कभी खोखला। लेकिन उनके प्यार की ख़ूबसूरती तो यही थी कि दोनों के रिलेशनशिप के बीच कितने ही उतार-चढ़ाव आए, किंतु उनके प्यार का प्रतिशत कभी नीचे नहीं गिरा।

तीन साल से वीर और माया का प्यार परवान चढ़ रहा था, लेकिन अब माया का बार-बार शादी की ज़िद करना ज़्यादा हो गया था।

“प्लीज़ तुम अपने घर पर बात करलो शादी के बारे में। नहीं तो बहुत दिक्कत हो जाएगी। मेरे घरवाले मेरे लिए लड़का देखने लग गए हैं। कहते हैं कि पढ़ाई पूरी होते ही शादी करवा देंगे, लेकिन मैं सिर्फ तुमसे शादी करना चाहती हूँ। तो तुम अपने घर पर बात कर लो।” माया ने चिन्ता ज़ाहिर की।

“मैं भी तो तुमसे शादी करना चाहता हूँ, लेकिन ये क्या बकवास है कि अभी लड़का देख रहे हैं? यार, अभी तुम उनको मना कर सकती हो कि अभी लड़का ना देखे। अभी हम शादी कैसे कर सकते है? न तो मेरे पास कोई नौकरी है और न ही अभी मेरी पढ़ाई पूरी हुई है। तो तुम बताओ कैसे होगा यह सब? और वैसे भी मेरे घर पर बताने से क्या होने वाला है? वो थोडे ना मेरी शादी की बात कर रहे है? तुम्हारे घरवाले शादी की बात कर रहे है तो तुम ही उनको समझाओ कि अभी तुम इसके लिए तैयार नहीं हो।” वीर ने कहा।

“लेकिन वो मान नहीं रहे हैं। मैंने तो उन्हे बहुत बार मना किया हैं। एक बार उन्होने मुझे तुमसे बात करते हुए सुन लिया था तो तबसे ही लड़के देख रहे हैं। कहते हैं कि लड़का अभी देखेंगे, तब जाकर कहीं कालेज ख़त्म होते ही शादी करेंगे। अब मैं उनको कैसे समझाऊँ? मुझे तो ख़ुद कुछ समझ नहीं आ रहा है।” माया ने कहा।

“अभी इतना टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है। लड़का देख रहे हैं, देखने दो। अब वो तो अपना काम करेंगे ही। अगर आगे बात बढ़ती है तो फिर देखते है कि क्या करना है? हम एक-दूसरे से प्यार करते है तो किसी से भी शादी कैसे करेंगे? तुम बिल्कुल भी टेंशन मत लो।” वीर ने कहा।

माया और वीर की चिन्ता भी जायज़ थी, लेकिन दोनों के अभी शादी न करना और घर पर नहीं बताना भी अभी समय के हिसाब से जायज़ था।

माया ने वीर को कॉल किया और कहा कि उसके भाई का नारनौल के Polytechnic college में कुछ काम है तो तुम उसे मिल जाना और उसकी मदद कर देना। माया ने अपने भाई को बता दिया था कि नारनौल में उसका एक फ्रेंड़ है तो वहाँ जाकर उसे कॉल कर लेना, वो तुम्हें कालेज ले जाएगा। माया का भाई जब नारनौल आया तब वीर उसे बस-स्टैंड पर मिला और वहाँ से दोनों बाइक पर कालेज गए। उसने वहाँ से एड़मिशन फार्म लिया और फिर वीर ने माया के भाई का सारा काम करवाकर उसे वापिस बस स्टैंड पर छोड़ दिया।

माया शादी को लेकर पहले कभी-कभी कहती थी, लेकिन अब उसका शादी की ज़िद करना हर दूसरे दिन का काम हो गया था। फ़ोन पर भी शादी की बातें, मिलकर भी शादी की बातें करना। माया और वीर की परेशानी साफ़ ज़ाहिर हो रही थी, लेकिन अभी घर पर शादी की बात करना बिना किसी आधार की बात थी। ऐसा नहीं था कि वीर माया से शादी नहीं करना चाहता था। वीर तो माया से इतना प्यार करता था कि वो उसके बिना रह ही नहीं सकता था, लेकिन दोनों की बार-बार शादी की बात को लेकर झगड़ा इतना बढ़ गया था कि दोनों ने कुछ दिनों तक बात तक नहीं की।

माया जब वीर को बार-बार फ़ोन करती तो वीर नाराज़गी के कारण उसका फ़ोन नहीं उठा रहा था। वीर को माया ने बहुत बार फ़ोन और मैसेज किए, लेकिन वीर की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला। माया को इनसिक्योरिटी ने घेर लिया था। माया ने फ़ैसला किया कि अगर वीर उसका फ़ोन का जवाब नहीं दे रहा है तो वह उसके घर जाकर ही बात करेगी। माया वीर के घर का पता नहीं जानती थी। वो तो बस उस घर का पता जानती थी जो वीर ने अजय का घर बताया था। वीर के बार-बार फ़ोन काटने के कारण माया को इतना गुस्सा आ रहा था कि वो वीर को बिना मैसेज किए अपनी एक फ्रेंड़ के साथ वीर के घर पर पहुँच गई। माया ने दरवाज़ा खटखटाया और जब दरवाज़ा खुला तो सामने वीर था। दोनों ही एक-दूसरे को देखकर स्तब्ध थे। वीर को इतना गुस्सा आ रहा था कि माया बिना बताए यहाँ क्यूँ आ गई और माया तो इतनी अचंभित थी कि वीर ने माया को अपने घर से संबंधित झूठ कहा कि यह घर अजय का है जबकि वो वीर का ही घर था।

जब माया घर के अन्दर गई तो वीर का पूरा परिवार वहीं मौजूद था और माया ने वीर की बहन को सारी बातें बता दी कि वे दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं और दोनों शादी करना चाहते हैं। माया के जाने के बाद वीर के घर पर स्यापा तो ज़रूर हुआ, लेकिन वीर ने जैसे-तैसे घर पर सँभाल लिया। वीर और माया की नाराज़गी अभी भी जारी थी। वीर माया से इसलिए नाराज़ था कि माया बिना कोई कारण और बिना बताए घर पर आ गई और माया वीर से इसलिए नाराज़ थी कि वीर ने उससे घर का झूठ बोला था।

इस नाराज़गी और दूरी को ख़त्म करने के लिए कुछ दिन बाद वीर ने माया को फ़ोन किया, लेकिन माया वीर से बहुत ज़्यादा नाराज़ थी तो उसने फ़ोन उठाया ही नहीं। तब वीर सीधा माया के कालेज पहुँच गया। वहाँ पहुँचकर वीर ने माया को मैसेज किया कि वह उससे मिलने के लिए उसके कालेज के बाहर खड़ा है। मैसेज पढ़ने के बाद माया ने वीर को कॉल किया कि वह कालेज के पीछे गार्डन मे आए। जब वीर गार्डन मे गया तो माया भी वहाँ आ गई थी। वीर और माया ने एक-दूसरे को देखा और उनकी नाराज़गी एकदम से गायब हो गई। दोनों एक-दूसरे से बहुत कुछ कहना चाहते थे, लेकिन वहाँ माया के कालेज के कुछ लोग आ-जा रहे थे। गार्डन के दाईं तरफ़ कोने में एक 6-7 फुट की आकृति बनी हुई थी, जिसके ऊपर से पानी नीचे बह रहा था। दोनों चुपके-से उसके पीछे चले गए। वहाँ उन दोनों को कोई नहीं देख सकता था।

वीर ने माया से घर के बारे में झूठ बोलने पर माफ़ी मांगी। माया वीर से नाराज जरुर थी, लेकिन वीर ने यहाँ आकर माफ़ी मांगी, इसलिए माया ने भी उसे माफ कर दिया था क्योंकि दूरी और नाराज़गी तो माया को भी मंजूर नहीं थी। दोनों की आँखों में प्यार साफ़ झलक रहा था। जब वीर माया के करीब गया तो उसने माया से कहा कि जब भी तुम मुझसे नाराज होती हो तो पता नही मुझे क्या हो जाता है? ऐसा लगता है कि तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी बेरंग हो गई है। जीवन के सारे रंग उड गए है और तुम जब भी मेरे करीब आती हो तो खुशबू में खुशबू घुल जाती है, पूरा वातावरण जैसे सुगंधित हो जाता है। तो देवी जी प्लीज़ मुझसे कभी भी इतना नाराज मत होना कि मेरी जिंदगी पूरी तरह से ही बेरंग हो जाए। माया ने वीर की बात सुनकर कहा कि अब मैं तुमसे कभी भी नाराज नही होऊंगी लेकिन तुम भी प्लीज़ मुझसे कभी भी झूठ मत बोलना। वीर ने हामी भरी। माया वीर के करीब आई और उसके कान में ‘आई लव यू’ कहा और दोनों एक-दूसरे से वहीं लिपट गए।

इंसान ऐसे एक पल के सहारे पूरी जिंदगी काट सकता है, जब उसको उसका प्यार गले लगाकर यह बता दे कि आप कितने ख़ूबसूरत है, कितने अलग हैं और कितने अच्छे हैं।

वीर की एक ग़लत आदत दोनों के रिलेशनशिप में जगज़ाहिर हो चुकी थी कि वीर का हाथ बार-बार माया के ऊपर उठ जाता था। माया की कोई भी छोटी-सी ग़लती हो जाने पर वीर माया को थप्पड़ लगा देता था। हालांकि ऐसा करने के बाद वीर को बहुत बुरा लगता था, मगर फिर भी वीर बार-बार अपना सन्तुलन खो देता था। गुस्सा आने पर वह यह भी ध्यान नहीं रखता था कि वो लोग किसी सार्वजनिक जगह पर मिल रहे हैं। बस, माया से छोटी-सी भी ग़लती हुई तो वीर का हाथ उठ जाता था। माया वीर को कई बार कहती भी थी कि यह तुम्हारी आदत बहुत ग़लत है। मैं तुम्हारी यह आदत इसलिए सहन करती हूँ क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। बस, फ़र्क यह है कि तुम गाल पर निशान देकर खुश हो और मैं जन्म भर की निशानी चाहती हूँ। ऐसी घटना घटने पर दोनों कुछ देर के लिए मौन हो जाते थे। ऐसा ही होता है, जब प्रेम की गंभीरता और गहराई बहुत ज़्यादा हो तो शब्द दुर्बल हो जाते हैं। इस प्यार की मज़बूती के कारण ही दोनों वीर की ग़लत आदत के बाद भी अब तक साथ थे। जीवन छोटा-सा है, परंतु वीर और माया का प्यार बहुत अधिक और गहरा था।

शायद वीर की इसी आदत को बदलने या वीर में बदलाव लाने के लिए एक दिन माया ने उसे गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ लाकर दी। वो यही चाहती होगी कि वीर अपनी इस आदत को बदले और किताब पढ़कर अपने अन्दर बदलाव लाए।

वीर के प्रैक्टिकल शुरु होने वाले थे। वीर ने माया को अपनी प्रैक्टिकल की नोटबुक दी और कहा कि दस दिन बाद मेरा प्रैक्टिकल है तो इसको तैयार कर देना। इन दस दिनों में हर रोज़ बात होने पर जब वीर नोटबुक के काम के बारे में पूछता तो माया यही कहती कि लिख रही हूँ। तुम्हारे प्रैक्टिकल से एक दिन पहले लिख कर दे दूँगी। वीर प्रैक्टिकल नोटबुक को लेकर निश्चित था कि नोटबुक माया लिख रही है और चार्ट वगैरह वीर ने अपनी किसी  फ्रैंड़ को बनाने के लिए दे दिए थे।

प्रैक्टिकल के एक दिन पहले वीर ने सुबह माया को नोटबुक लौटाने को कहा। माया ने वीर से कहा कि नोटबुक शाम तक शालू (माया की एक फ्रैंड़) के घर से ले लेना। शाम को जब वीर शालू के घर प्रैक्टिकल नोटबुक लेने गया तब उसने देखा कि नोटबुक पूरी ख़ाली है। उसमें कुछ भी नहीं लिखा गया था। वीर शालू के घर से तो वो नोटबुक ले आया था, लेकिन वह रास्ते भर यही सोचता रहा कि माया ने उससे झूठ क्यों बोला? अगर माया को लिखना नहीं था तो मना कर देती। वो तो रोज़ कहती थी कि प्रैक्टिकल लिख रही हूँ। उसने इतना बडा झूठ क्यों बोला? इसी झुँझलाहट में वीर ने माया को कॉल किया तो माया ने कहा कि उसे टाइम नहीं मिला, ‘सॉरी’। वीर आगे कुछ कह पाता, इससे पहले ही माया ने फ़ोन काट दिया। वीर इस घटना से बहुत आहत हुआ। माया का इस तरह का व्यवहार वीर ने पहली बार देखा था।

प्रैक्टिकल वाली बात को लेकर कुछ दिनों तक दोनों के बीच काफ़ी झगड़ा हुआ और अन्तत: नतीजा यह निकला कि दोनों ने बात करना ही बन्द कर दिया। माया लगातार वीर को फ़ोन कर रही थी, लेकिन वीर को माया का व्यवहार इतना बुरा लगा था कि वीर ने कुछ दिनों तक माया का फ़ोन उठाया ही नहीं। 

कुछ दिनों के लिए वीर रेवाड़ी में था। माया का फ़ोन लगातार आ रहा था तो आख़िरकार वीर ने माया का फ़ोन उठाया। दोनों प्रेमी युगल कब तक एक-दूसरे के बिना रह सकते थे? माया ने अपने इस झूठ को लेकर वीर से माफ़ी मांगी और वीर ने उसे कालेज बंक कर रेवाड़ी आने को कहा।

माया अगले दिन वीर से मिलने के लिए रेवाड़ी आ गई थी। दोनों कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे। माया वीर से अपनी ग़लती की माफ़ी मांग रही थी। वीर भी चाहता था कि अब इस बात को बहुत दिन बीत चुके है तो अब माया को माफ़ कर देना चाहिए। वीर ने माया की तरफ़ देखा और उसका हाथ पकड़कर अपने ऊपर खींच लिया। माया ने वीर को किस किया और कहा कि ‘सॉरी’, मेरी ग़लती थी और मुझे उसका पछतावा भी है। वीर ने भी माया को किस करके बता दिया कि उसने माया को माफ़ कर दिया है।

ऐसा ही होता है जिंदगी की राहें ज़्यादातर पछतावें से ही खुलती हैं और पछतावें का अहसास भी एक साथ पैदा नहीं होता है, उसमें समय का अन्तराल होता है।

समय तेज़ी से गुज़र रहा था। दोनों के रिलेशनशिप को चार साल से ज़्यादा हो गए थे। इन चार सालों में कभी लड़ाई-झगड़े हुए, तो कभी प्यार हुआ, कभी नाराज़गी रही तो कभी-कभी कुछ दिनों की जुदाई भी दोनों को सहन करनी पड़ी, लेकिन प्यार कभी भी लेशमात्र कम नहीं हुआ। वीर अपनी स्नातकोत्तर पूरी कर चुका था और माया फाइनल ईयर में थी। आदि भी अपने आगे की पढ़ाई के लिए जयपुर चला गया था। नीलेश भी स्नातकोत्तर के लिए जयपुर में ही था। माधवी भी अपनी कालेज की पढाई में व्यस्त थी और माधवी के घरवालों ने उसकी शादी के लिए लड़का पसन्द कर लिया था। अजय ने अपने पिता का काम सँभाल लिया था, लेकिन उसकी मस्ती हमेशा चालू रहती थी। दाऊद का शिखा की स्नातकपूरी होने के बाद कुछ पता नहीं चला। उसने अपना मोबाइल नम्बर तक बदल लिया था। वीर भी आगे की तैयारी के लिए दिल्ली चला गया था। सभी अपने-अपने रास्ते हो लिए थे। 

वीर और माया का भी यहाँ पर बुरा दौर चल रहा था। दोनों की लडाइयाँ बहुत ज़्यादा होने लगी थीं। वीर और माया के बीच काफ़ी दूरी हो गई थी, लेकिन फिर भी उनके एक-दूसरे के जितना करीब कोई नही था।