गुलाबलाल का छोटा-सा किंतु बेहद खूबसूरत महल । महल में गुलाबलाल की पांच पत्नियां रहती थी । पांचो एक से एक जवान और खूबसूरत । छः औलांदे थी, जिनमें चार लड़कियां और दो लड़के थे।


गुलाबलाल की एक बेटी शोभा अपने शयनकक्ष में जगमोहन से टांगे दबवा रही थी । शरीर पर छोटा-सा कपड़ा लपेट रखा था, जोकि पूरी तरह नाकाफी था । उस पर भी वो रहरहकर उसे कह रही थी ।


"एक ही जगह टांगे दबाते रहोगे। हाथों को थोड़ा ऊपर ले जाओ।"


"ऊपर कपड़ा है।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा ।


"उसे थोड़ा और ऊपर कर लो।"


"थोड़ा कितना ?"


"जितना तुम ऊपर करना चाहो ।" शोभा मुस्कुराई ।


"तुम्हारे मां-बाप भाई या कोई और ऊपर से आ गया तो ?"


"तुम मेरे सेवक हो और सेवक से मैं कोई भी काम ले सकती हूं । इस बात की तुम फिक्र मत करो और कपड़ा और ऊपर सरका दो। मैंने तुम्हें पूरी छूट दी ।" शोभा के खूबसूरत चेहरे पर मुस्कान उभरी।


"पूरी छूट। "


"हां।"


"ये पूरी छूट की हद कहां जाकर समाप्त होती है ?"


"इसकी इच्छा तुम पर है । "


जगमोहन ने गहरी सांस ली और कपड़ा थोड़ा और ऊपर सरका कर टांग का ऊपरी हिस्सा दबाने लगा ।


शोभा मुस्कुराती हुई उसे देख रही थी ।


"सब मनुष्यों में से तुम मुझे सर्वश्रेष्ठ लगे ।" उसके मोतियों जैसे दांत चमके ।


"क्यों मेरे में तुमने क्या खूबी देखी ?"


"जो देखी, तुममें ही देखी । वरना आज से पहले, सेवक के लिए कभी ऐसे भाव नहीं आए, जो भाव तुम्हें देखकर हमारे मन में आए हैं।" शोभा का स्वर प्यार भरा था ।


"कैसे भाव ?"


"हमारी इच्छा कर रही है कि हम तुमसे ब्याह कर लें । "


"ब्याह ।" जगमोहन जल्दी से बोला--- "क्या पागलों वाली बातें कर रही हो । मत भूलो मैं मनुष्य हूं और। मेरे शरीर से मनुष्यों की गंध आती है। ऐसे मनुष्य इंसान के साथ तुम कैसे ब्याह कर सकती हो ?"


"सफेद पानी के तालाब में हम तुम्हें नहला देंगे । तब तुम्हारे शरीर से उठने वाली मनुष्यों की महक का एहसास किसी को नहीं होगा ।" शोभा ने जैसे फैसला लेते हुए कहा ।


"सफेद पानी का तालाब ?"


"हां । जब देखोगे तो सब समझ जाओगे । "


"देखो ।" जगमोहन समझाने वाले स्वर में कह उठा--- "पृथ्वी पर मेरी दस पत्नियां हैं । चौबीस मेरे बच्चे हैं। ऐसे में मैं ब्याह कैसे कर सकता हूं। मुझे उनकी जिम्मेदारी पूरी करनी है। और...।"


"बेकार की बात मत करो । मेरे आठ पति हैं फिर मैं नौवीं शादी करने जा रही हूं तुम्हारे साथ ।"


"आठ पति ?" जगमोहन ने अजीब निगाहों से उसे देखा।


"हैरान क्यों हो गए, मेरी एक बहन के तो सोलह पति हैं। बहुत खूबसूरत हैं वो ।"


"सोलह पति ?" जगमोहन टांग दबाना छोड़कर, उसे देखने लगा।


"हमारी सेवा करते रहो । "


जगमोहन पुनः टांग दबाने लगा ।


"चाहो तो कपड़ा और ऊपर सरका लो ।"


"नहीं।" इतना ही बहुत है । वो तुम्हारे आठ पति कहां हैं ?" जगमोहन ने अजीब से लहजे में पूछा ।


"वो हमारे खेतों में काम कर रहे हैं । "


"खेतों में ?" जगमोहन के होंठ सिकुड़े।


"हां । हम चारों बहनों के अड़तालीस पति हैं । उनके हवाले कोई काम तो करना है । खेत उनके हवाले कर दिए कि वे उनकी देखभाल ठीक करें । कुछ हो तिलस्म की पहरेदारी पर लगा रखा है।


"तो अब तुम्हारे पास नहीं आते ?"


"मेरे पास क्या करने आएंगे ? कभी जरूरत होती है तो एक को बुला लेती हूं।" 


"मतलब कि अब तो मुझे भी खेतों में काम पर लगाने का प्रोग्राम बना रही हो ।" जगमोहन ने व्यंग से कहा ।


"ऐसा मत कहो, तुम्हें तो मैं अपने दिल में बिठाऊंगी ।" शोभा ने प्यार से कहा ।


"ये शब्द तुमने उन आठ पतियों से भी कहे होंगे, शादी करने से पहले ?" 


"हां । तो क्या हो गया, तब वो मेरे पति बनने वाले थे ।" 


"ठीक कहती हो।" जगमोहन व्यंग से कह उठा--- "पति पालना तुम्हारा पुराना काम है।" 


"हाथ और ऊपर कर लो । कपड़ा और ऊपर कर लो।" 


"वहाँ तुम्हारी टांग नहीं । कुछ और है।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा । 


"जानती हूं। मैं तुम्हें ब्याह से पहले ही सारे अधिकार दे देना चाहती हूं ।" शोभा मुस्कुराई । 


"सारे अधिकार ? आठ पतियों के बाद तुम्हारे पास कौन सा अधिकार बाकी बचा है । "


शोभा ने जगमोहन को देखा। 


"क्या मैं खूबसूरत नहीं हूं ? "


"हो ।" 


"जवान नहीं हूं।"


"हो।"


"मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती ?"


"लगती हो।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।


"तुम मुझे प्यार नहीं करते ?"


"प्यार ? मैं तो तुम्हारा सेवक हूं। क्या सेवक को प्यार करने का हक होता है ?"


"वो हक मैंने तुम्हें दिया । उतारो मेरा कपड़ा और...।"


तभी महाजन ने भीतर प्रवेश किया । उसके एक हाथ में बोतल थी, जिसमें उसने भीतर प्रवेश करते ही घूंट भरा और दूसरा हाथ में ट्रे थी, जिसमें चाय के साथ खाने का सामान मौजूद था ।


"सेवक, आपकी चाय लेकर हाजिर है ।" कहते हुए महाजन की निगाह उसके बिना कपड़े के शरीर पर जा टिकी ।


"कपड़ा नीचे करो ।" शोभा ने कहा--- "हम नहीं चाहते कि हमारी खूबसूरती सेवकों के सामने यूं जगजाहिर हो ।"


"मैं आंखें बंद कर लेता हूं।" कहने के साथ ही महाजन ने आंख बंद कर ली।


जगमोहन ने कपड़ा नीचे करके शोभा की टांगे ढांपी और उठ खड़ा हुआ । 


"बैठ जाओ । हमारे साथ चाय पियो ।" 


जगमोहन से कहने के पश्चात शोभा ने महाजन को देखा--- "चाय बनाओ ।"


महाजन ने बोतल को पैंट में फंसाया और आगे बढ़कर टेबल पर ट्रे रखी और चाय बनाने लगा । इस दौरान उसने जगमोहन को देखा । जिसके चेहरे पर ऐसे भाव थे कि वो कहां आ फंसा है।


"शोभा जी । महाजन बोला--- "सेवक एक बात पूछना चाहता है ।"


"पूछो।"


"आपकी टांगों में दर्द रहता है क्या ?"


"नहीं । लेकिन ये सवाल तुमने क्यों पूछा ?"


"इसलिए कि जब भी मैं आपकी सेवा में, कोई सामान लेकर आता हूं, तो ये सेवक आपका कपड़ा ऊपर करके आपकी टांगों को दबाता रहता है। वैसे मैं मसाज करने में बहुत एक्सपर्ट हूं । आप मुझे चार घंटों के लिए मौका दें तो मैं आपकी टांगों की तकलीफ हमेशा के लिए दूर कर दूंगा ।" महाजन मीठे स्वर में बोला। 


जगमोहन मन ही मन मुस्कुराया।


"तुम्हें जो सेवा दी गई है, वो पूरी करो । मेरे मामले में दखल मत दो।" शोभा ने तीखे स्वर में कहा ।


"जो हुक्म ।" महाजन ने सिर हिलाया--- "मैं तो यूं ही सलाह दे रहा था ।" कहने के साथ ही महाजन ने दो जगह चाय बनाई और शोभा के साथ एक प्याला जगमोहन को भी थमा दिया ।


"खाने की प्लेट लेकर खड़े हो जाओ । ये हमारे हाथ से दूर पड़ती है ।" शोभा बोली ।


महाजन ने खाने की प्लेट पकड़ी और पास आकर खड़ा हो गया ।


जगमोहन और महाजन की निगाहें मिली। लेकिन वे खामोश रहे ।


"तुम हमारे साथ प्यार के रस से भरी बातें करो।" शोभा ने प्यार से जगमोहन को देखा। 


"प्यार की रस वाली बातें ? " जगमोहन सकपकाया --- 

"ऐसी बातें तो कभी मैंने किसी से भी नहीं की।"


"कोई बात नहीं । तुम हमसे करो । हम तुम्हें सब कुछ सिखा-समझा देंगे।"


जगमोहन ने सकपकाकर महाजन को देखा।


महाजन ने पैंट में फंसी बोतल निकाली और घूंट भरा और बोतल वापस फंसा ली।


"अंम तो बोत एक्सपर्ट हौवे प्यार-मोहब्बत की बातों करनों में ।" दरवाजे से भीतर प्रवेश करता बांकेलाल राठौर कह उठा । उसके हाथ में झाड़ू था--- "म्हारी वो हौवे ना गुरुदासपुरो वाली, उसको साथ तो मन्ने प्यार की पींगे बोत लंबी-लंबी बढ़ायो थी । तम म्हारे साथ प्यारो वालो बातें करो । अंम तो गले में बांहों डाले झूमो थारो संग ।"


तीनों की निगाह बांकेलाल राठौर पर गई ।


बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा और दोनों के देखने के बाद, शोभा पर निगाहें जा टिकी ।


"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, हमारी बातों में दखल देने की।" शोभा का चेहरा गुस्से से भर उठा--- "तुम्हारा काम झाडू-सफाई करना है । वो ही करो।"


"अंम थारी बंधुआ मजदूरों न हौवे । म्हारे को फंसाकर, झाड़ों म्हारे हाथ में दे दयो हो । जबो म्हारा बढ़िया वक्त आयो तो इसो झाड़ो से सबको 'वड' दूंगा ।" बांकेलाल राठौर की आंखों में गुस्सा झलका ।


"तुम्हारी ये हिम्मत ।" शोभा क्रोध से भड़क उठी--- "तुम हमारी जान लेने को कह रहे हो। अगर तुम मनुष्य नहीं होते तो मैंने अब तक तुम्हारी जान ले लेनी होती । फिर भी हम तुम्हें माफ नहीं करेंगे । मैं अभी तुम्हें तिलस्म में भेजने का प्रबंध कराती हूं, जहां तुम खुद ही भटककर मर...।"


"प्यारी ।" तभी जगमोहन मीठे स्वर में कह उठा ।


शोभा ने तमतमाते चेहरे से, जगमोहन को देखा ।


"इसे माफ कर दो।"


"नहीं। मैं इसे...।"


"मैं तुम्हारा पति बनने वाला हूं । है ना ?" जगमोहन की आवाज में मीठापन था--- "जब तक ब्याह नहीं हो जाता, कम से कम तब तक तो मेरा कहना मान लो । माफ कर दो इसे ।" शोभा के चेहरे पर तनाव कुछ कम हुआ ।


"तुम कहते हो तो कर देती हूं।" शोभा ने चाय का घूंट भरा । जगमोहन ने बांकेलाल राठौर के गुस्से से भरे चेहरे को देखा । 


"बांके । अपना काम करो ।" जगमोहन की आवाज में इशारा था । 


बांकेलाल राठौर गुस्से से भरे ढंग से कमरे में झाड़ू देते हुए बड़बड़ाया ।


"यां तो म्हारी बुरो गत बनो हो । अंम झाड़ू लगायो । म्हारी गुरदासपुरो वाली को पता लगे तो वो आत्महत्यो ही कर लयो ।"


जगमोहन ने शोभा को देखा तो शोभा मुस्कुराई


"प्यार के रस से भरी बातें करो ना ?"


तभी शोभा जैसी ही खूबसूरत लड़की ने भीतर प्रवेश किया।


"बहना ! वो जल्दी से बोली--- "बाबा आए हैं।" कहने के साथ ही वो बाहर निकल गई ।


"बाबा।" शोभा हड़बड़ाकर जल्दी से बेड से उतरी और चाय का प्याला रखते हुए जल्दी से बोली--- "तुम सब यहां से निकल जाओ । बाबा तुम लोगों को मेरे कमरे में देखकर गुस्सा करेंगे । जाओ, मुझे कपड़े पहनने हैं।"


"बाबा ?" जगमोहन के होठों से निकला ।


"हां, मेरे पिता । कई महीनों बाद वो घर लौटे हैं। जाओ मैं...।"


"लेकिन वो प्यार के रस वाली बातें...।"


"बाद में, इस समय सब निकलो।"


******


वो रूस्तम राव ही था, जो महल के बगीचे में माली का काम कर रहा था । उसके कपड़े मैले हो रहे थे । वैसे वो नहाया-धोया हुआ था । पांवो में जूते नहीं थे । फूलों की, क्यारी की तब वो मिट्टी खोद रहा था, जब उसके पास तीस बरस की खूबसूरत युवती पहुंची ।


रूस्तम राव की नीली आंखें उस पर जा टिकी ।


वो मुस्कुराई ।


"क्या बात होएला बाप ?" रुस्तम राव बोला ।


"तुम बहुत खूबसूरत हो ।" उसने शौक स्वर में कहा ।


रूस्तम राव ने उसे सिर से पांव तक देखा । उसने तंग-सा चोली-घाघरा पहन रखा था ।


उसके अंग बाहूर को झलक रहे थे । निसंदेह वो निहायत खूबसूरत थी । कलाइयों और गले में कीमती गहने पड़े नजर आ रहे थे। उसके मुस्कुराने से दांत मोतियों की तरह चमक उठते थे ।


रुस्तम राव पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया। 


"तुमने सुना नहीं।" वो पहले वाले लहजे में कह उठी --- "तुम बहुत खूबसूरत हो ।" 


"तो आपुन क्या अब अपने थोबड़े पर मिट्टी लगाइले बाप।" रूस्तम राव ने उसे देखा । वो हंसी ।


"मेरा दिल तुम पर आ गया है ।"


"तो क्या आफत होएला ।"


"मुझसे ब्याह करोगे ?"


"ब्याह ?" रुस्तम राव ने आंखें सिकोड़कर उसे देखा ।


"हां । तुम्हें ये काम करते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता। तुम जैसे खूबसूरत युवक को मेरे कक्ष में, मेरे आलिंगन में होना चाहिए। बहुत अच्छा लगेगा तुम्हें और... "

 

"बाप ।" रुस्तम राव ने बुरा-सा मुंह बनाया--- "क्यों भगवान के सिंहासन को हिलाएला । आपुन तेरे बच्चे के बराबर होएला और तुम आपुन से शादी मनाने को बोएला।"


वो पुनः हंस पड़ी ।


"तुम बच्चे नहीं हो । मैं तुम्हें एक ही रात में पूरा मर्द बना दूंगी। हां कर दो ब्याह के लिए।" 


"तेरे को शादी के वास्ते कोई मर्द नहीं मिला क्या, जो बच्चे के साथ तू शादी करेला ।"


"ब्याह तो मैंने बहुत कर रखे हैं। जब भी कोई दिल को भा जाता है तो फिर ब्याह कर लेती हूं । अब तुम आ गए । यहां से उठो । आज से तुम सेवकों का काम नहीं करोगे । नहा-धोकर बढ़िया कपड़े पहनो । उसके बाद मैं तुम्हें अपने कक्ष में ले जाकर ब्याह का सुख दूंगी । ऐसा सुख तुम्हें पहले कभी नहीं मिला होगा।"


"पहले क्या और बाद में क्या । आपुन तो अभी बच्चा होएला और बोत सुखी होएला । आपुन को नया सुख नेई लेना बाप । तू तो खिसकेला यहां से ।" रूस्तम राव ने तीखे स्वर में कहा ।


युवती की आंखें सिकुड़ी।


"तुम मुझसे ब्याह करने को इंकार कर रहे हो ।"


"आपुन बच्चा होएला ।" तभी रुस्तम राव की निगाहें बांकेलाल राठौर पर पड़ी, जो झाड़ू लगाता हुआ,मेन दरवाजे से बाहर आ रहा था--- "तेरे को शादी बनाएला तो उससे मनाएला । वो बोत जवान होएला ।"


युवती ने एक निगाह बांकेलाल राठौर पर मारी फिर रुस्तमराव को देखा । ने


"मैं तुमसे शादी करने को कह रही हूं।"


"आपुन माफी मांगेला है । आपुन अभ्भी बच्चा होएला ।"


"मैंने बोला तो, मैं तुम्हें एक रात में ही जवां मर्द बना दूंगी। मैं तुम्हें...।"


"खिसकेला बाप । आपुन को शादी नेई करनी।"


"तुम मुझे इंकार कर रहे हो ।" वो गुस्से से भर उठी ।


"हां । करेला बाप ।"


"मेरे बाबा तिलस्म के रखवाले हैं । गुलाबलाल नाम है उनका । उनसे कह कर मैं तुम्हें तिलस्म में भिजवा दूंगी।"


"जो मर्जी करेला बाप, पण आपुन शादी नेई करेला । पैंट का जिप नीचे नेई होएला आपुन की।"


"तुम्हारी ये हिम्मत । देखना, अब मैं तुम्हें कैसी कठोर सजा दिलवाऊंगी ।" वो तड़पकर कह उठी--- "शाम तक सोच लेना । वरना सजा भुगतने के लिए तैयार रहना ।" कहने के साथ ही वो पलटी और पांव पटकती हुई महल के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गई । रुस्तम राव होंठ सिकोड़कर उसे देखता रहा ।


"ओ छोरे ।" बांकेलाल राठौर पास आता कह उठा--- "का कर रहो हो । वो खूबसूरत थारे को पागल कर गई का ?" । 


"बाप । वो बोएला मेरे से ब्याह कर ।"


"ब्याह थारो से ?"


"हां ।" रुस्तम राव मुस्कुराया ।


"थारो दिन तो अभ्भी दूध पीने के हौवे ।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंचा- "थारे को चाहिए था कि यो रिश्ता म्हारी तरफ सरका दियो तो मामलों जमो गयो हौवो।" 


"आपुन तेरी तारीफ किएला बाप । पण वो बोएली कि उसे बाप से नहीं, म्हारे से ब्याह रचाएला है।" रूस्तम राव बराबर मुस्कुरा रहा था ।


बांकेलाल राठौर बोला ।


"छोरे, तू म्हारे से मजाक करो हो ।" 


रुस्तम राव कुछ न कहकर, आसपास देखने लगा ।


"बाप ।" रुस्तम राव का स्वर गंभीर था--- "या से छुटकारा कैसे मिएला?"


"छोरे ।" बांकेलाल राठौर भी गंभीर था--- "अंम सबो यां बोत बुरो फंसो हो । अंमको भी ये मालूम न हौवे कि पाताल में अंम किधर को हौवे हो । यां से निकल भी गए तो फिर फंसो । म्हारी तो इज्जतो ही माटी में मिलो हो । तू ही बतायो, यो म्हारी उम्र हौवे झाड़ू लगानो की ।"


रुस्तम राव के दांत भिंच गए ।


"लेकिन बाप, आपुन तो यहां से निकलना मंगता ।"


"भाग जा छोरे । थारी किसो ने बांह तो न पकड़ो हो ।" "किधर को भागेला बाप ?"


"येई तो अंम कहतो हो । कुछ भी समझ में न आयो । मालूम होवे तो अंम का झाड़ू पकड़ो के यां खड़ो हौवो ?"


"देवराज चौहान की भी कोई खबर नेई होएला ।" रूस्तम राव के चेहरे पर कठोरता नजर आने लगी--- "आपुन ये सब ज्यादा देर नेई चलने देएला बाप । आपुन कुछ कहता मांगता |"


"खोपड़ी में कुछो हो तो म्हारे को बतायो । अंम थारे साथ...।"


तभी उनके कानों में घोड़े की टापें पड़ी और देखते-देखते, विशाल खुले गेट से दो घोड़ो वाली, घोड़ा गाड़ी धड़धड़ाते हुए भीतर प्रवेश करती आई ।


घोड़ागाड़ी को खींचने वाले दोनों काले घोड़े बेहद स्वस्थ, लंबे-चौड़े थे। उनके काले शरीर के बाल इस तरह चमक रहे थे, जैसे हाल ही में उनके शरीर की मालिश की गई हो।


और वो घोड़ागाड़ी किसी से कम नहीं थी । उसकी छोटी-सी बग्गी सोने की बनी हुई थी, जो धूप में चमक रही थी । शहनील के पर्दे झूल रहे थे। उतरने के लिए दोनों तरफ छोटा-सा दरवाजा और दो सीढ़ियां थी, वो भी सोने की थी ।


उस महल के मुख्य द्वार के सामने घोड़ागाड़ी के रुकते ही, महल के भीतर से नौकरनौकरानियां दौड़ते हुए आये और स्वागत की मुद्रा में खड़े हो गए। इसके साथ ही भीतर से चालीस बरस का व्यक्ति निकला और पास पहुंचकर उसने बग्गी का पर्दा हटाया और छोटा-सा दरवाजा खोलकर, अदब से खड़ा हो गया ।


देखते ही देखते गुलाबलाल नीचे उतरा ।


"महल में आपका स्वागत है मालिक ।" उस व्यक्ति ने गुलाबलाल से कहा।


"सब ठीक है, डोरीलाल ?" गुलाबलाल ने पूछा ।


"जी मालिक " कहने के साथ ही डोरीलाल ने बग्गी वाले से कहा--- "बग्गी आगे ले जाओ


"उसी पल घोड़े हिले और बग्गी आगे बढ़ती चली गई ।


"भीतर चलिए मालिक ।"


गुलाबलाल पहले ही भीतर जाने के लिए कदम उठा चुका था । परंतु दो कदम उठाते ही ठिठका और पलटकर, महल के बाग के उस हिस्से की तरफ देखने लगा, जहां बांके लाल राठौर और रुस्तम राव खड़े थे और वे भी इधर ही देख रहे थे ।


"छोरे ये कौन हौवे ?" बांकेलाल राठौर का हाथ अपनी मूंछ पर पहुंचा। दूसरे हाथ में झाड़ू था।


"वो जो आपुन से शादी के वास्ते बोली थी, ये उसी का बाप होएला । वो बोली थी कि उसका बाप आने वाला है। बाप को गुलाबलाल कहेएली थी वो ।"


"गुलाबलाल ?" बांकेलाल राठौर बड़बड़ा उठा ।


"ये आपुन को क्यों देखेला हैं ?"


"म्हारे को ताड़ रिया होगा । म्हारी मूंछे इसको, जंच गई लगो हो"


"बाप ।" रुस्तम राव के चेहरे पर गंभीरता थी आपुन को लगेएला कि इसे पैले भी कहीं पर देखेला है । ये बात पक्का बोएला है ।"


"छोरे । तंम इसो को पैली बार देखो हो और बोलो भी इसो को देखो हो ।"


"मालूम नेई बाप । पण आपुन ठीक बोएला कि इसे पैले भी देखेला है ।" रुस्तम राव के माथे पर बल नजर आने लगे थे--- "और ये आज भी पक्का होएला कि इसे इस जन्म मैं तो पहली बार ही देखेला है।"


"म्हारे को लगो की तंम का दिमाग फिरो हो ।"


रूस्तम राव की निगाहें, बराबर गुलाबलाल पर ही टिकी रही । 


गुलाबलाल बोला ।


"डोरीलाल । वो दोनों कौन है ?"


"सेवक हैं । ये वो मनुष्य हैं, जो पृथ्वी से आये हैं, परंतु हमारे पहरेदारों ने इन्हें कैद कर के यहां भेज दिया और मैंने इन्हें सेवक के काम पर लगाकर व्यस्त कर दिया ।" डोरीलाल ने कहा ।


"इन्हें पास बुलाओ।"


डोरीलाल ने ऊंचे स्वर में पुकारकर, दोनों को पास आने को कहा ।


"छोरे बुलावा आयो, आ।" 


"दोनों उस तरफ बढ़ने लगे ।


उनके कुछ पास आने पर गुलाबलाल ने जब उनके चेहरे को स्पष्ट रूप से देखा तो चेहरे पर हैरानी छाती चली गई। आंखों में अविश्वास के भाव उछलने लगे ।


बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव करीब आकर ठिठक गए। 


"भंवर सिंह ?" गुलाबलाल बांकेलाल राठौर पर निगाहें टिकाए, हैरानी की हालत में खड़ा था।


बांकेलाल राठौर ने आसपास देखा फिर गुलाबलाल से कहा। 


"तंम म्हारे से बोलो हो ?" 


"हां-हां भंवर सिंह मैं...| " 


"अंम भंवर सिंह ना ही हौवे । अंम बांकेलाल राठौर हौवे । अभ्भी तू म्हारे को जानो ना।" 


"तुम-तुम भी वापस आ गए भंवर सिंह ?" गुलाब लाल की हालत वैसी ही थी । 


"म्हारे को फिर बोलो हो, भंवर सिंह । थारी बुद्धि तो ठिकाने पर हौवे के ना ही।" 


गुलाबलाल की नजरें रूस्तम राव पर जा टिकी । इस  दौरान उसकी आंखें और फैल चुकी थी।


"त्रिवेणी-त-तुम भी आ गए। तुम दोनों एक साथ यहां...।" 


जाने क्यों रूस्तम राव की आंखों में तीव्र चमक लहरा उठी। 


"तुम दोनों को फिर सामने देखकर मैं पागल हो गया हूं।" गुलाबलाल अजीब से लहजे में कह उठा ।


डोरीलाल हैरानी से गुलाब लाल को देख रहा था ।


"और कौन-कौन लोग हैं तुम्हारे साथ या फिर तुम दोनों ही हो ?"


"छोरे । म्हारे को तो लगो, इसो की खोपड़ी तो गयो कामों से । यां कोई पागलखाना भी हौवे या नेई । वैसी म्हारी जान-पहचान बरेली के पागलखाने में हौवे । इसो को वोई भरती करा देवेंगे।"


जबकि रूस्तम राव की चमकदार निगाह गुलाबलाल पर थी ।


"बाप ।" रूस्तम राव के होठों से निकला--- "आपुन इसे पहचानेला ।" 


"का बोले तंम ।"


रूस्तम राव, गुलाब लाल को देखता रहा ।


जबकि गुलाबलाल कह उठा ।


"तुमने यहां आकर बहुत बड़ी गलती की है । कालूराम को तुमने बुरी मौत दी थी । उसका पिता पेशीराम अभी भी जिंदा है और कई शक्तियों का मालिक है। वो तुमसे अपने बेटे की मौत का बदला अवश्य लेगा । बेशक आज तो मनुष्य हो, लेकिन वो तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेगा । ।"


"पेशीराम मुझे कुछ नहीं कहेगा ।" बरबस ही रुस्तम राव के होठों से निकला।


"क्यों ?" गुलाबलाल की आंखें सिकुड़ी ।


"कालूराम को मारने के पीछे, पेशीराम की मुक सहमति थी, बेशक वो पेशीराम का बेटा था । लेकिन वो खुद भी अपने बेटे की हरकतों से तंग आ चुका था । अगर उस वक्त कालूराम को न मारता तो बहुत बड़ा विनाश कर देता। उसे मेरे ही हाथों मरना था और मेरे ही हाथों मरा ।" रूस्तम राव खुद नहीं जानता था कि ये शब्द उसके होठों से क्यों निकल रहे हैं। वो स्वयं भी हैरान था ।


जबकि बांकेलाल राठौर रुस्तमराव के इन शब्दों पर हक्का-बक्का था । 



"छोरे, थारे को भी बरेली के पागलखाने में जगहों चाहियो का । लगा दूं सिफारिश।" रुस्तम राव ने परेशान सी निगाहों से बांकेलाल राठौर को देखा फिर गुलाबलाल को। 


"तुम इतने बड़े महल के मालिक कैसे बन गए गुलाबलाल ?" रुस्तम राव होठों से निकला । 


गुलाबलाल चौंका । चेहरे पर कुछ घबराहट सी उभरी । 


"तुम्हें- तुम्हें सब याद है ?"


तभी रुस्तम राव को लगा कोई तीव्र हवा उसके बालों को छूती, सरसरा कर निकली हो । इसके साथ ही रुस्तम राव को लगा कि वह कहीं दूर चला गया, लेकिन अब वापस आ गया है।


"इसका मतलब तुम्हें याद है ।" गुलाबलाल की आंखें सिकुड़ चुकी थी।


"आपुन को याद नेई होएला बाप ।" रुस्तम राव ने कहा--- "जो बोला मालूम नेई, आपुन के मुंह से कैसे वो निकेला ?" चेहरे पर उलझन सी नजर आने लगी थी।


गुलाबलाल देर तक रूस्तम राव को देखता रहा ।


"म्हारे छोरे को तू अंखियों ही अंखियों में खावेगा का ?" 


"इसका मतलब बीते जन्म की बातें कभी-कभार तुम्हारे दिमाग में उछलती हैं ।" गुलाबलाल कह उठा--- "इस धरती पर पहुंचकर ऐसा हुआ होगा।" रूस्तम राव खुद उलझन में था।


"कुछ याद आएला बाप ।"


"त्रिवेणी ।" गुलाबलाल की आवाज अब पहले जैसी हो गई --- "तेरे को पेशीराम के हवाले करुंगा । वो ही तेरे से अपने बेटे कालूराम की मौत का बदला लेगा । वो ही तेरे को मौत देगा।"


रुस्तम राव की निगाह बांकेलाल राठौर पर गई । बांकेलाल राठौर सिकुड़ी आंखों से बारीबारी दोनों को देख रहा था । चेहरे पर सोच और गंभीरता थी।


जबकि रुस्तम राव के कानों में फकीर बाबा के कहे शब्द गूंज रहे थे कि पहले जन्म में भी तूने कालूराम को मारा था, जबकि वो मेरा बेटा था । लेकिन मुझे उसकी मौत का कोई दुख नहीं । जो कर्म कर रहा था, उसे मरना ही था और इस जन्म में भी कालूराम को तूने ही मारा । तू जितना छोटा है, उतना ही खतरनाक है । यह जाने के लिए पढ़े, अनिल मोहन की पूर्व प्रकाशित दो उपन्यास (1) हमला (2) जालिम । तो क्या फकीर बाबा ही पेशीराम है ? यह सोच बार-बार रुस्तम राव के मस्तिक से टकराने लगी।


गुलाबलाल ने बांकेलाल राठौर को देखा।


"भंवर सिंह । तेरे से बात करना फिजूल है। क्योंकि तेरे को कुछ भी याद नहीं ।" 


"म्हारे को याद करने की जरूरतों भी न पड़ो हो ।" कहने की साथ बांकेलाल राठौर ने हाथ में पकड़ा झाड़ू हिलाया--- "म्हारे को थारा थोबड़ा ही पसंद ना आयो।"


"मालिक से तमीज से बात करो।" डोरीलाल क्रोधित स्वर में कह उठा ।


"डोरीलाल ।" गुलाबलाल ने हाथ उठाकर कहा--- "इन्हें कुछ मत कहो । तुम शायद कुछ नहीं जानते । इन्हें सेवकों के काम से हटा दो और रहने के लिए एक कमरा दे दो।"


"जैसी आपकी इच्छा "


"ये दो ही है ?" 


"दो और है भीतर ।"


"उन्हें हमारे सामने पेश करो।" कहने के साथ ही गुलाबलाल भीतर प्रवेश करता चला गया ।


बांकेलाल राठौर ने झाड़ू एक तरफ फेंका और रुस्तम राव से बोला ।


"छोरे । यां तो कोई और ही मामलों लगो हो ।"


रुस्तम राव के चेहरे पर सोच के भाव छाए हुए थे ।


"भीतर चलो।" डोरीलाल अजीब सी निगाहों से दोनों को देख रहा था ।


"चल्लो-चल्लो । म्हारे को बढ़िया खाना तो मिल्लो हो ।" बांकेलाल राठौर आगे बढ़ गयाआ छोरे ।"

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