खुद को नियंत्रित करते देवांश ने दरवाजा खोला।
सामने अदरक की गांठ सा ठर्कारयाल खड़ा था। दूसरे दो पुलिस वालों के बीच उसके मोटे और भद्दे होठों पर मुस्कान थी। हाथ में दो फुटा गोल और चिकना रूल | देवांश ने उसे देखकर मुस्कराने की भरपूर चेष्टा की मगर, कामयाव न हो सका। पीलापन उसके चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे लक्ष्य करके ठकरियाल ने पूछ- “क्या बंदा अंदर आ सकता है?”
“त- तुम यहां क्या कर रहे हो ?” यह पूछने में देवांश ने पूरा दम लगा दिया था।
“इलाका है मेरा । अपने इलाके में थानेदार कहीं भी हो सकता है।"
“तुम्हें कैसे पता लगा कि मैं यहां हूं?”
“तुमने तो यार इन्टरव्यू यार इन्टरव्यू लेना शुरू कर दिया मेरा | वैसे ये सवाल माकूल है। मगर... जवाब अंदर आकर देना चाहूंगा । दरवाजे में दीवार बनकर क्यों खड़े हो ?”
“यहीं खड़े खड़े बोलो।”
“बोल तो मैं दूंगा देवांश बाबू मगर अंदर मौजूद लड़की मेरी नजरों से फिर भी नहीं छुप सकेगी ।”
“मैं ही कौन-सा छुपना चाहती हूं?” कहती हुई विनीता सामने आ गई ---- “उसे आने दो देव ! डर क्यों रहे हो तुम ? प्यार करना जुर्म नहीं है।”
“करेक्ट ! सोलह आने करेक्ट ! प्यार तो इबादत है खुदा की। कहता हुआ ठकरियाल देवांश को एक तरफ हटाकर सुइट में प्रविष्ट होता बोला ---- “मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आयी, लोग इस इबादत को छुपकर क्यों करते हैं। क्यों मिस...।
“विनीता।” उसने आत्मविश्वास भरे स्वर में कहा, "विनीता है मेरा नाम ।”
“अच्छा?” ठकरियाल ने इस तरह कहा जैसे उसका नाम सुनकर चकित रह गया हो । भद्दे होठों पर पहले से ज्यादा गहरी मुस्कान नृत्य कर उठी । कुछ कहता- कहता रुक गया वह । फिर बात बदलकर बोला----“अच्छा है। बहुत अच्छा है। देवांश बाबू को कुछ ज्यादा ही अच्छा लगता होगा ।” कहने के साथ अपनी जांघ पर रूल से हल्की-हल्की चोट करते हुए उसने सेन्टर टेबल की परिक्रमा कर ली थी । बैडरूम की तरफ झांकते हुए कहा ----- “तो आप लोग प्यार कर रहे थे ।... कर चुके थे या करने वाले थे ?”
“इंस्पैक्टर !” विनीता ने नागवारी जाहिर की ---"तुम्हारा सवाल बद्तमीजी भरा है । "
“पसंद नहीं आया तो नहीं पूछता ।” ठकरियाल ने अपनी गंदली आंखें उसकी चमकीली आंखों में गड़ाते हुए -" वैसे मैं केवल यह जानना चाहता था कहीं मैं आपके प्यार के बीच दालभात में मूसलचंद बनकर तो नहीं टपक पड़ा? दरअसल अपनी जवानी में यह इबादत मैंने भी की है। इसलिए जानता हूं ---- प्यार के कुछ खास लम्हों के बीच अगर कोई टपक पड़े तो प्यार करने वालों को दुश्मन नजर आता है।”
“त - तुम गलत समझ रहे हो इंस्पैक्टर ।" इस बार विनीता से पहले देवांश बोल पड़ा----“हम 'वो' प्यार न करते हैं, न कर रहे थे।”
“तो प्यार की भी किस्में होती हैं?”
“क्यों नहीं? एक प्यार वह होता है जो शारीरिक भूख मिटाने के लिए किया जाता है । एक प्यार वह होता है जो दिल की गहराइयों से किया जाता है ।”
“तो तुम इससे !” उसने रूल की नोक विनीता की तरफ तानकर 'इससे' पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया ---- “दिल की गहराई वाला प्यार करते हो ?”
“आने वाले वक्त में हम शादी करने वाले हैं।”
“कांग्रेचुलेशन। एडवांस कांग्रेचुलेशन देवांश बाबू ।”
“थैंक्यू | " देवांश ने कहा- “मगर एक रिक्वेस्ट करनी चाहूंगा इंस्पैक्टर ।”
“रिक्वेस्ट तो पुलिस वालों से गरीब लोग करते हैं जनाब, आप तो हुक्म दीजिए ।”
“ हमारे सम्बन्धों के बारे में अभी भैया-भाभी से जिक्र मत करना।”
“बिल्कुल नहीं करूंगा... वजह बताने में एतराज न हो तो बता दें । एतराज हो तो कोई धींगामुश्ती नहीं है मेरी ।”
“वे चाहते हैं मैं पहले मैं कुछ काम-धंधा करूं । अपने पैरों पर खड़ा होऊं। उसके बाद शादी के बारे में सोचूं | वक्त से पहले हमारे 'अफेयर' की जानकारी उनकी भावनाओं को चोट पहुंचायेगी। ऐसा मैं नहीं चाहता।”
“वजह हन्डरेड परसेन्ट वाजिब है ।”
"उम्मीद है तुम ध्यान रखोगे ।”
"और ये ।" ठकरियाल ने रूल से सेन्टर टेबल की तरफ इशारा किया--"अगर उन्हें इसके बारे में पता लगा तो क्या होगा ?”
अंदर ही अंदर कांप गया देवांश । शब्द मुंह से फिसलते चले गये ---- “इस बारे में तो भैया को हरगिज-हरगिज पता नहीं लगना चाहिए। इससे तो शायद उन्हें मेरे अफेयर से भी ज्यदा चोट पहुंचे। वैसे भी, यह सब लेना मेरी प्रेक्टिस में नहीं है, कभी-कभी ज्यादा थक जाता हूं तो एकाध पैग ले लेता हूं। ‘आदी' नहीं हूं इसका । "
“वाकई! थक तो आज तुम काफी गये होगे।” ठकरियाल ने कहा----“सारा दिन भाग-दौड़ करते रहे। सवाया होटल गये। वहां के स्टाफ से माथा-पच्ची की ।”
“यानि तुम भी वहां गये थे?”
“गया तो था ।”
“कुछ पता लगा नकाबपोश के बारे में?”
“नहीं । वहां किसी ने नहीं देखा उसे । मेरा ख्याल है वह किसी के सामने पड़ा ही नहीं । शायद रेनवाटर पाइप के जरिए होटल की पिछली गली में उतर गया होगा।”
ठकरियाल के शब्द उन दोनों को अंदर तक हिला गये ।
खुद को नियंत्रित रखे देवांश ने पूछा---- “ऐसा कैसे कह सकते हो तुम?”
“ मैं वहां की भौगोलिक स्थिति देखकर आया हूं। कम्मो और बुग्गा के कमरे का विधिवत् रास्ता होटल के रिसेप्शन के सामने से होकर गुजरता है । अगर 'वह' वहां से गुजरा होता तो रिसेप्शनिस्ट ने जरूर देखा होता । होटल के बाहर निकलने के लिए दूसरा रास्ता वही बचता है । रेनवाटर पाइप के जरिए गली से होकर | मैंने सोचा ---- अगर मैं नकाबपोश होता तो उसी रास्ते का इस्तेमाल करता । ”
“ गया तो मैं भी था वहां मगर इतना सब न सोच सका । ”
“अपनी कम्पनी के चीफ एकाऊंटेंट के बारे में क्या ख्याल है तुम्हारा ?”
अचानक दाग दिए गए ठकरियाल के इस सवाल से अकेला देवांश ही नहीं, विनीता भी हकबका उठी। दोनों को एक साथ अपने सारे शरीर में चींटियां सी रेंगती महसूस हुईं । देवांश के मुंह से एकमात्र शब्द फिसलता चला “क-कौन ?”
“समरपाल ।”
“स- समरपाल ।” एक पल को देवांश की नजरें विनीता से मिलीं, फिर जल्दी से ठकरियाल की तरफ देखता बोला - - - - “हमारी बातचीत के बीच अचानक समरपाल कहां से टपक पड़ा? उसके बारे में क्या ख्याल जानना चाहते हो मेरा?”
“ क्या वो ---- वो नकाबपोश हो सकता है?”
"न - नकाबपोश और समरपाल ?" देवांश ठकरियाल की 'स्पीड' से बौखला गया। आनन-फानन में वह फैसला नहीं कर पा रहा था उसका समरपाल तक इतनी जल्दी पहुंच जाना उनके फेवर में है या अगेंस्ट ? एक-एक शब्द को बैलेंस करके कहा उसने----“व-वह भला नकाबपोश कैसे हो सकता है ?”
" इस बारे में बाद में सोचेंगे। फिलहाल मुद्दे की बात ये है कि वह लंगड़ाकर चलता है ।”
“ऐं। ...हां।” देवांश ने ऐसी एक्टिंग की जैसे ठकरियाल के कहने पर ही उसे समरपाल की लंगड़ाहट का ख्याल आया हो । चौंकता सा बोला- -“वाकई ! चलता तो वह लंगड़ाकर ही है । "
“दुःख की बात है। इस बारे में तुमने मुझे थाने में कुछ नहीं
बताया ।” उसे बहुत गौर से देखता ठकरियाल कहता चला गया ----“दरअसल समरपाल के लंगड़ाकर चलने वाली बात पर तुम्हारा ध्यान उसी वक्त चला जाना चाहिए था जब बुग्गा ने कहा था 'याद करें ---- आपके इर्द-गिर्द का कोई शख्स लंगड़ाकर तो नहीं चलता ?”
“सचमुच ! समरपाल का ख्याल आना चाहिए था मुझे। मगर नहीं आया। कारण शायद यही रहा होगा कि मैं स्वप्न तक मैं अपने किसी 'एम्पलाई' पर शक नहीं कर सकता था। "
“जबकि मेरे नोटिस में उसकी लंगड़ाहट घटनास्थल पर ही आ गयी थी । तब, जब बम ब्लास्ट की इन्वेस्टिगेशन के लिए पहुंचा था। "
“क्या तुमने इस सम्बन्ध में समरपाल से बात की ?”
"नहीं।”
“क्यों? उससे पूछना चाहिए था..
“मैं केवल शक के आधार पर 'एक्यूज' पर हाथ नहीं डाला करता - - - - बल्कि पूरे प्रमाण इकट्ठे करने के बाद 'जम्बूर' से सीधी गर्दन दबोच लेता हूं।"
ठकरियाल के शब्द देवांश और विनीता के जिस्मों में मौत की बिजली बनकर गड़गड़ा उठे । एक बार को दोनों की आंखें मिलीं । फिर जल्द ही देवांश ने खुद को नियंत्रित करके कहा- “इससे बड़ा सुबूत और क्या होगा, बुग्गा मुताबिक नकाबपोश लंगड़ाकर चलता था और....
“लंगड़ाकर चलने वाला इस दुनिया में अकेला समरपाल नहीं है।"
“और किस किस्म के सुबूत इकट्ठे करना चाहते हो तुम?”
“यह तो अभी खुद मुझे भी नहीं मालूम । बहरहाल, कोशिश करना मेरी ड्यूटी है। और वही कर भी रहा हूं। इसीलिए यहां पधारने की जरूरत पड़ी । असल में मैं समरपाल के बारे में तुम्हारे विचार जानना चाहता था | क्या सोचते हो उसके बारे में? क्या वह राजदान साहब की रामनाम सत्य का तलबगार हो सकता है?"
देवांश को लगा ---- अगर समरपाल राजदान की हत्या से पहले ही जेल पहुंच गया तो अभी-अभी बना सारा प्लान चौपट हो जायेगा । अतः एक - एक शब्द को नाप तोलकर कहा उसने----“इस बारे में क्या कह सकता हूं मैं ?”
“चलो ! तुमने यह तो कहा । राजदान साहब तो मेरे शब्द सुनकर भड़क ही उठे। कहने लगे - - - - 'तुम हर वक्त कल्पनाओं के रथ पर सवार रहते हो । समरपाल हमारा बेहद बेहद ईमानदार साथी है। दुनिया का कोई प्रलोभन उसे हमसे नहीं तोड़ सकता । और यह कल्पना करना तो शर्मनाक है कि वह हमारी हत्या की कोशिश कर सकता है। "
“यानी इस सम्बन्ध में तुम भैया से भी बात कर चुके हो ?”
“बहरहाल, विचार तो उनके भी जानने थे न ?”
“मैं तो यही कहूंगा, भैया समरपाल के बारे में मुझसे ज्यादा जानते हैं ।”
“ओ. के. । फिलहाल चलता हूं। मगर एक रिक्वेस्ट मेरी भी है।"
“रिक्वेस्ट?”
“अभी समरपाल को यह नहीं बताना कि मैं उसके बारे में कुछ सोच रहा हूं।”
“क्यों?”
“जब तक कोई ठोस ‘क्लू' हाथ न लगे तब तक उसके पेट में दर्द करने से क्या फायदा?” ठकरियाल कहता चला गया-- -“और फिर अपनी बीस साल की सर्विस में एक से
एक हरामी क्रिमिनल से पाला पड़ा है मेरा। ऐसे-ऐसे प्रपंच रचते हैं साले कि सामने वाले की बुद्धि फिरकनी बन जाये। क्या पता कोई ‘ट्रैप’ ही कर रहा हो बेचारे समरपाल को !”
धक्क' से रह गया देवांश का दिल ! मुंह से केवल निकला --~-- “ट-ट्रैप करने से क्या मतलब ?”
“मुमकिन है कम्मो और बुग्गा के सामने नकाबपोश जानकर लंगड़ाकर चला हो ताकि समरपाल की लंगड़ाहट देखते ही मैं उसकी गर्दन पर सवार हो जाऊं ।”
“ए- ऐसा कोई क्यों करेगा ?” देवांश के पसीने छूट गये थे।
“सुना है, समरपाल ‘राजदान एसोसियेट्स' की जान है। बकौल राजदान साहब के ---- समरपाल उनके छोटे भाई जैसा है । कम्पनी की कामयाबी में अगर ज्यादा नहीं तो पचास परसेन्ट हाथ उसका भी है। 'सामने वाले' किसी भी कम्पनी के इतने महत्वपूर्ण आदमी को उससे अलग करने के लिए कोई भी षड्यंत्र रच सकते हैं।”
“कमाल के पुलिसिए हो तुम !” विनीता कह उठी ---"कभी कुछ सोचते हो, कभी कुछ।”
“वाकई ! कमाल का पुलिसिया वही होता है जो कभी कुछ सोचे, कभी कुछ।” ठकरियाल ने बड़ी ही कातिल मुस्कान के साथ विनीता की तरफ देखते हुए कहा“इसे हम 'मामले' पर हर ऐंगिल से सोचना कहते हैं। वैसे अपना ये बाद वाला ऐंगिल मुझे कुछ ज्यादा ही जंच रहा है। खासतौर पर यहां आने के बाद । कारण साफ है ---- नकाबपोश जो भी था, वह जानता था वारदात के बाद पुलिस कम्मो और बुग्गा तक पहुंच जायेगी। तभी तो उसने खुद को उनसे छुपाया ताकि उसके बारे में पुलिस को कुछ बता न सके और जब छुपाना ही चाहता था तो अपनी लंगड़ाहट क्यों नहीं छुपाई? खासतौर पर उजागर क्यों की? इससे लगता है ---- वह जो भी था- - गाज समरपाल की गर्दन पर गिराना चाहता था । मेरे ख्याल से अगर वह समरपाल होता तो अपनी लंगड़ाहट छुपाने की भी उतनी ही जरूरत थी जितना चेहरा छुपाने की ।”
देवांश को अपने पेट में गैस का गोला-सा घूमता महसूस हो रहा था । बोला ---- “कुछ देर पहले लग रहा था तुम समरपाल को ही नकाबपोश मान रहे हो । अब लग रहा है ---- जैसे श्योर हो कि नकाबपोश और भले ही चाहे जो हो मगर समरपाल नहीं हो सकता ।”
“इसीलिए तो कहा अभी उससे जिक्र मत करना ।” बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ कहता हुआ वह वापस जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
“अभी-अभी तुमने कहा- --- खासतौर पर यहां आने के बाद अपना बाद वाला ऐंगिल कुछ ज्यादा ही जंचा | क्या मतलब हुआ इसका ? ऐसा क्या देख लिया तुमने यहां?”
“सच कह दूं?” उसने देवांश की आंखों में झांका ।
धाड़-धाड़ कर रहे दिल को संभाले देवांश ने कहा ---- “सच ही सुनना चाहता हूं।”
“तुम दोनों की 'जुगलबंदी' मेरे यहां अटक गई है । " बड़े ही नाटकीय अंदाज में उसने अपने गले को रूल की नोक से ठकठकाते हुए कहा--- “काफी कोशिश के बावजूद नीचे नहीं उतर रही । ”
“व- वजह?”
“समय आने पर बताऊंगा ।" यह कहते वक्त उसने विनीता की तरफ व्यंगात्मक मुस्कान उछाली । कमरे से बाहर निकलने ही वाला था कि देवांश ने कहा- -“यह तो बताओ, तुम्हें मेरे यहां होने का पता कैसे लगा ?”
“हम पुलिस वाले जब किसी का पता निकालने पर आमादा होते हैं तो पाताल तक पहुंच जाते हैं देवांश बाबू । तुम तो फिर भी फाइव स्टार होटल में थे। मुझे समरपाल के बारे में तुम्हारी राय जानने की बेचैनी थी और तुम मिल नहीं रहे थे। सो पुलिसिए दौड़ाये | पता लगा ---- - तुम आखिरी बार ताज होटल में प्रविष्ट होते देखे गये हो । पार्किंग में 'जेन' भी खड़ी है तुम्हारी । रिसेप्शन पर मालूम किया तो पता लगा111 - किसी लड़की के साथ इस सुईट में इश्क फरमा रहे हो । सो आ धमका । गुस्ताखी के लिए माफी चाहता हूं।” कहने के बाद देवांश को दूसरे सवाल का मौका दिए बगैर वह बाहर निकल गया |
देवांश का मुंह खुला का खुला रह गया था ।
कुछ देर विनीता भी अपने स्थान पर ज्यों की त्यों खड़ी रही । फिर लपकी और दरवाजे के नजदीक पहुंची। बहुत आहिस्ता से, थोड़ा सा सिर निकालकर कारीडोर में झांका। दूर-दूर तक कोई नहीं था । संतुष्ट होने के बाद दरवाजा वापस बंद किया । उससे पीठ टिकाकर बोली ---- "ये इंस्पैक्टर जरूरत से ज्यादा चालाक बनने की कोशिश कर रहा है ।” ।
“ बनने की कोशिश नहीं कर रहा विनीता, वह है ही हमारी सोचों से ज्यादा चालाक ।” देवांश की आवाज में साफ कम्पन था“मुझे लगता है, वह अपने यहां पहुंचने के बारे में झूठ बोलकर गया है... ।”
“मतलब?”
“मेरे पीछे अपने जासूस लगा रखे होंगे उसने । उसे शुरू से मेरे यहां होने का पता होगा । आखिर मैं उसके शक के दायरे में क्यों हूं?”
“ खुद को संभालो देव! तुम जरूरत से ज्यादा सोच रहे हो।”
“देखो तो सही । वह, वह नहीं सोच रहा है जो हम सुचवाना चाहते हैं बल्कि वह सोच रहा है जो वास्तव में हुआ है। पट्ठा साफ-साफ कह गया ---- --कोई समरपाल की लंगड़ाहट का फायदा उठाना चाहता है। ट्रैप करना चाहता है उसे । वह खुद नकाबपोश होता तो कम्मो और बुग्गा से अपनी लंगड़ाहट जरूर छुपाता।"
विनीता ने कोट उतार दिया। उसके नजदीक आई। बांहें उसके गले में डालीं। बोली---- “जब उसे दिव्या के निप्पल्स पर जहर लगा मिलेगा तो वो क्या, उसके फरिश्ते तक उसके अलावा कुछ नहीं सोच सकते जो हम सुचवाना चाहेंगे। दुनिया का एक भी शख्स यह नहीं मान सकता, कोई और किसी औरत के निप्पल्स पर, उससे छुपाकर जहर लगा सकता है।”
देवांश ने मुंह खोला परन्तु कुछ कह न सका । विनीता के रसभरे होंठ उसके होठों से आ चिपके थे । वह कसमसाया ।
विनीता की जीभ उसकी जीभ से छेड़खानी करने लगी थी।
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