इन्स्पेक्टर ख़ालिद सोनागिरी के जेफ़रीज़ होटल के बॉलरूम में खड़ा नाचते हुए जोड़ों का जायज़ा ले रहा था। उसके साथ उसके सेक्शन का डी.एस. भी था।
‘देखिए, वो रहा।’ ख़ालिद ने इमरान की तरफ़ इशारा करके कहा। इमरान डिक्सन की लड़की मार्था के साथ नाच रहा था।
आज सोफ़िया अपने मेहमानों समेत यहाँ आयी थी। लेकिन उसने नाच में हिस्सा नहीं लिया था।
‘अच्छा!’ डी.एस. ने आश्चर्य व्यक्त किया। ‘यह तो अभी लौंडा ही मालूम होता है...ख़ैर, मैंने कैप्टन फ़ैयाज़ से उसकी हैसियत के बारे में पूछा है। वो इधर शायद ज़रग़ाम की लड़की सोफ़िया है। उसके साथ वो दाढ़ी वाला कौन है?’
‘कोई मेहमान है, बारतोश...चेकोस्लोवाकिया का बाशिन्दा और वो कर्नल डिक्सन है। उसकी लड़की मार्था इमरान के साथ नाच रही है।’
‘इस इमरान पर गहरी नज़र रखो।’ डी.एस. ने कहा, ‘अच्छा, अब मैं जाऊँगा।’ डी.एस चला गया।
नाच भी ख़त्म हो गया। इमरान और मार्था अपनी मेज़ की तरफ़ लौट आये। ख़ालिद कुछ पल उन्हें घूरता रहा फिर वह भी चला गया।
इमरान बड़ी मौज में था। मार्था दो-तीन दिनों में उससे काफ़ी घुल-मिल गयी थी। वह थी ही कुछ इस क़िस्म थी आरिफ़ और अनवर से भी वह कुछ इस तरह घुल-मिल गयी थी जैसे बरसों पुरानी जान-पहचान हो।
‘तुम अच्छा नाचते हो।’ उसने इमरान से कहा।
‘वाक़ई!’ इमरान ने हैरत से कहा, ‘अगर यह बात है तो अब मैं दिन-रात नाचा करूँगा। मेरे पापा बहुत ग्रेट आदमी हैं। उन्हें बड़ी ख़ुशी होगी।’
‘क्या तुम वाक़ई बेवक़ूफ़ आदमी हो?’ मार्था ने मुस्कुरा कर पूछा।
‘पापा यही कहते हैं।’
‘और बच्चे की मम्मी का क्या ख़याल है?’
‘मम्मी जूतियों से मरम्मत करने की स्पेशलिस्ट हैं, इसलिए खास मौक़े पर ही अपने अपने ख़यालात का इज़हार करती हैं।’
‘मैं नहीं समझी।’
‘न समझी होगी...इंग्लैण्ड में जूतियों से इज़हारे-ख़याल का रिवाज नहीं है।’
इतने में आरिफ़ की किसी बात पर मार्था उसकी तरफ़ मुड़ गयी। वेटर उनके लिए कॉफ़ी की ट्रे ला रहा था। इसमें एक गिलास ऑरेंज स्क्वॉश का भी था। यह सोफ़िया ने अपने लिए मँगवाया था। वेटर अभी दूर ही था कि उसके क़रीब से गुज़रता हुआ एक आदमी उससे टकरा गया। वेटर लड़खड़ाया ज़रूर, मगर सँभल गया। और उसने ट्रे भी सँभाल ली।
इमरान सामने ही देख रहा था। उसके होंट ज़रा-सा खुले और फिर बराबर हो गये। वह उस आदमी को देख रहा था जो वेटर से टकराने के बाद उससे माफ़ी माँग कर आगे बढ़ गया था।
जैसे ही वेटर ने ट्रे मेज़ पर रखी। इमरान इस तरह दूसरी तरफ़ मुड़ा कि उसका हाथ ऑरेंज स्क्वॉश के गिलास से लगा और गिलास उलट गया।
‘ओहो!...क्या मुसीबत है?’ इमरान बौखला कर बोला और गिलास सीधा करने लगा।
‘तुम शायद कभी शरीफ़ आदमियों के साथ नहीं रहे!’ कर्नल डिक्सन झुँझला गया, लेकिन बारतोश उसे अजीब नज़रों से घूर रहा था।
‘मैं अभी दूसरा लाता हूँ!’ इमरान ने सोफ़िया की तरफ़ देख कर कहा और गिलास उठा कर खड़ा हो गया। सोफ़िया कुछ न बोली। उसके चेहरे पर भी नागवारी नज़र आ रही थी।
इमरान ने काउण्टर पर पहुँच कर दूसरा गिलास माँगा। इतनी देर में वेटर मेज़ साफ़ कर चुका था। इमरान गिलास ले कर वापस आ गया। सोफ़िया की शलवार और मार्था की स्कर्ट पर ऑरेंज स्क्वॉश के धब्बे पड़ गये थे। ऐसी सूरत में वहाँ ज़्यादा देर तक ठहरना क़रीब-क़रीब नामुमकिन था, लेकिन अब सवाल यह था कि वह उन्हें किस तरह रोके? ज़ाहिर है कि स्कर्ट और शलवार के धब्बे काफ़ी बड़े थे और दूर से साफ़ नज़र आ रहे थे।
‘तुम जैसे बदहवास आदमियों का अंजाम मैंने हमेशा बुरा देखा।’ कर्नल डिक्सन इमरान से कह रहा था।
‘हाँ।’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘मुझे इसका तजुर्बा हो चुका है। एक बार मैंने संखिया के धोखे में लेमन ड्रॉप खा लिया था।’
मार्था झल्लाहट के बावजूद मुस्कुरा पड़ी।
‘फिर क्या हुआ था?’ आरिफ़ ने पूछा।
‘बच्चा हुआ था और मुझे अंकल कहता था!’ इमरान ने उर्दू में कहा, ‘तुम बहुत चहकते हो, लेकिन मार्था तुम पर हरगिज़ आशिक़ नहीं हो सकती।’
‘क्या फ़िज़ूल बकवास करने लगे।’ सोफ़िया बिगड़ कर बोली।
इमरान कुछ न बोला। वह कुछ सोच रहा था और उसकी आँखें इस तरह फैल गयी थीं जैसे कोई उल्लू अचानक रोशनी में पकड़ लाया गया हो।
थोड़ी देर बाद वे सब वापसी के लिए उठे।
सोफ़िया की शलवार का धब्बा तो लम्बी कमीज़ के नीचे छुप गया, लेकिन मार्था की सफ़ेद स्कर्ट का धब्बा बड़ा बदनुमा मालूम हो रहा था। जैसे-तैसे वह स्टेशन वैगन तक आयी।
इमरान की वजह से जो मज़ा किरकिरा हो गया था, उसका एहसास हर एक को था। लेकिन बुरा-भला सुनाने के अलावा और उसका कोई कर ही क्या सकता था।
स्टेशन वैगन कर्नल ज़रग़ाम की कोठी की तरफ़ रवाना हो गयी। रात काफ़ी ख़ुशगवार थी और मार्था अनवर के क़रीब की सीट पर बैठी हुई थी। इसलिए अनवर ने गाड़ी की रफ़्तार हल्की रखी थी।
अचानक एक सुनसान सड़क पर उन्हें तीन वर्दी धारी पुलिस वाले नज़र आये जो हाथ उठाये गाड़ी को रुकवाने का इशारा कर रहे थे। अनवर ने रफ़्तार और कम कर दी। स्टेशन वैगन उनके क़रीब पहुँच कर रुक गयी। उनमें एक सब-इन्स्पेक्टर था और दो कॉन्स्टेबल।
सब-इन्स्पेक्टर आगे बढ़ कर गाड़ी के क़रीब पहुँचा कर बोला।
‘अन्दर की बत्ती जलाओ।’
‘क्यों?’ इमरान ने पूछा।
‘हमें ख़बर मिली है कि इस गाड़ी में बेहोश लड़की है।’
‘हा-हा!’ इमरान ने क़हक़हा लगाया। ‘बेशक है...बेशक है।’
अनवर ने अन्दर का बल्ब रोशन कर दिया और सब— इन्स्पेक्टर चुँधियाई हुई आँखों से एक-एक की तरफ़ देखने लगा। इमरान बड़ी दिलचस्पी से उसके चेहरे पर नज़र जमाये हुए था।
‘कहाँ है?’सब-इन्स्पेक्टर गरजा।
‘क्या मैं बेहोश नहीं हूँ?’ इमरान नाक पर उँगली रख कर लचकता हुआ बोला, ‘मैं बेहोश हूँ तभी तो मर्दाना लिबास पहनती हूँ। ऐ हटो भी!’
सोफ़िया, अनवर और आरिफ़ बेतहाशा हँसने लगे।
‘क्या बेहूदगी है।’ सब-इन्स्पेक्टर झल्ला गया।
‘लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूँ कि इस क़िस्म की ख़बर कहाँ से आयी है?’ इमरान ने पूछा।
‘कुछ नहीं जाओ! जाओ...वो कोई दूसरी गाड़ी होगी!’ सब-इन्स्पेक्टर गाड़ी से हट गया। गाड़ी चल पड़ी।
मार्था सोफ़िया से क़हक़हों की वजह पूछने लगी। फिर वह भी हँसने लगी।
‘पता नहीं किस क़िस्म का आदमी है?’ उसने कहा।
उसे उम्मीद थी कि इमरान इस पर कुछ कहेगा ज़रूर। लेकिन इमरान ख़ामोश ही रहा। वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।
अभी ज़्यादा रात नहीं गुज़री थी, इसलिए घर पहुँच कर वे सब-के-सब किसी-न-किसी तफ़रीह में लग गये। अनवर और बारतोश बिलियर्ड खेल रहे थे। कर्नल डिक्सन और आरिफ़ ब्रिज खेलने के लिए सोफ़िया और मार्था का इन्तज़ार कर रहे थे जो कपड़े बदलने के लिए अपने कमरों में चली गयी थीं।
थोड़ी देर ताद इमरान ने मार्था के कमरे में दरवाज़े पर दस्तक दी।
‘कौन है?’ अन्दर से आवाज़ आयी।
‘इमरान दी ग्रेट फ़ूल।’
‘क्या बात है?’ मार्था ने दरवाज़ा खोलते हुए पूछा। वह अपना स्कर्ट तब्दील कर चुकी थी
‘मुझे अफ़सोस है कि मेरी वजह से तुम्हारा स्कर्ट ख़राब हो गया।’
‘कोई बात नहीं!’
‘ओह नहीं! लाओ...स्कर्ट मुझे दो, वरना वो धब्बा बिलकुल ख़राब हो जायेगा।’
‘अरे नहीं, तुम उसकी फ़िक्र न करो।’
‘लाओ...तो...वरना मुझे और ज़्यादा अफ़सोस होगा!’
‘तुमसे तो पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है।’
थोड़ी ना-नुकुर के बाद मार्था ने अपना स्कर्ट इमरान के हवाले कर दिया। अब वह सोफ़िया के कमरे में पहुँचा। उसके एक हाथ में मार्था का स्कर्ट था और दूसरे हाथ में दूध की बोतल।
‘ये क्या?’ सोफ़िया ने हैरत से पूछा।
‘धब्बा छुड़ाने जा रहा हूँ! लाओ, तुम भी शलवार दे दो।’
‘क्या बेतुकी बात है! इमरान साहब सचमुच आप कभी-कभी बहुत बोर करते हैं।’
‘नहीं लाओ!...पानी नहीं लगेगा! दूध से साफ़ करूँगा!’
‘मैं कुछ नहीं जानती!’ सोफ़िया भन्ना गयी।
इमरान ने शलवार उठा ली जो अभी कुर्सी के हत्थे पर पड़ी हुई थी।
सोफ़िया उकताये हुए अन्दाज़ में उसकी हरकतें देखती रही। उसने एक बड़े प्याले में दूध उलट कर धब्बों को मलना शुरू किया। थोड़ी देर बाद धब्बे साफ़ हो गये। सोफ़िया की बड़ी बालों वाली ईरानी बिल्ली बार-बार प्याले पर झपट रही थी। इमरान उसे हटाता जाता था। जब वह अपने काम से फारिग़ हो चुका तो बिल्ली दूध पर टूट पड़ी। इस बार इमरान ने उसे नहीं रोका।
‘क्या पानी से नहीं धो सकते थे। आख़िर आपको अपनी बेवक़ूफ़ी ज़ाहिर करने का इतना शौक़ क्यों है?’ सोफ़िया बोली।
‘हाँय तो क्या मैंने कोई बेवक़ूफ़ी की है?’ इमरान ने आश्चर्य व्यक्त किया।
‘ख़ुदा के लिए बोर मत कीजिए!’ सोफ़िया ने बेज़ारी से कहा।
‘आदम ने जब उस दरख़्त के क़रीब जाने में हिचकिचाहट ज़ाहिर की थी, हव्वा ने भी यही कहा था!’
सोफ़िया कुछ न बोली। उसने बिल्ली की तरफ़ देखा जो दूध पीते-पीते एक तरफ़ लुढ़क गयी थी।
‘अरे! यह उसे क्या हो गया।’ वह उठती हुई बोली।
‘कुछ नहीं!’ इमरान ने बिल्ली की टाँग पकड़ कर उसे हाथ में लटका लिया।
‘क्या हुआ इसे?’ सोफ़िया चीख़ कर बोली।
‘कुछ नहीं। सिर्फ़ बेहोश हो गयी है। अल्लाह ने चाहा तो सुबह से पहले होश में नहीं आयेगी।’
‘आख़िर ये आप कर क्या रहे हैं?’ सोफ़िया के लहजे में आश्चर्य मिश्रित झुँझलाहट थी।
‘वो नक़ली पुलिस वाले! एक बेहोश लड़की हमारी गाड़ी में ज़रूर पाते। मगर मैं इस तरह लटका न सकता था।’
‘क्या?’ सोफ़िया आँखें फाड़ कर बोली, ‘तो ये धब्बा...’
‘ज़ाहिर है कि वो अमृत धारा के धब्बे नहीं थे।’
‘लेकिन इसका मतलब?’
‘तुम्हारा...अग़वा...लेकिन मैंने उनकी नहीं चलने दी।’
‘आपने जान-बूझ कर गिलास में हाथ मारा था।’
‘हाँ!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘कभी-कभी ऐसी बेवक़ूफ़ी भी सरज़द हो जाती है।’
‘आपको मालूम कैसे हुआ था?’
इमरान ने एक अज्ञात आदमी के वेटर से टकराने की दास्तान दुहराते हुए कहा, ‘मेरी बायीं आँख हमेशा खुली रहती है। मैंने उसे गिलास में कुछ डालते देखा था।’
सोफ़िया ख़ौफ़ज़दा नज़र आने लगी। इमरान ने कहा—
‘ओह...डरो नहीं!...लेकिन तुम्हें हर हाल में मेरा पाबन्द रहना पड़ेगा!’
सोफ़िया कुछ न बोली। वह इस बेवक़ूफ़ जैसे अक़्लमन्द आदमी को हैरत से देख रही थी।
‘और हाँ, देखो! इस वाक़ये का ज़िक्र किसी से न करना!’ इमरान ने बेहोश बिल्ली की तरफ़ इशारा करके कहा, ‘आरिफ़ और अनवर से भी नहीं!’
‘नहीं करूँगी इमरान साहब! आप वाक़ई ग्रेट हैं।’
‘काश, मेरे पापा भी यही समझते!’ इमरान ने गम्भीर लहजे में कहा।
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