21 जुलाई 2022
दोपहर बारह बजे के करीब सत्यप्रकाश अंबानी को आईसीयू से निकाल कर एक प्राइवेट वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया, जहाँ डॉक्टर पुरी ने एक नर्स को चौबीसों घंटे की ड्यूटी पर पेशेंट की तीमारदारी के लिए नियुक्त कर दिया।
उसे सख्त चेतावनी थी कि किसी को भी, चाहे वह घर का ही कोई सदस्य क्यों न हो, पेशेंट के कमरे में दाखिल नहीं होने देना है। और करीब तो बिल्कुल भी न जाने दिया जाये क्योंकि उसकी कंडीशन क्रिटिकल थी। ऊपर से शीतल ने आशंका जताई थी कि हमलावर सत्य के बच जाने की खबर सुनकर फिर से उसकी जान लेने की कोशिश कर सकते थे। इसलिए भी वह सावधानी बरतना बेहद जरूरी था।
एक बजे के करीब शीतल और आकाश को अपने केबिन में बुलाकर पुरी ने एक बार फिर इस बात का यकीन दिलाया कि सत्यप्रकाश अंबानी को इसके अलावा अब कोई प्रॉब्लम नहीं थी कि वह कोमा में था, तत्पश्चात बोला- “आप लोग चाहें तो घर जा सकते हैं। कोई जरूरत हुई तो मैं फोन कर दूँगा।”
“सत्य को इस हाल में छोड़कर कैसे जा सकती हूँ डॉक्टर?” शीतल रूआंसे स्वर में बोली – “नहीं, वहाँ रूकना मेरे से नहीं हो पायेगा।”
“मैं आपकी तकलीफ समझता हूँ, मगर जरा सोचकर देखिए कि यहाँ बने
रहकर भी आपको क्या हासिल होगा? इसलिए मेरी बात मानिए और घर जाकर थोड़ा आराम कर लीजिए। बाकी जब चाहें आकर पेशेंट को देख सकती हैं। फिर घर भी तो आपका पास में ही है, वक्त ही कितना लगेगा आना-जाना करने में।”
“पुरी साहब ठीक कह रहे हैं भाभी, घर जाकर आराम कीजिए।”
“मैं आप दोनों को कह रहा हूँ भाई, यहाँ बैठकर क्या करोगे? फिर आदमी का बच्चा कब तक यूँ बिना नींद मारे बैठा रह सकता है? इसलिए घर जाओ और कुछ घंटे आराम करने के बाद बेशक वापिस आ जाना।”
इस बार दोनों में से किसी ने भी ऐतराज नहीं जताया। सच तो ये था कि वे लोग वहाँ रूकना ही नहीं चाहते थे, मगर खुद चले जाना डॉक्टर को ये सोचने पर मजबूर कर सकता था कि उन्हें पेशेंट की कोई परवाह ही नहीं थी।
“ठीक है डॉक्टर साहब।” कहती हुई शीतल उठ खड़ी हुई।
तत्पश्चात दोनों बाहर मौजूद रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गये। कोई उनके चेहरे पर फैले मातम के भावों को इस घड़ी देख लेता तो यही सोचता कि उनका कोई अपना दुनिया से निकल लिया था, जबकि वह मातम असल में किसी अपने के जिंदा बच जाने का था।
“मौर्या अभी भी हमारे साथ है भाभी।” आकाश धीरे से बोला – “जरूरत पड़ने पर कुछ भी करने से पीछे नहीं हटने वाला।”
“क्या फायदा, अभी कर भी क्या सकते हैं हम?”
“क्यों यहाँ उनका कत्ल नहीं किया जा सकता? वार्ड के पिछले हिस्से वाली खिड़की देखी थी आपने, बड़ी आसानी से उसके जरिये भीतर दाखिल हुआ जा सकता है। करना बस ये होगा कि सामने से अंदर जाकर नर्स की निगाहों में आये बिना उसका लॉक हटाना पड़ेगा, ताकि बाद में बाहर से भी खोला जा सके। फिर रात के वक्त उसे खोलकर हममें से कोई अंदर दाखिल होगा और भाई को गोली मारकर वापिस लौट जायेगा, साथ में वहाँ मौजूद नर्स को भी। या भीतर जाने की भी क्या जरूरत है, वह खिड़की भाई के बेड के एकदम पीछे ही तो है, इसलिए बाहर खड़े होकर भी निशाना लगाया जा सकता है।”
“नहीं, फिलहाल ऐसा कुछ करना ठीक नहीं होगा। परसों की बात और थी, तब घर में बहुत से मेहमान पहुँचे हुए थे, इसलिए पुलिस चाहकर भी हम पर सीधे-सीधे आरोप नहीं लगा सकती थी, मगर यहाँ उसकी जान गयी तो हम दोनों सीधा जेल में होंगे।”
“नहीं गयी तो भी होंगे। अभी तुम मेरे भाई को ढंग से जानती नहीं हो, लोमड़ी जैसा दिमाग है उसका। होश में आते ही समझ जायेगा कि जो हुआ वह किसके किये हुआ, उसके बाद एक पल को भी वह हमारा लिहाज नहीं करने वाला।”
“उस स्थिति में जो होगा वह फौरन नहीं हो जायेगा आकाश। कुछ भी करने से पहले उसका अपने हाथ-पांव पर खड़ा होना जरूरी है, जिसमें महीना लगेगा या साल बीत जायेंगे, हम नहीं जानते।”
“यानि कुछ नहीं करना है हमें।”
“फौरन नहीं करना, क्योंकि वक्त की कोई कमी नहीं दिखाई दे रही है। फिर हो सकता है वह कभी कोमा से बाहर आ ही न आने पाये, और कुछ करना जरूरी ही न रह जाये। या आये भी तो चार-पांच सालों बाद, तब तक तो मामला वैसे ही ठंडा पड़ चुका होगा।”
“तुम्हें लगता है तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धरकर बैठी रहेगी?”
“नहीं, उछलकूद तो वे लोग बराबर करेंगे, मगर उखाड़़ कुछ नहीं पायेंगे हमारा।”
“एक बात और है, जो मुझे परेशान कर रही है।”
“कौन सी बात?”
“शुभांगी बिड़ला।”
“तुम्हारी बहन।”
“हाँ। वह पहले से ही तुम्हारे खिलाफ है, इसलिए भैया की हालत देखते ही साफ-साफ तुम पर उंगली उठाना शुरू कर देगी।”
“शुभांगी मेरे खिलाफ है?” वह हैरानी से बोली – “ये बात मैं पहली बार सुन रही हूँ, मगर है क्यों? मैंने उसका क्या बिगाड़ा है?”
“वह नहीं चाहती थी कि भाई तुम्हारे साथ शादी करें।”
“क्यों?”
“रहने दो तुम्हें बुरा लगेगा।”
“आकाश, ये वक्त बुरा या अच्छा लगने का नहीं है। मत भूलो कि हमारी गर्दन तलवार की धार पर रखी हुई है, जरा भी लापरवाही हुई तो जान चली जायेगी।”
“तुम्हारे माँ-बाप हमारी हैसियत के नहीं हैं इसलिए शुभांगी नहीं चाहती थी कि भाई तुम्हारे साथ शादी करें। कहती थी कंगलों की बेटी से ब्याह रचाकर वह अपनी जिंदगी बर्बाद करने जा रहे थे। अब जिसके पहले से ही ऐसे ख्यालात हों वह मौजूदा हालात में क्या तुम पर उंगली उठाने से बाज आ जायेगा?”
“ये बात तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी आकाश।”
“उससे क्या हो जाता, क्या तुम अपना इरादा बदल लेती?”
“नहीं, मगर जो किया है उसे अंजाम देने से पहले मैं शुभांगी को किसी ना किसी तरह इस बात का विश्वास दिला चुकी होती कि मुझसे अच्छी बीवी उसके
भाई को मिल ही नहीं सकती थी।”
“सॉरी, मैंने इस तरह से नहीं सोचा था।”
“एनी वे, अब उसे सत्य के बारे में फौरन खबर करनी होगी।”
“क्यों अपनी हालत आ बैल मुझे मार वाली बनाना चाहती हो?”
“ऐसा करना बेहद जरूरी है, क्योंकि बैल ने आखिरकार तो सींग मारने की कोशिश करनी ही है। हम नहीं भी बतायेंगे तो आज नहीं तो कल खबर उसे लग ही जायेगी। फिर वह कहीं ज्यादा भड़क उठेगी, ये सोचकर कि उसके भाई के साथ इतना कुछ हो गया और हमने खबर तक करना जरूरी नहीं समझा।”
“ठीक है फिर, करता हूँ कॉल।”
“तुम रहने दो, मैं करती हूँ।” कहकर उसने मोबाइल उठाया और शुभांगी का नंबर डॉयल कर दिया।
तत्काल संपर्क हुआ।
“हाय भाभी।” दूसरी तरफ से ननद का चहकता हुआ स्वर उसके कानों में पड़ा – “कैसी हो?”
“मत पूछ बहना।” शीतल ने पलक झपकते ही यूँ अपना लहजा बदल लिया कि आकाश हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगा – “जिसकी किस्मत में दुःख झेलना बदा हो वह अच्छी कैसे हो सकती है।”
“क्या हो गया, सब ठीक तो है वहाँ?”
सुनकर शीतल जोर-जोर से रोने लगी।
“देखो डराओ मत मुझे, साफ-साफ बताओ कि क्या हुआ है?”
“तुम बस जल्दी से आ जाओ यहाँ।”
“वो तो मैं आ ही जाऊंगी भाभी, मगर हुआ क्या है?”
“तुम्हारे भईया...।” आगे के शब्द उसने हिचकियों में डूब जाने दिये।
“सत्य भाई?”
“उन्हीं की बात कर रही हूँ। अब देर मत करो, तुरंत यहाँ आ जाओ।”
“क्या हुआ उन्हें?”
“किसी ने....किसी ने उनकी जान लेने की कोशिश की है।” वह बुक्का फाड़कर रोने लगी – “जल्दी से यहाँ आ जाओ, मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।”
“आकाश कहाँ है?”
“यहीं है, हाय किस्मत ने ये दिन भी दिखाना था।”
“चुप हो जाओ और आकाश को फोन दो प्लीज।”
शीतल ने एक जहरीली मुस्कान के साथ मोबाइल देवर को थमा दिया।
एसआई नरेश चौहान इंस्पेक्टर गरिमा देशपाण्डेय के कमरे में पहुँचा।
“गुड इवनिंग मैडम।”
“गुड इवनिंग, आओ बैठो।”
चौहान बैठ गया।
“अंबानी के केस में कुछ नया जान पाये?”
“अभी नहीं मैडम, मगर अच्छी खबर ये है कि उसे आईसीयू से निकालकर वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया है, लेकिन बयान नहीं दे सकता क्योंकि कोमा में चला गया है। मैं उसके डॉक्टर से मिलकर आ रहा हूँ। वह कहता है कि अंबानी के लिए कोमा टेम्परेरी कंडीशन है, जल्दी ही वह बाहर आ जायेगा।”
“उसके पेट से निकाली गयी गोली के बारे में कुछ पता लगा?”
“बत्तीस कैलिबर की है मैडम। और पिस्तौल ऐसी थी, जिसे लंबे अरसे से इस्तेमाल में नहीं लाया गया था। एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि बुलेट पर मिले स्क्रेच मॉर्क्स में से एक सामान्य से बहुत ज्यादा गहरा है, जिससे लगता है कि नाल में कोई व्यवधान था।”
“स्पीड पर कोई कमेंट नहीं कर सका?”
“पक्के तौर पर नहीं। गोली साइलेंसर लगी पिस्टल से चलायी गयी हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती, मगर घर के मालिकान या नौकरों में से किसी ने भी गोली की आवाज नहीं सुनी थी इसलिए इतना तो हमें कबूल करना ही पड़ेगा कि रिवाल्वर पर साइलेंसर चढ़ा हुआ था।”
“अच्छा ये बताओ कि पूरे मामले को लेकर तुम्हारी अक्ल क्या कहती है? जो हुआ वह क्यों हुआ, और हुआ तो आधा अधूरा क्यों हुआ, अंबानी जिंदा कैसे बच गया?”
“सोचने विचारने के लायक तो अभी कुछ भी हाथ नहीं लगा है मैडम, लेकिन घटनास्थल का मुआयना करने और घायल के भाई तथा बीवी से सवाल-जवाब करने के बाद जैसे मेरे अंदर से आवाज आ रही है कि यह किसी बाहरी शख्स का कारनामा नहीं हो सकता।”
“राणे, मजूमदार और वह तीसरा आदमी; क्या नाम बताया था तुमने उसका?”
“निशांत मौर्या।”
“उनसे पूछताछ की या नहीं अभी?”
“राणे और मजूमदार से मिल चुका हूँ, दोनों मुझे इनोसेंट जान पड़ते है। और
सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि उनके कहे मुताबिक आकाश ने उनसे व्यक्तिगत तौर पर मिलकर उन्हें पार्टी के लिए इनविटेशन दी थी, जबकि आकाश उस बात से इंकार करता है।”
“यानि दोनों पार्टियों में से कोई एक पार्टी तो यकीनन झूठ बोल रही है।”
“ऑफ़कोर्स, और वह झूठ अगर आकाश बोल रहा है तो समझ लीजिए पूरे मामले में उसका कोई ना कोई एक्टिव रोल जरूर रहा था। इसके विपरीत अगर राणे और मजूमदार झूठ बोल रहे हैं तो उसका मतलब ये बनता है कि जो हुआ वह उन दोनों की मिली भगत का नतीजा था, क्योंकि दोनों के बयान एक जैसे हैं।”
“जबकि वह दोनों तुम्हें इनोसेंट जान पड़ते हैं?”
“फिलहाल तो यही लग रहा। हाँ, आगे चलकर कोई नयी बात सामने आ जाये तो नहीं कह सकता।”
“मगर आकाश झूठ क्यों बोलेगा? उसने अगर दोनों को खुद अपने घर की पार्टी में इनवाईट किया था तो उस बात को कबूल कर लेने में उसे क्या दिक्कत हो सकती है।”
“दूर की कौड़ी है मैडम, लेकिन एक वजह सूझ तो रही है मुझे।”
“क्या?”
“अगर वह ये कह देता कि उन दोनों को उसी ने पार्टी में बुलाया था तो हमारा ध्यान पूरी तरह राणे और मजूमदार की तरफ से हट जाता, जबकि अभी मैं उन दोनों की कल्पना हमलावरों के रूप में कर रहा हूँ, बावजूद इसके कि दोनों मुझे इनोसेंट जान पड़ते हैं।”
“तुम्हारा मतलब ये है कि हमला अगर आकाश ने किया था तो उन दोनों इनवाईट करने और बाद में उस बात से मुकर जाने के पीछे वजह ये है कि वह अपनी तरफ से ध्यान हटाना चाहता है, केस में नये सस्पेक्ट्स खड़ा करना चाहता है।”
“एग्जैक्टली, मगर उसमें भी एक प्रॉब्लम है।”
“वो क्या?”
“आकाश मुझे कहीं से भी इतना बड़ा मास्टरमाइंड नहीं लगता, जो इतनी एक्सपर्टीज के साथ योजनायें तैयार कर सकता हो।” कहकर वह क्षण भर को रूकने के बाद बोला – “एक बार जरा मौर्या से मिल लूं, फिर मैं ज्यादा बेहतर नतीजे निकाल पाऊंगा।”
“लेकिन अभी तुम्हें ये इनसाइड जॉब ही लग रहा है?”
“है तो ऐसा ही मैडम।”
“तो फिर हमलावर भाभी क्यों नहीं हो सकती, या देवर-भाभी दोनों का ही किया धरा क्यों नहीं हो सकता ये?”
“हो सकते हैं, बल्कि एक और नाम बार-बार मेरे जेहन में दस्तक दे रहा है।”
“किसका?”
“सुमन, घर की मेड।”
“तुम्हें तो ब्यूटी फोबिया हो गया लगता है।” गरिमा हँसती हुई बोली – “केस में जब भी कोई खूबसूरत नौकरानी दिखाई देती है, उसे लेकर तुम्हारे जेहन में भयानक ख्याल उमड़ने लगते हैं, शक गहराने लगता है।”
“जो कि दस में से सात बार सच साबित होकर रहा है मैडम।”
“हाँ, ये बात तो तुम्हारी माननी पड़ेगी।” कहकर उसने पूछा – “मगर हमला चार जुदा तरीकों से क्यों किया गया?”
“यह बेहद हैरानी की बात है, कुछ समझ में नहीं आ रहा। मेरा मन ये मान कर राजी नहीं है कि पार्टी वाली रात एक-एक कर के अंबानी के चार दुश्मन वहाँ पहुँचे और अलग-अलग हथियारों से हमला करके वहाँ से चलते बने। इतना बड़ा इत्तेफाक कैसे हो सकता है मैडम कि एक ही रात में चार दुश्मनों ने उसे खत्म करने की योजना बना ली हो।”
“हुआ हो भी सकता है चौहान, क्योंकि पार्टी वाला मौका किसी को रोज-रोज हासिल नहीं होने वाला था, मगर सवाल ये है कि ऐसे दूसरे, तीसरे और चौथे शख्स ने जब भीतर पहुँचकर उसकी मरणासन्न हालत देखी तो चुपचाप वापिस क्यों नहीं लौट गया, क्यों उसने अपनी हाजिरी घटनास्थल पर लगाना जरूरी समझा?”
“अगर वैसा ही हुआ था तो जवाब है मेरे पास।”
“प्लीज एक्सप्लेन।”
“चारों ही ऐसे शख्स रहे होंगे, जिनके मन में अंबानी के लिए बेहद घृणा के भाव मौजूद थे। हो सकता है उसने उनका कोई ऐसा नुकसान कर दिया हो, जिसकी भरपाई मुमकिन न हो। यही वजह थी कि उसे पहले से घायल देखकर भी फलां-फलां शख्स उसके जिस्म पर अपनी नफरत की मुहर लगाना नहीं भूले थे। और हमलावरों की संख्या अगर सच में चार थी तो समझ लीजिए कि उनमें से कम से कम एक कोई महिला ही रही होगी।”
“जिसने उसके चेहरे पर तेजाब उड़ेला था?”
“एग्जैक्टली, अमूमन मर्द वैसा करते हैं तो इसलिए करते हैं क्योंकि वह किसी लड़की की खूबसूरती को बिगाड़ना चाहते हैं। अपनी कुंठा का बदला लेना चाहते हैं। और ऐसे केसेज ज्यादातर प्रेम प्रसंगों के मामले में देखने को मिलते हैं, मगर यहाँ तेजाब एक मर्द के चेहरे पर डाला गया है, इसलिए मुझे यकीन है कि वैसा करने वाली कोई औरत ही रही होगी।”
“और तेजाब फेंका कब गया होगा? मेरा मतलब है बाकी के तीन वार किये जा चुकने के बाद या पहले?”
“मेरे ख्याल से तो बाद में। अगर ऐसा नहीं होता तो जलन की अधिकतावश उसने जोर-जोर से चिल्लाने लग जाना था, उछल कूद भी बराबर मचाई होती भले ही कितना भी नशे में क्यों नहीं होता। और उन हालात में घर के लोगों को खबर लगकर रहनी थी क्योंकि शीतल अंबानी तो दस कदम दूर ही सोफे पर सोई हुई थी।”
“क्या पता खबर तो लगी हो, मगर उसने जानबूझकर कोई एक्शन न लिया हो, जो कि अगर हमले में उसकी मिली भगत थी तो नहीं ही लेना था।”
“किसके साथ मिली भगत मैडम, हमलावर नंबर एक, दो, तीन या चौथे के साथ? या फिर सबके साथ? ऊपर से तेजाब कोई ऐसी चीज भी नहीं है, जिसका इस्तेमाल किसी की जान लेने के उद्देश्य से किया जाये। इसलिए जाहिर है कि उसका प्रयोग भी बस अपनी नफरत की ज्वाला को शांत करने के उद्देश्य से ही किया गया होगा।”
“अब जरा इसके दूसरे पहलू पर पहुँचो। मान लो कि अपराधी कोई एक ही शख्स था, जिसने मामले को उलझाने के लिए अंबानी पर चार अलग-अलग हमले किये थे, जो कि हम बराबर उलझते नजर आ रहे हैं। ऐसे में किसी की तरफ खास ध्यान जाता है तुम्हारा?”
“शीतल अंबानी, उसके अलावा और कोई हो ही नहीं सकता। वह भले ही नशे में थी मगर ये कैसे संभव है कि एक-एक करके चार लोग उसके बेडरूम में पहुँचकर अंबानी पर जानलेवा हमला करने में कामयाब हो गये और वह सोती रही?”
“नशे का कोई ओर छोर नहीं होता यार। अगर वह सच में टुन्न थी तो ये कोई बड़ी बात नहीं है कि आये गये कि खबर उसे न लगी हो। वैसे जब तुम उससे मिले थे तो कैसी हालत में थी?”
“एकदम चाक चौबंद खड़ी आंसू बहा रही थी।”
“यानि दुखी थी?”
“अगर एक्टिंग नहीं कर रही थी तो बेशक दुखी थी।”
“जबकि आकाश के चेहरे पर वैसे कोई भाव नहीं थे, कम से कम उस वक्त तो हरगिज भी नहीं थे, जब तुम रिपोर्ट लिखवाने के बाद उसे मेरे पास लेकर आये थे।”
“मर्द है मैडम, इसलिए शीतल की तरह आंसू तो नहीं बहा सकता था।”
“प्वाइंट तो है तुम्हारी बात में। वैसे भी जब से सृष्टि की रचना हुई है, आंसू बहाने के अधिकतर कांट्रेक्ट औरतों के ही हिस्से में आते रहे हैं।” गरिमा हँसती हुई बोली – “बाई द वे, किसी को कोई तगड़ा फाइनेंसियल गेन तो होता नहीं दिखाई दे रहा अंबानी की मौत की सूरत में?”
“अभी तक तो ऐसा कोई नाम सामने नहीं आया है। रही बात शीतल की, तो अंबानी के पास जो कुछ भी था आखिरकार तो उसी का था। और आकाश की स्थिति पर भी अलग से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। यानि बड़ा अंबानी जिंदा रहे या मर जाये, उसे धेले भर का फायदा नहीं होने वाला।”
“तो ऐसा करते हैं कि अभी के लिए आकाश को सस्पेक्ट्स की लिस्ट से बाहर कर देते हैं।”
“कर सकते हैं मैडम, लेकिन नयी उम्र का लड़का है, और शीतल उम्र में उससे भी कुछ एक साल छोटी होगी, जबकि बड़ा अंबानी अड़तालिस का बताया जाता है, यानि बेमेल जोड़ी। ऐसे में खूबसूरत, हॉट, सेक्सी और कमसिन भाभी के साथ आकाश के फिजिकल रिलेशंस की कल्पना करना कोई हैरानी वाली बात तो नहीं मानी जा सकती।”
“क्या बात है चौहान, निगाहें बड़ी पारखी हो गयी हैं आजकल तुम्हारी।”
सुनकर वह हौले से हँसता हुआ बोला- “आप यकीन कीजिए मैडम, दोनों के बीच पक्का कुछ चल रहा है, भले ही वह बात हमले की वजह बनी हो या न बनी हो।”
“और मान लो बनी हो तो?”
“तो फिर जो हुआ उसमें दोनों बराबर के भागीदार थे। बड़ा अंबानी उन्हें खटकने लगा होगा, इसलिए मिलकर प्लान बनाया और उसे अमली जामा पहना बैठे। ये उनकी बदकिस्मती थी कि चार खतरनाक हमलों के बाद भी वह जिंदा बच गया।”
“अच्छा ये बताओ कि अंबानी और मजूमदार की रंजिश के बारे में जान पाये कुछ या नहीं?”
“नहीं, उस बारे में आकाश ने तो अनभिज्ञता जाहिर की ही थी, मजूमदार ने भी ये कहकर बात खत्म कर दी कि उनके बीच कभी कोई प्रॉब्लम नहीं रही है। वह तो ये भी कहता था मैडम कि अंबानी के साथ उसके अच्छे रिलेशंस कभी बने ही नहीं तो उनके खराब होने का क्या मतलब बनता था। हाँ, आमने सामने पड़ने पर हाय-हैलो बराबर हो जाया करती थी।”
“नहीं, बात इतनी सीधी और सरल होती चौहान तो आकाश इस बात से
कभी नहीं मुकरता कि उसने खुद मजूमदार को इनवाईट किया था। और मजूमदार क्योंकि पार्टी में अपनी शिरकत से इंकार नहीं कर रहा, इसलिए ये भी साबित हो जाता है कि वह परसों रात वहाँ मौजूद था। अब खुद सोचकर देखो कि ऐसे आदमी को बतौर सस्पेक्ट सामने लाने की कोशिश कोई क्यों करेगा, जिसकी अंबानी के साथ कोई दुश्मनी ही न रही हो। इसलिए मजूमदार की ढोल में कोई ना कोई पोल तो जरूर होनी चाहिए।” कहकर कुछ क्षण विचार करने के बाद वह बोली – “एक काम करो, सबसे पहले इसी बात का पता लगाओ कि मजूमदार की अंबानी के साथ अदावत क्या थी? किस हद तक थी? उसके बाद ही उसे शकमुक्त करना ठीक रहेगा।”
“आपको यकीन है कि ये सब किसी एक ही इंसान का किया धरा है?”
“एक की बजाय दो रहे हो सकते हैं, जैसे कि आकाश और शीतल, राणे और मजूमदार।” कहकर उसने पूछा – “अनंत गोयल का कुछ पता लगा?”
“अभी तक तो नहीं ही लगा है मैडम। घर पर उसके ताला लगा हुआ है और ऑफिस वह पहुँचा नहीं। हाँ, एक बात जरूर मालूम पड़ी है उसके बारे में।”
“कौन सी बात?”
“किसी काव्या नाम की डिवोर्सी लड़की के साथ उसका खूब मिलना जुलना था। बल्कि अंबानी की पार्टी में भी वह उस लड़की के साथ ही पहुँचा था। कायदे से उस बारे में आकाश ने मुझे बताना चाहिए था, मगर खबर राणे से पूछताछ के दौरान हासिल हुई।”
“मामूली बात थी, किसी के भी ध्यान से उतर सकती है। मत भूलो कि अगर आकाश इनोसेंट है तो इस वक्त गहरे सदमे की हालत में होगा। ऐसे में दो चार बातें भूल जाना कौन सी बड़ी बात है। फिर ये भी हो सकता है कि उसे अनंत की गर्लफ्रेंड के बारे में कोई खबर ही न हो, या वह बात उसे जिक्र के काबिल लगी ही न हो।” कहकर उसने पूछा – “नाम क्या बताया तुमने उस लड़की का?”
“जी काव्या, काव्या अग्रवाल।”
“उसे खबर भिजवाओ कि मैं उससे मिलना चाहती हूँ।”
“एमपी की बेटी है मैडम।”
“भले ही मिनिस्टर की हो। हम अपनी ड्यूटी करें या सामने वाले की पोजीशन का रौब खाते फिरें। फिर एमपी उसका बाप है, ना कि वह खुद। एक सिपाही को भेज दो उसे इंफॉर्म करने के लिए। खुद आ गयी तो ठीक वरना बाद की बाद में देखी जायेगी।”
“ठीक है मैडम।”
“ये कोई कम हैरानी की बात नहीं है चौहान कि जो शख्स अपने बॉस को
हॉस्पिटल तक लेकर गया, उसकी जान बचाने का निमित्त बना, बाद में गायब हो गया। क्यों गायब हो गया? उसका पूरे मामले से भला क्या लेना-देना हो सकता है?”
“एक छोटी सी वजह समझ में तो आ रही है मैडम।”
“क्या?”
“जिस वजह से कोई अंबानी का दुश्मन बना बैठा, वही वजह इस अनंत गोयल के इर्द-गिर्द भी कहीं स्टे करती होगी। ऐसे में जब उसने अपने बॉस का बुरा हश्र देखा तो समझते देर नहीं लगी कि करने वाला कौन रहा हो सकता है, तब उसे खुद की जान भी खतरे में दिखाई देने लगी होगी, इसलिए गायब हो गया।”
“ऐसा शख्स तो हमारे बहुत काम का साबित हो सकता है चौहान। अगर वह हमलावर को जानता है तो हमारा काम महज उसे ढूंढ निकालने से भी पूरा हो सकता है। बल्कि तुम्हारी थ्योरी पर यकीन करें तो जानता ही होगा, वरना उसे अपनी जान का खतरा भला क्योंकर महसूस होता?”
“जी बेशक।”
“और कुछ कहना चाहते हो?”
“नहीं मैडम।”
“ठीक है फिर, काम पर लगो। कोई खास जानकारी हाथ लगे तो फौरन मुझे खबर करना। अभी डीसीपी साहब की हाजिरी भरने जा रही हूँ, जहाँ से एक घंटे बाद फ्री हो जाऊंगी। आगे कोई जरूरत दिखाई दे तो कॉल कर के मुझे बुलाने में संकोच मत करना, समझ गये?”
“यस मैडम।”
“तो निकलो भई यहाँ से।”
“लेडिज फर्स्ट।” चौहान के मुँह से बरबस ही निकल गया।
उस बात पर गरिमा ने एक जोरदार ठहाका लगाया और उठ खड़ी हुई।
शुभांगी बिड़ला बत्तीस साल की, अच्छी शक्लो सूरत वाली युवती थी। उसके दो बच्चे थे, जिनमें से बड़ा आठ साल का था, जबकि छोटे की उम्र पांच वर्ष थी, मगर फिगर यूँ मेंटेन कर रखा था कि शादीशुदा तक नहीं दिखाई देती थी, दो बच्चों की माँ होना तो बहुत दूर का एहसास था। ऊपर से ड्रेसअप भी उसका काफी मॉर्डन था, जिसके कारण अपनी उम्र से बहुत छोटी नजर आती थी।
उसका घर ग्रेटर नॉएडा के इलाके में था, मगर इतना करीब होते हुए भी बच्चों की पढ़ाई और पति की व्यस्तता के कारण भाई के घर पर उसका बहुत कम ही
आना हो पाता था।
शीतल के बाद आकाश से बात करने के बाद उसने फौरन अपना घर छोड़ दिया और बमय ड्राईवर कार में सवार होकर दो घंटे के भीतर अंबानी नर्सिंग होम पहुँच गयी।
सबसे पहले उसकी निगाह शीतल पर पड़ी, जो कि बेंच पर बैठी देवर के साथ खुसर-फुसर में जुटी हुई थी। फिर जैसे ही शीतल की निगाह अपनी तरफ बढ़ती शुभांगी पर पड़ी वह उठकर तेजी से उसकी तरफ लपकी और उसे जबरन अपनी बाहों में भरकर फूट-फूटकर रोने लगी।
शुभांगी तटस्थ खड़ी रही, यहाँ तक कि उसने शीतल को सांत्वना देने की भी कोशिश नहीं की, उसे बाहों के घेरे में लेना तो दूर की बात थी। उल्टा उसकी निगाहें पीछे खड़े अपने छोटे भाई पर जाकर ठहर गयी थीं, जो बेंच से तो उठ खड़ा हुआ था मगर बहन की तरफ बढ़ने की कोशिश अभी तक नहीं की थी।
कुछ देर के एकतरफा मिलाप के बाद शीतल खुद ही उससे अलग होकर अपने आंसू पोंछने में जुट गयी।
“भईया कहाँ हैं?” शुभांगी ने बड़े ही रूखे ढंग से सवाल किया।
“भीतर कमरे में।” शीतल ने हिचकियां लेते हुए बताया।
शुभांगी आगे बढ़कर अंदर दाखिल हुई तो उसने खुद को एक छोटे से हॉलनुमा कमरे में पाया, जहाँ दो सोफा, सेंटर टेबल और एक छोटी सी लोहे की रेक रखी हुई थी। उसे ये सोचकर बड़ी हैरानी हुई कि आकाश और शीतल अंदर होने की बजाय बाहर बेंच पर बैठे मिले थे।
सामने एक दरवाजा दिखाई दे रहा था, जो कि आधा खुला हुआ था। शुभांगी ने उसे धकेलते हुए भीतर झांका तो सत्यप्रकाश को सामने बेड पर लेटा पाया। एक नर्स उसके करीब स्टूल पर बैठी हुई थी, जो उसे देखते ही उठकर खड़ी हो गयी और इशारा किया कि वह भीतर आने की कोशिश न करे।
जवाब में उसने हौले से मुंडी हिलायी और वहीं खड़े खड़े भाई को निहारने लगी। फिर उसकी आँखें भर आयीं। हिचकियां लेने को हुई तो नर्स ने एक बार फिर इशारे से उसे समझाया कि आवाज न करे।
तब बड़ी मुश्किल से अपनी रूलायी रोकती हुई वह बाहर निकली और बेंच पर बैठकर जोर-जोर से रो पड़ी।
धैर्य का बांध टूट चुका था।
शीतल और आकाश उसे चुप कराने की कोशिश करने लगे।
वह सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चला फिर शुभांगी एकदम शांत नजर आने लगी।
“क्या हुआ था?” उसने आकाश से पूछा।
जवाब में वह सारा किस्सा सुनाता चला गया।
“पुलिस को खबर की?”
“हाँ की, करना ही था।”
“उन्हें कुछ मालूम पड़ा, किसने किया था?”
“अभी तक तो नहीं।”
“डॉक्टर क्या कहता है, ठीक तो हो जायेंगे न?”
“हाँ, थोड़ा वक्त लगेगा मगर पुरी ने भरोसा दिलाया है कि भैया ठीक हो जायेंगे।”
“शुक्र है भगवान् का।” कहकर उसने पूछा – “तुम लोगों को किसी पर शक नहीं हुआ?”
“नहीं, पार्टी में इतने मेहमान मौजूद थे, तुम खुद भी तो आई थी। देखा नहीं, कितनी भीड़ थी वहाँ। ऐसे में कौन वापिस लौट गया और कौन भीतर कहीं छिप कर बैठ गया, इसका अंदाजा कैसे लगाया जा सकता था।”
“दो दिन पहले भाई से मेरी लंबी बात हुई थी। तब उन्होंने निशांत मौर्या के बारे में बताते हुए मेरी राय जाननी चाही थी। मैंने कह दिया कि जो उन्हें ठीक लगे करें, किसी मुलाहजे में पड़ने की जरूरत नहीं थी। अब सोचती हूँ कहीं उसी ने तो...।”
“कैसे हो सकता है। भाई की जान लेकर भी वह इस बात की गारंटी कैसे कर सकता था कि उसका चाहा पूरा हो जायेगा। जो करने से भाई ने साफ इंकार कर दिया था उसे क्या बाद में वह हमारे जरिये पूरा करवा लेता?”
“राणे और मजूमदार भी पहुँचे हुए थे पार्टी में, जबकि सब जानते हैं कि भैया उन्हें सख्त नापसंद करते हैं। किसने बुलाया था उन दोनों को?”
“अगर भाई ने नहीं बुलाया था तो समझ लो यूँ ही आ घुसे थे, मगर उन बातों पर सिर खपाने का क्या फायदा है अब।” आकाश बोला – “जो घटित हो चुका है उसे हम बदल तो नहीं सकते न? फिर क्या हो गया अगर दो ऐसे लोग पार्टी में आ भी गये, जिन्हें भईया पसंद नहीं करते थे?”
“अगर हमला करने वाले वही लोग थे, या उनमें से कोई एक था, तो क्या हो गया, ये क्या तुम्हें बताने की जरूरत है?” शुभांगी खीझ भरे स्वर में बोली।
आकाश ने जवाब देने की कोशिश नहीं की।
“पुलिस कुछ कर भी रही है या नहीं?”
“मालूम नहीं, हम दोनों तो हर वक्त यहीं हैं। हाँ, कल एक सब इंस्पेक्टर मुझे लेकर घर पर पहुँचा था। तब पता लगा कि सीसीटीवी से जुड़े कंप्यूटर की हॉर्ड
डिस्क भी निकाल ले गये थे वह कमीने।”
“उनसे बात करनी होगी।”
“किससे?”
“पुलिस से।”
“फायदा?”
“होगा, जब तक हम दबाव नहीं डालेंगे वह लोग ढंग से केस को इंवेस्टिगेट नहीं करने वाले। मैं ऐसा करती हूँ कि केस के इंचार्ज से मिल आती हूँ। नाम क्या है उसका?”
“खामख्वाह ही पुलिस के पास जाओगी। तुम्हारे कहने भर से तो अपनी स्पीड बढ़ा नहीं देंगे वे लोग?” आकाश बोला।
“हो सकता है ना बढ़ायें, मगर तुम दोनों की तरह मैं यूँ हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकती, क्योंकि होने को ये भी हो सकता है कि भाई के जिंदा बच जाने की खबर पाकर दुश्मन फिर से उन पर हमला कर बैठे।”
आकाश और शीतल हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।
“क्यों, बहुत मुश्किल काम है ये?”
“नहीं, आप ठीक कह रही हैं।” इस बार शीतल बोली – “अंदेशा तो मैंने भी जाहिर किया था, मगर डॉक्टर पुरी के सामने किया था ना कि पुलिस के सामने।”
“पुरी क्या कर लेगा? उसका ऐसी बातों पर क्या अख्तियार है?”
“ठीक है दीदी, आपको जो ठीक लगता हो कीजिए।”
“नाम अभी तक नहीं बताया केस के इंचार्ज का?”
“सब इंस्पेक्टर नरेश चौहान।” आकाश बोला – “मगर वह लोकल थाने से नहीं है, उससे मिलना है तो पुलिस हेडक्वार्टर जाना होगा। वहाँ दूसरी मंजिल पर आखिरी वाला कमरा है उसका।”
“मोबाइल नंबर नहीं लिया उसका?”
“नहीं, ख्याल तक नहीं आया।”
“तुम लोग अभी यहीं रूकोगे?”
“घंटा-दो घंटा के लिए घर जायेंगे, क्योंकि कल से यहीं हैं।”
“रूककर जाना, तब जबकि मैं यहाँ वापिस लौट आऊं। हममें से किसी एक का यहाँ होना बहुत जरूरी है।”
“ठीक है, हम वेट कर लेंगे।”
शुभांगी उठकर बाहर की तरफ बढ़ गयी।
आकाश और शीतल उसे जाता हुआ देखते रहे। दोनों से इतना भी करते नहीं बना कि उससे साथ चलने के बारे में पूछ लेते।
नर्सिंग होम से बाहर निकलकर शुभांगी अपनी कार में जा बैठी और ड्राईवर को पुलिस हेडक्वार्टर चलने को कह दिया, तत्पश्चात उसने हस्बैंड को फोन लगाया।
दूसरी तरफ से कॉल फौरन अटेंड कर ली गयी।
“मैं कुछ दिनों तक इधर ही रहने वाली हूँ अभय।”
“बेशक रूक जाओ, मगर सब ठीक तो है न, क्या हुआ है सत्यप्रकाश को?”
शुभांगी ने संक्षेप में सारा किस्सा सुना दिया।
“ओह बहुत बुरा हुआ, शीतल कैसी है?”
“तुम्हें उसकी बड़ी चिंता हो रही है?” वह तिक्त लहजे में बोली।
“हद करती हो यार! उसके पति पर जानलेवा हमला हुआ है, ऐसे में क्या मैं उस बेचारी की हालत के बारे में भी सवाल नहीं कर सकता तुमसे?”
“कर सकते हो, मगर यूँ तो मत करो जैसे उसकी फिक्र में अधमरे हुए जा रहे हो। जबकि चिंता तुम्हें भैया की होनी चाहिए। बाई द वे, ठीक है तुम्हारी ‘बेचारी’।”
“अच्छी तरह से ख्याल रखना, अभी उम्र ही कितनी है उसकी, सामने होती है तो यूँ लगता है जैसे कोई सत्रह-अट्ठारह साल की बच्ची आ खड़ी हुई हो।”
“मैं तुम्हारा सिर फोड़ दूँगी।”
दूसरी तरफ से अभय हौले से हँस कर रह गया।
“अच्छा ये बताओ कि इधर दिल्ली में किसी बढ़िया प्राइवेट डिटेक्टिव को जानते हो?”
“क्यों पूछ रही हो?”
“सत्य के हमलावरों का पता लगवाना चाहती हूँ।”
“पुलिस लगा लेगी, उसके लिए अगल से डिटेक्टिव हॉयर करने का क्या फायदा?”
“पुलिस करते-करते करेगी, क्योंकि उनके पास और भी बहुतेरे काम होते हैं, इसलिए ज्ञान देने की बजाय मेरे सवाल का जवाब दो।”
“तुम बेवजह के झंझट में पड़ रही हो, जबकि पुलिस से बेहतर और कोई नहीं हो सकता। सत्यप्रकाश बड़ा और नामी गिरामी आदमी है, इसलिए कोई कोताही नहीं बरतने वाले वो लोग।”
“तुम जानते हो या नहीं ऐसे किसी आदमी को?”
“कई टॉप की एजेंसीज का नाम सुन रखा है, उनमें से एक की सर्विसेज भी
हासिल कर चुका हूँ साल भर पहले।”
“किसलिए?”
“तुम पर नजर रखने के लिए। उन दिनों तुम खूब सज संवर कर रहने लगी थी, इसलिए मुझे शक हुआ कि तुम्हारा किसी के साथ अफेयर चल रहा है। ऐसे में असलियत जानना तो जरूरी था न मेरे लिए।”
“अभय मैं इस वक्त मजाक के मूड में बिल्कुल भी नहीं हूँ।”
“सॉरी बेबी, बात ये है कि उन दिनों मैं अपने एकाउंटेंट की जासूसी करवा रहा था, जिस पर मुझे बहुत दिनों से शक था कि वह कोई बड़ा हेर-फेर कर रहा है। बाद में मेरा शक सही भी निकला था। महज चार दिनों में उस डिटेक्टिव एजेंसी के लोगों ने बमय सबूत उसका पर्दाफाश कर दिखाया था।”
“अरे मैं उस तरह के डिटेक्टिव की बात नहीं कर रही।”
“मैं समझ रहा हूँ, डोंट वरी। असल में वह एक बड़ी एजेंसी है, जिसमें कई जासूसों की टीम एक साथ काम करती है। नाम है- ‘द वॉचमैन’, मगर फीस बहुत तगड़ी है उन लोगों की।”
“तुम्हारे पास पैसों की कमी है?”
“उसका क्या है, वह तो मुझे हमेशा कम ही जान पड़ता है, मगर तुम्हारे लिए कोई कमी नहीं है। चाहो तो करोड़-दो करोड़ पार्लर में उड़ा दो, परवाह नहीं।”
“थैंक यू, ऑफिस कहाँ है उनका?”
“ग्रेटर कैलाश में, पता गूगल कर सकती हो, या कहो तो व्हाट्सअप किये देता हूँ।”
“रहने दो मैं खुद ढूंढ लूंगी, थैंक यू।” कहकर उसने कॉल डिसकनेक्ट कर दी।
“कैलाश।” वह ड्राईवर से बोली।
“यस मैडम।”
“यू टर्न लो और ग्रेटर कैलाश चलो।” कहकर उसने गूगल पर ‘द वॉचमैन’ लिखकर सर्च मारा तो उनके एड्रेस के साथ-साथ फोन नंबर भी हासिल हो गया।
शुभांगी ने उस नंबर पर कॉल लगाया।
“गुड इवनिंग।” एक कंप्यूटराईज टोन उसे सुनाई दी – “ ‘द वॉचमैन’ आपका स्वागत करता है। एक ऐसी डिटेक्टिव एजेंसी, जो टॉप फाइव में पहले पायदान पर है, क्योंकि हम हैं- ‘द वॉचमैन’। हमारी निगाहों से कोई नहीं बच सकता। कृपया वांछित एक्सेंटशन नंबर डॉयल करें, या ऑपरेटर के लिए ‘नौ’ दबायें।”
शुभांगी ने नौ नंबर पर पुश किया।
तत्काल बेल जाने लगी, फिर किसी लड़की की बेहद सुरीली आवाज उसके कानों में पड़ी- “गुड इवनिंग, ‘द वॉचमैन’ से मैं वंशिका भौमिक बोल रही हूँ।
बताइए, क्या सहायता कर सकती हूँ?”
“वंशिका, मेरा नाम शुभांगी बिड़ला है। मुझे आपकी एजेंसी की प्रोफेशनल सर्विसेज की जरूरत है।”
“धन्यवाद। आप कब आना चाहेंगी मैम, कल सुबह?”
“क्या अभी पॉसिबल नहीं है?”
“आ सकती हैं, आपका स्वागत है।”
“किससे मिलना होगा?”
“मिस्टर सान्याल से मैम, आप कब तक पहुँचेंगी?”
“मे बी पंद्रह मिनट में।”
“ठीक है, मैं इंतजार करूंगी।”
“थैंक यू।” कहकर शुभांगी ने कॉल डिसकनेक्ट की और ड्राईवर को रास्ता समझाने में जुट गयी, जो कि उसका खूब देखा भाला था।
आखिरकार गाड़ी एक दो मंजिला इमारत के सामने पहुँचकर रूक गयी।
शुभांगी नीचे उतरी।
बिल्डिंग के बाहर एक बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था- ‘द वॉचमैन’, फिर नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था- ‘नो वन कैन हाईड फ्रॉम अस’ बोर्ड पर निगाह डालकर वह गेट की तरफ बढ़ी तो वहाँ मौजूद गार्ड ने ठोककर सेल्यूट किया, फिर दरवाजा खोलकर खड़ा हो गया।
वह बिल्डिंग ‘द वॉचमैन’ के डायरेक्टर पार्थ सान्याल की मिल्कियत थी, जिसके ग्राउंड फ्लोर का इस्तेमाल ऑफिस के तौर पर किया जाता था। पहली मंजिल पर वंशिका भौमिक और युग जौहर रहते थे, जबकि सेकेंड फ्लोर पर खुद पार्थ का बसेरा था।
शुभांगी आगे बढ़कर इमारत के एंट्रेंस पर लगे शीशे के दरवाजे तक पहुँची, जिसे वहाँ मौजूद दूसरा गार्ड उस पर नजर पड़ते के साथ ही खोल कर खड़ा हो गया था।
“गुड इवनिंग मैम।”
जवाब में शुभांगी हौले गर्दन को खम देकर आगे बढ़ गयी।
सामने खूब सजा-धजा रिसेप्शन था, जहाँ उस वक्त एक बेहद खूबसूरत, रिसेप्शन की सजावट से मैच करती मुश्किल से सत्ताईस-अट्ठाईस साल की युवती बैठी कंप्यूटर का की-बोर्ड खटखटा रही थी। वह वंशिका भौमिक थी, जो ना सिर्फ रिसेप्शन संभालती थी बल्कि पार्थ सान्याल की सेक्रेटरी भी थी।
आगंतुक पर निगाह पड़ते ही वह उठकर खड़ी हो गयी- “वेलकम मैम।”
“मिस्टर सान्याल के साथ मेरी अप्वाइंटमेंट है। अभी थोड़ी देर पहले ही फोन
किया था।”
“शुभांगी बिड़ला जी?”
“मैं ही हूँ।”
“प्लीज कम।” कहकर वह घेरा काटकर रिसेप्शन से बाहर निकली और उसे साथ लेकर गलियारे में आगे को बढ़ चली।
फर्श पर मोटा कॉरपेट बिछा हुआ था। दीवारों पर जगह-जगह पेंटिंग्स लगी हुई थीं और छत को खूबसूरत फॉल्स सीलिंग के जरिये सजाया गया था। कुल मिलाकर वह डिटेक्टिव एजेंसी कम और कोई फाइव स्टार होटल ज्यादा जान पड़ता था।
वंशिका उसे लेकर सबसे आखिर के कमरे तक पहुँची और हौले से दरवाजा नॉक कर दिया।
“खुला है।” भीतर से कहा गया।
जवाब में उसने दरवाजे को अंदर की तरफ धकेला और शुभांगी को जाने का इशारा करने के बाद खुद भी उसके पीछे-पीछे भीतर दाखिल हो गयी।
“सर!” वह बोली – “शुभांगी बिड़ला जी।”
तब तक वह उठकर खड़ा हो चुका था- “हैलो मैम, प्लीज बैठिए।”
पार्थ सान्याल पूरे छ: फीट का कसरती बदन वाला इकत्तीस साल का युवक था, जो एक नजर देखने पर कोई मॉडल या फिल्म स्टार जान पड़ता था। अंडाकार चेहरा, चौड़ा मस्तक, सुतवां नाक और बड़ी-ब़ड़ी आँखें, उसकी पर्सनॉलिटी में चार चांद लगाती सी प्रतीत होती थीं। आदतन वह खूब सज-संवर कर रहने वाला युवक था, जो हमेशा क्लीन शेव्ड रहना पसंद करता था।
उसकी पर्सनॉलिटी के अनुरूप ही वह कमरा भी खूब सजा-धजा था।
शुभांगी आगे बढ़कर वहाँ मौजूद विजिटर चेयर पर बैठ गयी।
तभी एक ऑफिस ब्वॉय वहाँ पानी के गिलास रख गया।
पार्थ कुछ देर तक शुभांगी के बोलने का इंतजार करता रहा फिर पूछा- “चाय या कॉफी लेना पसंद करेंगी मैम?”
“कॉफी प्लीज।”
पार्थ ने वहाँ खड़ी वंशिका की तरफ देखा तो उसका मंतव्य समझकर वह फौरन बाहर निकल गयी।
“केस क्या है?”
“सत्यप्रकाश अंबानी साहब का नाम सुना है आपने?”
“जी सुन रखा है।”
“मैं उनकी बहन हूँ शुभांगी बिड़ला।”
“मिलकर खुशी हुई।”
“उन्नीस जुलाई को मेरे भाई की मैरिज एनिवर्सरी थी। रात को बंगले पर बड़ी पार्टी रखी गयी थी, जिसमें मैं भी अपने परिवार के साथ शामिल हुई थी, मगर हम लोग क्योंकि ग्रेटर नॉएडा में रहते हैं इसलिए रात साढ़े दस बजे वापिस लौट गये थे। उसकी एक वजह ये भी थी कि अगले रोज मेरे हस्बैंड को बिजनेस के सिलसिले में अहमदाबाद जाना था।”
“यानि जो हुआ वह आपके जाने के बाद हुआ?”
“जी हाँ, मगर घर के लोगों को उसकी खबर अगली सुबह यानि कि कल लगी, और मुझे आज, करीब तीने घंटे पहले।” कहकर शुभांगी को जो कुछ भी पता लगा था उसे बताती चली गयी, फिर आखिर में बोली – “अब स्थिति ये है कि भाई साहब कोमा में हैं। उन्हें कब होश आयेगा कहना मुश्किल है, और मैं ये सोचकर डर रही हूँ कि उनके जिंदा बच जाने की खबर सुनकर दुश्मन फिर से हमला न कर बैठे।”
“सिक्योरिटी बढ़ा दीजिए, बल्कि पुलिस को संभावित खतरे का यकीन दिलाइए, फिर वे लोग खुद ही उनकी सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम कर देंगे।”
“आपको फीस कमाने से ऐतराज है मिस्टर पार्थ?”
“नहीं, क्यों होगा? मगर हमारी एजेंसी सिक्योरिटी सर्विसेज प्रोवाइड नहीं कराती।”
“आपको लगता है मैं यहाँ आपसे उनकी सुरक्षा का इंतजाम करने के लिए कहने आई हूँ?”
“अगर ऐसा नहीं है तो सॉरी, बताइए क्या चाहती हैं?”
“अभय बिड़ला के नाम से कुछ याद आ रहा है आपको?”
“अभय बिड़ला।” पार्थ ने याद करने की कोशिश की – “हाँ याद है, करीब एक-डेढ़ साल पहले उन्होंने हमारी सर्विसेज ली थीं।”
“वह मेरे हस्बैंड हैं, उनके कहने पर ही मैं यहाँ आई हूँ।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है मैडम। इससे पता लगता है कि क्लाइंट हमसे कितना संतुष्ट है। बताइए मौजूदा मामले में क्या चाहती हैं आप?”
“पता लगाना चाहती हूँ कि मेरे भाई पर जानलेवा हमला किसने किया, या किसने कराया था? अपराधी को बेनकाब कर के दिखाइए मिस्टर पार्थ, इससे पहले कि वह मेरे भाई को फिर से नुकसान पहुँचाने की कोशिश करे।”
“बेशक कर दिखायेंगे, और हमारा काम ही क्या है।”
तभी कॉफी आ गयी। पार्थ ने एक कप उसकी तरफ बढ़ाया और दूसरा खुद उठा लिया।
“बढ़िया बनी है।” कप से एक चुस्की लेने के बाद शुभांगी बोली।
“थैंक यू मैम।”
“चार्ज क्या करेंगे इस केस में?” उसने पूछा।
“पांच लाख एक मुश्त और बीस हजार पर डे के हिसाब से एक्सपेंसेज, जो कि नॉन रिफंडेबल होगा अगर आप बीच में हमें काम करने से रोक देती हैं। हाँ, किसी वजह से हम खुद हाथ खड़े कर दें, जो कि आज तक नहीं हुआ तो आपकी पूरी रकम वापिस कर दी जायेगी।”
“यूँ तो आप सालों साल इंवेस्टिगेशन जारी रखेंगे और कभी हाथ नहीं खड़े करेंगे। कोई ओर छोर भी तो होना चाहिए न मिस्टर पार्थ?”
“बेशक है मैडम। हमारी एजेंसी ने आज तक किसी केस को सॉल्व कर दिखाने में एक सप्ताह से ज्यादा का वक्त नहीं लगाया होगा, किंतु मैक्सिमम की बात करूं तो बीस दिन का समय लेकर चलते हैं हम। बीस दिनों में अगर आपका केस साल्व नहीं कर पाये तो उसका मतलब होगा कि हमने अपने हाथ खड़े कर दिये। तब आप रिफंड क्लेम कर सकती हैं।”
“ये सब लिखित में तो नहीं देते होंगे आप?”
“राइटिंग में ही देंगे मैडम, जुबानी जमा खर्चा का क्या फायदा?”
“गुड, मुझे मंजूर है।”
“थैंक यू, अब बताइए इस पूरे मामले को लेकर आपको किसी पर शक है?”
“है।”
“किस पर?” पार्थ ने नोट पैड और पेन संभाल लिया।
“अनंत गोयल पर।”
“वह कौन है?”
“भाई साहब का पीए है।”
“शक की कोई खास वजह?”
“गायब है।”
“कब से?”
“सॉरी मैं आपको बताना भूल गयी कि कल सुबह बंगले से भाई को नर्सिंग होम ले जाने वाला वही था। उसके बाद से ही उसका कोई अता-पता नहीं है।”
“वह अंबानी साहब पर हमला क्यों करेगा?”
“मालूम नहीं, सच पूछिए तो कोई वजह दिखाई नहीं देती, मगर उसका गायब होना मुझे शक में डाल रहा है।”
“उन्नीस तारीख की पार्टी में क्या वह भी शामिल था?”
“जी हाँ, बल्कि तीन ऐसे लोग भी पहुँचे थे, जिनको वहाँ नहीं होना चाहिए
था।”
“प्लीज एक्सप्लेन।”
जवाब में शुभांगी ने उसे राणे, मजूमदार और मौर्या के बारे में बता दिया।
“अनइनवाइटेड थे तीनों?”
“जी अभी तक तो ऐसा ही दिखाई दे रहा है। हाँ, भाई साहब ने खुद ही रंजिश भुलाकर उन्हें बुला लिया हो तो और बात है, मगर चांसेज बहुत कम हैं, क्योंकि भैया उन तीनों को ही सख्त नापसंद करते हैं।”
“बाकी मेहमानों को किसने इनवाईट किया था?”
“मेरी भाभी और छोटे भाई ने मिलकर गेस्ट लिस्ट तैयार की थी।”
“आपने ये चेक किया कि उसमें उन तीनों का नाम था या नहीं?”
“नहीं किया।”
“फिर तो ये भी हो सकता है कि वह नाम उन लोगों ने ही बाई मिस्टेक अपनी लिस्ट में शुमार कर लिया हो?”
“यहाँ से मेरा शक नया आकार लेता है मिस्टर पार्थ क्योंकि सवाल ये है कि अगर गलती से उन तीनों को न्योता भेज भी दिया था, तो अब उस बात से मुकर क्यों रहे हैं?”
“यानि कुछ और भी चल रहा है आपके दिमाग में?”
शुभांगी ने फौरन उस बात का जवाब नहीं दिया। उसने कप उठाकर दो तीन चुस्कियां भरीं, फिर बोली- “बात ये है कि अनंत के बाद पूरे मामले को लेकर दूसरा शक मुझे अपनी भाभी पर है।”
“यानि तीनों को बंगले में बुलाने वाली वही थी, और वैसा इसलिए किया गया ताकि उन्हें अंबानी साहब पर हमला करने का मौका मुहैया कराया जा सके?”
“वैसा हुआ भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता, मगर मेरा यकीन होने पर ज्यादा है।”
“मतलब कि जो भी हुआ वह उन तीनों और आपकी भाभी, साथ में छोटे भाई की मिली भगत का नतीजा था। बल्कि आपको शक है कि हमला करने की योजना उन पांचों ने मिलकर बनाई थी?”
“आकाश पर शक नहीं है, मगर बाकी चारों की स्थिति मुझे संदेहजनक मालूम पड़ती है। ऊपर से हमला भी तो चार अलग-अलग हथियारों से किया गया था। ऐसे में मैं ये सोचने को मजबूर हो गयी हूँ हत्या के इरादे से वहाँ पहुँचे लोगों की संख्या भी चार ही थी, जिनमें से एक हम शीतल को मान लें तो बाकी के तीनों राणा, मजूमदार और मौर्या हो सकते हैं।”
“हो सकता है टीम वर्क ही रहा हो, मगर चार तरह से हमला करने की बात तो फिर भी जस्टिफाई नहीं होती मैडम, इससे तो कहीं अच्छा होता कि चारों एक साथ वहाँ पहुँचते और उनमें से कोई एक जना गोली मारकर उन्हें मौत के घाट उतार देता। जबकि अभी तो ये हुआ है कि चार हमलों के बावजूद भी आपके भाई साहब सही सलामत हैं।”
“सही सलामत नहीं हैं मिस्टर पार्थ, कोमा में हैं। जिससे उबर ही जायेंगे इस बात की गारंटी नहीं की जा सकती। इस तरह से देखें तो उनकी हालत मृत्युतुल्य ही जान पड़ती है।”
“आप की बात अपनी जगह पर सही है मैडम, लेकिन जान जाने के मुकाबले तो उनकी मौजूदा हालत को सही सलामत ही माना जायेगा न?”
“मे बी।”
“अब जरा अपनी भाभी पर आइए। एक पल को हम मान लेते हैं कि सारा किया धरा उन्हीं का है, तो ऐसे में क्या कोई वजह सुझा सकती हैं आप कि शीतल ने वैसा किया तो क्यों किया?”
“इसके अलावा कुछ नहीं कि उसकी उम्र छब्बीस साल है, जबकि भाई साहब अड़तालिस के हो भी चुके हैं। और ये कबूल करने में भी मुझे कोई झिझक नहीं है कि वह बेहद खूबसूरत है, और मॉर्डन तो इतनी कि दिन भर घर में अर्धनग्न होकर घूमती रहती है। उस बात पर भैया कई बार उसे टोक भी चुके हैं, मगर शीतल पर कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसी औरत का घर से बाहर कोई चक्कर चलता हो सकता है, जिसके कारण उसके लिए भाई को रास्ते से हटाना जरूरी दिखाई देने लगा।”
“अगर ऐसा था तो शादी ही क्यों की?”
“चक्कर बाद में चला होगा, या चल पहले से रहा था, जिसे भुलाकर उसने भाई से शादी कर ली, ताकि दौलत के ढेर पर बैठ सके। आगे चलकर पुराना प्यार जोर मारने लगा तो फिर से एक्स के साथ रंगरलियां चल निकली होंगी। जिसके बाद वह भैया को रास्ते से हटाने का फैसला कर बैठी, क्योंकि उनके बाद वैसे भी तमाम संपत्ति पर उसका कब्जा बन जाना तय है। हालांकि ये सब है तो कल्पना ही, मगर आये दिन इस तरह की वारदातें घटित होती रहती हैं, इसलिए मामले के इस पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
“आपके छोटे भाई की उम्र कितनी है?”
“तीस का होने वाला है।”
“माफी के साथ पूछता हूँ मैडम कि जिस चक्कर का आप अभी-अभी हवाला देकर हटी हैं, वह किसी और की बजाय आकाश के साथ ही चल रहा क्यों नहीं
हो सकता?”
“नहीं-नहीं।” वह हड़बड़ा सी गयी- “ऐसा कैसे हो सकता है, वह भाभी है उसकी, फिर आकाश को अभी जानते नहीं आप, ऐसी बातों से उसका दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है। तीस का हो गया मगर कभी किसी गर्लफ्रेंड की बात तक सामने नहीं आई।”
“आप तो छोटे भाई के फेवर में ही उतर आयीं।” पार्थ हौले से मुस्कराता हुआ बोला।
“फेवर जैसी कोई बात नहीं है, मगर मैं उसे अच्छी तरह से जानती हूँ। वह ऐसा कभी नहीं कर सकता।”
“हो सकता है आपका कहना सही हो, मगर यहाँ मैं आपको अपने फर्म का एक उसूल बता देना जरूरी समझता हूँ, ताकि बाद में आपको किसी परेशानी का सामना न करना पड़े।”
“कैसा उसूल? उसका मुझसे या मेरे केस से क्या लेना-देना हो सकता है?”
“आगे चलकर लेना-देना बन सकता है, इसलिए आपका उस बारे में जान लेना बेहद जरूरी है।”
“ठीक है बताइए।”
“एक बार केस हाथ में लेने के बाद हम इस बात की परवाह बिल्कुल नहीं करते मैडम कि अपराधी हमारे क्लाइंट का कोई सगेवाला है, या खुद क्लाइंट ही है। मतबल ये नहीं हो सकता कि कल को आपका छोटा भाई या कोई ऐसा शख्स अपराधी निकल आये, जिसका जेल जाना आपको गंवारा न हो और आप हमसे कहने लगें कि पूरे मामले को सीक्रेट रखा जाये। उन हालात में आपकी मर्जी हमारे लिए कोई मायने नहीं रखती। अपराधी जो कोई भी होगा, उसे उसके किये की सजा मिलकर रहेगी।”
“यानि गोपनीयता बरतने में आप लोगों का कोई यकीन नहीं है?”
“ऐसा नहीं है मैडम, लेकिन वह सीक्रेसी किसी अपराधी के लिए नहीं हो सकती। ‘द वॉचमैन’ कभी किसी क्रिमिनल का फेवर नहीं करता, हासिल चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो। और यह हमारे फर्म का एक ऐसा उसूल है, जिससे बाहर जाकर काम नहीं कर सकते हम।”
“ठीक है, मुझे मंजूर है।” कुछ क्षण उस बात पर विचार करने के बाद शुभांगी बोली – “क्योंकि मुझे नहीं लगता कि आकाश का इस पूरे मामले से कोई लेना देना हो सकता है।”
“गुड, अब ये बताइए कि निशांत मौर्या, विक्रम राणा, और अजीत मजूमदार को नापसंद करने के पीछे वजह क्या है आपके भाई साहब के पास?”
जवाब में शुभांगी सविस्तार उसे सब-कुछ बताती चली गयी।
“उन तीनों का एड्रेस है आपके पास?”
“स्ट्रीट एड्रेस तो मैं किसी का भी नहीं जानती, लेकिन ऐसा कुछ न कुछ उन सबके बारे में बता सकती हूँ, जिसके जरिये आप बड़ी आसानी से उनके मुकाम तक पहुँच जायेंगे।”
“ठीक है, वही नोट करा दीजिए।”
शुभांगी ने अगले पांच मिनटों में उस काम को अंजाम दिया, फिर बोली- “और कुछ?”
“आप अगर बताना भूल गयी हों?”
“नहीं, अलग से कुछ याद नहीं आ रहा मुझे।”
“ठीक है, रिसेप्शन पर पहुँचकर आप फीस डिपॉजिट कर दीजिए।”
“काम कब से शुरू करेंगे आप लोग?”
“समझ लीजिए शुरू कर दिया, जल्दी ही आपको गुड न्यूज देता हूँ मैं।”
“थैंक यू।” कहकर शुभांगी कमरे से बाहर निकल गयी।
उसके पीठ पीछे पार्थ ने पार्लियामेंट का पैकेट उठाकर एक सिगरेट सुलगाया और कश लगाते हुए इस बात पर दिमाग खपाने में जुट गया कि अभी-अभी हासिल हुए केस की इंवेस्टिगेशन कहाँ से, और कैसे शुरू की जाये।
दस मिनट बाद वंशिका वहाँ पहुँचकर उसके सामने बैठ गयी।
“कुछ कहना चाहती हो?”
“जी हाँ।”
“बोलो?”
“हमारे पास पहले से ही एक मर्डर और दूसरा मिसिंग का केस है सर, जो कि हमने पिछले तीन दिनों में लिए हैं, और अब ये नया केस? प्रॉब्लम होगी, हममें से कोई एक भी खाली नहीं है। यहाँ तक कि युग और मैं भी नहीं, बहुत सारा काम भी पेंडिंग पड़ा हुआ है।”
“तुम्हें लगता है मैंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया होगा?”
“दिया जरूर होगा, मगर इतना फिर भी जानना चाहती हूँ कि उन दोनों असाइनमेंट्स के बीच हम इस तीसरे के लिए वक्त कैसे निकाल पायेंगे?”
“निकलेगा, निकालना ही पड़ेगा। और ये भी मत सोचो कि इस मामले को मैंने महज फीस कमाने के लिए कबूल कर लिया है।”
“फिर क्यों लिया?”
“एक्साइटमेंट के कारण। मामला एकदम चौंका देने वाला है। इस बार हमें किसी के कातिल को नहीं तलाशना है बल्कि उस शख्स को खोजना है, जिसने हमारे क्लाइंट पर मर्डर अटेम्प्ट किया था, जो कि इतना बड़ा अक्ल का अंधा था कि चार हमलों के बावजूद भी अपने शिकार को मौत के घाट नहीं उतार पाया, जबकि किसी की जान लेने के लिए एक सही वार ही काफी होता है। इस तरह से देखो तो केस बड़ा ही इंट्रेस्टिंग साबित होने वाला है।”
“ओह अब समझी।”
“ऑफिस में इस वक्त कौन-कौन है?”
“इत्तेफाक से सब हैं। आदर्श दोपहर बाद अलीगढ़ गया था, इसलिए उसकी वापसी की कोई उम्मीद नहीं थी, मगर थोड़ी देर पहले वह भी लौट आया है।”
“बढ़िया, पांच मिनट में सबको कॉन्फ्रेंस हॉल में पहुँचने को कह दो।”
“यस सर।” कहती हुई वह उठ खड़ी हुई।
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