19 मई : मंगलवार

“वो रहा!”
उस वक्त एयरपोर्ट पर ‘अराइवल’ पर बहुत रश था। ‘अराइवल’ गेट से बाहर दाईं तरफ एक रेलिंग थी जिसके पार कई लोग हाथों में पेजिंग के बोर्ड लिए खड़े थे जिनमें शाह के दो पर्सनल गार्ड भी थे जिनमें से एक हाथ में जो बोर्ड लिए खड़ा था, उस पर ए-4 साइज़ का एक कागज चिपका था, कम्प्यूटर के ज़रिए जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में दर्ज था :
हकीम अकमल खान
दिल्ली
राजा सा'ब और माइकल गोटी उस घड़ी बनती इमारत की चौथी मंजिल पर फ्रंट में एयरपोर्ट की तरफ की एक खिड़की पर थे जिसमें चौखट तो लगी हुई थी लेकिन पल्ले लगने अभी बाकी थे। खिड़की के प्रोजेक्शन पर गोटी ने एक ट्राइपौड टिकाया हुआ था जिस पर उसकी टेलीस्कोपिक साइट वाली राइफल यूँ फिक्स थी कि नाल का रुख अराइवल’ गेट की तरफ था। उसकी उंगली राइफल के ट्रीगर पर स्थिर थी और ट्रीगर इतना सैंसिटिव था कि उस पर उंगली का बाल बराबर दबाव पड़ने पर भी गोली चल जाती थी। बतौर स्नाइपर गोटी की दक्षता इस बात में थी कि ट्रीगर को खींचना नहीं था – “पुल’ नहीं करना था – स्क्वीज़ करना था, हौले से दबाना भर था। ट्रीगर को ‘पुल’ करने की सूरत में नाल बाल बराबर भी हिलती तो निशाना चूक सकता था। गोटी की आँख टेलीस्कोपिक साइट पर थी और साइट सामने ‘अराइवल’ पर स्थिर थी।
राजा सा'ब सामने का नज़ारा निकोन मोनार्क एचजी ब्रांड की दूरबीन के ज़रिए कर रहा था।
“वो जो दाएँ हाथ में एक नीला एयरबैग सम्भाले है...” ।
“खामोश!” - गोटी भिंचे दान्तों में से फँफकारता-सा बोला – “मेरे को दिख रहा है। मेरी कन्सेंट्रेशन न बिगाड़ो।”
“स-सॉरी!”
“वो भी नहीं बोलने का।”
राजा सा'ब ख़ामोश हो गया। दरबीन वो बदस्तर अपनी आँखों से लगाए रहा। “हकीम।”
तभी दूरबीन में से उसने ‘हकीम को फ़र्श पर ढेर होते देखा।
तब कहीं जाकर उसे मालूम हुआ कि गोटी निशाना बींध भी चुका था और अब वो राइफल को डिसमेंटल करके ट्राइपौड़ समेत सारे पास बारी-बारी राइफल के केस में रख रहा था।
दो मिनट में केस ब्रीफकेस की तरह उसके हाथ में था। राजा सा'ब ने दूरबीन उसके चमड़े के केस में रख ली थी। दोनों एक साथ चार मंजिल नीचे उतरे। गोटी सड़क पार करने की कोशिश करने लगा।
“उधर कहाँ जा रहा है?” – राजा सा'ब ने तत्काल ऐतराज़ किया।
“अराइवल गेट पर।” – गोटी बोला।
“क्यों?”
“अरे, कनफर्म करने का कि नहीं कि मरने वाला सोहल है?”
“हरगिज़ नहीं।”
राजा सा'ब ने प्रबल विरोध किया – “वहाँ शाह के पर्सनल गार्ड्स मौजूद हैं, उन्होंने तुझे देख लिया तो क्या जवाब देगा, क्या कर रहा था एयरपोर्ट पर!”
“ओह!”
“यहाँ जो है, किसी को हमारी मौजूदगी की ख़बर लगना हम अफोर्ड नहीं कर सकते।”
“ठीक!”
“और दो घन्टे में ख़बर टीवी पर आ जाएगी, ईवनिंग न्यूज़ में भी छप जाएगी। तब वैसे ही मालूम हो जाएगा कि मरने वाला सोहल था। दो घन्टे इन्तज़ार नहीं कर सकता क्या?”
“कर सकता हूँ।”
“तो निकल लेने का। स्नाइपर्स राइफल साथ ले ले के फिरना वैसे भी मुसीबत का बायस बन सकता है।”
“ठीक! फिर तो मेरे को तुम्हारे से अलग होना होगा!”
“वान्दा नहीं। तू कार ले के जा, मैं कैब पकड़ता हूँ।”
“कार शाम को लौटा जाऊँगा।”
“जब मर्जी लौटाना। क्या जल्दी है?”
“ठीक!”
दोनों फुटपाथ से ही अलग हो गए।
बंगले में राजा सा'ब और रोज़ी ने एक साथ लेट लंच किया।
टीवी देखने में राजा सा'ब ने कोई दिलचस्पी न दिखाई। जो टीवी पर दिखाया जाना था, उसकी उसे पहले से खबर थी।
बंगले के पीछे एक बड़ा लॉन था, लंच के बाद जहाँ वो सुस्ताने के लिए बैठे।
कुछ वक्त गुज़रा तो एकाएक रोज़ी को अहसास हुआ कि राजा सा'ब उसे अपलक देख रहा था।
“क्या देखते हो?” – वो तनिक विचलित भाव से बोली।
“देखता भी हूँ” – वो संजीदगी से बोला – “और सोचता भी हूँ।”
“क्या?”
“तू जो है, बहुत खूबसूरत है। परी है।”
“अगर ये काम्पलीमेंट है तो शुक्रिया।”
“सोचता हूँ कोई तेरे जैसी दिलफरेब, तौबाशिकन हुस्न की मलिका कैसे किसी एक मर्द की हो सकती है!”
“क्या कहना चाहते हो?”
“सुनना चाहता हूँ। अलफाज़ तेरे, ज़ुबान मेरी।”
“क्या सुनना चाहते हो?”
“ मैं अनुरागी, मैं बड़भागी, मैं तीन देवरों की भाभी'।”
“वॉट नॉनसेंस! ये तीन देवर कहाँ से आ गए मेरे! तमने तो कभी अपने किसी भाई का जिक्र किया नहीं था!”
“तू क्लोपैट्रा की ज़ात है, जूलियस सीजर जिसके पहलू में, मार्क एंटनी जिसकी निगाह में, कोई तीसरा वॉरियर जिसके ख़यालों में और अभी पता नहीं कितने लम्बी लाइन लगाए अपनी बारी के आने के इन्तज़ार में।”
“तीन देवर भूल गए!” – रोज़ी के स्वर में तीखे व्यंग्य का पुट आया।
“कहते हैं औरत का दिल-दरिया होता है जिसमें बहुत किश्तियाँ तैर सकती
“अरे, क्या बहकी बहकी बातें कर रहे हो! दिन में कहीं गए थे। वहीं तो नहीं चढ़ा ली थी?”
गैंग ऑफ फ़ोर में जो है, तू सबसे ज़्यादा किस से मुतासिर है?”
“तुम्हारे से।”
“मेरे अलावा?”
“कोई नहीं।”
“होता तो कौन होता?”
“क्यों होता भला?”
“अरे, समझ, ऐसे ही एक सवाल पूछा!”
“क्यों पूछा? मेरे को ऐसे सवाल पसन्द नहीं।”
“क्योंकि तेरे को तीनों पसन्द।”
“क्या ख़राबी है? तुम्हारे करीबी हैं, तुम्हारे करीबियों से डीसेंटली पेश आना मेरा फर्ज है।”
“तीनों में से किसी एक के साथ राइड मारने का मुद्दा खड़ा हो तो किसे चांस देगी?”
“वॉट नॉनसेंस!”
“मेंडिस को ...”
“तुम वाकई नशे में हो।”
“... तो चांस दे भी चुकी है!”
“मैं ऐश ट्रे फेंक के मारूँगी!”
“अरे, इतना नाराज़ मत हो। समझ, मज़ाक किया।”
“मेरे को ऐसे मज़ाक पसन्द नहीं।”
“ओके! ओके! अब जुदा बात सुन।”
“जुदा ही हो!”
“बिल्कुल जुदा तो नहीं है लेकिन ... सुन। सुन पहले।”
“सुनाओ!”
“बात ये है कि मैं तेरा जो है, एक फायदा उठाना चाहता हूँ जो पहले मेरे को कभी न सूझा। तू समझ, पहले मैं उसी की बुनियाद बना रहा था।”
“क्या फायदा?”
“मैं माइकल गोटी को अपने रास्ते से हटाना चाहता हूँ।”
“उसे गैंग से बाहर करना चाहते हो?”
“हमेशा के लिए ... . हमेशा के लिए हटाना चाहता हूँ।”
“तुम वही कह रहे हो न, जो मैं समझ रही हूँ!”
“वही कह रहा हूँ। ठीक समझ रही है।”
“एकाएक ऐसा ख़याल क्यों आया?”
“आया किसी वजह से।”
“बाकी दो?”
“बाकी दो तू समझ, कोई मानी नहीं रखते। इसलिए ये टेम गोटी। पहले गोटी।”
“कोई बड़ा प्रोजेक्ट है निगाह में?”
“बहुत बड़ा। तेरी उम्मीद से बड़ा। लेकिन अभी उस बाबत जो है, कोई सवाल न करना।”
“जो मैं समझी हूँ वो ये है कि किसी वजह से तुम गोटी को अपने रास्ते से हटाना चाहते हो और ये काम मेरे से कराना चाहते हो!”
“तुझे काम के होने का ज़रिया बनाना चाहता हूँ।”
“एक ही बात नहीं!”
“नहीं। लेकिन फिर है भी।”
“अरे, क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो?”
“अभी गोटी की तरफ तवज्जो रख। गोटी जो है, साठ का होने वाला है। उम्र के लिहाज़ से तन्दुरुस्त है लेकिन हैवीली डायबटिक है। औरत के सुख का शैदाई है लेकिन इस उम्र में, ऊपर से डायबटिक होने की वजह से, एक बार से ज़्यादा जो है, परफॉर्म नहीं कर सकता।”
“तुम्हें क्या मालूम?”
“साथ उठने-बैठने वाले मर्दो में जो है, ऐसी बातें उठती रहती हैं। एक बार हम चारों में – गैंग ऑफ फ़ोर में – ड्रिंक्स का सैशन चल रहा था तो ख़ुद उसने इस बात का जिक्र किया था और जोड़ा था कि उसे डॉक्टर की हिदायत थी कि एक बार से ज़्यादा परफॉर्म करने की कोशिश जो है, वो कभी न करे वर्ना दूसरी बार एक्ट के दौरान ही दिल बैठ जाएगा।”
“तो”
“मैं चाहता हूँ तेरे साथ एक्ट में उसका दिल बैठ जाए।”
“देवा रे! ये क्या सुन रही हूँ मैं?”
“ठीक सुन रही हैं।”
“मेरे को क-कत्ल ... कत्ल के लिए उकसा रहे हो?”
“कत्ल खामख़ाह! नेचुरल मौत मरेगा। बेमिसाल, मुजस्सम हुस्न के पहलू में था, ज्यास्ती जोश खा गया, जोश में जो है, शूगर ऊपर नीचे हो गई, टपक गया।”
“मौत की वजह तो मैं ही बनी न! मैं बनी तो ये कत्ल ही तो हुआ?”
“नहीं हुआ। इत्तफ़ाक हुआ। बड़ी हद हादसा हुआ।”
“नो!”
“सोच के बोल!”
“सोच के ही बोला। मैं ये काम नहीं कर सकती।”
“जोश में बोल रही है। होश में बोल।”
“होश में ही बोला। मैं ये काम नहीं कर सकती।”
“करेगी तो तेरे लिए बड़ा ईनाम है।”
“ईनाम!”
“हाँ, ईनाम! बड़ा! तेरी उम्मीद से बड़ा!”
“क्या?”
“जो दस खोखड़ा रोकड़ा मेंडिस ने तेरे हवाले किया, वो तेरा।”
वो सन्न रह गई। कई क्षण उसके होंठ फड़फड़ाए लेकिन मुँह से बोल न फूटा।
“कैसा रोकड़ा?” — फिर हिम्मत करके बोली – “और क्यों मेंडिस उसे मेरे हवाले करेगा?”
“क्योंकि तू उससे फिट है। दो-चार-दस दिन से भी नहीं, साल से।”
फेंक रहे हो।”
“नहीं, भई।”
“और ये बात तुम्हें मालूम है!”
“अभी परसों ही मालूम हुई। फिरंगियों में कहावत है कि औरत बेवफाई करे तो उसके मर्द को जानकारी हमेशा आख़िर में होती है।”
“क-कैसे मालूम है?”
“खुद मेंडिस ने बोला।”
“उसका बोला तुम्हें हज़म हो गया?”
“नहीं हो गया। तभी भेज दिया।”
“क-कहाँ?”
राजा सा'ब ने आसमान की तरफ उंगली उठाई।
“जीसस एच. क्राइस्ट से शेक हैण्ड करने।” — फिर बोला “तु ... . तुमने उसे ... म-मार डाला?”
“क्या करता ऐसे यारमार का? गले लगा के डांस करता!”
वो ख़ामोश रही, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“अभी बात दस खोखा रोकड़े की हो रही थी।” – राजा सा'ब सहज भाव से बोला – “तू समझती है कि रोकड़े के तेरे खुफ़िया मुकाम की जो है, मेरे को कोई खबर नहीं! तेरी जानकारी के लिए रोकड़ा अब वहाँ नहीं है जहाँ उसे होना चाहिए था।”
“क-कहाँ नहीं है? कहाँ होना चाहिए था?”
“तेरे नेपाली योगा ट्रेनर भरत खनाल के पास नहीं है।”
उसने मुँह बाये राजा सा'ब को देखा।
“शेकड़ा छुपाने के लिए कोई पुख्ता जगह न चुन पाई तू! शायद जल्दबाज़ी की वजह से। जल्दबाजी में जो है, योगा ट्रेनर ही सूझा, उसका खार का फ्लैट ही सूझा। बाद में शायद कोई और, ज़्यादा महफूज़, जगह तेरे को सूझती।”
“तुम क्या कह रहे हो, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा।”
“सब समझ में आ रहा है तेरी।”- राजा साहब का स्वर कर्कश हुआ– “क्या करतब किया उसके साथ बैड में – जो मेरे साथ कभी न किया जिसकी उसने इतनी बड़ी कीमत चुकाई? देवा! एक साल की ख़िदमत की कीमत दस करोड़! मेंडिस रोज़ ठोकता रहा हो तो एक दिन की तेरी फीस पौने तीन लाख रुपए! बहुत महँगी औरत निकली, भई त। मेरे को तो जो है, खबर न लगी कि तेरा सामान गोल्ड प्लेटिड था, डायमंड स्टडिड था!”
“शट अप!” – वो रुआंसे स्वर में बोली।
“चमड़े का लाल सूटकेस मेरे पास है।” - राजा सा'ब शुष्क स्वर में बोला “मेरी एक ही घुड़की से नेपाली ने सब बक दिया था। मेरा काम कर, कामयाबी से मेरा काम कर, सूटकेस वापिस तेरे पास होगा।”
“गोटी के साथ सोऊँ?” - वो भर्राए कण्ठ से बोली।
“कोई नया काम करेगी? जो काम मेंडिस के साथ राज़ी से किया ....”
“झूठ है! नहीं किया!”
“अब तू ऐसा कह सकती है, क्योंकि मेरे बताए जानती है कि मेंडिस इस दुनिया में नहीं है, तू उसके साथ जो है, अपने अफेयर की बाबत झूठ बोलेगी तो वो आकर तेरा मुँह नहीं पकड़ सकेगा। क्या?”
वो ख़ामोश रही।
“लेकिन दस खोखा रोकड़े का ग़म खाना जिगरे का काम होगा। खा सकेगी?”
उसने जवाब न दिया गया। “देख”– राजा सा'ब संजीदगी से बोला – “तेरी तमाम बदकारियों के बावजूद तू मेरे को जो है, पसन्द है। तू मेरा पसन्दीदा खिलौना है जिससे खेलने का अख्तियार जो है, मैं समझता था कि सिर्फ और सिर्फ मेरे को था लेकिन .... खैर! ...आगे सुन। तेरे काम की बात है... देख, तेरी हर ख़ता माफ हो सकती है, मेरी तमाम मेहरबानियाँ तेरे पर बरकरार रह सकती हैं, तेरे को जो है, अभी भी एक बड़ी और अहम शाबाशी हासिल हो सकती है अगरचे कि तू मेरा कहा काम करना कुबूल करे वर्ना काम तो जैसे तैसे हो के रहेगा, तू ज़रूर गॉड के घर पहुँची यार के गले मिल रही होगी। अब बोल, क्या कहती है?”
“तुम जो कहोगे, मैं करूँगी लेकिन ...”
“अभी भी लेकिन?”
“लाल सूटकेस मेरा ईनाम या शाबाशी नहीं थी, मेंडिस ने मुलाहजे में मेरे को थोड़े टाइम के लिए महफूज़ रखने को दिया था।”
“तेरे को क्यों? इतनी बड़ी मुम्बई में इस काम के लिए जो है, दूसरा कोई न मिला उसे?”
उसकी ज़ुबान फिर लॉक हो गई।
“फिर महफूज़ रख भी तो न सकी! अपने लिए या मेंडिस के लिए महफूज़ रख तो न सकी!”
“फॉर गॉड सेक, अब ये किस्सा बन्द कर दो। तुम्हारा जो हुक्म होगा, मैं बजाऊँगी।”
“गोटी से बजेगी?”
“जो तुम कहोगे। लेकिन बात को इतने भद्दे ढंग से न कहो।”
“जो मैं तेरे को कहूँगा, उसकी बाबत जो है, गोटी को ख़बरदार करने का ख़याल तेरे मन में आ सकता है...”
“नहीं।”
“आए, बेशक आए, लेकिन उस सूरत में गोटी से पहले तू मरी पड़ी होगी।”
“मेरा यकीन करो, तुम्हारे से बाहर जाकर मैं कुछ नहीं करूँगी। मुझे अपनी जान प्यारी है ....”
“वो तो मेरे को भी प्यारी है। पहले ही बोला!”
“तो फिर ख़ता माफ समझ मैं अपनी?”
“ये कह के तू ख़ता कुबूल कर रही है।”
“अब बस भी करो। दो टूक बोलो, पहले बोला तो फिर बोलो, मेरी ख़ता माफ की।”
“गोटी के मामले में कामयाब हो के दिखाए तो की।”
“वादा?”
“हाँ”
“खाओ मेरी जान की कसम!”
आखिर औरत थी, ज़रा शह मिली तो ज़नाना लच्छनों पर आ गई।
“तेरी जान की कसमा” – वो बोला – “अब सुन जो होना है वो कैसे होगा ....”
तभी जैसे ज़मीन रौंदता गोटी वहाँ पहुँचा। वो यूँ एकाएक सामने आन खड़ा हुआ कि राजा सा'ब गड़बड़ा गया।
“गोटी!” – उसके मुंह से निकला।
“और कौन?”
गोटी भड़का।
“कार लौटाने आया?”
“वो भी।”
गेट पर किसी ने रोका नहीं?”
“रोका। तुम्हारे ख़ास ने – हरमेश नटके ने — रोका। फ्रंटयार्ड में ज़मीन पर लोट लगा रहा है। बाकी प्यादे उसकी तीमारदारी में जुटे हैं।”
“फौजदारी ज़रूरी थी?”
“ज़रूरी हो गई थी। जब मेरे को नम्बर टू से बात करने का तो करने का। नटके मेरे को खड़ा रखना माँगता था। ठोक दिया साला।”
“ऐसी क्या आफत आ गई थी?”
“तुम्हेरे को मालूम। अभी नखरा करने का कि नहीं मालूम तो अभी मालूम पड़ता है।” – वो रोज़ी की तरफ घूमा – “तू निकल ले।”
“तुम्हारे कहने से?” – रोज़ी तमक कर बोली।
“इसको भेजो।” — वो राजा सा'ब से मुखातिब हुआ। सहमति से सिर हिलाते राजा सा'ब ने रोज़ी को इशारा किया। भुनभुनाती-सी रोज़ी उठ कर लम्बे डग भरती बंगले में चली गई।
“अब बोल”– राजा सा'ब जानबूझ कर अंजान बनता बोला – “क्या हुआ?”
“तुम्हें नहीं मालूम क्या हुआ?” – गोटी गुस्से से बोला।
“अरे, भई, बोलेगा तो मालूम होगा न!”
“ये पाखण्ड अब रहने दो, जितना चलना था चल चुका।”
“कैसा पाखण्ड?”
“यानी अभी भी चालू रखोगे?”
“क्या कह रहा है, यार?”
“टीवी देखा?”
“नहीं।”
“शाम का अख़बार मँगाया?”
“नहीं। क्यों?”
“यानी तसदीक की कोई ज़रूरत न जानी कि एयरपोर्ट पर मरने वाला शख्स सोहल था या नहीं था!”
“और कौन होता!”
“इसलिए न जानी क्योंकि हकीकत से पहले से वाकिफ़ थे।”
“था न! जब जीरो नम्बर बोलते थे कि दिल्ली से आए हकीम के मेकअप के नीचे सोहल था तो सोहल था।”
“तसदीक की कोई ज़रूरत नहीं थी?”
“क्या ज़रूरत थी?”
“अब करो। टीवी पर न्यूज़ अभी भी होगी! देखो जाके।”
उसने वैसी कोशिश न की।
“तुम्हें पहले से मालूम था कि एयरपोर्ट पर हकीम के मेकअप के नीचे सोहल नहीं था।”
“तो कौन था?”
“बाज़ आ जाओ।”
“किस बात से बाज़ आ जाऊँ? और तू जो है, ज़रा तमीज से बात कर।”
“मरने वाला दिवाकर झाम था और अपनी एक साजिश के तहत तुमने मुझे ज़रिया बनाया उसकी मौत का।”
“झाम था? सोहल नहीं था?”
“बस करो अब। बाज़ आ जाओ। काफी हो गया पाखण्ड!”
“मैं झाम को जो है, हकीम का हुलिया अख्तियार करने के लिए कैसे मजबूर कर सकता था?”
“कुछ तो तुमने किया बरोबर! तुमने डबल ब्लफ खेला, झाम को ही नहीं, मेरे को भी उल्ल बनाया।
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।”
“झाम को किसने सुझाया कि वो दिल्ली से आए हकीम का हुलिया अख्तियार कर लेता तो बाज़रिया शाह के ख़ास गार्ड्स शाह तक पहुँच सकता था?”
“मेरे को नहीं मालूम। मेरे को यही नहीं मालूम कि झाम शाह तक पहुँचना क्यों चाहता था!”
“लेकिन ये मालूम था उसी रूट से, उसी तरीके से सोहल शाह तक पहुँचना चाहता था?”
“जीरो नम्बर यही बोले।”
“सोहल इस तरीके से शाह को ख़त्म करना चाहता था ताकि लीडरशिप ख़त्म हो जाती और गैंग बिखर जाता!”
“हाँ। ऐसीच बोले खबरी।”
“और सोहल के इस मिशन में तुम उसके हिमायती थे, उसकी मदद कर रहे थे?”
“माथा फिरेला है!”
“ऐसा नहीं था?”
“न था, न हो सकता था।”
“तो फिर असली हकीम को हैंडल करने के लिए, उसे कुछ अरसा एयरपोर्ट के भीतर अटकाए रखने के लिए, रोज़ी क्यों तैनात थी?”
“क्या बोला?”
“जो तुमने सुना। तुमने ख़ुद कहा कि कोई मलिकायेहुस्न – जो कि रोज़ी थी – ये काम बेहतर कर सकती थी।”
राजा सा'ब ख़ामोश हो गया।
“क्या हुआ? यकामक ख़ामोशी का दौरा क्यों पड़ गया?”
उसने जवाब न दिया।
“मेरी ही अक्ल मारी गई थी जो पहले ये बात मेरी तवज्जो में न आई। अगर हकीम के मेकअप में एयरपोर्ट पर सोहल था तो हकीम को एयरपोर्ट के भीतर अटका कर रखने का इन्तज़ाम सोहल का होना चाहिए था। तुम्हारा उससे कोई मतलब नहीं था, क्यों भला तुमने ये काम रोज़ी को सौंपा होता! रोज़ी को ये काम सौंपा जाना तभी बनता था जबकि हकीम के मेकअप के नीचे झाम होता। ख़ुदा जाने तुमने उसे क्या पट्टी पढ़ाई जो वो उस काम के लिए तैयार हो गया। उसे जान देने को तैयार कर लिया और मेरे को जान लेने को तैयार कर लिया, बीच में फिलर के तौर पर कहानी सोहल की जड़ दी। बढ़िया डबल गेम खेला! लेकिन खेला सो खेला, अब जवाब दो क्यों खेला? क्यों तुमने झाम को यूँ ऑफ़ करने की जुगत की?”
“जो किया झाम ने खुद किया, क्योंकि वो जो है, शाह के रूबरू होने के लिए मरा जा रहा था।”
“क्यों?”
“नहीं मालूम। शायद जानने के लिए कि शाह किस हाल में था और क्यों वो किसी को अवेलेबल नहीं था!”
“क्यों? क्यों जानने के लिए?”
“क्या पता!”
“बीच में सोहल कहाँ से टपक पड़ा?”
“मेरे को नहीं मालूम। जो जीरो नम्बर बोले, वो जो है, मैंने तेरे को आगे सरकाया। शायद आख़िरी लम्हों में उसे ख़बर लग गई थी कि शाह तक पहुँच बनाने के लिए जिस स्ट्रेटेजी को वो अमल में लाना चाहता था, कोई पहले ही उस पर अमल करने की तैयारी किए बैठा था। नतीजतन आख़िरी लम्हों में सोहल बैक आउट कर गया और इस बात की जीरो नम्बर्स को ख़बर न लगी। यूँ सोहल तेरी गोली का शिकार होने से बच गया और हमारा झाम सोहल के धोखे में मारा गया।”
“बंडल! सब बंडल! शुक्रवार रात को ‘शंघाई मून’ में जब गैंग ऑफ फ़ोर की फायरी मीटिंग हुई थी और हम सब मिल कर तुम्हारे से कड़क बोले थे तो लगता है तुमने तभी बारी-बारी हम सब को ऑफ़ कर देने का फैसला कर लिया था।”
“फेंकता है तू! बोम मारता है! मैंने हम चार जनों की भाईयों जैसी यूनियन के खिलाफ कदम उठाने का जो है, कभी ख़याल तक नहीं किया था।”
“मेंडिस कहाँ है?”
“गोवा गया है।”
“एकाएक?”
“एकाएक ही हुक्म हुआ था शाह का।”
“तुम्हारी मार्फत?”
“हाँ।”
“शाह ने ख़ुद क्यों न हुक्म जारी किया?”
“शाह से पूछना।”
“तुम जानते हो मैं ऐसा नहीं कर सकता।”
“मैं नम्बर टू हूँ, शाह का वज़ीर हूँ। शाह वज़ीर की मार्फत काम करते ही हैं।”
“मेंडिस को फोन करो तो जवाब नहीं मिलता। ऐसा क्यों?”
“मैं क्या बोलूँ? मेंडिस लौटेगा तो उससे पूछना।”
“लौटेगा?”
“क्यों नहीं लौटेगा?”
“मैं तुम से पूछ रहा हूँ।”
“लौटेगा। अलबत्ता कब लौटेगा, मेरे को नहीं मालूम। मैं शाह में इस बाबत दरयाफ़्त करूँगा।”
“शाह को एयरपोर्ट के हादसे की ख़बर है?”
“नहीं है तो हो जाएगी। छुपी रहने लायक बात तो है नहीं! जब मीडिया ने कवर किया है तो कैसे छुपी रह पाएगी!”
“शाह को दिल्ली वाले हकीम का इन्तज़ार था!”
“वो या तो आया नहीं या किसी वजह से एयरपोर्ट से ही लौट गया।”
“क्यों?”
“भई, उसकी एयरपोर्ट पर मौजूदगी के वक्त उसके जैसी सूरत बनाए एक शख्स को शूट कर दिया गया था, सूरत के धोखे में ये अंजाम उसका भी तो हो सकता था!”
“डर गया?”
“क्या बड़ी बात है?”
“लौट कर तो अब क्या आएगा!”
“शाह से ही पता लगेगा।”
“और?”
“और तू बोल।”
“मैं ही बोलता हूँ। तुम्हारी कहानी में छलनी से ज़्यादा छेद हैं। मुझे तुम्हारी किसी बात पर ऐतबार नहीं। तुम एक बड़ी साजिश रच के बैठे हुए हो जिसके तहत अपनी चिल्लाकी-चतुराई से गैंग के दो जनों को तुम पहले ही ऑफ कर
चुके हो ...”
“क्या बकता है! झाम की मौत एक मुग़ालते के तहत हुई और मेंडिस गोवा में है।”
“जहन्नुम में है।”
“क्या कहना चाहता है? मैंने उसे जहन्नुमरसीद किया?”
“हाँ। लेकिन खुफ़िया तरीके से। तुम शरेआम ये काम नहीं कर सकते थे, करते तो शाह को जवाबदेय होते। और कोई माकूल जवाब तुम्हें कभी न सूझता। इसलिए मेंडिस गोवा में और झाम मुगालते की मौत के हवाले – ऐसा तुमने कहना है, कह ही रहे हो, असल में मेरे को हथियार बना कर तुमने उसकी मौत का सामान किया।”
“बंडल!”
“अब मेरे बारे में क्या इरादा है? यहीं शूट कर देने का हौसला दिखाओगे या किसी नई साजिश के तहत मेरी विकेट लोगे?”
“गोटी, मेरे बारे में तेरे को बहुत खामखयालियाँ हैं।”
“खुदा करे ऐसा ही हो।” – वो उठ खड़ा हुआ – “चलता हूँ।”
मेज़बान ने मेहमान के लिए उठ के खड़ा होने की कोशिश न की।
“नटके!” — फिर बोला – “उसे सच में ठोक दिया?”
“क्या करता!”– गोटी कन्धे उचकाता बोला – “जानता था कौन हूँ, फिर भी बदतमीजी से पेश आ रहा था। रोक के इन्तज़ार कराना माँगता था।”
“गलती थी उसकी। मैं ख़बर लूँगा।”
“काहे को! उसकी क्या गलत थी! मुलाज़िम वही करता है जो मालिक उसे सिखा-पढ़ा के रखता है। क्या?”
राजा सा'ब ने जवाब न दिया। लम्बे डग भरता गोटी वहाँ से रुखसत हुआ। पीछे राजा सा'ब मुँह बाये उसे जाता देखता रहा। इमारत का घेरा काट कर गोटी ने फ्रंट यार्ड में कदम रखा। यार्ड में मौजूद प्यादों ने – नटके ने भी – उससे निगाह न मिलाई।
गोटी ने लम्बे डग भरते बाहर की तरफ कदम बढ़ाया तो एक प्यादे ने तत्परता से आयरन गेट का एक पट खोला। उसके बाहर सड़क पर कदम रखते ही आयरन गेट उसके पीछे बन्द हो गया।
बाहर गेट से परे रोज़ी अपनी कार में बैठी थी। उसे रियरव्यू मिरर में गोटी दिखाई दिया तो उसने हौले से हॉर्न बजाया। हॉर्न से आकर्षित होकर गोटी कार की ड्राइविंग साइड पर पहुँचा। उधर का शीशा नीचे गिरा हुआ था और रोज़ी स्टियरिंग के पीछे मौजूद थी।
गोटी ने एक उड़ती निगाह उस पर डाली, फिर बोला – “लिफ्ट नहीं माँगता। इन्तज़ाम के साथ आया।”
“तुम्हारे से बहुत ज़रूरी बात करनी है।” – रोज़ी यूँ बोली कि उसके मुँह से निकलते अलफाज़ आपस में गड्ड-मड्ड होते लगे।
“करो।”
“यहाँ नहीं। यहाँ नहीं।”
“क्या बात करनी है?”
“मिलोगे तो बोलूँगी।”
“कोई हिन्ट फिर भी दो।”
“मेरी जान को खतरा है।”
“किससे?”
“जिससे मिल के आ रहे हो, उससे।”
“तुम्हारी भी?”
“हाँ।”
“मेरी कार बाहर थी। कहाँ गई?”
“जो प्यादे चला के लाए थे, मेरे कहने पर आगे ले गए। अब जल्दी कुछ बोलो। किसी ने मेरे को यूँ तुम्हारे से बात करते देख लिया तो .. . तो ...”
उसके शरीर ने स्पष्ट झुरझुरी ली।
“हाथ आगे कर। हथेली की तरफ से।”
निर्देशानुसार उसने हाथ फैलाया।
गोटी ने जेब से बॉलपैन निकाल कर उसकी हथेली पर एक मोबाइल नम्बर दर्ज किया।
“फोन करना।” – वो बोला। सहमति में सिर हिलाते रोज़ी ने हाथ वापिस खींचा और कार बैक करने लगी।
रोज़ी बंगले के पिछवाड़े पहुंची।
संजीदासूरत राजा सा'ब तब भी लॉन में मौजूद था।
“अभी यहीं हो?” – वो बोली। “तेरा इन्तज़ार कर रहा था।” – राजा सा'ब बोला – “बैडरूम में तो नहीं थी!”
“कैसे मालम?”
“प्यादे को भेजा जो है, तेरा पता करने के लिए! मालूम पड़ा तू अपने बैडरूम में तो क्या, बंगले में ही नहीं थी। कहाँ चली गई थी?”
“गोटी के पीछे गई थी।”
“क्या बोला?”
“वही जो तुमने सुना। तुम्हीं ने तो कहा था मैं गोटी की तरफ तवज्जो रखू।”
“शुरूआत कर भी दी!”
“मजबूरी थी। तुम्हारे हुक्म की तामील पहले, बाकी काम बाद में।”
“बढ़िया। क्या हुआ?”
“कुछ न हुआ। बहुत भड़का हुआ था। बात कर के राज़ी नहीं था। ज़िद की कि बहुत ज़रूरी बात करनी थी तो हथेली पर”– उसने अपनी दाईं हथेली राजा सा'ब के सामने की – “मोबाइल नम्बर लिख कर चला गया।”
“वान्दा नहीं। ये भी प्रॉग्रेस ही है।”
“आगे क्या करूँ? शाम को उसे फोन करूँ? कहीं अप्वायन्टमेंट फिक्स करूँ?”
“आज नहीं। आज मिलेगी तो वो उस मूड में नहीं होगा, तेरे मिशन की कामयाबी के लिए जिसमें उसका होना ज़रूरी है। फिर ख़ास मुलाकात के लिए खास जगह भी तो ज़रूरी है! वो सब इन्तज़ाम कल होगा।”
“कौन करेगा?”
“देखना।”
“कहाँ होगा?”
“वो भी देखना। अभी तू एक काम कर। ज़रूरी जान के।”
“क्या ?”
“बुधवार रात जब ‘साउथएण्ड’ में मैं सोहल से मिला था तो आइन्दा कॉन्टैक्ट के लिए अपना मोबाइल नम्बर जो है, वो मुझे देने के तैयार नहीं हुआ था क्योंकि इस काम से मेरे को भी परहेज़ था। मेरे से कॉन्टैक्ट का ज़रिया तो मैंने ये बनाया था कि मैंने उसे बारमैन एडविन लियो का नम्बर दे दिया था, जब वो मेरे से मिलना माँगता, लियो के पास मैसेज़ छोड़ता, खबर जो है, मेरे तक पहुँच जाती। अपने से कॉन्टैक्ट के लिए उसने मेरे को कूपर कम्पाउन्ड का लैंडलाइन नम्बर दिया जिसे मैंने बजाया तो कोई जवाब न मिला। न ही किसी ने कॉलबैक किया। अब बात ये है कि मेरा जो है, एक आख़िरी बार सोहल से मिलना ज़रूरी है।”
“कब?”
“कल रात।”
“बहुत टाइम है। कॉलबैक का इन्तज़ार करो।”
“वो तो मैं करूँगा ही लेकिन कल की अप्वायन्टमेंट मिस न हो, इसके लिए मैं दोहरा इन्तज़ाम चाहता हूँ।”
“क्या ?”
“कूपर कम्पाउन्ड जा। वहाँ कोई हो तो उसको सोहल के लिए मेरा ज़बानी पैगाम पहुँचा के आ, न हो तो तुका के लैटरबॉक्स में मेरी चिट्ठी छोड़ के आ।”
“जुबानी पैगाम क्या?”
“सोहल कल रात नौ बजे के बाद मेरे को जुहू के होटल अमृत इन्टरकांटीनेटल में मिले। वो वहाँ ओवरनाइट के लिए रूम बुक करा ले ....”
“रूम नम्बर की ख़बर तुम्हें करे?”
“नहीं करेगा। आदतन बहुत ख़बरदार रहने वाला भीड़ है, इसलिए।”
“तो फिर कैसे बात बनेगी?”
“नौ बजे के बाद जो है, वो या तो ख़ुद लॉबी में मेरे को तलाश करेगा या बाज़रिया होटल स्टॉफ पेज करवाएगा।”
“नौ बजे के बाद कब तक?”
“आधी रात तक।”
“तीन घन्टे में ये ड्रिल कई बार दोहरानी होगी!”
“मजबूरी है। आपस में स्ट्रेट कम्यूनीकेशन का कोई ज़रिया न होने की वजह से मजबूरी है।”
“उसे इतनी शिद्दत नामंजूर हुई तो?”
“ऐसा नहीं होगा। उसकी ऐसी नीयत होगी तो मेरी दरख्वास्त के मुताबिक जो है, वो होटल में चैक इन ही नहीं करेगा। चाहेगा तो बाद में कभी प्रेत की तरह मेरे सिर पर आन खड़ा होगा।”
“ओह!”
“तू चिट्ठी छोड़ के आ। आगे जो होगा, सामने आ जाएगा।”
“कल शाम तक कॉलबैक न आई, चिट्ठी लैटर बॉक्स में लावारिस पड़ी रही तो?”
“मुझे उम्मीद नहीं कि ऐसा होगा। बुधवार रात की मुलाकात में उसने जो है, यकीन से मेरे को कहा था कि लैंडलाइन से कॉल का जवाब मिलेगा, न मिला तो कॉल वापिस ज़रूर आएगी। इसका मतलब है कि भले ही वहाँ परमानेंट करके कोई न हो, फोन को मानीटर करने के लिए जो है, गाहेबगाहे वहाँ कोई ज़रूर होता होगा। अगर कोई फोन के लिए वहाँ आता जाता रहता होगा तो वो लैटर बॉक्स की तरफ भी तवज्जो ज़रूर देगा। क्या?”
“ठीक। लिखो चिट्ठी।”
“अभी।”