तीनों जब नहा-धो कर आगे बढ़े तो खुद को हल्का महसूस कर रहे थे।

“किधर चलें?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“उन्हीं रास्तों पर जायेंगे।” देवराज चौहान बोला-“वहां से ही तय करेंगे कि किस तरफ चला जाये।”

महाजन ने मन ही मन बोतल को याद किया तो हाथ में व्हिस्की की बोतल नजर आने लगी।

“पेशीराम भी कमाल की चीज है। उसकी मेहरबानी से बोतल को याद करते ही बोतल हाजिर हो जाती है।” कहते हुए महाजन के चेहरे पर मुस्कान बिखर आई थी।

“पेशीराम की वजह से ही हम लोग भयंकर खतरों से दो-चार हो रहे हैं।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

“पेशीराम की वजह से नहीं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में टोका-“हम अपनी मर्जी से मौत के इस रास्ते पर आये हैं और वजह है, अपने तीन जन्म पहले के गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को शैतान के अवतार के हाथों से बनाना कि अगर वो शक्तियां भी शैतान के अवतार को मिल गईं तो वो दुनिया में हर तरफ पाप और बुरे काम फैला देगा। अच्छाई नज़र आनी बंद हो जायेगी। हर कोई शैतान या पापी ही नज़र आयेगा।”

“सच में। पेशीराम ने हमसे किसी तरह की जबर्दस्ती नहीं की थी...।” महाजन बोला। ये बातें जानने के लिय पढें रवि पॉकेट बुक्स में प्रकाशित अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “पहली चोट।”

जगमोहन ने गहरी सांस लेकर दोनों को देखा।

“अभी भी क्या भरोसा कि हम अपने मकसद में कामयाब हो पाते हैं या नहीं?”

“कोशिश तो कर रहे हैं।” महाजन बोला-“देखते हैं आगे क्या होता है।”

“पूरे तिलस्म को तबाह करना आसान नहीं होगा।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला-“तीसरा और आखिरी ताला तोड़ने पर शैतान के अवतार का सारा तिलस्म तबाह हो जायेगा। ऐसे में जाहिर है कि तीसरे ताले को तोड़ पाना आसान नहीं होगा। हो सकता है, वहां हमें अपनी मौत इन्तजार करती मिले।”

“ये मुसीबतें मालूम नहीं कब खत्म होंगी।” जगमोहन बड़बड़ा उठा।

तीनों वापस उसी जगह पहुंचे, जहां लाल पत्थर का दस फीट व्यास का गोल दायरा या और उसमें से नौ रास्ते निकलकर अलग-अलग दिशाओं की तरफ जा रहे थे। परन्तु उधर नज़र पड़ते ही तीनों चौंके। उनके बढ़ते कदम खुद-ब-खुद ठिठकते चले गये।

“ये क्या?” महाजन के होंठों से निकला।

“किसी नई मुसीबत की शुरूआत।” जगमोहन ने सूखें होंठों पर जीभ फेरी।

देवराज चौहान आंखें सिकोड़े उधर ही देखे जा रहा था।

दस फीट का लाल पत्थरों का जो गोल दायरा था, वो उन्हें जमीन से आठ फीट ऊपर उठा नज़र आ रहा था। जैसे किसी कुएं का ढक्कन खुल गया हो। उसकी साइडों से निकलने वाले नौ के नौ रास्ते वैसे ही थे, जैसे कि उन्होंने देखे थे।

देवराज चौहान तलवार थामे सावधानी से आगे बढ़ने लगा।

जगमोहन और महाजन साथ हो गये। बाकी कर जगह वैसे ही नज़र आ रही थी, जैसे पहले थी।

“मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं आ रहा कि उस खतरनाक शह को हमने मार दिया है।” जगमोहन बोला।

“याद मत कर उसे।” महाजन ने मुंह बनाया-“साला कहीं जिन्दा होकर फिर से सामने आ जाये।”

जगमोहन के होंठों पर मुस्कान बिखर गई।

“ये मामला समझ में नहीं आ रहा कि दस फीट व्यास का पत्थरों का घेरा अपनी जगह से ऊपर क्यों उठ गया?”

“अभी समझ में आ जायेगा।” जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता आ गई।

तीनों उस जगह के पास पहुंचकर ठिठके। भीतर झांका।

नीचे गहराई थी, परन्तु देखने के लिये पर्याप्त रोशनी थी। करीब पच्चीस फीट नीचे उस जगह के तल पर एक व्यक्ति आराम की मुद्रा में लेटा हुआ था।

“ये क्या?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“ये जो कुछ भी है तिलस्म के ताले तक पहुंचने का ही रास्ता है।” देवराज चौहान ने विश्वास भरे स्वर में कहा-“लेकिन इस व्यक्ति के यहां होने का क्या मतलब है, ये समझ से बाहर है।”

“मैं देखता हूं इसे...।” महाजन ने कहा और ऊंचे स्वर में कह उठा-“उस्ताद जी...।”

“जी...।” नीचे से गूंजती आवाज आई। साथ ही वो व्यक्ति भी हिलता दिखा।

“मैंने कहा नमस्कार...।”

“नमस्कार।” नीचे से वो ही आवाज आई-“बहुत देर कर दी

आने में...।”

“क्या मतलब?”

“ जाने कब से शैतान के अवतार ने मुझे यहां अटका रखा है। लेकिन यहां तक कोई नहीं पहुंच सका। वो हाथी-हथिनी ही आने वाले को मार देते हैं। अब तुम लोग आ गये हो तो मुझे छुट्टी मिलेगी।”

“शैतान के अवतार ने तुम्हें यहां क्यों रखा हुआ है?”

“कि जब ये रास्ता खुले और जो भी नज़र आये उसे तिलस्म के ताले तक पहुंचा दूं।”

“तो फिर देर किस बात की।” नीचे कूद आओ। इधर रास्ता जा रहा है, मैं साथ चलकर, तुम लोगों को वहां तक पहुंचा दूंगा।” उसका स्वर बेहद शांत था।

“नीचे कूद जायें।” जगमोहन के माथे पर बल पड़े-“हमारी टांगें तुड़वाने का इन्तजाम कर रहा है। यहां से कूदेंगे तो बचेंगे कहां।”

“ये तो मैं नहीं जानता।” उसने सामान्य स्वर में कहा-“लेकिन तिलस्म के ताले तक पहुंचने के लिये कूदने का कष्ट तो तुम लोगों को उठाना ही पड़ेगा।”

“कष्ट तो हम बड़े-बड़े उठा ले।” जगमोहन के होंठ सिकुड़ चुके

थे-“लेकिन ये कष्ट तो अजीब-सा ही है।”

“मर्जी तुम लोगों की...।”

जगमोहन ने देवराज चौहान के देखा, जो नीचे देख रहा था। माथे पर बल उभरे हुए थे।

“क्या किया जाये...?” महाजन कह उठा।

“किसी बात पर विश्वास करना भी मुसीबत है।” जगमोहन कह उठा-“विश्वास हो तो नीचे भी कूद जायें। लेकिन ये व्यक्ति कोई छलावा भी तो हो सकता है।”

“इसका फैसला मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी वो तलवार करेंगी।” देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा और तलवार को देखकर बड़बड़ा उठा-“हे तलवार! अगर ये व्यक्ति कोई धोखा है तो इसे हमारे रास्ते से हटा दे।”

देवराज चौहान के शब्द पूरे ही हुए थे कि एकाएक उन्हें महसूस

हुआ कि तीव्र हवा का झोंका, उनके पास से गुजर कर बाहर गया हो। नीचे अब वो आदमी नजर नहीं आया।

“ओह!” जगमोहन के होंठों से निकला-“वो आदमी हमारे लिये कोई तिलस्मी जाल फैला रहा था।”

“तिलस्म खत्म करने के ताले तक शैतान का अवतार हमें आसानी से नहीं पहुंचने देगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे अंजाने खतरे और भी हमारे सामने आ सकते हैं।”

“वो...।” महाजन के होंठों से निकला...“जिन्न बाधात...।”

देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह भी उस तरफ उठी। कुछ दूरी पर जिन्न बाधात असली रूप में खड़ा उन्हें देख रहा था।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गईं।

“तो तुम हमें नीचे कूदने को कह रहे थे।” देवराज चौहान का चेहरा सख्त हो गया।

“हां। मैं ही था वो।” जिन्न बाधात ने शांत लहजे में कहा-“लेकिन तुम मनुष्य मेरी बातों ने नहीं आये। तुमने सांपों से भी खुद को बचा लिया। यहां भी तुमने समझदारी से दो हाथियों की ताकत समेटे उसे मार कर, तिलस्म के इस हिस्से को खत्म कर दिया। मुझे तो अब इस बात का डर लगने लगा है कि कहीं तुम सारा तिलस्म तबाह न कर दो।”

देवराज चौहान कठोर निगाहों से उसे देखता रहा।

“मैं तुम तीनों को खत्म कर सकता हूं।” जिन्न बाधात की आंखों में गुस्सा नज़र आने लगा-“लेकिन तुमने जो तलवार थाम रखी है, उसकी शक्तियों ने मुझे रोक रखा है।”

“मैं जानता हूं तुम इस तलवार से डरते हो। तभी मेरे करीब नहीं आ रहे।” देवराज चौहान बोला।

“सच में, तुम मनुष्यों की वजह से अब मैं परेशान हो उठा हूं। मुझे पूरा यकीन था कि तुम लोग यहां से आगे किसी भी कीमत पर नहीं बढ़ सकोगे। मर जाओगे, परन्तु तुमने तो मेरी ही कोशिशों में बाधा डाल दी। लगता है मैंने ही गलती कर दी, तुम मनुष्यों को इधर का रास्ता दिखाकर। मैंने जब-जब तुम मनुष्यों को बाधा में धकेला, तब-तब मुझे परेशानी का सामना करना पड़ा कि मेरी बाधा ने तुम मनुष्यों को मौत के कदमों में क्यों नहीं डाला। शैतान ने भी जाने क्यों तुम मनुष्यों को नजरअंदाज कर रखा है। वरना वो तो अपना शैतानी चक्र चलाकर तुम मनुष्यों का नामोनिशान मिटा देता।”

“जैसे कि हम इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि भगवान जो करता है, अच्छे के लिये ही करता है। क्या तुम लोग भी इस बात पर यकीन करते हो कि शैतान जो करता है, अच्छे के लिये करता है?” देवराज चौहान के स्वर में गम्भीरता कूट-कूट कर भरी पड़ी थी।

जिन्न बाधात हौले से हंस पड़ा।

देवराज चौहान उसे देखता रहा।

“शैतान कभी भी कोई काम अच्छाई के लिये नहीं करता। जरूरी नहीं कि जो बातें तुम मनुष्यों की दुनिया में कहीं जाती हों, वे हम शैतानों की दुनिया में भी कही जाती हों।” जिन्न बाधात कह उठा-“इस बात को हमेशा याद रखो कि शैतान जो करेगा, बुरे के लिये ही करेगा।”

“लेकिन शैतान अपने सेवकों का तो भला ही चाहेगा।” देवराज चौहान बोला।

“मैं नहीं जानता। शैतान कब क्या कर जाये। कोई नहीं जानता। सब शैतान के खेल हैं। शैतान की माया है। उसके खेलों को कोई नहीं समझ पाया।” जिन्न बाधात भी गम्भीर हो गया-“शैतान के कर्मों की माया को तो तुम्हारा भगवान भी नहीं समझ पाया। इसलिये तुम्हारा भगवान, अपने मनुष्यों को शैतानी कर्मों से बचाने की कोशिश में लगा रहता है। लेकिन उसमें इतनी हिम्मत नहीं कि शैतान को खत्म कर सके।”

“एक शैतान होता तो भगवान कब का उसे खत्म कर देता।” देवराज चौहान ने उसी लहजे में कहा-“लेकिन शैतान तो बार-बार रूप बदल कर सामने आता है और मर जाता है।”

“गलत कह रहे हो। शैतान मर ही नहीं सकता। तभी तो वो बार-बार सामने आता रहता है। शैतान ने कठोर तपस्या करके वर मांग रखा है कि उसे कोई मार न सके। शैतान के रूप बदलते रहते हैं। लेकिन वो जिन्दा है और युगों-युगों तक जिन्दा रहेगा। शैतान अमर है।” जिन्न बाधात गर्व भरे लहजे में कहे जा रहा था-“शैतान की जय हो। तुम्हारे भगवान से ज्यादा ताकतवर है हमारा देवता शैतान। क्योंकि शैतान हमेशा वार करता है। भगवान तो अपने मनुष्यों को, शैतान के वारों से बचाने की कोशिश में लगा रहता है। तुम मनुष्य तिलस्म के ताले तक पहुंचना चाहते हो। ठीक है। जाओ। कब तक बचोगे। शैतान की माया से बचना असम्भव है।” इसके साथ ही जिन्न बाधात एकाएक गायब हो गया। धुएं की लकीर ही नज़र आती रही। जो कि चंद ही पलों में दिखाई देनी बंद हो गई।

तीनों के चेहरों पर गम्भीरता थी। तभी उनकी निगाह कुएं जैसी जगह पर गई तो चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे। उस जगह पर बेहद खूबसूरत पालकी नज़र आई, जो हवा में झूल रही थी। बहुत ही खूबसूरती से उसको सजा रखा था। रेशम की चादर बिछी थी। वैसा ही गद्दा था। टेक लगाकर बैठने के लिये तकिये रखे हुये थे।

“ये क्या?” महाजन के होंठों से निकला।

“ये बुलावा है हमारे लिये-।” देवराज चौहान कहते हुए सख्त अंदाज में मुस्करा पड़ा-“तिलस्म के ताले तक पहुंचने के लिये हमें दूसरी पालकी पर बैठना होगा। वरना इसके यहां मौजूद होने का दूसरा कोई मतलब नहीं।”

महाजन और जगमोहन की नजरें मिली।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और कुन्डा जैसी बनी जगह की सतह पर नजर आ रही पालकी में प्रवेश करके बैठ गया। तलवार उसके हाथ में थी। मन में शंका लिये महाजन और जगमोहन पालकी में जा बैठे। तभी पालकी हिली और मध्यम सी गति के साथ नीचे जाने लगी।

“सब ठीक रहे-।” महाजन कह उठा।

“यहां कुछ ठीक रह सकता है क्या!” जगमोहन के होंठों से निकला।

देवराज चौहान का चेहरा कठोर था। आंखों में चमक थी।

“तुम्हारा क्या ख्याल है देवराज चौहान?” जगमोहन बोला-“पालकी में बैठकर हमने कोई गलती तो नहीं कर दी?”

“तुम्हारे सवाल का जवाब मेरे पास नहीं है।” देवराज चौहान ने

गम्भीर स्वर में कहा-“यहां की कोई चीज हमारे बस में नहीं है। हमारी सोच भी हमारे बस में नहीं है। जाने हम क्या सोचें और क्या हो जाये। ऐसे में आने वाली मुसीबतों से मुकाबला करना ही इस वक्त हमरा सबसे बड़ा कर्म और धर्म है।”

पालकी उसी रफ्तार के साथ नीचे जाती जा रही थी।

☐☐☐

जाने कितनी देर बाद, कितने लम्बे रास्ते और मोड़ों को पार करने के बाद वो पालकी, एक सजे-सजाए कमरे में पहुंचकर रुक गयी।

तीनों की निगाहें हर तरफ घूमने लगीं।

जरूरत का आरामदेह सामान वहां मौजूद था। लगता था जैसे विशेष रूप से इस कमरे को सजाया गया हो। उनकी निगाह आरामदेह कुर्सी पर बैठे युवक पर जा टिकी। जोकि पच्चीस बरस की उम्र का रहा होगा। बंद गले का कोट और पैंट पहन रखी थीं। आकर्षक व्यक्तिगत था उसका। उसकी निगाह एकटक तीनों पर ही थी। एकाएक वो मुस्कराया और उठ खड़ा हुआ।

“साधारण मनुष्यों को यहां आया पाकर मैं बहुत हैरान हूं।” उस युवक ने शांत स्वर में कहा-“मुझे तो शैतान के अवतार ने कहा

था कि यहां तक कोई नहीं पहुंच सकता। मैं यहां आराम से रह

सकता हूं।” मुझे कोई भी तंग करने नहीं आयेगा।

“मुझे तो ये किसी हरामी बादशाह की औलाद लगता है।” महाजन बड़बड़ाया।

उसे देखते हुए देवराज चौहान पालकी से नीचे उतरा।

महाजन और जगमोहन भी पालकी से नीचे आ गये। उसी पल ही वो पालकी गायब हो गयी। चंद पलों के लिये गहरी खामोशी छा गई वहां।

“अगर शैतान के अवतार ने सच कहा था तो फिर हम कैसे यहां आ गये।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला।

“इसी बात की तो हैरानी है।”

“मतलब कि शैतान के अवतार ने तुमसे झूठ बोला।”

“नहीं। वो मुझसे झूठ नहीं बोल सकता।” युवक ने इंकार में सिर हिलाया-“लेकिन तुम लोगों के यहां आ जाने का मतलब है कि शैतान के अवतार के जाल में कही छेद हो चुका है। वरना तिलस्म तक तो साधारण मनुष्य जाति के लोगों का पहुंच पाना असम्भव है।”

“तुम कौन हो?”

“मैं शैतानी हवा हूं। जरूरत पड़ने पर शैतान का अवतार मेरी सहायता लेता है। हवा होने की वजह से कोई मुझे पकड़ नहीं सकता। मार नहीं सकता। हरा नहीं सकता।” युवक का स्वर शांत था-“और मैं जब चाहूं जिसे चाहूं बरबाद कर सकता हूं। सबको मौत के मुंह में धकेल सकता हूं।”

“मतलब कि तुम अमर हो।” जगमोहन बोला।

“नहीं। मैं तो शैतान का सेवक हूं। शैतान के हुक्म का गुलाम हूं। शैतान जब चाहे मुझे तबाह-बरबाद कर सकता है।”

“शैतान के हुक्म पर ही मैं शैतान के अवतार की सहायता के के लिये यहां मौजूद हूं-।” उसने कहा।

“तुम जानते हो हम यहां क्यों आते हैं।” कहते हुए महाजन ने घूंट भरा।

“नहीं। मुझे नहीं मालूम। बाहर की बातों की मुझे कोई खबर नहीं। क्योंकि कई बरसों से मैं बाहर नहीं निकला। यहां आराम कर रहा हूं। पचास बरस पहले मैंने जो काम किया था, उससे मुझे बहुत थकान हो गयी थी, इसलिये शैतान ने मुझे यहां आराम करने और शैतान के अवतार की सहायता करने को कहा।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

“हम तुमसे झगड़ा करने नहीं आये।” देवराज चौहान ने गम्भीर

स्वर में कहा-“अब तुम ही हमें अपना दुश्मन समझो तो जुदा बात है।”

“शैतानी हवा यूं ही किसी को अपना दुश्मन नहीं मान लेती। इसकी खास वजह होनी चाहिये।”

“मेरी अगली बात सुनकर, तुम उसी बात को दुश्मनी की वजह मान लोगे।”

“कैसी बात?” युवक के माथे पर बल उभरे।

“हम यहां तिलस्म के आखिरी ताले को तोड़ने आये हैं और तुम्हें ये बात पसन्द नहीं आयेगी।”

बरबस ही युवक के चेहरे पर मुस्कान फैल गयी।

“मुझे भला क्या एतराज हो सकता है?”

“क्या ये अजीब बात नहीं कि हम शैतान के अवतार के तिलस्म को तबाह करने को कह रहे हैं और तुम्हें कोई एतराज नहीं।” महाजन ने होंठ सिकोड़ कर कहा।

“मैं यहां किसी पहरेदारी के लिये मौजूद नहीं हूं।” वो बोला-“तुम साधारण मनुष्य यहां तक आ पहुंचे। इस दौरान कई घटनाएं अवश्य हुई होंगी। लेकिन शैतान के अवतार ने इस बारे में मुझे कोई खबर नहीं दी। इन बातों से मुझे दूर रखा। स्पष्ट है

कि शैतान का अवतार नहीं चाहता कि मैं उसकी बातों में दखल दूं। ऐसे में मैं तुम मनुष्यों के कदमों को क्यों रोकूंगा। यहां तक आ पहुंचे हो तो बेशक जो मन में आये करो।”

तीनों की निगाहें मिलीं।

“अगर शैतान का अवतार तुम्हें अभी कह दे कि हमें खत्म कर दो तो?” जगमोहन ने उसे देखा।

“अब शैतान का अवतार, तुम मनुष्यों से वास्ता रखता, कोई भी काम मुझसे नहीं ले सकता।” युवक के होंठों पर मुस्कान उभरी-“क्योंकि इस जगह को मैंने अपना घर बना रखा है और

शैतानी हवा अपने घर में काम नहीं करती। मैं जब हवा बनकर यहां से बाहर निकलूंगा, तभी मेरी ताकत काम करेगी।”

“मतलब कि हम जो भी करें, तुम्हें हमारी बातों से कोई वास्ता

नहीं होगा।” देवराज चौहान बोला।

“तुम लोगों की किसी भी बात से मेरा कोई मतलब नहीं। बेशक तिलस्म को तबाह कर दो। ऐसी स्थिति में मैं चार आसमान ऊपर शैतान के पास रहने चला जाऊंगा।” युवक यानि कि शैतानी हवा ने लापरवाही से कहा-“अपनी जगह की रक्षा करना, शैतान के अवतार का काम है। मेरा नहीं।”

“हो सकता है तुम्हारी बातें हमारे लिये चाल साबित हों।” देवराज चौहान ने कश लिया।

वो मुस्कराया।

“शैतानी हवा को कुछ करना हो तो उसे कोई चाल चलने की क्या जरूरत है। मैं तो हवा हूं। जिसे भी तबाह-बरबाद करना हो, हवा बनकर उससे लिपट जाऊंगा। मेरी ताकत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। मुझे किसी भी काम के लिये झूठ बोलने की कोई आवश्यकता नहीं।”

“तिलस्म को तबाह करने का तीसरा ताला कहां है?” देवराज चौहान गम्भीर था।

“उधर चले जाओ।” युवक ने सामने नजर आ रहे, खुले दरवाजे की तरफ इशारा किया-“ये रास्ता उस कमरे में पहुंचकर खत्म होता है। वहां तिलस्म तबाह करने का ताला है।”

“वो ताला हमारी पहचान में आ जायेगा?”

“इस बारे में मैं तुमसे ज्यादा बातें करना ठीक नहीं समझता।” युवक ने कहा-“यहां से चले जाओ। उस कमरे में कुछ दिन से एक परी कैद है। शैतान के अवतार के आदमी उसे वहां कैद करके चले गये थे। उसकी कैद से भी मेरा कोई वास्ता नहीं। उससे सवाल पूछना। जवाब वो जानती होगी सो तो जरूर बतायेगी।”

“परी?” देवराज चौहन के होंठों से निकला।

“वो भामा परी तो नहीं-।” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।

“शायद-हो सकता है।” देवराज चौहान गम्भीर था।

युवक वापस कुर्सी पर बैठ गया।

“आओ। उस रास्ते पर चलें।” महाजन व्याकुल हो उठा था। परी की कैद के बारे में सुनकर और जानने को उतावलापन था मन में कि कैदी परी, भामा परी थी या दूसरी ही परी है।

☐☐☐

वो भामा परी ही थी।

सात फीट ऊंचा था लोहे का जालीदार पिंजरा। तीन फुट चौड़ा था। उसके बीच में भामा परी मौजूद थी। उसके शरीर पर वही कपड़े थे, जो उन्होंने पहले ही देखे थे।

उस कमरे में प्रवेश करते ही तीनों ठिठक गये थे। नजरें भामा परी पर जा टिकी थीं।

“तुम-यहां?” जगमोहन के होंठों से निकला।

भामा परी जो कि कैद में हताश हो चुकी थी, उन्हें सामने पाकर खिल उठी।

“ओह! तुम भले मनुष्य यहां तक आ गये। कितनी खुशी हो रही है, तुम लोगों को देखकर-।”

“लेकिन तुम यहां कैसे कैद हो गईं?”

“शैतान के अवतार की तिलस्मी शक्तियों ने मेरे मक्खी के रूप को पहचान कर मुझे पकड़ लिया था और यहां लाकर कैद कर दिया। कई दिन से इस कैद में-।”

“तुम अपना रूप बदलकर इस कैद से निकल सकती थीं।” देवराज चौहान ने कहा।

“नहीं, देवराज चौहान! हम परियां अपने देवता की दी ताकत का इस्तेमाल किसी भी तरह की कैद में रहकर नहीं कर सकतीं। कैदी बनते ही, हमारी पवित्र शक्तियां हमसे दूर हो जाती हैं। अगर ऐसा न होता तो हम तब ही आजाद हो जाती, जब कारी राक्षस ने जाल फेंककर, हमें कैद किया था।” भामा परी ने गहरी सांस लेकर थके स्वर में कहा।

“तुम इस कैद से कैसे निकल पाओगी?” देवराज चौहान ने पूछा।

“शायद कभी न निकल पाऊं-।”

“क्या मतलब?”

“मेरी कैद तब तक सलामत रहेगी, जब तक शैतान के अवतार

का तिलस्म खड़ा रहेगा। तिलस्म की तबाही ही मेरी आजादी है। लेकिन तिलस्म को तोड़ पाना असम्भव है। जो भी तिलस्म खत्म करने की चेष्टा करेगा, वो मर पायेगा।” भामा परी की आवाज में उदासी भर आई थी।

“हम तिलस्म तोड़ देंगे।” जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।

“नहीं कामयाब हो जाओगे।” भामा परी ने इंकार में सिर हिलाया।

तभी देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।

“ये बातें बाद में भी हो जायेंगी। पहले काम की बात कर लें।” नजरें भामा परी पर थीं।

“काम की बात?” भामा परी की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान की आवाज कठोर हो गई।

“मैं?” भामा परी के चेहरे पर उलझन उभरी।

“तुमसे ही बात कर रहा हूं-।” देवराज चौहान ने शब्दों को चबा कर कहा।

“कैसी अजीब बात कर रहे हो! मुझसे पूछ रहे हो कि मैं कौन हूं।” भामा परी के होंठों से निकला-“तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं भामा परी हूं-।”

“जिन्न बाधात तरह-तरह के रूपों में हमारे सामने आकर हमें झटका कर खत्म करने की कोशिश कर रहा है। वो मोना चौधरी के रूप में भी हमें धोखा दे चुका है। तो क्या भामा परी बनकर धोखा नहीं दे सकता।” देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया-“तुम हकीकत में जिन्न बाधात क्यों नहीं हो सकतीं-!”

“मैं सच में भामा परी ही हूं-।” पिंजरे में कैद भामा परी तेज स्वर में कह उठी।

“ये अगर जिन्न बाधात की कोई चाल है तो सबसे पहले वो इसका ही विश्वास दिलायेगा कि वो भामा परी है।”

“ऐसा विश्वास जम जाने के बाद ही तुम हमें मौत के मुंह में धकेल सकोगी।”

“कैसी बातें कर रहे हो देवराज चौहान! मैं भामा परी-।”

“मेरे ख्याल में इस बात का फैसला तुम्हारी तलवार कर देगी।” महाजन ने कहा।

“हां। मुद्रानाथ की शक्तियों में भरी ये तलवार दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी।” जगमोहन ने कहते हुए भामा परी को देखा-“इस धरती पर किसी का विश्वास करना, अपनी मौत को

बुलाना है।”

भामा परी ने गहरी सांस ली और गम्भीर स्वर में कह उठी।

“मैं समझ रही हूं कि हर कदम पर तुम लोग शक और धोखों में फंसे हो। ऐसे में सावधानी बरतना जरूरी है।”

तुम मनुष्य जैसे चाहो आजमा सकते हो।

देवराज चौहान की कठोर निगाह तलवार पर जा टिकी।

“हे तलवार!” देवराज चौहान बोला-“पिंजरे में कैद भामा परी, अगर शैतान के अवतार की किसी चाल का हिस्सा है तो इस चाल से हमें बचा।”

कुछ न हुआ।

सब कुछ वैसे ही रहा।

भामा परी पिंजरे में कैद वैसे ही खड़ी रही।

“इसका मतलब, वास्तव में ये असली भामा परी ही है।” जगमोहन कह उठा।

पिंजरे में कैद भामा परी के होंठों पर शांत सी मुस्कान उभरी।

“तुम लोगों को इस बात की जानकारी नहीं कि इस कमरे में किसी भी तरह की तिलस्मी मायावी, जादुई ताकत, या पवित्र शक्तियों की ताकत काम नहीं कर सकती। ऐसे में ये तलवार इस वक्त मात्र साधारण तलवार है। मेरे बारे में जानकारी नहीं पा सकते कि मैं धोखा हूं या असली भामा परी हूं।”

“तुम ये कहकर इस पर विश्वास नहीं जमा सकतीं!” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।

“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है।” भामा परी ने शांत स्वर में कहा।

“यहां कोई ताकत काम क्यों नहीं करती?” महाजन कह उठा।

“यहां तिलस्म को तबाह करने का सामान है।” भामा परी कह

उठी-“तिलस्म को तबाह कैसे करना है, ये बात शक्तियों से पानी पा सकती है। जबकि साधारण मस्तिष्क के लिये इस बात को जान पाना असम्भव है। इसलिये शैतान के अवतार ने यहां ऐसी मायावी हवा को फैला दिया कि बड़ी से बड़ी शक्ति भी यहां आकर बेकार हो जाये और यहां फैली मायावी हवा पर किसी भी हाल में काबू नहीं पाया जा सकता क्योंकि मायावी हवा पर काबू पाने के लिये शक्तियों की जरूरत पड़ेगी। जो कि यहां बेकार है।”

पल भर के लिये वहां खामोशी छा गई।

“तिलस्म को तबाह करने का ताला है कहां?” जगमोहन एकाएक कह उठा।

“वो देखो।” पिंजरे में कैद भामा परी कह उठी-“वो छः पिंजरे

लटक रहे हैं।”

तीनों की निगाह उधर घूमी।

एक ही कतार में छः पिंजरे लटक रहे थे। जो फर्श से पांच फीट ऊपर थे। छत से लटकती जंजीर में वो छः एक ही लाईन में दो दो फीट के फासले पर थे। लोहे के पुराने जंग लगे हर पिंजरे में खूबसूरत चिड़िया कैद थी। बेहद छोटी नन्ही-नन्ही सी चिड़ियाँ। उनमें हर रंग मौजूद था। तेज रंगों की वजह से ही वो छः चिड़ियाँ बेहद खूबसूरत लग रही थीं। ऐसी चिड़ियाँ उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थीं।

सारी की सारी चिड़िया मनचले ढंग से अपने-अपने पिंजरे में फुदक रही थीं। छः की छः चिड़ियाँ, बिल्कुल एक जैसी थीं। उनमें, आपस में जरा सा भी फर्क नहीं था।

“पिंजरों में तो छः चिड़ियाँ हैं।” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ चली थीं।

“हां।” भामा परी गम्भीर स्वर में कह उठी-“छः चिड़ियाँ हैं। इन छः चिड़ियों में से किसी एक चिड़िया की गर्दन में तिलस्म को तबाह करने की चाबी है। वो खास चिड़िया कौन-सी है? मैं नहीं जानती। उस खास चिड़िया की गर्दन तोड़ दी जाये तो शैतान के अवतार के तिलस्म से मुक्ति मिल सकती है।”

“ये तो मामूली बात है।” जगमोहन के होंठों से निकला-“पिंजरे में कैद चिड़ियों की गर्दन पकड़कर तोड़ते जाओ। जिसकी गर्दन में तिलस्म की तबाही की चाबी है, उस गर्दन के टूटते ही-।”

“ऐसी गलती कभी मत कर देना।” भामा परी कह उठी।

“क्यों?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।

“गलत चिड़िया की गर्दन तोड़ी तो उस वक्त यहां मौजूद हर कोई आग में गिर कर मर जायेगा। तुम तीनों भी नहीं बचोगे और मैं भी नहीं। तिलस्म अपनी जगह पर सलामत रहेगा।”

भामा परी के इन शब्दों के साथ ही वहां चुप्पी छा गई। उनकी नजरें पुनः चिड़ियों पर जाने लगीं। वो अपने-अपने पिंजरे में फुदक रही थीं।”

देवराज चौहान ने भामा परी को देखा।

“इन चिड़ियों की आवाजें नहीं सुनीं।” देवराज चौहान ने कहा-“ये आवाजें नहीं निकालतीं?”

“ये बोलती भी हैं।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“बातें भी करती हैं। तुम लोगों के आने पर ये चुप हो गई हैं। मैं नहीं जानती क्यों?”

“उस खास चिड़िया को पहचानने की कोई निशानी तो होगी?” देवराज चौहान के माथे पर बल नजर आ रहे थे।

“अगर ऐसी कोई निशानी है तो मुझे उसकी खबर नहीं।” भामा परी के स्वर में व्याकुलता आ गई।

“तुम्हारा क्या ख्याल है, किस चिड़िया की गर्दन में तिलस्म को तबाह करने की चाबी-।”

“देवराज चौहान।” भामा परी कह उठी-“अगर मुझे ये बात मालूम होती तो मैं तुम्हें पहले ही बता देती। मेरे पास ऐसी कोई

बात नहीं है, जो अब तुम्हारे काम आ सके।”

“तो हम कैसे पहचानेंगे उस चिड़िया को, जिसमें तिलस्म की जान-?”

“मैं नहीं जानती।” भामा परी गम्भीर-व्याकुल स्वर में कह उठी-“अब जो भी करना है? तुम मनुष्यों ने ही अपनी समझ से करना है। मुझे तो लगता है, उस चिड़िया को पहचान पाना असम्भव है। अगर ऐसी कोई कोशिश की, तो गलत चिड़िया की गर्दन तोड़ते ही तुम सब और मैं भी जल मरूंगी।”

“ये तो मौत को गले लगाने वाली बात है।” महाजन के होंठों से निकला-“सौ में से, सौ प्रतिशत चांस हैं कि हम गलत चिड़िया की ही गर्दन पर हाथ डालें और मारे जायें।”

“यही बात तो मैं कह रही हूं-।” भामा परी बेबस स्वर में कह उठी।

“कोई भी रास्ता नहीं कि, कुछ मालूम हो सके?” जगमोहन के दांत भिंच गये थे।

भामा परी के चेहरे पर अफसोस से भरी मुस्कान फैल गई।

“काश मुझे मालूम होता कि मैं बता पाती।”

तीनों की नजरें मिलीं।

“अब क्या किया जाये?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“कुछ भी नहीं कर सकते हम। पक्का मरेंगे।” महाजन ने घूंट भरा। वो व्याकुल हो उठा था।

“वास्तव में।” देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी-“हम जिन्दगी और मौत के ऐसे रास्ते पर आ पहुंचे हैं कि मालूम नहीं दायां कदम उठायें या बायां। क्योंकि गलत कदम के आगे रखते ही मारे जायेंगे। यहां पर कोई दिखाने वाला नहीं कि कदम उठाने की सोची जाये।”

“मतलब कि हम तिलस्म को तबाह नहीं कर सकते।” महाजन दांत पीसकर कह उठा।

“या तो तिलस्म तबाह होगा या फिर हम।” देवराज चौहान के दृढ़ता भरे स्वर में दरिन्दगी थी-“वापस पलटना मैंने सीखा नहीं। मौत का डर मैं नहीं मानता। क्योंकि मौत ऐसी हकीकत है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता।”

“याद है पेशीराम ने क्या कहा था?” कहते हुए जगमोहन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“याद है।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

“पेशीराम ने कहा था कि मोना चौधरी से इन दो महीनों में टकराने पर, तुम्हें अपनी जान गंवानी पड़ेगी। सबने बहुत कोशिश की कि तुम्हारा मोना चौधरी से टकराव न हो। लेकिन हो गया।”

“ये बात क्यों दोहरा रहे हो?” देवराज चौहान ने जगमोहन को

देखा।

“दोहरा नहीं रहा बल्कि बता रहा हूं कि पेशीराम (फकीर बाबा) की कही बात आज तक गलत नहीं निकली और इस वक्त तुम मौत की कगार पर खड़े हो।” जगमोहन का स्वर भिंचा हो गया।

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।

“तो क्या करूं?”

“क्या मतलब?”

“मेरा कहने का ये मतलब है कि ये वक्त बेकार की बातों का नहीं।” न तो मैंने पहले इस बात की कभी परवाह की कि, पेशीराम ने क्या कहा और न ही अब सोचने की जरूरत महसूस करता हूं। देवराज चौहान ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा-“तमाम जिन्दगी मैंने सिर्फ कर्म करने पर विश्वास रखा है और अब भी मेरा विश्वास अपनी जगह कायम है। इन्सान को अपना कर्म करते रहना चाहिये। किस्मत में जो होगा, वो अवश्य मिलेगा। अगर आने वाले वक्त में मेरी किस्मत में मौत है तो वो मिलकर ही रहेगी।”

जगमोहन गम्भीर और व्याकुल रहा। कहा कुछ नहीं।

तभी महाजन सोच भरे स्वर में बोला।

“हमें इन चिड़ियों की तरफ ध्यान देना चाहिये कि, किस चिड़िया की गर्दन में तिलस्म की तबाही ही छिपी हुई है। अगर हम कामयाब हो गये तो-।”

“तुम ही बताओ कि हमें किस चिड़िया की गर्दन तोड़नी चाहिये?” देवराज चौहान ने महाजन को देखा।

“मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा है।” महाजन ने इंकार में सिर हिलाया।

“तो फिर मेरी समझ में ये कैसे आयेगा?” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई-“सच बात तो ये है कि उस खास

चिड़िया की पहचान कर पाना वास्तव में असम्भव ही बात है।”

“हां-।” महाजन की सख्त निगाह लटकते पिंजरों के बीच मौजूद चिड़ियों पर फिरने लगी-“सच में इस बात को नहीं जाना जा सकता कि किस चिड़िया की गर्दन में तिलस्म की तबाही और हमारी जिन्दगी मौजूद है।”

“तो अब किया क्या जाये?” जगमोहन कह उठा।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और दीवार के साथ टेक लगाकर बैठ गया।

दोनों की निगाह उस पर जा टिकी।

“हम थके हुए हैं। हमें आराम की जरूरत है।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा-“इस वक्त हमने जो काम करना है, उसके लिये फ्रेश होना जरूरी है। लेकिन तब भी कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि इस अपने काम की चिड़िया को नहीं पहचान पायेंगे।”

“मतलब कि अब हमारे सामने दो ही रास्ते हैं।” महाजन ने कहा-“या तो यहीं पर बैठे-बैठे जान गवां दें या फिर गलत चिड़िया की गर्दन तोड़कर अपनी जान गवां दें।”

“कुछ भी समझो। कुछ भी कह लो। सब कुछ तुम्हारे सामने ही है।”

महाजन और जगमोहन थके-हारे दीवार के साथ टेक लगाकर बैठ गये।

तभी भामा परी गहरी सांस लेकर कह उठी।

“तुम लोगों के आने का मुझे कम से कम ये तो फायदा हुआ कि बातें करके मेरा मन लगा रहेगा।”

“तुम पर हम पूरा यकीन नहीं कर रहे हैं।” देवराज चौहान ने पिंजरे में कैद भामा परी को देखकर कहा-“तुम जिन्न बाधात भी हो सकते हो। अब हम जिन्न बाधात के धोखे में नहीं फंसना चाहेंगे।”

“इस वक्त तेरे पास ऐसा कुछ नहीं कि मैं अपनी हकीकत की सच्चाई, तुम मनुष्यों के सामने रख सकूँ।” भामा परी ने शांत स्वर में कहा-“अगर तम मनुष्य वास्तव में तिलस्म को तबाह करने में सफल हो गये तो मेरी बात पर यकीन आ जायेगा।”

“वो कैसे?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“तिलस्म के तबाह होते ही जहां तिलस्म से वास्ता रखती कोई भी चीज मौजूद नहीं रहेगी। सारी मायावी शक्तियों का जाल हट जायेगा। ऐसे में अगर मैं जिन्न बाधात हुई तो मैं भी गायब हो जाऊंगी।”

“ठीक कहती है।” महाजन ने जगमोहन को देखा।

“ठीक कहे। गलत कहे। हमारी गाड़ी तो यहां आकर रुक गई।” कहते हुए जगमोहन की निगाह चिड़ियों के पिंजरे की तरफ गई-“जाने, तिलस्म की जान किस चिड़िया की गर्दन में मौजूद है।”

तभी पिंजरों की तरफ से आती, पतली-सी, तीखी-सी आवाज उनके कानों में पड़ी।

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“ये तो बैठे गये।” एक चिड़िया ने बगल के पिंजरे में कैद चिड़िया से कहा।

“परेशान हैं बेचारे।” दूसरी चिड़िया बोली-“हम सब एक-सी हैं। कैसे पहचान पायेंगे कि हममें से किस की गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला खून भरा पड़ा है।”

“यहां पर इनकी तलवार की शक्तियां भी तो काम नहीं कर रहीं कि उन शक्तियों से पूछ लें।” तीसरी बोली।

“मुझसे तो इनका दुःख सहा नहीं जाता।” चौथी ने कहा-“कितनी मुसीबतें उठाकर यहां तक आये हैं।”

“तो बता दे हम में से किसकी गर्दन में तिलस्म की तबाही वाला खून है।” पांचवीं कह उठी।

“खबरदार, जो ऐसी बात मुंह से निकाली।” छठी चिड़िया गुस्से

से कह उठी।

“तू तो हमेशा सड़ती रहती है।” एक ने कहा-“कभी तो खुश रहा कर-।”

कुछ पलों तक उनके बीच ख़ामोशी छा गई।

देवराज चौहान, महाजन और जगमोहन की निगाहें, बारी-बारी पिंजरों पर फिर रही थीं।

“तो अब ये बोलने लगीं।” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।

“मुझे तो इनकी बातें सुनकर मजा आ रहा है।” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा।

देवराज चौहान की नजरें, बराबर उन सब पर जा रही थीं।

“मनुष्यों!” तभी एक चिड़िया ने कहा-“मैं तुम सब की परेशानी दूर कर सकती हूं।”

“कैसे?” महाजन के होंठों से निकला।

“मैं बता सकती हूं कि हममें से किसी गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला खून मौजूद है।”

“मनुष्यों को ये बताकर तू शैतान के अवतार से गद्दारी करेगी।”

दूसरी चिड़िया कह उठी।

“शैतान भी तेरा दुश्मन बन जायेगा।”

“मैं नहीं डरती शैतान से।” वो बोली-“मैं तो मनुष्यों की परेशानी दूर करूंगी।”

महाजन और जगमोहन की नजरें मिलीं।

देवराज चौहान एकटक पिंजरों में कैद चिड़ियों को देख रहा था।

“अगर तुमने इन मनुष्यों को कुछ बताया तो शैतान का अवतार तुम्हें बहुत बुरी मौत देगा।”

“देता रहे।” वो चिड़िया बोली-“मनुष्यों, कहो तो तुम लोगों की परेशानी दूर करूं?”

“करो।” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।

“सच बात तो ये है कि मेरी गर्दन के खून में तिलस्म की तबाही छिपी है।” चिड़िया कह उठी-“अब देर न करो। आगे बढ़ो और पिंजरा खोलकर मुझे पकड़ो और मेरी गर्दन तोड़ दो।”

तभी दूसरी चिड़िया हंस पड़ी। फिर बोली।

“इसकी बातों में मत आना। शरारती है ये। बहुत झूठ बोलती है। सच तो ये है कि वो खून मेरी गर्दन में रखा है शैतान के अवतार ने। आओ मेरी गर्दन तोड़ो। तभी तिलस्म तबाह करके बच सकोगे।”

“झूठ मत बोल। तिलस्म की तबाही वाला खून मेरी गर्दन में है।” तीसरी चिड़िया कह उठी।

“तुम सब झूठी हो। मनुष्यों को मौत के मुंह में पहुंचा देना चाहती हों।” चौथी ने कहा-“सच क्यों नहीं बता देती कि मेरी गर्दन में तिलस्म को तबाह कर देने वाला खून है।”

“तू तो बड़ी सच बोल रही है।” पांचवीं हंसी-“वो खून तो मेरी गर्दन में है।”

छठी चिड़िया कुछ नहीं बोली।

पांचवीं ने छठी चिड़िया से कहा।

“तुम कुछ नहीं कहोगी-?”

“मैं क्या कहूं-।” छठी चिड़िया ने गहरी सांस लेकर कहा-“तुम्हारी बातों को सुनकर मेरी बात भला ये मनुष्य कहां सच मानेंगे कि तुम सब झूठी हो। तिलस्म को तबाह करने वाला खून तो मेरी गर्दन में रखा है।”

पांचवीं चिड़िया ठठाकर हंस पड़ी।

दो अन्य चिड़ियाँ भी हंसीं।

“तुम सब तो खामख्वाह मनुष्यों को और भी परेशान कर रही हो।” एक ने कहा-“इससे भी अच्छा होता कि मैं सच बात की शुरूआत ही नहीं करती। तुम सब ने मेरी बात को ही झूठा बना दिया।”

“मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तू मनुष्यों को अटका कर इन्हें खत्म कर देना चाहती है।”

“मैं तो इनका भला चाहती हूं। तू बुरा करना चाहती है।”

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान फैल गई।

“इनमें से किसी की बात पर मत आना।” भामा परी ने गम्भीर

स्वर में कहा-“इनकी बातें तुम तीनों को उलझा रही हैं कि गलत चिड़िया की गर्दन तोड़ दो।”

जगमोहन ने होंठ सिकोड़ कर महाजन को देखा।

“सुनी इनकी बातें-।”

“खींच रही हैं हमें-।” महाजन ने कहकर घूंट भरा।

“जितना मर्जी खींच ले।” जगमोहन ने उसी लहजे में कहा-“हम लम्बे तो होने से रहे।”

“ये तुम तीनों को भटकाने की पूरी चेष्टा करेगी कि-।” भामा परी ने कहना चाहा।

“फिक्र मत करो।” महाजन ने भामा परी को देखा-“हम इनकी बातों में आने वाले नहीं।”

तभी एक चिड़िया बोली।

“सुन लिया। ये मनुष्य मेरी बात को सच ही नहीं मान रहे।”

“मेरी बात को भी झूठ माना।”

“अब तो जमाना ही नहीं रहा किसी का भला करने का।”

“मैं इन्हें कैसे विश्वास दिलाऊं कि मेरी ही गर्दन में वो खून है, जिसके बाहर निकलते ही, तिलस्म तबाह हो जायेगा।” चौथी चिड़िया कह उठी।

“जा-जा।” पांचवीं चिड़िया बोली-“फिर झूठ बोलती है। मेरी गर्दन में वो लहू है।”

छठी इस बार भी खामोश रही।

“तू क्यों नहीं, कुछ कहती-।”

“मैं क्या कहूँ। तुम पांचों की बात को ये मनुष्य झूठ मान रहे हैं तो मेरी सच्ची बात को, ये झूठ ही समझेंगे कि मेरी गर्दन में तिलस्म को तबाह करने वाला लहू भरा पड़ा है।”

महाजन ने घूंट भरा।

“ड्रामा अच्छा कर रही हैं ये सब-।”

“हमें इनकी बात किसी भी कीमत पर नहीं माननी-।” जगमोहन कह उठा।

“भूख लग रही है।” महाजन ने कहा।

“लग तो मेरे को भी रही है।” कहते हुए जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा-“खाने का इंतजाम हो सकता है?”

“नहीं।” देवराज चौहान ने गहरी सांस ली-“तलवार की शक्तियां यहां काम नहीं कर रहीं।”

महाजन ने भामा परी को देखा।

“तुम हमारे लिये खाने का इन्तजाम कर सकती हो?” महाजन ने कहा।

“नहीं।” भामा परी अफसोस भरे स्वर में कह उठी-“जब तक मैं कैद हूँ। मेरी पवित्र शक्तियां मेरे पास नहीं आयेंगी। वैसे भी इस जगह पर तिलस्मी हवा फैली हुई है। यहां कोई भी शक्ति काम नहीं कर सकती।”

“भूखे ही रहना पड़ेगा।” महाजन कह उठा।

जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।

“तुमने इन चिड़ियों की बातें सुनीं?”

जवाब में देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान फैल गई।

“क्या हुआ?”

“सब सुन रहा हूं।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली-“इन्हें

कहने दो। बोलने दो। हमें किस चिड़िया की गर्दन तोड़नी है? इसका जवाब भी हमें इनसे ही हासिल होगा। लेकिन उस जवाब को महसूस करना होगा।”

“मैं समझा नहीं-।”

देवराज चौहान ने जवाब न देकर नजरें, चिड़ियों के पिंजरों पर टिका दीं।

वो दिन बीत गया। रात भी निकल गई।

अगला दिन और रात भी बीत गई।

इस बीच भूख की वजह से महाजन और जगमोहन को परेशानी हो रही थी। पानी की जरूरत तो महाजन व्हिस्की से पूरी कर रहा था। लेकिन जगमोहन का गला सूखा पड़ा था। इस बीच उन्होंने पूरा आराम किया। लम्बी-लम्बी नींदें लीं।

चिड़ियों की शरारत भरी बातचीत जारी रही।

भामा परी लम्बे पिंजरे की कैद में खड़ी थी।

लेकिन देवराज चौहान ने नींद नहीं ली। आराम नहीं किया। वो अपनी जगह पर बैठे-लेटे, टेग लगाये, लगातार पिंजरे में मौजूद चिड़ियों को ही देखे जा रहा था। नींद न लेने से उसकी आंखें लाल सी हो गई थीं। जिस्म थकान से बुरी तरह भर चुका था। परन्तु टकटकी लगाकर चिड़ियों को देखना नहीं छोड़ा। जगमोहन-महाजन ने ऐसा करने की वजह भी पूछी। परन्तु देवराज चौहान ने उन्हें कुछ नहीं बताया।

अगला दिन भी बीत गया।

रात का वक्त हो चुका था।

वहां जब तीव्र रोशनी फैल जाती तो वो दिन होने का संकेत होता। जब रोशनी मध्यम होती तो वो रात हो जाने का संकेत होता। ये बात भामा परी ने ही बताई थी।

“तुम्हारी तबीयत खराब हो जायेगी।” महाजन ने देवराज चौहान से कहा-“आज तीसरी रात है, तुमने जरा भी आराम नहीं किया। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम इस तरह लगातार चिड़ियों को क्यों देख रहे हो?”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“महाजन-।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला-“देवराज चौहान

को कुछ मत कह।”

“उसकी हालत देखो। तीन दिन से इसी तरह बैठा-।” महाजन

ने कहना चाहा।

“वो यूं ही नहीं बैठा, ऐसा कह रहा है। उसे भी आराम की जरूरत है।” गम्भीर स्वर ही था जगमोहन का-“उसके ऐसा करने के पीछे अवश्य कोई खास बात है।”

“तो ये बताता क्यों नहीं कि क्या बात है, ऐसे बैठा चिड़ियों

को-।”

“अगर मैंने तुम्हारे सवाल का जवाब दिया तो ये सुन लेगी।”

देवराज चौहान, महाजन की बात काटकर कह उठा-“फिर जो जानने की मैं कोशिश कर रहा हूं, वो नहीं जान पाऊंगा।”

“लेकिन ऐसा कब तक चलेगा?”

“आज रात की बात है।” देवराज चौहान बोला-“यूं तो जो मैं जानना चाहता हूं वो जान चुका हूं। बस अगले कुछ घंटों में अपनी जानकारी को पक्का कर लेना चाहता हूं।”

जगमोहन और महाजन की नजरें मिलीं।

“मेरी तो भूख की वजह से जान निकली जा रही है।” जगमोहन कह उठा।

“यहां किसी भी चीज का इन्तजाम नहीं हो सकता तो कहने का क्या फायदा।” महाजन बोला।

तभी एक चिड़िया कह उठी।

“जरा, उसे तो देख। वो मनुष्य कैसे हम सब को देखे जा रहा है।”

“लगता है, उसका दिल हम में से किसी पर आ गया है।” दूसरी चिड़िया ने खिलखिलाकर कहा।

“मेरे पे आया होगा।” तीसरी बोली।

“मैं ज्यादा खूबसूरत हूं-।” चौथी कह उठी-“मुझे तो नाचना भी बहुत अच्छा आता हैं।”

“उस मनुष्य की नजरें तो मेरे पे हैं।” पांचवीं बोली-“मैं हूं ज्यादा खूबसूरत।”

छठी ने कुछ नहीं कहा।

“तू नहीं बोलेगी क्या?” पांचवीं चिड़िया ने छठी को देखा।

“मैं क्या बोलूं।” छठी ने गहरी सांस लेकर कहा-“तुम पांचों बदसूरत हो और अपनी खूबसूरती का बखान किये जा रही हो ऐसे में मेरे जैसी खूबसूरत, अपने बारे में, अपने मुंह से क्या कहे।”

“मैं कर देती हूं तेरी खूबसूरती की सिफारिश।” पहली चिड़िया खिलखिलाकर हंसी-“वो मनुष्य तो अंधा है। उसे तो जैसे दिखता ही नहीं कि हममें कौन ज्यादा खूबसूरत है।”

तीसरी रात भी धीरे-धीरे बीतने लगी।

देवराज चौहान की निगाहें पिंजरों में मौजूद चिड़ियों पर ही थीं।

महाजन और जगमोहन ये रात ज्यादा नींद नहीं ले पाये। क्योंकि देवराज चौहान ने कहा था कि वो जो कर रहा है, आज की रात, उस काम को पूरा कर लेगा। मन ही मन इस बात का एहसास था उन्हें कि देवराज चौहान उस चिड़िया की पहचान करने की चेष्टा में है, जिसमें तिलस्म की जान है।

वो रात भी बीत गई।

☐☐☐