“अब बता प्यारे ।” कुछ देर बाद अखिलेश की आवाज उभरी --- "कैसे पहुंच गया यहां?”


अवतार ने वही कहा जो दिव्या और देवांश को बताया था अर्थात् उसने कलकत्ता के अखबार में राजदान के मर्डर की खबर पढ़ी और यह सोचकर मुंबई के लिए रवाना हो गया कि शायद पुराने दोस्तों में से किसी से मुलाकात हो जाये । जवाब में वकीलचंद ने कहा --- “ और देख ले। अंततः यहां मिल ही गए चारों यार ! लेकिन यह होटल वाला पता किसने बताया ?" 


“इंस्पेक्टर ठकरियाल ने।” अवतार ने कहा।


तीनों के मुंह से एक साथ निकला--- "ठकरियाल ने?”


“हां। मैं संवेदना व्यक्त करने विला पर पहुंचा ही था कि कुछ देर बाद वह भी आ गया | मेरा परिचय पूछा । मैंने बता दिया ---- राजदान के बचपन का यार हूं। सुनकर वह बोला- - - 'कमाल की बात है, एक-एक करके राजदान के बचपन के चारों दोस्त इकट्ठे हो गये । भट्टाचार्य तो खैर यहां पहले ही से था । वकीलचंद को उसने अपनी मौत से एक दिन पहले बुलाया। अखिलेश को मौत के बाद और अब तुम... क्या तुम भी राजदान के बुलावे पर आये हो? तब मैंने कहा--- 'नहीं, मैं अखबार में उसकी मौत की खबर पढ़कर आया हूं । ”


“खैर !” अखिलेश ने पूछा--- "आजकल कर क्या रहा है कलकत्ता में?”


अवतार ने उल्टा प्रश्न किया --- “मेरी हालत से अंदाजा नहीं हो रहा तुझे ?”


“मतलब?” एक साथ तीनों ने पूछा था ।


“बेरोजगार हूं।" अवतार के जवाब ने ठकरियाल के दिल में खुशियों के अनार छोड़ दिये --- “कुछ दिन पहले तक एक प्राइवेट फर्म में काम करता था । किसी बात पर मालिक से खटक गई । साले ने निकालकर बाहर खड़ा कर दिया। वैसे अगर मैं माफी मांग लेता तो वह वापस नौकरी पर रख सकता था मगर उस वक्त वैसी कोई जरूरत महसूस नहीं हुई मुझे। वो तो बाद में तब नौकरी की कीमत पता लगी जब दूसरी नौकरी के लिए लोगों से मिलने निकला । निकला क्या भटकता ही रह गया । आज दो महीने हो गये, नौकरी नहीं मिली। जमा पूंजी भी खत्म...


“घबराता क्यों है याड़ी । अब तू यारों के बीच पहुंच चुका है।” वकीलचंद ने कहा --- “पूना की कचेहरी में अपनी पिलती है। जिस मजिस्ट्रेट की कोर्ट में रहूंगा, फिट करा

दूंगा | खूब नोट पीटेगा।"


“अबे - - - नौकरी क्यों करेगा अपना यार ।” अखिलेश बोला- -- “अपनी डिटेक्टिव एजेंसी जो चला रखी है मैंने| उसी में काम करेगा। मेरे कंधे से कंधा मिलाकर तुम देखना - - - चंद ही दिनों में अपने से भी बड़ा जासूस बना दूंगा इसे ।”


“वो सब तो ठीक है अखिलेश मगर यार, एक बड़ी अजीब बात बताई इंस्पेक्टर ने।" ठकरियाल के हिसाब से अवतार 

बिल्कुल ठीक जा  रहा था --- “कहने लगा--- तुझे राजदान का कोई लेटर मिला है जो उसने अपनी मौत से पहले लिखा था । बकौल उसके लेटर के द्वारा राजदान ने तुझे अपने मर्डर की इन्वेस्टीगेशन के लिए नियुक्त किया है। कहता है बबलू...


“यह सब ठकरियाल ने बताया ?”


"हां ।"


"कब?”


“कब से मतलब ?”


" किन बातों के चलते यह जिक्र छेड़ा उसने ?”


“जब उसने बताया--- तुम चारों यहीं हो तो मारे खुशी के मैं झूम उठा । बार-बार तुम्हारा पता पूछने लगा | तब बताया-~~-अखिलेश को तो राजदान ने खुद लेटर लिखकर दिल्ली से यहां बुलवाया है।"


“समझ गया। उसने लेटर के बारे में तुझे तब वताया जब बताने के अलावा कोई चारा नहीं रहा।” अखिलेश ने वकीलचंद और भट्टाचार्य पर नजर डालने के साथ कहा --- “उसने महसूस किया होगा कि अवतार यदि यहां आ ही गया है तो हम लोगों से मिले बगैर वापस जाने से रहा। तब उसने यह सोचकर बता दिया होगा---न बताने से फायदा भी कुछ नहीं, हम लोग बता ही देंगे।"


“मगर चक्कर क्या है ? तुझे मिले राजदान के लेटर का जो मजमून उसने मुझे बताया, उसने मेरी खोपड़ी घुमाकर रख दी है। मैंने इंस्पेक्टर से काफी पूछा। उसने हर सवाल का एक ही जवाब दिया--- राजदान को कैसे पता था कि कौन लोग क्यों और कब उसकी हत्या करने वाले हैं? पता था तो अपनी हत्या होने क्यों दी उसने? ऐसे अनेक सवाल थे । इंस्पैक्टर ने कहा---'उन सवालों का मैं तुम्हें क्या जवाब दूं जो खुद मेरे ही लिए पहेली बन गये हैं। मेरे हिसाब से तो राजदान की हत्या बबलू ने की है। मुकम्मल सुबूत भी मिल गये हैं और इकबाले जुर्म भी कर लिया उसने । बस इतनी सी बात है कि हवालात से फरार हो गया । मगर कब तक फरार रहेगा, एक दिन तो कानून के हाथ उस तक पहुंचेंगे ही। रही राजदान के लेटर की बात- -- मुझे तो लगता है अपने अंतिम समय में वह थोड़ा सनक गया था --- 'इस बारे में बाकी बातें तुम अपने दोस्त से ही करो तो बेहतर होगा । सेन्टूर होटल के सुईट नम्बर छः सौ बारह में ठहरा है वह ।'


“ और तू यहां चला आया ?”


“ और कहां जाता ?”


“यारो !” अखिलेश बोला--- "हम इतने सालों बाद फिर इकट्ठा हुए, झूम उठने लायक बात है ये मगर, दुख की बात ये है --- हमारे बीच आज पांचवां याड़ी नहीं है । दुर्भाग्यवश हम उसकी मौत के कारण इकट्ठे हुए हैं। या एक तरह से यूं भी कहा जा सकता है ---उसी ने इकट्ठे किये हैं। कितना अच्छा होता यदि खुशी के किसी मौके पर मिले होते।”


“लेकिन अखिलेश ।” आवाज वकीलचंद की थी - - -“कामयाब तभी होगा हमारा यह मिलन जब उस काम को मुकम्मल तौर पर अंजाम देंगे जो वह सौंप गया है।"


“ मैं वकीलचंद से पूरी तरह सहमत हूं।" भट्टाचार्य की

आवाज में भावुकता का पुट था--- "सारी दुनिया को छोड़ दिया उसने । अपने पुराने दोस्तों पर भरोसा करके मरा है। हम सबको उसके भरोसे पर खरा उतरकर दिखाना है। ऐसी सजा देनी है उसके हत्यारों को --- ठीक ऐसी, जैसी वह चाहता था। और सचमुच वैसी ही बल्कि उससे भी कुछ ज्यादा ही कड़ी सजा के हकदार हैं। मेरे देखते ही देखते जब बेकसूर बबलू पकड़ा गया तो मारे हैरत के मेरा बुरा हाल था। सारे सुबूतों के बावजूद मुझे विश्वास नहीं हो रहा था उसने यह सब किया है मगर कर क्या सकता था ? मुझ बेवकूफ ने तो तब भी उनके हक में ही गवाही दी जो असल में मेरे दोस्त के हत्यारे थे । क्या करता? अंजान था मैं । मरने से पहले साले ने मुझे कुछ बताया ही नहीं था लेकिन अब.... जब तू सबकुछ बता चुका है तो.... तो राजदान को हमारी सच्ची श्रद्धांजली यही होगी। यह कि --- उसके हत्यारों को वही सजा मिले जो वह चाहता था । जिसकी उम्मीद राजदान ने मरने से पहले हमसे लगाई थी।” 


“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा।” अवतार ने कहा---“आखिर क्या बातें कर रहे हो तुम ?”


“किसी की भी समझ में तब तक कुछ नहीं आयेगा जब तक पूरा किस्सा शुरू से नहीं बताया जायेगा ।" अखिलेश ने कहा --- “मेरी डिटेक्टिव एजेंसी में तो अब तुझे शामिल होना ही है । तो यूं समझ तेरी एंट्री इसी केस से हो रही है।


हालांकि इस केस पर हम जासूस होने के नाते नहीं, राजदान के दोस्त होने के नाते काम कर रहे हैं। "


“मेरी समझ में अब भी कुछ नहीं आया ।”


“बात को यूं समझ ।” कहने के बाद अखिलेश ने ऐसी सांस ली जैसे वह बहुत लम्बी कहानी सुनाने की तैयारी कर रहा हो । बोला --- “राजदान की हैसियत का अंदाज तो उसके टीन-टप्पर देखकर तुझे हो ही गया होगा। अपनी पत्नी और भाई को वह उतना ही प्यार करता था जितना मजनू लैला से या रांझा हीर से करने का दम भरता था । एक और शख्स है---ब - बबलू । वह उसे उतना ही प्यारा था जितना एक पिता को अपना बेटा होता है। दुर्भाग्य से राजदान को एड्स हो गया।" Join a


“एड्स ?” अवतार चौंका।


“सुनता रह ! टोका-टाकी मत कर बीच में।" अखिलेश कहता चला गया---“असल में उसका दुर्भाग्य उसी दिन से शुरू हो गया था मगर पता बाद में लगा। कनाडा से एड्स लेकर आया था वह । आते ही हमला हुआ । इन्वेस्टीगेशन के लिए इंस्पेक्टर ठकरियाल मैदान में आ गया। अनेक घटनाओं के बाद पता लगा --- हमले के पीछे देवांश था।”


“द - देवांश ?”


“तू फिर बीच में टपका?”


“मगर यार, उस साले को तो मैं अभी-अभी मातम में ढवा देखकर आया हूं। कह रहा था --- क्या बतायें, किस्मत खराव थी हमारी ।”


“ ऐसे लोग एक्टिंग अमिताभ से भी ज्यादा बेहतरीन करते हैं। "


“खैर... उसके बाद?” @


“ठकरियाल ने पता लगाया --- देवांश विचित्रा नाम की एक वेश्या के लपेटे में लिपटा हुआ था। विचित्रा और उसकी मां पहले ही राजदान से खुन्दक रखती थीं। देवांश को अपने जाल में फंसाने के पीछे उन मां-बेटी के दो उद्देश्य थे। पहला - - - राजदान से बदला लेना । दूसरा ---विचित्रा का देवांश की बीवी बन बैठना ताकि राजदान के बाद सारी जायदाद की मालकिन बन जाये ।”


“क्यों, राजदान के बाद तो सब कुछ दिव्या का होना चाहिए था।"


"दिव्या को विचित्रा, देवांश और शांतिबाई के प्लान के

मुताबिक राजदान की हत्या के इल्जाम में फंसना था ।”


“ओह ! उसे यूं रास्ते से हटाने का प्लान बनाया था उन्होंने।”


“मगर यह प्लान परवान नहीं चढ़ सका। समय से पहले ही ठकरियाल हकीकत तक पहुंच गया । यह हकीकत उसने राजदान को बताई। कहा--- 'मुझे आपके छोटे भाई को गिरफ्तार करना पड़ेगा।' ऐसा सुनकर खेल गया राजदान । तड़प उठा। बोला---'नहीं इंस्पेक्टर, तुम मेरे छोटे भाई को बात को यहीं भूल जाओ। समझो गिरफ्तार नहीं करोगे। समझो कुछ हुआ ही नहीं।”


हैरान अवतार ने कहा --- “राजदान ने यह बात उस शख्स के बारे में कही जो उसकी... खुद उसकी हत्या करना चाहता था ?”


“बात केवल कही नहीं, ठकरियाल से ऐसा कराया भी। इससे तुम समझ सकते हो, वह देवांश को कितना टूटकर चाहता होगा। ठकरियाल एक रिश्वतखोर पुलिसिया है । वह फौरन समझ गया --- राजदान से मोटे नोट ऐंठे जा सकते हैं । राजदान की भावनाओं का दोहन करते हुए उसने देवांश को गिरफ्तार न करने के बदले पचास लाख रुपये मांगे ।”


“ और राजदान ने दिये ?” मारे आश्चर्य के अवतार का बुरा हाल था ।


"हां"


“कमाल का आदमी था अपना यार । एक साला मेरा बड़ा भाई था!” अवतार कहता चला गया--- "मेरे हक की एक पाई नहीं दी मुझे । सुई की नोंक के बराबर जगह नहीं दी बाप के घर में ।”


“पचास लाख राजदान के उसे गिरफ्तार न करने के लिए दिये, साथ ही हिदायत दी - - - यह बात देवांश को पता न लगे । ऐसा हुआ तो वह हीन भावना का शिकार होगा।”


“पागल... पागल था राजदान ।”


“ इतना ही नहीं, जब ठकरियाल ने कहा--- शांतिबाई और विचित्रा जीवित रहीं तो वे फिर देवांश को अपने जाल में फंसा सकती हैं | तब... राजदान ने पच्चीस लाख और दिये। उनके एवज में ठकरियाल ने मां-बेटी को समुद्र में डुबोकर मार डाला ।”


“अच्छा किया।"


“मगर किस्सा यहां खत्म नहीं हुआ। बल्कि देवर-भाभी में

अवैध संबंध हो गये ।"


“ओह !” अवतार की आंखों के सामने दिव्या का खूबसूरत चेहरा नाच उठा ।


दरवाजे के पीछे छुपा खड़ा ठकरियाल एहसास कर सकता था दिव्या के बारे में ऐसा सुनकर अवतार को कैसा लगा होगा ।


जिस ढंग से अखिलेश ने बताना शुरू किया था उससे स्पष्ट था --- अवतार को सबकुछ, एक-एक प्वाइंट का पता लगने वाला था। ठीक उस तरह जैसे अभी-अभी दिव्या के करेक्टर के बारे में पता लगा था ठकरियाल को । अब इंतजार इस बात का था जब अवतार को पता लगेगा---राजदान का सबकुछ बीमारी के फेर में या तो खत्म हो चुका है या गिरवी पड़ा है तो उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी?


यह पता लगने पर झटका तो निश्चित लगेगा उसे कि न वह दौलत मौजूद है जिसके वह चक्कर में था, न ही वह औरत उतनी पवित्र है जितनी समझ रहा था ।


यह सब जानने के बाद क्या फैसला करेगा वह?


उसी के साथ रहेगा?


दोस्तों का साथ देगा?


या, मुम्बइ से फरार होने की कोशिश करेगा ?


ठकरियाल का आगे का सारा प्लान अवतार के फैसले पर निर्भर था । इसलिए वह अखिलेश के हर शब्द को धड़कते दिल से सुनता रहा । उसने अभी-अभी कहा था--- "देवर भाभी के अवैध सम्बन्धों की जानकारी राजदान को बिल्कुल नहीं हो सकी थी। कुछ तो उसका बिजनेस पहले ही से क्राइसेज में चल रहा था । फाइनेंसर्स का काफी पैसा चढ़ा हुआ था। जो रहा-सहा था, या बचे-कुचे स्रोतों से आ रहा था, वह महंगे इलाज की भेंट चढ़ता जा रहा था। एक ही चिंता समाये जा रही थी राजदान को। यह कि - - - यदि दिव्या और देवांश इसी तरह कर्ज में डूबते चले गये तो उसके बाद उनका क्या होगा। उम्मीद की एक किरन थी--- राजदान की बीमा पॉलिसी । पांच करोड़ की पॉलिसी थी वह ।”


"प-पांच करोड़ !” अवतार ने दोहराया ।


“मगर वह तीस अगस्त के बाद लैप्स हो रही थी । इकतीस तारीख को किश्त ड्र्यू थी । किश्त इतनी मोटी थी कि दी नहीं जा सकती थी। अब राजदान की चिंता थी --- अगर वह तीस अगस्त के बाद मरा तो इस पालिसी के पैसे भी दिव्या और देवांश को नहीं मिल पायेंगे। अतः उसने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया। ठीक उस वक्त जिस वक्त वह आत्महत्या करने वाला था, दिव्या और देवांश के अवैध सम्बन्धों का पता लगा। कैसे पता लगा, उसने क्या-क्या देखा, क्या-क्या गुजरी उस पर ---यह सब मुझे लिखे लेटर में विस्तारपूर्वक लिखा है। मगर यहां इतना ही बता देना काफी समझता हूं जो मंजर उसने देखा, उसने पागल मा कर दिया था राजदान को । सारी रात अंगारों पर लोटता रहा। उस आग ने अब तक के राजदान को जलाकर राख कर दिया। अगले दिन के सूर्य की पहली किरणों के साथ एक नये राजदान क जन्म हुआ। उस राजदान का जिसने अपनी पत्नी और भाई के विश्वासघात का उन्हें ऐसा सवक देने की ठान ली थी जिसे सुनने के बाद शायद ही दुनिया के कोई देवर-भाभी इस गर्त में गिरने के बारे में सोचे। पूरा प्लान बना लिया था उसने। ऐसा हैरतअंगेज प्लान जिसे सुनकर तेरे दिमाग के सभी खिड़की दरवाजे खुल जायेंगे। मुझे लिखे लम्बे लेटर में उसने लिखा---'अखिलेश ! मेरे यार ! दिव्या और देवांश के विश्वासघात के बाद पागल सा हो गया हूं मैं । समझ नहीं पा रहा, इस दुनिया में किस पर यकीन किया जाये, किस पर नहीं । ऐसे विकट समय में जाने कैसे मुझे अपने बचपन के दोस्तों की याद आई है। सच कहूं--- भूला तो कभी था ही नहीं तुम्हें । बचपन के दोस्तों को कभी कोई भूल भी नहीं पाता मगर उतनी शिद्दत से याद भी कभी नहीं आई जितनी आज आ रही है। सच कहा है किसी ने --- बचपन के दोस्त भगवान का रूप होते हैं। और आदमी पूजा भले ही करता रहे मगर अपने सुखों के दिन में उतनी शिद्दत से भगवान को याद नहीं करता जितनी शिद्दत से बुरा वक्त आने या दुखों से घिर जाने पर खुद-ब-खुद याद आने लगती है। कुछ ऐसा ही है मेरे साथ| जाने क्यों, दिलो-दिमाग ने एक साथ चीखकर कहा --- 'आज तेरे बचपन के यार साथ होते तो जो कुछ तेरे साथ हुआ है, जी भरकर बदला लेते उसका ।' बहुत याद आ रही है तुम सबकी । तेरी, और अवतार की । वकीलचंद से मिल चुका हूं। भट्टाचार्य तो खैर मेरे पास है ही। मैं नहीं जानता था तुम तीनों कहां हो, क्या कर रहे हो ? बावजूद इसके जाने क्यों लगा---तुम चाहे जहां चाहे जिस हाल में हो--- मेरी आवाज सुनते ही दौड़े चले आओगे। मुझे विश्वास है ---मुझ पर हुए जुल्म का बदला अगर भावनाओं की गहराई में उतरकर कोई ले सकता है तो वे दुनिया में केवल... और केवल तुम हो । तू, वकीलचंद, भट्टाचार्य और अवतार । यही सोचकर भट्टाचार्य से पूछा--- 'क्या तुझे अखिलेश, अवतार या वकीलचंद के बारे कुछ पता है? भट्टाचार्य को केवल वकीलचंद के बारे में पता था। उसी ने उसका पूना का फोन नम्बर दिया | मैंने फोन मिलाया । जैसी कि उम्मीद थी - - - मारे खुशी के उछल पड़ा वकीलचंद | मेरे बुलावे पर तुरंत मुंबई आ गया। मैंने उससे तेरे और अवतार के बारे में पूछा । अवतार की उसके पास भी कोई खैर - खबर नहीं है। हां, तेरे बारे में जरूर बताया और जो बताया उसे सुनकर बांछें खिल गईं | तू तो ठीक वही बना बैठा है जिसकी मुझे जरूरत है। अब मेरा पूरा प्लान बन चुका है। एक छोटा सा मगर महत्वपूर्ण काम वकीलचंद को सौंपा है। काफी सवाल किये उसने मगर मैंने जवाब नहीं दिये। असल में उसे या भट्टाचार्य को पूरा प्लान बता भी नहीं सकता। बता दिया तो वे मरने ही नहीं देंगे मुझे। मरने तो तू भी नहीं देता, इसलिए तुझे बुलाया नहीं। केवल यह लेटर लिख रहा हूं। यह लेटर जो तुझे मेरी मौत के बाद मिलेगा अर्थात् मुझे बचाने का कोई चांस नहीं होगा तेरे पास । अब उस प्लान के बारे में सुन जो मैंने अपने दुश्मनों को मजा चखाने के लिए बनाया है और जिस पर तुम सबको अमल करना है। बीमा कम्पनी को मैं एक लेटर लिख चुका हूं। उसमें लिखा है--- सुसाइड की कंडीशन में मेरी पॉलिसी का क्लेम किसी को न दिया जाये। स्वाभाविक मौत या मर्डर की कंडीशन में क्लेम की हकदार मेरी नोमिनी दिव्या होगी। उनतीस तारीख की रात को मैं दिव्या और देवांश को एक साथ अपने कमरे में बुलाऊंगा। उनसे साफ-साफ कहूंगा कि मैं क्या कुछ जान चुका हूं। जाहिर है उनके पैरों तले से जमीन खिसक जायेगी। मैं उन्हें बीमा कम्पनी को लिखे अपने लेटर के बारे में भी बताऊंगा । और तब - - - उनकी आंखों के सामने आत्महत्या कर लूंगा। साइलेंसरयुक्त अपने उसी रिवाल्वर से करूंगा जिसे अपने बैंक लॉकर से निकालकर ला चुका हूं। साइलेंसरयुक्त रिवाल्वर से सुसाइड करने का कारण होगा।