एस० आई० मनोज तोमर की खीज का बायस वो चेहरा दिनेश ठाकुर का था ।



उसने रजिस्टर में साइन किये । अपना ओवरकोट और गिफ्ट पैक जैसा नजर आता पैकेट क्लॉक रूम में लड़की को सौंपकर गेमिंग रूम्स की ओर चला गया ।



वह पहली बार पैराडाइज क्लब आया था हालांकि मेम्बर्स की लिस्ट में उसका नाम तीन महीने से दर्ज था ।



क्लब में पहुँचने से चंदेक घण्टे पहले ।



एंबेसेडर होटल के अपने कमरे में दिनेश ठाकुर दो आदमियों से मुखातिब था । वे दोनों यासीन हक और मंसूर मदनी, डॉन पीटर डिसूजा के भरोसेमंद साथी थे । ठाकुर पहले भी कई बार उनके साथ काम कर चुका था । चार महीने से करीमगंज में होने की वे वहां के भूगोल और वातावरण से पूरी तरह परिचित हो चुके थे ।



ठाकुर ने उन्हें फोन करके बुलाया था और समझा दिया था उसके पास आने से पहले क्या कुछ करना था । उसकी हिदायतों पर अमल करके जब वे पहुंचे तो उनके पास चमकीले रैपिंग पेपर में गिफ्ट पैक की तरह लिपटा एक पैकेट भी था मोटे गत्ते के डब्बे में मजबूती से पेक्ड ।



वो मेज पर रखा था ।



ठाकुर ने उन्हें अगले आदेश दिये ।



दोनों सम्मानपूर्वक खड़े गौर से सुनते रहे ।



–"कोई चूक नहीं होनी चाहिये ।" अंत में ठाकुर बोला–"शिकार वही है । सिर्फ वही अकेला ।"



यासीन के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था ।



–"सिर्फ वही ?"



–"हां !"



–"वे दोनों कमीने क्यों नहीं ?"



–"क्योंकि डॉन यही चाहता है । फिलहाल यह इसी तरह किया जाना है । तुम लोगों ने किसी भी हालत में किसी और को छूना तक नहीं है । इस चोट का उन पर सीधा असर होगा । उन्हें भी उतना ही ज्यादा दर्द होगा जितना विक्टर और लिस्टर की मौतों से डॉन को हुआ है । उन्हें सबक मिलेगा और हम सौदेबाजी की बेहतर पोजीशन में हो जायेंगे ।" ठाकुर हंसा–"दूसरा सबक उन्हें में सिखाऊंगा । आज रात मेरा दूसरा वार ऐसी चोट पहुंचायेगा कि वे दर्द से तड़पने के साथ पागलों की तरह अपने बाल नोंचने पर मजबूर हो जायेंगे ।"



–"उस मामले में किसी की मदद चाहिये ?"



–"नहीं, मंसूर । इस तरह का काम मैं अकेले पहले भी कई दफा कर चुका हूं । मुझे इस काम में मजा आता है ।" पैकेट की और इशारा करके पूछा–"यह बिल्कुल सही है ?"



–"हां !" मंसूर मदनी पूरे विश्वास के साथ बोला–"मैंने खुद इसे तैयार किया है । सुबह पांच बजे तक सही ही रहेगा ।



–"ठीक है । तुम जाओ और जो करना है, करो । इसे मैं डिलीवर कर दूँगा ।"



वे दोनों चले गये ।



स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात् दिनेश ठाकुर ने शानदार सूट पहना । गिफ्ट पैक बायें हाथ में उठाकर उसी बाँह पर हल्का ओवरकोट इस ढंग से डाल लिया कि पैकेट उसमें छिप गया ।



कमरा लॉक करके लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा ।



होटल से बाहर आकर टैक्सी पकड़ी ओर पैराडाइज क्लब की ओर रवाना हो गया ।



वह जानता था कितना खतरनाक काम अंजाम देने जा रहा था फिर भी पूर्णतया सामान्य था । उसके चेहरे या किसी भी हावभाव से उसके इरादे को भांप पाना नामुमकिन था । मस्ती मारने निकला रंगीन मिज़ाज युवक नजर आ रहा था ।



टैक्सी क्लब के बाहर जा रुकी ।



पिछली सीट का दरवाज़ा खोलते ठाकुर का माथा ठनका । प्रवेश द्वार के बाहर मौजूद दो लम्बे–चौड़े आदमियों के खड़े होने के ढंग ओर चेहरे–मोहरे से स्पष्ट था, वे सादा लिबास में पुलिसमैन थे । टैक्सी के आगे दो पुलिस कारें भी खड़ी थीं ।



ठाकुर के पास वहां उतरने के अलावा कोई चारा नहीं था । कोई भी आदमी भले ही अनजान क्यों न हो, इस तरह अचानक इरादा बदलने की वजह से आसानी से उनके मन में शक पैदा कर सकता था । पुलिस कारों को देखने के बाद ड्राइवर से आगे चलने को कहना उसे शंकित करना था । अगर ड्राइवर ने अभी इस तरफ ध्यान नहीं भी दिया तो भी बाद में तो उसे याद आ ही सकता था ।



ज्यादा पसोपेश में पड़े बगैर ठाकुर टैक्सी से उतरा ।



ड्राइवर को भाड़ा चुकाकर क्लब में प्रवेश कर गया ।



लॉबी में एक और पुलिसमैन मौजूद था ।



ठाकुर कुछेक सैकेंड यूं खड़ा रहा मानों किसी का इंतजार था । तब तक कई और मेंबर और उनके गैस्ट आ पहुंचे । उन्हीं के बीच उसने भी रजिस्टर में साइन किये और उसी भीड़ का हिस्सा बना अपना ओवरकोट और पैकेट क्लॉकरूम में रखवाने लगा ।



ओवरकोट पर ऐसा कोई चिन्ह नहीं था जिसके जरिये उसे पहचाना जा सके । यासीन उसी शाम उसे एक डिस्काउंट सेल से खरीदकर लाया था ।



क्लॉकरूम अटेंडेंट लड़की इतनी व्यस्त थी कि ठाकुर की ओर खास ध्यान दिये बगैर ओवरकोट हैंगर पर टांग दिया और पैकेट एक चौड़े शेल्फ पर रख दिया जहां और भी कई ब्रीफ़केस बैग, पैकेट वगैरा रखे थे ।



सादा लिबास पुलिसमैन नजर आते चार और आदमी सीढ़ियों से उतरे । लॉबी में मौजूद पुलिसमैन भी उनमें शामिल हो गया वे सब बाहर निकल गये ।



मन ही मन मुस्कराता ठाकुर गेमिंग रूम्स में पहुंच गया ।



ढाई हजार रुपये के चिप्स खरीदकर छोटे–छोटे दांव लगाता रहा ।



इसी तरह डेढ़ घण्टा गुजार दिया । बचे हुये चिप्स कैश करा लिये । ग्यारह सौ रुपये मिले ।



चौदह सौ रुपये हारने के बाद भी खुश था कि एक बार भी जीता नहीं । जीतने वाले जुआरियों को अक्सर लोग याद रखते है । जबकि छोटी रकम हारने वाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता । उसने चौदह सौ रुपये भी किसी अकेली मेज पर नहीं बल्कि तीन अलग–अलग मेजों पर हारे थे ।



वह पहली मंज़िल पर बार में जाकर व्हिस्की चुसकता हुआ कैब्रे डांस देखने लगा ।



शो बढ़िया था । लड़कियाँ जवान और ख़ूबसूरत थी और अपने काम में माहिर ।



खासतौर पर एक लड़की ने बहुत प्रभावित किया । ऊँचे कद और इकहरे जिस्म की उस डाँसर में वो सब उतना नहीं था, जिससे किसी मर्द को लुभाया जा सके । लेकिन उसके अंग प्रदर्शन में भौंडापन या सस्ती कामुकता न होकर संकोच और शर्मिलापन का ऐसा अंदाज़ था जैसे कोई क्वांरी लड़की पहली बार प्रेमी की जिद पर निर्वस्त्र हो रही थी ।



दूसरे शो में चार कसे हुए जिस्म की जवान लड़कियों ने ओर्केस्ट्रा की उत्तेजक धुनों पर जिमनास्टिक की लाजवाब स्पोर्टसवूमेन की तरह उछल–कूद और कलाबाजियों को तेज डांस के साथ मिलाकर अपने और एक दूसरी के जिस ढंग से कपड़े उतारे उसे देखकर दर्शकों की धड़कनें बढ़ गयीं । खून का दौरा तेज होकर वासना के ज्वार में बदल गया ।



ठाकुर भी औरत की सख्त जरूरत महसूस कर रहा था । लेकिन वह जानता था क्लब की किसी लड़की को साथ ले जाना तो खतरनाक था ही, बाहर की किसी अनजान लड़की के साथ आज की रात हमबिस्तर होना भी रिस्की साबित हो सकता था । आज रात के बाद हालात इतने खराब भी हो सकते थे कि वह खतरों में ही घिरकर रह जाये इसलिये फिलहाल उसका अनजान और गुमनाम रहना ही बेहतर था । हर वक्त चौकस और कभी भी किसी भी तरह की अनपेक्षित घटना से निपटने को पूरी तरह से तैयार । जरा–सी भी लापरवाही उसे मौत के मुंह में धकेलकर सारा खेल बिगाड़ सकती थी ।



मजबूरी थी, उसे अपने आप पर काबू करना पड़ा ।



वह बेमन से बिल चुकाकर बार से निकला ।



सीढ़ियों द्वारा लॉबी में पहुंचा और चुपचाप बाहर निकल गया ।



उस वक्त ग्यारह बजने में तीन मिनट थे ।



अपना आवरकोट और गिफ्ट पैक वाला पैकेट उसने जानबूझकर क्लब के क्लॉकरूम में छोड़ दिये थे ।



* * * * * *



एस० आई० तोमर के चले जाने के बाद ।



हसन भाइयों और उस आदमी के बीच बातचीत शुरू हुई, जिसने अपना नाम असगर अली बताया था ।



–"उन्हें कुछ पता नहीं चल सका ।" अनवर हिकारत भरे स्वर में बोला–"कुछ भी नहीं । मादर...हमें हड़काने आये थे ।"



असगर अली चिंतित नजर आ रहा था ।



–"मेरा नाम तो पता चल गया...ओर तुम शायद भूल गये उसने पूछा था तुम दोनों बीरगंज, नेपाल तो जाने वाले नहीं हो...इसका क्या मतलब था ?"



–"हमें डराने की कोशिश करना...बस और कुछ नहीं । लेकिन मैं ऐसे ठुल्लों की परवाह नहीं करता ।" फारूख बोला–"वे कुछ साबित नहीं कर सकते । किसी भी तरह नहीं ।" उसने लड़कियों की ओर देखा–"बशर्ते कि हमारा ही कोई आदमी पुलिस स्टेशन जाकर रिकार्ड चालू नहीं कर देता ।" फिर कमसिन लड़की को कड़ी निगाहों से घूरा–"उस पुलिसिये के सामने अपनी ज़ुबान खोलने में बड़ी फुर्ती दिखाई थी तुमने ?'



–"में मदद करने की कोशिश कर रही थी ।"लड़की फंसी–सी आवाज़ में बोली–"वरना मैं तो कुछ जानती ही नहीं ।"



–"अगर तुमने दोबारा ज़ुबान खोली तो, जान जाओगी मेरा हाथ उठने का मतलब क्या होता है ।"



मेकअप की परत के बावजूद लड़की का चेहरा सफेद पड़ गया । उसने दोनों भाइयों की बेरहमी की कहानियां सुन रखी थीं । फारूख द्वारा की गयी हमीदा बाई की ठुकाई की कहानी याद आते ही वह सर से पांव तक कांप गयी ।



–"ज़ुबान पर काबू पाना सीख लो ।" फारूख बोला–"वरना इसे काटकर हलक में उतार दिया जायेगा ।"



–ठ...ठीक है ।"



–"सब कान खोलकर सुन लो पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती । वे सिर्फ इतना साबित कर सकते हैं कि अकबर होटल में उन दोनों के साथ हमने डिनर लिया था । इसके अलावा और कुछ न तो वे जानते हैं और न ही जान सकते हैं । इसलिये इसे भूल जाओ । उन दोनों की मौत की खबर अब तक उनके बाप डिसूजा को भी मिल गयी होगी ओर उस कमीने की अक्ल ठिकाने आ गयी होगी । कोई और चालाकी अब वह नहीं कर पायेगा । साला डॉन बना फिरता है । अब हमें अपना माल दोबारा उससे वसूल करने पर ध्यान देना होगा । आखिरकार आधी पेमेंट हम कर चुके हैं और हम तक पहुंचने से पहले माल पकड़ा गया । गलती उसकी या उसी के किसी आदमी की थी । मुखबिरी उसी की तरफ से की गयी थी । उसी के किसी आदमी ने यहां पुलिस को गुमनाम फोन करके इत्तिला दी थी ।"



–"ऊपर से वो दोनों सूअर कहते थे पुलिस को हमारे किसी आदमी ने टिप दी थी ।" अनवर ने तल्खी से कहा–"उनकी मोटी अक्ल में यह बात नहीं आयी कि हमने भला अपना ही माल क्यों पकड़वाना था । उस सौदे के बारे में हमारा तो कोई आदमी जानता तक नहीं था ।"



–"इसलिये तो उन्हें मरना पड़ा ।"



–"अब उस डॉन के बच्चे की आँखें खुल गयी होंगी ।



–"बिल्कुल ! वह या तो दूसरी खेप भेजेगा या हमारा पैसा वापस करेगा ।"



–"अब हमें पैसा नहीं माल ही चाहिये और डिलीवरी भी यहीं चाहिये । इस दफा हम अपने किसी आदमी को कहीं नहीं भेजेंगे । पिछली दफा हम उस हरामी की बातों में आ गये थे । नतीजा अपने एक लाजवाब ड्राइवर को हमें खुद ही उड़ाना पड़ा ।



–"वो मजबूरी थी । गनीमत थी, हमें वक्त पर पता चल गया और हम फौरन एक्शन में आ गये वरना हमारा बंटाधार हो जाना था ।



अचानक फारूख को अहसास हुआ लड़कियों के सामने ऐसी बातें करना ठीक नहीं था । उसने एक बार फिर उन तीनों को कड़ी चेतावनी देकर उन्हें नीचे रेस्टोरेंट में जाने का हुक्म दे दिया ।



तीनों उठकर कमरे से निकल गयीं ।



कमसिन लड़की सबसे पीछे थी ।



फारूख जिन निगाहों से उसके नितंबों के उतार–चढ़ाव को देख रहा था उससे कठोरता के साथ–साथ वासना भी साफ झलक रही थी ।



उनके जाने के बाद बातचीत फिर जारी हो गयी ।



अगले करीब एक घण्टे के दौरान कई लोग भी हसन भाइयों से मिलने आये । हर एक को मनोचा ही साथ लेकर आया था ।



आखिरकार फारूख, अनवर और असगर अली भी ऑफिस से निकलकर नीचे रेस्टोरेंट में लड़कियों के पास आ गये ।



उनकी मनपसंद डिशेज सर्व कर दी गयीं ।



तीनों भुखमरों की तरह खाने पर टूट पड़े जैसे सुबह से कुछ नहीं खाया था ।



खाने के बाद तीनों भाई निचले खण्डों का मुआयना करने निकल पड़े । यहां–वहां अपने दोस्तों, परिचितों या उन मेंबरों के पास रुकते हुये, जिन पर उन्होंने अहसान किये थे ।



बारह बजने से कुछ देर पहले फारूख अकेला ऊपर ऑफिस की ओर लौट पड़ा । बार–कम–डांसिंग हॉल के सामने से गुजरते वक्त अंदर झांका ।



स्टेज पर आर्केस्ट्रा की उत्तेजक धुनों पर ही जिमनास्टिक–कम–फास्ट डांस वाला स्ट्रिप शो अपने आखिरी दौर में था । उन चारों में सबसे कम उम्र लड़की का नाम माला था । ब्राउन आंखों और इकहरे जिस्म की उस छोकरी के गोल वक्ष और पुष्ट नितंब पिछले कई दिनों से फारूख की आंखों में खटक रहे थे । आज उसने फैसला कर ही लिया, उसे जल्दी ही अपने ढंग से भोगेगा ।



शो देखने के बाद विस्की का सरूर और माला के शरीर से उत्तेजना महसूस करता फारूख ऊपर ऑफिस में पहुंचा । पन्द्रह मिनट मनोचा के साथ गुजारें, जो उस रोज की कलैक्शन का हिसाब कर रहा था ।



ठीक साढ़े बारह बजे शोफर गुलशन इम्पाला को क्लब के बाहर ले आया ।



असगर अली एक लड़की को साथ लेकर टैक्सी स्टैण्ड की ओर चला गया ।



फारूख, अनवर, कमसिन लड़की टीना और भूरे बालों वाली नजमा इम्पाला में सवार होकर मौलाना आजाद एनक्लेव में हसन हाउस की ओर रवाना हो गये ।