19 दिसम्बर: गुरुवार
अगले रोज ग्यारह बजे के करीब गजानन चौहान सिविल लाइन्स पहुंचा और कीमत राय सुखनानी से मिला।
‘गोल्डन गेट’ का रेगुलर होने की वजह से सुखनानी उससे वाकिफ था। कोठी के आफिसनुमा कमरे में वो उससे मिला।
‘‘मालूम था मैं इधर रहता हूं?’’ – सुखनानी बोला।
‘‘जी हां।’’ – चौहान बोला – ‘‘आप रुतबे और रसूख वाले मानस हैं, न मालूम होता तो मालूम हो जाता।’’
‘‘कैसे आया?’’
‘‘ ‘गोल्डन गेट’ की ख़बर लगी?’’
‘‘हां, लगी।’’ – कीमत राय खेदपूर्ण भाव से बोला – ‘‘टीवी पर देखी। दुख तो हुआ ही, हैरानी भी हुई। कहते हैं दो तीन मिनट में ही एक के बाद एक कई बम फटे!’’
‘‘हां।’’
‘‘मैं रात उधर ही था। हमेशा की तरह सवेरे निकला। बम जल्दी फटे होते तो इमारत के साथ-साथ मेरा भी – बाकियों का भी – काम हो गया होता!’’
‘‘नहीं। पुलिस की तफ्तीश कहती है कि टाइम बम थे जिन पर एक ही टाइम सैट था – जिस वक्त कि बम फटे, साढ़े छः का। बम प्लांट करने वाले ने ख़ास ख़याल रखा कि उस हादसे में किसी की जान न जाये। उसे यकीनी तौर पर मालूम था कि सुबह साढ़े छः बजे इमारत मुकम्मल तौर से ख़ाली होती थी।’’
‘‘इसलिये बम फटने का टाइम साढ़े छः का?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘जिसने ये किया, कैसीनो तबाह करने के लिये किया?’’
‘‘जाहिर है।’’
‘‘किसने?’’
‘‘आप बताइये।’’
‘‘मैं बताऊ?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘क्या मतलब है, भई, तेरा?’’
‘‘इस वारदात के सिलसिले में कैसीनो का जो मेहमान फोकस में आया है, वो आपके साथ आया था।’’
‘‘तो?’’
‘‘लिहाजा आप उससे वाकिफ थे।’’
‘‘चड़या हुआ है!’’
‘‘मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग से वो आप के साथ आया था।’’
‘‘तो? इतने से वो मेरा वाकिफकार हो गया? यार हो गया? मैं वारदात में उसका जोड़ीदार हो गया?’’
‘‘जब वो आप के साथ . . .’’
‘‘इसलिये था कि इत्तफाक से वो और मैं मैट्रो स्टेशन की पार्विंफ़ग में एक ही टाइम पर पहंचे थे और उस घड़ी वहां शटल सर्विस वाली एक ही ‘इन्डिका’ थी जिस पर इकट्ठे सवार होना हमारी मजबूरी थी। इकट्ठे पहुंचे थे इसलिये ‘गोल्डन गेट’ में इकट्ठे दाखिल हुए थे।’’
‘‘आप उसे नहीं जानते थे?’’
‘‘नहीं जानता था। कभी शक्ल तक नहीं देखी थी।’’
‘‘कैसीनो में दो रेगुलर्स को उसने अपना नाम वी-के- खन्ना बताया था!’’
‘‘बताया होगा। मेरे लिये काला चोर था।’’
‘‘आप कैसीनो के रेगुलर हैं, वो रेगुलर था . . .’’
‘‘मेरे को कैसे पता वो रेगुलर था? तेरे को भी कैसे पता वो रेगुलर था?’’
‘‘हाल में कोई नया मेम्बर नहीं बनाया गया था, ऐसे पता। आइन्दा कुछ नये मेम्बर बनाने का प्रोग्राम था जिन्हें कि बिग बॉस की मौजूदगी में स्क्रीन किया जाना था लेकिन वो नौबत ही न आयी। इस लिहाज से उसे रेगुलर होना चाहिये था लेकिन लिस्ट में किसी वी-के- खन्ना का नाम नहीं था।’’
‘‘कैसे हो सकता है? उसने मेरे सामने स्टीवार्ड को मोबाइल पर का कोड दिखाया था और स्टीवार्ड ने उसे पिछले कमरे में जाने के लिये ओके किया था।’’
‘‘वो आपके साथ पीछे गया था।’’
‘‘बिल्कुल ग़लत। जाकर अपने स्टीवार्ड से फिर दरयाफ़्त करो। वो मेरे से पहले भीतर गया था और पांच मिनट बाद जब मैं गया था तो पिछले कमरे में वो नहीं था। क्या मतलब हुआ इसका? सिवाय इसके क्या मतलब मुमकिन है कि वो पहले ही नीचे जा चुका था!’’
‘‘जब वो मेम्बर ही नहीं था तो उसका थम्ब प्रिंट कम्प्यूटर स्कैन में नहीं हो सकता था। कैसे वो लिफ्ट पर सवार हो पाया?’’
‘‘पहले इस बात का जवाब ढूंढ़ साईं, कि कैसे वो कोड हासिल कर पाया! एक बात समझ लेगा तो दूसरी को समझ लेना कोई मुश्किल काम नहीं होगा।’’
‘‘कोड उसे आपने मुहैया कराया।’’
‘‘झूले लाल! अरे, तो वो स्टीवार्ड अन्धा था जिसको उसके मोबाइल की स्क्रीन पर कोड फारवर्ड करने वाले की जगह मेरा नाम न दिखाई दिया?’’
‘‘उससे कोताही हुई। लापरवाही हुई।’’
‘‘और जिम्मेदार कर्मांमारा कीमत राय! कैसीनो के ओरीजिनल मेम्बर्स में से एक! उन रेयर मेम्बर्स में से एक जिन को वहां क्रेडिट फैसिलिटी हासिल है!’’
चौहान से कुछ कहते न बना। मन-ही-मन वो झुंझला रहा था कि उसकी पेश क्यों नहीं चल रही थी।
‘‘अच्छा, मेरी मत्त मारी गयी थी’’ – कीमत राय गुस्से से बोला – ‘‘इसलिये एक अंजान साईं को कोड तो मैंने फॉरवर्ड कर दिया, उसका थम्ब इम्प्रिंट कम्प्युटर स्कैन में कैसे पहुंचाया?’’
‘‘वो आपके साथ लिफ्ट में सवार हुआ।’’
‘‘अरे, साईं, जब वो मेरे भीतर पहुंचने से पहले नीचे पहुंच ही चुका था तो . . .’’
‘‘आप ही तो कहते हैं कि ऐसा हुआ था!’’
‘‘तो और कैसा हुआ था?’’
‘‘वो लिफ्ट की स्कैन पैनल के पास ही नहीं फटका था, वो भीतर कहीं छुपा आप का इन्तजार कर रहा था। पांच मिनट बाद आप वहां पहुंचे थे, आपने थम्ब इम्प्रिंट इस्तेमाल कर के लिफ्ट बुलाई थी और वो आप के साथ उसमें सवार हुआ था।’’
भीतर से कीमत राय का दिल डूब रहा था कि कितनी आसानी से वो सिक्योरिटी वाला सारा गेम भांप गया था।
‘‘ऐसा कुछ नहीं हुआ था।’’ – वो दिलेरी से बोला – ‘‘जब मैं लिफ्ट के पास पहुंचा था तब न उस कमरे में कोई था और न कोई लिफ्ट में मेरे साथ सवार हुआ था। ऐसा हो सकता था तो स्टीवार्ड को उस साईं के साथ आना चाहिये था या उसके साथ कोई एस्कार्ट भेजना चाहिये था।’’
‘‘ऐसा ही होना चाहिये था लेकिन . . . उससे कोताही हुई।’’
‘‘और उसकी हर कोताही का जिम्मेदार कीमत राय। ठीक?’’
‘‘ये रूल कल से ही लागू हुआ था कि पिछले कमरे में एक वक्त में एक मेम्बर ही जाये इसलिये एस्कार्ट की जरूरत वाली बात किसी को नहीं सूझी थी। सूझी होती तो भीतर लिफ्ट के करीब भी एक जिम्मेदार स्टीवार्ड स्टेशन किया जाता जो कनफर्म करता कि मेम्बर अकेला आया था और अकेला लिफ्ट में सवार हुआ था।’’
‘‘तुम्हारे सिक्योरिटी लैप्स के लिये भी कीमत राय जिम्मेदार!’’
‘‘कैसीनो के सारे मेम्बर बारसूख, बाहैसियत शख़्स हैं इसलिये किसी से ऐसी ख़तरनाक हरकत की उम्मीद नहीं की जाती थी जो कि वाकया हुई।’’
‘‘कीमत राय से की जाती थी क्योंकि वही कर्मांमारा न बारसूख है, न बाहैसियत है!’’
‘‘आप समझते नहीं हैं।’’
‘‘क्या नहीं समझता मैं? क्या नहीं समझता? तू साफ-साफ मेरे पर इलजाम लगा रहा है कि बम फोड़ने वाले की कैसीनो में ऐन्ट्री पाने में मदद मैंने की। अभी बोलेगा कि जो बम फूटे, वो भी उसे मैंने पहुंचाये।’’
‘‘सेठ जी, मैं वहां का सिक्योरिटी चीफ हूं। इतनी बड़ी वारदात हो गयी, तफ्तीश करना मेरी ड्यूटी है जिसके तहत मेरे को हर मुमकिन बात पर ग़ौर करना होता है और जो मुमकिन बात मुझे दिखाई देती है तो ये है कि किसी लिस्टिड मेम्बर की मदद के बिना कोई – कोई भी – कैसीनो में नहीं पहुंच सकता था।’’
‘‘फिर भी पहुंचा।’’
‘‘क्योंकि किसी लिस्टिड मेम्बर ने मदद की।’’
‘‘और वो लिस्टिड मेम्बर कीमत राय!’’
‘‘सिर्फ आप ही उस नामोनिहाद वी-के- खन्ना की सोहबत में देखे गये थे।’’
‘‘अरे, साईं, तू सुनता क्यों नहीं कि ये महज एक इत्तफाक था कि वो आदमी मुझे मैट्रो की पार्विंफ़ग में मिला, इत्तफाक था कि उस घड़ी वहां दूसरी शटल कार अवेलेबल नहीं थी इसलिये हम दोनों को एक ही ‘इन्डिका’ ने ‘गोल्डन ‘गेट’ पहुंचाया। अब क्योंकि हम इकट्ठे पहुंचे थे इसलिये इकट्ठे जा कर रिजर्व्ड टेबल पर बैठे। इसके अलावा या इसके बाद से मेरा उस आदमी से कोई वास्ता नहीं था। उसके मोबाइल में कल का कोड दर्ज था तो मुझे नहीं मालूम क्योंकर दर्ज था। भीतर पहुंचकर वो कहीं छुप गया और फिर किसी और के साथ लिफ्ट में सवार हो कर नीचे पहुंचा तो वो कोई और मैं नहीं था। मेरे बाद भी तो – मैंने ख़ुद नोट किया था – पांच छः मेम्बर कैसीनो में पहुंचे थे? तू मेरे पीछे क्यों पड़ा है? सिर्फ इसलिये कि मैट्रो स्टेशन से ‘गोल्डन गेट’ तक वो मेरे साथ आया था? वो उनमें से किसी के साथ भी तो लिफ्ट में सवार हुआ हो सकता था?’’
‘‘रास्ते में आप दोनों में कोई बातचीत न हुई?’’
‘‘पांच मिनट के सफर में क्या बातचीत होती?’’
‘‘फिर भी?’’
‘‘नहीं, कोई बातचीत नहीं हुई थी। वो छोटा-सा सफर खामोशी से कटा था।’’
‘‘स्टीवार्ड कहता है रिजर्व्ड टेबल पर आप दोनों आपस में बतिया रहे थे?’’
‘‘ग़लत कहता है। उसने एकाध बार मेरे से बात करने की कोशिश की थी लेकिन मेरा मूड न पा कर ख़ुद ही खामोश हो गया था। फिर ज्यादा देर तो वो टेबल पर ठहरा ही नहीं था! स्टीवार्ड ने उसके मोबाइल पर दर्ज कोड पर निगाह डाली थी और उसका भीतर जाना ओके कर दिया था।’’
‘‘हूं।’’
‘‘इस पर एक बात मेरे को याद आयी। वो तो खाली हाथ था! इतने बम फटे बताये जाते हैं, वो क्या उसने जेबों में भरे हुए थे?’’
‘‘ये मुमकिन नहीं था।’’
‘‘तो?’’
‘‘इस बाबत अभी तफ्तीश जारी है। अभी कल का तो वाकया है! कल ड्यूटी पर तैनात कैसीनो के सारे स्टाफ से अभी मेरी बात नहीं हो सकी है। सेठ जी, मेरी वो तफ्तीश मुकम्मल हो जाये’’ – वो उठ खड़ा हुआ – ‘‘उसके बाद में फिर आऊंगा।’’
आखिरी फिरा उसने यूं बोला जैसे धमकी जारी कर रहा हो।
‘‘आना।’’ – भीतर से आन्दोलित सुखनानी प्रत्यक्षतः शान्त स्वर में बोला – ‘‘टाइम ही जाया करेगा। अपना भी और मेरा भी।’’
चौहान रुख़सत हो गया।
‘‘झूले लाल!’’ – पीछे अनायास सुखनानी के मुंह से निकला।
21 दिसम्बर: शनिवार
दो दिन कुछ न हुआ।
तीसरे रोज जस्से ने चिन्तामणि को ख़बर की कि जो काम उसे सौंपा गया था, उस सिलसिले में आखिर वो कुछ करने में कामयाब हुआ था, वो भांजों में से किसी को तो नहीं फोड़ सका था लेकिन एक ऐसे शख़्स को उसने तलाश किया था जो बड़े मियां का – भांजों के मामू का – करीबी था और अगर भांजों की सोहल से वाकफियत हो सकती थी तो उसकी भी हो सकती थी। उसने चिन्तामणि से दरख़्वास्त की कि उस शख़्स की बिग बॉस से मीटिंग का इन्तजाम इस बात के मद्देनजर किया जाये कि वो मॉडल टाउन चिन्तामणि की कोठी में आने को तैयार नहीं था। बोलता था कि अगर बड़े मियां ने उसे उस कोठी में दाखिल होते देख लिया तो गजब हो जायेगा।
नतीजन मीटिंग हौज ख़ास में उजाड़ पड़ी गार्मेंट फैक्ट्री के आफिस में निर्धारित की गयी।
शाम चार बजे जब जस्सा वहां पहुंचा तो उसने दूसरी मंजिल पर स्थित आफिस में बिग बॉस फेरा को और त्रिपाठी पिता पुत्र को मौजूद पाया।
‘‘मैने कनफर्म किया है’’ – जस्सा तुरन्त विषय पर आता बोला – ‘‘कि उस शख़्स का, जो अपने आपको बड़े मियां का करीबी बताता है, बड़े मियां से और उसके कुनबे से काफी मेलजोल है। कौल से वाकिफ होने को दो टूक हामी तो उसने न भरी लेकिन अपने लालची मिजाज का इजहार उसने बराबर किया। मामूली हैसियत का आदमी था इसलिये पैसे पर लार टपकाना उसके लिये स्वाभाविक था। मैंने भी दो टूक उसे कुछ न बोला, काम का उसे हिन्ट ही दिया और कहा कि बहुत बड़े आदमी का काम था इसलिये बहुत बड़ा ही शीराजा काम को अंजाम देने वाले के पल्ले पड़ सकता था। उस बात का उस पर साफ असर दिखाई दिया लेकिन साथ ही जिद पकड़ ली कि वो बिचौलिये से नहीं, यानी मेरे से नहीं, उस बड़े आदमी से ही बात करेगा जिसका कि काम था।’’
‘‘फिर?’’ – फेरा बेसब्रेपन से बोला।
‘‘फिर ये कि अब आप फैसला कीजिये कि आप को उससे बात करना मंजूर है या नहीं!’’
‘‘है किधर वो?’’
‘‘नीचे मेरी कार में बैठा है।’’
‘‘बुला।’’
‘‘अभी।’’
पांच मिनट में बड़े मियां मुबारक अली का कथित करीबी बिग बॉस के सामने हाजिर था।
फेरा ने ख़ुर्दबीनी निगाह से सिर से पांव तक उसका मुआयना किया।
करीबी – जो कि जींस-जैकेट-टीशर्ट पहने था, सिर पर गोल्फ कैप लगाये था – निडर भाव से उसके सामने खड़ा रहा।
‘‘हूं।’’ – आखिर फेरा बोला – ‘‘बैठ।’’
वो एक विजिटर्स चेयर पर स्थापित हुआ।
‘‘नाम बोले तो?’’
‘‘अल्तमश।’’ – जवाब मिला।
‘‘कहां रहता है?’’
‘‘जे जे कालोनी, वजीरपुर। मकान नम्बर नौ सौ चौवालीस।’’
‘‘क्या काम करता है?’’
‘‘कोई काम नहीं करता। बेरोजगार है।’’
‘‘अरे, कभी तो कुछ करता होगा!’’
‘‘भाड़े की टैक्सी चलाता था।’’
‘‘अब क्यों नहीं चलाता?’’
‘‘मालिक देता नहीं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘एक्सीडेंट किया। एक खातून को नीचे दे दिया। पुलिस केस बना। बड़ी मुश्किल से जान छूटी।’’
‘‘बड़े मियां से कैसे वाकिफ है?’’
‘‘उनकी फरजन्दी में हूं।’’
‘‘अरे, वाकिफ कैसे बना? ताल्लुक में कैसे आया?’’
‘‘अच्छा वो! जिस पुलिस केस का मैंने जिक्र किया, उससे बड़े मियां ने ही तो निजात दिलाई थी मुझे!’’
‘‘कैसे दिलाई?’’
‘‘दिलाई किसी तरह से।’’
‘‘इतने रसूख वाले हैं बड़े मियां?’’
‘‘हैं तो सही!’’
‘‘वो क्या करते हैं?’’
‘‘काली-पीली टैक्सी चलाते हैं।’’
‘‘फिर भी रसूख वाले हैं।’’
‘‘है न कमाल की बात!’’
‘‘हम्म।’’
‘‘अल्लाह वाले फर्द हैं। कभी किसी की मदद से, किसी के काम आने से, नहीं हिचकते।’’
‘‘ऐसे आला मैयार वाले हैं?’’
‘‘जी हां। तभी तो उन की फरजन्दी में हूं। फख़्र के साथ।’’
‘‘ये एक्सीडेंट, जो तू किया, कब की बात है?’’
‘‘दो साल पहले की।’’
‘‘यानी दो साल से बेरोजगार है?’’
‘‘नहीं। बीच में कुछ छोटे-मोटे काम किये पर कुछ बना नहीं उस से।’’
‘‘अब बड़े मियां से गाढ़ी छनती है!’’
‘‘गाढ़ी कैसे छानते हैं, मेरे को नहीं मालूम। पर मुझे बड़े मियां की शार्गिदी का फख़्र हासिल है।
‘‘भांजों से भी गाढ़ी छनती होगी! आई मीन मेल मिलाप होगा?’’
‘‘है न?’’
‘‘जब बेरोजगार है तो घर बार कैसे चलता है?’’
‘‘घर बार है ही नहीं। अकेला हूं इस दुनिया में। सिर पर या अल्लाह का हाथ है या बड़े मियां का?’’
‘‘तेरी गुजर कैसे होती है?’’
‘‘होती है। अल्लाह मियां ने दो जून की रोटी देने का वादा सब से किया है।’’
‘‘तेरे से वादा किस की मार्फत पूरा करता है अल्लाह मियां?’’
‘‘बड़े मियां की मार्फत।’’
‘‘इतना करीबी है?’’
‘‘हां।’’
‘‘राजदां भी?’’
‘‘हां।’’
‘‘जो बड़े मियां को मालूम, वो तेरे को मालूम?’’
‘‘साहेब, ये क्या पुलिस की माफिक इंक्वायरी करते हो? मतलब की बात करो न!’’
‘‘मतलब की बात ऐसी है कि उसपर अमल करेगा, कामयाबी से अमल करेगा, तो तेरा कायापलट हो जायेगा।’’
‘‘जरूरत है न मेरे को कायापलट की!’’
‘‘एक काम है। करेगा?’’
‘‘कायापलट वाला काम है तो क्यों नहीं करूंगा? दौड़ के करूंगा।’’
‘‘काम जोखम का हो सकता है?’’
‘‘हो। जिन्दगी में जोखम कहां नहीं है!’’
‘‘लेकिन वो काम करने के लिये तेरे को एक ख़ास जानकारी होना जरूरी है।’’
‘‘क्या ख़ास जानकारी?’’
‘‘सोहल कहां है?’’
‘‘सोहल! वो कौन है?’’
फेरा ने चिन्तामणि की तरफ देखा।
‘‘कौल का पूछिये।’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘एक ही बात है।’’
फेरा ने सहमति में सिर हिलाया और वापस अल्तमश की तरफ मुखातिब हुआ – ‘‘कौल कहां है, मालूम?’’
‘‘कौल?’’
‘‘अरविन्द कौल।’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘उस कोठी का मालिक जिसके आजकल तेरे बड़े मियां और उनके भांजे किरायेदार हैं?’’
‘‘अब ये न कहना’’ – अरमान बोला – ‘‘कि हैदराबाद में है।’’
‘‘कौल की बात क्या है?’’ – अल्तमश सावधानी से बोला।
‘‘उसकी बाबत बताया जाता है कि वो हैदराबाद शिफ्ट कर गया है लेकिन हमें मालूम पड़ा है कि दिल्ली में ही है।’’
‘‘कहीं भी है, बात क्या है उसकी?’’
‘‘वो भीड़ू’’ – फेरा ने वार्तालाप का सूत्र अपने हाथ में लिया – ‘‘जो अपने आपको कौल बताता है, असल में इश्तिहारी मुजरिम है जिसकी गिरफ्तारी पर तीन लाख का सरकारी ईनाम है।’’
अल्तमश के नेत्र फैले।
‘‘हमें पुख़्ता जानकारी मिली है कि तेरे बड़े मियां को मालूम है कि कौल दिल्ली में कहां है! और अगर तू बड़े मियां का ख़ास है तो वो जानकारी या तो तेरे को पहले से है या तू हासिल कर सकता है।’’
‘‘गिरफ्तारी पर तीन लाख का ईनाम!’’ – अल्तमश मन्त्रमुग्ध स्वर में बोला।
‘‘सरकारी ईनाम मिलते मिलते मिलते हैं, अगर तेरे को सोहल की जानकारी है तो सरकारी ईनाम से कहीं बड़ा ईनाम तेरे को हाथ के हाथ मिल सकता है।’’
‘‘कितना बड़ा?’’
‘‘दस लाख।’’
‘‘क-क्या करना होगा?’’
‘‘कौल को खल्लास करना होगा।’’
‘‘क-कत्ल!’’
‘‘हां।’’
‘‘साहब जी, ये जोखम का नहीं, बहुत बड़े जोखम का काम है। कौल की असलियत जो आप बता रहे हैं, उसके मद्देनजर तो ख़ुद मेरी जान जा सकती है।’’
‘‘तेरी फटती है तो आसान काम कर।’’
‘‘क्या?’’
‘‘हमें बता कौल कहां है, फिर जो करना होगा हम करेंगे।’’
‘‘मुझे क्या मिलेगा?’’
‘‘एक लाख रुपया।’’
‘‘बस!’’
‘‘अबे, ढक्कन, एक लाख रुपये को बस बोलता है!’’
‘‘सरकारी ईनाम कभी तो मिलेगा! तीन लाख में मैं अपना टैक्सी बना लूंगा – सैकण्डहैण्ड ही सही।’’
‘‘दस लाख में तो दो नयी टैक्सी बना लेगा। नयी, हाईएण्ड कार खरीद लेगा।’’
‘‘कत्ल की सजा फांसी होती है। झूल गया तो गर्दन ये . . . लम्बी होगी और जुबान बाहर लटकी होगी।’’
‘‘क्या है तेरे मगज में।’’
‘‘जोखम के लिहाज से फीस कम है, ये है मेरे मगज में।’’
‘‘तू क्या चाहता है?’’
‘‘बीस।’’
‘‘माथा फिरेला है?’’
‘‘सुपारी लगाता है, साहेब। कीमत सुपारी उठाने वाले को माफिक आनी चाहिये या नहीं!’’
फेरा ने अपलक उसे देखा।
‘‘ऐसे क्या देखता है, साहेब! शेर मारना है, चूहा तो नहीं मारना।’’
‘‘वो बाबू कौल शेर?’’
‘‘वो इश्तिहारी मुजरिम सोहल शेर।’’
‘‘काफी श्याना है।’’
‘‘मैं छोटा आदमी है, साहेब, मेरी औकात छोटी है इसलिये मुंह नहीं खुला वर्ना पचास मांगता।’’
‘‘पचास मांगता! देखो तो खजूर को। जानता है तेरी जानकारी तेरे से तेरे हलक में हाथ डाल कर निकलवाई जा सकती है!’’
‘‘नहीं, साहेब’’ – अल्तमश निर्दोष भाव से मुस्कुराया – ‘‘नहीं निकलवाई जा सकती।’’
‘‘क्या!’’
‘‘मुर्दे नहीं बोलते।’’
‘‘अरे, क्या बक रहा है?’’
अल्तमश ने जवाब देने की जगह अपनी जैकेट का एक बटन उखाड़ कर हाथ में लिया।
‘‘ये बटन देख रहे हो, साहेब?’’ – फिर बोला।
‘‘हां!’’ – फेरा बोला – ‘‘क्यों दिखाता है?’’
‘‘ये भीतर से खोखला है। इसके भीतर खतरनाक जहर है जो चुटकियों में जान ले लेता है। इसे ये . . . मैंने मुंह से डाला। मैं इसमें एक दान्त गड़ाऊंगा तो खोल टूट जायेगा और जहर मेरे मुंह में होगा। फिर देखना पहले हलक में जहर जाता है या जानकारी निकलवाने वाला हाथ?’’
फेरा ने अवाव्फ़ उसे देखा।
‘‘मरने से नहीं डरता?’’ – फिर बोला।
‘‘डरता था। जब से डरना छोड़ा, तब से नहीं डरता।’’
‘‘ऐसे कोई जान देता है?’’
‘‘आप देखो न मेरे से जबरदस्ती कर के! मालूम पड़ जायेगा।’’
‘‘बटन बाहर निकाल।’’
‘‘अब नहीं। इतनी बड़ी धमकी के बाद नहीं।’’
‘‘अरे, कभी तो निकालेगा!’’
‘‘धमकी देने वालों की सोहबत से सेफ निकल जाऊंगा तो निकालूंगा!’’
‘‘अबे, बेधयानी में बटन में दान्त गड़ गया तो?’’
‘‘तो मेरा जो होगा सो होगा, आप का काम नहीं होगा।’’
बटन से उसको कोई ख़तरा नहीं था, बटन बटन ही था, उसका ब्लफ बाखूबी चला था।
‘‘हम्म! कर सकता है ये काम?’’
‘‘आप को मालूम है कर सकता हूं, वर्ना आप मुझे सामने न बैठाये होते।’’
‘‘ठीक है कर।’’
‘‘बीस मंजूर?’’
‘‘अब क्या लिख के दें?’’
‘‘पांच एडवांस।’’
‘‘क्या!’’
‘‘कोई सुपारी उठाता है साहेब, तो पूरी रकम एडवांस में लेता है। मैं तो आधी भी नहीं, एक चौथाई मांग रहा हूं।’’
‘‘तू पांच लाख ले के ग़ायब हो गया तो?’’
‘‘आप पन्द्रह लाख ले के ग़ायब हो गये तो?’’
फेरा से जवाब देते न बना।
‘‘भरोसे के बिना ऐसे काम नहीं चलते, साहेब। ‘आनेस्टी अमंग थीव्स’ सुना है कि नहीं सुना।’’
‘‘साले!’’ – चिन्तामणि गुस्से से बोला – ‘‘बिग बॉस को थीफ बोलता है?’’
फेरा ने हाथ उठाके उसे रोका।
‘‘तो’’ – फिर बोला – ‘‘पढ़ा लिखा है?’’
‘‘थोड़ा बहुत।’’
‘‘तेरी बात मंजूर हो जाये तो काम कब करेगा?’’
‘‘बाई चांस आज ही आठ बजे मेरी कौल साहब के पास हाजिरी है।’’
‘‘कहां?’’
अल्तमश हंसा।
‘‘एडवांस सरकाइये मेरी तरफ, आज ही गुड न्यूज देता हूं।’’
‘‘सिर्फ न्यूज?’’
‘‘सबूत के साथ कि काम हुआ।’’
‘‘क्या सबूत?’’
‘‘देखना।’’
‘‘हूं।’’ – फेरा चिन्तामणि की तरफ घूमा – ‘‘पांच लाख दो इसको।’’
‘‘मैं!’’ – चिन्तामणि हड़बड़ाया।
‘‘और कौन! मैं साला इधर इस्ट्रेट काठमाण्डू से आया! फॉरेन ट्रैवल में लार्ज अमाउन्ट आफ करेंसीज वो डिक्लेयर करना पड़ता है, मालूम!’’
‘‘लेकिन मैं! सारा रेडी कैश तो कैसीनो के ब्लास्ट में गर्क हो गया . . .’’
‘‘त्रिपाठी’’ – फेरा सख़्ती से बोला – ‘‘अभी ये काम करने का। फेरा मुम्बई पहुंच के बीस लाख तेरे को पहुंचायेगा।’’
‘‘बीस! यानी बाकी पन्द्रह भी मैं . . . मैं . . .’’
‘‘हां, बरोबर। और ये टाइम लिमिट का काम है। भूलने का नहीं कि इसका आगे आठ बजे का मीटिंग फिक्स है।’’
‘‘म-मैं . . . मैं करता हूं कुछ।’’
‘‘सब कुछ। फाइव विदिन एन ऑवर।’’
‘‘जी हां। जी हां। अभी।’’
रात नौ बजे उसी जगह अल्तमश ने फिर हाजिरी भरी।
इस बार जनाबेहाजरीन में सिर्फ जस्सा मौजूद नहीं था
फेरा ने सस्पेंस के हवाले अल्तमश की तरफ देखा।
अल्तमश ने सहमति में सिर हिलाया।
तत्काल सबके चेहरों पर रौनक आयी।
‘‘अरे, बैठ।’’ – फेरा बोला – ‘‘बैठ न! खड़ा क्यों है?’’
‘‘शुक्रिया, साहेब।’’
‘‘सब चौकस हुआ?’’
‘‘हां।’’
‘‘ऐन फिट! कोई दंगा नहीं! कोई पिराब्लम नहीं।’’
‘‘बिल्कुल नहीं।’’
‘‘सबूत लाया है?’’
‘‘हां।’’
‘‘दिखा।’’
अल्तमश ने अपना मोबाइल निकाला, ‘फोटोज’ पंच किया और फोन फेरा के सामने रखा।
‘‘पांच हैं।’’ – अल्तमश धीरे से बोला – ‘‘अलग-अलग ऐंगल से।’’
फेरा ने पहली फोटो पर निगाह डाली।
वो फर्श पर पड़ा था, उसकी आंखें पथराई हुई थीं, टांगे अकड़ कर फिरी हुई थीं और छाती में मूठ तक खंजर धंधा हुआ था।
‘‘कम्प्यूटर पर डालता हूं।’’ – अरमान बोला।
वहीं कम्प्यूटर मौजूद था।
तीनों ने कम्प्यूटर की लार्ज स्क्रीन पर देर तक वो पांचों फोटो देखीं।
‘‘वही है?’’ – फेरा बोला।
‘‘लगता तो वही है!’’ – चिन्तामणि बोला।
अरमान ने सहमति से सिर हिलाया।
‘‘कौन? कौल या सोहल?’’
पिता पुत्र की निगाहें मिलीं।
‘‘कौल ज्यादा।’’ – अरमान बोला।
‘‘हम्म।’’ – वो अल्तमश की तरफ घूमा – ‘‘कहां की फोटोज हैं?’’
‘‘क्यों पूछते हो, साहेब?’’ – अल्तमश लापरवाही से बोला – ‘‘काम हो गया न? अभी आम खाने का या पेड़ गिनने का? जो बाप बोला, मैं किया न! अभी बाकी का पैसा इधर करो।’’
‘‘तसवीरों में आजकल फोटो-शापिंग बहुत चलती है। लाश दिखा।’’
‘‘लेकिन . . .’’
‘‘अभी कोई तेरे साथ जायेगा। उसको लाश दिखा। तभी तेरे को बाकी का रोकड़ा मिलेगा?’’
‘‘साहेब, ये तो जुल्म है! ऐसी बेऐतबारी थी तो पहले बोलना था कि मेरे को साहेब लोगों को उधर मौके पर बुलाने का था। पहले बोलना था कि मेरे को लाश ढोकर इधर लाने का था!’’
‘‘बहस न कर। लाश दिखा। जिधर है, उधर ले के चल।’’
‘‘ठीक है। चलो।’’
फेरा ने चिन्तामणि की ओर देखा।
चिन्तामणि हड़बड़ाया।
‘‘तेरे बस का नहीं।’’ – फेरा बोला – ‘‘लड़के को भेज इसके साथ।’’
‘‘क-क्या?’’
‘‘अरमान को भेज। यही नाम है न!’’
‘‘सर, ये अकेला . . .’’
‘‘अकेला किसलिये?’’ – अल्तमश बोला – ‘‘मैं हूं न साथ!’’
‘‘अरे, इसके सिर पर धमकी की तलवार . . .’’
‘‘जिसकी धमकी की तलवार थी, वो तो गया!’’
‘‘पर अभी हण्डर्ड पर्सेंट कनफर्मेशन . . .’’
‘‘ये जाके करेगा न हण्डर्ड पर्सेंट कनफर्मेशन!’’ – फेरा बोला।
‘‘पर . . .’’
‘‘त्रिपाठी! टेम खोटी न कर।’’
‘‘अच्छी बात है।’’
‘‘लड़के की ज्यादा फिक्र है तो तू भी साथ चला जा।’’
‘‘मेरे को पता होता इतनी हुज्जत होगी’’ – अल्तमश भुनभुनाया – ‘‘तो मैं उसका सिर काट कर साथ ले आता।’’
‘‘शट अप!’’
अल्तमश ने होंठ भींच लिये।
फेरा ने वापिस चिन्तामणि की ओर देखा।
‘‘मेरा दिल कमजोर है।’’ – चिन्तामणि नर्वस भाव से बोला – ‘‘मैं खून खराबा नहीं देख सकता।’’
‘‘तो जाने दे इसे।’’
चेहरे पर तीव्र अनिच्छा और असंतोष के भाव लिये चिन्तामणि खामोश हुआ।
‘‘गन हैंडल कर लेता है?’’ – फेरा ने अरमान से पूछा।
‘‘हां।’’ – अरमान बोला।
‘‘है?’’
‘‘नहीं।’’
फेरा ने बत्तीस कैलीबर की एक गन निकाल कर उसे सौंपी।
‘‘ओके नाओ?’’ – फेरा चिन्तामणि से मुख़ातिब हुआ।
चिन्तामणि ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
‘‘इधर कैसे आया था?’’ – अरमान ने अल्तमश से पूछा।
‘‘कैब पर।’’
अरमान ने पिता की तरफ देखा।
‘‘ ‘वरना’ ले जा।’’ – चिन्तामणि बोला – ‘‘तेरे लौटने तक मैं यहीं हूं।’’
‘‘चल, भई। – अरमान अल्तमश से बोला।
‘‘मेरे को टॉयलेट!’’ – अल्तमश संकोचपूर्ण स्वर में बोला।
‘‘क्या!’’
अल्तमश ने अपनी कनकी उंगली उठाई।
‘‘ओह! यहां से हिल। बताता हूं।’’
अल्तमश ने बिग बॉस और चिन्तामणि का अभिवादन किया और अरमान के साथ हो लिया।
वे सुन्दर नगर पहुंचे
अल्तमश के निर्देश पर अरमान ने कार को उजाड़, अन्धेरे में डूबी कोठी के सामने रोका।
‘‘आओ।’’ – अल्तमश कार का अपनी ओर का दरवाजा खोलता बोला।
‘‘कहां आओ?’’ – अरमान सकपकाया।
‘‘इस कोठी में। अन्दर।’’
‘‘वो . . . यहां रहता था?’’
‘‘हां। छुप के रहने के लिये ये बहुत माकूल जगह है।’’
‘‘जिसकी तेरे को ख़बर थी?’’
‘‘अरे, जब मुलाकात के लिये बुलाता था तो कैसे ख़बर न होती!’’
‘‘हूं। ये तो अबैन्डेंड प्लेस जान पड़ती है!’’
‘‘क्या जान पड़ती है?’’
‘‘छोड़ी हुई, त्यागी हुई जगह!’’
‘‘ऐसी ही है?’’
‘‘बिजली का कनैक्शन है या नहीं?’’
‘‘है।’’
‘‘तो आगे चल, जाके कोई बत्ती-वत्ती जला।’’
अल्तमश बाहरी फाटक ठेल कर भीतर दाखिल हुआ। बरामदे में जाकर उसने वहां का बीमार सा बल्ब ऑन किया, दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ और भीतर की ट्यूबलाइट जलाई।
अरमान कार से बाहर निकला, उसने गन हाथ में ले ली और सावधानी से आगे बढ़ा। बरामदे में पहुंच कर उसने अपने पीछे निगाह दौड़ाई।
कहीं कोई नहीं था।
उसने रौशन कमरे में कदम रखा जो कि ड्राईंगरूम था। अल्तमश दरवाजे से परे हट के ख़ामोश खड़ा था। उसने एक तरफ इशारा किया। अरमान दो कदम आगे बढ़ा तो उसे इशारे का मरकज दिखाई दिया।
वो सैन्टर टेबल और सोफे के बीच पीठ के बल फर्श पर ऐन वैसे पड़ा था जैसे वो अल्तमश के मोबाइल की तसवीरों में चित्रित था।
टांगे अकड़ कर फिरी हुईं। दायीं बांह पीठ के नीचे कहीं दबी हुई। छाती में मूठ तक धंसा खंजर। ऊपरी जिस्म खून से सराबोर।
लेकिन आंखें बन्द थीं।
‘‘आंखें बन्द हैं!’’ – वो सन्दिग्ध भाव से बोला – ‘‘तसवीरों में तो खुली थीं।’’
‘‘मैंने बन्द की थीं।’’ – अल्तमश सहज भाव से बोला – ‘‘पथराई हुई आंखें बड़ी खौफनाक लग रही थीं। देख के डर लगता था।’’
‘‘क्या कहने?’’
‘‘अब बोलो, हो गई तसल्ली?’’
‘‘पड़ोसी कौल तो ये लगता है बराबर लेकिन . . .’’
‘‘तौबा! अभी भी लेकिन?’’
‘‘बिग बॉस बोलता था कि कभी किसी मवाली ने सोहल की छाती में बर्फ काटने वाला सूआ भौंका था जिसकी वजह से वो मरते-मरते बचा था। अगर ये सोहल है तो इसकी छाती में सूए से बने जख्म का ख़ास निशान जरूर होगा। मैं वो निशान . . .’’
‘‘अरे, खंजर भी तो छाती में ही घुंपा है! अगर खंजर छाती में वहीं घुंपा होगा तो क्या वो निशान दिखाई देगा?’’
‘‘कोई जरूरी नहीं कि वहीं घुंपा है! आजू बाजू भी घुंपा हो सकता है। जब मैं यहां हूं तो देख लेने में क्या हर्ज है!’’
‘‘लेकिन . . .’’
‘‘चुप कर। देखना है मैंने।’’
‘‘मैं दिखाता हूं न!’’ – मुर्दा बोला।
अरमान चिहुंका।
तभी गन उसके हाथ से निकल गयी। मुर्दे के हाथ का झपट्टा इतना अप्रत्याक्षित था कि उसे पता ही न लगा कि कब गन उसके हाथ में थी, कब नहीं थी!
अल्तमश ने झपट कर परे जा गिरी गन उठा ली।
विमल उठ कर खड़ा हुआ। उसकी छाती पर बिना फल के खंजर की मूठ वैल्क्रो से चस्पां थी, जिसे उसने उखाड़ कर परे फेंका।
‘‘हल्लो, मिस्टर रेपिस्ट!’’ – विमल विषभरे स्वर में बोला।
‘‘तुम . . . तुम . . .!’’ – अरमान हकलाया – ‘‘इसने धोखा दिया!’’
‘‘वफादार, जांनिसार दोस्त वफा करते हैं, जान निसार करते हैं, धोखा नहीं करते।’’
‘‘इसने हमारे से धोखा किया!’’
‘‘च, च, च। बहुत नालायकी है इसकी।’’
‘‘मैं यहां न आया होता तो?’’
‘‘मुझे पता था कि तसवीरों से तुम्हारी तसल्ली नहीं होने वाली थी। तसदीक के लिये किसी ने तो आना ही था, तेरे आने के चान्सिज बराबर थे क्योंकि तू शेर है, दिलेर है। दूसरे, मैं तेरा पड़ोसी था इसलिये तू शिनाख़्त बेहतर कर सकता था।’’
‘‘मेरे साथ कोई हो सकता था!’’
‘‘तो उसका अंजाम तेरे से भी बुरा होता।’’
‘‘मेरा अंजाम?’’
‘‘नहीं मालूम! इतनी जल्दी भूल गया! मैंने बोला था तेरे को कि तेरे साथ जो बीतेगी, आखिर में बीतेगी। भूल गया?’’
अरमान के मुंह से बोल न फूटा।
तभी कमरे की पिछली ओर की चौखट पर अशरफ प्रकट हुआ।
‘‘सब काबू में है?’’ – वो बोला।
‘‘सब क्या!’’ – विमल बोला – ‘‘एक ही तो नग है!’’
‘‘देर किस बात की है?’’
‘‘शरीफ लड़का है। दो चार मामूली सवाल कर लें फिर इसके नग की ख़बर लेते हैं।’’
अरमान का चेहरा पीला पड़ गया। उसने अपने एकाएक सूख आये होंठों पर जुबान फेरी।
विमल उसके सामने खड़ा हुआ, उसने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा।
अरमान अपने आप में सिकुड़ कर रह गया।
‘‘नीलम को किसने मारा?’’ – विमल कहरबरपा लहजे में बोला।
‘‘नीलम!’’ – अरमान होंठों में बुदबुदाया।
‘‘लगता है नाम से वाकिफ नहीं। सोमवार, ग्यारह नवम्बर को तुम चार दोस्तों ने जिसका अगवा किया था, जिसका सामूहिक बलात्कार किया था और फिर मरने के लिये दौड़ती कार से बाहर फेंक दिया था लेकिन जो मरी नहीं थी। शनिवार, सात दिसम्बर को मेरे घर में घुस कर तुम लोगों ने जिसका कत्ल किया था। जो मेरी धर्म पत्नी थी। जो मेरे बच्चे की मां थी। अब समझ में आ गया कौन नीलम!’’
‘‘मैंने कुछ नहीं किया था। मेरा या मेरे पापा का उस वारदात में कोई हाथ नहीं था।’’
‘‘हाथ नहीं था, कमीने, हामी तो थी! जिन्होंने वो कांड किया, अपनी मर्जी से तो न किया! इतना ही फर्क था न, कि प्लानिंग तुम लोगों की थी, एग्जीक्यूशनर कोई और थे!’’
‘‘आप यकीन कीजिये हमारा उस वारदात से कोई लेना देना नहीं था।’’
‘‘तो किसका था?’’
‘‘रघुनाथ गोयल का जो कि . . . जो कि अमित का पिता है। वो ही अपने इकलौते बेटे के बुरे हाथ से तड़प रहा था और बदले की आग में जल रहा था। आपकी . . . आपकी मैडम के साथ जो हुआ था, रघुनाथ गोयल के इशारे पर हुआ था।’’
‘‘उसमें चिन्तामणि त्रिपाठी की कोई हामी नहीं थी?’’
‘‘मु-मुझे इस बाबत कोई ख़बर नहीं।’’
‘‘तेरी कोई हामी नहीं थी? झूठ बोला तो कुछ और काटने से पहले जुबान काट दूंगा।’’
‘‘म-मेरी हामी नहीं थी’’ – वो हकलाता सा बोला – ‘‘लेकिन ऐसा कुछ होता था तो वो मेरे भी हित में था।’’
‘‘कैसा कुछ होता था? मारना था तो मुझे मारते, एक बेगुनाह औरत की जान क्यों ली?’’
‘‘अमित का पिता आप को तड़पता देखना चाहता था। आप पर वार करता तो उसका ये अरमान कैसे पूरा होता?’’
‘‘मुझे और तड़पता देखने के लिये कहीं से भी ढूंढ़ कर अभी मेरे बच्चे को भी मारना था! फिर मेरी बारी आनी थी!’’
‘‘अब – - म-मैं . . . क्-क्या बोलूं? शिवनाथ गोयल के मन में क्या था, कैसे हमें मालूम होता?’’
‘‘जो हुआ उसकी तुम्हें पहले से कोई ख़बर नहीं थी? जो होना था, हो चुका, तभी ख़बर लगी? वो भी एक पड़ोसी के नाते? ठीक?’’
विमल का पूछने का अन्दाज ऐसा खूंखार था कि चाहते हुए भी अरमान ने मुंह से ‘न’ न निकला, वो इंकार में गर्दन भी न हिला पाया।
‘‘ओके। जो हुआ रघुनाथ गोयल ने हुक्म पर हुआ। हुक्म को अमली जामा पहनाने वाला कौन थे?’’
‘‘वो . . . वो . . . जस्सा . . . जसबीर सिंह . . . गोयल साहब का ख़ास . . .’’
‘‘एक नाम न भज। वो चार थे।’’
‘‘ब-बाकी तीनों . . . जस्से के ही आदमी थे।’’
‘‘नाम बोला।’’
‘‘कुलदीप सिंह, गगनदीप सिंह . . .’’
‘‘सिख हैं?’’
‘‘मोने। क्लीनशेव्ड। जस्से की तरह।’’
‘‘चौथा?’’
‘‘हरीश नेगी।’’
‘‘वो भी इस . . . इस जस्से का आदमी।’’
‘‘वो . . . वो अब इस दुनिया में नहीं है।’’
‘‘क्यों? क्या हुआ?’’
‘‘अभी पिछले हफ्ते खेल गांव के करीब के जंगल में किसी ने उसे दिन दहाड़े शूट कर दिया।’’
‘‘वो हरीश नेगी! उसे किसी ने नहीं, कुलदीप सिंह ने शूट किया था।’’
‘‘आ-आ-आपको कैसे मालूम?’’
‘‘वैसे ही जैसे मालूम कि तू सब कुछ शिवनाथ गोयल पर थोप कर ख़ुद को और अपने बाप को तमाम जिम्मेदारियों से बरी करने की कोशिश कर रहा है।’’
‘‘जनाब, मैं सच कह रहा हूं।’’
‘‘मैं किसी शिवनाथ गोयल को नहीं जानता। इस सिलसिले में मैं सिर्फ तेरे बाप को जानता हूं क्योंकि उसे अपने एमएलए भाई के नाम और रुतबे की नामुराद शह है, क्योंकि वो किसी बड़े माफिया डान की शार्गिदी में ‘गोल्डन गेट’ की ओट में लास वेगास स्टाइल जुआघर चलाता था। था बोला मैं। वही सारे फसाद की जड़ है और ये बात मुझे तेरे से पूछने की जरूरत नहीं।’’
‘‘जनाब, आप मेरा यकीन कीजिये . . .’’
‘‘किया। जो कुछ मेरे, मेरी बीवी के खिलाफ हाल में हुआ, उसमें तेरा या तेरे पिता का कोई हाथ नहीं। ओके? अब राजी?’’
बड़ी मुश्किल से वो एक बार ऊपर नीचे सिर हिला पाया।
‘‘अब इस बात से मुकर के दिखा कि पिछले महीने ग्यारह तारीख सोमवार को जिस औरत का सरेराह अगवा हुआ था, चलती कार में सामूहिक बलात्कार हुआ था, उस में तू शामिल नहीं था।’’
‘‘हमें नहीं मालूम था कि . . . कि वो . . . आपकी बीवी थी!’’
‘‘किसी की तो बीवी थी? किसी की तो बहन बेटी थी!’’
‘‘हम से . . . म-मेरे से ग़लती हुई, म-माफ कर दीजिये।’’
‘‘ग़लती की माफी नहीं होती, खामियाजा होता है, सजा होती है . . .’’
‘‘सर, प्लीज . . . प्लीज, माफ कर दीजिये।’’
‘‘... जो तुझे मिलेगी। मिल के रहेगी। तेरा सरकारी सांड वाला दर्जा ख़त्म करना ही होगा।’’
‘‘जनाब, मैं रहम की भीख मांगता हूं . . .’’
‘‘नहीं मिलेगी। तू जिन्दा रहेगा। जैसे तुम लोग मुझे तड़पता देखना चाहते थे, वैसे मैं तेरे बाप को तड़पता देखना चाहता हूं इसलिये तू जिन्दा रहेगा।’’
‘‘म-मैं . . . मैं समझा नहीं।’’
‘‘अपने थ्री पीस सैट के बिना जिन्दा रहेगा। लेकिन वो जिन्दगी मौत से बद्तर होगी। तू एक ऐसे नर्क में सांस लेगा जिससे कभी निजात नहीं पा सकेगा। याद करेगा उन दोशीजाओं को जिनका अपनी हवस के हवाले मानमर्दन किया। मौत की कामना करेगा तो वो भी नहीं मिलेगी। तेरा बाप तेरे हाल पर खून के आंसू रोयेगा। कमीने! मोरी के कीड़े! हवस के ग़ुलाम! यही तेरी सजा है, यही मेरा इन्तकाम है।’’
‘‘रहम! रहम!’’
‘‘खड़ा-खड़ा मुंह क्या देखता है!’’ – विमल गुस्से से अल्तमश से मुख़ातिब हुआ – ‘‘किसी ख़ास सिग्नल का इन्तजार कर रहा है?’’
अल्तमश तत्काल सचेत हुआ। उसने अशरफ को इशारा किया। अशरफ ने जब तक अरमान को मजबूती से अपनी गिरफ्त में जकड़ न लिया, अल्तमश अरमान पर गन ताने रहा। फिर उसने गन विमल को थमाई और अपने साजोसामान की सुध ली।
‘‘आशिक दिल, जिगर, कलेजा’’ – अल्तमश अपनी महीन, जनाना आवाज में बोला – ‘‘पता नहीं क्या-क्या माशूक के हवाले करते हैं लेकिन तेरा दर्जा उस सबसे ऊपर होगा क्यों कि तूने तो अपनी मर्दानगी ही माशूक पर निसार कर दी। माशूक कौन? मैं।’’
अरमान के नेत्र फट पड़े।
‘‘तू . . . तू . . . तू . . .’’
‘‘क्या मैं मैं, कुर्बानी के बकरे?’’
‘‘तू . . . तू . . . वो है?’’
‘‘मैं कई कुछ हूं।’’ – अल्तमश की जुबान मर्दाना हुई – ‘‘चुप कर अब। और मुझे अपना काम करने दे।’’
अशरफ और अल्तमश की अभिलाषा थी कि अरमान समेत उसकी कार को मॉडल टाइन उसके घर के आगे ले जा कर खड़ा किया जाता लेकिन विमल ने उस बात की इजाजत न दी। सुन्दर नगर से मॉडल टाउन का बहुत लम्बा फासला था और रात की उस घड़ी कहीं किसी पुलिस बैरीकेड पर चैकिंग की नौबत आ सकती थी। लिहाजा कार को करीब ही भैरों रोड पर छोड़ा गया।
अल्तमश ने हौज ख़ास से रवानगी से पहले टॉयलेट में से विमल को फोन कर के आइन्दा हालात से आगाह कर दिया था, इसीलिये आगे अरमान को ‘लाश’ तैयार मिली थी। उसके वहां अकेले पहुंचने की कोई गारन्टी नहीं थी – पहुंचने की ही गारन्टी नहीं थी – लेकिन तकदीर ने विमल का साथ दिया था कि वो पहुंचा था और अकेला पहुंचा था।
विमल के आदेश पर उसकी गन में से गोलियां निकाल कर गटर में फेंक दी गयीं थीं और गन अरमान की एक जेब के हवाले कर दी गयी थी। ये उसे गन दे कर भेजने वालों का मुंह चिढ़ाने वाली बात थी कि हथियार से लैस उन का जवान अपने अंजाम से बचने के लिये कुछ नहीं कर सका था।
उस रात विमल को नीलम की बहुत याद आयी।
कई बार उसके मुंह से निकला – ‘‘नीलम, मैंने तेरी हत्तक का बदला ले लिया।’’
‘‘लेकिन ख़ून का बदला अभी बाकी है, सरदार जी।’’ – नीलम उसे कहती लगी।
चिन्तामणि बेचैन था।
वो बार-बार पहलू बदल रहा था, बार-बार घड़ी देख रहा था। कोई अज्ञात आशंका उसे कचोट रही थी, पशेमान कर रही थी।
‘‘किधर रह गया तेरा छोकरा!’’ – फेरा भुनभुनाया – ‘‘इतनी देर का काम तो नहीं था! अब तो आधी रात होने को आ रही है!’’
‘‘मैं ख़ुद हैरान हूं।’’
‘‘फोन बजा उसका।’’
‘‘कई बार बजाया। बजता है पर जवाब नहीं मिलता।’’
‘‘ओह!’’
‘‘सर, हमने बहुत जल्दबाजी से काम लिया। इस वजह से हम से बहुत चूक हुईं।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘सोहल की ख़बर ने हमें इतना एक्साइट किया कि हमने अल्तमश को ये तक न पूछा कि वो लड़के को कहां ले जा रहा था। अब हम उन दोनों का पता करें तो कहां से करें!’’
‘‘हूं।’’
‘‘अल्तमश की बाबत जस्से ने जोश खाया तो हम भी उसी जोश के हवाले हो गये। अल्तमश की सोहल को ख़त्म कर देने की हामी से खुश ही न हुए, गुमराह भी हुए। इसी वजह से हमने कुछ भी तो न पूछा उससे! ये तक न पूछा कि उससे कान्टैक्ट करना होता तो कहां किया जा सकता था, कैसे किया जा सकता था!’’
‘‘वो अपना पता बोल के तो गया! जेजे कालोनी, वजीरपुर, हाउस नम्बर नाइन फोर फोर!
‘‘फर्जी निकलेगा। मेरा दिल गवाही दे रहा है . . .’’
‘‘हिला हुआ दिल।’’
‘‘... फर्जी निकलेगा।’’
फेरा खामोश हो गया।
‘‘जल्दबाजी में कुछ चूक हुईं हम से बराबर।’’ – फिर बोला – ‘‘लेकिन ये न भूलो कि हम उसके लिये पन्द्रह पेटी की पेमेंट लेकर यहां बैठे हैं, वो जरूर आयेगा।’’
‘‘कब आयेगा?’’
‘‘देखते हैं। तुम्हारे साथ मैं भी तो फांसी लगा हुआ हूं!’’
‘‘अगर वो न आया? अगर मेरे बेटे के साथ कोई ऊंच-नीच हो हुई?’’
‘‘तो बड़े मियां से उसका अता पता निकलवायेंगे जिसका कि वो ख़ुद को शागिर्द बताता है।’’
‘‘हम पूछेंगे और वो बता देगा?’’
‘‘क्या कहना चाहता है, त्रिपाठी?’’
‘‘अपनी मर्जी से अगर वो कुछ नहीं बतायेगा – मुझे नहीं लगता कि बतायेगा – तो उसके साथ जोर जबरदस्ती आजमाना मुमकिन न होगा।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि उसके साथ चौदह कड़ियल नौजवान भांजे हैं और वो ख़ुद अखाड़े के किसी पहलवान से कम नहीं। सर, ऐसे पन्द्रह लोगों को काबू करने के लिये कितनी ताकत दरकार होगी, ये आप नहीं जानते या मैं नहीं जानता! ऐसे पन्द्रह लोगों के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने के लिये हमारे पास पचास आदमी होने चाहियें। कहां है!’’
‘‘त्रिपाठी, तुम प्रेजेंट से आगे, बहुत आगे पहुंच गया है। अभी थोड़ा डिले के अलावा और कुछ नहीं हुआ है। इस वास्ते वेट करने का। आ जायेगा वो।’’
आने वाला तो न आया। लेकिन रात दो बजे बाजरिया पुलिस उसकी बाबत मनहूस, हाहाकारी ख़बर आ गयी।
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