जब वह सोकर उठा, साढ़े छह बज चुके थे।
उसने एक बार फिर तमाम हालात पर गौर किया और इस नतीजे पर पहुंचा वह अकेला सारे बखेड़े से नहीं निपट पाएगा।
किसी की मदद लेनी चाहिए। लेकिन किसकी?
हालात को मद्दे नजर रखते हुए सबसे ज्यादा मुनासिब आदमी 'थंडर' का ट्रेनी रिपोर्टर विमल था। लेकिन इस मामले में अजय की जाती दिलचस्पी थी और वह और नीलम छुट्टियां लेकर आए थे, इसलिए विमल को अन–ऑफिशियली बुलाना उचित नहीं था, क्योंकि यहां का मामला लम्बा खिंचने की ज्यादा उम्मीद थी इसलिए भी विमल को बुलाना ठीक नहीं था।
अन्त में, उसने दिलीप केसवानी को बुलाने का निश्चय किया और होटल से टेलीफोन आपरेटर के माध्यम से अर्जेंट ट्रंक काल बुक करा दी।
संयोगवश काल तो जल्दी मेच्योर हो गई लेकिन दिलीप से सम्बन्ध स्थापित नहीं हो सका। अलबत्ता उसके नौकर ने यकीन दिलाया दिलीप के आते ही वह अजय का मैसेज उसे दे देगा।
रात में देर या फिर अगले रोज से पहले दिलीप के पहुंचने की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी और अजय इतना इंतजार करने की स्थिति में नहीं था। उसने निराश मन से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।
अपना अगला कदम निश्चित करने में उसने देर नहीं लगायी।
हाथ–मुँह धोने के बाद कपड़े बदलकर बाहर निकला। सुइट लॉक करके लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा।
प्रत्यक्षतः वह लापरवाह नजर आ रहा था लेकिन वास्तव में पूर्णतया सावधान था। चहल–पहल भरी लॉबी में उसकी खोजपूर्ण निगाहें ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश में थीं जिस पर वह खुद को वाच करने का मात्र संदेह भी कर सके।
करीब एक घन्टे तक विभिन्न सड़कों पर घूमता रहा लेकिन वैसा कोई व्यक्ति उसे नजर नहीं आया। वह निश्चित हो गया अविनाश के आदमियों या पुलिस द्वारा पीछा नहीं किया जा रहा था।
इसका मतलब रहमान स्ट्रीट जाने के लिए लाइन एकदम क्लीयर थी।
उसने इत्मीनान से खरीदारी की और तमाम चीजें एक नए खरीदे सूटकेस में भर ली।
उसकी तैयारी का पहला चरण पूरा हो चुका था।
वह कोई आधा मील दूर स्थित एक लम्बे–चौड़े पार्क की ओर बढ़ गया।
मुश्किल से बीस मिनट बाद पार्क के एक सुनसान कोने में खड़ा अपना भेष बदल रहा था। अपने कपड़े उतारकर वह चैक का कोट और काली पैंट पहन चुका था। सिर पर काली पगड़ी, जो उसने अपने सिर के नाप के हिसाब से सिख सेल्समैन द्वारा ही बंधवा ली थी, पहनी और चेहरे पर एकदम असली नजर आने वाली नकली दाढ़ी–मूंछे चिपका लीं। गले में स्कार्फ लपेटने के बाद दूर स्थित बल्ब की रोशनी में पॉकेट मिरर की सहायता से अपना मेकअप चैक किया और जहां जो खामी दिखाई दी दूर कर ली।
अपना सूटकेस उठाया और जिस तरह से पार्क में दाखिल हुआ था उसी तरह किसी का भी ध्यान अपनी ओर आकर्षित किए बगैर बाहर आ गया।
मेन रोड पर आकर उसने ऑटो रिक्शा पकड़ा और ड्राइवर को किसी औसत दर्जे के अच्छे होटल में चलने को कहा।
करीब आधा घन्टा बाद वह हरनाम सिंह कालरा के फर्जी नाम और विराट नगर के फर्जी पते से होटल सूर्या के रूम नम्बर 39 में जा ठहरा।
यह इन्तजाम उसने इस विचार से किया था कि अगर कोई भारी गड़बड़–जोकि हो सकती थी, क्योंकि अविनाश के साथ–साथ पुलिस की निगाहों में भी वह आ चुका था–हो जाए तो वह उस होटल में वक्ती तौर पर पनाह ले सकता है।
उसने अपनी रिस्टवाच पर निगाह डाली।
नौ बजकर पच्चीस मिनट हुए थे।
उसने यह सोचकर कि शायद अविनाश या लीना या पुलिस उसे पूछने आई हो, होटल अलंकार फोन किया।
जवाब में उसे बताया गया अरुण कुमार नामक एक युवक ने दो बार फोन किया था। एक दफा उससे मिलने भी आया था।
अजय को पहले तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, फिर मन–ही–मन बेहद खुश होते हुए रिसेप्शनिस्ट को धन्यवाद देकर सम्बन्ध विच्छेद कर दिया। आखिरकार भगवान ने मददगार भेजकर उसकी मुराद पूरी कर ही दी थी।
उसने बाथरूम में दर्पण के सामने खड़ा होकर अपना मेकअप चैक किया, कमरे में आकर कुछ जरूरी चीजों से लैस हुआ, फिर बाहर निकला और दरवाजा लॉक करके लिफ्ट द्वारा नीचे पहुंचा।
लॉबी में मौजूद कई पब्लिक टेलीफोन बूथ्स में से एक में घुसकर उसने अरुण का नम्बर डायल किया।
–"हैलो, अरुण।" सम्बन्ध स्थापित होने पर वह बोला–"मैं अजय बोल रहा हूं।"
–"आप कहां गायब हो गए थे, साहब!' दूसरी तरफ से शिकायती लहजे में पूछा गया।
–"मेरी छोड़ो।" अजय हंसता हुआ बोला–"अपनी सुनाओ, अचानक कैसे आ टपके?"
–"इसलिए कि रिजल्ट आउट हो गया।"
–"क्या मतलब?"
–"बीवी ने पिछली रात दिल्ली पहुंचते ही एक बेटी का बाप बना दिया। जच्चा–बच्चा दोनों बिल्कुल ठीक हैं, इसलिए मैंने सुबह सबेरे ही वापसी के लिए गाड़ी पकड़ ली।"
–"मुबारक हो। बहुत–बहुत मुबारक हो।"
–"शुक्रिया। अब आप सुनाइए विशालगढ़ में इतनी जबरदस्त किलेबंदी की वजह क्या है?"
जवाब में अजय ने यह छिपाते हुए कि वह खुद कहां है और कनकपुर कलैक्शन कहां था, शेष सब संक्षेप में बता दिया।
–"और उसके बाद से नीलम का कोई समाचार नहीं मिला?" लम्बी खामोशी के बाद लाइन पर अरुण का स्वर उभरा।
–"नहीं।"
–"मेरे लायक कोई सेवा हो तो बताइए।"
–"सेवा नहीं, मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है।"
–"फरमाइए।"
–"सुमेरचन्द दीवान को जानते हो?"
–"इस शहर का लगभग प्रत्येक व्यक्ति उसे जानता है।"
अजय चौंका।
–"ऐसी क्या खास बात है उसमें?"
–"आपने पढ़ा होगा, नवाबी जमाने में लखनऊ में एक कहावत मशहूर थी–जिसको न दे मौला, उसको दे आसफउद्दौला।"
–"पढ़ा था। लेकिन उस कहावत का जिक्र तुम अब क्यों कर रहे हो?"
–"इसलिए कि यहां विशालगढ़ में कहा जाता है–जिसको न दे भगवान, उसको दे सुमेरचन्द दीवान। उसे यहां गरीबों के मसीहा का दर्जा हासिल है।"
अजय असमंजस में पड़ गया। उसे लगा अरुण ने किसी और के बारे में बताया था।
–"मैं उस सुमेरचन्द की बात कर रहा हूं जो 'दीवान पैलेस', में रहता है।" वह बोला।
–"मैंने भी उसी के बारे में बताया है। और हुक्म कीजिए।"
–"फिलहाल यह पता लगाओ अविनाश दीवान स्थायी रूप से कहां रहता है और अब किस हाल में है? दूसरे, क्या पुलिस को रहमान स्ट्रीट वाली कोठी की जानकारी है और तीसरे, लीना वर्गीस के बारे में जितना पता लग सकता है लगाओ।"
–"इनमें सबसे ज्यादा जरूरी क्या है?"
–"क्या पुलिस को रहमान स्ट्रीट वाली कोठी की जानकारी है?"
–"ओ० के०। मैं करीब एक घन्टे तक फोन करूंगा।"
–"नहीं।" अजय जल्दी से बोला–"मैं खुद ही तुम्हें फोन कर लूंगा।" फिर तनिक रुककर कहा–"आज रात मुझे अपने होटल से दूर रहना पड़ सकता है।"
–"क्या मतलब?"
–"मुझे गायब होना पड़ सकता है। यानी भेष बदलकर कहीं और डेरा डालूंगा। लेकिन तुमसे बराबर संम्पर्क बनाए रखूगा।"
–"ठीक है।"
अजय ने सम्बन्ध–विच्छेद कर दिया। वह बूथ से निकलकर बार में पहुंचा। दो लार्ज पैग व्हिस्की चुसकने के बाद वह डाइनिंग हाल में पहुंचा।
जब तक उसने डिनर खत्म किया, पौने ग्यारह बज चुके थे।
उसने पब्लिक काल बूथ से पुनः अरुण को फोन किया।
अरुण ने बताया अविनाश का स्थायी निवास–स्थान दीवान पैलेस है, रहमान स्ट्रीट की कोठी के बारे में पुलिस को जानकारी नहीं है और लीना के बारे में सिर्फ इतना ही पता चल पाया कि उसकी अविनाश के साथ खूब पटती है।
अजय ने उसे धन्यवाद देकर फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
* * * * * *
रहमान स्ट्रीट पर स्थित, उन्नीस नम्बर की दो मंजिला कोठी अन्धेरे में लिपटी खड़ी थी।
कोठी की छत पर पड़ा सिख भेषधारी अजय बुरी तरह हांफता रहने के बावजूद पूरी तरह सतर्क था। उसके कान जरा–सी भी आहट सुनने के लिए तत्पर थे।
वह सोच रहा था वहां तक पहुंचने के लिए उसे कितनी एहतियात बरतनी पड़ी है।
अरुण से फोनवार्ता के बाद, होटल सूर्या से बाहर आकर कुछ देर यूं ही सड़क पर चहलकदमी करता रहा। फिर एक खाली जाती टैक्सी रोककर उसमें सवार हो गया।
हालांकि अपना पीछा किए जाने की उम्मीद तो उसे नहीं थी फिर भी उस बारे में रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा।
लगभग पौना घन्टा विभिन्न सड़कों पर जानबूझकर भटकने के बाद वह रहमान स्ट्रीट से कोई आधा मील पहले ही टैक्सी से उतरा और भाड़ा चुकाकर आगे बढ़ गया।
आस–पास के इलाके का निरीक्षण करता हुआ, अन्त में रहमान स्ट्रीट के सिरे पर पहुंचा। अपनी गतिविधियों को गुप्त रखने का भरसक प्रयत्न करते हुए उन्नीस नम्बर कोठी से दूर रहकर चक्कर लगाया तो जल्दी ही उसकी आशंका सही साबित हो गई।
कोठी की निगरानी की जा रही थी। आगे–पीछे दोनों ओर से निगरानी करने वाले पुलिस के आदमी थे अथवा अविनाश के. यह जानने का कोई साधन उसके पास नहीं था। लेकिन हालात के मुताबिक ज्यादा उम्मीद इस बात की थी कि वे अविनाश के ही आदमी होने चाहिए।
इस पशोपेश में पड़ने की बजाय उसने तुरन्त अपना अगला कदम निश्चित कर लिया। बगल वाली कोठी में लॉक्ड गेट पर 'टूलैट' की तख्ती लटकी हुई। वह गेट के ऊपर से गुजर कर भीतर दाखिल हो गया सावधानीपूर्वक उस तरफ बढ़ा जिधर दोनों कोठियों को अलग करने वाली छह–सात फुट ऊंची दीवार थी।
वह आसानी से दीवार पार करके उन्नीस नम्बर कोठी के गार्डन में पहुंच गया। फिर स्वयं को पेड़ों की आड़ में रखता हुआ निःशब्द चलकर कोठी के पहलू में जा पहुंचा। इस बीच वह नोट कर चुका था निगरानी करने वाले दोनों आदमी बेमन और लापरवाही से अपने काम को अन्जाम दे रहे थे। उनमें से एक प्रवेश द्वार से पीठ लगाए बैठा दिखाई दिया और दूसरा पिछवाड़े यूं टहलता नजर आया मानो हवाखोरी कर रहा था।
अजय सावधानीवश, कुछ देर कोठी की गार्डन वाली साइड में छत से बरसाती पानी की निकासी के लिए लगे पाइप के पास दीवार से चिपका खड़ा रहा। फिर जब उसे पूरा यकीन हो गया उसकी मौजूदगी से दोनों निगरानी करने वाले बेखबर थे तो उसने अपने जूते उतारकर कोट की जेबों में ठूंस लिए। दोनों हाथों में पकड़कर पाइप की मजबूती चैक की, फिर ऊपर चढ़ना आरम्भ कर दिया।
वह पेशेवर चोर की भांति ऊपर चढ़ता चला गया।
छत पर पहुंचकर तनिक निश्चिन्तता अनुभव की। लेकिन तब तक उसकी सांसें बुरी तरह उखड़ चुकी थीं। मुंडेर ऊंची न होने के कारण खड़े होने का रिस्क वह नहीं ले सकता था। इसलिए पीठ के बल लेटकर अपनी सांसों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा।
अन्त में, संयत होने के बाद कोट की जेबों से निकालकर जूते पहने ही थे कि उसे चौंक जाना पड़ा।
नीचे प्रवेश द्वार के पास से किसी ने सतर्क स्वर में हांक लगाई। जवाब में पिछवाड़े के पीछे की ओर से भी पुरुष स्वर सुनाई दिया।
अजय हिचकिचाया, फिर सावधानीपूर्वक मुंडेर से तनिक ऊपर सिर उठाकर नीचे निगाह डाली।
माचिस की तीली की रोशनी में दो आदमी शायद सिगरेटें जला रहे थे। फिर परस्पर बातें करते हुए वे वहीं खड़े धूम्रपान करने लगे।
उनके अलफाज तो अजय को सुनाई नहीं दे रहे थे मगर आवाज और लहजे से जाहिर था उनकी बातचीत का विषय वह नहीं था। उसने इस मौके का फायदा उठाना ही बेहतर समझा।
वह पलटकर भीतरी मुंडेर के पास पहुंचा।
कोठी में कहीं भी रोशनी का आभास नहीं मिला। नीचे जाने वाली सीढ़ियों के सिरे पर बना दरवाजा भी दूसरी ओर से लॉक्ड था।
अजय उस स्थान पर पहुंचा जहां मुंडेर से कोई तीन फुट नीचे एक रोशनदान था। वह मुंडेर से नीचे लटका फिर रोशनदान का निचला भाग पकड़कर आसानी से नीचे आ गया।
उस फ्लोर पर चार कमरे थे। चारों के दरवाजे लॉक्ड थे। अगर नीलम उसी कोठी में थी तो अनुमानतः उनमें से किसी भी कमरे में हो सकती थी।
अजय ने अपनी जेब से एक खास ढंग से मुडी हुई तार निकाली। उसकी मदद से दरवाजे का लॉक खोलने में दिक्कत का सामना उसे नहीं करना पड़ा।
एक–एक करके चारों कमरे, टार्च की रोशनी में उसने देख डाले। अटैच्ड बाथरूम सहित वे चारों बैडरूम थे और उनकी हालत से जाहिर था काफी रोज से उन्हें इस्तेमाल नहीं किया गया है।
अन्तिम कमरे से निकलने से पहले अजय ने बाथरूम के शीशे में अपना सरदार वाला हुलिया पुनः चैक किया, फिर बड़े फ्रेम लेकिन हल्के रंग की एक ऐनक भी पहन ली।
दबे पांव सीढ़ियां तय करके वह नीचे यानी निचली मंजिल पर पहुंचा। ऊपर की भांति वहां भी चार कमरे थे।
उसने पहले कमरे की डोर नॉब ट्राई की। आशा के विपरीत नॉब घूम गई और दरवाजा खुल गया।
अजय ने सावधानीपूर्वक पहले आहट लेने की कोशिश की। फिर अन्दर दाखिल होकर दरवाजा पुनः बन्द किया और टार्च की रोशनी इधर–उधर घुमाई। अटैच्ड बाथरूम सहित वो कमरा भी बैडरूम था और खाली पड़ा था।
वह बाहर निकला। दरवाजा पुनः बन्द करके उसने अगले दरवाजे की डोर नॉब घुमाते हुए अन्दर की ओर दबाव डाला तो दरवाजा खुलना शुरू हो गया। साथ ही बुरी तरह चौंकता हुआ अजय जहां का तहां ठिठक गया।
अन्दर से किसी की गहरी सांसें लेने की आवाज सुनाई दे रही थी।
अजय अन्धेरे में दम साधे–खड़ा सुनता रहा। अन्दर कोई गहरी नींद में सोया हुआ था। लेकिन दरवाजा लॉक्ड न होने से जाहिर था अन्दर नीलम नहीं थी, क्योंकि उस सूरत में दरवाजा लॉक्ड जरूर होना था।
अजय ने धीरे–धीरे पूरा दरवाजा खोला, चन्द क्षण इंतजार किया। गहरी सांसों के अलावा अन्य किसी प्रकार की आहट का जरा भी आभास न पाकर वह भीतर रेंग गया और दरवाजा पुनः बन्द कर दिया।
सांसों की आवाज से अनुमान लगाकर वह टटोलता हुआ सा दबे पांव बिस्तर की ओर बढ़ा।
अचानक कुछ सोचकर वह रुक गया। कमरे में मौजूद वस्तुओं की स्थिति के बारे में कोई जानकारी उसे नहीं थी। इसलिए अन्धेरे में किसी चीज से टकरा जाने की सम्भावना थी और इस तरह उत्पन्न आहट से बिस्तर पर सोया व्यक्ति जाग सकता था।
अजय ने अपनी जेब से टार्च निकालकर ऑन की। अपने आस–पास सीमित रोशनी डालते ही उसने मन–ही–मन भगवान को धन्यवाद दिया कि उसे सही वक्त पर सही बात सूझ गई थी। अगर उसने एक भी कदम और आगे बढ़ाया होता तो पास ही रखी कुर्सी से टकरा जाना था।
कुर्सी से स्वयं को बचाते हुए वह बिस्तर की ओर आकर्षित हुआ। वहां छाती तक कंबल ताने लीना गहरी नींद सोई पड़ी थी। उसके अलावा कमरे में कोई नहीं था।
अजय ने टार्च ऑफ कर दी।
वह पलटकर दबे पांव वापस दरवाजे पर पहुंचा। डोर नॉब घुमाने के प्रयास में उसे पता चला कि चाबी की होल में ही फंसी हुई थी। वह समझ गया दरवाजे में टू–वे लॉक लगा था। उसने की होल से चाबी निकाल ली।
कमरे के बाहर आकर उसने दरवाजा लॉक किया और चाबी अपनी जेब में डाल ली।
कोठी में हर तरफ सन्नाटा था। कहीं से किसी प्रकार की कोई आहट सुनाई नहीं दी।
अजय की व्याकुलता में हर पल वृद्धि होती जा रही थी। वह अगले कमरे की ओर बढ़ा।
इस कमरे का दरवाजा भी लॉक न पाकर उस पर निराशा सवार होने लगी। दरवाजा लॉक्ड, न होना अपने आपमें इस बात का सबूत था कि अन्दर कम–से–कम नीलम मौजूद नहीं है। लेकिन अजय के लिए यह भी यकीनी तौर पर जानना जरूरी था कि कमरे में था कौन। उसने धीरे–धीरे दरवाजा खोलकर सुनने की कोशिश की। अन्दर से किसी के सांस लेने की कोई आवाज सुनाई नहीं दी। लेकिन इस बात का पक्का सबूत यह नहीं था कि अन्दर कोई नहीं है।
वह दबे पांव भीतर दाखिल हो गया। दरवाजा पुनः बन्द करके देर तक खड़ा अंधेरे में ताकता रहा। किसी प्रकार की कोई आहट उसे सुनाई नहीं दी तो धीरे–धीरे उसे यकीन होने लगा यहां उसके अलावा कोई नहीं था।
उसने जेब से टार्च निकालकर उसकी सीमित रोशनी सावधानी पूर्वक चारों ओर घुमाई।
कमरा पहले बैडरूम के अनुरूप ही था मगर खाली था।
अजय टार्च ऑफ करने ही वाला था कि उसकी निगाहें ड्रेसिंग टेबल पर पड़ीं। अगले ही क्षण वह चौंका और तेजी से वहां पहुंचा।
ड्रेसिंग टेबल पर एक लेडीज हैंड बैग पड़ा था।
अजय ने साफ पहचाना बैग नीलम का था। बैग उठाकर खोलने और चैक करने के बाद किसी प्रकार का शक नहीं रहा कि उस बैग की मालकिन नीलम ही है।
लेकिन नीलम की अन्य कोई चीज वहां कहीं नजर नहीं आई। न ही ऐसा कोई संकेत मिला जिससे अन्दाजा लगाया जा सके नीलम को कहां ले जाया गया हो सकता है।
अनुमानतः लीना को इस बात की जानकारी होनी चाहिए थी और उसका मुँह खुलवाना भी ज्यादा मुश्किल साबित नहीं होना था।
लेकिन फिलहाल अजय ने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा। बैग की वहां मौजूदगी से इस बात की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि नीलम उस कोठी में ही मौजूद हो सकती है।
अजय ने पहले खुद ही चैक कर लेना ठीक समझा।
उस फ्लोर पर दो कमरे और शेष थे। बाकी नीचे थे और नीलम उनमें से किसी में भी कैद हो सकती थी।
लेकिन अगर नीलम किसी दूसरे कमरे में कैद थी तो उसका हैंड बैग वहां क्यों पड़ा था? इसका कोई मुनासिब जवाब अजय को नहीं सूझ सका।
उसने टार्च बुझा दी।
वह कमरे से बाहर आ गया।
उसने बाकी दोनों कमरे चैक किए। उनके दरवाजे लाक्ड थे। उसने पहले दरवाजे के साथ कान लगाकर फिर उछलकर रोशनदान का निचला भाग पकडकर हाथों के बल रोशनदान की ऊंचाई तक पहुंचकर, सुनने की कोशिश की। मगर दोनों कमरों से न तो किसी के सांस लेने की आवाज सुनाई दी और न ही अन्य कोई ऐसा आभास मिला जिससे पता चले कि अंदर कोई मौजूद है। इसके बावजूद लॉक्ड दरवाजों की वजह से उन कमरों में किसी की मौजूदगी की सम्भावना से इन्कार भी नहीं किया जा सकता था. लेकिन उन कमरों की तलाशी लेने से पहले अजय ने अविनाश का पता लगाना ज्यादा बेहतर समझा।
वह सीढ़ियों द्वारा फर्स्ट फ्लोर पर पहुंचा।
वहां भी पूर्णतया निस्तब्धता व्याप्त थी। कारीडोर में कारपेट बिछा था। लेकिन कमरे चार की बजाय सिर्फ तीन थे।
अजय ने टार्च की रोशनी में कमरे चैक करने आरम्भ कर दिए।
पहला कमरा स्टडी रूम था। दूसरा खाली पड़ा था।
लेकिन तीसरे कमरे में आरामदेह बिस्तर पर अविनाश दीवान सोया पड़ा था।
अजय ने तुरन्त टार्च बुझा दी।
तभी अविनाश ने करवट बदली। उसके धीमे खर्राटों में क्षणिक अवरोध उत्पन्न हुआ। फिर पुनः वैसी ही आवाजें सुनाई देने लगीं।
अजय भूत की तरह निःशब्द दबे पांव चलता हुआ, घुप्प अन्धेरे में बैड के पास जा पहुंचा। अविनाश, दबाव पड़ने पर किस हद तक खतरनाक साबित हो सकता था, इससे अजय बखूबी वाकिफ था। इसीलिए वह अपनी रिवाल्वर निकालकर दाएं हाथ में लेकर प्रत्येक प्रकार की स्थिति से निपटने को तैयार था।
बिस्तर और उस पर मौजूद अविनाश की स्थिति का भलीभांति अनुमान वह लगा चुका था। अविनाश के धीमे खर्राटें बदस्तूर जारी थे। लेकिन अब रोशनी करना जरूरी था और इस प्रयास में अविनाश को जागने देने का रिस्क अजय नहीं लेना चाहता था।
वह इस ढंग से टार्च की रोशनी बिस्तर की ओर डालना चाहता था कि रोशनी के दायरे से बाहर रहने के बावजूद अविनाश के चेहरे की सही स्थिति नजर आ जाए।
अजय ने टार्च का स्विच ऑन ही किया था कि जाने किस अज्ञात भावना से प्रेरित अविनाश अचानक हड़बड़ाकर उठ बैठा।
लेकिन अजय ज़रा नहीं हिचकिचाया। अविनाश को कुछ भी करने का मौका दिए बगैर अपने दाएं हाथ में थमी रिवाल्वर की नाल का नपा–तुला वार उसकी कनपटी पर कर दिया।
कुछ भी समझ न पाने से पहले अविनाश के गले से कराह निकली। उसके जिस्म का ऊपरी भाग आगे–पीछे लहराया फिर वह करवट के बल बिस्तर पर लुढक गया और उसी तरह पड़ा रहा।
उसकी चेतना जवाब दे चुकी थी।
अजय ने अच्छी तरह तसल्ली करने के बाद कि अविनाश वास्तव में बेहोश हो चुका था, उसके तकिए के नीचे टटोला। वहां कोई हथियार नहीं था।
वह देख चुका था खिडकी बन्द थी और उस पर भारी पर्दा लटका हुआ था। अन्दर की रोशनी बाहर जाने का कोई अंदेशा नहीं था। दरवाजा भीतर से लॉक करके उसने लाइट स्विच आन कर दिया।
उसने बेहोश पड़े अविनाश के नीचे बिस्तर पर बिछी बैडशीट खींचकर उठा ली। शीट नई और मजबूत थी। उसमें से दो लम्बी पट्टियां फाड़कर एक से उसकी कलाइयां पीछे बांध दी, दूसरी से दोनों टखने बांधने के बाद दोनों पट्टियां परस्पर बांध दी। फिर चादर का एक टुकड़ा उसके मुँह में ढूंसकर ऊपर से पट्टी कसकर बांध दी. ताकि नाक से सांस तो लेता रह सके मगर चीख न पाए। चादर की शेष बची चौड़ी पट्टी को बिस्तर पर पड़े अविनाश की छाती के ऊपर से गुजारकर, पलंग की चौड़ाई में नीचे मजबूती से बांध दिया।
फिर अजय ने पास ही कुर्सी पर पड़े उसके कपड़ों की तलाशी ली। अपने काम की दो चीजें उसे मिलीं। एक लोडेड पिस्तौल थी और दूसरी दरवाजों की चाबियों का गुच्छा। उसने दोनों चीजें अपनी जेबों के हवाले कर ली।
तत्पश्चात् अजय ने जल्दी–जल्दी कमरे की तलाशी ले डाली। लेकिन अपने काम की कोई और चीज नहीं मिल सकी। अलबत्ता ड्रेसिंग टेबल पर पड़ी एक चाबी उसने इस विचार से जरूर उठा ली कि शायद काम आ जाए।
बेहोश पड़े अविनाश पर आखिरी निगाह डालकर उसने लाइट ऑफ की और कमरे से बाहर आ गया। वह अपेक्षाकृत निश्चित था कि फिलहाल अविनाश कोई शरारत नहीं कर सकेगा।
नीचे ग्राउण्ड फ्लोर पर जाने की बजाय पहले उसने सैकेंड फ्लोर के दोनों लॉक्ड कमरों को चैक कर लेना मुनासिब समझा।
उसने अविनाश का कमरा बाहर से लॉक कर दिया।
वह सीढ़ियों के द्वारा वापस ऊपर पहुंचा।
पहले उसने लीना के बाहर से लॉक्ड कमरे के दरवाजे से कान सटाकर सुनने की कोशिश की। अन्दर से सांसें लेने की आवाज जिस ढंग से सुनाई दी उससे जाहिर था कि अन्दर लीना पहले की भांति गहरी नींद में सोयी पड़ी थी।
अजय वहां से हट गया।
वह दोनों लॉक्ड कमरों में से एक के सम्मुख पहुंचा।
अविनाश की जेब से प्राप्त गुच्छे की चाबियां एक–एक करके दरवाजे के की होल में ट्राई करने लगा।
चौथी चाबी पूरी घूमी और हल्की–सी क्लिक की आवाज के साथ ताला खुल गया।
धीरे–धीरे दरवाजा खोलकर सावधानीपूर्वक वह भीतर दाखिल हुआ। दरवाजा पुनः बन्द करके उसने टार्च की रोशनी चारों ओर घुमाई।
वो कमरा बैडरूम था। बिस्तर पर लेटा तो कोई नहीं था लेकिन वहां जो कपड़े मौजूद थे उन्हें वह अच्छी तरह पहचानता था। वे तमाम कपड़े वही थे जो उस समय नीलम ने पहने हुए थे, जब वह 'दीवान पैलेस' में सेंध लगाने उसके साथ गई थी।
एक कमरे में नीलम का हैंडबैग...दूसरे में उसके तमाम कपडे...और तीसरे में खुद नीलम। अचानक अजय के मस्तिष्क में ये विचार कौंधे। उसने तेजी से पलटकर दरवाजा खोला और बाहर आ गया।
वह बगल वाले लॉक्ड कमरे के सम्मुख पहुंचा।
अविनाश के गुच्छे द्वारा ताला खोलते समय उत्तेजनावश उसके हाथ कांप रहे थे।
ताला खोलते ही वह भीतर दाखिल हुआ। अनुमान मात्र से टार्च की रोशनी बिस्तर की दिशा में डाली।
अगले क्षण जो नजारा दिखाई दिया, उससे वह राहत की लम्बी सांस लेकर रह गया।
बिस्तर पर गरदन तक कंबल ताने, पीठ के बल आंखें बंद किए नीलम लेटी हुई थी।
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