पर्दाफाश का दिन
सुबह नौ बजते के साथ ही वंश और उसकी टीम अपने अपने काम में जुट चुकी थी। दोपहर होते होते वह तमाम जानकारियां भी हासिल हो गयीं, जो वे लोग हासिल करना चाहते थे। सिवाये एक बात के और वह ये थी कि कविता कुमावत उमेश अहिर की शिनाख्त में नाकाम रह गयी। वह बहुत हैरानी की बात थी क्योंकि वंश पूरी पूरी उम्मीद कर रहा था कि लड़की उसे पहचान जायेगी।
फिर अचानक ही उसे कविता के उस भाई का ख्याल हो आया जिसकी मौत उसने कोरोना से हुआ बताया था। वंश ये तक सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं ऐसा तो नहीं था कि वह कोविड से न मरा हो बल्कि किसी वजह से पांच साल पहले डॉक्टर ने ही उसके भाई की जान ले ली हो। जिसके बाद उसने बदला लेने का फैसला किया और जाकर डॉक्टर के क्लिनिक में नौकरी करने लगी।
आगे की कहानी बहुत आसान थी।
इसलिए सबसे पहले उसने उसी बात का पता लगाने का फैसला किया।
ग्यारह बजे के करीब वह कविता कुमावत के पेरेंटल फ्लैट पर पहुंचा, जहां उसकी मुलाकात कविता की मां से हुई, जिससे एक बार पहले भी मिल चुका था।
वंश ने दोनों हाथ जोड़ दिये, ‘‘नमस्ते।’’
‘‘नमस्ते बेटा।’’
‘‘आपका पांच मिनट का वक्त ले सकता हूं।’’
‘‘ठीक है अंदर आ जाओ।’’
वंश ने अंदर कदम रखा तो सामने दीवार पर उसे एक फ्रेम की हुई तस्वीर टंगी दिखाई दी, जिसमें कविता किसी कम उम्र युवक के साथ खड़ी थी, शायद वह उसके भाई की ही फोटो थी।
महिला ने उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘क्या बात है?’’
‘‘आपको तो पता ही होगा पिछले दिनों आपकी बेटी की जान लेने की कोशिश की गयी थी?’’
‘‘हां ये भी पता है कि वह तुम्हारी वजह से उस खतरे से बच पाई थी।’’
‘‘पुलिस की वजह से, मगर अभी मैं उस बारे में बात करने नहीं आया हूं। असल में मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या दोनों पुलिस ऑफिसर्स जो अब मारे जा चुके हैं, उनके साथ आप लोगों की कोई दुश्मनी थी, क्योंकि कविता कहती है कि नहीं थी।’’ वंश ने खामख्वाह का सवाल किया, मगर जो जानना चाहता था वहां तक सीधा पहुंचना ठीक नहीं लग रहा था।
‘‘नहीं कोई दुश्मनी नहीं थी, ना ही उसे डॉक्टर के कत्ल के बारे में कुछ पता था। वे लोग खामख्वाह ही मेरी बेटी की जान के पीछे पड़े थे, जबकि उससे उन्हें कोई खतरा नहीं था।’’
‘‘वो सामने जो फोटो लगी है, उसमें कविता के साथ आपका बेटा है न?’’
‘‘हां, कोरोना खा गया मेरे बच्चे को।’’
‘‘मां जी, इंस्पेक्टर अधिकारी ने मुझे बताया था कि - वंश ने साफ साफ झूठ बोला - आपके बेटे की मौत कोविड के दौरान नहीं बल्कि पांच साल पहले ही हो गयी थी, ये भी कहा था कि उसे डॉक्टर बरनवाल ने खत्म कर दिया था।’’
‘‘जरूर नशा किये बैठा होगा, भला डॉक्टर साहब क्यों मारते मेरे बच्चे को - कहकर वह उठती हुई बोली - रुको मैं अभी आती हूं।’’ तत्पश्चात वह सामने दिखाई दे रहे दरवाजे से अंदर दाखिल होकर दिखाई देनी बंद हो गयी। तब वंश ने जेब से मोबाईल निकाला और उठकर जल्दी से दीवार पर टंगी तस्वीर की दो तीन फोटो उतारने के बाद वापिस सोफे पर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद महिला उसके पास वापिस लौटी तो उसके हाथ में एक डेथ सर्टिफिकेट था जो म्युनिसिपल कॉरपोरेशन दिल्ली द्वारा जारी किया गया था, ‘‘लो देख लो कि मेरे बेटे के मौत की वजह क्या था, और उसकी मौत कब हुई थी।’’
‘‘आपने नाहक तकलीफ की, मैं यहां आपके बेटे का डेथ सर्टिफिकेट देखने नहीं आया था, बस ये जानना चाहता था कि अधिकारी की बात सच थी या झूठ।’’ कहते हुए उसने डेथ सर्टिफिकेट उसके हाथों से ले लिया।
‘‘झूठ बोला था।’’
‘‘हां अब तो मुझे भी यही लग रहा है - कहकर उसने पूछा - इसकी एक फोटो ले सकता हूं मैं?’’
‘‘जितनी मर्जी ले लो।’’
जवाब में वंश ने मोबाईल से एक तस्वीर क्लिक की फिर उठ खड़ा हुआ, ‘‘थैंक यू आंटी, अब चलता हूं।’’ कहकर वह बाहर निकला और अपनी कार में सवार होकर वसंतकुंज के लिए रवाना हो गया।
उस सफर में उसे पूरे बीस मिनट लग गये। वहां पहुंचकर उसने मकतूल अमरजीत राय के फ्लैट वाली बिल्डिंग के सामने गाड़ी रोकी और सीढ़ियां चढ़कर दूसरी मंजिल पर पहुंचा।
कॉलबेल के जवाब में मुक्ता ने दरवाजा खोला, फिर उसे देखकर बुरा सा मुंह बनाती हुई बोली, ‘‘तुम फिर आ गये?’’
‘‘जी हां, पहचानने के लिए थैंक्स।’’
‘‘और क्या भूल जाऊंगी दो दिनों में?’’
‘‘क्या पता लगता है मैडम।’’
‘‘अब क्या चाहते हो?’’
‘‘वही जो पिछली बार चाहता था, लेकिन इस बार कुछ जानने नहीं बताने आया हूं। कुछ ऐसा जिसके कारण आप जल्दी ही गिरफ्तार होने वाली हैं।’’
‘‘मैं किसलिए?’’
‘‘पुलिस को यकीन आ गया है कि एक साल पहले डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल का कत्ल आपने ही किया था।’’
‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।’’
‘‘ये मैं नहीं पुलिस कह रही है मैडम।’’
‘‘मैं तुम्हें कातिल दिखती हूं?’’
‘‘नहीं, मुझे नहीं दिखतीं।’’
‘‘फिर?’’
‘‘पुलिस आप पर आरोप लगाने वाली है कि आप और अमरजीत साहब - ईश्वर उनकी आत्मा का शांति दें - दोनों ने मिलकर डॉक्टर बरनवाल की हत्या कर दी थी।’’
‘‘अच्छा आरोप है, क्यों की?’’
‘‘उन लोगों को पता लगा है कि डॉक्टर ने कोई मोटी रकम आपके हस्बैंड को दी थी, जिसकी उधारी चुकता करने के लिए वह दबाव बनाने लगा था, उसी से बचने के लिए डॉक्टर को खत्म कर दिया गया।’’
‘‘कितनी मोटी रकम?’’
‘‘एक करोड़ से ज्यादा की।’’
सुनकर उसके माथे पर बल पड़ गये, कुछ देर ज्यों की त्यों खड़ी उस बात पर विचार करती रही, फिर बोली, ‘‘अंदर आ जाओ।’’
‘‘थैंक यू।’’
तत्पश्चात दोनों ड्राईंग रूम में आमने सामने बैठ गये।
‘‘तुम सीरियस तो हो न?’’
‘‘और क्या मजाक करूंगा आपसे?’’
‘‘ऐसी किसी रकम की मुझे कोई खबर नहीं है, लेकिन पुलिस अगर उस बारे में पता लगा चुकी है, तो कैश में तो नहीं ही दी होगी, वरना इतने दिनों बाद उसकी खबर किसी को कैसे लग सकती थी, है न?’’
‘‘कैश की उम्मीद कम ही है मैडम, क्यों पूछ रही हैं?’’
‘‘क्योंकि उसका बैंक एकाउंट अभी भी एक्टिव है, और लॉगिन आईडी तथा पासवर्ड भी उसने अपनी डायरी में लिख रखा होगा, मतलब मैं अभी हाथ के हाथ साबित कर सकती हूं कि तुम्हारी कही बात गलत है, उसके बाद तुम क्या करोगे?’’
‘‘पुलिस की गलतफहमी दूर करूंगा मैडम, ताकि वे लोग आपको नाहक परेशान करने की कोशिश न करें।’’
‘‘पक्का करोगे न?’’
‘‘जी हां, प्रॉमिस।’’
तत्पश्चात वह भीतर के कमरे से लैपटॉप और एक डायरी उठा लाई। फिर बैंक की साईट पर पहुंचकर लॉगिन करते हुए पूछा, ‘‘कब की स्टेटमेंट दिखाऊं?’’
‘‘छह साल पहले से शुरू कीजिए।’’
‘‘इतनी पुरानी स्टेटमेंट ऑनलाईन मिल जायेगी?’’
‘‘मेरे ख्याल से तो मिल जानी चाहिए।’’
तत्पश्चात मुक्ता उसके बगल में आ बैठी, ताकि दोनों वह स्टेटमेंट देख पाते। सबसे पहले उसने फाईनेंशिल इयर 2017-2018 की ब्योरा ओपन की, मगर उसमें कुछ नहीं मिला, फिर 2018-2019 में भी कुछ दिखाई नहीं दिया, लेकिन 2019-2020 में एक ऐसी एंट्री मौजूद थी, जिसने मुक्ता राय के होश उड़ाकर रख दिये, जबकि वंश केवल मुस्कराकर रह गया।
वह ट्रांजेक्शन पूरे एक करोड़ की थी।
पैसे किसके एकाउंट से आये थे वह बात स्टेटमेंट देखकर तो पता नहीं लग सकती थी, लेकिन वंश की कही बात के अगेंस्ट में मुक्ता को फौरन यकीन आ गया कि वह रकम डॉक्टर के एकाउंट से ही ट्रांसफर की गयी होगी।
‘‘अब क्या कहती हैं मैडम?’’
‘‘क्या कहूं - उसका चेहरा फक्क पड़ चुका था - मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा, भला इतना बड़ा उधार डॉक्टर उसे क्यों देने लगा?’’
‘‘आप बताईये।’’
‘‘मैं नहीं जानती, बाई गॉड नहीं जानती।’’
‘‘कहीं फ्लैट खरीदने के लिए तो नहीं दिये थे?’’
‘‘तो भी इतना बड़ा उधार नहीं देने वाला था डॉक्टर।’’
‘‘फ्लैट खरीदा कब गया था?’’
‘‘2020 में।’’
‘‘जरा चेक तो कीजिए कि आगे इस रकम का क्या किया गया?’’
उसने किया और हाथ के हाथ ये साबित हो गया कि उस रकम का इस्तेमाल फ्लैट खरीदने के लिए ही किया गया था, क्योंकि वह पूरी रकम चेक के जरिये एक साथ एकाउंट से निकल गयी थी।
मुक्ता ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया।
‘‘मैंने तो पहली मुलाकात में ही ऐसी किसी बात की तरफ इशारा कर दिया था मैडम।’’
‘‘मैं कैच नहीं कर पाई, और ना ही मुझे ये लगा था कि फ्लैट उसने किसी से उधार लेकर खरीदा होगा, क्योंकि साफ कहा था कि गांव की जमीन बेचकर और लोन लेकर खरीदा था - फिर अचानक ही उसका चेहरा चमक उठा - ये लोन वाली रकम ही क्यों नहीं हो सकती?’’
‘‘पर्सनल लोन लिया था?’’
‘‘नहीं हाउसिंग लोन।’’
‘‘फिर तो नहीं ही हो सकता।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि उस रकम का चेक सेलर के नाम से बनाया होगा बैंक ने।’’
‘‘ओह।’’
‘‘आपको मालूम नहीं है कि कितने का लोन लिया था?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘घर में उससे रिलेटेड कोई कागजात तो जरूर होंगे?’’
‘‘हो सकते हैं।’’ कहकर वह फिर से कमरे में जा घुसी, और थोड़ी देर बाद जब वापिस लौटी तो लोन डिस्बर्समेंट का एक लेटर उसके हाथ में था।
‘‘कितने का है?’’
‘‘चालीस लाख का।’’ वह रो देने वाले स्वर में बोली।
‘‘फिर तो बात एकदम साफ है मैडम। एक करोड़ डॉक्टर ने दिये, साठ लाख में गांव की जमीन बेची और चालीस लाख का लोन उठा लिया। हो गये दो करोड़ पूरे।’’
‘‘अब तुम क्या करोगे?’’
‘‘आप क्या चाहती हैं?’’
‘‘मैं तो यही चाहूंगी कि तुम किसी से इस बात का जिक्र मत करो, मगर मेरे कहने भर से थोड़े ही मान जाओगे।’’
‘‘समझ लीजिए मान गया, पुलिस खुद पता लगा ले तो और बात है, वरना मैं जिक्र नहीं करूंगा, बशर्ते कि उस एक करोड़ की रकम का डॉक्टर के कत्ल में कोई दखल न निकल आये।’’
‘‘देखो अमरजीत ने क्या किया था या क्या नहीं किया था, उसकी मैं गारंटी नहीं कर सकती, लेकिन मेरा यकीन जानों मुझे उस बारे में कुछ नहीं मालूम।’’
‘‘समझ लीजिए यकीन कर लिया, क्योंकि वारदात में अगर आपका कोई हाथ रहा होता, या उस पैसे की आपको खबर होती, तो इतने कांफिडेंस के साथ मेरे सामने अपने हस्बैंड का एकाउंट खोलकर न बैठ गयी होतीं।’’
‘‘ये बात पुलिस को समझाओगे न तुम?’’
‘‘अगर वे लोग आपके खिलाफ गये तो पूरी कोशिश करूंगा।’’
‘‘थैंक यू।’’
‘‘लेकिन नहीं भी गये तो आप पर चालीस लाख के लोन की देनदारी होगी मैडम, कैसे चुकता कर पायेंगी?’’
‘‘नहीं लोन की मेरे ख्याल से कोई देनदारी नहीं बनेगी।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘कोई लोन सुरक्षा बीमा ले रखा था अमरजीत ने।’’
‘‘ये तो बहुत अच्छी बात है।’’
‘‘तुम्हें क्या लगता है ये फ्लैट छिन जायेगा मुझसे?’’
‘‘उम्मीद तो कम ही है बशर्ते कि पुलिस ये न साबित कर दिखाये कि वह एक करोड़ की रकम वारदात को अंजाम देकर हासिल की थी। वैसे उन हालात में भी आपका नुकसान बस एक करोड़ का होगा, जो कि असल में उतना भी नहीं होगा क्योंकि प्रॉपर्टी के रेट कुछ तो बढ़ ही गये होंगे।’’
‘‘मेरे ख्याल से तो कत्ल अमरजीत ने नहीं ही किया होगा।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘अगर कातिल वह होता तो उसका कत्ल भला कौन करता?’’
‘‘इस सवाल का जवाब आपको आज के हमारे स्पेशल शो ‘पर्दाफाश’ में मिलेगा, देखना मत भूलियेगा मैडम।’’
कहकर वह उठा और मुक्ता को गहरे फिक्र के हवाले छोड़कर गेट की तरफ बढ़ गया।
कड़ियां जुड़ने लगी थी, तस्वीरें साफ होने लगी थीं। अब तो बस ये जानना भर बाकी था कि पांच साल पहले डॉक्टर बरनवाल ने किसका कत्ल किया था, उसके बाद केस सॉल्व हो जाता।
दोपहर एक बजे पर्दाफाश की पूरी टीम ऑफिस में इकट्ठी हुई। नोट्स एक्सचेंज किये गये, और दिमागी घोड़ों को खुले मैदान में आजाद छोड़ दिया गया। मगर सच यही था कि कातिल तक उनकी निगाहें नहीं पहुंच पा रही थीं।
‘‘वक्त बीता जा रहा है वंश।’’ आर्या चिंतित लहजे में बोला।
‘‘मैं जानता हूं, लेकिन जरूरत इस वक्त पूरी तरह शांत रहने की है, खुद को जरा भी परेशान मत होने दो, वरना केस पर फोकस नहीं कर पाओगे। क्योंकि कातिल की तलाश अब हमें यहीं बैठे बैठे करनी है। तमाम तथ्य हमारे सामने है, उनको आपस में जोड़ो और नतीजे निकालने शुरू कर दो।
‘‘अभी तक हम और क्या कर रहे थे?’’ मेघना थोड़ा हंसकर बोली।
‘‘वही कर रहे थे, आगे भी करते रहेंगे। तब तक जब तक कि कातिल का चेहरा हमारी आंखों के सामने क्लियर नहीं हो जाता। हां इस बात की गारंटी समझो कि कातिल उस शख्स का कोई बेहद करीबी है जिसे डॉक्टर ने पांच साल पहले अमरजीत के साथ मिलकर खत्म कर दिया था। जिसके लिए अमरजीत को पूरे एक करोड़ रूपये दिये गये थे। वैसी ही कोई बड़ी रकम अधिकारी और दीक्षित को भी जरूर दी गयी होगी। ये भी रहा हो सकता है कि अपनी फीस वे लोग किश्तों में डॉक्टर से वसूलते रहे हों, क्योंकि हर महीने उसके क्लिनिक का फेरा तो लगाते ही थे।’’
‘‘ये भी तो हो सकता है वंश कि एक करोड़ की वह रकम डॉक्टर ने अमरजीत राय को उधार दी हो, ये कहकर कि वह जब चाहे लौटा सकता था। क्योंकि मुझे नहीं लगता कि किसी की हत्या कराने के लिए उसने एक करोड़ रूपये अमरजीत को दे दिये होंगे, बात दस बीस लाख की होती, तो एक बार को यकीन किया जा सकता था।’’
‘‘बिल्कुल हो सकता है, जिसमें दोस्ती और एहसान दोनों का रोल रहा हो सकता है। एहसान इस बात का कि उसने अपनी दोस्ती निभाते हुए उस वारदात में डॉक्टर का पूरा पूरा साथ दिया था।’’
‘‘यानि पूरा मामला रीवेंज का है?’’ आर्या ने पूछा।
‘‘बेशक है, हत्यारे ने बदले की खातिर एक साल पहले डॉक्टर को खत्म कर दिया, और अब घटना में उसका साथ देने वाले लोगों को मार रहा है। मतलब मोटिव के बारे में हम जान चुके हैं और कातिल का अंदाजा भी है हमें, बस उसके चेहरे की पहचान होना भर बाकी है।’’
‘‘खोजेंगे कैसे उसे?’’
‘‘यही तो सोचना है हमें।’’
‘‘मनसुख और बबिता बरनवाल के बीच क्या लिंक हो सकता है सर? - मेघना ने पूछा - क्यों बबिता ने उसे एक करोड़ रूपये दे दिये?’’
‘‘नहीं वह रकम बबिता बरनवाल ने नहीं दी थी।’’
‘‘मैंने बैंक जाकर दोनों का एकाउंट चेक किया था, एक करोड़ की वह रकम बबिता के एकाउंट से ही मनसुख के एकाउंट में ट्रांसफर की गयी थी, बैंक की डिटेल्स भी मौजूद है मेरे पास।’’
‘‘जरूर मौजूद होगी, लेकिन वह काम बबिता या विश्वजीत का नहीं था, और ना ही उस एक करोड़ रूपये का डॉक्टर के कत्ल से कोई लेना देना था। इसलिए उस प्वाइंट पर दिमाग को उलझाने की जरूरत नहीं है। उसे भूलकर पूरे मामले पर विचार करो, देखो हमारे सस्पेक्ट्स लिस्ट में ऐसा कौन छिपा बैठा है जिसके किसी खास का पांच साल पहले डॉक्टर ने मर्डर कर दिया था?’’
‘‘क्यों न हम उमेश अहिर के नाम पर विचार करें। आपने बताया था कि सात-आठ साल पहले पटना छोड़ने के बाद उसने वापिस कदम नहीं रखा था वहां, राईट?’’
‘‘राईट।’’
‘‘तो ये क्यों नहीं हुआ हो सकता कि डॉक्टर के हाथों पांच साल पहले जान गंवाने वाला शख्स वही रहा हो? क्या पता वह डॉक्टर का कत्ल करने दिल्ली आया हो, लेकिन दांव डॉक्टर का लग गया और उसने शिकारी को अपना शिकार बना लिया।’’
सुनकर सब सन्नाटे में आ गये।
‘‘कमाल कर दिया मेघना।’’
‘‘थैंक यू सर, लेकिन जरूरी तो नहीं कि वैसा कुछ सच में घटित हुआ हो?’’
‘‘हुआ हो भी सकता है, उमेश सात आठ सालों से गायब है तो उसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि सामने आने के लिए वह इस दुनिया में नहीं है।’’
‘‘अगर हम इसे सच मान लें, तो मतलब बनता है कि हत्यारा उमेश का कोई सगेवाला है, जिसने डॉक्टर बरनवाल को खत्म कर के उमेश की मौत का बदला लिया, और एक साल इंतजार करने के बाद अमरजीत, अधिकारी तथा दीक्षित को मार गिराया, क्योंकि वह तीनों किसी न किसी रूप में उस वारदात में शामिल रहे थे। मगर सवाल ये है कि मनसुख और कौशल्या का कत्ल क्यों किया गया?’’
‘‘नहीं असल सवाल ये है कि कातिल कौन है?’’
‘‘कहीं वह कविता कुमावत ही तो नहीं है, आखिर बिहारी की ही रहने वाली है?’’ पुनीत ने पूछा।
‘‘कविता रांची से है।’’
‘‘उससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता सर, पटना और रांची में दूरी ही कितनी है।’’
‘‘ठीक है अपनी बात पूरी करो।’’
‘‘उमेश अहिर के साथ कविता का कोई गहरा रिश्ता था। इसलिए लड़की उसकी मौत पर तड़प उठी। फिर किसी तरह उसे पता लग गया कि उमेश की हत्या में कौन कौन लोग शामिल थे। तब उसने बदला लेने के लिए पहले डॉक्टर बरनवाल का क्लिनिक जॉयन किया, फिर मौका हासिल होते ही उसे खत्म कर दिया।’’
‘‘इस तरह से देखें तो कातिल आयशा बागची भी हो सकती है - आर्या बोला - बल्कि कविता से कहीं ज्यादा मजबूत सस्पेक्ट दिखाई देती है। हम नहीं जानते कि उसका उमेश के साथ कोई लेना देना था या नहीं था, लेकिन अगर था तो डॉक्टर के साथ नजदीकियां उसने ये जानने के लिए भी बढ़ाई हो सकती हैं कि उमेश के कत्ल में उसके साथ-साथ और कौन लोग शामिल थे। फिर शैली साहनी के बयान से तो साफ जाहिर हो जाता है कि कत्ल में आयशा का ही हाथ था, पैसों की भी उसके पास कोई कमी नहीं दिखाई देती इसलिए अधिकारी और दीक्षित को अपनी तरफ कर लेना उसके लिए मामूली बात थी।’’
‘‘जब वह दोनों पहले से डॉक्टर की तरफ थे तो आयशा का साथ देने को क्यों राजी हो गये?’’
‘‘इसलिए हो गये क्योंकि डॉक्टर के साथ उनकी कोई रिश्तेदारी नहीं थी। जो काम पांच साल पहले उन लोगों ने डॉक्टर के लिए किया था, वही किसी मोटी रकम के बदले आयशा बागची के लिए कर दिखाया, इसमें हैरानी वाली क्या बात है?’’
‘‘थ्योरी अच्छी है लेकिन साबित कैसे करेंगे, पूछने से तो कविता या आयशा ऐसी कोई बात कबूल करने से रहीं? और खुद वैसे किसी रिश्ते का पता लगाने निकलेंगे तो आज की तारीख में तो भला क्या जान पायेंगे हम।’’
‘‘बल्कि कातिल विश्वजीत बरनवाल भी हो सकता है, हमें क्या पता कि उमेश अहिर के साथ उसके कोई संबंध थे या नहीं।’’ पुनीत फिर से बोल पड़ा।
‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है।’’ मेघना बोली।
‘‘ऐसा?’’
‘‘और नहीं तो क्या, अगर उमेश के साथ उसकी कोई रिश्तेदारी थी भी तो क्या वह बाप बेटे के रिश्तों पर भारी पड़ सकती थी, जो उसने उमेश के कत्ल का बदला लेने के लिए अपने बाप को खत्म कर दिया?’’
‘‘सॉरी।’’
‘‘नहीं उमेश और विश्वजीत के बीच कोई दोस्ती नहीं थी, होती तो पटना में वह बात अमरेश ने मुझे जरूर बता दी होती। इसी तरह रिश्तेदारी होने का भी कोई मतलब नहीं बनता।’’
‘‘तो अभी हम कविता और आयशा के नामों पर दिमाग खपाते हैं सर - मेघना बोली - कोई ऐसा रास्ता तलाश करते हैं, जिससे दोनों में से किसी का उमेश अहिर के साथ लिंक स्थापित किया जा सके, जो अगर करने में हम कामयाब हो गये, तो कातिल सामने होगा।’’
‘‘रास्ता दिख तो नहीं रहा कोई।’’ आर्या बोला।
‘‘दिखेगा, सब लोग शांत होकर सोचो इस बारे में।’’ वंश बोला।
तत्पश्चात केबिन में पिन ड्रॉप सन्नाटा छा गया।
थोड़ी देर बाद....
‘‘वॉव यार - पुनीत कश्यप एकदम से उछल पड़ा - क्या लोमड़ी जैसा दिमाग पाया है तूने, एक ही झटके में अपने सीनियर्स की वॉट लगाकर रख दी। मतलब कमाल ही कर दिया तूने।’’
‘‘किससे बोल रहे हो भई?’’ वंश ने पूछा।
‘‘अपनी तारीफ खुद कर रहा है सर।’’ मेघना हंसकर बोली।
सुनकर वंश और आर्या हैरानी से पुनीत को देखने लगे।
‘‘दिमाग में एक धांसू आईडिया आया है सर।’’
‘‘अब कुछ बोलोगे भी?’’
‘‘चुटकी बजाते ही पता लग जायेगा कि उमेश और कविता, या उमेश और आयशा के बीच कोई रिश्ता था या नहीं। अगर नहीं भी था तो कोई बात नहीं, क्योंकि जिसके साथ था, उसका पता भी हमें लगकर रहेगा। मतलब केस सॉल्व।’’
‘‘ठीक है बजाओ चुटकी।’’
उसने बजाई मगर बोला कुछ नहीं।
‘‘पुनीत।’’
‘‘यस सर।’’
‘‘वक्त की कमी है भई।’’
‘‘सॉरी सर, ये बताईये कि पटना से आपने जिस नंबर से मुझे डॉक्टर और उमेश की तस्वीर व्हॉट्सअप की थी, वह नंबर किसका था?’’
‘‘उमेश की भतीजी सुनंदा का, पहले भी बता चुका हूं।’’
‘‘बढ़िया, तो उसे फोन करके पता कीजिए कि उनका कोई रिश्तेदार या उमेश का कोई दोस्त, इन दिनों दिल्ली में रह रहा है या नहीं। लड़की क्योंकि असल बात से अंजान होगी, इसलिए जवाब देने में हुज्जत नहीं करेगी। आगे उसने हमारी सस्पेक्ट लिस्ट में से किसी का नाम ले दिया, तो ठीक वरना एक एक कर के आप खुद सबके नाम उसे गिना दीजिएगा। तब आर या पार वाली बात होगी। केस या तो एक ही झटके में सॉल्व हो जायेगा, या पहले से कहीं ज्यादा उलझकर रह जायेगा। मतलब हमें ये बात भूलनी पड़ जायेगी कि पांच साल पहले डॉक्टर के हाथों अपनी जान गंवाने वाला उमेश अहिर था।’’
‘‘माइंड ब्लोइंग आईडिया पुनीत।’’
‘‘थैंक यू सर।’’
तत्पश्चात वंश लैंडलाईन फोन से सुनंदा का नंबर डॉयल करने ही जा रहा था, कि एकदम से रुक गया। पल भर को उसकी सूरत पर बड़े ही हैरानी के भाव उभरे, फिर ठहाके लगाकर हंस पड़ा।
‘‘पुनीत।’’ आर्या बोला।
‘‘यस सर?’’
‘‘कुछ समझा या नहीं?’’
‘‘समझ गया, यह हंसी क्या पहली बार सुन रहा हूं? - वह भुनभुनाता हुआ बोला - मेरे कहे की तो आव ही उतारकर रख दी वंश सर ने, ये तो हद ही हो गयी।’’
‘‘भागकर जा और एडिटर साहब को ‘पर्दाफाश’ का प्रोमो रिलीज करने को बोल दे।’’
‘‘सब्जैक्ट?’’
‘‘उन्हें पहले से पता है।’’
‘‘ठीक है जाता हूं।’’ कहकर वह केबिन से बाहर निकल गया।
‘‘कैसे जाना?’’ आर्या ने वंश से पूछा।
‘‘बहुत मामूली बात थी, इतनी मामूली कि उसके लिए मुझे पटना में बस एक खास सवाल करना सूझ गया होता तो केस वहीं का वहीं सॉल्व हो जाता। मगर मैं उसे इग्नोर कर गया, जबकि इंवेस्टिगेशन का पहला उसूल यही है कि बात कितनी भी छोटी क्यों न हो उसे नजरअंदाज मत करो। और आज ये पूरी तरह साबित भी हो गया कि मामूली से मामूली बात भी किसी बेहद उलझे हुए मामले को एक ही झटके में सॉल्व कर सकती है।’’
‘‘अरे किया कैसे?’’
‘‘ए और बी को मैंने बी और ए में बदल दिया, बस इतनी ही उलझन थी इस केस में, जो दिमाग की चूलें हिलाये दे रही थी, मामले को हद से ज्यादा रहस्यमय बनाये दे रही थी।’’
‘‘अब कुछ बताओगे भी?’’
‘‘जरूर बताऊंगा, पहले जरा सुनंदा को एक कॉल कर लेने दो, उसके बाद सब बताऊंगा मैं, क्योंकि सारे राज अब खुल चुके हैं।’’ कहकर उसने रिसीवर उठाया और पुनीत के मोबाईल में देखकर सुनंदा का नंबर डॉयल कर दिया।
शाम के चार बजे थे।
कविता कुमावत, विश्वजीत, बबिता बरनवाल, आयशा बागची, भीष्म साहनी, उन्मेद कनौजिया, यहां तक कि अभिनव गोयल भी जिससे अभी तक पुलिस या वंश की कोई मुलाकात नहीं हुई थी, सब के सब उस वक्त पुलिस हेडक्वार्टर में एक हॉलनुमा कमरे में बैठे हुए थे।
आने में सबसे ज्यादा हुज्जत आयशा ने ही की थी, जिसे चौहान ने साफ धमकी दे दी कि या तो वह खुद हेडक्वार्टर पहुंच जाये, या फिर गिरफ्तार कर के लाये जाने के लिए तैयार रहे। इसी तरह भीष्म साहनी और उन्मेद कनौजिया ने भी व्यस्तता का बहाना बनाया, लेकिन पुलिस उनकी सुनने के मूड में हरगिज भी नहीं थी।
नतीजा ये हुआ कि शाम चार बजे वह हाजिरी शत प्रतिशत रही थी।
‘‘आप सभी किसी न किसी रूप में डॉक्टर बरनवाल से संबंधित थे - गरिमा ने बोलना शुरू किया - कोई दोस्त था, कोई पेशेंट, कोई खास दोस्त, कोई नर्स, साथ में उनकी वाईफ तथा बेटा भी यहां मौजूद हैं।’’
‘‘ओह अब समझी - आयशा बागची बोली, जो इस वक्त भी नशे में जान पड़ती थी - पुलिस मेहनत करने की बजाये हमसे ये जानना चाहती है कि कातिल कौन है, ऐसे काम करते हैं आप लोग? क्या मैंने मार डाला डॉक्टर को, उन्मेद ने मार दिया, भीष्म साहब ने उसका कत्ल कर दिया, या उसके बेटे और वाईफ हत्यारे दिखते हैं आपको? जबकि सच ये है कि यहां उसकी नर्स कविता को छोड़कर कोई ऐसा नहीं है जिसपर डॉक्टर की हत्या का शक किया जा सके, फिर इतनी भीड़ जुटाने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘ये क्या कह रही हैं मैडम? - कविता हड़बड़ाई सी बोली - मैं भला डॉक्टर बरनवाल का कत्ल क्यों करती?’’
‘‘क्योंकि डॉक्टर के साथ तेरा अफेयर था, सिंपल।’’
‘‘जुबान संभालकर बात कीजिए।’’
‘‘नहीं तो क्या कर लेगी?’’
कविता से जवाब देते नहीं बना।
‘‘बोल न क्या कर लेगी, अपनी जगह मुझे जेल भिजवा देगी?’’
‘‘शटअप - गरिमा ने जोर से घुड़का - बिना सोचे समझे किसी पर इल्जाम लगाने का आपको कोई हक नहीं पहुंचता मैडम। और कविता पर उस तरह का कोई इल्जाम लगाने से पहले आपको ये सोचना चाहिए कि डॉक्टर के साथ अपने अफेयर की बात आप खुद अपने मुंह से कबूल कर चुकी हैं।’’
‘‘हां था मेरा उसके साथ अफेयर जिसे मैं इसकी तरह छिपाने की कोशिश थोड़े ही कर रही हूं। आयशा जो करती है खुल्लम खुल्ला करती है, डंके की चोट पर करती है। मांस खाती हूं तो गर्व के साथ कबूल भी करती हूं कि मैं मांसाहारी हूं, ना कि इसकी तरह वेजिटेरियन होने का लेबल लगाये घूमती हूं।’’
‘‘आप मुझे बोलने देंगी? या यूं ही ही अपना और सबका वक्त जाया करेंगी?’’
‘‘नहीं वक्त की तो बहुत कमी है मेरे पास, जानती हैं क्यों?’’
‘‘नहीं, मैं नहीं जानना चाहती, इसलिए शांत होकर ध्यान से मेरी बात सुनिये और जो पूछा जाये बस उसका जवाब दीजिए, समझ गयीं आप?’’
‘‘समझ तो खैर नहीं पाई, लेकिन कोई बात नहीं, आप पूछिये जो पूछना चाहती हैं, जवाब मुझे मालूम होगा तो बता दूंगी, नहीं मालूम होगा तो इंकार कर दूंगी।’’
‘‘खास आपसे कुछ नहीं पूछना मुझे। मेरा सवाल यहां बैठे सभी लोगों के लिए है। क्या आप में से किसी को भी कुछ ऐसा पता है जो आपने अभी तक पुलिस को नहीं बताया, अगर है तो आपके पास आखिरी मौका है सच बयान करने का। बाद में अगर मुझे पता लगा कि आपने कोई बात छिपाई थी, तो उसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे।’’
‘‘परिणाम तो आपकी इस धमकी का भी अच्छा नहीं होने वाला मैडम - भीष्म साहनी बड़े ही गंभीर लहजे में बोला - वर्दी पहन ली है तो जिसे दिल होगा पुलिस हैडक्वार्टर बुलाकर धमकाना शुरू कर देंगी आप?’’
‘‘मैं सबको बस सच बोलने को कह रही हूं सर। रही बात परिणाम की, तो उस फ्रंट पर आप जो भी करेंगे, तब कर पायेंगे जब मैं आपको इस हॉल से बाहर जाने की इजाजत दूंगी। और वह इजाजत तब तक हासिल नहीं होगी जब तक की मेरे सवाल जवाब पूरे नहीं हो जाते।’’
‘‘आप जबरन हमें यहां रोककर रख सकती हैं?’’
‘‘हां रख सकती हूं।’’
‘‘अगर ऐसा है तो मैं अभी और इसी वक्त जा रहा हूं यहां से - वह उठ खड़ा हुआ - मुझे रोकने की कोशिश वही करे, जो अपनी नौकरी से ऊब चुका हो।’’
‘‘बैठ जाईये साहनी साहब - चौहान बड़े ही प्यार से बोला - आप जैसे इज्जतदार और समझदार इंसान को क्या ऐसी बच्चों जैसी हरकतें शोभा देती हैं?’’
‘‘मैं जा रहा हूं।’’ कहकर वह दरवाजे की तरफ बढ़ा।
‘‘नहीं जा सकते।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘आपको डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है।’’
‘‘व्हॉट! मैं भला उसका कत्ल क्यों करूंगा?’’
‘‘जाने दीजिए साहनी साहब - गरिमा बोली - सबके सामने बता दिया तो आपकी इज्जत का जनाजा निकल जायेगा, हां समझदार के लिए इशारे के तौर पर 26 जनवरी 2023 का दिन याद कर लीजिए, साथ में ये भी कि तब डॉक्टर एक कमरे के भीतर क्या कर रहा था, और आप उस वक्त कहां बैठे थे, बस वह बात कत्ल का मोटिव बन गयी।’’
भीष्म पहले तो हकबकाया, फिर जल्दी ही समझ गया कि गरिमा का इशारा किस तरफ था, जिसके बाद हड़बड़ाया सा बोला, ‘‘आप इतना घिनौना इल्जाम लगायेंगी?’’
‘‘आप भी तो हमारी सुनने को तैयार नहीं हैं।’’
‘‘साबित कैसे करेंगी?’’
‘‘हो सकता है ना कर पाऊं, लेकिन उससे आपका कोई भला थोड़े ही हो जायेगा। जब तक हमें मालूम पड़ेगा कि हमारा सोचा गलत है, तब तक तो आपकी इज्जत का जनाजा निकल चुका होगा, इसलिए मेरी बात मानिये और आराम से बैठ जाइये।’’
साहनी ने पल भर के लिए गरिमा को खा जाने वाली निगाहों से घूरा, फिर वह वापिस पहले वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया।
पूरा पूरा ऐतराज जाहिर करता हुआ बैठ गया।
‘‘क्या साहनी साहब - आयशा हंसती हुई बोली - आपकी तो हवा ही निकाल दी इस इंस्पेक्टर ने, ऐसा क्या कर दिया था 26 जनवरी को आपने, जिसका भेद खुलने के डर से अधमरे हुए जा रहे हैं?’’
‘‘चुप हो जा आयशा प्लीज।’’ वह धीरे से बोला।
‘‘ठीक है हो गयी।’’
‘‘अब आप लोग मेरे सवाल पर गौर कीजिए और बताईये कि आप डॉक्टर बरनवाल के बारे में ऐसा क्या जानते हैं जिसके बारे में पुलिस को अभी तक नहीं बताया है।’’
‘‘मैडम - अभिनव गोयल बोला - कम से कम मुझपर ये इल्जाम गलत होगा कि मैंने पुलिस से कोई बात छिपाई है, क्योंकि हमारी अभी तक मुलाकात नहीं हुई है।’’
‘‘सर एक मुअज्जिज शहरी होने के नाते आपका ये फर्ज बनता है कि पुलिस से को-ऑपरेट करें, किसी वारदात के बारे में कोई जानकारी हो तो पुलिस को उसकी खबर करें। लेकिन नहीं किया कोई बात नहीं, अब बताईये क्या जानते हैं।’’
‘‘सुशांत अधिकारी और दयानंद दीक्षित मिलकर डॉक्टर को ब्लेकमेल कर रहे थे।’’
‘‘कैसे पता?’’
‘‘उसने एक बार खुद वो बात बताई थी मुझे।’’
‘‘ये कहा था कि दोनों उसे ब्लेकमेल कर रहे थे?’’
‘‘नहीं, उसके शब्दों में कहूं तो बोला था कि दोनों पुलिसवाले जोंक की तरह उसका खून चूसे जा रहे थे, तब मैंने पूछा भी था कि उसने ऐसा क्या कर दिया था जिसके कारण पुलिस उसका खून चूस रही थी, मगर डॉक्टर ने जवाब नहीं दिया था, लेकिन लगा वह ब्लैकमेलिंग का ही मामला था मुझे।’’
‘‘मेरे ख्याल से मैं जानता हूं कि क्या किया था?’’ उन्मेद कनौजिया बोला।
‘‘अगर जानते हैं तो कल हुई पूछताछ में बताया क्यों नहीं?’’
‘‘क्योंकि मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कि डॉक्टर ने वह बात यूं ही नशे में कह दी थी, या सच कहा था, क्योंकि जब भी उस तरह की कोई बात कही, हम दोनों ड्रिंक ही कर रहे थे। ऊपर से टुकड़ों में कही थी, कुछ आज कह दिया तो कुछ दस दिन बाद तो कुछ महीना भर बाद। मगर अभिनव साहब की बात सुनकर अब लगने लगा है जैसे उसने सच ही बोला था।’’
‘‘क्या बोला था?’’
‘‘ये कि उसने किसी का कत्ल कर दिया था।’’
‘‘व्हॉट?’’
‘‘साफ साफ ऐसा नहीं कहा था मैडम, लेकिन उसकी बातों का मतलब वही था। उस मामले में आपके दोनों ऑफिसर्स ने डॉक्टर का साथ दिया था, और उसी लिए बाद में उसे ब्लेकमेल भी करने लगे थे।’’
‘‘किसका कत्ल किया था?’’
‘‘सॉरी मैं नहीं जानता।’’
‘‘कोई और जानता है उस बारे में?’’ गरिमा ने बाकी लोगों से पूछा।
जवाब में सन्नाटा ही छाया रहा।
‘‘किसी के पास और कुछ है बताने के लिए?’’
सन्नाटा!
‘‘बबिता जी क्या आप किसी कौशल्या नाम की औरत को जानती थीं?’’
‘‘हमारी बहन का नाम है?’’
‘‘कहां रहती है?’’
‘‘धनबाद में।’’
‘‘नहीं मैं दिल्ली में रहती कौशल्या की बात कर रही हूं, जिसका विश्वजीत की उम्र का ही एक बेटा था मनसुख। और वह दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं।’’
‘‘नहीं हम नहीं जानते मैडम, बल्कि दिल्ली में किसी से कोई जान पहचान नाहीं है हमारी। बस बहन बहनोई हैं, और बहन का नाम सुमित्रा है।’’
‘‘विश्वजीत तुम जानते हो?’’
‘‘नहीं मैडम।’’
‘‘आखिरी मौका दे रही हूं अच्छी तरह से सोच लो।’’
‘‘नहीं जानता मैडम।’’
‘‘अगर नहीं जानते थे तो नौ महीने पहले तुम्हारी मां के एकाउंट से मनसुख के एकाउंट में एक करोड़ रूपये कैसे ट्रांसफर हो गये?’’
सुनकर वहां बैठा हर कोई बुरी तरह चौंक उठा।
‘‘ये नहीं हो सकता - विश्वजीत बोला - जिसे हम जानते नहीं उसे पैसे क्यों देंगे, बल्कि देने के लिए इतने पैसे होने भी तो चाहिएं, आपको यकीन न हो तो बेशक माई का या मेरा एकाउंट चेक करा लीजिए।’’
‘‘वो काम हम पहले ही कर चुके हैं।’’
‘‘आपको जरूर कोई गलतफहमी हो रही है मैडम।’’
‘‘चलो यही सही, उस बारे में हम बाद में बात करेंगे - कहकर उसने बाकी लोगों की तरफ देखा - डॉक्टर बरनवाल की हत्या 31 जनवरी 2023 की रात नौ से ग्यारह बजे के बीच की गयी थी, अब अच्छी तरह याद कर के बताईये कि तब आपमें से कौन कहां था।’’
‘‘आप मजाक कर रही हैं मैडम?’’ उन्मेद बोला।
‘‘आपको ऐसा क्यों लगा?’’
‘‘एक साल पहले की बात भला किसे याद होगी?’’
उसी वक्त एएसआई मनोहर भीतर दाखिल हुआ और गरिमा को सेल्यूट करने के बाद बोला, ‘‘आपको थोड़ी देर के लिए बाहर आना पड़ेगा मैडम।’’
सुनकर वह उठी और चौहान को साथ आने का इशारा कर के हॉल से बाहर निकल गयी।
‘‘क्या हुआ?’’ गलियारे में पहुंचकर उसने मनोहर से सवाल किया।
‘‘भारत न्यूज पर कुछ दिखाया जा रहा।’’
‘‘डॉक्टर के कत्ल के संदर्भ में?’’
‘‘जी हां।’’
तत्पश्चात तीनों गरिमा के कमरे में दाखिल हुए जहां न्यूज एंकर की लगभग चिल्लाती हुई आवाज उनके कानों में पड़ी, ‘सात कत्ल दो अपराधी और सुराग कोई नहीं। कौन था डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल का हत्यारा? किसने लिखी सात अजीबो गरीब हत्याओं की दास्तान? क्यों नहीं सुलझा पाई पुलिस इस अनोखी पहेली को? ये हम बतायेंगे, आज रात नौ बजे हमारे खास शो ‘पर्दाफाश’ में।’
फिर उसकी आवाज सामान्य हो गयी, ‘हम अपने दर्शकों को याद दिला दें कि डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल साउथ दिल्ली के मशहूर सायकियाट्रिस्ट थे जिनकी पिछले साल 31 जनवरी को छुरा घोंपकर हत्या कर दी गयी थी। पुलिस पूरे साल भर केस की जांच पड़ताल करती रही, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। सौ से ज्यादा लोगों से पूछताछ की गयी मगर नतीजा जीरो रहा। फिर हाल ही में डॉक्टर बरनवाल का नाम उस वक्त सुर्खियों में आ गया जब उनके बेटे को अमरजीत राय नाम के स्कूल टीचर की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार कर लिया गया। वहां भी पुलिस को नाकामी का ही मुंह देखना पड़ा, क्योंकि हासिल कुछ नहीं हुआ। फिर देखते ही देखते चार कत्ल और हो गये, मगर पुलिस लाशों को ढोने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई। लेकिन हम करेंगे, भारत न्यूज करेगा, आज रात नौ बजे, देखना न भूलें ‘पर्दाफाश’ का स्पेशल एपिसोड, जो आपके होश उड़ाकर रख देगा।’’
तत्पश्चात विज्ञापन दिखाये जाने लगे तो चौहान ने रिमोट उठाकर टीवी को म्यूट कर दिया।
‘‘ऐसा कब तक चलेगा भई, कब तक हम वंश और उसकी टीम से दस कदम पीछे बने रहेंगे, आगे क्यों नहीं जा सकते?’’
‘‘आपको लगता है उन्हें कातिल की खबर लग गयी है?’’
‘‘ना लगी होती तो ‘पर्दाफाश’ एनाउंस ही नहीं किया होता।’’
‘‘क्या पता आज सिर्फ केस की डिटेल्स सामने लाने का इरादा रखते हों, और आखिर में ये कहकर बात खत्म कर दें कि बाकी की कहानी अगले शो में दिखाई जायेगी। आखिर डेड लाईन थी आज, तो कुछ ना कुछ दिखाना ही था।’’
‘‘वंश ने ऐसा पहले कितनी बार किया है चौहान?’’
‘‘सॉरी मैडम, कभी नहीं।’’
‘‘तो मान क्यों नहीं लेते कि इस बार भी नहीं करेगा, मतलब उसे पता है कि डॉक्टर बरनवाल का कातिल कौन है। वह ये भी जानता है कि अमरजीत, सुशांत अधिकारी, दयानंद दीक्षित, मनसुख और उसकी मां की हत्या किसने की।’’
‘‘ये तो छह ही हुए मैडम।’’ वहां खड़ा मनोहर बोला।
‘‘गिनती आती है मुझे।’’
‘‘सॉरी मैं तो ये कह रहा हूं कि टीवी पर सात कत्लों की बात कही जा रही है।’’
सुनकर गरिमा और चौहान हैरानी से उसका मुंह तकने लगे। फिर इंतजार किया जाने लगा विज्ञापन खत्म होने का, और वह पांच मिनट पांच सालों की तरह गुजरे।
फिर ये सामने आ गया कि मनोहर ठीक बोल रहा था।
‘‘कहीं उन्मेद का कहा सही तो नहीं है मैडम?’’
‘‘मतलब?’’
‘‘ये कि पांच साल पहले डॉक्टर ने किसी का कत्ल कर दिया था? अगर हां तो गिनती पूरी हो गयी।’’
‘‘ऐसे में तो कातिल कोई ऐसा शख्स होना चाहिए जो डॉक्टर के हाथों जान गवाने वाले का करीबी रहा हो, इतना करीबी कि पांच साल बाद भी बदला लेना उसे बराबर याद रहा, उन लोगों को भी खत्म कर दिया जिन्होंने पूरे मामले में डॉक्टर का साथ दिया था।’’
‘‘क्या बड़ी बात है मैडम?’’
‘‘बड़ी बात ये है कि अभी तक जितने भी सस्पेक्ट दिखाई दे रहे हैं, या यूं कह लो कि जिन लोगों को हमने आज यहां तलब कर रखा है, उनमें से किसी के बारे में भी नहीं सुना कि उसका कोई होता सोता पांच साल पहले कत्ल कर दिया गया हो।’’
‘‘हमने केस के उस एंगल को अभी टटोला ही कहां है मैडम।’’
‘‘ठीक है चलकर अंदर बैठे लोगों की खबर लेते हैं, देखें वंश के मुंह खोल पाने से पहले हम हत्यारे का पता लगा पाते हैं या नहीं। अगर नहीं लगा पाये तो डूब मरने जैसी बात होगी।’’
‘‘जरूरी थोड़े ही है कि कातिल उन्हीं में से कोई हो?’’
‘‘हो सकता है न हो, लेकिन सस्पेक्ट तो बस वही हैं, तो जाहिर है अभी बात भी सिर्फ उनसे ही करनी होगी हमें, चलो।’’ कहकर गरिमा और चौहान कमरे से बाहर निकल गये।
हॉल में पहुंचकर वह एक बार फिर अपनी कुर्सी पर जा बैठी।
‘‘क्या आप में से किसी का कोई दोस्त, रिश्तेदार, परिवार का सदस्य ऐसा था जो गायब हो गया हो, उसकी मौत हो गयी हो, या कत्ल कर दिया गया हो। अगर था तो मुझे बताईये, ये सोचकर बताईये कि पुलिस को उस बात की जानकारी हासिल कर लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।’’
‘‘मेरे पापा के बारे में तो आप जानती ही हैं मैडम - विश्वजीत बोला - बाकी एक चचेरा भाई था जिसे सात आठ साल पहले कुछ डकैतों ने गोली मार दी थी।’’
‘‘मेरा भाई - कविता बोली - कोविड का शिकार हो गया था।’’
‘‘मेरी वाईफ मुस्कान लापता है - भीष्म साहनी बोला - लेकिन उस बात को कई साल गुजर चुके हैं।’’
‘‘कितने साल?’’
‘‘पांच छह साल हो गये होंगे।’’
‘‘पांच या छह?’’
‘‘छह साल।’’
‘‘कहां से गायब हुई थी?’’
‘‘हरिद्वार से, गंगा स्नान के लिए गये थे हम। कुछ लोगों ने ये भी बताया था कि एक औरत को धारा में बहते देखा था, लेकिन पता कुछ नहीं लगा, उसकी गुमशुदगी भी वहीं हरिद्वार के थाने में दर्ज है।’’
‘‘कोई और कुछ बताना चाहता है?’’
‘‘नहीं मैडम - उन्मेद और अभिनव एक साथ बोल पड़े - हमारे साथ ऐसा कुछ घटित नहीं हुआ।’’
‘‘डॉक्टर के कत्ल के बारे में कोई कुछ बताना चाहता है?’’
किसी ने हामी नहीं भरी।
‘‘ठीक है फिर विश्वजीत और बबिता बरनवाल को छोड़कर बाकी लोग जा सकते हैं।’’
सुनकर सब ने चैन की सांस ली और उठकर वहां से बाहर निकल गये।
‘‘अब बोलो - गरिमा ने विश्वजीत को कस के घूरा - मनसुख को एक करोड़ रूपये क्यों दिये थे?’’
‘‘हमने नहीं दिये मैडम।’’
‘‘हमारे पास तुम्हारी मां के एकाउंट की डिटेल्स मौजूद है।’’
‘‘ये नहीं हो सकता।’’
‘‘अच्छा! - कहकर उसने कुछ कागजात उसके सामने पटक दिये - ध्यान से देखो किसका एकाउंट है ये?’’
विश्वजीत ने देखा फिर बोला, ‘‘ये कोई दूसरी बबिता बरनवाल होगी। क्योंकि माई का एकाउंट तो एसबीआई पटना में है, जबकि ये ‘एचबीएसी’ बैंक का है।’’
‘‘मत भूलो कि एकाउंट खुलवाते वक्त इनकी आईडी भी सबमिट की गयी थी, जो कि ये रही।’’ कहकर उसने बबिता बरनवाल के आधार कार्ड और पैन कार्ड की कॉपी उसके सामने रख दी, जो कि चौहान बैंक के रिकॉर्ड से निकलवाकर लाया था।
‘‘साईन में कुछ गड़बड़ है - बबिता बरनवाल बोली - ये हमारे हस्ताक्षरों की नकल की गयी है।’’
‘‘मैं मान लूंगी, बस आप इतना बता दीजिए कि किसी को आपके नाम से एकाउंट खुलवाकर क्या हासिल हो जायेगा?’’
‘‘हम नहीं जानते मैडम, लेकिन ई सच है कि साईन हमारे नहीं हैं।’’
‘‘एकाउंट कब ओपन कराया गया था मैडम?’’ विश्वजीत बोला।
‘‘क्यों पूछ रहे हो?’’
‘‘क्योंकि दिल्ली में हम कभी ज्यादा दिनों तक रुके नहीं, क्या पता जब खुलवाया गया हो हम पटना में रहे हों, फिर अपने आप साबित हो जायेगा कि ई माई का एकाउंट है या नहीं।’’
गरिमा ने वह भी चेक किया, फिर बोली, ‘‘पंद्रह फरवरी को खुलवाया गया था एकाउंट।’’
‘‘नहीं, उस वक्त तो हम दोनों पटना में थे, आप चाहें तो पता करा लीजिए मैडम, झूठ नहीं बोल रहे हम।’’
सुनकर गरिमा का दिमाग भिन्नाकर रह गया।
‘‘किसी शुभम अग्रवाल को जानते हो?’’
‘‘नहीं जानता मैडम।’’
‘‘ठीक है तुम दोनों अब जा सकते हो, लेकिन दिल्ली में ही रहना है, समझ गये?’’
‘‘जी मैडम।’’ कहकर वह उठा और अपनी मां के साथ वहां से बाहर निकल गया।’’
‘‘ये शुभम अग्रवाल अभी तक आया क्यों नहीं चौहान?’’
‘‘आता ही होगा मैडम, साढ़े चार बजे पहुंचने को कहा था जो कि बस बजने ही वाले हैं।’’
‘‘एकाउंट तो सच में फर्जी ही जान पड़ता है, क्योंकि लड़के ने बड़े ही कांफिडेंस के साथ कहा है कि उन दिनों वह और उसकी मां दोनों पटना में थे।’’
‘‘सच ही बोला है मैडम, क्योंकि डॉक्टर के कत्ल के बाद तो उन्हें फौरन यहां से भगा दिया गया था।’’
तभी एएसआई अमन सिंह इजाजत लेकर भीतर दाखिल हुआ और दोनों को सेल्यूट करने के बाद बोला, ‘‘एक खास जानकारी हाथ लगी है मैडम। बल्कि दो लगी हैं।’’
‘‘क्या?’’
‘‘डॉक्टर के कत्ल के करीब दो महीने बाद विश्वजीत और उसकी मां ने यहां पहुंचकर हौजखास वाला घर जिसमें डॉक्टर अपनी जिंदगी में रहा करता था, दस करोड़ में किसी शुभम अग्रवाल को बेच दिया था।’’
‘‘व्हॉट?’’
‘‘मैं अभी उसी से मिलकर आ रहा हूं मैडम, उसने ये भी बताया था कि चौहान साहब ने साढ़े चार बजे उसे पुलिस हेडक्वार्टर बुलाया था, कहने लगा जब वह आ ही रहा था, तो मुझे उसके पास भेजने की क्या जरूरत थी।’’
‘‘ये कैसे हो सकता है, विश्वजीत और उसकी मां ने तो बताया था कि डॉक्टर किराये के मकान में रह रहा था।’’
‘‘झूठ बोला है मैडम, बाकी अग्रवाल यहां आता ही होगा आप खुद पूछकर देख लीजिएगा। उसने तो ये भी कहा है कि उस डील में अधिकारी और दीक्षित साहब ने दोनों मां बेटों की बहुत हैल्प की थी।’’
‘‘बहुत बढ़िया, हैल्प करनी थी तभी तो उन्हें कत्ल के फौरन बाद दिल्ली से बाहर भगा दिया।’’
‘‘अग्रवाल ने तो यही बताया है मैडम।’’
‘‘ठीक है आने दो उसे, फिर देखते हैं क्या माजरा है।’’
‘‘अगर दोनों शुभम अग्रवाल एक ही हैं मैडम, तो फिर ये एकाउंट भी बबिता बरनवाल का ही होगा, और वह एक करोड़ रूपये जरूर प्रॉपर्टी के लिए हासिल किया गया एडवांस रहा होगा।’’
‘‘बाकी के नौ करोड़ कहां गये?’’
‘‘एसबीआई वाले एकाउंट में डाल दिया होगा।’’
‘‘यानि उन्हें जाने को कहकर गलती कर दी?’’
‘‘क्या फर्क पड़ता है मैडम, जरा अग्रवाल से बात हो लेने दीजिए, फिर पकड़ मंगवायेंगे दोनों को।’’
‘‘दूसरी जानकारी क्या है अमन सिंह?’’
जवाब में उसने हाथ में थमा कागजों का पुलंदा उसके सामने मेज पर रख दिया, ‘‘ये अलग अलग प्रॉपर्टीज के पेपर्स हैं मैडम, जो अधिकारी साहब और दीक्षित साहब के घर से बरामद हुए हैं, लेकिन इनमें से एक भी उनके नाम का नहीं है।’’
‘‘यानि सब के सब बेनामी खरीद हैं?’’
‘‘लगता तो यही है मैडम क्योंकि उनके घरवालों को भी इस बारे में कुछ पता नहीं था।’’
‘‘डिपार्टमेंट को बेच खाया था कमीनों ने।’’
कहने के पश्चात वह और चौहान ध्यान से उन कागजातों का मुआयना करने लगे।
तभी वंश वशिष्ठ इजाजत लेकर कमरे में दाखिल हुआ।
‘‘अरे ये तो कमाल ही हो गया।’’ गरिमा बोली।
‘‘मेरा यहां आना?’’
‘‘हां भई, मैं तो उम्मीद कर रही थी कि अपने शो से पहले आपके दर्शन नहीं होंगे, बल्कि फोन पर बात भी नहीं हो पायेगी, इसलिए कॉल करने की भी कोशिश नहीं की।’’
‘‘ट्राई कर के देखा तो होता मैडम, आपकी कॉल न लेने की गुस्ताखी भला मैं कैसे कर सकता हूं।’’
‘‘खैर मेरी तरफ से बधाई कबूल कीजिए, बताईए कैसे आना हुआ?’’
‘‘सोचा इस बार इंस्पेक्टर साहब की ये शिकायत दूर कर दी जाये कि मैं पुलिस के साथ मिलकर काम करने के बावजूद ऐन वक्त पर कल्टी मार जाता हूं।’’
‘‘यानि कातिल के बारे में बताने आये हैं?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘जबकि हमें लगता है कि हम बस उस तक पहुंचने ही वाले हैं। यकीन दिलाने के लिए एक नाम लेती हूं, शुभम अग्रवाल, अब क्या कहते हैं आप?’’
‘‘आप एकदम सही राह पर हैं मैडम, लेकिन शुभम अग्रवाल के जरिये आपको सिर्फ आधा सच पता लगेगा, जबकि मैं पूरा सच बता सकता हूं, ऐसा सच जिसे सुनकर आपके होश उड़ जायेंगा। और उसमें कम से कम एक ऐसी बात तो जरूर है जिसका पता लगाने में आपको बहुत वक्त लग जायेगा, हो सकता है ना भी लगा पायें।’’
‘‘और वह तमाम जानकारियां आप बिना किसी शर्त के हमें देने वाले हैं, है न?’’
‘‘एक रिक्वेस्ट के साथ।’’
‘‘कैसी रिक्वेस्ट?’’
‘‘जानकारी, जो वक्त रहते बस आप ही हासिल कर सकती हैं, मगर वह कोई शर्त नहीं है, क्योंकि उसके मिलने या ना मिलने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा हमें, हां मिल गयी तो हम अपनी कहानी को थोड़ा ज्यादा सजाने संवारने में कामयाब हो जायेंगे।’’
‘‘ठीक है बताईए कातिल कौन है?’’
‘‘वह एक की बजाये दो हैं।’’
‘‘एग्जैक्टी, पहला था डॉक्टर बरनवाल जिसने पांच साल पहले किसी का कत्ल कर दिया, और दूसरा उस कत्ल हुए शख्स का कोई बेहद करीबी है, जिसने बदला लेने के लिए पहले डॉक्टर, फिर अधिकारी और दीक्षित को खत्म कर दिया।’’
‘‘अमरजीत, मनसुख और कौशल्या को भी उसी ने मारा था मैडम।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘मैं साबित कर सकता हूं कि अधिकारी और दीक्षित ने कम से कम इस मामले में तो किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे थे। हां आपका बाकी का अंदाजा एकदम दुरूस्त है।’’
‘‘ठीक है फिर शुरू कीजिए।’’
‘‘कोई चाय वाय मंगवा लेतीं मैडम तो कहानी कहने में मजा आ जाता।’’
गरिमा हंसी, फिर फोन कर के किसी को तीन चाय भेजने के लिए कह दिया।
‘‘थैंक यू मैडम - वंश बोला - डॉक्टर ने पांच साल पहले किसका कत्ल किया था उसके बारे में मैं बाद में बताऊंगा, पहले ये जान लीजिए कि डॉक्टर के कत्ल के बाद क्या-क्या हुआ था।’’
‘‘जब कहानी आपकी है तो जाहिर है मर्जी भी आपकी ही चलेगी, इसलिए जैसे मर्जी वैसे सुनाईये।’’
‘‘डॉक्टर का कत्ल उस सीक्रेट विजिटर ने किया था, जो उस रात कविता के जाने के बाद उससे मिलने आया था, जो हर महीने वहां की हाजिरी भरता था। 31 की रात भी वह डॉक्टर से मिलने पहुंचा, मगर इस बार प्लॉन कर के आया था कि डॉक्टर को जिंदा नहीं छोड़ेगा, लिहाजा वहां पहुंचकर उसका कत्ल किया और मेज पर मौजूद तीन लाख रूपये जो डॉक्टर ने उसी के लिए बैंक से निकाले थे उठाकर गायब हो गया। अगली सुबह कविता क्लिनिक पहुंची तो उसका आमना-सामना डॉक्टर की लाश से हुआ, जिसके बाद उसने पुलिस को इत्तिला दी और उसके बाद अधिकारी ने उसके साथ वह सबकुछ किया जो वह बताती है कि किया था।’’
‘‘यानि रेप वाकई में हुआ था?’’
‘‘जी हां, और इस बात में कोई शक नहीं है कि अपनी जान से हाथ धो चुके आपके दोनों ऑफिसर उसी सजा के हकदार थे जो हत्यारे ने उन्हें दी। मतलब अव्वल दर्जे के लालची ऐसे इंसान जो दौलत की खातिर किसी भी हद तक जा सकते थे।’’
‘‘मुद्दे पर आईये वंश साहब, अधिकारी और दीक्षित के किरदारों को स्याह रंग में रंगकर भी अब क्या हासिल कर लेंगे आप?’’
‘‘ठीक कहती हैं कुछ हासिल नहीं होगा। बहरहाल डॉक्टर की लाश बरामद होने के बाद उन दोनों के मन में बड़ा लालच घर कर गया, करोड़ों का लालच, जिसके लिए जरूरी था कि विश्वजीत और बबिता बरनवाल दिल्ली में कदम न रखने पायें। आखिरकार उन दोनों में से किसी ने विश्वजीत को कॉल करके धमकी दी कि दिल्ली का रुख करने की कोशिश भी न करें, वरना अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे। क्योंकि जानते थे डॉक्टर के कत्ल की खबर विश्वजीत को लगकर रहनी थी, भले ही टीवी पर न्यूज देखकर ही क्यों न लगती।’’
‘‘उसके बावजूद यहां पहुंच गये तो जाहिर है धमकी में नहीं ही आये होंगे।’’
‘‘नहीं पहुंचे थे मैडम।’’
‘‘आप मजाक कर रहे हैं?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘कैसे मुमकिन है वंश साहब, जबकि थाने में विश्वजीत की तरफ से रिपोर्ट लिखवाई गयी थी, पुलिस ने उससे पूछताछ भी की थी, और डॉक्टर बरनवाल का अंतिम संस्कार भी वही कर के गया था। फिर दिल्ली नहीं आया होता तो अधिकारी और दीक्षित की धमकी वाली ऑडियो रिकॉर्डिंग का क्या मतलब बनता है, या आप ये कहने वाले हैं कि वह रिकॉर्डिंग फर्जी है?’’
‘‘नहीं रिकॉर्डिंग एकदम जेनुईन है।’’
‘‘दोनों बातें कैसे मुमकिन हैं?’’
‘‘हैं मैडम, क्योंकि अधिकारी और दीक्षित ने दिमाग एकदम कमाल का पाया था। ऐसा षड़यंत्र रच दिखाया जिसके बारे में सोचकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।’’
‘‘पहेलियां मत बुझाईये।’’
‘‘थाने में पिता के कत्ल की रिपोर्ट विश्वजीत ने नहीं लिखाई थी मैडम, ना ही डॉक्टर का अंतिम संस्कार उसने किया था।’’
‘‘फिर किसने किया?’’
‘‘मनसुख ने।’’
‘‘व्हॉट?’’
जैसे आस-पास कहीं बम फटा हो, गरिमा और चौहान हकबकाकर उसका मुंह तकने लगे।
‘‘उस काम के लिए दोनों के फर्जी आधारकार्ड और पेन कॉर्ड तैयार कराये गये, और इस बात का खास ख्याल रखा गया कि आधार कॉर्ड पर फोटो भले ही मनसुख और कौशल्या की हो, लेकिन आधार नंबर वही हो, जो कि असल में विश्वजीत और बबिता बरनवाल का था।’’
‘‘इतनी बड़ी हेर फेर कर के हासिल क्या हुआ उन्हें?’’
‘‘मैं वहीं पहुंच रहा हूं मैडम। थाने में कंप्लेन दर्ज करवाने के बाद दोनों मां बेटे मॉडल टाउन लौट गये, फिर आपके ऑफिसर्स ने अगले रोज उनके ही हाथों लाश का अंतिम क्रिया कर्म भी करवा दिया। उस बात की तरफ मेरा ध्यान तब गया जब मनसुख और कौशल्या की लाशें देखकर कविता ये कहने लगी कि असल में वह विश्वजीत और बबिता बरनवाल की लाशें थीं। जबकि वह दोनों तो जिंदा थे, यानि कहीं न कहीं गड़बड़ जरूर थी। और वह गड़बड़ यही थी कि डॉक्टर के कत्ल के बाद कविता जिस विश्वजीत और बबिता से मिली थी, वह असल में मनसुख और कौशल्या थे।’’
‘‘कमाल है।’’
‘‘आगे मुझे इस बात ने बुरी तरह चौंका कर रख दिया कि डॉक्टर के हौजखास वाले मकान को बेचने में अधिकारी और दीक्षित ने बबिता बरनवाल की बहुत हैल्प की थी, जो कि मेरी समझ से बाहर की बात थी। फिर विश्वजीत खम ठोंककर कहता था कि वह मकान किराये का था। इसलिए उसे बेचने का कोई मतलब नहीं बनता था।’’
‘‘हमसे भी कहा था, तो क्या झूठ बोला था?’’
‘‘नहीं, क्योंकि उसे यही बताया गया था।’’
‘‘किसलिए?’’
‘‘ताकि उस मकान को बेचकर उसकी कीमत अपने काबू में की जा सके।’’
‘‘व्हॉट?’’
‘‘ये सच है मैडम, डॉक्टर का हौजखास वाला मकान शुभम अग्रवाल को बबिता बरनवाल ने नहीं बल्कि कौशल्या ने बेचा था, और उस नामुमकिन से दिखने वाले काम को मुमकिन बनाया आपके दोनों आफिसर्स ने।’’
‘‘कैसे?’’
‘‘बबिता बरनवाल के रूप में कौशल्या को उसके उत्तराधिकारी के तौर पर किसी वकील के मार्फत कोर्ट में पेश कर के डॉक्युमेंट्स इत्यादि सबमिट कर दिये गये। जिसके बाद जल्दी ही कोर्ट ने बबिता बरनवाल को - असल में कौशल्या को - उसकी संपत्ति का लीगल हॉयर नियुक्त कर दिया। मतलब डॉक्टर की संपत्ति पर अब कौशल्या का कब्जा था। और इतने बड़े षड़यंत्र के लिए उन्हें बस दो सावधानियां बरतनी थीं, नंबर एक बबिता के रूप में कौशल्या की आईडी फेक न साबित हो जाये, और नंबर दो ये कि कोई दूसरा उस प्रॉपर्टी पर क्लेम लगाने न पहुंच जाये। दूसरा काम बस विश्वजीत और उसकी मां ही कर सकते थे, जिन्हें दिल्ली ना आने की सख्त चेतावनी पहले ही जारी की जा चुकी थी।’’
‘‘मुझे तो ये मुमकिन नहीं लगता वंश साहब - चौहान बोला - भला इतने बड़े स्तर का फ्रॉड कैसे मुमकिन था?’’
‘‘किया बराबर गया था, कैसे कामयाब हुए उसकी डिटेल्स तो आप लोग ही निकाल पायेंगे। लेकिन मुश्किल जैसा कुछ नहीं था। हां मुश्किल तब जरूर खड़ी हो सकती थी, जब असली विश्वजीत और बबिता बरनवाल दिल्ली पहुंचकर उसपर अपना अधिकार जताने की कोशिश करते। जिसकी संभावना को पहले ही पूरी तरह खत्म किया जा चुका था। फिर ये भी तो सोचिये कि वैसा करने वाले कौन लोग थे? ऐसे लोग जिन्हें आपके डिपार्टमेंट में बहुत काबिल ऑफिसर समझा जाता था। फिर भी यकीन न आ रहा हो तो शुभम अग्रवाल से विश्वजीत और उसकी मां का आमना-सामना करा कर देखिये, मैं गारंटी करता हूं कि वह दोनों को पहचानता होने से साफ इंकार कर देगा।’’
उसी वक्त अग्रवाल वहां पहुंच गया।
गरिमा ने उसे बैठने को कहा फिर थोड़ी पूछताछ की और विश्वजीत तथा बबिता की फोटो दिखाकर हाथ के हाथ कंफर्म भी कर लिया कि वह उन दोनों से कभी नहीं मिला था।
‘‘प्रॉपटी की कीमत जो कि दस करोड़ थी - गरिमा ने पूछा - वह आपने एकमुश्त दी थी अग्रवाल साहब?’’
‘‘जी नहीं, पहले एक करोड़ एडवांस दिया था, बाद में नौ करोड़ इकट्ठे पे किये थे।’’
‘‘एकाउंट ट्रांसफर किया था?’’
‘‘नहीं दोनों बार चेक ही जारी किया था।’’
‘‘बबिता बरनवाल के नाम से? या बाद का नौ करोड़ वाला चेक किसी और नाम से काट दिया था?’’
‘‘नहीं मैडम, हालांकि वह चाहती वही थी, लेकिन मैं तैयार नहीं हुआ, क्योंकि बड़ी रकम का मामला था।’’
‘‘किसके नाम से चाहती थी?’’
‘‘मैंने पूछा ही नहीं, उसकी बात सुनते ही साफ इंकार कर दिया, तब वह अपने नाम से चेक लेने को राजी हो गयी थी।’’
‘‘पेपर्स तो ठीक से चेक किये थे न?’’
‘‘जी वकील से कराया था, जिसने स्पष्ट कहा था कि उनमें कोई गड़बड़ नहीं थी। प्रॉपर्टी पहले डॉक्टर बालकृष्ण बरनवाल के नाम से थी, जो कि उत्तराधिकारी के रूप में बबिता बरनवाल को हासिल हुई थी। उसके बारे में भी उसने सीधा कोर्ट से जानकारी हासिल की थी।’’
‘‘ठीक है अग्रवाल साहब, आने के लिए थैंक्स।’’
‘‘कोई प्रॉब्लम है मैडम?’’
‘‘आगे चलकर आ सकती है।’’
‘‘कैसी प्रॉब्लम?’’
‘‘आपको इंफॉर्म कर दिया जायेगा, अब आप जा सकते हैं।’’
सुनकर भारी फिक्र के हवाले, मन मन के कदम रखता वह कमरे से बाहर निकल गया।
‘‘आगे बताईये वंश साहब।’’
‘‘इस गड़बड़ी का शक तो मुझे शुभम अग्रवाल के बेटे से बात करने के बाद ही हो गया था मैडम, लेकिन माजरा समझ से बाहर था, जिसका असल मतलब तब समझ में आया जब मनसुख और कौशल्या के घर से ऐसे आधार कार्ड और वोटर कार्ड बरामद हो गये, जिनका नंबर और नाम तो विश्वजीत तथा बबिता का था, मगर फोटो मनसुख और कौशल्या की लगी हुई थी।’’
‘‘एक बात समझ में नहीं आई।’’
‘‘क्या मैडम?’’
‘‘अगर नौ करोड़ की फाईनल पेमेंट का चेक बबिता बरनवाल के नाम से लिया गया था, तो उसे भुनाया क्यों नहीं गया, क्योंकि वह रकम उसके एकाउंट में तो नहीं दिखाई दी हमें?’’
‘‘जरूर उसी नाम से कोई और एकाउंट खुलवा लिया गया होगा, जो अधिकारी या दीक्षित में से किसी के कब्जे में रहा होगा। आगे उन पैसों का क्या किया, ये तो वही दोनों बता सकते थे।’’
‘‘नहीं हम भी बता सकते हैं - कहकर उसने अपने सामने मेज पर रखे कागजों के पुलंदे की तरफ इशारा किया - ये सब बेमानी प्रापर्टी खरीदने के कागजात हैं जो हमें अधिकारी और दीक्षित के घर से मिले हैं।’’
‘‘ओह तो नौ करोड़ रूपये प्रॉपर्टी में इंवेस्ट कर दिये थे?’’
‘‘अब तो यही लगता है, लेकिन एक बात हैरान कर देने वाली है।’’
‘‘क्या मैडम?’’
‘‘बबिता बरनवाल के फर्जी एकाउंट की डिटेल्स है हमारे पास, जिसमें फोटो बबिता की ही लगी हुई है ना कि कौशल्या की, वो कैसे मुमकिन हो पाया होगा?’’
‘‘घर बुलाकर खुलवा लिया होगा मैडम, फिर फोटो पर ध्यान देने की फुर्सत भला किसे होगी। कहने का मतलब है वह कोई इतना बड़ा काम नहीं था जो किया ही न जा सके। ये भी हो सकता है कि एकाउंट ओपन करने वाला कोई जानकार रहा हो, जिसे कुछ पैसे देकर उस काम के लिए तैयार कर लिया हो।’’
‘‘ठीक है आगे बढ़िये।’’
‘‘सबकुछ बहुत मजे में चल रहा था मैडम, अधिकारी और दीक्षित का षड़यंत्र भी कामयाब रहा, मगर प्रॉब्लम फिर भी उठ खड़ी हुई। और वह प्रॉब्लम बना उस शख्स का बेटा जिसे डॉक्टर ने पांच साल पहले खत्म कर दिया था। उसने बाप के हत्यारे से और हत्या में उसका साथ देने वालों से बदला लेने का फैसला किया और 31 जनवरी की रात डॉक्टर को खत्म कर दिया। खत्म कर के उसने साल भर लंबा इंतजार किया, इसलिए किया ताकि बाद में कत्ल होने वाले लोगों का कोई रिश्ता डॉक्टर की हत्या के साथ न जोड़ा जा सके। आगे सबसे पहले उसने अमरजीत को खत्म किया, उसके बाद अधिकारी और दीक्षित का कत्ल कर दिया.....
‘‘उससे पहले मनसुख और उसकी मां का?’’
‘‘नहीं, क्योंकि उनके कत्ल वाली रात दीक्षित की मोबाईल लोकेशन उसी इलाके की पाई गयी थी, और वह मोबाईल उसके जीते जी हत्यारे के हाथ नहीं लग सकता था।’’
‘‘आपका मतलब है दीक्षित को खत्म करने के बाद वह जानबूझकर उसका मोबाईल अपने साथ ले गया था, ताकि घटनास्थल पर उसकी हाजिरी दर्ज करा पाता?’’
‘‘जी हां, और जरा हिम्मत तो देखिये उसकी, मनसुख और कौशल्या को खत्म करने के बाद वह वापिस साकेत पहुंचा और दीक्षित का मोबाईल उसकी लाश के पास छोड़कर निकल गया। कातिल अगर दीक्षित रहा होता तो इतनी बड़ी गलती हरगिज नहीं करता कि मोबाईल ऑन रखकर उन दोनों की हत्या करने पहुंच जाता।’’
‘‘ठीक है आगे बढ़िये।’’
‘‘आगे की बजाये अब मैं छह-सात साल पीछे लौट रहा हूं। डॉक्टर बरनवाल ने वर्ष 2010 में एमडी की डिग्री हासिल की और पटना में गांधी मैदान के सामने क्लिनिक खोलकर बैठ गया, जो कुछ खास नहीं चलता था।’’
‘‘आपको कैसे पता?’’
‘‘पूछताछ से पता लगा मैडम, और कैसे लगता।’’
‘‘पटना हो भी आये आप?’’ गरिमा ने हैरानी से पूछा।
‘‘जी हां कल पूरे दिन वहीं था, अपना मोबाइल भी छिनवा आया।’’
‘‘ओह।’’
‘‘वहां डॉक्टर के क्लिनिक में उमेश अहिर नाम का एक कंपाउंडर काम करता था जो साईंस से पोस्ट ग्रेजुएट था और बड़ा ही होशियार बताया जाता है। वह दो सालों से डॉक्टर के साथ काम कर रहा था। मगर एक दिन उसने हिमाकत की और किसी पेशेंट को खुद ही दवा लिख मारी। डॉक्टर को पता लगा तो उसने जमकर उसकी पिटाई की और उसी वक्त अपने क्लिनिक से निकाल बाहर किया।’’
‘‘उस बात का केस में कोई दखल है?’’
‘‘जी बहुत बड़ा दखल है, तभी तो जिक्र कर रहा हूं।’’
‘‘ओके बताईये।’’
‘‘उमेश ने उसे देख लेने की धमकी दी और कुछ दिनों बाद अपनी कोई प्रॉपर्टी बेचकर पटना से गायब हो गया। यूं गायब हो गया कि आज तक लौटकर वापिस नहीं गया। लेकिन मजे की बात ये है कि उसके गायब होने के बाद उसके घर में नोट बरसने लगे। मनसुख और कौशल्या की तरह उसके घरवालों ने भी शानदार मकान बना लिया, एक गाड़ी खरीद ली, और ठाठ से रहने लगे, जबकि करता धरता कोई कुछ नहीं है।’’
‘‘यानि पैसे उमेश भेजा करता था?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘पटना से निकलकर कहीं से ढेर सारी दौलत हाथ लग गयी उसके?’’
‘‘इकट्ठे नहीं लगी, लेकिन लगी बराबर थी।’’
‘‘कहीं पांच साल पहले डॉक्टर बरनवाल के हाथों जान गंवाने वाला उमेश अहिर ही तो नहीं था वंश साहब?’’
‘‘नहीं था, हालांकि उमेश का नाम सामने आने के बाद पहला ख्याल मेरे जेहन में वही आया था, और ऐन उसी वजह से उलझकर भी रह गया - कहकर उसने पटना अप डाउन की पूरी कहानी विस्तार से उसे सुना दी, फिर बोला - मोबाईल छिन जाने के बाद मैं वापिस सुनंदा के घर पहुंचा और उससे रिक्वेस्ट कर के वहां टंगी तस्वीर की एक फोटो पुनीत के मोबाईल पर सेंड करा दिया। उस वक्त भी मुझे उस लड़की से कोई सवाल करना नहीं सूझा। मगर दो घंटे पहले जब मैं अपनी टीम के साथ केस डिस्कस कर रहा था, तो देखते ही देखते हम इस नतीजे पर पहुंच गये कि पांच सालों पहले डॉक्टर बरनवाल ने उमेश की हत्या कर दी थी, और कातिल उसी का कोई करीबी शख्स था। तब हमें उसकी भतीजी सुनंदा से ये पता करने का ख्याल आया कि उसके चाचा का कोई दोस्त या उनका कोई रिश्तेदार, कौन ऐसा था जो इन दिनों दिल्ली में रह रहा था।’’
‘‘क्या बताया उसने?’’
‘‘यही कि ऐसा कोई नहीं था।’’
‘‘सुनकर आप तो निराश हो उठे होंगे?’’
‘‘नहीं, क्योंकि वह कॉल करने से ठीक पहले कातिल का चेहरा मेरी आंखों के सामने नाच उठा था। और तब मैंने खुद को इस बात के लिए जी भरकर कोसा कि उतनी मामूली सी बात पहले मेरी समझ में क्यों नहीं आई?’’
‘‘क्यों नहीं आई?’’
‘‘क्योंकि ए की जगह बी, और बी की जगह एक खड़ा था।’’
‘‘इसका क्या मतलब हुआ?’’
‘‘हुआ ये मैडम कि लड़की का इंकार सुनकर मैंने उससे एक नया सवाल किया? ये कि तस्वीर में उसका चाचा कौन था और डॉक्टर कौन था? उसने कहा दाईं तरफ डॉक्टर बरनवाल था, जबकि बाईं तरफ उसका चाचा था।’’
‘‘इसमें जिक्र के काबिल क्या है?’’
‘‘ये कि लेफ्ट में डॉक्टर खड़ा था।’’
‘‘मतलब उसने डॉक्टर की तस्वीर को उमेश की तस्वीर बता दी?’’
‘‘नहीं उसने उमेश की तस्वीर को उमेश की तस्वीर बताया था मैडम, लेकिन मुझे वह डॉक्टर की तस्वीर दिखाई दी।’’
‘‘इस गतलफहमी की वजह?’’
‘‘कोई गलतफहमी नहीं थी मैडम, क्योंकि वह तस्वीर उस डॉक्टर की ही थी, जिसे एक साल पहले दिल्ली में कत्ल कर दिया गया था।’’
‘‘क्यों पहेलियां बुझा रहे हैं, साफ साफ क्यों नहीं बता देते?’’
‘‘सुनकर आप हैरान रह जायेंगी मैडम।’’
‘‘मैं होना चाहती हूं, बताईये क्या गड़बड़ थी उस तस्वीर में?’’
‘‘ये कि डॉक्टर डॉक्टर नहीं था और उमेश उमेश नहीं था।’’
गरिमा ने घूरकर देखा उसे।
‘‘मेरा मतलब है मैडम कि एक साल पहले जिस डॉक्टर का वसंतकुंज के इलाके में कत्ल कर दिया गया, असल में वह उमेश अहिर था ना कि डॉक्टर बरनवाल।’’
सुनकर गरिमा और चौहान के रोंगटे खड़े हो गये। दोनों हकबकाये से वंश की शक्ल देखने लगे, जैसे अचानक ही उसके सिर पर सींग निकल आई हो।
‘‘आप तो लगता है आज हॉर्ट फेल करा के ही दम लेंगे, लेकिन ये कैसे मुमकिन था? अगर वह डॉक्टर नहीं था तो लोगों का इलाज कैसे कर रहा था, कैसे इतना पॉपुलर हो गया था?’’
‘‘उसकी कई वजहें रही हो सकती हैं मैडम। लड़का होशियार था इसलिए डॉक्टर के साथ दो सालों तक काम कर के सारे गुण सीख लिए। फिर सायकियाट्रिस्ट को किसी का ऑपरेशन वगैरह तो करना नहीं होता, वो तो बस काउंसलिंग करते हैं, दवाईयां लिखते हैं। जो कि दो सालों में उमेश अहिर ने बरनवाल के साथ रहकर बहुत अच्छी तरह से सीख लिया था। फर्जी डॉक्टरों की भरमार है हमारे देश में है, समझ लीजिए उमेश अहिर भी उनमें से ही एक था। रही बात उसकी पॉपुलरिटी की तो उसे आप उमेश की किस्मत या इत्तेफाक कह सकती हैं।’’
‘‘वंश साहब आप सच ही बयान कर रहे हैं न, या महज हमें चौंकाने के लिए कहानियां सुनाये जा रहे हैं?’’
‘‘नहीं सच बोल रहा हूं, ऐसा सच जिसे आप लोग जरा सी कोशिश कर के ही साबित करने की पोजिशन में पहुंच जायेंगे।’’
‘‘ओके, फिर क्या हुआ?’’
‘‘पूरी कहानी मैंने आपको सुना दी, अब आप बताईये कि क्या कातिल का नाम सूझता है आपको?’’
‘‘नहीं सूझता।’’
‘‘चौहान साहब आप कुछ कहना चाहेंगे?’’
‘‘नहीं, मैं क्या मैडम से ज्यादा समझदार हूं?’’
‘‘आप ही क्यों नहीं बता देते?’’
‘‘विश्वजीत।’’ नया धमाका।
‘‘व्हॉट?’’ गरिमा और चौहान उछल ही पड़े।
‘‘विश्वजीत बरनवाल मैडम, जिसपर आपका बार बार शक जा रहा था, हमारा भी जा रहा था लेकिन उसने जो षड़यंत्र रचा था उस तक हमारी निगाहें नहीं पहुंच पा रही थीं।’’
‘‘छहों हत्यायें उसने की हैं?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘यकीन नहीं आता।’’
‘‘कर लीजिए क्योंकि वही सच है - कहकर उसने आगे बताना शुरू किया - करीब पांच साल पहले डॉक्टर बरनवाल को किसी तरह ये बात मालूम पड़ गयी कि उमेश अहिर दिल्ली जाकर डॉक्टर बन गया था, खुद का क्लिनिक भी खोल लिया था, जो उसके लिए बेहद हैरानी की बात थी। बल्कि जानकारी देने वाले ने ये भी बता दिया होगा कि उमेश उसी के नाम से क्लिनिक चला रहा था, वरना उसने दिल्ली का फेरा लगाने की कोशिश नहीं की होती। आगे वह दिल्ली पहुंचकर उमेश अहिर से मिला, उसकी जी भरकर लानत मलानत की, इसलिए भी क्योंकि अपने केबिन में वह डॉक्टर बरनवाल के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की फोटो लगाये बैठा था। उस फोटो में एक खास बात थी मैडम जो हम कभी नोट नहीं कर पाये।’’
‘‘ऐसा क्या था?’’
‘‘मैं वसंतकुंज थाने में साल भर पहले की तस्वीरों में ये देखकर बहुत हैरान हुआ था कि वह सर्टिफिकेट यूं ही, बिना किसी लेमिनेशन या फ्रेम किये उसके केबिन में टंगा था और बहुत गंदा हो चुका था, मगर वजह तब भी मेरी समझ में नहीं आई।’’
‘‘क्या वजह थी?’’
‘‘उस सर्टिफिकेट पर डॉक्टर बरनवाल की फोटो लगी थी, जिसे उसने जानबूझकर इतना गंदा कर दिया था कि किसी की पहचान में न आये। गंदी तस्वीर फ्रेम में होती तो किसी को हैरान कर सकती थी कि गंदी कैसे हो गयी, मगर यूं ही टांगा होने के कारण जिसकी भी नजर पड़ती यही सोचता कि टंगे टंगे गंदी हो गयी थी। यहां तक कि एक बार स्वास्थ्य विभाग ने डॉक्टर्स की डिग्री जांचने का अभियान भी चलाया था जिसमें उसकी डिग्री की भी जांच पड़ताल की गयी थी, मगर किसी को ये नहीं सूझा कि डिग्री किसी और की थी, जबकि इस्तेमाल कोई दूसरा कर रहा था।’’
‘‘आगे क्या हुआ?’’
‘‘उस बारे में तो बस अंदाजा ही बयान कर सकता हूं।’’
‘‘मैं सुन रही हूं।’’
‘‘डॉक्टर बरनवाल ने उमेश को या तो गिरफ्तार करा देने की धमकी दी, या फिर क्लिनिक फौरन बंद कर देने का हुक्म दनदना दिया होगा, जिसके लिए वह तैयार नहीं हुआ क्योंकि धंधे में चांदी काट रहा था। प्रत्यक्षतः उसने डॉक्टर की बात मान लेने का दिखावा किया, और अमरजीत के साथ मिलकर, या उसके जरिये डॉक्टर की हत्या करा दी, क्योंकि मैं नहीं समझता कि कत्ल में आपके दोनों ऑफिसर शामिल रहे होंगे। बल्कि मेरी कही बातों के अलावा भी उस रोज कुछ घटित हुआ हो सकता है।’’
‘‘अमरजीत ने उसका साथ क्यों दिया?’’
‘‘क्योंकि दोनों में स्कूल के जमाने से ही गहरी दोस्ती थी। बाद में डॉक्टर ने फ्लैट खरीदने के लिए उसे एक करोड़ रूपये भी दिये थे, जो मेरे ख्याल से कत्ल में उसका साथ देने की उजरत ही रही होगी। अगर नहीं थी तो ये कहकर दे दिये होंगे कि उसके पास जब हो जायें तब लौटा दे, मतलब उधारी चुकता करने का कोई दबाव उमेश की तरफ से उसपर नहीं डाला जाने वाला था।’’
‘‘यानि असल में वह उमेश अहिर का दोस्त था ना कि डॉक्टर बरनवाल का?’’
‘‘जी हां, डॉक्टर बरनवाल को तो शायद वह जानता भी नहीं होगा।’’
‘‘आगे बढ़िये?’’
‘‘डॉक्टर दिल्ली में था और दोनों मां बेटे उससे संपर्क नहीं कर पा रहे थे। तब एक दिन विश्वजीत और उसकी मां ये जानने दिल्ली आ गये कि बरनवाल की कॉल क्यों नहीं लग रही थी। यहां पहुंचकर उमेश से बात की तो उन्हें शक हो गया कि जरूरत उसी ने डॉक्टर के साथ कुछ कर करा दिया था। जिसके बाद दोनों थाने पहुंचे, जहां उनकी मुलाकात अधिकारी से हुई जो उनकी कंप्लेन पर उमेश से पूछताछ करने पहुंचा, और वहां डॉक्टर के साथ कोई बड़ी डील कर ली, या वह डील पहले ही की जा चुकी थी। फिर विश्वजीत और बबिता बरनवाल को फौरन दिल्ली से वापिस लौट जाने के लिए कह दिया गया। मगर इतना तो वे लोग भी समझते थे कि दोनों पटना पहुंचकर चुप नहीं बैठने वाले थे, इसलिए दोनों मां बेटों के साथ भी कोई न कोई सौदा डॉक्टर ने जरूर किया होगा। बल्कि किया ही था, तभी तो हर महीने विश्वजीत दिल्ली पहुंचकर उससे तीन लाख रूपये ले जाया करता था।’’
‘‘उसने सौदा किया और दोनों मान गये?’’
‘‘उस वक्त तो मान ही गये होंगे, बल्कि आगे भी मान ही रहे थे। फिर ये भी तो सोचिये मैडम कि उन दिनों विश्वजीत की उम्र बहुत कम थी, 16-17 साल से ज्यादा का नहीं रहा होगा। इसलिए भी दोनों मां बेटे शांत होकर बैठ गये, मगर बदले की आग उनके भीतर बराबर सुलगती रही। वह आग जिसने आगे चलकर सबकुछ जलाकर खाक कर दिया।’’
‘‘यानि विश्वजीत ने जो ऑडियो अदालत में पेश की थी वह छह साल पहले की थी?’’
‘‘एग्जैक्टली।’’
‘‘पैसे लेने हर महीने विश्वजीत को दिल्ली क्यों आना पड़ता था, उमेश वह रकम सीधा उसके एकाउंट में ही क्यों नहीं भेज देता था?’’
‘‘मेरे ख्याल से इसी बहाने वह लड़के को परखते रहना चाहता होगा। मतलब ये जानने की कोशिश करता होगा कि कहीं विश्वजीत उसके खिलाफ जाने के मंसूबे तो नहीं बना रहा था? अगर बना रहा होता तो उमेश ने उससे पीछा छुड़ाने का कोई न कोई रास्ता पक्का निकाल ही लेना था।’’
‘‘ओह।’’
‘‘बीच में एक कहानी और है मैडम जिसका जिक्र करना मैं भूल गया।’’
‘‘क्या?’’
‘‘उमेश के कत्ल की योजना बनाने के बाद विश्वजीत अपनी मां के साथ हाजीपुर चला गया, जहां उसका ननिहाल है। इसलिए क्योंकि पटना से वैसा करने में भेद खुलने का खतरा था, वहां किसी को ये बात पता लग सकती थी कि 31 की रात वह अपने घर पर नहीं था। मगर हाजीपुर से दिल्ली अप डाउन मारने में उसे कोई प्रॉब्लम नहीं थी, क्योंकि वहां कोई अचानक उससे मिलने नहीं आ जाने वाला था। और दिल्ली पहुंचा भी वह पक्का फ्लाईट से ही होगा क्योंकि वक्त की कमी बराबर थी उसके पास।’’
‘‘क्यों थी?’’
‘‘क्योंकि डॉक्टर के कत्ल की बात सामने आने के बाद दिल्ली से कोई न कोई कॉल उसके पास पहुंचकर रहनी थी। जिसे अटैंड न करना अपने आप में शक पैदा करने वाली बात होती, और दिल्ली में बैठकर अटैंड करता तो कल को उसका भांडा फूट जाना तय था।’’
‘‘ठीक है, मैं समझ गयी।’’
‘‘31 जनवरी को दिल्ली पहुंचकर उसने उमेश की हत्या की और एक फरवरी को अर्ली मॉर्निंग की फ्लाईट से पटना वापिस लौट गया। फिर अधिकारी ने उसे कॉल कर के कहा कि वह दिल्ली आने की कोशिश हरगिज भी न करे, लेकिन उस बात का दिखावा जरूर करे। और सबको बता दे कि 31 जनवरी को दिल्ली में उसके पिता की हत्या कर दी गयी थी। ये भी कि वह दिल्ली में ही उसका अंतिम संस्कार कर आया था।’’
‘‘विश्वजीत के लिए उसकी बात मानना क्यों जरूरी था, अब तो उसे उमेश के जरिये हर महीने कोई माली इमदाद भी नहीं हासिल होनी थी?’’
‘‘जरूरी इसलिए था मैडम क्योंकि उसके इरादे खतरनाक थे। वह अपना बदला पूरा करना चाहता था। ऐसे में जो बात न्यूज के जरिये पूरे देश भर में फैल चुकी थी, उसके बारे में वह चुप रहता तो सवाल नहीं उठ खड़े होते? वैसे भी कानून के जरिये इंसाफ हासिल करने की तो उसकी कोई मर्जी थी नहीं। होती तो छह साल पहले पटना लौटने के बाद ही उसने अदालत का दरवाजा खटखटा दिया होता।’’
‘‘बरनवाल के कत्ल के बाद उसे जिंदा क्यों छोड़ दिया उमेश अहिर ने, कैसे इतने बड़े राजदार पर भरोसा कर सकता था वह?’’
‘‘पहली बात तो ये कि अकेले विश्वजीत को खत्म कर के उसे कुछ हासिल नहीं होने वाला था। उसे खत्म करता तो उसकी मां को भी मारना पड़ जाता, और तीन-तीन हत्यायें कर के बच निकलना कोई आसान काम नहीं होता। दूसरी संभावना ये है कि अधिकारी और दीक्षित ने लड़के को धमका दिया होगा कि उसने पटना पहुंचकर उमेश के खिलाफ एक कदम भी उठाया, तो इधर दिल्ली में उसके मौसा मौसी को खत्म कर दिया जायेगा। या ऐसी ही कोई और धमकी उछाल दी होगी। फिर जरा सोचकर देखिये कि विश्वजीत को बस शक ही तो था कि उमेश ने उसके बाप की हत्या कर दी थी, कत्ल होते अपनी आंखों से तो देखा नहीं था उसने। ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पटना जाकर बाप की गुमशुदगी दर्ज करा सकता था, क्योंकि दिल्ली में उसकी हत्या हो चुकी होने की बात कहता तो सबसे पहला सवाल यही उठ खड़ा होता कि उसे कैसे पता? जवाब में वह सारी कहानी सुनाता तो पुलिस का अगला सवाल होता कि अगर उसे मालूम था कि उसके पिता का कत्ल हो गया है तो उसने दिल्ली में उसकी कंप्लेन क्यों नहीं दर्ज कराई। मतलब पटना पुलिस ज्यादा से ज्यादा उसके बाप की गुमशुदगी दर्ज कर सकती थी, जिससे उसका कोई अला भला नहीं होने वाला था।’’
‘‘वह उमेश को एक्सपोज भी तो कर सकता था?’’
‘‘कर सकता था, उन हालात में उसके लिए डॉक्टरी करते रह पाना मुमकिन नहीं रह जाता, मगर वह ये कहकर मामले को बहुत हद तक अपने हक में कर लेता कि क्लिनिक डॉक्टर बरनवाल का ही था, वह तो महज कंपाउंडर था। उस स्थिति में दोनों मां बेटों का बड़ा नुकसान ये होता कि हर महीने मिलने वाली तीन लाख की रकम से वंचित हो जाते। जबकि जुबान बंद रखकर पांच सालों में डेढ़ करोड़ से कहीं ज्यादा की रकम हासिल कर चुके होंगे। उमेश का सोचा इसलिए भी पूरा हो गया, क्योंकि विश्वजीत और उसकी मां के कलेजे में तो बदले की आग धधक रही थी, जिसके लिए सही वक्त का इंतजार जरूरी था।’’
‘‘कत्ल की बात भले ही किसी को न बताते लेकिन छह साल पहले इतना तो समाज के सामने कबूल कर ही सकते थे कि बालकृष्ण बरनवाल अब इस दुनिया में नहीं था, उससे किसी का क्या बिगड़ जाता?’’
‘‘नहीं, डॉक्टर के मौत की बात छह साल पहले सामने आ गयी होती तो जाहिर है उसका डेथ सर्टिफिकेट भी बन गया होता, और वह बात यहां डॉक्टर बनकर बैठे उमेश के लिए बहुत खतरनाक साबित होनी थी। इसीलिए उसे राज रखा गया, ये कहकर कि डॉक्टर दिल्ली शिफ्ट हो गया था। हां बीच बीच में आस पड़ोस के लोगों में ये बात फैलाई जाती रही कि फलां दिन डॉक्टर घर आया था और अर्ली मॉर्निंग की फ्लाईट से वापिस लौट गया था।’’
‘‘आगे क्या किया विश्वजीत ने?’’
‘‘डॉक्टर बने बैठे उमेश के कत्ल के बाद बाकी बचा बदला चुकता करने के लिए अपनी मां के साथ दिल्ली आ गया। आने से पहले उसने जानबूझकर अपने बाल और दाढ़ी बढ़ा लिए ताकि कोई पहचान न पाये, खास कर के अधिकारी या दीक्षित। फिर एक रात उसने अमरजीत की हत्या की और जानबूझकर ऐसे हालात क्रियेट किये कि उसे गिरफ्तार कर लिया जाता, उसके बाद क्या हुआ आप जानती ही हैं।’’
‘‘जरूरत क्या थी उतना फसाद खड़ा करने की?’’
‘‘मेरे ख्याल से विश्वजीत का इरादा उन दोनों को खत्म करने से पहले एक्सपोज कर देने का था, जिसमें वह कामयाब भी हो गया। जरा सोचकर देखिये कि दोनों पुलिस ऑफिसर ये देखकर कितना तड़पे होंगे कि उनपर ऐसे इल्जाम लगाये जा रहे थे, जिनसे उनका कोई लेना देना नहीं था। क्योंकि सच यही था कि उमेश अहिर के कत्ल की इंवेस्टिगेशन में उन लोगों ने कोई कोताही नहीं बरती थी। ये बात भी उनकी समझ में फौरन आ गयी होगी कि सब किया धरा विश्वजीत का ही था। मगर मजबूरी ऐसी कि जुबान नहीं खोल सकते थे। कैसे वो दोनों दुनिया को ये बताना अफोर्ड कर सकते थे कि साल भर पहले कत्ल किया गया डॉक्टर विश्वजीत का बाप नहीं था, क्योंकि उसे तो छह साल पहले ही खत्म कर दिया गया था। या ये कि कथित डॉक्टर बरनवाल का कातिल विश्वजीत ही था। जुबान खोलते तो सबसे पहले खुद के लिए फांसी का फंदा तैयार करते, विश्वजीत का जो होता वह बाद में होता।’’
‘‘अगर ऐसा था तो कविता, मनसुख और कौशल्या के कत्ल के बारे में सोचने की बजाये दोनों ने सबसे पहले विश्वजीत का ही कोई इंतजाम क्यों नहीं कर दिखाया?’’
‘‘क्योंकि विश्वजीत मारा जाता तो सीधा शक उनपर ही जाना था। हालांकि जो ऑडियो मैंने साकेत वाले घर में रिकॉर्ड की थी उसमें विश्वजीत को खत्म करने की बात दोनों के बीच हुई बराबर थी।’’
‘‘और गिरफ्तार करते वक्त विश्वजीत को पहचान इसलिए नहीं पाये, क्योंकि उसकी सूरत देखे पूरे छह साल गुजर चुके थे, और तब्दीलियां भी खूब किये बैठा था, है न?’’
‘‘जी हां यही बात थी।’’
‘‘डॉक्टर बरनवाल के कत्ल में उमेश का साथ देकर अधिकारी और दीक्षित को क्या हासिल हुआ था?’’
‘‘मेरे ख्याल से वह 90 लाख रूपये जो किसी ऋषिकेश को डॉक्टर ने अपने एकाउंट से ट्रांसफर किये थे, जिससे बाद में साकेत वाला घर खरीदा गया, असल में वह अधिकारी और दीक्षित का मेहनताना था।’’
‘‘बाद में दोनों उसे ब्लैकमेल क्यों कर रहे थे?’’
‘‘क्योंकि जानते थे कि डॉक्टर असल में डॉक्टर नहीं था, ये भी कि पैसों की उसके पास कोई कमी नहीं थी। उसी बात का फायदा उठाकर हर महीने उससे कुछ न कुछ झटक ले जाते होंगे, जो कि कोई बहुत बड़ी रकम तो नहीं ही रही होगी।’’
‘‘क्या आपका मोबाईल छीने जाने में भी कोई राज था?’’
‘‘लगता तो है, मेरे ख्याल से वह काम अमरेश का था। पटना में अति उत्साहित होकर उसने मुझे डॉक्टर और उमेश की तस्वीर दिखा तो दी, मगर मेरे वहां से जाने के बाद जब विश्वजीत को कॉल कर के उस बारे में बताया तो वह घबरा उठा। आगे उसी ने अमरेश से कह दिया होगा कि किसी भी तरह मेरा मोबाईल अपने कब्जे में कर ले। और वह क्योंकि जानता था कि उसके घर से निकलकर मैं गांधी मैदान गया था, इसलिए अपने चार दोस्तों को फौरन वहां भेज दिया, ये भी रहा हो सकता है कि मोबाईल छीनने वाले लड़के उस इलाके में पहले से ही मौजूद रहे हों।’’
‘‘पहचान कैसे लिया गया आपको?’’
‘‘उनमें से कोई मेरी सूरत रेग्युलर पर्दाफाश देखता होने के कारण पहचानता होगा, और वैसा नहीं था तो जरूर मेरी वेश भूषा के जरिये शिनाख्त कर ली गयी, जो कि लोकल लोगों की अपेक्षा जाहिर है अलग ही नजर आ रही होगी। ये भी हुआ हो सकता है कि अमरेश ने गूगल पर मेरी कोई तस्वीर सर्च कर के उन्हें भेज दी हो।’’
‘‘वह महज स्नैचिंग की वारदात भी तो रही हो सकती है?’’
‘‘उसके चांसेज कम हैं मैडम, बाकी गारंटी तो मैं नहीं ही कर सकता।’’
‘‘और कुछ?’’
‘‘नहीं बस इतना ही।’’
‘‘हमसे क्या चाहते हैं?’’
‘‘रात नौ बजे से पहले अगर ये पता लगाकर बता दें कि 31 जनवरी को विश्वजीत बरनवाल पटना से दिल्ली कैसे पहुंचा था, कब पहुंचा था, और यहां से वापिस कब लौटा था तो मजा आ जायेगा।’’
‘‘समझ लीजिए पता लग गया।’’
‘‘थैंक यू मैडम, अब चलता हूं, शो की तैयारी करनी है।’’
‘‘थैंक्स आपको वंश साहब, क्योंकि सच यही है कि आपने जितनी जानकारियां हमें दी हैं, उसका दस फीसदी भी अभी तक हम नहीं खोज पाये थे। ये एक ऐसी उधारी है जिसे चुकता कर पाना आसान तो नहीं होगा, मगर करने की कोशिश मैं बराबर करूंगी।’’
जवाब में वंश ने एक टक उसकी आंखों में देखा।
‘‘क्या हुआ?’’
वंश मुस्कराया।
‘‘अब बोल भी दीजिए।’’
‘‘सच में बोल दूं?’’ उसकी मुस्कान गहरी हो उठी।
‘‘और क्या झूठ बोलेंगे?’’
‘‘मैं कोशिश कर रहा हूं।’’
‘‘झूठ बोलने की?’’
‘‘नहीं कहीं उतरने की, रिमेम्बर?’’
‘‘क्या वंश आप भी...’’ गरिमा लजा सी गयी।
‘‘हमारा शो खत्म होने तक पूरे मामले को राज बनाये रखियेगा मैडम - वह बदले लहजे में बोला - फिर थैंक यू बोलने या उधारी चुकता करने की कोई जरूरत नहीं रह जायेगी।’’
जवाब में गरिमा देशपांडे ने हौले से सिर हिला दिया।
समाप्त
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