पुरानी कोठी के बाहर

पुरानी कोठी के बाग़ में प्रोफ़ेसर इमरान किसी से बातचीत कर रहा था। कभी-कभी दोनों की आवाज़ें तेज़ हो जातीं तो कभी खुसर-फुसर में बदल जातीं।

प्रोफ़ेसर कह रहा था, ‘‘लेकिन मैं नहीं जाऊँगा।’’

‘‘तो इसमें बिगड़ने की क्या बात है, मेरी जान,’’ दूसरी आवाज़ सुनाई दी, ‘‘न जाने में तुम्हारा ही नुक़सान है।’’

‘‘मेरा नुक़सान...!’’ प्रोफ़ेसर की आवाज़ आयी, ‘‘यूनान और रोम के देवताओं की क़सम हरगिज़ न जाऊँगा।’’

‘‘तुम्हें चलना पड़ेगा।’’ किसी ने कहा।

‘‘सुनो इसे, अबाबील के बच्चे...तुम में इतनी हिम्मत नहीं कि मुझे मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ कहीं ले जा सको।’’ प्रोफ़ेसर चीख़ा।

‘‘ख़ैर, न जाओ, लेकिन तुम्हें इसके लिए पछताना पड़ेगा। देखना है कि तुम्हें कल से सफ़ेदा कैसे मिलता है!’’ दूसरे आदमी ने कहा और बाग़ से निकलने लगा।

‘‘ठहरो...ठहरो...तो ऐसे बात करो न! तुमने पहले ही क्यों नहीं बताया कि तुम बीर बहूटी के बच्चे हो!’’ प्रोफ़ेसर हँस कर बोला।

‘‘बीर बहूटी...हाँ, बीर बहूटी...मगर इसके लिए तुम्हें मेरे साथ माली के झोंपड़े तक चलना होगा।’’

‘‘अच्छा, तो आओ, फिर चलें।’’ प्रोफ़ेसर ने कहा और दोनों माली के झोंपड़े की तरफ़ चल पड़े।

लगभग आधे घण्टे के बाद प्रोफ़ेसर लँगड़ाता हुआ माली के झोंपड़े से बाहर निकला। वह अकेला था और उसके कन्धे पर एक वज़नी गठरी थी। एक जगह रुक कर उसने इधर-उधर देखा फिर माली के झोंपड़े की तरफ़ घूँसा तान कर कहने लगा।

‘‘अबे, तूने मुझे समझा क्या है? मैं कुत्ते का गोश्त खिला दूँगा। छछूँदर की औलाद नहीं तो...अबे, मैं वह हूँ जिसने सिकन्दरे-आज़म का मुर्ग़ा चुराया था। चमगादड़ मुझे सलाम करने आते हैं। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तू अपने दादा का बीज है। हरामी! चला है वहाँ से मक्खियाँ मारने....बड़ा आया कहीं का तीस मार ख़ाँ। तीस मार ख़ाँ की ऐसी-की-तैसी...नहीं जानता कि मैं भूतों का सरदार हूँ। आओ, ऐ भेड़ियो! उसे खा जाओ। आओ, ऐ लोमड़ियो! उसे चबा जाओ। चुड़ैलों की हरामी नानी अशकलोनिया, तू कहाँ है। देख, मैं नाच रहा हूँ। मैं तेरा भतीजा हूँ...आ जा प्यारी...!’’ यह कह कर प्रोफ़ेसर ने वहीं पर नाचना शुरू कर दिया। फिर वह सीने पर हाथ मार कर कहने लगा। ‘‘मैं इस आग का पुजारी हूँ जो मिर्रीख़ में जल रही है। हज़ारों साल से मैं उसकी पूजा करता आ रहा हूँ। मैं पाँच हज़ार साल से इन्तज़ार कर रहा हूँ, लेकिन सितारा कभी न टूटेगा। मैंने तेरे लिए ख़रगोश पाले। मैं तुझे गिलहरियों के कबाब खिलाता हूँ...मैं तितलियों के परों से सिगरेट बना कर तुझे पिलाता हूँ। ऐ प्यारे शैतान! तू कहाँ है। मैं तुझे अपना कान काट कर खिला दूँगा...!’’

वह और न जाने क्या बड़बड़ाता, उछलता, कूदता हुआ पुरानी कोठी के बाग़ में ग़ायब हो गया।