कमरे में पुलिस इन्स्पेक्टर आत्माराम के अलावा चू की, सो हा और एक सफेद बालों वाला आदमी मौजूद था।
“आओ, आओ।" - आत्माराम मीठे स्वर में बोला “लगता है आपके चाहने वाले आपको मेरी मेहमाननवाजी में नहीं देखना चाहते । ये लोग आपको लेने आये हैं ।"
" और आप मुझे जाने दे रहे हैं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"राजी से नहीं" - सफेद बालों वाला बोला - "जब तक इंस्पेक्टर साहब को बाकायदा धमकाया नहीं गया, ये आपको छोड़ने को राजी नहीं हुए।"
'आपकी तारीफ ?" - प्रमोद सफेद बालों वाले से सम्बोधित हुआ ।
"बन्दे को पराशर कहते हैं।" - सफेद बालों वाला तनिक सिर नवाकर बोला ।
"पराशर साहब तुम्हारे वकील हैं, प्रमोद ।" - सोहा ने बताया ।
“पराशर साहब फरमा रहे थे कि या तो हम आप पर चार्ज लगाएं" - आत्माराम बोला - "और या फिर आपको रिहा करें । हमने पराशर साहब की ही इच्छा पूरा कर दी ।"
"बड़ी मेहरबानी की ।" - पराशर व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
" यानी कि अब मैं आजाद हूं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"हवा की तरह । जहां चाहें जा सकते हैं आप । चाहें तो वहां भी जा सकते हैं जहां से आप वापिस आये हैं । "
"थैंक्यू ।" - प्रमोद सहज स्वर में बोला ।
आत्माराम के अलावा सब लोग बाहर निकल गये । वे इमारत से बाहर सड़क पर पहुंचे ।
"ओके, गुडलक ।" - पराशर प्रमोद से हाथ मिलाता हुआ बोला ।
"थैंक्यू" - प्रमोद बोला - "आपकी फीस..."
" फीस की तुम चिन्ता मत करो, बरखुरदार ।"
"लेकिन..."
"प्रमोद" - सो हा बोली- "पराशर साहब फादर के स्थायी वकील हैं । हम इन्हें सालाना रिटेनर देते हैं । "
पराशर मुस्कराया ।
“आई सी ।" - प्रमोद बोला- "थैंक्यू आल दि सेम । " "नाट ऐट आल | नाट ऐट आल ।" - पराशर बोला । वह अपनी कार पर सवार हुआ और वहां से चला गया
वे तीनों चू की की मर्सिडीज में सवार हो गये । सो हा ने स्टियरिंग सम्भाला ।
"तुम भी तो गिरफ्तार थीं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"हां" - सोहा बोली- "तुम्हारे से थोड़ी देर पहले पराशर ने ही मुझे छुड़वाया था ।”
“ओह !"
"पता नहीं इन्स्पेक्टर को मुझ पर शक कैसे हो गया था ?" - सो हा वितृष्णापूर्ण स्वर में बोली- "अपनी गाड़ी में उसने मुझे बिठाया तो लिफ्ट देने की नीयत से ही था । लेकिन एकाएक ही यह कहने लगा कि वह मेरी गठरी देखना चाहता था। मैंने बहुत विरोध किया। मेरे विरोध ने उसे और भी सन्दिग्ध कर दिया । मैंने उसे बहुत कहा कि वे मैले कपड़े हैं जो मैं धोने के लिए ले जा रही हूं लेकिन वह बण्डल खुलवाये बिना नहीं माना ।” ।
"फिर ?"
"फिर क्या ? मेरी पोल खुल गई । फिर इन्स्पेक्टर मुझे पहचान भी गया । उसने मुझे पुलिस हैडक्वार्टर लाकर लाकअप में बन्द कर दिया । "
"फिर तुम छूटीं कैसे ?"
"जब मैं बहुत देर घर नहीं लौटी तो फादर ने पराशर से सम्पर्क स्थापित किया । पराशर ने ही मुझे ढूंढा और छुड़वाया |"
"सुषमा का क्या हाल है ?"
"वह सुरक्षित है ।"
"एक कार हमारा पीछा कर रही है।" - एकाएक चू की बोला ।
"मुझे मालूम है, फादर" - सो हा बोली- "लेकिन क्या फर्क पड़ता है !"
"वह जरूर पुलिस की कार होगी।" - प्रमोद बोला "अगर पुलिस हमारे पीछे लग रही है तो उसे सुषमा की खबर लग जाएगी ।”
"नहीं लगेगी" - सोहा बोली- "पुलिस चायना टाउन के सिरे तक ही हमारा पीछा कर सकती है। उसके बाद पुलिस को हमारी हवा भी नहीं मिलेगी । तब चायना ठाउन में हमें तलाश करने के लिए पुलिस को सारा चायना टाउन जड़ से खोदना होगा ।"
प्रमोद चुप हो गया ।
कार चायना टाउन में दाखिल हुई ।
सो हा ने एक बार भी न पीछे आती कार की ओर झांकने की कोशिश की और न उससे पीछा छुड़ाने की । उसने बड़े सहज भाव से कार को एक स्थान पर ला कर खड़ी कर दिया ।
पीछे आती कार उनसे परे रुक गई ।
सोहा, चू की और प्रमोद कार से बाहर निकले ।
पिछली कार से दो आदमी बाहर निकले और लापरवाही से चहलकदमी करते हुए आगे बढे ।
सोहा ने आगे बढकर एक दुकान का दरवाजा खोला । उसने घूम कर पीछे देखने का उपक्रम नहीं किया ।
दुकान में काउन्टर के पीछे खड़े एक आदमी ने सिर उठाकर सो हा की ओर देखा और फिर यूं काउन्टर पर निगाह टिका ली जैसे उसे सो हा के अस्तित्व का भी ज्ञान नहीं था ।
सोहा आगे बढी । चू की और प्रमोद उसके पीछे चलने लगे।
दुकान के पिछवाड़े में एक दरवाजा था जिस पर पर्दा पड़ा हुआ था । सो हा ने पर्दा हटाया । वे दरवाजे में से गुजर गए । एक पतले गलियारे से होते हुए वे एक विशाल कमरे में पहुंचे । वहां दस-पन्द्रह चीनी बैठे ताश खेल रहे थे। किसी ने उनकी ओर सिर उठाकर नहीं देखा । उस कमरे को पार करके वह एक अन्य गलियारे में दाखिल हुए । उस गलियारे के सिरे पर एक फर्नीचर से भरा हुआ स्टोर था । सो हा ने दीवार में कहीं लगा हुआ एक बटन दबाया । सामने दीवर पर लगी एक पैनल एक ओर सरक गई और आगे फिर एक गलियारा दिखाई दिया । उन लोगों के उस गलियारे में कदम रखते ही वह पैनल फिर यथास्थान पहुंच गई ।
आगे सीढियां थीं। उन सीढियों को तय करके वे एक खुले कम्पाउन्ड में पहुंचे। उसके बाद फिर गलियारा, फिर एक लिफ्ट, फिर एक कालीन बिछा रोशन गलियारा और फिर वे चू की के शानदार निवास स्थान में थे ।
"सुषमा उस कमरे में है।" - सोहा एक बन्द दरवाजे की ओर संकेत करती हुई बोली ।
प्रमोद ने आगे बढकर दरवाजा खोला । वह भीतर दाखिल हुआ ।
सोहा व चू की ने भीतर दाखिल होने का उपक्रम नहीं किया । प्रमोद के उस कमरे में जाते ही वे आगे बढ़ गए ।
"ओह, प्रमोद" - सुषमा उसे देखते ही हर्षित स्वर में बोली - "शुक्र है तुम आ गये | क्या खबर है ? "
"सुनने लायक एक ही खबर है।" - प्रमोद बोला "जोगेन्द्र अब पुलिस की हिरासत में है।" -
"ओह !"
"इसमें निराश होने वाली कोई बात नहीं, सुषी । यह तो उसके भले के लिए ही हुआ है। सच पूछो तो मैंने ही उसे पुलिस की हिरासत में पहुंचाया है । "
"तुमने ?”
"हां । वर्ना वह पुलिस की गोली खाकर मर गया होता । उस चक्कर में पुलिस ने मुझे भी गिरफ्तार कर लिया था।"
“तुम्हें भी !"
"हां । सोहा के फादर की मेहरबानी से छूटा हूं।"
“ओह, खरगोश, इतने बखेड़ों में तुम्हें मेरी वजह से फंसना पड़ रहा है ।”
"मुझे कुछ नहीं हुआ है । "
"लेकिन... खैर, अब क्या इरादा है ?"
"मेरा ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम में एक बार फिर घुसने का इरादा है ।"
"क्यों ?"
'शायद वहां कोई ऐसा सूत्र मिले जिसे पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया हो और सावंत और जीवन गुप्ता की हत्याओं के रहस्य को सुलझाने में मददगार साबित हो सकता हो ।"
"ओके । मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी ।”
"हरगिज नहीं, तुम यहीं रहोगी। जानती नहीं हो, पुलिस किस बुरी तरह तुम्हें तलाश कर रही है ?"
“मैं तुम्हारे साथ चलूंगी ।" - वह दृढ स्वर से बोली"मेरी वजह से तुम इतनी जहमत उठाते फिरो और मैं यहां बैठी रहूं, यह मुझे शोभा नहीं देता। यहां अकेली बैठी मैं इसी बात के लिए अपने-आपको कोसती रही थी कि मुझे तुम्हें खतरे में डालकर खुद सुरक्षित नहीं बैठ जाना चाहिए था । तुम्हारी मदद हासिल करना और बात है लेकिन अपनी बला तुम्हारे गले डालकर खुद हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाना तो सरासर बेशर्मी है। पिछले कितने ही अर्से से ही मैं यही सोच रही हूं कि..."
“अच्छा-अच्छा, भाषण बन्द करो। अगर मरना चाहती हो तो मरो ।"
"थैंक्यू, खरगोश ।" - वह हर्षित स्वर से बोली ।
“और फिर शायद जोगेन्द्र को भी यह सुनना भला लगे कि रहस्य पर से पर्दा तुमने हटाया, मैंने नहीं ।"
" उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता, खरगोश । जोगेन्द्र तुम्हारी बहुत कद्र करता है। मैंने उसे तुम्हारे बारे में इतना कुछ बताया है कि...
"वह मुझसे नफरत करने लगा है ।”
" ऐसी कोई बात नहीं है। वह नादान है, समझ जाएगा|"
“अच्छा ।"
"कब चलने का इरादा है ?"
“अभी ।"
"लेकिन यहां से बाहर निकलना कौन-सा आसान है । यह सारा इलाका ही किसी भूलभुलैया से कम नहीं है । " प्रमोद बोला - "मैं सो हा को बुलाता हूं।" -
***
सोहा की कार पर प्रमोद और सुषमा चायना टाउन से रवाना हो गए । गोदाम का रुख करने से पहले प्रमोद ने पूरी तरह से भरोसा कर लिया था कि उनका कोई पीछा नहीं कर रहा था ।
"सुषी" - रास्ते में प्रमोद बोला- "अभी तक मेरी राकेश टण्डन से मुलाकात नहीं हुई है। कल मैं ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के दफ्तर में नरूला और गुप्ता से मिला था। लेकिन टण्डन वहां मौजूद नहीं था । पता नहीं, वह जानबूझ कर वहां नहीं आया था या उसे वाकई कोई जरूरी काम था । सोच रहा हूं, क्यों न जरा उसके घर झांकते चलें । शायद उससे मुलाकात हो जाए।"
"जैसा तुम ठीक समझो ।” - सुषमा बोली ।
प्रमोद ने सारा ध्यान कार चलाने में लगा दिया ।
थोड़ी देर बाद उसने कार टण्टन की कोठी के कम्पाउन्ड में ला खड़ी की । कम्पाउन्ड में दो कारें पहले से मौजूद थीं। उनमें से एक दोरंगी एम्बैसेडर थी और दूसरी एक क्रीम कलर की फियेट |
"तुम कार में ही बैठो " - प्रमोद बोला- "मैं अभी आता हूं।"
“लेकिन..."
"जिद मत करो। किसी ने तुम्हें देख लिया तो पहले ही पुलिस हैडक्वार्टर खबर पहुंच जाएगी कि तुम मेर साथ थीं।”
“अच्छा ।"
"दैट्स ए गुड गर्ल ।”
प्रमोद कार से बाहर निकला । बरामदे में जाकर उसने कॉलबैल बजाई ।
एक नौकर ने तुरन्त दरवाजा खोला ।
“टण्डन साहब हैं ?" - प्रमोद ने पूछा ।
नौकर ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिलाया । वह प्रमोद को ड्राइंगरूम में ले आया । वहां वत्सला और राकेश दोनों बैठे थे ।
प्रमोद पर निगाह पड़ते ही वत्सला के चेहरे का रंग उड़ गया ।
राकेश टण्डन ने बड़ी गौर से अपनी बीवी की सूरत देखी और फिर प्रमोद से बोला - "आओ । आओ ।"
प्रमोद ने उससे हाथ मिलाया और उसके समीप बैठ गया।
"कैसे आए ?" - टण्डन ने पूछा ।
"कल तुमने तो मुझसे मिलना जरूरी नहीं समझा” प्रमोद बोला - "सोचा, मैं ही मिल आऊं ।”
"मुझे काम था । " - टण्डन रूखे स्वर में बोला ।
“आई सी ।"
" और फिर मुझे भी वही कुछ कहना था जो मेरे भागीदारों ने तुमसे कहा ।"
"आई सी ।"
"कैसे आए ?"
"यूं ही इधर से गुजर रहा था, सोचा तुमसे मिलता चलूं।"
"बड़ी मेहरबानी की । कुछ पियोगे ?"
"नहीं, इस वक्त मूड नहीं है । "
टण्डन ने फिर अपनी ऑफर नहीं दोहराई ।
" सुना है मरने से पहले जीवन गुप्ता ने तुम्हें भी फोन किया था ?" - प्रमोद सहज भाव से बोला ।
“हां।" - टण्डन अनिच्छापूर्ण स्वर में बोला ।
"गोदाम से ?"
“हां ।”
"तुम उससे मिलने गोदाम में गए थे?"
"हां ।”
"किस वक्त ?"
"तुम यह सवाल क्यों पूछ रहे हो मुझसे ?"
" यूं ही । उत्सुकतावश | तुम्हें कोई ऐतराज है तो जवाब देने से इन्कार कर दो।"
"मुझे भला क्या एतराज होगा ? तुम कौन सी कोई गुप्त बात पूछ रहे हो मुझसे ? मैं साढे दस बजे गोदाम में पहुंचा था ।”
"गुप्ता था वहां ?"
“था।”
"तुम्हारी उससे बात हुई थी ?"
“हां । मामूली ।”
"क्यों ?"
"करने लायक कोई खास बात थी ही नहीं । "
"उसने तुम्हें गोदाम में क्यों बुलाया था ?"
"वह वहां किसी काम से गया था। वहां उसे कुछ ऐसे संकेत मिले थे जिनसे जाहिर होता था कि गोदाम में कोई रह रहा था - ऐसा कोई शख्स जिसके पास कि गोदाम की चाबी थी । गुप्ता को तुरन्त खयाल आया कि शायद वह शख्स जोगेन्द्र पाल हो । गुप्ता के भीतर दाखिल होते ही एक आदमी खिड़की से कूदकर भागा था । गुप्ता का खयाल था कि वह जोगेन्द्र था । उसने सीताराम नरूला को फोन किया लेकिन वह घर पर नहीं था । फिर उसने मुझे फोन किया । उसके कहने पर मैं फौरन गोदाम पहुंच गया । सच पूछो तो मुझे तो झुंझलाहट हो रही थी कि अगर गोदाम में कोई छुपकर रह रहा था तो उसने फौरन पुलिस को फोन क्यों नहीं किया ! इसमें मुझे और नरूला को फोन करने वाली कौन सी बात थी !"
"फिर ?"
"मैंने यही बात उसे कही और कहा कि मैं जोगेन्द्रपाल के बारे में कुछ जानता था और न जानना चाहता था । उसने कहा कि पुलिस को फोन करने से पहले उसने मुझे और नरूला को फोन करना इसलिए जरूरी समझा था कि कहीं हम दोनों में से किसी की मर्जी से ही तो जोगेन्द्र पाल गोदाम में नहीं रहा था। मैंने उसे बता दिया कि मेरा इस बात से कोई वास्ता नहीं था । मैंने उसे बताया कि नरूला उस समय अपने क्लब में था और वहां से चला आया । जब मैं वहां से चला था तो उस समय गुप्ता नरूला को फोन कर रहा था । अगले दिन मैंने अखबार पढा तो मुझे मालूम हुआ कि पिछली रात मेरे गोदाम से आने के पश्चात किसी समय वहां गुप्ता का कत्ल हो गया था ।"
"तुम्हारे खयाल से कातिल कौन हो सकता है ?"
"ऐसे मामलों में मैं अपना खयाल जाहिर करना जरूरी नहीं समझता ।"
"ओके" - प्रमोद उठता हुआ बोला- "एण्ड थैंक्यू | "
टण्डन ने मशीन की तरह उससे हाथ मिलाया ।
प्रमोद दरवाजे की तरफ बढा । दरवाजे पर पहुंचकर वह ठिठका और बोला - "यहां पुलिस नहीं आई ?"
"पुलिस ?" - टण्डन चौंका - "किसलिए ?"
"तुम्हारा नेपियन हिल पर भी एक बंगला है न ? पांच नम्बर ?"
"मेरा नहीं है। मेरी बीवी के किसी रिश्तेदार का है । आजकल खाली पड़ा है । क्यों ? और पुलिस किसलिए आयेगी यहां ?"
“आई नहीं तो आती ही होगी ।"
"लेकिन क्यों ?"
" और थोड़ी देर में बात तुम्हें वैसे ही मालूम हो जानी है इसलिए बता रहा हूं । जानना चाहते हो जोगेन्द्र को गोदाम में कौन रखे हुए था ।"
"कौन रखे हुए था ?”
"टण्डनी ।"
अपने कथन की टण्डन पर प्रतिक्रिया देखने के लिए प्रमोद वहां नहीं रुका । वह तेजी से कोठी से बाहर निकला और वापिस कार पर आ सवार हुआ ।
"मुलाकात हुई ?" - सुषमा ने पूछा ।
"हां।" - प्रमोद कार आगे बढाता हुआ बोला ।
"कुछ हासिल हुआ ?”
"नहीं।"
"गोदाम में तुम क्या हासिल होने की उम्मीद कर रहे हो?"
"कुछ भी । मुख्यतः हमें यह जानने की कोशिश करनी है कि गोदाम में ब्लाटर पर गुप्ता के बाएं हाथ की चार उंगलियों के निशान क्यों मौजूद थे और वहां अंगूठे का निशान क्यों नहीं था ?"
"ओह !"
प्रमोद चुपचाप कार चलाता रहा ।
गोदाम के समीप पहुंच कर उसने कार गोदाम के सामने रोकने की कोशिश नहीं की। वह कार को सीधा गुजार कर ले गया । उसकी सतर्क दृष्टि चारों ओर फिर रही थी ।
गोदाम के आस-पास कोई नहीं था ।
उसने कार गोदाम से काफी परे खड़ी की, दोनों उसमें से उतरे और पैदल गोदाम की ओर लौटे।
गोदाम अन्धकर के गर्त में डूबा हुआ था। चारों ओर सन्नाटा था ।
"खरगोश" - सुषमा जोर से प्रमोद की बांह पकड़ती हुई बोली- "मुझे तो डर लग रहा है ।"
"तो वापिस चली जाओ।" - प्रमोद बोला ।
"हरगिज नहीं ।"
वे दरवाजे के पास पहुंचे। प्रमोद ने देखा दरवाजे पर ताला पड़ा हुआ था । वे घूमकर उस खिड़की के पास पहुंचे जिसमें से पुलिस के कथनानुसार, जोगेन्द्र कूदकर भागा था । प्रमोद ने उस खिड़की के एक पल्ले को धक्का दिया | पल्ला खुल गया । प्रमोद ने चारों ओर निगाह डाली । कहीं कोई नहीं था । उसने खिड़की पूरी खोल दी ।
"सुषी, मैं भीतर जाता हूं" - प्रमोद बोला- "तुम यहीं ठहरो।"
"नहीं" - सुषमा तीव्र विरोधपूर्ण स्वर से बोली- “मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी ।"
प्रमोद ने उसे सहारा देकर खिड़की पर चढा दिया । उसके बाद वह स्वयं भी चढ गया । दोनों अब ऑफिस में थे । प्रमोद ने हाथ बढाकर खिड़की के पल्ले भिड़का दिये ।
“अब ?" - सुषमा अन्धेरे में फुसफुसाई ।
"अब हमें वह कागज तलाश करना है" - प्रमोद बोला “जो अपनी मौत से पहले गुप्ता ने खोज निकाला था ?" -
" तुम्हें कैसे मालूम है कि उसने कोई कागज खोज निकाला था ?”
"अनुमान ।”
“ अनुमान का कोई आधार तो होगा !”
"गुप्ता यहां कुछ तलाश करने आया था । मिल गया उसे जोगेन्द्र । फिर जोगेन्द्र यहां से भाग गया । गुप्ता ने अपनी तलाश जारी रखी। इसी चक्कर में उसका बांया हाथ धूल से भर गया । फिर उसे वह कुछ मिल गया जिसकी उसे तलाश थी । उसे लेकर वह राइटिंग टेबल पर पहुंचा । उसके बाएं हाथ की चारों उंगलियों के निशान टेबल पर पहुंचा । उसके बाएं हाथ की चारों उंगलियों के निशान टेबल पर पड़े ब्लाटर पर बने मिले थे । निशान यह बताते थे कि पहली और दूसरी उंगली पर दबाव ज्यादा था लेकिन अंगूठे का निशान कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । इन्स्पेक्टर आत्माराम कहता था कि अंगूठे पर धूल लगी ही नहीं होगी । मेरा खयाल है कि गुप्ता ब्लाटर पर कोई कागज फैलाकर पढ रहा था । वह कोई गोल लपेटा हुआ कागज था जो उसे किसी धूलभरी जगह से मिला था । उसने उस कागज को खोल कर सीधा किया था । उसने कागज को ब्लाटर पर इस प्रकार रखा था कि उसने बाएं हाथ के अंगूठे से कागज का ऊपरी सिरा दबाया हुआ था और बाकी चारों उंगलियां ब्लाटर पर फैली हुई थीं । इसलिए चारों उंगलियों के निशान ब्लाटर पर थे, लेकिन अंगूठे का निशान नहीं था क्योंकि वह कागज के ऊपर पड़ा था । अब हमें गोदाम में कोई ऐसी जगह तलाश करनी है जहां एक गोल लपेटा हुआ कागज छुपाया जा सकता हो और जहां खूब मोटी धूल की परत जमी हुई हो।”
"मुझे तो ऐसी एक ही जगह सूझ रही है ।"
"कौन सी ?"
“सामने दीवार पर फ्रेम में मढा एक चार्ट लगा हुआ है, उसके पीछे ।"
प्रमोद ने टार्च की रोशनी में उस फ्रेम का निरीक्षण किया । वह काफी चौड़ा फ्रेम था और वह दीवार से तीस अंश का कोण बनाता हुआ टंगा हुआ था। उसके पीछे बड़ी आसानी से ऐसा कोई कागज छुपाया जा सकता था जिसकी कल्पना प्रमोद के मन में थी ।
उसने एक कुर्सी उठाकर उस दीवर के नीचे रखी और फिर उस पर चढकर तस्वीर के पृष्ठ भाग को टटोला ।
एक गोल लपेटा हुआ कागज उसके हाथ में आ गया ।
प्रमोद कुर्सी से उतर गया ।
कागज पर एक रबड़ बैंड चढा हुआ था । प्रमोद ने उसे सरका कर उतारा । उसने टार्च सुषमा को थमाई और फिर कागज को खोला ।
सुषमा ने टार्च की रोशनी कागज पर डाली । सारे कागज पर कुछ लिखा था ।
"यह तो सावंत साहब का हस्तलेख है" - सुषमा उत्तेजित स्वर से बोली- " और तारीख ! प्रमोद, इस पर तो उस रोज की तारीख है जिस रोज उनका कत्ल हुआ था ।"
"हां ।" - प्रमोद बोला ।
फिर वह कागज को पढने लगा। लिखा था:
मेरी जीवित रहने की इच्छा समाप्त हो चुकी है । अपना गुनाह कबूल कर लेने के अलावा अब मेरे सामने कोई प्रायश्चित नहीं । गुनाह कबूल कर लेने के बाद जिल्लत और रुसवाई का सामना करने के लिए जीवित रहने की मुझे कोई तुक नहीं दिखाई देती। मैं सुषमा ओबेराय का ट्रस्टी था । मैंने उसका रुपया इस्पात के धन्धे में लगाया था । उस धन्धे को मैंने खूब ठोक-बजाकर देख लिया था और उसमें नुकसान होने की कोई गुंजायश नहीं थी। उस समय मेरा सारा निजी रुपया ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी में लगा हुआ था जिसमें कि सीताराम नरूला; राकेश टण्डन और जीवन गुप्ता नामक तीन पार्टनर थे । कम्पनी का सारा रुपया तेल के धन्धे में । लगाया गया था जो कि चमक नहीं सका था । लेकिन इस्पात का धन्धा बेहद फायदेमन्द साबित हुआ था । उसने पन्द्रह-सोलह गुना लाभ होने की आशा थी । तब राकेश टन्डन ने सुझाया कि यह बात किसी को मालूम नहीं थी कि इस्पात के धन्धे में सुषमा ओबेराय का रुपया लगा हुआ था क्योंकि सारे शेयर मेरे नाम से थे । मुझे सुझाया गया कि पार्टनरशिप के धन्धे को डूबने से बचाने का यही तरीका था कि सुषमा ओबेराय के मुनाफे में से रकम निकाली जाए। इस प्रकार सुषमा के पास फिर भी बाकी रुपया बचता और उसका निकाला गया रुपया एक तरह से ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी पर कर्जा माना जाता ।
राकेश टण्डन की बातों में आकर मैं ऐसा ही कर बैठा । मुझे लगा कि थोड़ी देर के लिए सुषमा का रुपया कम्पनी के बिजनेस में इस्तेमाल कर लेने में कोई हर्ज नहीं था । पता नहीं मुझ पर जादू कर दिया गया था या मेरी मति भ्रष्ट हो गई थी जो मैं उनकी बात मान गया । नये कागजात तैयार करवाए गए जिनके अनुसार इस्पात के धन्धे में कम्पनी का रुपया लगा हुआ था। मैंने उन लोगों की बातों में फंसकर उन कागजात पर हस्ताक्षर कर दिए ।
फिर मैंने टण्डन से हिसाब मांगा । उस स्थिति में उसने कहा कि मैं सुषमा को उसका मूलधन और थोड़ा-बहुत मुनाफा लौटाने के लिए कम्पनी के खाते से रुपया निकलवा सकता था लेकिन इस्पात का धन्धा सझेदारी का बिजनेस ही माना जाएगा । कहने का मतलब यह था कि वे लोग अपने वायदे से फिर रहे थे और धोखाधड़ी करना चाहते थे । यह ठीक था कि इस प्रकार सुषमा की रकम सुरक्षित थी लेकिन पन्द्रह-सोलह गुणा लाभ का हक तो मेरी मूर्खता से उसके हाथ से निकल गया था। मैंने सोचा कि अगर मैं एक बार सुषमा के लिए मुनाफा कमा सकता था तो वह काम मैं दोबारा भी कर सकता था। मैंने फिर कोई फायदे का धन्धा तलाश करना आरम्भ किया लेकिन तभी सुषमा मुझसे अपने पैसों का हिसाब मांगने लगी। मेरा खयाल है उसका दोस्त जोगेन्द्र उसे कोई पट्टी पढा रहा था । जोगेन्द्र अभी मेरे पास से होकर गया है। वह मुझे संदिग्ध मालूम होता है। शायद वह समझता है, मैंने सुषमा की रकम गबन कर ली है ।
अब मेरा यह प्रायश्चित है कि मैं अपना अपराध कबूल कर लूं और फिर दुनिया से किनारा कर लूं। मैं यह हलफ उठाकर कहता हूं कि ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी में मेरे हिस्से की असली हकदार सुषमा ओबेराय है । इस्पात के धन्धे के सारे मुनाफे की हकदार भी वही है। मैं अपने सामने मेज पर एक लिफाफा छोड़ कर जा रहा हूं । उस लिफाफे के भीतर जो कुछ मौजूद है, वह भी सुषमा का है इसके अतिरिक्त मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि मैंने सुषमा को हमेशा अपनी बेटी की तरह माना है । उसने मुझ पर सदा भरोसा किया है इसलिए मैं समझता हूं मैंने उसको नहीं अपने आपको धोखा दिया है और यह हुआ राकेश टण्डन की वजह से । वह बहुत बुरा आदमी है । उसी के कुप्रभाव में आकर मैं यह हरकत कर बैठा हूं जिसकी वजह से मुझे अपनी जिन्दगी से किनारा करना पड़ रहा है। जाती बार मैं भगवान से प्रार्थना ही कर सकता हूं कि सुषमा मुझे माफ कर दे ।
मुझे साझेदारी में से जो थोड़ी-बहुत रकम मिली है, वह बाकी दो साझेदारों की वजह से मिली है। टण्डन मक्कार है लेकिन बाकी दो साझेदार दोषरहित हैं। मेरी चालीस लाख रुपये की इन्श्योरेन्स है और मेरा कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं है । इसलिए सुषमा के हक के पैसे के अलावा मेरा जो कुछ भी है वह मैं जीवन गुप्ता, सीताराम नरूला और सुषमा ओबेराय के लिए बराबर के हिस्सों में छोड़ता हूं ।
बकलम खुद हरि प्रकाश सावंत ।
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