प्रिया वा़ज ए हॉट गर्ल। प्रिया को देखकर किसी भी जवान लड़के के भीतर पैशन जागना ला़जमी था; अगर ऐसा न हो, तो तय था कि उसका क्यूपिड सो रहा होगा। मगर प्रिया हॉट होने के बावजूद बिंदास थी। उसमें हॉट लड़कियों वाला ऐटिटूड नहीं था। कितनी आसानी से वह कबीर के साथ डिनर पर जाने को तैयार हो गई थी; और यही बात प्रिया को और हॉट लड़कियों से अलग करती थी। हॉट लड़कियाँ; जो कामयाब और पैसे वाले लड़कों से इम्प्रेस होती हैं; जिन्हें लड़कों से ज़्यादा उनके स्टेटस और ग्लैमर से प्यार होता है। चमचमाती कारों, डि़जाइनर कपड़ों, महँगी घड़ियों और ज्वेलरी, पऱफ्यूम्स और हेयरस्टाइल पर मरने वाली लड़कियाँ, क्या कभी किसी लड़के की रूह को छू पाती होंगी? प्रिया उनसे अलग थी... बहुत अलग।

अगली सुबह कबीर, प्रिया के ख़यालों में डूबा हुआ था। जब कोई जवान लड़का किसी जवान लड़की के ख़यालों में डूबा हो, तो ख़याल नटखट से लेकर निर्लज्ज तक हो जाते हैं। कबीर के ख़याल भी प्रिया को आमंत्रित कर उसके साथ कई गुस्ताखियाँ कर रहे थे, तभी पीछे से एक आवा़ज आई,

‘‘हे डूड, व्हाट्स अप?’’ इट वा़ज समीर। समीर का बस चले तो वह कबीर के ख़यालों से भी लड़कियाँ चुरा ले जाए।

‘‘कुछ नहीं, बस किसी लड़की के ख़यालों में डूबा हूँ।’’ कबीर ने मुड़ कर जवाब दिया।

‘‘योर फेवरेट पासटाइम... हूँ।’’ समीर के लह़जे में तंज़ था, ‘‘यार अब तो ख़्वाबों-ख़यालों से बाहर निकल।’’

‘‘बाहर से चुराकर ही ख़यालों में लाया हूँ।’’ कबीर ने मुस्कुराकर समीर को आँख मारी। सामने वाले के तंज़ को मुस्कुराकर हँसी में उड़ा देना ही उसकी चोट से बचने का सबसे आसान तरीका होता है, हालाँकि समीर का इरादा कभी कबीर की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं होता था। इरादा तो वह तब करे, जब उसने ख़ुद कोई चोट महसूस की हो। समीर ने न तो कभी प्यार में कोई चोट खाई थी और न ही किसी तंज़ का उस पर कोई असर होता था।

‘‘हूँ... हू इ़ज शी?’’

‘‘प्रिया; वही जो कल तुम्हारी पार्टी में मिली थी।’’

‘‘व्हाट! वह प्रिया पुखराज?’’ समीर का मुँह जिस तरह व्हाट कहने के लिए खुला था, वैसा ही खुला रह गया।

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘डू यू नो, हू इस शी?’’

‘‘ए वेरी प्रिटी गर्ल।’’ कबीर के ख़यालों ने अब तक प्रिया से गुस्ताखियाँ करना बंद नहीं किया था।

‘‘वह पुखराज ज्वेलर्स के मालिक पुखराज जैन की बेटी है; अरबपति हैं वो लोग।’’

‘‘तो क्या हुआ... अरबपति लड़कियाँ प्यार नहीं करतीं?’’

‘‘प्यार? उसके पीछे ह़जारों लड़के घूमते है; एंड शी इ़ज सो हॉट... सँभलकर रहना, कहीं जल मत जाना।’’

‘‘जलने की बारी तो अब तुम्हारी है।’’

‘‘व्हाट डू यू मीन?’’

‘‘आज शाम वह मेरे साथ डिनर पर जा रही है।’’

‘‘हूँ; स्मार्ट बॉय।’’ समीर का तंज़ तारी़फ में बदल गया। कितना आसान होता है लड़कों को इम्प्रेस करना; ‘‘चल, फिर ये मेरा क्रेडिट कार्ड रख ले; किसी बड़े रेस्टोरेंट में ले जाना; किसी बाल्टी ढाबे में न पहुँच जाना।’’

‘‘नो थैंक्स; पैसे हैं मेरे पास... माँ पैसे देने में कमी नहीं करती।’’

‘‘माँ को शायद पता नहीं है कि माँ दा लाड़ला बिगड़ गया है।’’ समीर के होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई।

‘‘बिगड़ के सँवर गया है।’’ कबीर ने अपने बालों में हाथ फेरते हुए समीर को फिर से आँख मारी। समीर के होंठों की मुस्कान कुछ और फैल गई।

उस शाम प्रिया भी कबीर के ख़यालों में डूबी हुई थी। आईने में ख़ुद के अक्स को निहारते हुए उसका ध्यान ख़ुद से ज्यादा कबीर पर था। क्या कबीर को यह ड्रेस पसंद आएगी? यह सवाल ही उससे चार ड्रेस बदलवा चुका था; यह पाँचवी ड्रेस थी। क्रिमसन हाईनेक स्लीवलेस पेंसिल ड्रेस विद साइड स्लिट, उसके स्लिम और गोरे बदन पर बेहद जँच रही थी। साइड स्वेप्ट बालों को उसने नीचे से कर्ली किया हुआ था। मैचिंग रेड स्वेड लेदर की टाई अप पॉइंटेड हाई हील्स पर अपने पैरों को ट्विस्ट कर उसने आईने की ओर पीठ करके गर्दन मोड़ी। क्रिमसन लेस से घिरी ओपन बैक भी का़फी आकर्षक दिख रही थी। प्रिया अब अपनी अपीयरेंस से पूरी तरह संतुष्ट थी। क्रिमसन पैशन का रंग होता है। आज वह कबीर का पूरा पैशन देखना चाहती थी।

ठीक सात बजे प्रिया के फ्लैट की डोरबेल बजी। प्रिया एक आखिरी बार आईने से पूछ लेना चाहती थी, कि वह कैसी लग रही है; मगर उस ख़याल को उसने इस ख़याल से सरका दिया कि कबीर से सुनना ही बेहतर होगा।

प्रिया ने दरवा़जा खोला। सामने कबीर खड़ा था। कबीर, बड़ी सादगी से तैयार हुआ था। खाकी स्किनी जींस, प्लेन कॉटन की मरून शर्ट, कलाई में ब्राउन लेदर स्ट्रिप से बँधी एक्युरिस्ट की सिंपल सी वाच; और तो और उसने शेव भी नहीं की थी, मगर उसके गोरे और लम्बे चेहरे पर हल्की दाढ़ी अच्छी लग रही थी, और उसके हाथों में लिली और गुलाब का गुलदस्ता था।

‘‘यू आर लुकिंग गॉर्जस, एंड एब्स्ल्यूटिलि स्टनिंग।’’ कबीर ने गुलदस्ता प्रिया के हाथों में देते हुए उसके बाएँ गाल को चूमा। यह प्रिया के बदन पर कबीर का पहला स्पर्श था। कबीर का किस सॉ़फ्ट और जेंटल था; उतना ही जेंटल, जितना कबीर ख़ुद था।

‘‘थैंक्स; एंड द फ्लॉवर्स आर लवली, प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया ने शर्म और ऩजाकत में लिपटी मुस्कान से कहा।

‘‘प्रिया लेट्स गो; यू नो लन्दन्स ट्रैफिक।’’

‘‘ओके, ए़ज यू विश।’’ प्रिया ने दरवा़जा बंद करते हुए कबीर का हाथ थामा। यह कबीर का दूसरा स्पर्श था। प्रिया के बदन में एक शॉकवेव सी उठी; जैसे कबीर का पैशन उसकी रगों में दौड़ उठा हो।

‘‘वेट ए मोमेंट।’’ कबीर की आँखें उसके चेहरे पर टिकीं। उन आँखों में एक मासूम बच्चे सा कौतुक था, और एक परिपक्व वयस्क की गहराई।

कबीर ने गुलदस्ते से एक गुलाब निकालकर प्रिया के बालों में लगाया; ठीक गाल के उसे हिस्से के थोड़ा ऊपर, जहाँ उसने उसे किस किया था। प्रिया ने चाहा कि कबीर उसके दूसरे गाल को भी चूम ले, मगर उस चाह की किस्मत में थोड़ा इंत़जार करना लिखा था। डार्क क्रिमसन गुलाब, प्रिया की क्रिमसन रेड ड्रेस से पूरी तरह मैच कर रहा था, और उसकी क्रिमसन लिपस्टिक से भी।

कबीर, छोटी सी ही, मगर खूबसूरत कार लेकर आया था। रेड होंडा जा़ज। प्रिया को लगा कि कबीर की जगह कोई और होता, तो कोई पॉश कार लेकर आता; अगर ख़ुद के पास न भी होती तो हायर ही कर लेता। क्या कबीर वाकई इतना सिंपल था, या फ़िर वह अपनी सादगी का प्रदर्शन कर रहा था।

‘‘प्ली़ज गेट इन।’’ पैसेंजर सीट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने प्रिया से कार के भीतर बैठने को कहा। कार के भीतर, महकती जास्मिन की मीठी खुशबू यह अहसास दे रही था, कि कार अभी-अभी वैलिट होकर आई थी; और साथ ही यह अहसास भी, कि कबीर, सादगी और बेरु़खी के बीच फर्क करना अच्छी तरह जानता था।

‘‘आपके साथ और कौन रहता है?’’ कार स्टार्ट करते हुए कबीर ने पूछा।

‘‘कबीर, ये आप वाली फॉर्मेलिटी छोड़ो, अब हम दोस्त हैं।’’ प्रिया ने पैसेंजर सीट पर ख़ुद को एडजस्ट करते हुए कहा। प्रिया ने कबीर के साथ बेतकल्लु़फ होने का इरादा का़फी पहले ही कर लिया था।

‘‘तुम्हारे साथ और कौन रहता है?’’

‘‘हूँ, ये ठीक है।’’

‘क्या?’

‘‘आप नहीं तुम।’’

‘‘तुमने जवाब नहीं दिया।’’

‘‘मैं अकेली रहती हूँ।’’

‘‘तुम्हारे पेरेंट्स?’’

‘‘पेरेंट्स मुंबई में हैं; मैं यहाँ एमबीए कर रही हूँ।’’

‘‘एमबीए करके क्या करोगी?’’

‘‘डैड का बि़जनेस ज्वाइन करूँगी; और तुम क्या कर रहे हो कबीर?’’

‘‘किंग्स कॉलेज से इंजीनियरिंग की है; फ़िलहाल कुछ नहीं कर रहा हूँ।’’ कबीर के लह़जे में एक अजीब सी बे़फिक्री थी।

‘‘जॉब ढूँढ़ रहे हो?’’

‘उँहूँ।’

‘‘तो फिर?’’

‘‘प्यार ढूँढ़ रहा हूँ।’’ कबीर ने मुस्कुराकर प्रिया की आँखों में अपनी आँखें डालीं। प्रिया को कबीर की आँखों में एक ठहरा हुआ दृश्य दिखाई दिया, जैसे कोई स्टेज पऱफॉर्मर किसी एक जगह आकर थम गया हो... किसी एक स्पॉटलाइट पर।

‘मिला?’ प्रिया की आँखें चमक उठीं।

‘‘कुछ मिला तो है, जो बेहद खूबसूरत है।’’

‘‘प्यार जितना?’’

‘‘पता नहीं प्यार खूबसूरत होता है, या जो खूबसूरत है उससे प्यार होता है; मगर प्यार में इंसान ख़ुद बहुत खूबसूरत हो जाता है।’’ कबीर की आँखों की स्पॉटलाइट थिरक उठी, और साथ ही उसमें ठहरा हुआ पऱफॉर्मर भी। प्रिया के गाल ब्लश करके क्रिमसन हो गए।

कबीर को फाइन डाइनिंग का शौक हमेशा ही रहा है। खाना जितना ल़जी़ज हो, उतनी ही ल़ज़्जत से परोसा भी गया हो, तो स्वाद दुगुना हो जाता है; और फिर एम्बिएंस, माहौल... दैट इ़ज द रियल ऐपटाइ़जर। और फिर उस खूबसूरत माहौल को किसी रूहानी मह़िफल में तब्दील कर रहा था प्रिया का साथ।

‘‘नाइस रेस्टोरेंट... द एम्बिएंस इ़ज प्रिटी गुड।’’ रेस्टोरेंट की डिम लाइट में प्रिया का चेहरा किसी फ्लूरोसेंट लैंप सा चमक रहा था।

‘‘आई लव दिस रेस्टोरेंट; मेरे लिए यह रेस्टोरेंट बहुत लकी है।’’ कबीर ने प्रिया के चमकते चेहरे पर अपनी ऩजरें टिकाईं।

‘‘लकी? किस तरह?’’

‘‘मेरे पहले प्यार की कहानी इसी रेस्टोरेंट से शुरू हुई है।’’

‘‘पहले प्यार की कहानी? कब?’’ प्रिया के चेहरे पर अचरज और उलझन की लकीरें सा़फ खिंच आर्इं।

‘‘आज, अभी।’’ कबीर के होठों की शरारत उन्हें ट्विस्ट कर थोड़ा सा कर्ली कर गई।

‘‘कबीर, तुम कभी सीरियस भी होते हो?’’ प्रिया खिलखिला उठी।

‘‘आई एम सीरियस प्रिया।’’

‘‘सीरियस? अबाउट व्हाट?’’

‘‘अवर रिलेशनशिप।’’

‘‘रिलेशनशिप? हम कल ही मिले हैं, और आज रिलेशनशिप?’’

‘‘तो क्या तुम यहाँ मेरे साथ टाइम पास करने आई हो?’’

‘‘हाँ, तुम्हारे साथ टाइम पास करना अच्छा लगता है।’’ प्रिया ने हँसते हुए कबीर का हाथ थामा। प्रिया न जाने कितनी बार कबीर का हाथ थाम चुकी थी, मगर उसे हर बार वही ‘पहली बार’ वाली फीलिंग आती थी।

‘‘खैर ये बताओ ड्रिंक क्या लोगी? अब ये मत कहना, लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज।’’

‘‘बिल्कुल, लेमन सोडा विद नो शुगर प्ली़ज।’’ प्रिया ने शरारत से ‘प्ली़ज’ पर ज़ोर दिया।

‘‘व्हाट? मैंने सोचा कि हम कोई कॉकटेल या शैम्पेन लेंगे?’’

‘‘शैम्पेन, हम मेरे फ्लैट पर पियेंगे।’’

‘‘तुम्हारे फ्लैट पर?’’

‘‘हाँ, डिनर करके हम मेरे फ्लैट पर जा रहे हैं।’’

‘‘तो फिर हम यहाँ क्या कर रहे हैं?’’

‘‘यहाँ हम टाइम पास कर रहे हैं।’’

‘‘और तुम्हारे फ्लैट में क्या करेंगे?’’ कबीर की आँखें किसी रोमांचक आमन्त्रण की सम्भावना से चमक उठीं।

‘‘शैम्पेन पियेंगे।’’

‘‘बस, शैम्पेन पियेंगे?’’

‘‘बिलीव मी, ऐसी शैम्पेन तुमने पहले कभी नहीं पी होगी।’’

‘‘कौन सा ब्रांड है?’’

‘‘मेरा वह मतलब नहीं है।’’

‘‘तो फिर क्या मतलब है तुम्हारा?’’

‘‘मेरा मतलब है कि तुम शैम्पेन फ्लूट से नहीं पियोगे।’’ प्रिया की आँखों का आमन्त्रण थोड़ा नटखट हो उठा।

‘‘तो क्या बोतल से पीनी पड़ेगी?’’

‘‘उँहूँ।’’

‘‘समझ गया; तुम मुझे अपनी आँखों से पिलाओगी।’’ कबीर ने प्रिया की आँखों में गहराई तक झाँका।

‘‘आँखों में शैम्पेन गई तो आँखें खराब हो जाएँगी।’’ प्रिया के होठों से उछलकर हँसी उसके नटखट आमन्त्रण में एक नई शरारत भर गई।

‘‘तो फिर किससे पिलाओगी यार? चुल्लू से?’’ कबीर से अब और सब्र न हो रहा था।

‘‘आई हैव ए फ्लैट टमी एंड ए डीप बेली बटन।’’

‘व्हाट?’ प्रिया के आँखों की शरारत, किसी डोर सी उछलकर कबीर के ख़यालों में उसका बेली बटन टाँक गई, और उससे शैम्पेन के मस्ती भरे घूँट भरने के ख्याल ने उसे ऐसे नशे में डुबा दिया, कि कुछ देर के लिए वह अपने होश खो बैठा।

‘‘अब बेवकूफों की तरह ताकना बंद करो, और जल्दी से खाना ऑर्डर करो, मुझे बहुत ज़ोरों से भूख लगी है।’’ प्रिया की आँखों से उतरकर शरारत उसके होठों की शर्मीली मुस्कान में घुल गई।