सुनील फिर लेक होटल से मुख्य सड़क पर आ गया । उसने अपनी कार एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के सामने रोकी और रमाकांत के नम्बर डायल कर दिये । रमाकांत जल्दी ही लाइन पर आ गया ।


"रमाकान्त !" - सुनील ने कहा- "क्या चल रहा है ?" "अब तो महफिल उखड़ रही है प्यारे।" - रमाकांत ने प्रसन्न स्वर में उत्तर दिया ।


"नलिनी का क्या हाल ?"


"बुरा हाल है, यार लोगों ने इतनी पिला दी है कि अब 

उसे यहां से भिजवाने के लिए उसके बाप को फोन करना पड़ेगा... वैसे सुनील, क्या तुमने कभी स्कॉच में डूबे हुए होंठ चूमे हैं ?"


और सुनील को रमाकांत के होंठों का चटकारा सुनाई दिया ।


रमाकांत बहक रहा था और सुनील उससे काम की बातें सुनना चाहता था ।


"रमाकांत" - वह सख्त स्वर में बोला "एक गिलास ठंडा पानी पियो ।”


"क्यों ?" - रमाकांत झूमकर बोला- “एक गिलास शैम्पेन न पिऊं और..."


"जैसा कहता हूं, वैसा करो।" - वह क्रुद्ध स्वर में बोला ।


“अच्छा भाई नाराज क्यों होता है !" - दूसरी ओर से रमाकांत के रिसीवर मेज पर रखने की आवाज आई। थोड़ी देर बाद रमाकान्त का अपेक्षाकृत संयत स्वर सुनाई दिया "अब कहो ।"


"कोई नया समाचार मिला ?"


"भई अभी थोड़ी देर पहले मेरे एक आदमी ने मुझे कोई नया समाचार देने के लिए फोन किया तो था लेकिन मैं जरा राग रंग में डूबा हुआ था, ...इसीलिए मैंने उसे बाद में फोन करने के लिये कहा था । अब पता नहीं वह क्या कहना चाहता था और दूसरी बार कब फोन करेगा !"


सुनील को क्रोध तो बहुत आ रहा था, लेकिन वह कर क्या सकता था, वह बोला "देखो, इस समय मैं डॉक्टर स्वामी से मिलने जा रहा हूं अगर तुम्हारा वह आदमी आधे या पौने घंटे में कोई रिपोर्ट दे तो तुम मुझे स्वामी के घर या क्लिनिक दोनों जगह ट्राई कर लेना ।"


"अच्छा, राकेश के विषय में क्या कहते हो ? तुमने दो घन्टे का समय मांगा था। अब तक पुलिस को जयनारायण की हत्या का समाचार मिल चुका होगा। अब मैं राकेश को अधिक देर तक होल्ड नहीं कर सकता ।"


“राकेश जो चाहे करे, मेरा काम हो गया है।" - सुनील ने कहा और वह फोन को क्रेडल पर पटकने वाला ही था कि उसे रमाकांत की उत्तेजित आवाज सुनाई दी।


- "हलो, हलो सुनील ।" वह कह रहा था- "प्लीज होल्ड दी लाइन फॉर ए मूमेंट।"


"क्यों, क्या बात है?" - सुनील ने चिढकर पूछा।


"दूसरे फोन की घंटी बज रही है। तुम जरा होल्ड करो । शायद मेरा वही आदमी दुबारा फोन कर रहा हो।"


"अच्छा ।"


"हलो" - लगभग पांच मिनट बाद रमाकांत की आवाज सुनाई दी "सुनील पुलिस को जयनारायण की हत्या का समाचार मिल चुका है। पुलिस खोजबीन के सिलसिले में जयनारायण के पैट्रोल पम्प पर गई थी। वहां के कर्मचारियों से बातचीत करने पर उन्हें मालूम हुआ कि तुम वहां गए थे और जयनारायण को उसके घर भी तुम्हीं ने अपनी कार पर पहुंचाया था। "


"यह तो गड़बड़ हो गई।" - सुनील बड़बड़ाया ।


"गड़बड़ !" - रमाकान्त हैरान होकर बोला "इसका मतलब है कि यह सच है... तुम जयनारायण को उसकी कोठी पर छोड़ने गए थे ?" -


"हां भाई ठीक है। अब एक ही बात को रोये जाओगे क्या ?"


सुनील ने लाइन काट दी । क्षण भर वह चिन्तित-सा खड़ा रहा और फिर उसने डॉक्टर स्वामी के क्लिनिक में फोन कर दिया ।


"हलो।" - कुछ क्षण बाद एक महिला का स्वर सुनाई दिया । 


"मैं डॉक्टर साहब से फौरन बात करना चाहता हूं। मुझे उनके घर का टेलीफोन नम्बर मालूम नहीं था, इसलिए यहां फोन करना पड़ा।"


"आप रोग के लक्षण वगैरह बता दीजिये" - महिला, जो शायद नर्स थी, बोली- "मैं डॉक्टर को रेफर कर दूंगी।"


"मैं बीमार नहीं हूं। मेरा नाम सुनील कुमार चक्रवर्ती है । मैं ब्लास्ट का रिपोर्टर हूं। मैं डॉक्टर से रमा खोसला के विषय में बातें करना चाहता हूं और बेहद जरूरी है, नहीं तो मैं आधी रात को उन्हें कष्ट नहीं देता।"


"तो आप क्लिनिक में आ जाइये, मैं डाक्टर को फोन

कर देती हूं।"


सुनील फोन बन्द करके बूथ से बाहर निकल आया । उसने कार को स्टार्ट किया और धीरे-धीरे स्वामी के क्लिनिक की ओर चल दिया। इस समय वह स्वयं को सख्त भूखा अनुभव कर रहा था। इस भाग-दौड़ में उसे खाना खाने का समय ही नहीं मिला था। खाने की याद आते ही उसे प्रमिला की याद आई और उसके चेहरे पर एक विषादपूर्ण मुस्कान खिंच गई। बेचारी न जाने कब तक खाने के लिये उसकी प्रतीक्षा करती रही होगी। पहले तो उसकी इच्छा हुई कि वह प्रमिला को फोन कर दे, लेकिन फिर उसने यह विचार अपने दिमाग से झटक दिया। अब तक तो वह सो भी गई होगी । पम्मी वह एक बार बड़े प्यार से होंठों में बुदबुदाया और फिर एक्सीलेटर पर पांव रख दिया। सुनील प्रमिला से प्यार करता था, लेकिन उसके सामने इस तथ्य को कभी स्वीकार नहीं करता था । जब भी प्रमिला के लिए उसके दिल में कोई मधुर विचार उत्पन्न होते थे, वह स्वयं को व्यस्त बनाकर उन्हें झटक देता था ।


रास्ते में उसे लोगों को भीड़ दिखाई दी। उसने कार की गति धीमी कर दी। रिवोली पर शायद अन्तिम शो समाप्त हुआ था। उसने कार रिवोली के कंपाउंड में मोड़ दी, वहां चाय मिलने की सम्भावना थी ।


"क्यों भई, कुछ मिलेगा ?" - वह कैन्टीन में जाकर बोला। वे लोग अपनी बोरिया-बिस्तर समेट रहे थे ।


"अब तो नहीं साहब, बहुत देर हो गई।" - एक वेटर व्यस्तता जताते हुए कहा ।


"इतने में भी नहीं ?" - सुनील ने पांच का नोट उस तरफ लहराते हुए कहा ।


वेटर ने कुछ देर तक सोचा और नम्र स्वर में बोला "क्या मांगेगा साब ?"


"काफी और आमलेट।" - सुनील ने उसे नोट थमाते हुए कहा "मैं बाहर कार में बैठा हूं।" -


"बहुत अच्छा साब।"


सात आठ मिनट में ही वेटर उसकी इच्छित वस्तुएं ले आया ।


" स्लाइस लेगा साब ?" - उसने पूछा ।


"वाह प्यारे, नेकी और पूछ पूछ।" - सुनील प्रसन्न होकर बोला ।


वेटर शरीफ था, उसने पांच के नोट के साथ अन्याय न किया था । वह काफी भी लगभग तीन कप लाया था ।


सुनील तृप्त हो गया। पेट भर जाने पर वह स्फूर्ति का अनुभव कर रहा था। समय की कसर उसने कार तेज चलाकर पूरी कर ली ।


डाक्टर सुनील से पहले ही अपने क्लिनिक में पहुंच चुका था ।


"आई एम सारी डाक्टर।" - सुनील ने डाक्टर से हाथ मिलाते हुए कहा - "आई डिस्टर्बड यू एट ए वैरी ओड मूमेंन्ट "


"इट इज पेर्फेक्ट्ली आल राइट विद मी।" - डॉक्टर ने औपचारिकता निभाते हुए कहा - "प्लीज बी सीडिड।"


"डाक्टर साहब मेरी ईमानदारी पर विश्वास रखिये । अगर बेहद महत्वपूर्ण विषय न होता तो मैं आपको आधी रात को हरगिज कष्ट नहीं देता... आप जानते ही होंगे कि मैं रमा खोसला के लिए काम कर रहा हूं।"


"क्या वाकई ?" - डाक्टर ने आश्चर्य प्रदर्शित करते हुए पूछा ।


“आप नहीं जानते क्या ?"


"मुझे तो बताया गया था कि आपने केवल उसी सूरत में रमा के लिए कार्य करना स्वीकार किया था कि अगर वह निर्दोष हो और किसी भी समय यदि आपकी दृष्टि में उसकी निर्दोषिता संदिग्ध हो उठती है तो आप उसे पुलिस के हवाले कर देंगे।"


"तो फिर इममें मैंने कौन सी गलत बात कह दी है ?" सुनील ने सख्त स्वर में कहा ।


"गलत कुछ भी नहीं कहा है आपने।" - डाक्टर ने उत्तेजना रहित स्वर में कहा "लेकिन इसके तरीके से ये नहीं मालूम होता कि आप सच्चे दिल से उसके लिए काम कर रहे हैं। "


"यदि वह निर्दोष है और उसके पास चोरी का धन नहीं है तो फिर भला मैं उसके लिये सच्चे दिल से काम क्यों नहीं करूंगा ?"


"अच्छा, मान लो वह अपराधी सिद्ध होती है ?"


"तो फिर मैं एक कर्तव्य-परायण नागरिक की तरह पुलिस की सहायता करूंगा।"


" और अगर वह वास्तव में निर्दोष हो, लेकिन कुछ विरोधी परिस्थितियां सामने आ जाने के कारण यदि वह दोषी मान ली जाती है तो आप उसके विरुद्ध हो जाएंगे, है न यही बात ?"


"लेकिन इतनी बड़ी गड़बड़ हो ही कैसे सकती है कि निर्दोष को दोषी मान लिया जाये ?"


"माने लो हो जाए। आजकल सैकडों ऐसे केस के जाते हैं कि उचित कानूनी सहायता के अभाव में निर्दोष फंस जाते हैं।"


"लेकिन रमा के साथ ऐसी धांधली की सम्भावना नहीं है । वह अमीर है, अपनी रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है।"


"लेकिन मिसाल के तौर पर मान तो कि वह निर्दोष होते हुए भी दोषी सिद्ध कर दी जाती है, तो तुम उसे पुलिस के हवाले कर दोगे ?"


"डॉक्टर साहब" - सुनील ने निरुत्तर होकर बात बदलनी चाही - "आप रमा को निर्दोष मानते हैं ?"


"बिल्कुल, मैं इसके लिए अपने जीवन का दांव लगा सकता हूं।"


"बहत स्पिरिट है।" - सुनील ने व्यंग्य समझकर अधिकारपूर्ण स्वर में कहा ।


"आपका उससे क्या सम्बन्ध है ?”


"केवल मित्रता का ।"


"कैसी मित्रता ?”


"क्या मतलब ?"


"कोई रोमांटिक अटैचमैंट ?"


"मिस्टर सुनील, मैं नहीं चाहता कि आपको मुझसे किसी प्रकार के अनुचित व्यवहार की शिकायत हो, वैसे ही मैं आपकी जानकारी के लिये बता देना बेहतर समझता हूं कि मैं कॉलेज में बॉक्सर रह चुका हूं और अभी भी अपने को वृद्ध या एकदम आउट ऑफ फार्म महसूस नहीं करता हूं।"