"कुछ मालूम हुआ ?" - विकास ने व्यग्र स्वर में पूछा ।
"हां मालूम हुआ है कि वैसे तो बख्तावर सिंह ने कई जल्लाद पाले हुए हैं लेकिन जो उनमें से टाप का जल्लाद है, तुम्हारे शब्दों में चीफ एग्जीक्यूशनर है, उसका नाम अमीरीलाल है। मेरे प्रैस रिपोर्टर मित्र का कहना है कि महाजन जैसे महत्वपूर्ण आदमी का कत्ल करने का काम अमीरीलाल के अलावा किसी और को नहीं सौंपा जा सकता था।"
"उसका हुलिया वगैरह ?"
"वह शक्ल से ही बड़ा खूंखार लगने वाला आदमी है । उसकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि उसके दांयें गाल पर कान से लेकर ठोड़ी तक एक सिले हुए जख्म का निशान है जिसे हर वक्त टटोलता रहता है । "
"यह पट्ठा पाया कहां जाता है ?"
"वहीं जहां इस किस्म के और पट्ठे पाये जाते हैं । बख्तावर के कथित हैडक्वार्टर मधुबन में। लेकिन वहां जाने से कोई फायदा नहीं होगा, दोस्त । "
"वह आदमी जुबान नहीं खोलता । वह तो अपने दोस्तों के साथ नहीं बतियाता, अजनबियों को तो बात ही क्या है । और सच पूछो तो उसके बारे में यह कहा जाता है कि दुनिया में बख्तावर सिंह के अलावा उसका कोई दोस्त है ही नहीं ।"
"मधुबन के बारे में बताओ । वह सिर्फ बख्तावर का अड्डा ही है या वहां चलता-फिरता ग्राहक भी आता है ?"
"चलता-फिरता ग्राहक खूब आता है और बड़े शौक से आता है।"
"शौक से क्यों ?"
"क्योंकि वहां ड्रिंक्स के रेट कम हैं । म्युनिसिपल कमिश्नर के तौर पर बख्तावर की उस बार की वजह से बहुत जय-जयकार होती है । इलैक्शन के दिनों में तो बख्तावर की तरफ से वहां फ्री ड्रिंक्स का दौर चलता है। लोग उसकी व्हिस्की पीते है और फिर उसे और उसके पसन्दीदा उम्मीदवारों को वोट देते हैं। कहते हैं उस बार की वजह से ही बख्तावर ने सारे विशालगढ को अपने मुट्ठी में किया हुआ है ।"
“आई सी !”
"इस आदमी को तुम कम मत समझो। लोग कहते हैं कि वो दादा है लेकिन आज तक किसी की उसके मुंह पर यह बात कहने की हिम्मत नहीं हुई और न ही कभी अखबार वालों का छापे में उसे दादा करार देने का हौसला हुआ है।"
"हूं।"
"वह दादा है या नहीं इस बात का बहरहाल इस हकीकत पर कतई कोई असर नहीं है कि उसकी मर्जी के बिना इस शहर में पत्ता नहीं हिल सकता।”
"और ?"
"बख्तावर के बारे में और कुछ नहीं लेकिन मेरे रिपोर्टर दोस्त ने किसी और के बारे में एक बड़ी दिलचस्प बात बताई है।"
" किसके बारे में ?"
"महाजन की विधवा के बारे में सुना है वह महाजन से उमर मे बीस-पच्चीस साल छोटी है और हाहाकार करा देने वाली खूबसूरती की मालिक है ।"
"मुझे मालूम है ।"
"तुम्हें कैसे मालूम है ?"
"मैं उससे मिल चुका हूं।"
"ओह ! फिर तो तुम्हें यह भी मालूम होगा कि वह औरत चरित्र की अच्छी नहीं ।"
“यह नहीं मालूम था ।”
“सफा-सफा हिन्दोस्तानी में कहा जाये तो बदमाश है वो । जरा सी कोशिश से कोई भी उसे अपने साथ लेटने के लिए तैयार कर सकता है। यह भी सुनने में आया है कि महाजन को इन बातों की भनक थी और वह अपनी बीवी के कारनामों से तंग आया हुआ था । सुना है उसने उसे तलाक देने का फैसला कर लिया हुआ था और उसकी चरित्रहीनता सिद्ध करने वाले सबूत जुटाने के लिए उसने किसी प्राइवेट डिटेक्टिरव को भी अपनी बीवी के पीछे लगाया हुआ था । कहने की जरूरत नहीं कि अगर वह अपनी बीवी को बेवफा और चरित्रहीन साबित करके तलाक लेता तो बीवी को कोई हर्जा खर्चा अदा करने की जिम्मेदारी उस पर आयद न होती । विकास, अगर एक मिनट के लिए मान लिया जाये कि बख्तावर सिंह सच बोल रहा है कि महाजन के कत्ल से उसका कोई रिश्ता नहीं तो क्या यह नहीं हो सकता कि कत्ल महाजन की बीवी ने करवाया हो और वह उस धमकी भरी चिट्ठी की वजह से कत्ल को बख्तावर के गैंग का काम साबित करने की कोशिश कर रही हो ।”
"सुनयना ने कत्ल किससे करवाया होगा ?"
"यह बीवी का नाम है ? "
"हां । उसने कत्ल किससे करवाया होगा ? नगर के सारे गुण्डे बदमाशों को तो बख्तावर की सरपरस्ती हासिल है । अगर सुनयना ने किसी से कत्ल करवाया होता तो यह बात क्या बख्तावर से छुपी रहती ?"
"तो फिर खुद किया होगा ?"
"यह भी नहीं हो सकता । वह तो मेरे सामने ही वहां से चली गई थी।"
"वह लौट आई होगी।"
"और फिर पैंतालीस कैलिबर की भारी रिवाल्वर औरतों का हथियार नहीं होता ।"
"यह सब मैं नहीं जानता । मैं केवल इतना जानता हूं कि हत्या का सबसे बड़ा उद्देश्य सिर्फ बीवी के पास है ।"
"यह कि महाजन उसे तलाक देने वाला था ?"
“यह भी और इससे ज्यादा तगड़ा उद्देश्य और भी ।"
" और क्या ?"
"महाजन बीस-बाइस लाख की आसामी बताया जाता । उसकी मौत के बाद वही उसकी वारिस है । "
विकास को योगिता महाजन का ख्याल आया । वह भी तो अपने बाप की जायदाद की वारिस थी । लेकिन फिर भी सुनयना के पास कत्ल का उद्देश्य कम तगड़ा नहीं था। उसे महाजन की आधी दौलत मिलती तो भी उसकी चांदी थी ।
"कोई और बात ?" - विकास रिसीवर में बोला ।
"बस । तुम बताओ अब तुम्हारा क्या इरादा है ?" "सबसे पहले तो मधुबन जाने का ही इरादा है ।” "वहां तुम्हारा अकेले जाना ठीक होगा ?" "वहां मेरा अकेले ही जाना ठीक होगा ।" “अच्छी बात है। जैसा तुम मुनासिब समझो।" सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
विकास जहां आरा रोड पहुंचा ।
वहां पहचान लिए जाने की उसे कोई विशेष चिन्ता नहीं थी । अब तक उसका मौजूदा पहरावा कई इम्तहान पास कर चुका था । ऊपर से उस रोज उसने शेव नहीं की थी जिसकी वजह से अब उसकी सूरत उसके पहरावे से ज्यादा मेल खाने लगी थी । अब कद काठ के अलावा अखबार में छपे हुलिए वाली कोई बात बाकी नहीं थी उसमें । अब वह कोई ड्राइवर लगता था और ट्रक ड्राइवरों की उस शहर में भरमार थी ।
दस बजे के करीब वह मधुबन में दाखिल हुआ ।
वह एक विशाल हाथ था जिसके एक कोने में लम्बा बार काउन्टर था और हाल में काफी मेजें लगी हुई थीं । बार में उस वक्त काफी भीड़ थी और खूब शोर शराबा मचा हुआ में था ।
एक लम्बे तड़ंगे व्यक्ति के गिर्द लोगों की विशेष भीड़ लगी हुई थी । वहां मौजूद लोगों के मुकाबले में वह अच्छे कपड़े पहने था और देखने में बहुत रोब और दबदबे वाला मालूम होता था । लोग उसके मुंह से निकली हर बात को बड़ी गौर से सुन रहे थे और रह-रह कर बड़े फरमायशी ठहाके लगा रहे थे। विकास को समझते देर नहीं लगी कि उस आदमी के गिर्द बैठे सभी व्यक्ति उसके चमचे थे ।
"ये कौन साहब हैं ?" - विकास ने उस आदमी की तरफ इशारा करके एक वेटर से पूछा ।
“अरे !" - वेटर बोला- "बख्तावर सिंह को नहीं जानते ? शहर में नये आए हो क्या ?"
विकास तुरन्त वेटर से परे हट गया ।
तो यह था बख्तावर सिंह ।
फिर वह सारे हाल में फिर गया ।
उसे कहीं भी अमीरी लाल के हुलिए वाला वो आदमी दिखाई न दिया ।
विकास बार काउन्टर पर लौट आया । वह एक स्टूल पर बैठ गया । उसने बारटेण्डर से विस्की का एक पैग हासिल किया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और अमीरी लाल के वहां प्रकट होने की प्रतीक्षा करने लगा ।
बार की रौनक से लग रहा था कि वह अभी दो-तीन घण्टे और बन्द नहीं होने वाला था ।
उस दौरान अमीरी लाल वहां पहुंच सकता था ।
आधे घन्टे में उसने विस्की का पहला पैग खतम किया
उसने बार में नया पैग हासिल किया ।
उस दौरान उसने देखा कि भीड़ घटने के स्थान पर और बढ गई थी :
उसने यह भी नोट किया कि बख्तावर सिंह अपने चमचों के झुंड में से एकाएक कहीं गायब हो गया था ।
लेकिन क्योंकि झुंड फिर भी नहीं टूटा था, इससे लगता था कि वह फिर वहीं लौट कर लाने वाला था ।
तभी बार के भीतर एक नए आदमी ने कदम रखा । विकास ने फौरन पहचान लिया कि वह अमीरी लाल था ।
बख्तावर सिंह का चीफ एग्जीक्यूशनर ।
उसके दायें गाल पर कान से लेकर ठोड़ी तक बना सिले हुए जख्म का निशान उसकी सूरत में एक अजीब सी क्रूरता और वीभत्सता पैदा कर रहा था ।
कुछ लोगों ने अमीरी लाल का अभिवादन किया लेकिन उसने उनकी तरफ कोई विशेष ध्यान दिया हो, विकास को ऐसा नहीं लगा । न ही उसके चेहरे पर किसी प्रकार के विनोद के भाव आये ।
भीड़ में से गुजरता एक उंगली से अपने गाल के जख्म को टटोलता वह सीधा बार पहुंचा और इत्तफाक से विकास की बगल के खाली स्टूल पर आकर बैठा ।
उसने बारटेण्डर को विस्की का आदेश दिया ।
"आज बड़ी भीड़ है यहां ।" - विकास सहज भाव से बोला ।
अमीरी लाल ने गरदन घुमा कर उसकी तरफ देखा ।
"यहां हमेशा ही भीड़ होती है ।" - वह भावहीन स्वर में बोला ।
बारटेण्डर ने उसके सामने विस्की और सोडा रखा ।
अमीरी लाल ने विस्की में विस्की जितना ही सोडा मिलाया और उसे एक ही घूंट में पी गया ।
“यहां ड्रिंक्स इतनी सस्ती है" - विकास फिर बोला - "कि मुझे लगता है कि शहर के और किसी बार में तो कोई जाता ही नहीं होगा।"
“अमीरी लाल ने उत्तर नहीं दिया ।"
विकास ने अपना विस्की का गिलास खाली किया और बोला - "एक-एक ड्रिंक मेरी तरफ से हो जाये ।"
अमीरी लाल ने फिर गर्दन उसकी तरफ घुमाई । उसके माथे पर बल पड़ गये ।
"क्यों ?" - वह बोला ।
“क्या हर्ज है ?” - विकास सहज भाव से बोला - "यहां मैंने कई बार बख्तावर सिंह की तरफ से मिल रही फ्री विस्की पी है । आज सोच रहा हूं कि यहां कभी मुझे भी तो किसी को विस्की पिलानी चाहिए।"
"बख्तावर सिंह को ही क्यों नहीं पिलाते हो ? यहीं कहीं होगा वह । "
"तुम तो, गुरु, बात को किसी और ही रंग में ले गये । मैंने तो सिर्फ पीने वालों में स्थापित एक भाई चारे को नीयत से ऐसा कहा था । अगर तुम्हें मेरी ड्रिंक कबूल नहीं है तो न सही।"
अमीरी लाल कई क्षण एक टक उसे देखता रहा ।
"मंगाओ।" - अन्त में वह बोला । विकास ने विस्की के दो बड़े पैग मंगाये ।
“चियर्स ।” - वह बोला । “
चियर्स।" - अमीरी लाल भी बोला ।
दोनों ने गिलास होंठों से लगाये ।
"तुम यहां नये मालूम होते हो ।" - कुछ क्षण बाद अमीरी लाल बोला ।
“नया ही समझो । सिर्फ एक महीने से इस शहर में हूं मैं । लेकिन तुमने कैसे जाना ?"
"यहां के पुराने आने वाले होते तो तुम्हें मालूम होता कि मुझे यहां कोई ड्रिंक पेश नहीं करता ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि लोग मुझसे डरते हैं । "
"वह किस लिये ?"
"क्योंकि मैं अमीरी लाल हूं।" - वह बोला । उसके स्वर में आक्रोश और अभिमान का एक अजीब-सा पुट था । विकास के चेहरे पर कोई भाव न आता पाकर वह बोला "लगता है मेरा नाम तुमने कभी नहीं सुना ।” -
"नहीं सुना ।" - विकास बोला ।
“तभी तो ।”
उसने अपना विस्की का गिलास खाली कर दिया ।
विकास ने उसके लिए नये पैग का आर्डर किया । अमीरी लाल ने एतराज नहीं किया ।
"मैं तो तुमसे नहीं डरता ।" - विकास बोला ।
“क्या ?" - अमीरी लाल एकाएक कहर भरे स्वर में बोला।
"मेरा मतलब है" - विकास जल्दी से बोला - " कि जब मैंने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा नहीं तो मैं तुमसे डरू क्यों ? मेरी तुम्हारे से कोई रंजिश नहीं, कोई अदावत नहीं, तुम्हारे रास्ते में आने की मेरी कोई नीयत नहीं तो फिर मैं क्यों डरू ? मैं तो यारी-दोस्ती में विश्वास रखने वाला एक ऐसा सीधा-सादा आदमी हूं जो इसलिए तुम्हारी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है क्योंकि वह अकेले विस्की पीने में विस्की का लुत्फ नहीं उठा पाता ।”
अमीरी लाल कुछ क्षण उसकी बात पर विचार करता रहा, फिर उसके होंठों पर एक हल्की-सी मुस्कराहट प्रकट हुई।
जाहिर था कि विकास की बात उसे जंच गई थी ।
विकास समझ गया कि वह आदमी भी साथ का तलबगार था । हर कोई क्योंकि उससे डरता था इसलिए जाहिर था कि कोई उसके पास भी नहीं फटकता था । वह आदमी आदतन नहीं, मजबूरन तनहा था ।
दोनों के गिलास खाली हुए तो अमीरी लाल ने जिद करके अगले राउण्ड का खुद आर्डर दिया ।
विकास की विस्की पीने की इच्छा भी नहीं थी लेकिन वह अपने स्वार्थवश विस्की झेल रहा था ।
चौथे पैग के बाद अमीरी लाल चहकने लगा और वह विकास को तरह-तरह की बातें और गन्दे चुटकुले सुनाने लगा ।
उसमें हुआ वह परिवर्तन खुद बारटेण्डर के लिए भी हैरानी की बात थी ।
साढे ग्यारह बजे तक अमीरी लाल नशे में धुत हो चुका था।
"तुम्हें विश्वास नहीं होगा।" - वह विकास के कन्धे पर हाथ मारता हुआ बोला- "लेकिन यह हकीकत है कि एक दिन खुद बख्तावर सिंह ने मुझे एक गन्दा चुटकुला सुनाया था । क्या चुटकुला था, अम्मा कसम | सुनोगे तो हंस-हंसकर बेहोश हो जाओगे ।"
विकास को वार्तालाप का रुख अपने मतलब की बात की तरफ मोड़ने का वह बड़ा मुनासिब मौका लगा ।
"कल जो कत्ल हुआ था ।" वह सावधानी से बोला "उसमें बख्तावर सिंह को एक तो बहुत बड़ा फायदा हुआ।" -
"कत्ल !" - अमरी लाल सकपकाया ।
"भई, मैं महाजन नाम के उस आदमी के कत्ल की बात कर रहा हूं जो कोई नेता - वेता भी था । उसके लिए तो यह भारी फायदे की बात है कि पुलिस को मालूम है कि असल में कत्ल किसने किया था नहीं तो कत्ल की उस धमकी के बाद तो हर किसी की इलजाम लगाती उंगली बख्तावर सिंह की ओर ही उठती ।"
“एक बात बताऊं तुम्हें ?" - अमीरी लाल उसकी ओर तनिक झुक कर बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला ।
"क्या ?"
"हर कोई यही समझ रहा है कि महाजन को जान से मार डालने की वह धमकी बख्तावर सिंह ने भेजी थी । और तो और खुद उसके अपने कुछ आदमी भी यही समझते हैं । बख्तावर सिंह अपनी अन्दरूनी बातें हर किसी को नहीं बताता । लेकिन मेरी बात और है ।"
“अच्छा ।”
"हां । मैं उसका दायां हाथ हूं । वह मुझसे कोई बात नहीं छुपाता । छोटी से छोटी बात भी वह मुझसे नहीं छुपाता । और इसीलिए मुझे यह बात मालूम है । "
"कौन सी बात ?”
“कि महाजन को वह धमकी वाली चिट्ठी बख्तावर सिंह ने नहीं भेजी थी ।"
"तो फिर किसने भेजी थी ?"
"उसी ने जिसने महाजन का कत्ल किया बताते हैं । "
"तुम्हारा मतलब है वही आदमी जो महाजन के सिर बोगस चैक थोपने को कोशिश कर रहा था ?"
“वह बात भी गलत साबित हो चुकी है। पुलिस को मालूम हुआ है कि नैशनल बैंक में उस आदमी का पचास हजार रुपया जमा था ।"
"यानी कि पुलिस को मालूम है कि वह बोगस चैक चलाने वाला कोई ठग नहीं था । "
"हां ।”
“कमाल है !"
अमीरी लाल और थोड़ा उसकी तरफ सरक आया और इतने धीमे स्वर में बोला कि विकास को सुनने में दिक्कत महसूस होने लगी - "जानते हो बख्तावर सिंह का अपना क्या ख्याल है ?"
"क्या ख्याल है ?" - विकास बोला ।
“उसका ख्याल है कि सारा किया धरा महाजन की नौजवान बीवी का है। उसी ने इस विकास गुप्ता नाम के आदमी से महाजन का कत्ल करवाया है। कहते हैं इस आदमी का दिल्ली में मीलों लम्बा पुलिस रिकार्ड है और वह कोई बहुत ही पहुंचा हुआ दादा है ।"
“अच्छा, जी !"
"हां । महाजन की बीवी जानती थी कि महाजन और बख्तावर सिंह के बीच लग रही थी। उसने शक का रुख
बख्तावर सिंह की ओर करने की खातिर खुद वह धमकी भरी चिट्ठी तैयार की और कत्ल से एक दिन पहले अपने लेटर बक्स में डाल दी, जहां से कि वह सहूलियत से महाजन के हाथ लग सकती । हर किसी ने यही समझा कि वह धमकी बख्तावर सिंह ने भेजी थी। फिर जब कत्ल हो गया तो भी हर किसी ने यही समझा कि कल्त बख्तावर सिंह ने करवाया था।"
"ओह !"
"लेकिन जब कि हकीकत यह है कि अगर कत्ल बख्तावर सिंह ने करवाया होता तो वह इतने बेहूदे ढंग से न हुआ होता ।"
विकास खामोश रहा । अब तक केवल मनोहरलाल ने ही महाजन की बीवी पर अपना शक जाहिर किया था । अब वही बात वह अमीरी लाल के मुंह से भी सुन रहा था । लेकिन सवाल यह था कि पुलिस भी महाजन की बीवी पर हत्यारा होने का सन्देह कर रही थी या नहीं। लेकिन फिर उसने महसूस किया कि उसमें भी उसके लिए कोई राहत नहीं थी । अब यह समझा जा रहा था कि उसकी ठगी की पोल खुल रही थी, इसलिए उसने महाजन की बीवी द्वारा कत्ल के लिए ठीक किया हुआ कोई किराये का पिट्ठू था। यानी कि केवल उद्देश्य में परिवर्तन आ जाता, हत्यारा फिर भी वही समझा जाता ।
"हत्यारे से महाजन के कत्ल का सिलसिला ठीक से जमा ही नहीं" - अमीरी लाल कह रहा था - "एक तो यही उसकी बेवकूफी थी कि जिस कार को बेचने के बहाने वह महाजन के यहां पहुंचा था, वह उसने थोड़ी ही देर पहले इसी शहर में से खरीदी थी। फिर बख्तावर सिंह का ख्याल है कि उस वक्त जरूर वहां और भी ग्राहक मौजूद रहे होंगे । उनके चले जाने तक वहीं अटके रहने की खातिर ही वह बहाना करके क्लाक रूम में चला गया होगा। लेकिन तब तक महाजन को उस पर शक हो चुका था । उसने वहां फोन खड़का दिया जहां से कि वह कार खरीद कर लाया था । वह फोन पर दूसरे कार डीलर को उसके बारे में सब कुछ बनाते लगा । तभी वह क्लाक रूम से बाहर निकला और महाजन अभी फोन पर बात कर ही रहा था कि उसने महाजन को शूट कर दिया । महाजन ने फोन पर यह भी बता दिया था कि वह आदमी कौन था और इस तरह कत्ल का सारा सिलसिला गड़बड़ा गया और हत्यारे को लेने को..." ।
“भई कमाल हो गया ! आज तो पत्थर बोल पड़ा !"
अमीरी लाल बोलता-बोलता रुक गया । उसने और विकास ने एक साथ घूम कर पीछे देखा ।
पीछे बख्तावर सिंह खड़ा था ।
“पत्थर ने सिर्फ बोल रहा है ।" - बख्तावर सिंह अमीरी लाल को घूरता हुआ बोला - "बल्कि बोलता ही चला जा रहा है।"
विकास के जिस्म में सिहरन-सी दौड़ गई। पता नहीं वह कब से उनके पीछे खड़ा उनका वार्तालाप सुन रहा था ।
अमीरी लाल स्टूल से उतर पड़ा । उसने खिसियाये भाव से अपने बास का अभिवादन किया ।
“यह कौन है ?" - बख्तावर सिंह विकास को देखता हुआ बोला ।
“यह... यह..." - अमीरी लाल बोला- "मेरा दोस्त है -
"दोस्त तो हुआ । नाम क्या है इसका ?"
“शिव कुमार ।" - अमीरी लाल के बोलने से पहले विकास बोल पड़ा । अमीरी लाल को उसने अपना कोई नाम बताया ही नहीं था ।
“शिव कुमार ।" - उससे हाथ मिलाने का उपक्रम करने के स्थान पर उसका कन्धा थपथपाता हुआ बख्तावर सिंह बोला - “अमीरी लाल का दोस्त ! क्या पुड़िया दी थी तुमने इसे ?"
"पुड़िया ?"
"जो यह इतना चहक रहा था । "
"कुछ नहीं, मैंने कोई पुड़िया न हीं दी इसे । यूं ही हल्की-फुल्की बातचीत चल रही थी । कोई खास बात तो..." ।
" तुम्हें मैंने पहले कभी यहां देखा नहीं ।”
“आया तो मैं बहुत बार हूं यहां । आपकी फ्री ड्रिंक्स का आनन्द भी ले चुका हूं। लेकिन फिर भी क्योंकि अपेक्षाकृत यहां नया हूं इसलिये आपका ध्यान मेरी तरफ कभी गया नहीं ।”
"हूं । काम क्या करते हो ?"
"ट्रक ड्राइवर हूं।" "यहीं ? इसी शहर में ?" “जी हां ।” "कौन-सी कम्पनी में ?"
बार में दाखिल होने से पहले उसी सड़क पर विकास ने एक जगह सबरवाल ट्रांसपोर्ट कम्पनी का बोर्ड लगा देखा था |
“सबरवाल ट्रांसपोर्ट कम्पनी में।" उसने वही नाम दोहरा दिया । -
"हूं।" - बख्तावर सिंह बोला । फिर उसने चुटकी बजाकर बारटेण्डर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किय और बोला - "अमीरी लाल और इसके दोस्त को मेरी तरफ से ड्रिंक दो ।"
उसने विकास का कन्धा एक बार फिर थपथपाया और वहां से आगे बढ गया ।
विकास की जान में जान आई ।
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