सहसा विक्रम ने नोट किया कि एक संक्षिप्त पल के लिए उसके चेहरे पर अजीब-सा भाव पैदा हो गया था ।
"क्या चक्कर है, जसपाल ?" उसने कड़े स्वर में पूछा ।
"क...कुछ नहीं ।" वह हकलाता-सा बोला ।
"झूठ मत बोलो ।" विक्रम गुर्राया ।
जसपाल समझ गया, चेहरे पर व्याप्त गए क्षणिक भाव ने उसकी नीयत की चुगली कर दी थी । वह पकड़ा जा चुका था । और विक्रम ने सच्चाई उगलवाए बगैर उसकी जान नहीं छोड़नी थी ।
"आफताब आलम का एक आदमी बराबर जीवन के निवासस्थान की निगरानी कर रहा है ।" वह हिचकिचाहट भरे लहजे में बोला ।
"क्यों ?"
" इसलिए कि अगर जीवन ने कोई कीमती चीज वहां छुपा रखी है तो वह वहां वापस जरूर लौटेगा और इस तरह आफताब आलम के हाथ पड़ जाएगा ।"
विक्रम मुस्कराया ।
"यानी जीवन फरार है और आफताब आलम ने उसके लिए बाकायदा जाल फैला रखा है ?"
"ऐसा ही लगता है ।"
"आफताब आलम पागल तो नहीं हो गया है ?"
"तुम किस्मत के धनी हो । इसीलिए यह सब कह रहे हो ।" जसपाल झुंझलाहट भरे स्वर में बोला-"अगर ऐसा नहीं होता तो अब से बहुत पहले ऊपर पहुंच गए होते ।"
विक्रम की मुस्कराहट गहरी हो गई ।
"अच्छा ।" उसने कहा फिर अचानक पूछ बैठा-"परवेज आलम की हत्या किसने की थी, जसपाल ?"
जसपाल ने खा जाने वाले भाव से उसे घूरा । उसके चेहरे की मांसपेशियां तन गई थीं, जबड़े कस गए थे और आंखों से नफरत की चिंगारियां-सी निकलने लगीं ।
विक्रम उसका आशय समझ गया । वह जान-बूझकर मुस्कराया और सिर हिलाकर इंकार कर दिया ।
"मैंने उसकी हत्या नहीं की ।"
"तुम अब ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहोगे, विक्रम ! जिस जोर-शोर से तुम्हारी तलाश की जा रही है उससे जल्दी ही पकड़े जाओगे । और फिर तुम्हें तिल-तिल करके मरना पड़ेगा । बेहतर होगा कि यातनाओं की भट्ठी में झोंके जाने से पहले ही खुदकुशी कर लो ।"
"तुम्हारी इस नेक राय पर तसल्ली से सोच-विचार करूंगा ।" विक्रम ने उपहासपूर्वक कहा, फिर कड़े स्वर में बोला-"अगर आफताब आलम या उसके किसी आदमी ने मुझ पर हाथ डालने की कोशिश की तो मुझसे पहले उसे मरना पड़ेगा । साथ ही एक बात और सुन लो । अपने बाप आफताब आलम से जाकर कह देना कि मैं भी उसे ढूंढ़ रहा हूं । समझे ?" और सुनसान सड़क पर कनखियों से दोनों ओर देखा ।
जसपाल ने जवाब नहीं दिया । वह अविश्वासपूर्वक उसे ताक रहा था । उसके चेहरे पर उस वक्त भी वही भाव थे जब विक्रम ने कोट की बायीं जेब से अचानक पिस्तौल निकालकर उसकी नाल का नपा-तुला वार उसकी कनपटी पर किया ।
वह त्यौराकर नीचे जा गिरा । उसका सिर भड़ाक से सड़क के साथ टकराया और उसकी चेतना जवाब दे गई ।
विक्रम ने उसकी पिस्तौल से गोलियां निकालकर नाली में फेंक दीं । और खाली पिस्तौल उसके पास पटककर तेजी से मेन रोड की ओर चल दिया ।
मेन रोड पर पहुंचते ही, उसे एक खाली जाती टैक्सी दिखाई दी । उसने टैक्सी रोकी और उसमें सवार होकर उसी रेस्टोरेंट की ओर रवाना हो गया, जहां से यह सारा बखेड़ा शुरू हुआ था ।
वह जानता था, आफताब आलम हो या पुलिस या फिर कोई और, उससे यह अपेक्षा हरगिज नहीं कर सकते थे कि वह उसी रेस्टोरेंट में वापस लौटने जैसी भयानक गलती करेगा । यानी वक्ती तौर पर वह वहां महफूज रह सकता था । इसके अलावा एक और भी बड़ा फायदा था । उस इलाके में किसी ऐसे कांटेक्ट के मिलने की बड़ी पूरी सम्भावना थी जिससे कारामद जानकारी हासिल हो सकती थी ।
विक्रम निर्विघ्न रेस्टोरेंट तक जा पहुंचा । टैक्सी का भाड़ा चुकाने के बाद वह भीतर दाखिल हुआ ।
रेस्टोरेंट में ज्यादा भीड़ नहीं थी ।
वहां जो पहला परिचित उसे दिखाई दिया वह कोई और न होकर बालकिशन था । उसने, अन्दर आते विक्रम को न सिर्फ देख लिया था । बल्कि बड़े ही नर्वस भाव से स्पष्ट संकेत भी दे दिया था कि वह विक्रम से बात तक भी करना नहीं चाहता था । साथ ही उसकी गर्दन स्वयं मेव उधर घूम गयी जहां कोने में बैठा ईशर सिंह आदतन चटखारे लेता हुआ तन्दूरी चिकन पर हाथ साफ कर रहा था ।
विक्रम ने काउण्टर से एक कॉफी ली और ईशर सिंह वाली मेज पर इस ढंग से जा बैठा कि बाकी लोगों की ओर उसकी पीठ रहे । हालांकि उस मुद्रा में बैठना निहायत खतरनाक साबित हो सकता था । लेकिन विक्रम नहीं चाहता था कि अनायास ही किसी की निगाह उस पर पड़े और वह पहचान लिया जाए ।
विक्रम को देखते ही ईशर सिंह की भूख मानो एकाएक गायब हो गई । उसने खाना भूलकर प्लेट परे खिसका दी । जेब से रूमाल निकालकर हाथ पोंछे और यूं मुंह बनाया जैसे निहायत बदजायका कोई ऐसी चीज अचानक गले में आ फंसी थी जिसकी वजह से उसे उबकाई आने वाली थी ।
उसने रूमाल वापस जेब में रखकर थोड़ा पानी पिया, फिर सहमी निगाहों से विक्रम को देखा ।
"भगवान के लिए यहां से चले जाओ ।" वह याचनापूर्वक बोला ।
"क्यों ?" विक्रम ने कॉफी की चुस्की लेने के बाद पूछा-"क्या यह रेस्टोरेंट अब तुम्हारी मिल्कियत हो गया है ?"
"ओह, नहीं, मेरे बाप !"
"फिर ?"
"मेरे पास बैठने की बजाय कहीं और जा बैठो ।"
"लेकिन क्यों ?"
"इसलिए कि तुम्हारी वजह से पहले ही तमाम शहर में भारी हंगामा मचा हुआ है । इस दफा अगर तुमने फिर गोलियां चलवा दीं तो मैं गरीब नाहक मारा जाऊंगा । जबकि मैं अभी मरना नहीं चाहता ।"
"तुम्हारी जान जैसी बेकार चीज मुझे नहीं चाहिए, ईशर सिंह !"
"फिर क्या चाहते हो ?"
"जीवन । उसे कहीं देखा है तुमने ?"
"मैंने । नहीं, मैंने नहीं देखा । मेहरबानी करके, अब चले जाओ ।"
"जीवन सभी सप्लायरों के पास माल के लिए धक्के खा रहा है ।"
"जानता हूँ । आफताब आलम ने उसकी सप्लाई बंद करा दी है । उसे कहीं से भी माल नहीं मिलेगा । इस तरह उस नशेड़ी की लत छूटे या न छूटे मगर तुम्हें भाग जाने देने के बदले में मिल रही यह सजा उसके लिए काफी कड़ी साबित होगी ।"
"तुम्हें यह कैसे मालूम है ?"
"यह कोई राज नहीं है । सब जानते हैं । लेकिन तुम्हें जीवन से क्या काम है ? क्यों उसे ढूंढ रहे हो ?"
"तुम यह क्यों जानना चाहते हो ?"
"इसलिए कि कोई और भी उसे खोजने यहां आया था ।"
विक्रम चौंका मगर प्रगट में सामान्य बना रहा ।
"कोई और ?"
"हां ।" उसने अमजद का हुलिया खासा टाइट कर दिया था ।
विक्रम ने असमंजसतापूर्वक उसे देखा ।
"लेकिन वह था कौन ?"
"पता नहीं । जाकर अमजद से पूछ लो । मेरी जान छोड़ो ।"
विक्रम कॉफी खत्म करके खड़ा हो गया ।
"शुक्रिया, ईशर सिंह !"
"मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए । शुक्रिया भी नहीं ।"
विक्रम पलटकर सिर झुकाए किंचन की ओर बढ़ गया । उसका दायां हाथ अपने कोट की जेब में था और किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटने के लिए वह पूरी तरह तैयार था ।
वह किचन के पीछे बने कमरे में पहुंचा ।
अमजद एक खाली पेटी पर, अपना सिर दोनों हाथों में थामे, बैठा था । उसकी उम्र करीब चालीस साल थी । इकहरे जिस्म और गेहुंए रंग वाला अमजद चुस्त, मेहनती और हमेशा मुस्कराता रहने वाला आदमी था । वह जूठी प्लेटें धोने का काम करता था । अपने इस काम को फुर्ती और सफाई के साथ करना उसकी खास खूबी थी ।
क़दमों की आहट सुनकर वह बुरी तरह चौंका और अपना पेट दोनों हाथों में दबा लिया । उसके चेहरे पर पीड़ा के चिह्न दृष्टिगोचर हो रहे थे ।
"कैसे हो, अमजद ?" विक्रम ने पूछा ।
उसने पल भर पलकें झपकाईं फिर विक्रम को पहचानने के बाद जबरन मुस्कराने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सका ।
"सलाम खन्ना साहब !" वह धीरे-से बोला ।
विक्रम साफ नोट कर रहा था कि उसकी ठुकाई की गई थी । फिर भी उसने पूछा-
"क्या हुआ, अमजद ?"
"कुछ नहीं, साहब !"
विक्रम उसके सामने पड़ी एक अन्य खाली पेटी पर बैठ गया ।
"मुझे बताओ, अमजद !" वह सहानुभूतिपूर्वक बोला-"किसने तुम्हारी यह हालत बनाई है ?"
"मेरी हालत ठीक है, साहब ! मुझे कुछ नहीं हुआ है ।"
"झूठ मत बोलो अमजद ! जहां तक मेरा सवाल है, मैं तो किसी और से भी इस बारे में दरयाफ्त कर लूंगा । मगर तुम ख्वामख्वाह अपनी जान के दुश्मन बन रहे हो । क्या इतनी-सी बात भी तुम्हारी समझ में नहीं आ रही कि जिसने तुम्हारी यह गत बनाई है वह पलटकर दोबारा भी आ सकता है ?"
अचानक उसकी आंखों में दहशत झलकने लगी । फिर उसने दीवार से पीठ सटा ली और निचला होंठ दांतों में दबाकर निरीह भाव से विक्रम को देखा ।
"एक आदमी जीवन को पूछने आया था साहब !" वह संक्षिप्त मौन के बाद कराहता-सा बोला-"वह आप को भी पूछ रहा था ।"
"पहले किसको पूछा था उसने ?"
"आपको ।"
"वह क्या जानना चाहता था ?"
"आपकी बाबत तो उसने गोली-बारी वाली रात के बारे में पूछा था । मैंने समझा वह पुलिस का आदमी है इसलिए उसे बता दिया कि आप किस तरह यहां से बाहर गए थे । मैंने उसे यह भी बता दिया कि बाहर जीवन आप का इंतजार कर रहा था ।"
"और कुछ ?"
"जी नहीं ।"
"कुछ और नहीं पूछा उसने ?"
"उसने पूछा था कि आप दोनों से कहां मिला जा सकता है ? आपका पता तो मुझे मालूम नहीं था इसलिए मैं बता नहीं सका । लेकिन जब उसने मेरे पेट में ताबड़तोड़ चार मुक्के लगाए तो जीवन का पता मैंने बता दिया ।
विक्रम की आंखें सिकुड़ गई ।
"उसका हुलिया बता सकते हो ।"
"हां । कद-बुत में आपसे कुछ हल्का था । गहरी सांवली रंगत और शक्ल-सूरत से खतरनाक नजर आता था । उसकी आवाज बारीक मगर पैनी थी ।"
विक्रम ने दिमाग पर जोर डाला मगर अपने परिचितों में ऐसे हुलिए वाला कोई आदमी उसे याद नहीं आ सका ।
"बता सकते हो, जीवन कहां मिलेगा ?" अन्त में उसने पूछा ।
अमजद ने सिर हिलाकर इंकार कर दिया ।
"नहीं ।"
"मैंने सुना है ।" विक्रम अन्धेरे में तीर छोड़ता हुआ बोला-"जीवन तुम्हारा दोस्त है । क्या यह सही है ?"
"हां ।"
"तब तो इस बात की जानकारी भी तुम्हें होगी कि वह हेरोइन एडिक्ट है ?"
"हां, मैं जानता हूं ।"
"बता सकते हो वह अपने लिए माल किससे लेता हैं ।"
"पहले तो वह ज्यादातर जसपाल से ही लेता था ।"
"और आजकल ?"
"अब किससे लेता है, मैं नहीं जानता ।"
"इस इलाके में किसी से लेता है ?"
"अब जीवन को कोई माल नहीं देगा । मेरा ख्याल है, उसने खुद को बड़ी भारी मुसीबत में फंसा लिया है ।"
विक्रम ने कुछ नहीं कहा । वह विचारपूर्वक अपनी कनपटी सहलाता रहा, फिर खड़ा हो गया ।
"शुक्रिया, अमजद !" वह बोला-"और सुनो, उस आदमी के वापस लौटने की कतई फिक्र मत करो ।"
अमजद ने असमंजसतापूर्व उसे देखा । "आप क्या करेंगे इस बारे में ?"
"यह बखेड़ा निपटाने तक तुम्हारी हिफाजत का इन्तजाम ।"
"लेकिन आप...।"
विक्रम मुस्कराया ।
"घबराओ मत, अमजद ! वह या कोई और तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा ।"
अमजद राहत महसूस करता प्रतीत हुआ ।
"बहुत-बहुत शुक्रिया, जनाब !"
"यहां आस-पास फोन है ?" विक्रम ने पूछा ।
"किचन के बाहर पब्लिक फोन है ।"
विक्रम कमरे से निकला और किचन के बाहर मौजूद पब्लिक काल बूथ में जा घुसा ।
उसने एस० आई० चमनलाल से सम्बन्ध स्थापित किया ।
"विक्की बोल रहा हूं, चमन !" वह बोला ।
जवाब में लाइन पर चन्द सेकेण्ड तक गहरी सांसों की आवाज सुनाई देती रही, फिर पूछा गया-"क्या चाहते हो ?"
विक्रम रेस्टोरेंट का हवाला देने के बाद बोला-"यहां अमजद नामक एक आदमी प्लेटे धोने का काम करता है । मैं चाहता हूं, उसे कुछ दिनों के लिए कवर कराओ ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि एक अजनबी ने उस बेचारे की कुछ ही देर पहले ठुकाई कर दी है । और वह तुम्हारे केस में फिट बैठ सकता है ।"
"कौन ? अमजद ?"
"नहीं, वह अजनबी !" विक्रम झूठ का सहारा लेता हुआ बोला-"वह दोबारा भी अमजद की ठुकाई करने आ सकता है ।"
"यानी तुम अमजद की हिफाजत कराना चाहते हो ?"
"ऐसा ही समझ लो ।"
"लेकिन यह काम तो तुम अपने दोस्तों से भी करा सकते हो ।"
"मेरे दोस्त ?"
"हां, जिन्हें तुम कांटेक्ट्स कहते हो ।"
"अच्छा ।" विक्रम मखौल उड़ाने वाले लहजे में बोला-"तो फिर तुम लोग किस मर्ज की दवा हो ? क्या तुम नहीं जानते कि जो पैसा तुम्हें तनख्वाह के रूप में मिलता है वो जनता का पैसा है । जिसकी एवज में जनता के जान-माल की पूरी तरह हिफाजत करना तुम्हारा सबसे पहला फर्ज है ।"
"जानता हूं ।" दूसरी ओर से तनिक कड़वाहट भरे लहजे में कहा गया-"और यह भी जानता हूँ कि तुम असल में किसी और फेर में हो । बोलो, क्या चाहते हो ?"
जीवन नाम के एक ड्रग एडिक्ट को ?"
"किसलिए ?"
"तुम उसे जानते हो ?"
"हां ।"
"चौबीस घण्टो के अन्दर की उसकी गतिविधियों की कुछ जानकारी है ?"
"नहीं ।"
"तब तो बेहतर होगा कि उसे फौरन ढूंढ़ना शुरू कर दो वरना वह किसी का खून कर देगा ।"
"क्या मतलब ?"
"आफताब आलम ने सभी सप्लायरों को आदेश दे दिया है कि जीवन को 'माल' सप्लाई न किया जाये । लेकिन अगर जीवन को वक्त पर 'फिक्स' नहीं मिला तो वह 'फिक्स' पाने की खातिर किसी का खून भी बेहिचक कर डालेगा ।"
"आई सी । लेकिन वह इस सिलसिले में फिट कहां बैठता है ?"
"यह तुम्हें बताना मैं नहीं चाहता ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि इस बखेड़े से मैंने अपने ही दम पर निकलना है और उसके लिए गोपनीयता रखनी जरूरी है ।" विक्रम ने कहा, फिर पूछा-"सुनकर बुरा तो नहीं लगा तुम्हें ?"
"नहीं, अलबत्ता तुम्हारी सलामती के लिए फिक्रमद जरूर हूं ।"
"अच्छा ।" विक्रम उपहासपूर्ण स्वर में बोला-"तो क्या इसीलिए एक अनकिये जुर्म का इल्जाम लगाकर मुझे अन्दर करना चाहते हो ?"
"मैं मजाक नहीं कर रहा हूं विक्की !"
"मैं भी नहीं कर रहा ।"
"ओह, तुम्हें शायद मालूम नहीं कि इंटेलीजेंस ब्यूरो वालों को भी अब तुम्हारी तलाश है । यानी अब हर एक की 'वांटेड' लिस्ट में हो । और ज्यादा देर बचे नहीं रहोगे । फिलहाल तुम्हारी किस्मत साथ दे रही है मगर ज्यादा देर नहीं देगी । इस मामले में दिक्कत की बात यह है कि जब तक आफताब आलम कोई स्टेप नहीं लेता हम उस पर हाथ नहीं डाल सकते । और उसके स्टेप लेने का मतलब है कि तुम मर चुके होंगे । इसलिए मैं तुम्हें हिफाजतन हिरासत में लेना चाहता हूं ।"
"यह इल्जाम लगाकर कि परवेज आलम की हत्या मैंने की थी ।" विक्रम ने कहा-"नहीं, चमन, मुझे यह मंजूर नहीं है ।"
"तो फिर जैसा तुम मुनासिब समझते हो वैसा ही करो ।"
"मैं वही करूंगा ।" कहकर विक्रम ने पूछा-"बाई दी वे, किरण वर्मा अब कैसी है ?"
"पता नहीं । मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं, घण्टा भर पहले अस्पताल में उसके कमरे से उसे किडनेप कर लिया गया है ।"
विक्रम को लगा मानों एकाएक किसी ने भारी घूंसा उसकी छाती में दे मारा था । उसके हाथ से रिसीवर गिरता-गिरता बचा । और उसके मुंह से स्वयं मेव निकल गया-
"क्या ?"
"इसके लिए भी कमोबेस तुम्ही जिम्मेदार हो ।"
विक्रम के चेहरे पर कठोरतापूर्ण भाव उत्पन्न हो गए । रिसीवर पर अनायास ही उसकी पकड़ बहुत ज्यादा मजबूत हो गई ।
"यह हुआ कैसे ?"
"दो आदमी नकली डॉक्टर बनकर आए । रिवॉल्वरों के बल पर उन्होंने असली डॉक्टर और दो वार्ड ब्वॉयज को मजबूर करके किरण वर्मा को स्ट्रेचर पर लदवाया । ऑप्रेशन के बहाने पुलिस के पहरे से निकालकर एम्बूलेंस में लदवा दिया गया । इस बीच वहां मौजूद पुलिस गार्डस् के इंचार्ज को फोन पर किसी ने नकली एस० पी० बनकर जरूरी हिदायतें देने के बहाने उलझाये रखा । एम्बूलेंस चली जाने के बाद शोर मचाया गया । भागदौड़ शुरू हुई मगर एम्बूलेंस का पीछा नहीं किया जा सका । वो उस वक्त साफ बच निकलने में कामयाब हो गई । कोई दस मिनट पहले एक खाली एम्बुलेंस तो मिल गई है । लेकिन किरण वर्मा समेत किसी भी अन्य यात्री का कोई सुराग नहीं लग पाया । अब तक तो वह न जाने कहां पहुंचा दी गयी होगी ।"
"सत्यानाश !"
"अब तो तस्वीर पूरे तौर पर तुम्हें साफ दिखाई दे रही होगी । तुम्हारी जानकारी के लिए अर्ज है कि तुम्हारे दोस्त भरत सिन्हा को वक्ती तौर पर हिरासत में लेना पड़ा । उसी ने बताया कि तुम उसके साथ अस्पताल गए थे । तुमने अपने साथ-साथ हर किसी को मुसीबत में डाल दिया है । अगला कोई कदम उठाने से पहले सोच लेना कि किरण वर्मा अब तक जिंदा नहीं बची होगी और उसकी मौत के लिए काफी हद तक तुम्ही जिम्मेदार हो ।"
विक्रम के दिमाग से रह-रहकर गुस्से की भयानक लहरें गुजर रही थीं ।
"वे लोग उसकी जान नहीं लेंगे ।" वह एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ हिंसक स्वर में बोला ।
"क्यों ?"
"क्योंकि जो चीज उन लोगों को चाहिए वो मेरे पास है ।" विक्रम ठोस स्वर में बोला-किरण वर्मा की जान लेने से कोई फायदा उन्हें नहीं होगा । बशर्ते कि उन्हें पता नहीं लग जाता है कि जिस चीज को पाने के लिए वे सब मरे जा रहे हैं, वो कहाँ है ।" और सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
वह कई क्षण खड़ा टेलीफोन उपकरण को घूरता रहा फिर किचन से गुजरकर पिछले दरवाजे से रेस्टोरेंट में बाहर आ गया ।
वह पुनः जीवन के बारे में सोचने लगा ।
मामूली ड्रग पैडलर और हेरोइन एडिक्ट जीवन एकाएक बेहद महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गया था । क्योंकि अनजाने में ही वह दर्जन भर एटम बमों से भी ज्यादा भयंकर सूचना का मालिक बन बैठा था । और खुद उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी ।
लेकिन अमजद की बातों से जाहिर था, इस बात की जानकारी विक्रम के अलावा उन लोगों को भी थी जो उस सूचना को हर कीमत पर हासिल करना चाहते थे । और विक्रम के सामने मजबूरी थी कि उस सूचना को वह पुलिस आफताब आलम या फिर पड़ौसी देश के हत्यारों का टारगेट बने बगैर हासिल करने की कोशिश नहीं कर सकता था ।
उसे यह रिस्क लेना ही था ।
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