दिल्ली
अभिजीत देवल और राजीव जयराम एक बार फिर गृहमंत्री के ऑफिस में आमने-सामने थे। नयी परिस्थिति के मद्देनज़र उन लोगों की मुलाक़ातें लगातार हो रही थी। विस्टा के एक कर्मचारी की लाश मिलने से परिस्थितियाँ पल-पल बदल रही थी।
मीडिया के हो-हल्ला मचाने से जनता का सारा ध्यान अब इस घटना की तरफ केन्द्रित हो गया था। लगातार सवाल उठाए जाने से गृहमंत्री की स्थिति विकट हो चली थी। उनके प्रबल विरोधी अब उनकी निष्क्रियता और संकट की घड़ी में फैसले लेने की क्षमता पर सवाल उठाने लगे थे और उनके इस्तीफे की माँग होने लगी थी।
“... जी प्रधानमंत्री जी। जी... ऐसा ही होगा।” दूसरी तरफ से लाइन कटने के बाद गृहमंत्री ने अपना फोन रखा और सामने बैठे अभिजीत देवल और राजीव जयराम की तरफ देखते हुए पूछा, “इस मामले में कहाँ तक पहुँचे हैं हम, अभिजीत?”
“मुंबई पुलिस से कुछ लीड मिल रही हैं। हम जल्दी ही इस मामले को सुलझा लेंगे। मुंबई के अंडरवर्ल्ड की इस मामले में लिप्त होने की भी संभावना जगी है। मुझे लगता है हम जल्दी ही इस मामले की तह तक पहुँच जाएँगे।” अभिजीत ने अपने सोच-विचार से बाहर आते हुए कहा।
“इतना समय हो गया है, अभिजीत। ये हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि अभी तक हम अँधेरे में ही हाथ-पाँव मार रहे हैं। उस लाश के मिलने के बाद योगराज पासी को काबू में करना और भी ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है।” गृहमंत्री की बातों से लग रहा था कि यह समय उनके लिए बड़ा भारी बीत रहा था।
“अब इस मामले में हम सीधे कोई निर्णय नहीं कर सकते हैं। कादिर मुस्तफा की रिहाई का निर्णय आप लोगों के हाथ में है। आप कोई दिशा-निर्देश देंगे तभी हम उन अपहरणकर्ताओं से कोई बात आगे बढ़ा सकते हैं। अब फिरौती की रकम भी बढ़ा दी गयी है तो उसका इंतजाम कैसे होगा, इस बारे में भी कोई फैसला नहीं हुआ है। यह सारी बातें... ” अभिजीत देवल ने अपनी विवशता बतायी।
“हम कादिर मुस्तफा को छोड़ रहें हैं लेकिन बदले में हमारे बाकी सभी आदमी सुरक्षित चाहिए। अब बात उनकी सुरक्षा की भी होनी चाहिए। हमारी इंटेलिजेंस इस मामले में क्या कर रही है, राजीव?” गृहमंत्री ने राजीव जयराम से पूछा।
“उनके निगोशिएटर से शाहिद रिज़्वी की एक बार बात हुई है। अभी कुछ समय बाद उनके साथ फिर से बात होने वाली है। उस आदमी को लोकेट करने की पूरी कोशिश की जा रही है। अगर वह इस वक्त इंडिया में कहीं भी मौजूद है तो जल्दी ही उसे हम दबोच लेंगे।” राजीव जयराम ने आशा व्यक्त की।
तभी राजीव के फोन की घंटी बजी। प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उसने तुरंत कॉल रिसीव की। जब कॉल पूरी हुई तो उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी।
“हमें पहली सफलता मिल गयी है, मंत्री जी। हमें उस आदमी की लीड मिल गयी है जो उनकी तरफ से बातचीत कर रहा है, वह आदमी उस्मान ख़ान उर्फ प्रोफेसर है।” राजीव ने उत्साहित स्वर में कहा।
“उस्मान ख़ान! तुम इतने निश्चिंत होकर कैसे कह सकते हो, राजीव।” गृहमंत्री ने प्रश्नात्मक अंदाज में पूछा।
“जब उस आदमी की बात शाहिद रिज़्वी से हो रही थी तो बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया गया था। उसकी साउण्ड फ्रिक्वेन्सी को जब हमारे डाटा-बेस से मिलाया गया तो वह आवाज उस्मान ख़ान की निकली।” राजीव जयराम ने जवाब दिया।
“अगर उस्मान ख़ान इस मामले जुड़ा हुआ है तो फिर मुंबई अंडरवर्ल्ड का इस मामले से क्या लिंक हो सकता है। वह तो लश्कर का आदमी है। उस्मान ख़ान के इस सीन में दाखिल होने का मतलब है कि इस मामले में हम आईएसआई के शामिल होने की संभावना से भी इंकार नहीं कर सकते हैं।” अभिजीत देवल ने आशंका जाहिर की।
“पता नहीं। क्या गोरखधंधा है? कभी अंडरवर्ल्ड, कभी आतंकवादी और अब ये आईएसआई! विस्टा के अगवा किए गए आदमी भी नहीं मिल रहें है। पता नहीं उन्हें आसमान खा गया या जमीन निगल गयी।” गृहमंत्री जी ने अपनी सीट पर बैठे हुए पहलू बदला।
“अब की बार उनसे संपर्क स्थापित होते ही हमारी पहली प्राथमिकता उन्ही लोगों को छुड़ाने की होगी।” अभिजीत ने बात को संभालने की गरज से कहा।
गृहमंत्री जी ने मात्र सिर हिलाकर कर इस बात का जवाब दिया। इस के बाद बात आगे नहीं बढ़ी। कुछ देर बाद अभिजीत और राजीव जयराम फिर ऑफिस से बाहर थे।
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मुंबई
नागेश कदम और मिलिंद के होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ के लिए निकल जाने के बाद नैना एक बार फिर से वीडियो फुटेज को ध्यान से देख रही थी कि अचानक उसका फोन बजा। वो कॉल राजीव जयराम की थी। उसने तुरंत कॉल अटेंड की।
“श्रीकांत कहाँ पर है, नैना? वह फोन क्यों नहीं उठा रहा है। इट इज वेरी अर्जेंट।” फोन पर राजीव जयराम की तमतमाती हुई आवाज़ गूँजी।
“सर, वो बांद्रा केस के सिलसिले में गए हुए हैं। एट प्रेजेंट ही विल बी इन हॉस्पिटल फॉर आईडेंटिफिकेशन एंड अदर प्रोसीजर्स।” नैना ने स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की।
“वॉट द ब्लडी हैल? एनी वे, शाहिद रिज़्वी से जिस आदमी की नेगोशिएशन में फिलहाल बात हुई है, वो आदमी वॉइस फ्रीक्वेन्सी की मेचिंग के हिसाब से दुर्दांत आतंकवादी उस्मान ख़ान हो सकता है। मैंने उसकी डीटेल तुम्हारे पास भेज दी है।”
“उस्मान ख़ान। कश्मीर वेली का फ़ेमस टेररिस्ट हैंडलर। जिसका कोड नेम ‘प्रोफेसर’ है।”
“हाँ, वही। हम उसको ट्रेस करने की कोशिश कर रहे हैं। तुम भी डेटाबेस से उसकी डीटेल्स निकाल कर मुंबई पुलिस को अलर्ट करो। वी हेव टू नैब हिम एज़ सून एज़ पॉसिबल।”
“ओके सर।” नैना ने जवाब दिया तो कॉल कट गयी।
इसके बाद नैना ने राजीव जयराम की भेजी हुई डीटेल के आधार पर अपने सेन्ट्रल ऑफिस के डेटाबेस को खँगालना शुरू किया। उस डेटाबेस को देखते हुए उस्मान ख़ान के रिकॉर्ड को देखते-देखते एक इंसान की तस्वीर पर उसकी निगाह पड़ी तो उसको देख कर उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयी।
उस फोटो में एक इंसान उस्मान के पीछे खड़ा हुआ अपनी ऑटोमेटिक गन से फायरिंग करता हुआ नज़र आ रहा था।
नैना ने उस शख्श को तुरंत पहचाना।
वह आदमी अब्दील राज़िक था। जो अभी हाल ही में हिंदुस्तान से इलाज करवा कर वापस पाकिस्तान लौटा था।
नैना ने अपने साथ काम कर रहे मुंबई पुलिस के आईटी सेल के आदमियों को तुरंत अब्दील की पिक दिखाई। उसने सभी को एक बार फिर से एयरपोर्ट की वह रिकॉर्डिंग ध्यान से देखने को कहा जिसमें उसे इलाज के बाद हिंदुस्तान से जाने के लिए रवाना होता हुआ देखा गया था।
उन लोगों में से कुछ समय के बाद एक आवाज आयी।
“मैडम, यह देखिये।” एक एएसआई स्क्रीन की तरफ इशारा करता हुआ बोला।
नैना तुरंत उसके पास पहुँची। एक आदमी, जो शारीरिक बनावट में देखने में हूबहू अब्दील के जैसा दिखाई दे रहा था, एयरपोर्ट से बाहर निकलकर एक टैक्सी में बैठता हुआ दिखाई दे रहा था।
उसका चेहरा कैप और चश्मे के कारण काफी हद तक छुपा हुआ था। अब्दील के हॉस्पिटल के रिकॉर्ड वाली फोटो में वो क्लीन-शेव दिखाई दे रहा था लेकिन उस्मान ख़ान के साथ वाली फोटो में वह बढ़ी हुई दाढ़ी और कैप में था। उसकी वह फोटो एयरपोर्ट से निकलते हुए आदमी से बिल्कुल मिल रही थी।
उसने तत्काल राजीव जयराम को फोन किया।
“क्या हुआ? श्रीकांत आ गया?” राजीव की आवाज आयी।
“नो सर! मेरे पास एक ऐसी न्यूज़ है जो शायद आपको हैरान कर देगी।” नैना ने बड़ी मुश्किल से अपनी उत्कंठा को दबाते हुए कहा।
“क्या?” राजीव ने अनमने ढंग से पूछा।
“अब्दील राज़िक अभी इंडिया में ही है।”
“अब्दील राज़िक! लेकिन वह तो अपना इलाज करवा कर वापस पाकिस्तान जा चुका है। यह बात हमारे सोर्स ने कन्फ़र्म की है।” राजीव जयराम अपनी सीट पर सीधा होकर बैठता हुआ बोला।
“अगर ऐसा है तो उसे जरूर धोखा हुआ है। एक वीडियो में उसे उसी दिन एयरपोर्ट से बाहर निकलता हुआ देखा गया है जिस वक़्त उसका प्लेन यहाँ से टेक-ऑफ कर रहा था। सर, वह आदमी एयरपोर्ट पर गया जरूर था लेकिन वहाँ पर वह हवाई जहाज में नहीं बैठा। उस का लिंक जेहादी समूहों से भी लगता है। अपने डेटाबेस की एक पिक से हमें यह लीड मिलती है। मैं आपको वो लीड भेजती हूँ जिससे यह साबित होता है कि वह आदमी एक हार्डकोर टेररिस्ट है।” ऐसा कहने के साथ ही नैना ने वो पिक राजीव जयराम को फॉरवर्ड कर दी जो उसे डाटाबेस से मिली थी।
उस तस्वीर को देख कर राजीव जयराम के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयी। उसने एक बार फिर यासिर ख़ान को मैसेज किया।
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नागेश कदम ने अपनी रॉयल एनफील्ड होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ की पार्किंग में खड़ी की और मिलिंद राणे के साथ मैनेजर के रूम की तरफ बढ़ा। उस वक्त माधव अधिकारी अपने असिस्टेंट संजय चुटानी के साथ ऑफिस में ही मौजूद था। नागेश और मिलिंद को देखकर उसने अपनी सीट से खड़े होकर उनका अभिवादन किया और उनसे हाथ मिलाया।
“तो संजय। वो आदमी, क्या नाम था उसका... हाँ प्रदीप वापस आ गया। हम लोग अक्खा मुंबई में उन लोगों की तलाश में सड़कें नाप रहें हैं और वो भिडु... तुम लोग कहते हो, वो वापस आ गया है।” नागेश मज़ाकिया अंदाज में बोला।
“यस। आज मेरी रिसेप्शनिस्ट ग्रेसी ने मुझे इन्फॉर्म किया तो हमें पता चला। उसे भी तब पता चला जब प्रदीप ने रिसेप्शन से चाबी की माँग की। वो कहता था कि उसकी चाबी खो गयी है।” माधव अधिकारी ने बताया।
“वो चाबी लेकर कहाँ गया? अपने कमरे में? उसे तो हम लोगों ने सील किया हुआ था!” मिलिंद राणे ने पूछा।
“हम इसमें क्या कर सकते थे, सर। हमारे पास एक्सट्रा रूम उस वक्त खाली नहीं थे, नहीं तो हम उन्हें एडजस्ट कर लेते। उनके रूम की चाबी देने के अलावा हमारे पास और कोई चारा भी नहीं था। अगर हम मना करते तो बेकार में ड्रामा खड़ा होता और उस आदमी की हालत भी बहुत खराब थी। लेकिन हमने आपको उसी वक्त इन्फॉर्म भी इसीलिए किया था ताकि आप अगर आना चाहें तो...।” संजय चुटानी ने अपनी सफाई पेश करना चाही।
“वो सब तो ठीक है, भिडु। लेकिन ये साला प्रदीप नाम का कबूतर अपने शिकारी के जाल से निकलकर फड़फड़ाता हुआ इधर वापस आकर अपने कमरे में गुटरगूँ करता है। ये तो कमाल का एपिसोड हुआ। है ना, राणे।” नागेश मुस्कुराता हुआ बोला। “तेरे पास विस्टा के उन लोगों की लिस्ट है क्या जो गायब हुए थे, राणे?”
“हाँ। मेरे फोन में है। सुधाकर ने मुझे भेजी थी जब हम यहाँ पहली बार आये थे।” राणे अपने फोन में सर्च करता हुआ बोला।
“तो उसको निकाल मेरे भाई। प्रदीप जब आया तो उसे काफी परेशान होता हुआ बताते हैं अपने मैनेजर साहब। जब वो यहाँ आया, उस वक्त की कोई फुटेज मिलेगा अपुन को इधर, मैनेजर साब।” नागेश माधव की तरफ देखकर बोला।
माधव ने संजय को इशारा किया तो वह वहाँ रखे कंप्यूटर सिस्टम में उसे ढूँढने लगा जिसमें पिछली रिकॉर्डिंग ऑटोमैटिकली सेव हो जाती थी।
नागेश और मिलिंद उस फुटेज को जल्दी से फॉरवर्ड करके देखने लगे। प्रदीप की जो फोटो उनको विस्टा टेक्नोलॉजी ने दी थी, उसी शक्ल और सूरत का आदमी स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था।
“ठीक है। हम इससे इसके कमरे में ही जाकर मिलते हैं। देखते हैं क्या स्टोरी सुनाता है अपना उड़ता पंछी।” नागेश ने मिलिंद को उठने का इशारा किया।
वे दोनों लिफ्ट से पाँचवें फ्लोर पर पहुँचे। प्रदीप का रूम नंबर पाँच सौ दो बताया गया था जो कि एक टू-रूम सुइट था। मिलिंद ने रूम का दरवाजा खटखटाया। एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला। उन दोनों ने अभी प्रदीप की फोटो देखी थी इसलिए उनको प्रदीप को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई।
प्रदीप के चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव थे।
“यह रूम सर्विस नहीं है, प्रदीप। यह है मुंबई पुलिस।” मिलिंद ने प्रदीप को कहा।
नागेश और मिलिंद रूम में दाखिल हुए।
“लगता है तुम्हें अपुन का इंतजार नहीं था। लेकिन हमें आना पड़ा। क्या प्रदीप भाई... कभी चले जाते हो, कभी आ जाते हो। हम लोग तुम्हें मुंबई में इधर-उधर ढूँढता फिरता है। तुम्हारे बाकी साथी किधर है कुछ मालूम? बताएगा कुछ? यह क्या ड्रामा है?” नागेश ने डबल-बेड पर बैठते हुए प्रदीप से पूछा।
“मुझे... कुछ नहीं मालूम। मैं कुछ नहीं... जानता।” प्रदीप घिघियाते हुए बोला।
“ये तुम्हारे चेहरे पर निशान कैसे हैं। तुम कहीं किसी से भिड़े हो क्या?” मिलिंद उसके चेहरे को गौर से देखता हुआ बोला।
“नहीं। मैं कुछ ज्यादा ही ड्रिंक कर गया और नशे में ठोकर खा कर मुँह के बल गिर गया। ये निशान उसी वजह से बने हैं।”
“वाह! अपना भिडु जाम छलकाते हुए मुंबई में घूम रहा है और हम येड़े... इसे मुंबई की गलियों में ढूँढ रहे हैं। तेरे साथी कहाँ है? हमें यहीं बताएगा या...” अगले शब्द नागेश के मुँह में ही रह गए।
तभी प्रदीप ने छुट्टे सांड की तरह नागेश पर छलाँग लगा दी। वह उसे साथ लिए हुए डबल-बेड से लुढ़कता हुआ जमीन पर गिरा। इतने में सनसनाती हुई दो गोलियाँ उसके सिर के ऊपर से होती हुई दीवार में जा धँसी।
सुइट के अंदर वाले दूसरे कमरे से एक आदमी बिजली की तरह प्रगट हुआ था और उसी ने नागेश की तरफ गोलियाँ बरसा दी थी। अगर प्रदीप जान पर खेल कर उसे न धकेलता तो वे दोनों गोलियाँ उसके जिस्म में पैवस्त हो गयी होती।
मिलिंद को तुरंत स्थिति की गंभीरता का अंदाजा हुआ। इससे पहले कि वह आदमी उसकी तरफ ध्यान दे पाता, उसने पास ही पड़े सोफे के पीछे छलाँग लगा दी और अपनी सर्विस रिवॉल्वर निकाल कर उस आदमी की तरफ एक फायर झोंक दिया।
नागेश तब तक संभल गया था। उसकी मनपसंद ग्लोक बिजली की तरह उसके हाथ में पहुँची। प्रदीप को उसने घसीट कर डबल-बेड के पीछे खींच लिया।
वह आदमी अब सुइट के मेन-डोर के पास अपनी पोजीशन ले चुका था। सुइट से बाहर निकालने से पहले उसने डबल-बेड की तरफ गोलियों की बौछार कर दी। उसका इरादा प्रदीप को निशाना बनाने का था। लेकिन नागेश ने प्रदीप के काँपते शरीर को अपने बाजुओं से जकड़े रखा। उसके थोड़ा सा ऊपर होते ही कोई भी गोली अपनी भूख उसके खून से शांत कर सकती थी।
नागेश ने लेटे-लेटे अपनी ग्लोक की नाल उस आदमी की दिशा में की और एक फायर झोंक दिया। इसके साथ ही मिलिंद की रिवॉल्वर ने भी आग उगली। वह आदमी दोहरी मार से बचने के लिए दरवाजे की तरफ लपका तो मिलिंद ने उसकी टाँगों को निशाना बनाकर फायर किया। गोली उसके शरीर में कहीं टकरायी लेकिन फिर भी वह दरवाजा पार करने में कामयाब हो गया।
मिलिंद दरवाजे की और लपका तो प्रदीप गला फाड़ कर चिल्लाया, “रूक जाओ। उसके और भी साथी हैं। हथियारबंद। अपनी जान बचाओ।”
नागेश और मिलिंद हकबकाए। उन्होंने आव देखा न ताव। जल्दी से दरवाजा बंद कर के उसके साथ रखी लकड़ी की अलमारी तेजी से उसके आगे अड़ा दी।
“कितने आदमी हैं?” नागेश ने पूछा।
“कम से कम चार... ज्यादा भी हो सकते है।” प्रदीप की लड़खड़ाती आवाज आयी।
तभी मेन-डोर पर लॉक के ऊपर फ़ायरिंग की आवाज आयी। वो लोग मौत बनकर दरवाजे पर मंडरा रहे थे।
“दूसरे कमरे में बालकनी है?” नागेश ने पूछा।
प्रदीप ने सहमति में सिर हिलाया।
“जिंदा रहना चाहते हो तो आओ मेरे साथ। मिलिंद, बाथरूम की साइड में जरूर पाइप मिलेंगी। तुम उधर से बाहर निकलो। मैं प्रदीप को बाहर निकालता हूँ।”
बाहर ताबड़तोड़ फ़ायरिंग हो रही थी। वो लोग दरवाजा तोड़ चुके थे। मिलिंद तुरंत बाथरूम की तरफ लपका। नागेश प्रदीप को घसीटता हुआ दूसरे कमरे में पहुँचा। उसने वहाँ पड़ी दो चादरों को बिस्तर से घसीटा और उसे रेलिंग से कसकर बाँध दिया।
“प्रदीप, बिना डरे और बिना सवाल करे तुरंत नीचे उतरना शुरू कर दो। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। मैं इस रेलिंग से नीचे की बालकनी में कूदता हूँ। इस बेडशीट के सहारे उतरने पर तुम्हारे लिए कुछ तो ऊँचाई कम होगी। अगर कुछ नीचे जाकर कोई रेलिंग पकड़ सको तो ठीक है, नहीं तो नीचे कूदने से भी तुम्हें ज्यादा चोट नहीं आएगी। समझे, अगर ड़र गए तो मौत पक्की है?”
प्रदीप ने सहमति में सिर हिलाया। वह रेलिंग की तरफ लपका और नागेश ने उसे रेलिंग से बेडशीट पकड़ कर नीचे लटकने में सहायता की। प्रदीप बौखलाहट में जल्दी से नीचे उतरने लगा लेकिन उसके होश अभी कायम थे।
नागेश भी रेलिंग पकड़कर नीचे की तरफ लटका और पेंडुलम की तरह झूला और फिर नीचे चौथी मंजिल की बालकनी और इसी तरह तीसरी मंजिल की बालकनी पर पहुँचा। उसे प्रदीप के सुइट से अलमारी के टूटने और गिरने की आवाज आयी।
वो लोग अब अंदर आ चुके थे और अब शायद उस बेडरूम का दरवाजा तोड़ रहे थे जिससे वो लोग नीचे कूदे थे। उसने एक बार फिर वही तरकीब दोहराई और वह अब दूसरी मंजिल की बालकनी पर था। तभी उसे ऊपर से एक भद्दी सी गाली सुनाई दी। उसने एक कोने से सावधानी से ऊपर देखा तो एक आदमी प्रदीप पर निशाना लगाने की तैयारी कर रहा था।
नागेश ने अपनी जगह से तीरकमान की तरह बालकनी से बाहर झुकते हुए उस आदमी को शूट कर दिया जो ऊपर से प्रदीप को निशाना बनाने की कोशिश कर रहा था। वह आदमी कटे पेड़ की तरह पाँचवीं मंजिल से नीचे गिरा। प्रदीप मौत को इतनी नजदीक देख बुरी तरह से घबरा गया और घबराहट में बेडशीट उसके हाथ से छूट गयी। वह दूसरी मंजिल से नीचे गिरा। नीचे होटल का पार्क था और घास से ढका हुआ था। वह पैरों के बल जमीन पर गिरा।
जब नागेश नीचे उतरा तो हलाक हुए आतंकवादी की कार्बाइन और हथियारों से भरी जैकेट उठाना बिल्कुल भी नहीं भूला।
तब तक मिलिंद भी पाईप के सहारे सुरक्षित नीचे पहुँच चुका था। वह प्रदीप को तुरंत उठाकर सुरक्षित कोने में ले गया जहाँ से उन पर निशाना लगाना संभव नहीं था। अपने एक साथी को यूँ हलाक होते देख किसी दूसरे ने दोबारा उस कमरे की बालकनी से निशाना लगाने की कोशिश नहीं की।
यह खबर पूरे होटल में आग की तरह फैली। नागेश ने तुरंत इस स्थिति से आलोक देसाई को अवगत करवाया। आलोक देसाई तुरंत मुंबई पुलिस की एक टुकड़ी के साथ वहाँ के लिए रवाना हुआ।
मिलिंद ने सुधाकर को फोन किया तो उसने बताया कि उनकी गाड़ी भी होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ बस पहुँचने ही वाली थी। नैना उन्हें प्रदीप के बारे में पहले ही बता चुकी थी।
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एक घंटा इंतजार के बाद पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय के ऑफिस के फोन की घंटी बजी।
वहाँ पर मौजूद सारे टेक्निशियन तुरंत हरकत में आ गए। कमरे में इतने लोग होने के बावजूद भी सन्नाटा पसरा पड़ा था।
शाहिद रिज़्वी ने फोन उठाया।
“हैलो?” शाहिद ने सतर्क आवाज में कहा।
“लगता है फोन के पास ही थे, रिज़्वी। हमारे लिए इतनी बेकरारी!” पहले वाली आवाज फिर से गूँजी।
“क्या करें बिरादर! आपका हुकुम था, टाइम का ख्याल तो रखना ही था।”
“अच्छा! तो क्यों न हम मतलब की बात करें।”
“बिल्कुल। मैं तो बात ही मतलब की करने आया हूँ, जनाब। फिलहाल आपकी बात सुन रहा हूँ।”
“हमारी माँगों के बारे में तुम्हारी सरकार का क्या कहना है? कोई फैसला लिया या नहीं?”
“हमारा रुख सकारात्मक है। आप लोगों की माँगों को पूरा किया जा रहा है। हम यह चाहते हैं कि आप सभी अगवा किए गए लोगों का एक वीडियो जारी करें जिससे उन लोगों के सुरक्षित होने की हमें गारंटी हो।” शाहिद रिज़्वी ने नपे-तुले शब्दों में कहा।
“सभी की गारंटी लेना मुश्किल है। एक तो हम तुम लोगों के पास भेज चुके हैं। वह आदमी साबुत तो नहीं था लेकिन था पूरा, चाहे टुकड़ों में ही सही।” इतना कहकर वह आदमी वहशियाना तरीके से हँसा।
“मैं बाकी लोगों की सलामती की बात कर रहा हूँ। इस बात की तस्दीक़ करता हुआ उनका वीडियो हमें मिलना चाहिए कि वे लोग सही सलामत हैं।” रिज़्वी ने अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए कहा।
“वो तुम्हें मिल जाएगा। पहले तुम हमारे खास आदमी कादिर मुस्तफा की रिहाई के बारे में कोई पहल कर के दिखाओ और साथ में डेढ़ हजार करोड़ की रकम का भी इंतजाम करो।”
“कादिर मुस्तफा को छोड़ने की कार्यवाही शुरू हो चुकी है। उसकी सुरक्षा के मद्देनज़र रखते हुए हम उसे जल्दी ही अटारी बार्डर पर पहुँचा देंगे। तुम अपने आकाओं को कह दो कि वहाँ से उसे ले जाएँ।”
“हम जहाँ पर कहेंगे, कादिर मुस्तफा को तुम लोग वहाँ पर पहुँचाओगे। अटारी पर तुम लोग उसकी नुमाइश सारे जहान में करना चाहते हो! तुम्हें मीडिया की रोशनी से दूर कादिर मुस्तफा को हमारे हवाले करना होगा।”
“तो फिर हम वाघा बार्डर पर...”
“नहीं। उसे कहाँ पर भेजना है, वो हम तुम्हें बताएँगे। एक घंटे बाद मैं फिर तुमसे बात करूँगा।”
“अगली बातचीत हमारे आदमियों की सेफ होने के बाद ही आगे बढ़ेगी।”
इसके बाद लाइन कट गयी। शाहिद रिज़्वी ने अपने कान से हेडफोन उतारते हुए एक-एक शब्द चबाते हुए कहा, “यह सौ फीसदी वही कमजर्फ है, उस्मान खान।”
उसने तत्काल राजीव जयराम को फोन किया और उस्मान की इस बातचीत में शामिल होने की बात की तस्दीक़ की जिसके बारे में राजीव पहले ही उसे बता चुका था।
राजीव जयराम ने तुरंत पुलिस कमिश्नर से बात की।
श्रीकांत के द्वारा उसे पर्ल रेसिडेंसी में हुई नयी कहानी के बारे में पता चल चुका था।
“मिस्टर धनंजय रॉय। हम लोग एक बार फिर से 26/11 की पुनरावृति तो देखने नहीं जा रहें है।” राजीव जयराम ने शंका जाहिर की।
“नहीं। ऐसा नहीं होगा। एसीपी आलोक देसाई होटल ‘पर्ल रेसीडेंसी’ पहुँच गया है। मुंबई पुलिस के जवानों के अलावा एटीएस की एक टुकड़ी भी वहाँ पर पहुँच चुकी है।” कमिश्नर रॉय ने दृढ़ता से जवाब दिया।
“गुड। आप उस्मान ख़ान और अब्दील राज़िक के लिए मुंबई पुलिस को हाइ-अलर्ट पर कर दें। ये लोग अबकी बार कुछ ज्यादा ही बड़ी वारदात की फिराक में है। एक बात और, नैना दलवी को मैंने इस काम के लिए नोडल ऑफिसर बनाया है। इसलिए इस मामले की जो भी इन्फॉर्मेशन हो वह उसको शेयर कर दी जाए ताकि हमारी इंटेललिजेंस टीम उस पर काम कर सके।”
कमिश्नर धनंजय रॉय ने सहमति में सिर हिलाया और लाइन कट गयी।
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