मोना चौधरी, पाली के साथ छत से सीढ़ियां उतरी और बंगले की तीसरी मंजिल पर आ पहुंची। वो पूरी मंजिल खाली थी।
"बाहर, गोलियां चलने में तेजी आ गई है?" पाली कह उठा।
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली। उसके दांत भींचे हुए थे। आंखों में वहशी चमक थी। हाथ में वो गन तैयार थी, जो फोल्डिंग टुकड़ों के रूप में बैग में रखी हुई थी।
पाली के हाथ में भी रिवॉल्वर थी।
"अब हम दूसरी मंजिल पर चल रहे हैं। " मोना चौधरी एकाएक शब्द चबाकर बोली— "वो तिजोरी वहीं पर है, जो तुमने खोलनी है और दूसरी मंजिल पर ही कहीं दो गनमैन हैं। हो सकता है कि गनमैन फायरिंग का शोर सुनकर नीचे चले गए हों या ऊपर ही हों। पाली ने सिर हिलाया कि वो हर तरह से तैयार है।"
मोना चौधरी ये आवाज दूसरी मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां उतरने लगी। गन वाला हाथ आगे था। तैयार था। पाली उसके पीछे था।
अभी आठ सीढ़ियां ही नीचे उतरे होंगे कि उनके कानों में जोड़ी भागते कदमों की आवाज पड़ी। वे ठिठके। तभी उन्हें एक आदमी की हांफती आवाज सुनाई दी।
"मैं नीचे होकर आया हूँ। लगता है, बहुत लोगों ने एक साथ हमला कर दिया है। हमारे आदमी मारे जा रहे हैं। हमला करने वालों के पास गन भी हैं। " आवाज में हड़बड़ाहट के भाव मौजूद थे।
"हमें नीचे चलना चाहिए। नहीं तो वो सबको मार देंगे।"
"हम यहीं ठीक हैं। " दूसरी आवाज आई उन्हें ऊपर आने दो। वो ये सोचकर ऊपर अवश्य आएंगे कि या पे शंकर भाई है। तब हम उन्हें भून देंगे।"
"वो ज्यादा हैं। "
"कितने भी हों।" दूसरी वाली आवाज में कहर के भाव आ गए—"आएंगे तो इन्हीं सीढ़ियों के रास्ते ही और ऊपर से हम उन्हें आसानी से भून देंगे।"
लेकिन छत वालों ने नीचे गोलियां क्यों नहीं बरसाई। जो लोग हमला करने आए हैं, अब तक वो छत वाले दोनों, उन लोगों को खत्म कर देते। " पहले वाली आवाज ने कहा। "
"ठीक है।"
"जा, मालूम करके आ क्या बात है। मैं ऊपर होकर आता हूं। तू सावधान रहना। वे लोग कभी भी ऊपर आ सकते हैं। "
"चिंता मत कर उन्हें मैं देख लूंगा।"
कदमों की आहट सीढ़ियों की तरफ आती सुनाई दी।
दांत भींचे मोना चौधरी जल्दी से चार सीढ़ियां उतरी। तब तक वो गनमैन सामने आ चुका था। गन उसके हाथ में थी और हाथ नीचे था। जबकि मोना चौधरी के हाथ में दबी गन सामने की तरफ थी। चेहरे पर वहशी भाव नाच रहे थे। पाकर हक्का-बक्का रह गया।
वो खूबसूरत युवती को सामने ऊपर की सीढ़ियों पर कोई होगा। यह तो वो सोच भी नहीं सकता था। गन का रुख अपनी तरफ पाकर चेहरा फक्क पड़ गया।
तभी दूसरी वाली आवाज उसके कानों में पड़ी।
“रुक क्यों गया। जल्दी ऊपर होकर वापस आ "
मोना चौधरी ने उसी पल गन का घोड़ा दबाया।
सामने मौजूद गनमैन की छाती जैसे फटती चली गई। फौरन ही ढेर सारा खून बाहर निकला और वो उछलकर पीछे जा गिरा। इसके साथ ही मोना चौधरी ने छलांग मारी और पांव दूसरी मंजिल के फर्श पर जा टिके और फौरन आवाज की तरफ घूमी।
वहां दूसरा गनमैन मौजूद था और हक्का बक्का हुआ खड़ा था। उसने भी पहले वाले की तरह कल्पना नहीं की थी कि ऊपर के रास्ते से कोई आ सकता है। उसका गन वाला हाथ नीचे का नीचे ही रह गया। सामने बेहद खूबसूरत युवती देखकर, पहले तो उसे लगा कि ये सब मजाक है। लेकिन सामने अपने साथी की लाश को देखकर इसे मजाक कैसे कह सकता था।
पाली भी नीचे आ गया।
“गन फेंको। " मोना चौधरी गुर्राई।
उसने जल्दी से गन फेंक दी।
"शंकर भाई कहां है?" मोना चौधरी ने पहले वाले स्वर में कहा।
"मालूम नहीं। काम पर है। "गनमैन ने फौरन जवाब दिया।
"आएगा?"
"हां। शंकर भाई बोला था शायद तीन-चार बजे आए।"
पल भर रुककर वो पुनः बोला- "तुम कौन हो।
अंडरवर्ल्ड के शेरों की दौड़ में किसी युवती का नाम नहीं सुना। तुम --।"
"मैं शेरों के साथ दौड़ नहीं लगाती। शेरों को चीर-फाड़ कर सुखाती हूं।" मोना चौधरी ने वहशी स्वर में कहा-"उधर चल, जिधर शंकर भाई का बेडरूम है। "
"उधर है। " गनमैन ने एक तरफ इशारा किया-"वो दरवाजा लॉक है। "
"तू चल-।"
वो खामोशी से पलटा और आगे बढ़ा।
मोना चौधरी गन थामे सावधानी से उसके पीछे थी।
उसके पीछे पाली था।
बाहर अब फायरिंग में बहुत कमी आ गई थी।
दो रास्तों को पार करके वो एक बंद दरवाजे के सामने ठिठका।
"ये। " गनमैन पलटा- "शंकर भाई के बेडरूम का दरवाजा है।"
“पीछे हट।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर गन वाला हाथ हिलाया।
मोना चौधरी ने गन का मुंह उस जगह की तरफ किया, जहां दरवाजे पर चाबी लगती थी और गन का घोड़ा दबाती चली गई।
दरवाजे के उस हिस्से के परखचे उड़ गए।
ठीक इसी वक्त मौका पाते ही गनमैन ने फुर्ती के साथ जेब से रिवॉल्वर निकाली और रूख मोना चौधरी की तरफ करके एक के बाद एक, दो बार ट्रेगर दबा दिया।
मोना चौधरी सावधान थी। वो तुरंत अपनी जगह से हट गई।
परंतु पीछे पाली मौजूद था। एक गोली तो दीवार में जा धंसी। परंतु दूसरी गोली पाली के कंधे पर जा लगी। पाली के होंठों से चीख निकली। रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गई। दांत भींचकर उसने दूसरा हाथ वहां दबा दिया, जहां गोली लगी थी।
तब तक मोना चौधरी की गन, गनमैन को चीथड़ों में बदल चुकी श्री ।
“पाली—।" मोना चौधरी, गनमैन से निपटकर उसकी तरफ पलटी—"कैसा है तू।"
"ठीक हूं। "
"गोली कंधे में लगी है। "
"हां। फिक्र की कोई बात नहीं। तिजोरी कहां है?" पाली कंधे से उठते दर्द पर काबू पाता बोला।
मोना चौधरी ने दांत भींचे दरवाजे पर ठोकर मारी। वो खुलता चला गया। मोना चौधरी ने सतर्कता से भीतर प्रवेश किया। गन संभाले हर तरफ देखा। वो बेडरूम न होकर, बेहद खूबसूरत ड्राईगरूम था और खाली था।
सैकिंडों में ही मोना चौधरी की निगाह वहां फिर गई।
उस ड्राइंगरूम में दो-तीन अन्य दरवाजे नजर आए। मोना चौधरी उन दरवाजों की तरफ बढ़ी। एक खोला। वो बाथरूम था। दूसरा खोला, वो स्टडीरूम जैसा था। बीच में गोल टेबल के गिर्द चार कुर्सियां थीं। शायद यहां कोई मीटिंग भी होती हो।
तीसरा दरवाजा बेडरूम का ही था।
सादा सा, लेकिन खूबसूरत बेडरूम था वो। वार्डरोब, टी.वी., फोन, दो कुर्सी, एक चेयर के अलावा और जरूरत का जो भी सामान था। वो वहां था।
लेकिन तिजोरी कहीं नजर नहीं आई।
दरवाजे पर आहट पाकर मोना चौधरी पलटी। वो पाली था। कंधे से काफी खून बह चुका था। कमीज और बांह खून से सन चुकी थी। हाथ से अभी भी कंधा दबा रखा था। जबर्दस्त पीड़ा हो रही थी। इस बात की गवाह थी, उसकी सुर्ख आंखें।
"तुम ठीक हो। "
पाली ने होंठ भींचकर, सिर हिला दिया।
जबकि मोना चौधरी को उसकी बुरी हालत का पूरी तरह एहसास था।
"तिजोरी बेडरूम में नजर नहीं आ रही।"
"यहीं होगी।" पाली होंठ भींचकर बोला "किसी चीज के ऊपर नीचे देखो तिजोरी को इस तरह खुले में नहीं रखा जाता कि वो सीधे-सीधे नजर आ जाए।"
मोना चौधरी ने बार्डरोब खोला। देखा। चैक किया। तिजोरी वहां नहीं थी। उसके बाद हर वो संभव जगह देख ली जहां तिजोरी हो सकती थी। परंतु वो नहीं मिली।
तभी मोना चौधरी की निगाह दीवार पर लगे, वॉल पेपर के छेद पर जा टिकी। जो चाबी जैसा छेद था। वो उसके पास पहुंची। चैक किया फिर पाली से बोली।
"यह चाबी का छेद है। देखना --"
पाली दर्द पर काबू पाते आगे बढ़ा। पास पहुंचा छेद को चैक किया।
"मेरी कमीज ऊपर उठाओ।
"क्या?"
"कमीज ऊपर उठाओ। कमर पर औजारों वाली बैल्ट बंधी है। वो बैल्ट खोलो।"
मोना चौधरी ने ऐसा ही किया बैल्ट खोलकर उसके सामने की। पाली ने किसी तरह अपनी पीड़ा पर काबू पाया और बैल्ट में फंसे तार जैसे दो पतले औजारों को निकाला। उसके बाद हाथ 'की होल' तक बढ़ाए तो दांया हाथ पूरा न उठ सका।
"मोना चौधरी। " पाली के जिस्म में पीड़ा की लहर उठी–"कंधे का जख्म बहुत गहरा है। गोली भीतर तक धंसी पड़ी है। बांह नहीं उठ रही। बांह से मेरी कोहनी को सहारा दो। "
मोना चौधरी ने फौरन उसकी दाई कोहनी को सहारा दिया। आधा मिनट भी नहीं लगा और पाली ने उस जगह का ताला खोला तो साथ में छोटा सा दरवाजा खुलता चला गया। वहां पर सामने ही तीन फीट लंबी और दो फीट चौड़ी तिजोरी पड़ी नजर आई।
मोना चौधरी के होंठ भींच गए।
“पाली। जल्दी से खोलो इसे।
तिजोरी के दरवाजे पर छोटी नंबरों वाली चक्री लगी हुई थी। एक, तरफ चाबी का छेद भी था। यानी कि चाबी लगाने के बाद कम्बीनेशन नंबरों को मिलाना पड़ता था।
मोना चौधरी ने पाली की कोहनी को सहारा दे रखा था।
पाली ने बायां हाथ ऊपर किया गले में पड़ा बड़े औजारों वाला बैग उतारने के लिए कि पुनः अपना हाथ दर्द से भरे कंधे पर रख लिया। मोना चौधरी की निगाह पाली पर जा टिकी । पाली ने दर्द भरी सुर्ख आंखों से मोना चौधरी को देखा।
"मैं... मैं तिजोरी नहीं खोल सकता।" पाली हारे स्वर में कह उठा।
मोना चौधरी के दांत भींच गए।
"ये क्या कह रहे हो पाली।" मोना चौधरी के होंठों से निकला—"इस तिजोरी को खोलने के लिए ही तो इतना खून-खराबा किया है और मौके पर पहुंचकर कह रहे हो कि- "
"मेरी हालत को समझो। "पाली पास ही पड़ी कुर्सी पर बैठता हांफता हुआ बोला—"मेरा कंधा घायल है। खून बहुत बह चुका है। कंधे में धंसी गोली की वजह से दर्द बढ़ता जा रहा है। मेरी बांह हिलने के काबिल नहीं रही और कम्बीनेशन वाली इस तिजोरी को खोलने के लिए दोनों हाथों का फुर्ती से चलना बहुत जरूरी है जो कि इस वक्त मेरे लिए संभव नहीं।" कहने के साथ ही पाली कुर्सी पर बैठा हांफता रहा।
मोना चौधरी होंठ भींचे पाली को देखती रही।
पाली ने पीड़ा भरी लाल सुर्ख आंखों से उसे देखा।
"पाली। हमारे पास चक्त कम है। इस वक्त तिजोरी का खुलना बहुत जरूरी--।"
"कोई फायदा नहीं।" पाली पीड़ा पर काबू पाता कह उठा- "मेरा दायां हाथ इस वक्त काम नहीं करेगा।'
तभी दरवाजे पर आहट हुई
मोना चौधरी फौरन गन के साथ घूमी।
आने वाला पारसनाथ था। जिसके हाथ में रिवॉल्चर दबी थी। और पिंडली पर पैंट लाल सुर्ख हो रही थी। शायद कोई गोली रगड़ खाली पिंडली को घायल कर गई थी।
"इसे क्या हुआ?" पाली पर निगाह पड़ते ही पारसनाथ के होंठों से निकला।
"कंधे में गोली धंस गई है। " मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा— "तिजोरी खोलने के काबिल नहीं रहा।
"ओह।" पारसनाथ के होंठों से निकला।
"बाहर क्या पोजिशन है?"
"सब ठीक है। महाजन नीचे पहरे पर है और कोई गनमैन जिंदा नहीं बचा। ग्राउंड फ्लोर पर दो-चार लोग अवश्य हैं। शायद नौकर वगैरह परंतु उन्होंने खुद को कमरे में बंद करके रखा है। "
मोना चौधरी कुछ नहीं बोली।
"अब ज्यादा देर यहां रुकना ठीक नहीं।" पारसनाथ कह उठा।
“मैं समझ रही हूं। लेकिन जिस काम के लिए आए थे।" मोना चौधरी ने तिजोरी पर निगाह मारी -"वो तो नहीं हो सका। जब कि तिजोरी में पड़ी फाइल हमें चाहिए। —"
पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा। पाली को हिलाकर देखा। पाली की हालत वास्तव में खराब हो रही थी। यह तो स्पष्ट नजर आ रहा था।
एकाएक मोना चौधरी तिजोरी के पास पहुंची। उसे देखा। तीन फीट लंबी और दो फीट चौड़ी तिजोरी के भीतर कोई खास भारी वस्तु नहीं थी। वो हिली। परंतु तिजोरी का अपना वजन था। मोना चौधरी पारसनाथ की तरफ पलटी।
"अब एक ही रास्ता बचा है कि हम तिजोरी को ही साथ ले चलें – । " मोना चौधरी ने फैसले वाले स्वर में कहा।
"क्या?" पारसनाथ के होंठों से निकला-"ये कैसे हो सकता है। "
"सब हो जाएगा। तुम पाली को कंधे पर डालो और बाहर खड़ी अपनी कार में डाल दो।" मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में पूछा -"बंगले में कोई कार खड़ी है?"
"हां। दो कारें हैं। " पारसनाथ ने कहा।
“ठीक है। तुम पाली को अपनी कार में ले जाओ और महाजन को ऊपर भेज दो। " कहने के साथ ही मोना चौधरी आगे बढ़ी और खिड़की खोलकर बाहर देखने लगी।
यह बंगले का सामने वाला हिस्सा था।
"तुम्हारा मतलब कि मैं पाली को लेकर जाऊं। मेरी जरूरत नहीं?" पारसनाथ ने पूछा।
"हां। बाकी का काम मैं और महाजन कर लेंगे। पाली को इलाज की सख्त जरूरत है। यहां से हम सीधा तुम्हारे पास ही पहुंचेंगे। तिजोरी के साथ-"
पारसनाथ ने सिर हिलाया और आगे बढ़कर पाली को कुर्सी में उठाकर कंधे पर डाला और तेजी से बाहर निकलता चला गया।
दूसरे मिनट ही महाजन ने वहां प्रवेश किया। हाथ में बोतल थी।
“पाली को गोली लगने से रगड़ा पैदा हो गया बेबी—।" महाजन ने बेचैनी से कहा।
‘‘इधर आओ। ये तिजोरी है। हम इसे साथ ले जाएंगे। " मोना चौधरी बोली ।
“तिजोरी को ?"
"हां। ये छोटी तिजोरी इतनी भारी नहीं कि हम दो इसे न उठा सकें।" मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा—“इसे सीधे रास्ते से नीचे ले जाने की अपेक्षा खिड़की से नीचे फेंक देंगे और बंगले में खड़ी किसी कार में रखकर यहां से निकल चलेंगे। जल्दी करो। "
उसके बाद मोना चौधरी और महाजन ने फुर्ती से काम किया। तिजोरी वहां से निकाली। खिड़की से नीचे फेंकी और जल्दी में दोनों नीचे पहुंचे। एक तरफ दो कारें खड़ी नजर आईं।
“मैं कार लेकर आती हूं। " मोना चौधरी कार की तरफ भागी।
महाजन तिजोरी के पास पहुंच गया।
एक डेढ़ मिनट में ही मोना चौधरी कार ले आई। उसके बाद दोनों ने मिट्टी में सनी तिजोरी को उठाकर कार की डिग्गी में रखा।
मोना चौधरी ड्राइविंग सीट पर बैठी महाजन बगल में ।
अगले ही पल कार गेट की तरफ बढ़ गई जो पहले से ही खुला था। थे।
मोना चौधरी के दांत भींच हुए थे। आंखों में तीव्र चमक उभर पड़ी थी।
"बेबी।" महाजन गहरी सांस लेकर बोला- "तिजोरी अगर बड़ी होती तो, हम साथ न ले आ पाते।
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