वही कमरा था ।
ढाई घंटे बाद का वक्त था ।
दालूबाबा, गुलाबलाल और सोमनाथ सामने आकर बैठे थे। कुछ पल पूर्व ही वे दोनों आ कर दालूबाबा से मिले और सोफा कुर्सी पर बैठ गए थे ।
दालूबाबा के चेहरे पर व्याकुलता और परेशानी नाच रही थी। तभी गुलाब लाल बोला ।
"मैं तुमसे खुद ही मिलने की सोच रहा था दालूबाबा ।" गुलाब लाल ने कहा
"क्यों ?" दालूबाबा की निगाह, गुलाबलाल पर गई ।
"तुम तो जानते ही हो कि तिलस्म की सारी देखभाल और जिम्मेवारी मुझ पर है । मेरे आदमी तिलस्म में मौजूद हैं ।" गुलाबलाल ने सोच भरे स्वर में कहा--- "तिलस्म में मौजूद मेरे खास आदमी अमरू ने तिलस्म में भटकते एक ऐसे युवक और युवती को देखा, जिसके चेहरे देवा और मिन्नो से मिलते हैं।"
दालूबाबा के चेहरे पर सख्ती सिमट आई ।
"यह कब की बात है ?"
"दो-तीन दिन हो गए।"
"और् तुमने मुझे अभी तक खबर नहीं दी।" दालूबाबा का सर गुस्से से भर उठा--- "अब भी तुम्हारे खबर देने का लहजा ऐसा है कि, जैसे तुमने तिलस्म में जाकर इस बात की तस्दीक नहीं की हो ।"
"हां। मैंने अमरू की बात को सच नहीं माना है । मुझे पूरा विश्वास है कि वो किसी धोखे में है। वैसे भी मैं अपने कामों में बहुत व्यस्त था । इसलिए इस बात की सत्यता की जांच करने तिलस्म में नहीं जा सका ।"
दालूबाबा खा जाने वाली निगाहों से, गुलाबलाल को देखता रहा ।
"तुम बहुत लापरवाह हो गए हो । "
"मैंने कोई लापरवाही नहीं की ।" गुलाबलाल बोला--- "मिन्नो के वापस आने में अभी सौ बरस बाकी है। ऐसे में अमरु की बात को मैं सच कैसे मान सकता हूं।"
दालूबाबा का चेहरा जल रहा था ।
"अमरु ने मुलाकात की, उसके साथ ?"
"हां ।"
"क्या मुलाकात हुई ?"
"पहले, उसके कहे मुताबिक, वो मिन्नो से मिला और उसे गहरे में तिलस्म में भेज दिया । इसके बाद वो देवा से मिला और अमरु ने देवा को भी गहरे तिलस्म में भेज दिया। जहां से वे बच नहीं सकते और...।"
"खूब, दोनों को एक ही नाव में सवार करा दिया, ताकि उनकी मुलाकात हो जाए । तुम जानते हो कि अधिकतर तिलस्म उन दोनों के नाम से बंधा हुआ, कोई अकेला उन्हें नहीं तोड़ा सकता । अगर दोनों मिल गए तो सोचो क्या हो सकता है । सारा तिलस्म टूट कर बिखर सकता है उसके बाद ।"
तभी खामोश बैठा सोमनाथ बोला ।
"दालूबाबा । तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे देवा और मिन्नो वास्तव में तिलस्म में आ गए हों। मेरे ख्याल में किसी की शरारत है और इस शरारत को हम आसानी से स्पष्ट कर सकते हैं।"
"सोमनाथ । मैंने तुम्हें पूरी नगरी की देखभाल के लिए तैनात किया था । डेढ़ सौ बरस से तुम ऐसी जिंदगी व्यतीत कर रहे हो । अब क्या तुम मामूली इंसान बनकर उन लोगों के बीच रहना पसंद करोगे, जो तुम्हारा हुक्म मानते रहे हैं।"
सोमनाथ ने अजीब सी निगाहों से दालूबाबा को देखा ।
गुलाबलाल के चेहरे पर भी उलझन उभरी ।
"दालूबाबा, तुम्हें जो भी कहना है स्पष्ट कहो।" सोमनाथ बोला ।
"मिन्नो और देवा तिलस्म में मौजूद हैं।"
दालूबाबा के इन शब्दों पर दोनों चिहुंककर उछल पड़े।
दालूबाबा गुस्से के सागर में डूबा नजर आ रहा था।
"मैंने तुम्हें हमारे तिलस्म की देखभाल की थी और वहां कोई पहुंचा है या नहीं, तुम्हें इस बात की खबर तक नहीं । अमरु ने तुम्हें खबर दी तो तुमने इतनी बड़ी बात को गंभीरता से नहीं लिया।"
"सच बात तो ये है दालूबाबा ।" गुलाबलाल के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे--- "मुझे तो तुम्हारी बात पर भी यकीन नहीं आ रहा क्योंकि उस किताब के हिसाब से मिन्नो के वापस आने में अभी सौ बरस बाकी है। ऐसे में मिन्नो इस वक्त तिलस्म में कैसे मौजूद हो सकती है ।"
"तो क्या मेरा कहना गलत है ?" दालूबाबा की आंखों में मौत से भरी चमक दौड़ी।
"मैं यह नहीं कहता, लेकिन विश्वास हो नहीं होता...।" कहते-कहते गुलाबलाल के चेहरे पर अजीब से भाव आ गए--- - "ओह, अमरु की बात को गंभीरता से न लेकर, शायद मैं गलती कर चुका हूं । अमरु ने बताया था कि तिलस्म में उसने देवी की मूर्ति पर पड़ी तिलस्मी लकीरों वाली चादर उतारी थी और उसे कुछ नहीं हुआ । जबकि तिलस्मी लकीरों वाली चादर सिर्फ मिन्नो ही उतारकर, जिंदा बची रह सकती है। ये बात तो मैंने तिलस्मी किताब में पढ़ी थी । ओह दालूबाबा, तुम अवश्य सच कह रहे हो । मिन्नो तिलस्म में आ चुकी है। वो-वो सौ बरस पहले आ गई है। इसका मतलब देवा भी तिलस्म में मौजूद है ।"
सोमनाथ इन शब्दों पर एकाएक व्याकुल हो उठा था ।
"ये तो गजब वाली बात हो गई, मिन्नो की वापसी के बारे में सुनकर ।" सोमनाथ बोला ।
"शुभसिंह आया था कुछ घंटे पहले।" दालूबाबा ने दांत भींचकर कहा ।
"शुभसिंह ?"
"कौन शुभसिंह ?"
दालूबाबा ने सख्त निगाहों से दोनों को देखा ।
"तो अब तुम दोनों शुभसिंह को भूल गए। मैं उस शुभसिंह की बात कर रहा हूं, जो मिन्नो का खास लड़ाका होता था । नील सिंह और परसू तो लड़ाई में मारे गए थे, परंतु शुभसिंह बचा रह गया था । शुभसिंह हमारे आगे के कामों में अड़चन न बने, इसलिए उसे झूठे मामले में फंसाकर सजा के तौर पर उसे पत्थर का बनाकर मिन्नो के नाम का तिलस्म पढ़ दिया गया था कि वही उसे सजा से मुक्ति दिला सकती है और जहां कैद में शुभसिंह मौजूद था, मिन्नो वहां जा पहुंची और शुभसिंह कैद से आजाद होकर पूर्व स्थिति में आ गया।
वो अपने सलामत होने की खबर देने मुझे आया था और कह रहा था कि वो अपने पहले के साथियों को इकट्ठा करेगा । शुभसिंह कभी भी मिन्नो के साथ मिलकर, हमारे खिलाफ सकता है।" उठ
गुलाबलाल और सोमनाथ स्पष्ट तौर पर परेशान नजर आ रहे थे ।
"तिलस्म में मिन्नो का शुभसिंह के कैदखाने में पहुंच जाने का मतलब है कि वो तिलस्म के कई ताले तोड़कर वहां वहां तक पहुंची है। यह बात हमारे लिए खतरे वाली है।" "लेकिन मिन्नो सौ बरस "तुम ठीक कहते हो दालूबाबा ।" गुलाबलाल ने पहलू बदला--- पहले कैसे आ गई ?"
"मैंने तिलस्मी 'बॉल' से महसूस की थी ये बात ।"
"तो क्या जवाब मिला ?" सोमनाथ ने पूछा।
"बॉल, का कहना है कि समय ज्यादा तेजी से घूमा है । मिन्नो अपने वक्त पर ही आई है । लेकिन तिलस्मी बॉल ये नहीं बता पाई कि आने वाले वक्त में क्या होगा । मिन्नो की वापसी क्या रंग लाएगी ।" दालूबाबा ने चिंतित निगाहों से दोनों को देखा--- "लेकिन हम हाथ पर हाथ रखे, आने वाले वक्त का इंतजार नहीं कर सकते।"
"लेकिन एक बात मेरी समझ से बाहर है ।" सोमनाथ कह उठा--- "मिन्नो पृथ्वीवासी है तो पाताल नगरी में कैसे आ पहुंची । कोई भी सामान्य मनुष्य हम तक नहीं पहुंच सकता।"
गुलाबलाल धीमे स्वर में बोला।
"खबर के मुताबिक और भी कई मनुष्य पाताल में आ पहुंचे थे, परंतु उन्हें कैद करके मेरे हवाले कर दिया गया था । व्यस्त होने की वजह से उनसे मिलने की मैंने जरूरत महसूस नहीं की और आदेश दे दिया उन्हें सेवकों के कार्य पर लगा दिया जाए । हो सकता है, वे मनुष्य देव या मिन्नो के साथ आए हों। उनसे यह जाना जा सकता है कि वे पृथ्वी से पाताल तक कैसे पहुंचे ?"
"ये बात तो तुम्हें उन मनुष्यों से मिलकर, अब तक मालूम कर लेनी चाहिए थी ।" दालूबाबा ने उसे घूरा ।
"अपनी व्यस्तता के कारण...।"
"सब काम छोड़ दो गुलाबलाल । अब सबसे जरूरी ये काम है ।" दालूबाबा की आवाज में आदेश था ।
"हां । अब ऐसा ही करूंगा ।"
"यह बात तो मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मनुष्यों को पाताल में लाने वाला, हमारी ही नगरी से वास्ता रखता है। किसी ने हमारे साथ धोखेबाजी की है।" सोमनाथ दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा--- "पाताल से पृथ्वी तक आने-जाने का रास्ता हमारी नगरी वाले ही जानते हैं । इस रास्ते को कोई पृथ्वीवासी नहीं जान सकता ।"
"कौन हो सकता है वो गद्दार ?" गुलाबलाल ने सोमनाथ को देखा।
दो पलों की खामोशी के बाद, दालूबाबा गंभीर स्वर में बोला ।
"गद्दार जो कोई भी है, उसे ढूंढ निकालना होगा, वरना मिन्नो के साथ मिलकर, वो हमारे लिए कई तरह की मुसीबतों का इंतजाम कर सकता है और इस समय कोई मुसीबत भुगतने को तैयार नहीं हूं।"
"गुलाबलाल ।" सोमनाथ ने कहा--- "तुम उन मनुष्यों को मालूम करो कि पाताल नगरी में उन्हें कौन लाया ?"
"मैं जाकर पहला काम यही करता हूं।" गुलाबलाल के चेहरे पर सख़्ती उभरी--- "मालूम तो हो गद्दार के बारे में ताकि उसे सख्त से सख्त सजा देकर तिलस्मी कैद में डाला जा सके
"जो कुछ भी सुनने में आ रहा है, उससे मुझे बहुत हैरानी हो रही है ।" सोमनाथ बोला"मैं तो...।"
"सोमनाथ ।" दालूबाबा ने चुभती निगाहों से उसे देखा--- " हैरान होना छोड़कर सत्य की तरफ जाओ । अगर नगरी के लोगों को मालूम हो गया कि उनकी देवी लौट आई है तो फिर सोच सकते हो कि क्या होगा ? यहां तो अच्छा हुआ कि गीतलाल ने उसके शरीर से आती मनुष्य की महक को महसूस करके, उसे तिलस्म में डाल दिया वरना अब तक जाने क्या हो चुका होता। ऐसे में तुम इस बात के प्रति सतर्क रहो कि मिन्नो की वापसी की खबर लोगों तक न पहुंच सके । नहीं तो...।"
"मैं समझ गया दालूबाबा ।" सोमनाथ ने धीमे से सिर हिलाया दालूबाबा के कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि तभी कमरे में मौजूद घंटी बजी तो तीनों की गाह दरवाजे की तरफ उठ गई । कुछ क्षणों बाद हरीसिंह ने इजाजत लेकर भीतर प्रवेश किया और आदरभाव से सिर झुकाकर, सीधा होते हुए दालूबाबा से बोला ।
"मैं तिलस्म से होकर आ रहा हूं दालूबाबा । वहां की कुछ खबरें हैं।"
"कह दो।"
"कई जगह से तिलस्म टूटा हुआ है । कोई वहां से सुरक्षित गुजर गया है ।" हरीसिंह ने कहा
दालूबाबा के होंठ भिंच गए। चेहरे पर परेशानी आ गई ।
कुछ ऐसे ही गुलाबलाल और सोमनाथ के चेहरे पर भाव आ गए ।
"आगे कहो।"
"देवा की बस्ती वालों से मालूम हुआ कि देवा अपनी बस्ती में गया था । अपने परिवार वालों से मिला। उनके बीच क्या बातें हुई यह तो मालूम नहीं हो सका । देवा रात को अपने परिवार के बीच सोया, परंतु सुबह उठने पर घर `लोगों ने उसे गायब पाया । वो नहीं मिला। लेकिन देवा के परिवार वाले और बस्ती वालों को पूरा विश्वास है कि देवा उन्हें तिलस्म की कैद से मुक्ति दिलाने आया है और उन्हें आजाद करवा कर ही रहेगा। देवा के चले जाने पर भी उन्हें पूरी आश है कि वो जल्दी ही वापस आएगा । पूछने पर वो यही कहते हैं कि देवा उन्हें तिलस्म की कैद से मुक्ति दिलाने के लिए चुपचाप वहां से चला गया है । "
"यह तो बहुत बुरी खबर है।" सोमनाथ कह उठा
दालूबाबा की कठोर निगाह हरिसिंह पर थी ।
"देवा के साथ मिन्नो की काली बिल्ली भी थी ।"
"वो बिल्ली ।" गुलाबलाल के होठों से निकला--- "वो बिल्ली देवा के साथ कैसे हो सकती है। मैंने तो उसे कब से तिलस्म में कैद कर रखा है ।"
"जाने-अनजाने में देवा से वो तिलस्म टूट गया होगा और बिल्ली उसके साथ चल दी होगी ।" गुलाबलाल बोला--- "परंतु हैरानी है कि देवा अपने परिवार वालों के पास पहुंच गया। उसे रास्ता कैसे मिला ?"
"बिल्ली को मालूम था कि वो देवा है, उसकी मालकिन का दुश्मन । ऐसे में वो उसके साथ क्यों थी ?"
"दालूबाबा ने कठोर निगाहों से उन्हें देखा।
"इसका एक ही मतलब निकलता है ।" दालूबाबा ने परेशान स्वर में कहा ।
"क्या ?"
"तिलस्म का सारा नक्शा मिन्नो ने बनाया था और मैंने नक्शे को देखकर ही तिलस्म का निर्माण कर दिया। मैं यही सोचता रहा कि मैं सारे तिलस्म से वाकिफ हूं और तिलस्म के सब रास्तों की वो किताब मेरे पास है । लेकिन मेरी जानकारी में आए बिना मिन्नो ने तिलस्म में अवश्य कुछ परिवर्तन किए होंगे । तभी तो मिन्नो की काली बिल्ली देवा के साथ थी।"
"लेकिन ये परिवर्तन कैसे हो सकते हैं ?"
"यकीनन मिन्नो ने किए होंगे । आखिर है तो वो तिलस्म की मालकिन ही, कुछ भी कर सकती है । इस बात से स्पष्ट है कि तिलस्म में ऐसे और भी कई परिवर्तन होंगे, जिनके बारे में मुझे मालूम नहीं और मालूम किया भी नहीं जा सकता । तिलस्म से छेड़छाड़ करना हमारे हक में किसी भी तरह से ठीक नहीं । खैर, ये बातें फिर भी हो सकती हैं।" कहने के पश्चात दालूबाबा ने हरीसिंह को देखा--- "और कुछ कहना चाहते हो ?"
"हां दालूबाबा | तिलस्म कई जगह से टूटा हुआ है ।" हरीसिंह बोला--- "जिसे आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। वहां से कई रास्ते अब सामान्य रास्ते बन चुके हैं । उस जगह से तिलस्म को किसने तोड़ा, देवा या मिन्नो ने, कहा नहीं जा सकता ।"
दालूबाबा के दांत भिंच गए ।
"और कुछ ?"
"अभी इतनी जानकारी पाकर ही लौटा हूं।"
"और जानकारी इकट्ठी करो । देखो तो सही कि देवा और मिन्नो कहां है । इकठे है या अकेले हैं।"
"वो दोनों इकट्ठे कैसे हो सकते हैं दालूबाबा ।" सोमनाथ के होठों से निकला--- "वो दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे थे और खून के प्यासे रहेंगे। उनमें भला दोस्ती कैसी ?"
दालूबाबा की निगाह सोमनाथ पर गई ।
"मिन्नो की काली बिल्ली, देवा के साथ हो सकती है तो मिन्नो देवा के साथ क्यों नहीं हो सकती । यहां सब उन्हीं परिवर्तनों का नतीजा है, जो यकीनन मिन्नो ने मेरी जानकारी में आए बिना...।"
"दालूबाबा ।" गुलाबलाल गंभीर स्वर में बोला--- "हो सकता है तिलस्म में यह परिवर्तन न किए हों। किसी और ने तिलस्म में घुसपैठ करके, यह बदलाव कर दिया हो ।"
"कोई और्---भला ऐसा करने की हिम्मत और किसकी हो सकती है ?" दालूबाबा के माथे पर बल पड़े ।
"मुद्रानाथ को तुम भूल रहे हो दालूबाबा ।"
दालूबाबा के दांत भिंच गए ।
"तिलस्म विद्या में मुद्रानाथ का कोई मुकाबला नहीं, जिस तरह कि तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं और मुद्रानाथ हमारी कैद में भी नहीं आया । वो अभी तक आजाद है । कितनी कोशिशों के बाद भी हम उसे नहीं ढूंढ सके । उसके पास इतनी ताकत है कि वो तिलस्म मैं घुसपैठ कर सके ।" गुलाबलाल ने कहा ।
सोमनाथ ने तुरंत कहा ।
"गुलाबलाल की बात ठीक लगती है मुझे । मुद्रानाथ मिन्नो का बाप है और वो नहीं चाहेगा कि मिन्नो और देवा के बीच दोबारा झगड़ा हो । मुद्रानाथ हम से छिपकर तिलस्म में अपनी विद्या के दम पर ऐसे परिवर्तन कर सकता है कि देवा और मिन्नो दुश्मन के रूप में, एकदूसरे के सामने न पड़े और फिर मिन्नो की बहन बेला भी तो कम नहीं तिलस्मी विद्या में । वो भी हमारी पकड़ में नहीं आ सकी । बाप-बेटी दोनों मिलकर, हमारे खिलाफ कोई भी साजिश को अंजाम दे सकते हैं।"
दालूबाबा ने गंभीर परेशान निगाहों से हरीसिंह को देखा ।
"जाओ, और मालूमात हासिल करो ।"
हरीसिंह ने आदर भाव से सिर हिलाया और पलटकर, बाहर निकल गया ।
तीनों ने एक-दूसरे को देखा ।
वहां छाई-चुप्पी जैसे तीनों को ही परेशान कर रही थी ।
दालूबाबा होठों ही होठों में कुछ बुदबुदाया तो तभी दालूबाबा ने हुक्के की पाइप मुंह में डाली और गुड़गुड़ाने देखा । उसके के बाद पास हुक्का व्याकुल भाव से दोनों को नजर आया ।
"गुलाबलाल । सोमनाथ ।" दालूबाबा बोला--- "हमें एक बार आने वाले हालातों पर गौर कर लेना चाहिए।"
"कैसे हालात?"
"अगर मिन्नो पर वक्त रहते काबू न पाया गया तो क्या हो सकता है। बातें कड़वी अवश्य है, लेकिन इस बात पर बात करना जरूरी हो गया है । ताकि मिन्नो की वापसी को हम गंभीरता से ले ।"
दालूबाबा ने आंख मली। हुक्का गुड़गुड़ाया और गुलाबलाल-सोमनाथ को देखा ।
दोनों की गंभीर निगाह दालूबाबा पर थी ।
"आज् से डेढ़ सौ बरस पहले मैं देवी मिन्नो का सलाहकार था । सिर झुकाए मिन्नो की सेवा में खड़े रहना। उसने बातें पूछनी तो मैंने सलाह देनी । हर समय सिर पर डर सवार है ताकि मुंह से कोई गलत सलाह न निकल जाए।"
दालूबाबा ने पुनः हुक्का गुड़गुडाया ।
गुलाबलाल और सोमनाथ से सिर हिलाया ।
मिन्नो ने कब"और गुलाबलाल तुम देवी यानी मिन्नो के कामों का लेखा-जोखा रखते थे कहां जाना है और उसे आने वाले दिन में किससे मिलना है। मुलाकातों का सारा इंतजाम करना और कभी इतना व्यस्त रहना कि रात भर जागना पड़ता।"
गुलाबलाल ने पुनः सिर हिलाया ।
"और सोमनाथ तुम देवी यानी कि मिन्नो के महलों का रख-रखाव और कहीं जाने के लिए सवारी को हर समय तैयार और चाक चौबंद रखना । घोड़ा-गाड़ी हर समय तैयार रखे जाएं, महलों का सारा सिस्टम सुचारू रूप से चलाने का काम तुम्हारे हवाले था और मिन्नो के गुस्से की वजह से, सारा काम तुम्हें वक्त से पहले तैयार रखना पड़ता था और आज तुम पूरी नगरी की देखभाल करते हो और ठाठ से रहते हो । मेरे अलावा कोई तुमसे पूछने वाला नहीं और मेरी पूछताछ कभी भी कठोर नहीं रही। क्योंकि मैं खाने और खिलाने यकीन रखता हूं । मौज लो जिंदगी बिताओ । ठीक बोला मैंने ?"
सोमनाथ का सिर सहमति से हिला ।
"हां ।"
दालूबाबा `गुलाबलाल को देखा ।
"पूरी तिलस्म की देखभाल मैंने तुम्हारे हवाले कर रखी है। कहीं भी आओ जाओ कोई टोकने वाला नहीं है । डेढ़ सौ बरस से तो मौज भरी जिंदगी बिता रहे हो । अब तुम्हें देवी यानी के मिन्नो के कामों का ध्यान रखने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी। अपने मन के मालिक हो तुम ?"
"हां।" गुलाबलाल में बेचैनी से पहलू बदला ।
"और मैं-मिन्नो को सलाह देने के लिए अपने दिमाग को पागल नहीं करता फिरता । सारा कंट्रोल मेरे हाथ में है । तिलस्म का भी और नगरी का भी ।" दालूबाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "अब क्या तुम लोग चाहते हो कि सब कुछ वापस मिन्नों को सौंपकर, फिर से उसकी जी-हजूरी में लग जायें ?"
"नहीं।" गुलाबलाल बेचैनी से कह उठा--- "अब वो काम मेरे से नहीं हो सकेंगे।"
"मैं भी पहले की तरह मिन्नो की सेवा नहीं कर सकता ।"
"क्योंकि हमारी आदतें शान-शौकत से रहने वाली हो गई है। हमें हुक्म देने की आदत पड़ गई है। हुक्म सुनने की आदत जा चुकी है, जिसे कि हम फिर से नहीं अपना सकते । परंतु मिन्नो की वापसी का मतलब है कि हमें अपने सारे सुख-आराम छोड़ने होंगे और वो आ गई
सोमनाथ बेचैनी से पहलू बदल कर बोला ।
"इन हालातों से हमें निपटना होगा।"
"हां । कोई तो रास्ता निकालना होगा ।" गुलाबलाल कह उठा।
"मिन्नो जाते वक्त, अपने आखिरी समय में, मुझे तिलस्म की देखभाल के लिए छोड़ गई थी । नगरी और बाकी कामों की देखभाल उसके मुद्रानाथ और बेला के हवाले की थी । परंतु हमने षड्यंत्र रचाकर मुद्रानाथ और बेला की जान लेनी चाही, परंतु वो वक्त से पहले सतर्क हो गए और भाग निकले और आज जब मिन्नो को मालूम होगा कि हमने धोखेबाजी की है। उसकी बहन और पिता को खत्म करने का षड्यंत्र रचा था तो वो हमें जिंदा है छोड़ने वाली नहीं । "
"ओह । इस तरह तो हमने सोचा ही नहीं था ।"
"सब तरफ सोचो ।" दालूबाबा के दांत भिंच गए--- "जिंदा रहना है तो हर बात पर गौर करो । मैंने अपनी विद्या का उपयोग करके, नगरी के समय चक्र को रोक रखा है। तभी तो हम इतनी लंबी जिंदगी जी रहे हैं। नहीं तो जिंदगी के सौ-सवा सौ बरस व्यतीत करके मृत्यु को प्राप्त हो जाते । मिन्नो ने इस रुके हुए समय चक्र को चला देना है फिर हम लंबी जिंदगी नहीं जी पाएंगे। जो मौज-मस्ती हम ले रहे हैं। वो छिन जाएगी और हमारी जान तो मिन्नो ले लेगी । फिर...।"
गुलाब लाल ने टोका ।
"मिन्नो तिलस्म में है तो इसका मतलब उसे सब याद होगा। वो तो तिलस्म तोड़कर...।"
"नहीं । अभी ऐसा कुछ नहीं है ।" दालूबाबा हाथ उठा कर कह उठा--- "किताब के मुताबिक अभी मिन्नो को कुछ खास याद नहीं आएगा पूर्वजन्म के बारे में और तब की घटी घटनाओं के बारे में । कुछ समय बाद थोड़ा बहुत ही याद आ पाएगा।"
"अगर ये बात है तो फिर फिक्र की क्या बात है।" सोमनाथ ने कहा--- "तब तो हमें...।"
"फिक्र की बात न होती तो ये बात मैं छेड़ता ही नहीं । "
"क्या मतलब ?"
"यह ठीक है कि मिन्नो को अभी थोड़ा बहुत याद आएगा। परंतु नगरी के लोगों को तुम भूल रहे हो । मिन्नो उनके सामने पहुंच गई तो वो उसे देवी कहेंगे, जैसा कि गुरुवर ने कहा था कि एक दिन उसकी देवी वापस आएगी तो लोगों के उसे देवी कहने पर, हमारे पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा, उसे देवी मानने के अलावा ।"
"लेकिन हम साबित कर सकते हैं कि वो देवी नहीं।" गुलाबलाल बोला।
"कैसे ?" दालूबाबा ने उसे देखा।
"अमरु का कहना है कि उसके शरीर से मनुष्यों के शरीर की महक आती है और ये महक तिलस्मनगरी की देवी के शरीर से नहीं आ सकती । ऐसे में मिन्नो वहीं झूठी हो जाएगी की वो देवी नहीं हो सकती ।"
"तुमसे बड़ा बेवकुफ पहले कभी मेरी निगाहों के सामने से नहीं गुजरा।
"क्या मतलब ?" गुलाबलाल ने दालूबाबा को देखा
"तुम मुद्रानाथ और बेला को भूल रहे हो जो अभी तक हमारी कैद में नहीं आ सके । तुम क्या समझते हो कि वो आंखें बंद किए बैठे होंगे। हो सकता है वो मिन्नो से मुलाकात भी कर बैठे हों । मुद्रानाथ जैसा समझदार आदमी सारे हालातों पर पहले भी गौर कर चुका होगा या कर लेगा । ऐसे में मुद्रानाथ उसे अवश्य सफेद पानी वाले तालाब में डुबकी लगवा देगा । उस तालाब में डुबकी लगाने के बाद, नगरी के किसी भी व्यक्ति को, मिन्नो के शरीर से मनुष्य की महक नहीं आएगी।"
"ओह।"
"मेरी बात का स्पष्ट मतलब है कि मिन्नो का आना हमारी मौत है । इससे पहले कि वो तिलस्म से बाहर निकले, उसकी जान ले ली जाए । ये सारा काम इस तरह हो कि किसी को यह सब होने की खबर भी न लगे । शुभसिंह को मत भूलो कि वो कैद से मुक्त हो गया और अपने पुराने साथियों को इकट्ठा करने को कह गया है। नगरी की देवी के रूप में हर कोई मिन्नो को चाहता है। अगर अपनी ख़ैरियत चाहते हो तो मिन्नो की जिंदगी खत्म हो जानी चाहिए।"
"तिलस्मी किताब में मिन्नो की मौत का जिक्र है ?" सोमनाथ ने पूछा।
"वो किताब यहां पर खत्म हो जाती है कि एक दिन देवी की वापसी होगी ।" दालूबाबा ने व्याकुल स्वर में कहा--- "वापसी के बाद क्या होगा, इस बारे में किताब में नहीं लिखा ।"
देर तक वहां खामोशी रही ।
"मिन्नो का कोई तो इंतजाम करना ही होगा। नहीं तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।" सोमनाथ ने कहा ।
"मैं अपने विश्वास भरे आदमी तिलस्म में भेजता हूं मिन्नो को खत्म करने के लिए।"
"ये काम इतना आसान नहीं है ।" दालूबाबा ने गंभीर स्वर में कहा--- "गीतलाल ने कई दिनों से मिन्नो को तिलस्म में डाला हुआ है, परंतु वो अभी तक जीवित हैं। जबकि तिलस्म में फंसकर उसे अब तक अपनी जान गंवा देनी चाहिए थी । लेकिन वो अभी तक बची हुई है। यही बात में देवा के बारे में कहना चाहता हूं कि तिलस्म के कई ताले तोड़कर वो अपनी बस्ती में जा पहुंचा है। मेरे लिए तो हैरानी की बात है, क्योंकि, तिलस्म में जगहजगह मौत बिछी है। वो मरा क्यों नहीं ?"
"तुम कहना क्या चाहते हो ?"
"यही कि कोई उसकी सहायता कर रहा है या कोई खास बात है, जो दोनों अभी बचे हुए हैं।"
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मिन्नो को पूर्वजन्म की कुछ याद हो । तिलस्म की विद्या कुछ ही उसके मस्तिष्क में हो। जिसके सहारे वो तिलस्म को पार कर रही हो ।" सोमनाथ कह उठा।
"मेरे ख्याल में तो ऐसा होना संभव नहीं।" दालूबाबा ने सोच भरे स्वर में कहा ।
गुलाबलाल सिर हिलाकर कह उठा।
"ठीक है। मैं तिलस्म में ही मिन्नो का जीवन समाप्त करने का प्रयत्न करता हूं । लेकिन शुभसिंह तो जानता है कि मिन्नो आ चुकी है, वो नगरी के सब लोगों को बता--- "
दालूबाबा के चेहरे पर फैली कुटिलता भरी मुस्कान को देखकर वो ठिठका ।
"मुंह से कह देने से क्या फर्क पड़ता है । मिन्नो खत्म हो गई तो उसे कोई नहीं देख पाएगा। शुभसिंह की सारी बातें बेकार हो जाएंगी। क्योंकि कोई अपनी देवी को नहीं देख पाएगा
"दालूबाबा ठीक कहता है । "
दालूबाबा ने गुलाबलाल को देखा ।
"अब तुम्हारे हवाले क्या-क्या काम है गुलाबलाल ?"
"मैं उन मनुष्यों से मालूम करूंगा, जिन्हें कैद किया गया है और जो सेवक बने हुए हैं कि उन्हें पृथ्वी से पाताल में कौन लाया और उधर मैं अपने आदमी तिलस्म में भेजता हूं जो मिन्नो के जीवन का अंत कर सकें । यहां से जाते ही मैं इन दोनों कामों को अंजाम दूंगा।"
"जल्दी मिन्नो खत्म हो जाए तो हमें चैन मिल सकेगा।" दालूबाबा ने कहा ।
"मिन्नो को जल्दी ही खत्म करूंगा ।"
"तुम कहते हो कि मिन्नो को पूर्वजन्म के बारे में आधा-अधूरा याद आएगा। ऐसे में तो हमें ज्यादा चिंता नहीं होनी चाहिए कि... "
"उसे सब कुछ भी याद आ सकता है ।" दालूबाबा ने कठोर स्वर में कहा ।
"कैसे ?"
"जब वो नगरी के लोगों के सामने देवी के रूप में आएगी तो बाद में मजबूरी में आकर मुझे तिलस्मी ताज मिन्नो को सौंपना पड़ेगा। वो ताज सिर-माथे पर रखते ही मिन्नो पुनः अपने पूर्वजन्म में प्रवेश कर जाएगी और वो वक्त हमारी मौत का वक्त होगा ।" दालूबाबा का स्वर बेहूद सख्त हो चुका था--- "लेकिन मैं इस समय को आने ही नहीं दूंगा । बेशक इसके लिए मुझे अनुष्ठान करके हाकीम को ही क्यों न बुलाना पड़े।"
"हाकीम ?"
दोनों के चेहरों पर घबराहट के भाव नजर आए ।
"मिन्नो का अंत नहीं हुआ तो हाकीम को बुलाना ही पड़ेगा।" दालूबाबा के दांत भिंच गए ।
"ल-लेकिन हाकीम क्यों आएगा ?" गुलाबलाल का स्वर अस्थिर हो गया था।
"वह तो किसी का काम नहीं करता । किसी के बुलावे पर नहीं आता।" सोमनाथ हड़बड़ा उठा था--- "अगर तुमने उसकी चैन-नींद में खलल डाला तो वो वो...।"
"आज से सौ साल पहले की बात है ।" दालूबाबा ने गंभीर स्वर में कहा ---"मेरे काम से खुश होकर हाकीम ने कहा था कि वो मेरे काम आएगा। बेशक किसी भी वक्त से याद कर लूं और अब हालात ऐसे हैं कि, अगर तुम लोग कुछ न कर सके तो मुझे हाकीम को बुलाना पड़ेगा। परंतु कोशिश करो कि हाकीम को बुलावा न भेजना पड़े। क्योंकि हाकीम को बुलाने के लिए जो अनुष्ठान करना पड़ता है, वो इतना आसान नहीं।"
"हाकीम को इस मामले में लाने की जरूरत ही क्या है दालूबाबा ।" गुलाबलाल कह उठा--- "मेरे आदमी ही मिन्नो का अंत कर देंगे। जरूरत पड़ी तो मैं सोमनाथ के आदमी भी तिलस्म में भेज दूंगा।"
"हां-हां क्यों नहीं।" सोमनाथ ने तुरंत कहा--- "मैं अभी जाकर, विश्वास वाले, तिलस्म में काबिल आदमियों को तुम्हारे पास भिजवा देता हूं।"
दालूबाबा ने हुक्का गुड़गुड़ाया और दोनों को देखा।
"अपने आदमियों से कह देना कि अगर तिलस्म में कहीं देवा मिले तो उसे भी खत्म कर दिया जाए ।"
"देवा-देवा का अंत करने की क्या जरूरत है ।" गुलाबलाल बोला--- "वो तो हमारे लिए हानि वाला मनुष्य नहीं है । वो तो तिलस्म में भटक कर यूं ही अपने जीवन का अंत कर देगा।"
"देवा से हमें कब हानि मिल जाए, कहा नहीं जा सकता । वो वक्त याद करो, जब देवा ने हमारी पूरी नगरी को तबाह करने की कोशिश की थी । अब तो वो अपने परिवार वालों और बस्ती वालों से भी मिल चुका है, जिन्हें हमने तिलस्म में कैद कर रखा है। धीरे-धीरे देवा को पूर्वजन्म की बातें याद आती चली गई तो क्या वह सह सकेगा कि हमने उसके परिवार और बस्ती वालों को तिलस्म में बंदी बना रखा है। देवा का क्रोध भूल गया क्या। यूं ही झगड़ा पैदा हो, यह मुझे पसंद नहीं ।"
"लेकिन...।" सोमनाथ बेचैन सा कह उठा--- - "दालूबाबा, मिन्नो ने जाते वक्त तुम्हें ताकिद की थी कि कभी भी किसी मनुष्य की जान न ली जाए। नहीं तो कहर बरसेगा । देवा और मिन्नो इस वक्त मनुष्य हैं । "
"देवा और मिन्नो की जान हम नहीं बल्कि तिलस्मी हादसें लेंगे और उन हादसों को हम अपनी तिलस्मी शक्ति से पैदा करेंगे और तिलस्मी हादसे में किसी मनुष्य की जान जाये तो इसकी जिम्मेवारी किसी पर नहीं आती।"
दालूबाबा के चेहरे पर विषैले भाव उभरे ।
गुलाबलाल और सोमनाथ खड़े हो गए ।
दालूबाबा ने हुक्का गुड़गुड़ाकर उन्हें देखा। "सिर्फ दो दिन का वक्त है तुम दोनों के पास, देवा और मिन्नो का अंत करने के लिए । अगर सफलता हाथ नहीं लगी तो फिर मुझे हकीम को बुलाना पड़ेगा और हकीक बुलाना कितना महंगा पड़ता है। इस बात से तुम दोनों अच्छी तरह वाकिफ हो । इसलिए कोशिश करो कि हकीम को बुलाना न पड़े ।
दोनों ने सिर हिलाया।
दालूबाबा के ईशारे पर गुलाबलाल और सोमनाथ बाहर निकल गए ।
दालूबाबा सोचों में, परेशानी में डूबा हुक्का गुड़गुड़ाता रहा।
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