“काफी दिमाग घुमाया लेकिन बात समझ में नहीं आ पाई।”
देवांश कहता चला गया - – “मगर, इस बंद कमरे मे तारे जरूर नजर आ गये हमें। यह कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, पांच करोड की पॉलिसी पर नजर पड़ते ही हमारी बांछें खिल गई थीं। इतनी बड़ी रकम न केवल हमारे सारे दिलद्दर दूर कर सकती थी बल्कि एक ही झटके में भैया की बीमारी से पहले वाली आर्थिक स्थिति में पहुंचा सकती थी, परन्तु संलग्न लेटर को पढ़ा तो होश उड़ गये। सुसाईड की अवस्था में क्लेम नहीं मिलना था और सुसाईड ही की थी इन्होंने। इन हालात ने हमें लालच में फंसाया । सोचा- -अब एक ही स्थिति में हमारा उद्धार हो सकता। तब जबकि आत्महत्या को हत्या साबित कर दें। निश्चय किया ही था कि बाथरूम की तरफ से दरवाजा खटखटाया गया। होश उड़ गये हमारे यह तो बाद में पता लगा वह तुम थे। मगर.... “कब... और कैसे पता लगा?”
देवांश ने वह घटना ज्यों की त्यों बता देने में कोई बुराई नहीं समझी। अर्थात् - बता दिया कि उन्होंने कमरे की छत से उसे बाथरूम की खिड़की से बाहर निकलकर विला के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ते देखा था। वह सारा वृतांत बताने के बाद देवांश कहता चला गया— “उधर तुम घन्टी बजा रहे थे। इधर हम हड़बड़ाये हुए थे। समझ सकते हो - - - उस वक्त क्या हालत रही होगी हमारी। जल्दी-जल्दी में आत्महत्या को हत्या बनाने की दिशा में केवल रिवाल्वर और ज्वेलरी ही गायब कर सके। कपड़े चेंज कर सकें उतने कम टाईम में इससे ज्यादा और किया भी क्या जा सकता था ? जबकि तुम लगातार घन्टी बजा रहे थे । दरवाजा खोलना हमारी मजबूरी थी और.. .दरवाजा खोलते ही सामना करना पड़ा तुम्हारे चुभते सवालो का । तुमने महसूस किया होगा- हम तुम्हें भैया के बैडरूम तक नहीं आने देना चाहते थे। वहीं से टरका देने की कोशिश कर रहे थे। चाहे यह कहकर कि भैया नींद की गोली लेकर सोये हैं या किसी और बहाने से। मगर, तुम किसी भी हालत में टलने को तैयार नहीं थे। दूसरी तरफ - यह सवाल हमारे दिमाग के भिन्यास उड़ाये हुये था कि रात के उस वक्त तुम यहां आये क्यों थे? खास तौर पर चोरों की तरह बाथरूम का दरवाजा क्यों खटखटाया था। जब तुमने इस सवाल का जवाब दिया तो एक ही जगह सैकड़ों सवाल दिमाग को मथने लगे। भैया ने तुम्हें क्यों बुलाया था? क्यों चोरों की तरह बाथरूम के रास्ते से आने को कहा था और...
“क्यों मेरे आने से पहले आत्महत्या कर ली थी?" बात ठकरियाल ने पूरी की।
“ये और ऐसे ही अनेक सवाल हालांकि अभी तक अनुत्तरित हैं परन्तु भैया की लाश पर नजर पड़ते ही जो कुछ तुमने कहा और फिर जिस ढंग से तुमने बाथरूम अंदर से बंद किया उसने हमारी हिम्मत तोड़ दी। लगा – किसी भी तरीके से हम तुम्हें धोखा नहीं दे पायेंगे। बल्कि...उन्टे भैया की हत्या के जुर्म में फंस सकते हैं। सो, हमने तुम्हें सब कुछ बता देने का निर्णय ले लिया। हालांकि — जिस आर्थिक क्राईसेज के हम शिकार हैं उनमें पांच करोड़ का लालच छोड़ना बहुत बड़ी बात है। और अब।" कहने के साथ देवांश ने ऐसी सांस ली जैसे बोलता-बोलता थक गया हो। कुछ देर ठहकर वह फिर बोला— “अब सब कुछ तुम्हारे हाथ में है ठकरियाल । इतना ही कह सकते हैं—इस स्वीकारोक्ति से पहले लालच में फंसकर हमनें तुम्हें चकमा देने की मंशा से जितनी सफल असफल कोशिशें की उन्हें हमारी नादानियां या बेवकूफियां समझकर माफ कर दो। भूल जाओ उन सबको ओर इस केस को दुनिया के सामने वैसा का वैसा ही ले आओ जैसा ये है ।"
“अर्थात् किसी को यह न बाताऊं तुमने इस आत्महत्या को हत्या का रंग देने की कोशिश की थी। "
“यही रिक्वेस्ट है तुमसे। वैसी भी, इससे किसी को कोई फायदा नहीं होने वाला।”
“फिर।”
दिव्या बोली—“कम से कम अभी तक हमारे किसी कृत्य से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ है। अर्थात् — इस घटना को यूं कहा जा सकता है कि बेटी अभी बाप के घर है। समय रहते अक्ल आ गई है हमें। इस लिहाज से, हमारा अब तक का गुनाह तुम जैसे सहृदय व्यक्ति के लिए क्षमा योग्य है।"
बड़े ही अजीब लहजे में कहा ठकरियाल ने — “तुम्हें यह इन्फारमेशन किसने दे दी है मैं एक सहृदय व्यक्ति हूं?” दिव्या समपका गई।
देवांश ने कहा—“हम क्या तुम्हें आप से जानते हैं?”
“जब से भी जानते हो लेकिन —— मैं स्पष्ट शब्दों में कह सकता हूं, कम से कम पहचान तो रत्तीभर नहीं सके मुझे।" बड़े ही सपाट लहजे में ठकरियाल कहता चला गया- “सहृदय की बात तो छोड़ ही दो, दिल नाम की चीज तक नहीं मेरे सीने में दूसरी बात अपनी प्रशंसा सुनकर साधु-संत और देवी-देवता खुश होते होंगें खुश होकर वे ही अपने भक्तों को सद्प्रसाद देते होंगे। मैं इसे चापलूसी समझता हूं। जब कोई मेरे मुंह पर मेरी प्रशंसा करता है तो मैं फोरन समझ जाता हूं ये शख्स चापलूस किस्म का है और... दुनिया में अगर मैं किसी से सबसे ज्यादा नफरत करता हूं तो केवल चापलूस से। मेरे ख्याल से आप मेरे कथन का मतलब समझ गई होंगी दिव्या जी।” देवांश और दिव्या के चेहरे उतर गये।
ठकरियाल के मुंह से इतने नंगे शब्द की कल्पना नहीं कर पाये थे वे। लगा– ये आदमी उनके काबू में आने वाला नहीं है।
हलक सूख गया देवांश का। बड़ी मुश्किल से कह सका - – “तो क्या हम यह समझें, तुम हमें जरा भी कॉपरेट नहीं करोगे?”
“सामने वाला हमें कॉपरेट करे या न करे, यह उस पर नहीं खुद हम पर निर्भर होता है।"
“म-मतलब?”
“अगर तुम सामने वाले को धोखा देने की कोशिश करते रहोगे तो उससे कॉपरेशन पाने की उम्मीद बेवकूफाना ही हुई न?”
“ह-हम आपको धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं? कहते वक्त देवांश का लहजा कांप रहा था । ठकरियाल के प्रति वह 'तुम' से ‘आप’ पर पहुंच गया था।”
“इस बात में जरा भी शक नहीं है मुझे।” एक-एक शब्द पर जोर देते ठकरियाल ने कहा ।
कोशिश के बावजूद देवांश के मुंह से कोई लफ्ज न निकल सका। दरअसल वह समझ ही नहीं पा रहा था कि कहे तो क्या कहे। यूं देखता रह गया ठकरियाल की तरफ जैसे गूंगा होने के कारण गुड़ का स्वाद न बता पा रहा हो। दिव्या की हालत उससे भी बदतर थी।
उसे लग रहा था – ये आदमी उन्हें जेल भेजे बगैर नहीं मानेगा।
जब काफी देर तक भी उनमें से कोई कुछ न बोल सका तो ठकरियाल ने कहा- “जब तुम लोगों ने आत्मस्वीकारोक्ति की बात की थी तो मैंने यही सोचा था किस्से को यहीं खत्म कर दूंगा। क्योंकि वाकई तुम्हारी अब तक की किसी हरकत से किसी बेगुनाह का कुछ नहीं बिगड़ा है। कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा मेरे द्वारा माफ कर दिए जाने पर परन्तु....
“परन्तु?”
“अब-जबकि तुमने अपना किस्सा सुना कर पूरा किया है तो इस नतीजे पर पहुंचा हूं- तुम इस दुनिया के सबसे बड़े धुर्त हो! कमीने! जलील और खुदगर्ज हो।”
“य-ये तुम क्या कह रहे हो?” दोनों के चेहरे पीले पड़ गये।
“पूछो क्यों?” ठकरियाल गुर्राया— “क्यों नवाजा मैंने तुम्हें अलंकारों से?”
“क-क्यों?” दिव्या बड़ी मुश्किल से पूछ सकी।
“क्योंकि अब भी तुमने मुझे पूरा सच नहीं बताया। बड़ी सफाई से अपने किसी बड़े गुनाह को छुपाने की कोशिश की है।” दोनों की जुबान तालु मे जा चिपकी।
“और इसलिए।” ठकरियाल ने एक-एक शब्द चबाया – “मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं- तुम जैसे हरामियों को जेल की चक्की पीसनी चाहिए।”
होश फाख्ता हो गये दिव्या और देवांश के।
अपने चारों तरफ उन्हें अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा था।
आंखों के सामने से अंधेरा छंठा तो दीन-हीन में दिव्या ने पूछा- “ठकरियाल साहब, ऐसी क्या गलती हो गयी हमसे?”
“यही तो है सबसे बड़ी गलती। अभी तक मुझ ही से गलती पूछ रहे हो।”
“क-क्या मतलब?” देवांश हकला उठा।
“मतलब सरल रेखा की तरह सीधा है मिस्टर देवांश । सच पूछो तो मुझे तरस आ रहा है तुम दोनों की बुद्धि पर। तुम बेवकूफ तो अभी तक यह भी नहीं समझ पाये, ठकरियाल को गच्चा देना कम से कम तुम्हारे बूते की बात नहीं है।” उत्तेजित स्वर में ठकरियाल कहता चला गया—“सारी जिन्दगी जिस शख्स की एक ही कोशिश रही, यह कि – तुम दोनों को कभी किसी मुसीबत या क्राईसेज से न गुजरना पड़े वह शख्स ठीक उससे अगले दिन सुसाईड क्यों करता है जिस दिन उसने बीमा कम्पनी को इस आशय का खत लिख कि सुसाईड की अवस्था में किसी को क्लेम न दिया जाये। बीमा कम्पनी को ऐसा लेटर लिखा ही क्यों उसने और फिर आत्महत्या क्यों की? जैसा शख्स वह था—उसे तो बाकायदा तुम्हारे लिए पांच करोड़ का इन्तजाम करके मरना चाहिए था। कर गया बिल्कुल उल्टा – यह कि तुम उसकी मृत्यु के उपरान्त भी पांच करोड़ न पा सको। पा भी सको तो तब जब उसकी आत्महत्या को हत्या सिद्ध करने के लिए पापड़ बेलो। दूसरी तरफ – वह ठीक एक बजे मुझसे बाथरूम में पहुंचने की लिऐ कहता है लेकिन उससे कुछ ही देर पहले आत्महत्या कर लेता है। साफ जाहिर है— राजदान साहब ने जो किया, खूब सोच-समझकर, मुकम्मल प्लान के साथ किया। वे चाहते थे - पांच करोड़ के लालच में फंसे तुम जिस वक्त उनकी आत्महत्या को हत्या का रंग देने की कोशिश कर रहे हों, ठीक उसी वक्त मैं यहां पहुंच जाऊं ताकि तुम्हारे होश फाख्ता हो जायें। अनेक किस्म की मानसिक यंत्रणाओं से गुजरो तुम। ऐसा लगता है—जैसे वे तुम्हें तुम्हारे किसी गुनाह की सजा देने पर कटिबद्ध थे। जैसे रिवेंज लेना चाहते थे तुमसे। रिवेंज भी तुम्हारे किसी ऐसे गुनाह का जिसने उनके विश्वास की धज्जियां उड़ा दी थीं। ऐसा न होता तो वे कदापि ऐसा षड्यंत्र न रचते जिसमें तुम्हारे लिए दूर-दूर तक रहम का कोई खाना नजर नहीं आ रहा। हालात बताते हैं—अपने अंतिम क्षणों में वे तुम दोनों का उसमें भी ज्यादा बुरा चाहते थे जितना सारी जिन्दगी भला चाहते रहे। क्या तुम बता सकते हो - ऐसा क्यों था? क्या गुनाह किया था तुमने? "
मानों दोनों को सार्प सूंघ गया। जुबान तालू से जा चिपकी।
मुंह से आवाज निकालने की भरसक चेष्टा के बावजूद वे एक लफ्ज बोलने में कामयाब न हो सके। उन्हें लग रहा था—-इस खुर्राट पुलिसिये से वे किसी भी तरह पार नहीं पा सकेंगे।
ठकरियाल ने आगे कहा – “तुम अभी भी मुझसे अपने उसी गुनाह को छुपाने की कोशिश कर रहे हो जिससे आहत होकर राजदान जैसे नेक इंसान ने तुम्हारी बरबादियों का जाल बिछाया और... मुझ ही से सहयोग की अपेक्षा कर रहे हो । ये है तुम्हारी बेवकूफी?” दोनों के दिमाग में आया— 'क्या वे अपने अवैध सम्बन्धों के बारे में उसे बता दें?' दिल कांप गये उनके।
कैसे नंगे हो जायें उसके सामने? भविष्य में वह, उन्हें सारी दुनिया के सामने नंगा करेगा। थू-थू हो जायेगी। ये दुनिया, ये जहान...कैसी घृणित नजरों से देखेगा उन्हें। उन्होंने जितना सोचा। लगा — वे जीवित नहीं रह सकेंगे। - राजदान की तरह ही आत्महत्या करनी पड़ेगी उन्हें । तो क्या....तो क्या उनके लिए यही सजा मुकर्रर कर गया था राजदान? यह कि—उन्हें भी उसी की तरह आत्महत्या करनी पड़े? अवैध सम्बन्धों का भेद खुलने के बाद, मरने के अलावा और रास्ता ही क्या बचेगा उन पर?
“हां! हां...पागल हो गई हूं मैं।" दिव्या ने सचमुच पागलों की तरह चिल्लाते हुए खुद को ठकरियाल से छुड़ाया- “बगैर कपड़ों के देखना चाहते हो न मुझे? और ये ... ये भी यही चाहता है ताकि कानून की गिरफ्त से बचा रहे।.... तो लो—लो – देखो मुझे बगैर कपड़ों के।” कहने के साथ उसने एक झटके से अपने तन पर मौजूद का कोट उतार फेंक दिया। उसके बाद नाईट गाऊन। नाईट गाऊन के नीचे ब्रा नहीं थी।
जिस्म का ऊपरी हिस्सा आवरण हीन हो उठा।
'वी' शेप का केवल एक अण्डरवियर रह गया जिस्म पर।
देवांश बौखलाया हुआ था। उसी अवस्था में दिव्या के नग्न जिस्म को देख रहा था वह । जबकि उसी नग्न जिस्म को देखते हुए ठकरियाल ने कहा—“अरे! तुम्हारे हसीन जिस्म पर खून के ये छींटे कैसे हैं मोहतरमा ये तो... ये तो राजदान का खून हैं! तो क्या तुम उस वक्त बिल्कुल नंगी थी जब राजदान ने खुद को गोली मारी? उस वक्त तुम्हारे जिस्म पर कपड़े होते तो खून के छींटे कपड़ों पर होने चाहिए थे। क्या मैं जान सकता हूं- तुम ऐसी अवस्था में उस वक्त राजदान के इतने नजदीक क्या कर रही थीं?” दिव्या ने बौखलाकर अपने जिस्म को देखा। देवांश भी खून के उन्हीं छींटों को देख रहा था जिन्हें देखकर ठकरियाल ने उपरोक्त शब्द कहे थे। अभी वे विचारों में ही गुम थे कि-
“हा-हा-हा-हा—!” कमरे में किसी के ठहाका लगाने की आवाज गूंजी। किसी के क्यों?
खुद राजदान की आवाज थी वह ।
हां। राजदान हंस रहा था।
यूं — जैसे पागल हो गया हो ।
दिव्या और देवांश उस आवाज को लाखों में पहचान सकते थे।
सारा कमरा राजदान के खिलखिलाकर हंसने से गूंज रहा था। बौखलाकर उन्होंने लाश की तरफ देखा ।
वह ज्यों की त्यों सोफा चेयर पर लुढ़की पड़ी थी। खून से लथपथ । चेहरे और सिर पर भिन्यास उड़ा हुआ था। जरा भी तो हरकत नहीं थी उसमें। बावजूद इसके – कमरा उसके कहकहों से सराबोर था। मारे दहशत के बुरा हाल हो गया दिव्या और देवांश का।
टांगें तिनकों की तरह कांप रही थीं।
दिमाग हवा । होश फाख्ता।
फिर ठहाकों के साथ राजदान के शब्द उनके कानों से टकराये – “लाश की तरफ क्या देख रहे हो कमीनों मर चुका हूं मैं। तुम्हारे सामने मरा। मगर मरने के बाद भी तुम्हें छोडूंगा नहीं। ठकरियाल... वो हाल कर देना है इनका कि इन इनकी गिनती जिंदों में रहे, न मरों में। ये दोनों इंसान नहीं, दरिन्दे हैं! दरिन्दे। तुम जानते हो, शायद तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता मैं इन्हें कितना प्यार करता था मगर देखो...देखो क्या हालत बना दी है इन्होंने मेरी । तुम मेरे इस मोहरे से बच नहीं पाओगी दिव्या । और देवांश...तुझे बरबाद करके रख देगा ठकरियाल।”
शब्द समाप्त हुए तो पुनः राजदान के ठहाके गूंजने लगे।
वे दोनों बुरी तरह बौखलये हुए थे।
कभी इधर देख रह थे, कभी उधर पता नहीं लगा पा रहे थे आवाज किधर से आ रही है। जबकि आवाज आ लगातार रही थी। पसीने-पसीने हो चुके थे वे।
चेहरे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे बार-बार कोल्हू के पाटों से निकले गन्ने।
और उस वक्त तो पीलिया के मरीज से नजर आने लगे वे जब ठकरियाल ने अपनी जेब से एक छोटा-सा टेपरिकार्डर निकाला। हौले-हौले चल रहा था वह।
राजदान के हंसने की आवाज उसी से आ रही थी।
फिर ठकरियाल ने टेपरिकार्डर ऑफ कर दिया।
राजदान के ठहाकों की आवाज बंद हो गयी।
दिव्या और देवांश उसकी तरफ आंखे फाड़े इस तरह देख रहे थे जैसे वह अजूबा हो। समझ नहीं पा रहे थे— राजदान की आवाज का टेप उसके पास केसे ?
वह आवाज उन्हें क्यों सुनाई थी उसने?
बहुत देर तक कमरे में ऐसी खामोशी छाई रही जैसे वहां कोई था ही नहीं।
कारण था— कोशिश के बावजूद दिव्या और देवांश के मुंह से किसी किस्म की आवाज़ का न निकल पाना और... ठकरियाल को तो उनकी हालत का लुत्फ उठाने से ही फुरसत नहीं थी तो बोलता क्या? पकड़े जाते बहुत अपराधी देखे थे उसने। उनमें कुछ ऐसे भी थे जिन्हे गुनाह करते वक्त रंगे हाथे पकड़ा गया था परन्तु उतने निचुड़े हुए चेहरे कभी नहीं देखे थे जैसे इस वक्त उसके सामने थे। काफी लम्बी खामोशी के बाद ठकरियाल ने पूछा- “समझ में आया कुछ?”
“न-नही ।” बड़ी मुश्किल से देवांश बस इतना ही कह सका ।
“वही बोलो।” ठकरियाल मजे ले रहा था- “क्या समझ में नहीं आया?”
“यह टेप तुम्हारे पास कैसे है?" देवांश ने हिम्मत करके अवाल करने शुरू किये – “कैसे है इसमे भैया की आवाज?....और यह सब तुमने हमें क्यों सुनाया?”
“ऐसा ही हुक्म हुआ था राजदान साहब का ।”
“भ- भैया का हुक्म?” देवांश चकरा गया।
“तारीफ करनी पड़ेगी राजदान साहब के दिमाग की महत्वपूर्ण यह नहीं है उन्होंने जो किया, पूरा प्लान बनाकर किया बल्कि ये है कि—–मरने से पूर्व वे बहुत अच्छी तरह से जानते थे उनकी मौत के बाद कौन से स्पॉट पर क्या होगा। मैं खुद हैरान हूं— कदम-कदम पर वही हुआ।”
“हम समझे नहीं, क्या कहना चाहते हो तुम?”
“बात को यूं समझो—फोन पर हुई वार्ता के मुताबिक जब मैं एक बजे बाथरूम में पहुंचा तो सचमुच नहीं जानता था उन्होंने मुझे क्यों बुलाया है। मगर पहुंचा। वे अच्छी तरह जानते थे मैं पहुंचूगा। बहरहाल, दुनिया में ऐसा कौन है जो बार-बार सोन के अंडे पाना न चाहता हो।” ठकरियाल कहता चला गया – “बाथरूम से मुझे सोने के अंडे अर्थात् पांच लाख रुपये और एक लेटर मिला। पढ़ना चाहोगे उस लेटर को ?”
“हां-हां।” देवांश के मुंह से ऐसी आवाज निकली जैसे किसी अज्ञात शक्ति ने बोलने के लिए मजबूर किया हो। ठकरियाल ने एक कागज निकालकर देवांश की तरफ बढ़ा दिया। सस्पैंस में फंसे देवांश ने कागज की तहें खोलीं। दिव्या भी सरककर उसके नजदीक पहुंच गई। न केवल नजदीक पहुंच गई बल्कि उस कागज पर झुक गई जिसे देवांश खोल चुका था।
राजदान के लैटर पैड का कागज था वह। राजदान की राईटिंग पहचानने में किसी किस्म की दिक्कत पेश नहीं आई।
लिख था-
इंस्पैक्टर ठकरियाल, रुपये और ये लेटर तुम्हें बाथरूम से मिलेंगे। पांच लाख रुपये उस काम की फीस है जो तुम मेरे लिए करने वाले हो । कमरे की तरफ से बंद बाथरूम के दरवाजे को उसी तरह खटखटाओगे जिस तरह मैंने फोन पर समझाया था। मेरा नाम पुकारकर एकाध आवाज़ भी लगा सकते हो परन्तु अभी बताये देता हूं— दरवाजा नहीं खुलेगा। जबरदस्ती नहीं करनी है तुम्हें कुछ देर बाद खिड़की के रास्ते बाहर निकल जाना। मेनगेट पर पहुंचना बाकायदा कॉलबेल बजा देना। चौकीदर को मैंने एक हफ्ते की छुट्टी पर उसके गांव भेज दिया है। निश्चित रूप से दरवाजा खुलने में काफी देर लगेगी। दिव्या और देवांश यह भी चाह सकते है तुम थक-हारकर चले जाओ मगर याद रहे—देर चाहे कितनी हो जाये तुम्हें उन्हें दरवाजा खोलने पर मजबूर करना है। दरवाजा खोलते ही वे रात के उस वक्त तुम्हारी वहां मोजूदगी के बारे में पूछेंगे। यह एक स्वाभाविक सवाल होगा। जवाब में तुम उन्हें मेरे और अपने बीच आठ बजे हुई फोन वार्ता को ज्यों की त्यों बता दोगे। ध्यान रहे — यहां इस लेटर के बारे में कुछ नहीं बताना है। उसके बाद बैडरूम में तुम्हें जो कुछ देखने को मिलेगा, चाहूं तो इसी लेटर में लिख सकता हूं मगर नहीं, मैं तुम्हारी क्यूरोसिटी कम नहीं करना चाहता। मेरे आगे के निर्देश उस सोफा चेयर के पीछे पड़े मिलेंगे जिस पर मैं खुद 'विराजमान' होऊंगा। उन्हें इस तरह उठाकर तुम्हें अपनी जेब में रखना है कि वे तुम्हारी हरकत को तो साफ-साफ देख सकें परन्तु यह न देख सकें वह था क्या? चाहे वे जितना पूछें, कम से कम यहां तुम्हें वहां से बरामद सामान के बारे में कुछ नहीं बताना है। उसके बाद तुम मुझ सहित उन दोनों को कमरे में छोड़कर बाथरूम में चले जाओगे। दरवाजा बाथरूम की तरफ से बंद कर लोगे। फुर्ती के साथ खिड़की के रास्ते से लॉन में पहुंचोगे। वहां से मेन गेट द्वारा वापस मेरे बैडरूम के मुख्य द्वार पर। यह सारा काम इतनी तेजी से होना है कि दिव्या और देवांश को कुछ समझने का मौका न मिले। कमरे का मुख्य दरवाजा तुम इस तरह गैलरी की तरफ से बंद कर दोगे कि उस वक्त कमरे में मौजूद किसी भी व्यक्ति को तुम्हारी हरकत का पता न लग सके। इतना काम करने के बाद दिव्या के बैडरूम में जाओगे जो ठीक मेरे कमरे की बगल में है। मैं जानता हूं उस वक्त तक तुम काफी कुछ समझ चुके होंगे। उसके आधार पर दिव्या और देवांश के कमरों की तलाशी भी लोगे। देवांश का कमरा गैलरी के दूसरे छोर पर है। जो कुछ वहां से मिलेगा वह तुम्हें बहुत कुछ समझा देगा। बाकी निर्देश सोफे के पीछे से मिल ही चुके होंगे। वहां तुम उनका अध्ययन कर सकते हो।
पूरा लेटर पढ़ने के बाद दिव्या और देवांश की खोपड़ी घूम कर रह गई।
तुम्हारा राजदान
उनकी नजरें कागज से हटते ही ठकरियाल ने कहा – “सोचो, इसे पढ़कर मेरी क्या हालत हुई होगी। राजदान ने यह नहीं लिखा उसके बैडरूम में मेरा सामना उसकी लाश से होगा। उस प्वाईंट को बड़ी खूबसूरती से घुमा गया वह । पढ़ने के बावजूद मैं समझ नहीं पा रहा था आखिर क्या खेल है ये? क्या चाहता है राजदान? क्यों मेरे और तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहा है? इस सबके बावजूद तुम जानते हो मैंने वही किया जो इसमें लिखा है। बहरहाल, फीस हासिल कर चुका था, खेल को जानने की जिज्ञासा भी थी। "
दिव्या ने पूछा- “क्या अब भी नहीं बताओगे-सोफा चेयर के पीछे से तुम्हें क्या मिला था?”
"कैसेट सहित यह छोटा सा टेप और एक और लेटर ।”
“क्या लिखा है उसमें?”
“खुद बांच लो।” कहने के साथ उसने एक और कागज उनकी तरफ बढ़ा दिया।
वह भी राजदान के लेटर पैड पर, उसके हाथ का लिखा लेटर था |
लिखा था
ठकरियाल, जितने ब्रिलियंट तुम हो— उसके आधार पर मैं समझ सकता हूं, तुम समझ गये होंगे मैंने आत्महत्या कर ली है तथा देवांश और दिव्या इस वारदात को हत्या का रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।
बात अगर यहीं तक सीमित होती तो मैं यह सोचकर यकीनन उन्हें माफ कर देता कि जिन हालात में वे फंसे हैं, उनसे निकलने के लिए और बेचारे कर भी क्या सकते हैं परन्तु...
मैं यह भी जान गया हूं, इन कमीनों ने मां-बेटे के रिश्ते को कलंकित कर दिया है।
अवैध सम्बन्ध कायम कर बैठे हैं एक-दूसरे से । उफ्फ! मैं कभी सोच भी नहीं सकता था— हाड़-मांस के इंसान इतने नीचे भी गिर सकते हैं। नहीं—ये ईनाम के नहीं सजा के हकदार हैं। सजा भी ऐसी जो इन्हें तिल-तिल करके जलाये । सोच लिया है—सुसाईड की तैयारी करने के बाद दिव्या और देवांश को अपने कमरे में बुलाऊंगा। वह सब कुछ साफ-साफ बता दूंगा जो मैं जान चुका हूं। जाहिर है उनके पैरों तले से जमीन खिसक जायेगी। ये आत्महत्या को हत्या साबित करने की कोशिश जरूर करेंगे ।
ठकरियाल, चाहता मैं ये हूं कि ये भी उतनी ही जलालत से गुजरें जितना जलील इन्होंने मुझे किया। कदम-कदम पर आतंक और दहशत से सामना हो इनका। पांच लाख इसीलिए दिये हैं तुम्हें— ताकि इनक चारों तरफ ऐसा माहौल क्रियेट कर दो कि जीने से आसान इन्हें मौत लगने लगे। मैं जानता हूं- तुम एक ब्रिलियेन्ट आदमी हो ।
बड़ी खूबसूरती के साथ कर सकते हो जो मैं चाहता हूं।
यह भी जानता हूं–फीस लेकर काम करने वाले नाशुक्रे नहीं हो तुम।
टेप में एक केसिट और मौजूद है। सच ठकरियाल - तुम सोच तक नहीं सकते उस वक्त इसी कमरे में भटक रही मेरी रूह को कितना सुकून मिलेगा। दिव्या को घबराई हुई हिरनी की मानिन्द इधर-उधर देखता देखकर सचमुच मेरी आत्मा की तरह हंस रही होगी जिस तरह इस टेप में मैं हंसा हूं। देवांश के चेहरे पर मौत का खौफ देखकर मुझे वैसा ही सुकून मिलेगा जैसा भूखे को भरपेट खाना मिलने पर मिलता है।
सुना है— ऊपर वाले ने हर आदमी की एक उम्र निर्धारित की होती है। सबके खाते में साफ-साफ लिखा होता है, किस जीवात्मा को किस तरह मरना है। जाने क्यों मुझे विश्वास है --- उसके खाते के मुताबिक मुझे एड्स से मरना था। अभी कुछ और दिन थे मेरे एकाउन्ट में और... जितने दिन अभी मेरी जिन्दगी के बाकी थे, उतने दिन शायद मेरी रूह इन दोनों कमीनों के आस-पास भटकती रहे।
यह भी सुना है—बगैर शरीर के आत्मा चाहे भी तो कुछ नहीं कर सकती।
इसलिए अपना काम तुम्हें सौंपा है मैंने। वो हालत बना देना इनकी कि झोली फैला-फैलाकर भीख मांगे मौत की मगर मरने नहीं देना। मौत तो इन्हें हर सजा से दूर ले जायेगी। जिन्दा रहना ही, अपनी नर्क जैसी जिन्दगी को भोगते रहना ही इनकी सजा है। इन्होंने मुझे बहुत सताया है ठकरियाल। बहुत सताया है मुझे। शायद तुमसे बेहतर कोई नहीं जानता मैं इन्हें कितना प्यार करता था। अपने लिये तो मैंने कभी कोई सांस ली ही नहीं। हर सांस में ये ही बसे थे। शायद तुम समझ सकते हो इन हालात में इनके सम्बन्धों के बारे में जानकर मुझ पर क्या गुजरी होगी।
मेरी इस बात से शायद तुम भी सहमत होंगे— क्षमा योग्य नहीं हैं ये । बल्कि 'आसान' सजा के भी हकदार नहीं हैं। इन्हें तो ऐसी सजा मिलनी चाहिये जिसके बारे में जानकर कोई दिव्या और देवांश किसी राजदान से बेवफाई करने के बारे में सोच तक न सकें। एक सवाल हो सकता है तुम्हारे दिमाग में। यह कि — अगर ये मेरा मर्डर करने पर आमादा थे और मैं मरने के लिए तैयार था तो आत्महत्या क्यों की? मर्डर क्यों नहीं करने दिया इन्हें अपना? उससे तो सीधे-सीधे फांसी के फंदे पर पहुंच जाते ये। और बस — यही मैं नहीं चाहता।
इस तरह तो एक ही झटके में अपनी सभी दुश्वारियों से निजात मिल जायेगी इन्हें।
मैं चाहता हूं—अपनी जिन्दगी को ये तिल-तिल करके गलते अपनी आंखों से देखें। ऐसा तब होगा जब मैं आत्महत्या करूं और ये उस वारदात को हत्या का रंग देने की कोशिश करते तुम्हारे द्वारा रंगे हाथों पकड़े जायें। इस जुर्म में कानून इन्हें फंसी की सजा नहीं देगा, जिसे मैं इनके लिए सजा नहीं, 'निजात' समझता हूं। इस जुर्म में इन्हें लम्बी सजा हो सकती है। उम्र कैद तक। यही मेरी तमन्ना है।
एक मरते हुए शख्स की अंतिम तमन्ना।
इन्हें जी भरकर सताने, डराने, आतंकित करने और जलील करने के बाद तुम उसी जुर्म में गिरफ्तार कर लोगे जो इन्होंने किया है। सुबूत तुम्हारे पास होंगे ही। सबसे बड़ा सुबूत है, मेरा ये लेटर | चाहता हूं- जब तुम इस ड्रामें का पटाक्षेप करो तो यह लेटर इन्हें दिखा दो। पढ़ा दो। ताकि ये जान सकें- -एक शख्स मरने के बाद भी अपने दुश्मनों से मनचाहा बदला ले सकता है। पता तो लगे इन्हें—जिस शख्स ने सारी जिन्दगी इनसे बेईन्ताह मुहब्बत की वह मरते वक्त कितनी घृणा करता था इनसे।
ठकरियाल, जो काम मैं तुम्हें सौंपकर जा रहा हूं — हालांकि उसके लिए पांच लाख की रकम बहुत छोटी है। बहरहाल, मेरे बाद तुम्हें ही राजदान बनकर इन्हें जेल के सींखचों के पीछे पहुंचाना है परन्तु... मजबूर हूं दोस्त। इससे ज्यादा पैसे मेरे पास हैं ही नहीं। निभा लेना। यह सोचकर कि कुछ काम माकूल रकम न मिलने पर भी करने पड़ते हैं। आशा है तुम रकम पर ध्यान नहीं दोगे । उस काम को पूरा करोगे जो मैं तुम्हें सौंपकर जा रहा हूं।
तुम्हारा राजदान ।
दोनों की निगाहें पत्र से हटते ही ठकरियाल ने कागज उनके हाथ से खींच लिया। कुछ इस तरह, जैसे डर हो — वे उसे फाड़ न दें।
मगर !
उन बेचारों को भला ऐसा कुछ करने का होश कहां था?
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