"मैं !" - वो बोला- "इनसाइड मैन !”


"हां"


"क्या करने के लिये ?"


"जोड़ीदार बनना कुबूल करो, मालूम पड़ जाएगा।"


"अगर" - गाडगिल बोला- "इसकी किसी मदद का रिश्ता मूर्तियों की चोरी से है तो समझ लो कि ये तुम्हारा जोड़ीदार बन गया । ये हमारा आदमी है । हमसे बाहर नहीं जा सकता । इसलिए इसकी तरफ से हम हामी भरते हैं । "


जीतसिंह ने धनेकर की तरफ देखा ।


धनेकर ने तनिक हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिला दिया ।


"जनाब" - जीतसिंह गाडगिल से सम्बोधित हुआ - "अब जब आप इस बात की तसदीक कर चुके हैं कि वॉल्ट में मूर्तियां हैं तो अब क्या आप उनके ग्राहक हैं ?"


“अब तो हूं।"


"किस कीमत पर ?"


"कीमत की बात हम उस आदमी से डिसकस कर लेंगे जिसने अपना नाम हमें एडुआर्डो बताया था ।"


“आपका कारोबार क्या है ?"


गाडगिल ने घूरकर उसे देखा ।


"मेरे को आप कोई आर्ट डीलर मालूम होते हैं । "


"समझदार आदमी हो ।”


"फिर तो आप इस बात से भी बेखबर नहीं होंगे कि वो आठ मूर्तियां किसी हिन्दोस्तानी कलैक्टर के प्राइवेट कलेक्शन का हिस्सा बताई जाती थीं । "


"क्या कहना चाहते हो ?"


" ऐसी मूर्तियां कैसीनो के वॉल्ट में कैसे पहुंच गई ?”


गाडगिल ने धनेकर की तरफ देखा ।


"कैसीनो में" - धनेकर खंखारकर गला साफ करता हुआ बोला - "कई लोग लाखों के दांव लगाते हैं । पल्ले का पैसा हार जाने पर वो बड़ी अनोखी अनोखी चीजें गिरवी रखने की पेशकश करने लगते हैं। मसलन एक साहब अपनी मर्सिडीज गाड़ी गिरवी रखकर टैक्सी पर वापिस गए थे। एक साहब ने अपने साथ आई अपनी बीवी के जवाहरात जड़े बेशकीमती जेवरात गिरवी रख दिए थे। कैसीनो में लोग बाग ऐसी हरकतें इस उम्मीद में आम करते हैं कि उनकी तकदीर पलटा खाएगी और वो अपना ऐसा माल वापिस जीत लेगे !"


"जीत लेते हैं ?" - जीतसिंह ने उत्सुक भाव से पूछा ।


"कोई जीत लेते हैं, कोई नहीं जीत लेते । ज्यादा लोग ऐसे ही निकलते हैं जिनकी तकदीर यूं पलटा नहीं खाती ।"


"ओह !"


"वो मूर्तियां भी हो सकता है कि किसी ने जुआ खेलते वक्त हारकर गिरवी रखी हों !"


"हो सकता है ?" - गाडगिल बोला- "यानी कि तुम्हें इस बात की पक्की खबर नहीं ? "


"नहीं साहब । पक्की खबर होती तो इसे पकड़ मंगवाने की क्या जरूरत थी ? फिर तो मैं ही मूर्तियों की वॉल्ट में मौजूदगी की तसदीक कर देता । "


"वो मूर्तियां अगर गिरवी हैं तो तब तो ये भी हो सकता है कि उन्हें गिरवी रखने वाला उसे आज या कल में छुड़ा ले।"


"हो सकता है ।"


"या हो भी चुका हो ।”


"हो तो सकता है । "


“अगर हम ये मान के चलें कि मूर्तियां वो छुड़ा नहीं चुका तो फिर तो जो होना है। जल्दी होना चाहिए । "


"जी हां । "


"बद्रीनाथ ! सुना तुमने ?"


"जी हां।" - जीतसिंह बोला ।


"जो सुना, उसका मतलब भी समझा ?"


"जी हां, मतलब भी समझा ।"


" तो फिर टाइम खोटा न करो और जाकर वक्त का फायदा उठाओ।"


जीतसिंह सहमति में सिर हिलाता हुआ उठ खड़ा हुआ ।


"रामदेव तुम्हें वापिस छोड़कर आने के लिए तुम्हारे साथ जाएगा। इससे जो बोत करनी हो, अच्छी तरह से खोल के कर लेना । किसी और से करानी हो तो वो भी करा लेना । ये तुम लोगों से बाहर नहीं जाएगा इसकी गारंटी हम लेते हैं बशर्ते कि” - गाडगिल के स्वर में एकाएक चेतावनी का पुट आ गया - "काम इसके करने लायक हो और उसकी इसे मुनासिब उजरत मिले । ठीक ?"


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


"जाओ।" वो धनेकर के साथ हो लिया ।


गुरुवार को वालपोई में एडुआर्डो के घर में मीटिंग निर्धारित थी ।


रात नौ बजे हमेशा की तरह ऐंजो की टैक्सी पर वो और जीतसिंह वालपोई के लिए रवाना हुए।


"बॉस" - एकाएक ऐंजो बोला- "तेरे वास्ते एक मैसेज है।"


"किसका ?" - जीतसिंह उत्सुक भाव से बोला ।


"बेलगाम से विष्णु आगाशे का ।”


"गोली मार साले को । मैं बोल तो दिया मेरी उसकी स्कीम में कोई दिलचस्पी नहीं।"


" मेरे को मालूम । मैं बोला ऐसा । वो बोला उसने और रीजन से फोन किया, बोला तू किसी आदमी का पता मालूम करना मांगता था ।”


"वो ऐसा बोला?" - जीतसिंह के स्वर में एकाएक उत्कंठा का पुट आ गया ।


"हां" "वो बोला उसे पता मालूम था ?"


"ये नहीं बोला । तेरे को फोन लगाने को बोला ।"


"कहां ?"


"बेलगाम । उसके घर पर । "


"ऐंजो, कहीं गाड़ी रोक । फोन करने का है "


" आगाशे को ?"


"हां"


उसने सहमति में सिर हिलाया । थोड़ी देर बाद उसने ऐसे जनरल स्टोर के आगे टैक्सी रोकी जहां कि एस टी डी डायलिंग उपलब्ध होने का बोर्ड लगा हुआ था । ऐंजो को टैक्सी में बैठा छोड़कर जीतसिंह स्टोर में पहुंचा और उसने वहां से ऐंजो के बताए आगाशे के घर के नंबर पर काल लगवाई । काल तुरंत लगी लेकिन दूसरी तरफ से फोन आगाशे ने नहीं, उसकी बीवी इला ने उठाया । एक शब्द 'हल्लो' भी उसने ऐसे मदभरे अंदाज से कहा जैसे टेलीफोन पर ही बिछ जाना चाहती हो ।


"आगाशे है ?" - जीतसिंह शुष्क स्वर में बोला ।"


" आप कौन ?"


"बद्रीनाथ । पणजी से ।"


"वो तो घर पर नहीं है। मैं अकेली हूं घर पर ।”


"कब लौटेगा ?"


“अभी थोड़ी देर पहले ही तो गए है। आधी रात से पहले तो क्या लौटेंगे !"


"ओह !"


"कोई मैसेज हो तो बोलो ।”


"मैसेज ?"


“लौटने पर कहीं फोन करवा दूं ।”


“अच्छा, वो । नहीं नहीं। मैं ही दोबारा फोन करूंगा ।" 


"ठीक है ।"


"मैं सुबह आठ बजे फोन करूंगा । उसे कहना घर पर रहे।”


"इतनी सुबह और कहां होना है उन्होंने ?"


"आठ बजे पर पर रहे । ऐसा बोलना ।"


"क्या बहुत जरूरी काम है ?"


"हां । बहुत जरूरी काम है।"


"तो अभी यहां क्यों नहीं आ जाते हो ? तुम घर पर उनका

इन्तजार..."


जीतसिंह ने लाइन काट दी और जाकर वापिस टैक्सी में सवार हो गया ।


एडुआर्डो के घर में इस बार उन्हें दो और जने भी मौजूद मिले । उनमें से एक कोई पच्चीस साल की तने हुए जिस्म वाली सुन्दर युवती थी और दूसरा एक घनी दाढ़ी मूंछ वाला कोई पचास साल का बड़ा रोबीले चेहरे वाला हट्टा-कट्टा पुरुष था ।


जीतसिंह ने प्रश्नसूचक नेत्रों से एडुआर्डो की तरफ देखा ।


"हिज हाइनैस" - के पुरुष की तरफ इशारा करता हुआ बड़े नाटकीय अंन्दाज से बोला- "मुस्तफा अहमद बिन मुहम्मद एल खलीली । बसरा के अमीर ।"


"असलामालेकम । बिरादर" - पुरुष बोला ।


"असलामालेकम ।"


"ये तो पक्के ही अरब शेख लगते हैं।" - जीतसिंह बोला ।


"जबकि कश्मीरी पंडित है, कौल नाम है।"


"कमाल है !”


“अभी क्या कमाल है !" - कांत हंसता हुआ बोला - “अभी तो मुझे अरबी पोशाक में देखना । "


"बढ़िया ।"


"ये शालू है।" - एडुआर्डो ने युवती की तरफ इशारा किया। 


"मैं जानता हूं।" - ऐंजो बोला । 


“कैसे जानता है ?"


"बोर्ड पर पिक्चर लगा देखा । मिरामर क्लब के सामने । जहां कि ये कैब्रे डांसर है ।”


"ओह !"


"एक आदमी और होना चाहिए था !" - जीतसिंह बोला "जिस ने कि मेरे साथ काम करना था।"


"वो आदमी मैंने तैयार किया हुआ है। नौजवान छोकरा है। कार्लो नाम है उसका । लेकिन मैंने उसे जानबूझकर यहां नहीं बुलाया है ।”


"क्यों ?"


"उसका स्कीम से ऐसा कुछ लेना-देना जो नहीं है जो कि उसे एडवांस में समझाया जाना जरूरी हो । उसने तो तुम्हारे सहायक के तौर पर तुम्हारे निर्देश पर हर काम करते चले जाना है। मेरा ये ही मुनासिब समझा था कि उसे ऐन मौके पर ही बुलाया जाए।"


"ठीक ।"


"बहरहल अब कोई कसर है तो एक इनसाइड मैन की जिसके लिए कि मैं पूरी पूरी कोशिश कर रहा हूं।"


"कामयाबी की कोई उम्मीद ?" - ऐंजो बोला ।


"कामयाब तो होना ही पड़ेगा इस मामले में वरना हमारी सारी स्कीम ही बैठ जाएगी।"


"वो कोशिश छोड़ दो।" - जीतसिंह बोला ।


"कोशिश छोड़ दूं ? क्या मतलब ?”


"ऐसा आदमी इत्तफाक से मैंने तलाश कर लिया हूं।" एडुआर्डो ने - एंजो ने भी सख्त हैरानी से उसकी तरफ देखा ।


" उसका नाम रामदेव धनेकर है। कैसीनो का सिक्योरिटी गार्ड है । मैंने उसे यहां का पता बता दिया था । वो बस आता ही होगा ।"


"वो तैयार है हमारे साथ काम करने को ?"


"हां । पक्का ।"


"तुम ऐसा करिश्मा क्योंकर कर गए ?"


जवाब में जीतसिंह ने पिछली रात का वाक्या बयान किया।


“कमाल है !” - एडुआर्डो बोला- "मैं तो आज शाम भी गाडगिल से मिला था । उसने तो बिल्कुल जिक्र नहीं किया था इस बाबत । हिन्ट तक नहीं दिया था उसने कि वो हमारे वॉल्ट एक्सपर्ट से मिल चुका था । "


“आज किसलिए मिले थे उससे ?"


"मूर्तियों का सौदा करने के लिए । " 


"किया कोई सौदा ?"


"हां । "


"क्या ?"


“मैंने पचास लाख फाइनल किया है ।"


"क्या ! डेढ़ करोड़ से ज्यादा के माल के सिर्फ पचास लाख रुपये !”


"वो तो तीस कह रहा था ? मैंने अस्सी मांगे थे । बड़ी मुश्किल से पचास में सौदा पटा था ।”


"अस्सी भी तो कम मांगे तुमने !"


"हो सकता है । बहरहाल, अब पचास में सौदा हो चुका है।"


"जो कि असल कीमत का एक तिहाई भी नहीं है ।"


“भई, चोरी का माल तो ऐसे ही भाव से उठता है !"


"लेकिन ये बहुत कम है ।”


"भई, और कोई ग्राहक भी तो नहीं हमारे पास । मुझे इसलिए भी उससे इतने में सौदा क्लोज करना पड़ा क्योंकि क्योंकि तुम चाहते हो कि सब कुछ हफ्ते में हो जाए।”


" फिर भी ये रकम बहुत कम है। सात जनों में पचास लाख रुपये ।...बहुत कम है।”


"माई डियर यंग मैन, अगर तकदीर ने हमारा साथ दिया तो ये रकम महज एक बोनस साबित होगी। वॉल्ट में से इतनी बड़ी नकद रकम बरामद हो सकती है कि ये पचास लाख रुपये उसका बहुत छोटा हिस्सा होंगे । "


जीतसिंह के चेहरे पर आश्वासन के भाव न आए ।


"अरे, इतना बड़ा वॉल्ट कोई खाली तो नहीं पड़ा होगा ! मूर्तियों और नकद रुपये के अलावा भी उसमें बहुत कीमती सामान हो सकता है । "


“हो सकता है ।” - जीतसिंह चिड़कर बोला - "लेकिन हम ठेला लेकर वो सामान ढोने नहीं जा रहे । तुम भूल रहे हो कि व्हील चेयर की सीट के नीचे जो बक्सा सा बनवाया जाएगा वो बहुत सीमित आकार प्रकार का होगा । हम सारा वॉल्ट खाली करके उसमें नहीं भर पाएंगे।"


एडुआर्डो यूं खामोश हुआ जैसे कि बात उसे पहली बार सूझी हो ।


“अगर नकद रुपया ढेर सारा हाथ लग गया" - फिर वो बोला " तो हम मूर्तियों को छोड़ देंगे। हमारी पहली तरजीह नकद माल की तरफ होगी वो हाथ न लगा तो हम मूर्तियों की या वॉल्ट में मौजूद किसी और कीमती सामान की बाबत सोचेंगे ।”


"मेरे को दस लाख जरूर चाहिए।"


"तुम्हारा हिस्सा दस लाख का बनेगा तो दस लाख जरूर मिलेंगे । हिस्सा तो सबका बराबर होगा ।"


"हिस्सा बराबर क्यों होगा ? मेरा काम सबसे ज्यादा अहम है, मेरा हिस्सा ज्यादा होना चाहिए।"


"तुम्हारा काम सबसे ज्यादा अहम क्यों है, भई ? वो जो धनेकर तेरे बुलाए यहां आ रहा है, उसका काम अहम नहीं ? वो अन्दर से खिड़की नहीं खोलेगा और बीम बंद नहीं करेगा तो तू वॉल्ट तक कैसे पहुंचेगा ? कैसे अपने जौहर दिखाएगा ? मेरा काम अहम नहीं जो इस स्कीम को फाइनांस करेगा ?"


"फाहनांस ! काहे का फाइनांस ?"


"देखो ! पूछता है काहे का फाइनांस ! अरे, एम्बुलैंस ऐसे ही आ जाएगी। वो फैंसी, स्पैशल व्हील चेयर ऐसे ही तैयार हो जाएंगी ! हर किसी के लिए मुनासिब पोशाकें क्या आसमान से टपकेंगी ! ये" - उसने कौल की तरफ इशारा किया "हिज हाईनैस मुस्तफा अहमद बिन मुहम्मद एल खलीली क्या ठीकरों से वहां जुआ खेलेगा ?"


"ओह । लेकिन इसने... इसने खास क्या करना है ? इसने तो बस वहां जुआ खेलेना है । "


"बस जुआ नहीं खेलना । इसने वो कैप्सूल खाना है जिससे इसकी जान पर आ बन सकती है । "


"ऐसा ?" - कौल नेत्र फैलाकर बोला ।


"असल में ऐसा कुछ नहीं होगा लेकिन इस आदमी के एतराज के जवाब में ये मिसाल देना जरूरी था । "


"तुम मुझे दहशत में डाल रहे हो, एडुआर्डो । कहीं उस कैप्सूल की वजह से मैं सच में ही मर गया तो ?"


"अरे, ऐसा कुछ नहीं होगा । "


"तुम्हें कैसे पता है ? क्या वो कैप्सूल पहले कभी यूं आजमाया गया है ?"


“आजमाया तो नहीं गया लेकिन... अरे बोला न कुछ नहीं होगा । वो थोड़ी देर की दुश्वारी होगी जिसका सिला तुम्हें लाखों की रकम की सूरत में मिलेगा ।"


"फिर भी..."


"कौल ! कौल ! जरा अक्ल से काम लो । हम तुम्हारा मर जाना अफोर्ड नहीं कर सकते । तुम्हारे मर जाने से तो सारी स्कीम ही चौपट हो जाएगी । तुम खातिर जमा रखो, तुम्हें...."


तभी काल बैल बजी।


“धनेकर आया होगा ।" - जीतसिंह बोला ।


एडुआर्डो दरवाजा खोलने गया तो जीतसिंह उसके साथ गया ।


धनेकर ही आया था ।


जीतसिंह ने उसका सबसे परिचय कराया ।


“चार जनों के काम की अहमियत मैंने तुझे समझा दी ।" - एडुआर्डो जीतसिंह से संबोधित हुआ - "अब बाकी तीन की भी सुन ले । ऐंजो का हिस्सा कम हो, ये तुझे कबूल नहीं होगा क्योंकि वो तेरा यार है । शालू का हिस्सा कम हो ये मुझे कबूल नहीं होगा क्योंकि ये मेरी फ्रेंड है। कार्लो का हिस्सा कम हो ये शालू को कबूल नहीं होगा क्योंकि वो शालू का कजन है ।”


"क्या किस्सा है ?" - धनेकर बोला ।


एडुआर्डो ने बताया ।


"हिस्से तो बराबर ही होने चाहिए।" - धनेकर तत्काल बोला - |


सबने उसका अनुमोदन किया ।


"ठीक है । ठीक है।" - जीतसिंह भुनभुनाता-सा बोला -


" ऐसे ही सही । लेकिन मैं एक बार खुद गाडगिल से बात जरूर करूंगा ।"


"किस बाबत ?”


"उससे रकम बढवाने की बाबत । "


" दैट इज आउट आफ क्वेश्चन । वो हरगिज नहीं मानेगा । पचास लाख के निए भी वो बहुत ही मुश्किल से माना था।”


"मैं उससे बात करूंगा।"


"वक्त बरबाद करेगा ।"


"मैं करूंगा।"


"ठीक है। करना।"


फिर उन दो कामों जिक्र छिड़ा जिसके लिए कि इनसाइड मैन की जरूरत थी ।


“वॉल्ट के कमरे की खिड़की" - धनेकर बोला - "भीतर से कभी भी खोल देना मेरे लिए मामूली काम है " ।


“और बीम ?" - एडुआर्डो बोला- "बीम का क्या कहते हो ?"


"उसका क्या कहना है ?" - ऐंजो बोला- "जितना ईजी जब खिड़की खोलना है, उतना ही ईजी जॉब बीम का स्विच करना होगा ।”


धनेकर ने इन्कार में सिर हिलाया ।


“क्यों ?" - एडुआर्डो बोला- "चलती तो वो बीम बिजली से ही होगी।'


"जाहिर है ।" - धनेकर बोला "लेकिन उसका वो ऑफ ऑन स्विच वॉल्ट वाले कमरे में या बाहर ऑफिस वाले कमरे में नहीं है । "


"तो कहां है ?"


"मालूम नहीं । उस स्विच की जानकारी या प्रोप्राइटर मार्सेलो को है या फ्लोर मैनेजर फ्रांको को ।"


"फिर क्या बात बनी ?" - एडुआर्डो बड़बड़ाया ।


"लेकिन" - जीतसिंह बोला " उन दोनों पर निगाह रखकर तुम मालूम तो कर सकते हो कि वो स्विच कहां है ? "


"मुश्किल है।" - धनेकर बोला- "मैं वहां का मामूली गार्ड जबकि वो बड़े साहब लोग हैं। उन पर निगाह रखता मैं खुद उनकी निगाहों में आ गया तो मुझे हाथ के हाथ वहां से डिसमिस कर दिया जाएगा।"


"तुम अगर सावधानी से ये काम करो तो..."


"तो कभी न कभी तो मैं कामयाब हो ही सकता हूं लेकिन ऐसा हो सकने में एक हफ्ता भी लग सकता है, एक महीना भी लग सकता है और ....' "


"ओह, नो ।" - ऐंजो बोला । 


"लेकिन एक बात है ।”


"क्या ?" - जीतसिंह आशापूर्ण स्वर में बोला ।


"वो बीम जमीन से इतनी ऊंचाई पर है कि कोई पतला आदमी - जैसा कि बद्रीनाथ है- लेटकर उसके नीचे से गुजर सकता है । "


"जब वो बीम आंखों को दिखाई नहीं देती तो तुम्हें क्या पता कि कितनी ऊंचाई पर है ?"


"मेरे को पता है । बोलता हूं कैसे पता है । एक बार वॉल्ट वाले कमरे में कहीं से एक बहुत बड़ी बिल्ली घुस आई थी । जब उसे वहां से निकालने की कोशिश की गई थी तो भड़ककर इधर-उधर भागती वो कई बार वॉल्ट के दरवाजे तक भी गई थी, यानी कि कई बार वो बीम के आरपार गुजरी थी लेकिन अलार्म नहीं बजा था । वो खासी ऊंची बिल्ली थी इसलिए जाहिर है कि बीम उससे ऊंची तो होगी ही ।"


"यानी कि" - एडुआर्डो बोला- "तुम्हारे ख्याल से लेटकर उसके नीचे से गुजरा जा सकता है ?"


"हां"


"यानी कि "- जीतसिंह बोला - "बीम का ऑफ-ऑन स्विच ढूंढने के लिए सिर पटकने की जरूरत नहीं।”


"हां"


"फिर क्या वान्दा है ?" - ऐंजो बोला- "अपना फिरेंड लेटकर बीम के अंडर से पास कर जाएगा ।" - वो जीतसिंह की तरफ घूमा - "मैं ठीक बोला, बॉस ?"


जीतसिंह ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।


"वैसे मैं" - धनेकर बोला - "उस स्विच की ताक में तो रहूंगा ही । अगर आप लोगों के एक्शन में आने से पहले मुझे स्विच की खबर लग गई तो फिर तो बात ही क्या है ? न लगी तो वॉल्ट तक पहुंचने का वो दूसरा तरीका तो है ही जो कि मैं अभी बोला ।"


सबके सिर सहमति में हिले ।


"बॉस, मैं एक बात पूछना मांगता है।" - ऐंजो बोला- "वो गाडगिल जो मूर्तियां हम से लेगा, उनका वो क्या करेगा ?"


"कुछ भी करे।" - जीतसिंह बोला- "हमें उसके करने से क्या लेना-देना है ?"


"लेकिन जाहिर है कि" - एडुआर्डो पर बोला - "आगे कहीं बेचेगा जो कि उसका कारोबार है । "


"वो" - धनेकर धीरे से बोला - "नाम को ही एंटीक डीलर है दोस्तो । असल में एक फैंस है । "


"क्या है ? " - जीतसिंह बोला ।


" फैन्स । चोरी के माल की खरीद-फरोख्त करने वाला ।"


" और चोरी का माल लाठियों के गज से नपता है ।" एडुआर्डो बोला- "खरीद के वक्त तो गज लाठी का होता है लेकिन फरोख्त के वक्त गज का ही होता है । "


'भाई लोगो ।" - धनेकर बोला " अब क्योंकि मैं भी आप लोगों में शामिल हूं इसलिये एक बात मैं आप लोगों की जानकारी में लाना चाहता हूं।"


"कौनसी बात ?" - एडुआर्डो बोला ।


"गाडगिल की माली हालत आजकल अच्छी नहीं है । "


"क्या ! क्या कह रहे हो ?"


"उस पर सी बी आई वालों की नजर है जिसकी वजह से उसने अपना सारा कीमती चोरी का माल अंडरग्राउंड किया हुआ है और जिसकी वजह से उसका कारोबार आजकल बिल्कुल ठप्प है । वैसे वो पैसे वाला आदमी है लेकिन आजकल उसका सारा पैसा चोरी के माल की खरीद में ब्लॉक हुआ हुआ है जिसकी फरोख्त की हिम्मत वो आजकल कर नहीं सकता ।”


"फिर वो" - जीतसिंह बोला - "हमसे मूर्तियों का सौदा इस हाथ दे, उस हाथ ले जैसा कैसे कर सकेगा ?"


"सी ओ डी ।" - ऐंजो बोला- "कैश आन डिलीवरी कैसे देगा ?"


"नहीं देगा ।" - धनेकर बोला- "यही दे सकेगा । वो यही कहेगा कि माल आगे खप जाने पर पैसा देगा ।"


"ऐसा ?" - जीतसिंह एडुआर्डो को घूरता हुआ बोला । 


"मेरे को तो उसने ऐसा कुछ नहीं कहा था ।" - एडुआर्डो नर्वस भाव से बोला ।


"क्या कहा था ? कैश आन डिलीवरी देगा ? इस हाथ मूर्तियां लेगा, उस हाथ पचास लाख रुपया दे देगा ?"


"जाहिर है । "


"कैसे जाहिर है । जब इस बाबत तुम्हारी कोई दो टूक बात उससे नहीं हुई तो कैसे जाहिर है ।"


एडुआर्डो से जवाब देते न बना ।


"वो आदमी अपने घर का तो इतना पक्का है कि उसे इस बात की तसदीक चाहिए थी कि वॉल्ट में मूर्तियां वाकेई मौजूद थीं लेकिन वो हमारे लिए इस बात की तसदीक को जरूरी नहीं समझता कि मूर्तियों के बदले में हमें देने के लिए उसके पास पचास लाख रुपया तैयार माल के तौर पर है ।"


" ऐसी तसदीक हम कैसे कर सकते हैं ? उसे कहें कि वो हमें सामने बिठाकर हमारे सामने नोट गिने ?"


“इतना भी काफी नहीं । इससे ज्यादा कुछ करना पड़ेगा।" "क्या ?"


"मालूम पड़ जाएगा। मैं कल उससे खुद मिलूंगा।" "तू मिलेगा ! तू बना बनाया खेल बिगाड़ आएगा ।" "उम्मीद तो कुछ संवार आने की ही है। आगे प्रभू की मर्जी


"एक बात बोलूं बद्रीनाथ ।”


"बोलो।”


"परसों तो तू इतना कड़क नहीं बोला था । तब तो तू मुझे मेमना सा लगा था, आज शेर की तरह गर्ज रहा है। सिर्फ अड़तालीस घंटे में इतना सीखा सयाना कैसे बन गया ?"


“हालात बहुत कुछ सिखा देते हैं, एडुआर्डो साहब, बहुत कुछ सिखा देते हैं ।"


उस रात वार्तालाप और आगे न बढ़ सका ।


***