बद्री और टकरु के इमारत से निकल जाने के करीब तीन मिनट बाद वह उठकर लिफ्ट की ओर बढ़ गया ।
लिफ्ट अभी तक वहीं मौजूद थी । अधेड़ लिफ्टमैन स्टूल पर बैठा सिगरेट पी रहा था ।
–'ब्राउन सूट वाले जिस सज्जन को तुम अभी नीचे लाए थे ।' मदन ने पूछा–'क्या वह मि० परवेज अहमद थे ?'
लिफ्टमैन ने गौर से उसे देखा फिर धूर्ततापूर्वक मुस्करा दिया ।
–'मैंने ध्यान नहीं दिया ।'
मदन समझ गया अधेड़ मुफ्त में कुछ नहीं बताने वाला था ।
–'मैं मि० परवेज अहमद का इंतजार कर रहा हूँ ।' वह पचास रुपए का एक नोट जेब से निकालकर उसकी तह करता हुआ बोला–'लेकिन मैं उन्हें अच्छी तरह नहीं पहचानता । इसीलिए तुमसे पूछ रहा हूँ ।'
अधेड़ ने उसके हाथों से नोट खींचकर अपनी जेब में डाल लिया ।
–'अभी जो दो आदमी गए हैं । वह बोला–'वे फिफ्थ फ्लोर पर तीन नंबर, अपार्टमेंट में रहते हैं । उनमें लंबे–चौड़े और पहलवान टाइप का नाम भोलानाथ पांडे है और उसके साथ ब्राउन सूट वाला बद्री प्रसाद सोनी था ।' फिर तनिक रुककर बोला–'परवेज अहमद नाम का कोई आदमी न तो इमारत में रहता है और न ही कभी रहा है ।' '
–'ओह !' मदन उलझन भरे स्वर में बोला–'लेकिन मुझे तो यही एड्रेस बताया गया था । खैर, मैं फिर पता करता हूँ । यहाँ आस पास कहीं टेलीफोन की सुविधा है ?'
–'बायीं ओर सड़क पर पास ही टेलीग्राफ ऑफिस है । वहाँ से जहाँ चाहो फोन कर सकते हो ।'
–'शुक्रिया मैं वहीं जाता है ।'
मदन पलटकर तेजी से बाहर निकल गया ।
लगभग दस मिनट बाद ।
वह टेलीग्राफ ऑफिस में बने उस टेलीफोन बूथ में मौजूद था । जहाँ विभिन्न शहरों के लिए डाइरेक्ट डायलिंग की सुविधा उपलब्ध थी ।
उसने एक रुपए के बीस–पच्चीस सिक्के, जो ऐसी ही किसी एमरजेंसी के लिए हर वक्त उसकी जेब में पड़े रहते थे, निकालकर कॉयन बाक्स के नीचे बने छोटे से काउंटर पर रख दिए । रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करने लगा ।
ज्योंही दूसरी ओर घंटी बजनी आरम्भ हुई वह एक–एक करके जल्दी–जल्दी कॉयन बॉक्स के स्लॉट में सिक्के डालने लगा ।
सम्बन्ध स्थापित होते ही लाइन पर एक परिचित पुरुष का स्वर उभरा ।
–'यस ?'
–'मदन बोल रहा हूं, सर ।' मदन ने कहा–'आपका आसामी मिल गया है । उसके साथ एक पहलवान टाइप आदमी भी है । वे दोनों अभी–अभी बाहर गये हैं ।'
–'उसका पता बताओ ।'
मदन सिक्के डाले जा रहा था ।
–'अपार्टमेंट नम्बर थ्री, फिफ्थ फ्लोर, पंचशील अपार्टमेंट्स, हनुमान रोड ।'
–'ओके । अब तुम उससे दूर ही रहना । मैं कल पहली फ्लाइट से पहुंच रहा हूँ । तुम प्लाजा होटल में ठहरे हुए हो ?'
–'यस, सर ।'
–'गुड । मैं विशालगढ़ पहुंचते ही तुम्हें फोन करूंगा ।'
–'एनीथिंग एल्स, सर ?'
–'नथिंग फॉर दी मोमेंट । वेट फॉर मी । आई मे नीड यू सम मोर ।'
–'ओके, सर ।'
मदन ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
* * * * * *
होटल, सिद्धार्थ के डाइनिंग हाल में ।
डिनर के पश्चात् सिगरेट सुलगा कर अजय ने सामने बैठी नीलम की ओर देखा ।
–'क्या तुम्हें मंजुला सक्सेना का अपनी आंसरिंग सर्विस से एक बार भी संम्पर्क न करना अजीब नहीं लगता ?' उसने पूछा, फिर अपनी रिस्ट वॉच पर निगाह डालकर बोला–'इस वक्त नौ बजे हैं । मैं सारा दिन अपने कमरे में बन्द पड़ा उसके फोन का इन्तजार करता रहा । इस बीच सात बार उसकी आंसरिंग सर्विस को फोन किया । वहां मौजूद लड़की का कहना था कि मंजुला ने एक दफा भी उससे सम्पर्क नहीं किया । और ऐसा पहली मर्तबा हुआ है । आमतौर पर मंजुला हर तीन घंटे बाद उसे फोन किया करती है ।'
–'तुमने बताया था उसे कोई नई जानकारी मिली है ।' नीलम बोली–'और वह कुछ कनफर्म करना चाहती है । हो सकता है, उसी चक्कर में मसरुफ हो ।'
–'इतनी मसरुफ कि अपनी आंसरिंग सर्विस को एक बार फोन करने तक की फुर्सत भी उसे नहीं मिली ?'
–'उसके घर ट्राई किया था ?' नीलम ने जवाब देकर पूछा ।
–'आंसरिंग सर्विस ने चार बार ट्राई किया था ।' अजय बोला–'लेकिन जवाब में बस घंटी ही बजती रही ।'
–'इसका मतलब है, या तो वह घर में थी ही नहीं या फिर जानबूझकर फोन अटेंड नहीं किया ।'
–'इसमें पहली बात ही ठीक लगती है । फोन अटेंड न करने वाली बात समझ में नहीं आती । अजय विचारपूर्ण स्वर में बोला–'उसका एड्रेस जानती हो ?'
नीलम ने सर हिलाकर हामी भर दी ।
–'वह तिलक मार्ग पर दीनशा बिल्डिंग में रहती है । वहां जाकर उससे मिलना चाहते हो ?'
–'हाँ ।'
–'अभी जाना जरूरी है ?'
–'हाँ ।'
–'सुबह तक इन्तजार नहीं कर सकते ?'
–'नहीं ।'
–'लेकिन बाहर बारिश हो रही है ।'
–'जानता हूं ।' अजय ने कहा और वेटर को बुलाकर बिल चुका दिया ।
नीलम सहित होटल से बाहर आकर उसने टैक्सी पकड़ी और वे मंजुला सक्सेना के निवास स्थान की ओर रवाना हो गए ।
* * * * * *
दीनशा बिल्डिंग, तिलक मार्ग पर, पुरानी आठ मंजिला इमारत थी ।
अजय और नीलम टैक्सी से उतरे । बारिश का मौसम और सुनसान प्रायः इलाका होने की वजह से रात में उस वक्त वहां से दूसरी टैक्सी मिलने का कोई चांस नहीं था । ड्राइवर को वेट करने के लिए कहकर वे इमारत में दाखिल हुए ।
लॉबी से गुजरकर लिफ्ट द्वारा दूसरे खण्ड पर पहुंचे ।
मंजुला सक्सेना इमारत के पृष्ठ भाग में बारह नम्बर प्लैट में रहती थी ।
फ्लैट के सम्मुख पहुंचकर अजय ने बन्द दरवाजे पर दस्तक दी ।
जवाब में अन्दर से किसी प्रकार की आहट सुनाई नहीं दी ।
अजय ने पुनः दस्तक दी ।
इस दफा भी कोई जवाब नहीं मिला तो उसने डोर नॉब घुमाते हुए अन्दर की ओर दबाव डाला ।
दरवाजा खुल गया ।
अन्दर अंधेरा पाकर अजय तनिक चकराया । जेब से रिवाल्वर निकालकर सतर्कतापूर्वक भीतर दाखिल हुआ ।
दरवाजे की बगल में दीवार पर टटोलकर उसने लाइट स्विच ऑन किया ।
रोशनी में कमरे की हालत देखकर वह बुरी तरह चौंका ।
कोई भी चीज अपने सही स्थान पर मौजूद नहीं थी । दीवार में बने बुक केस से निकली किताबें फर्श पर बिखरी पड़ी थी । राइटिंग डेस्क की खाली दराजें बाहर खिची हुई थी और उसमें रखी चीजें ढेर की शक्ल में डेस्क पर पड़ी थीं । वहां मौजूद सभी फर्नीचर भी उल्टा पड़ा था ।
नीलम को दरवाजे में ही ठहरने का संकेत करके अजय आगे बढ़ा ।
उस कमरे में दो अन्य दरवाजे थे । एक किचिन में खुलता था । वहाँ की हालत भी कमरे की भांति कबाड़ी की दुकान जैसी ही थी ।
दूसरा दरवाजा खोलकर अजय ने भीतर झांका । वो बैडरूम था और वहाँ लाइट ऑन थी । सामने रखी ड्रेसिंग टेबल की बाहर खिंची खाली दराज और बाहर बिखरी चीजों और शेष कमरे की हालत से जाहिर था वहाँ भी तलाशी ली गई थी ।
चारों ओर घूमती अजय की निगाहें अन्त में पलंग पर जमकर रह गई ।
मंजुला सक्सेना पीठ के बल बिस्तर पर पड़ी थी । उसकी एक बांह नीचे लटक रही थी और दूसरी कोहनी पर मुड़ी सर के पास पड़ी थी । वह अपलक छत की ओर ताक रही थी । उसके माथे में बना सुराख और आस–पास फैला खून उसके मुर्दा होने की घोषणा कर रहे थे ।
कदमों की आहट सुनकर अजय ने गरदन घुमाई ।
नीलम प्रवेश द्वार बन्द करके उसी की ओर आ रही थी ।
अजय ने पीछे हटकर दरवाजा बन्द कर दिया ।
–'क्या हुआ ?' नीलम ने आशंकित स्वर में पूछा–'मंजुला अन्दर नहीं है ?'
–'अन्दर ही है ।' अजय गहरी सांस लेकर बोला–'वह मर चुकी है ।'
–'क्या ?' नीलम ने अविश्वासपूर्वक कहा फिर आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया ।
अन्दर के दृश्य पर निगाह पड़ते ही उसके कंठ से घुटी–सी चीख निकल गई ।
अजय ने उसकी बांह पकड़कर उसे पीछे खींचा, दरवाजा बन्द किया और एक कुर्सी सीधी करके उसे बैठा दिया ।
–'बेचारी मंजुला ।' वह फंसी सी आवाज में बोली–'बड़ा ही खौफनाक अंजाम हुआ है उसका ।'
अजय के जबड़े कस गए ।
–'उसके इस अंजाम के लिए मैं जिम्मेदार हूं ।' वह कड़वाहट भरे लहजे में बोला ।
–'तुम ? कैसे ?'
–'अगर मैं अमरकुमार को झटका देने की कोशिश नहीं करता तो इस वक्त मंजुला ने जिंदा होना था । यह मेरा ही कसूर था । जिसकी सजा मंजुला को भुगतनी पड़ी ।'
–'नहीं, तुम्हारा या किसी और का कोई कसूर इसमें नहीं था । मंजुला एक रिपोर्टर थी । जो कुछ वह कर रही थी उसमें 'छिपे खतरों से खुद भी बखूबी वाकिफ थी...।'
सहसा, बाहर गलियारे में कई जोड़ा भारी कदमों को आहट सुनकर वह खामोश हो गई ।
रिवाल्वर थामे खड़ा अजय सतर्कतापूर्वक प्रतीक्षा करने लगा ।
चंदेक क्षणोपरांत दरवाजा भड़ाक से खुला और एक बावर्दी पुलिस इंसपैक्टर अपने दो मातहतों के साथ भीतर दाखिल हुआ । वर्दी पर लगी नेम प्लेट के मुताबिक उसका नाम था–राजेन्द्र शुक्ला । उसके हाथ में तनी सर्विस रिवाल्वर का रुख सीधा अजय की ओर था ।
अजय ने उन लोगों को देखते ही अपनी रिवाल्वर नीचे कर ली थी ।
–'रिवाल्वर मेरे पास फेंक दो ।' इंसपैक्टर अधिकार पूर्वक बोला ।
अजय ने तुरन्त आदेश पालन किया ।
इंसपैक्टर में अपने साथ आए एस० आई० को आदेश दिया ।
–'इनकी तलाशी लो, सुखराम ।'
एस० आई० ने अजय की जेबें थपथपा कर तसल्ली करने के बाद कुर्सी पर बैठी नीलम से पूछा–'तुम्हारे पास कोई हथियार है ?'
–'नहीं ।' नीलम ने जवाब दिया ।
–'बैग दिखाओ ।'
नीलम ने अपना हैंडबैग उसे दे दिया ।
एस० आई० ने बैग खोलकर देखने के बाद वापस लौटा दिया ।
–'इनके पास और कोई हथियार नहीं है, सर ।' वह बोला ।
उन दोनों को कवर किए खड़े इंसपैक्टर ने अपनी रिवाल्वर होल्सटर में रख ली ।
–'इससे पहले कि वह कुछ कहता अब तक चुपचाप खड़ा अजय बोला–'बैडरूम में एक औरत की लाश पड़ी है, इंसपैक्टर ।'
इंसपैक्टर ने कड़ी निगाहों से उसे घूरा । फिर अपने मातहतों को उन दोनों का ध्यान रखने के लिए कह कर वह बैडरूम मे चला गया ।
एस० आई० सुखराम और कांस्टेबल सतर्क खड़े संदेहपूर्वक उन दोनों को घूरते रहे ।
करीब पांच मिनट बाद इंसपैक्टर बैडरूम से निकला ।
–'उस औरत की हत्या तुमने ही की है ?' उसने आते ही अजय से पूछा ।
–'नहीं हमारे यहां पहुंचने से पहले ही वह मर चुकी थी ।' अजय ने जवाब दिया अगर यकीन नहीं है तो आप मेरी रिवाल्वर चैक कर सकते हैं ।'
इंसपैक्टर के संकेत पर एस० आई० ने रूमाल की सहायता से, नीचे गिरी रिवाल्वर सावधानी पूर्वक नाल से पकड़कर उठा ली । उसे सूंघने के बाद उसने सर हिला दिया ।
–'इससे बारूद की गंध नहीं आ रही है सर ।' वह बोला–'लेकिन हो सकता है, फायर करने के बाद इसे साफ कर दिया गया था ।'
अजय मुस्कराया ।
–'तुम कहना चाहते हो हत्या करने के बाद मैं यहां बैठकर रिवाल्वर की सफाई कर रहा हूँ ?' उसने पूछा–'ताकि आप लोग आओ और मौका–ए–वारदात पर मुझे पकड़ लो ?'
एस० आई० ने जवाब देने की बजाय नापसंदगी भरी निगाहों से उसे घूरा और रिवाल्वर राइटिंग टेबल पर डाल दी ।
एस० आई० की इस दलील पर इंसपैक्टर ने भी यूं मुंह बना लिया था । मानों उसने बड़ी ही बचकानी बात कह दी थी ।
–'तुम इस इमारत के इन्चार्ज या केअर टेकर को बुलाकर लाओ ।' उसने कांस्टेबल से कहा–'और कहीं से फिंगर प्रिंट्स वालों और एम्बूलेंस को भी फोन कर देना यहां की किसी चीज को फिलहाल हाथ लगाना ठीक नहीं है ।'
–'राइट, सर ।'
कांस्टेबल चला गया ।
इंसपैक्टर अजय से मुखातिब हुआ ।
–'यह रिवाल्वर तुम्हारी अपनी है ?" उसने पूछा–'मेरा मतलब यह लाइसेंस शुदा है ?'
–'जी हां ।' अजय ने उत्तर दिया ।
–'तुम्हारा नाम क्या है ?'
–'अजय कुमार ।'
–'रहते कहां हो ?'
–'विराटनगर में । यहां होटल सिद्धार्थ में ठहरा हूँ ।'
–'पेशा ।'
–'प्रेस रिपोर्टर, थंडर ।' अजय ने कहा और अपना प्रेस कार्ड निकालकर उसे दे दिया ।
इंसपैक्टर ने गौर से देखकर प्रेस कार्ड वापस लौटाते हुए संतुष्टिपूर्वक सर हिलाया । उसके चेहरे पर व्याप्त संदेह के भाव छंटने लगे थे ।
तुम मृत औरत को जानते थे ?' उसने पूछा ।
अजय ने सर हिलाकर हामी भर दी ।
–'उसका नाम मंजुला सक्सेना था । वह 'विशालगढ़ टाइम्स' में प्रेस रिपोर्टर थी ।
–'तुम यहां किस वक्त पहुंचे ?'
–'करीब आधा घंटा पहले । जिस टैक्सी में हम आए थे । वो अभी भी नीचे हमारा वेट कर रही है ।'
इंसपैक्टर ने नीलम की ओर संकेत किया ।
–'यह भी तुम्हारे साथ है ?'
–'हां, यह मिस नीलम कपूर हैं । 'थंडर' के सोसाइटी कॉलम की राइटर । आजकल यहीं स्थानीय ऑफिस में है ।'
–'तुम यहां क्या करने आए थे ?'
–'मिस सक्सेना ने आज सुबह होटल में मुझे फोन किया था । वह किसी मामले में मेरी मदद चाहती थी । किस मामले में और कैसी मदद चाहिए थी । यह बताने के लिए उसने दोबारा फोन करना था ।' अजय जानबूझकर मामले और मदद की बात को छिपाता हुआ बोला–'लेकिन काफी देर इन्तजार करने के बाद भी न तो उसका फोन ही आया और न ही उसने सारा दिन अपनी आनसरिंग सर्विस से संपर्क किया । यह बात अपने आप में निहायत अजीब थी । इसलिए मुझे थोड़ा शक हुआ और हम यहां आ गए । आप चाहें तो, दीनशा आनसरिंग सर्विस से चेक कर सकते हैं ।'
–'मैं जानता हूं ।' इंसपैक्टर शुष्क स्वर में बोला–'मुझे क्या करना है ।'
–'अगर आपको एतराज न हो तो मैं भी कुछ पूछ सकता हूँ ?'
–'क्या पूछना चाहते हो ?'
–'लाश का मुआयना करने के बाद आप किस नतीजे पर पहुंचे ?'
–'उसे बत्तीस कैलीबर की हैंडगन से शूट किया गया लगता है । माथे में लगी गोली ने फौरन उसकी जान ले ली थी और उसकी मौत करीब दो घंटे पहले हुई थी ।
–'तब तो हम आसानी से साबित कर सकते हैं । नीलम बोली–'मंजुला की मृत्यु के समय हम कहां थे...।'
–'अभी ऐसा करने की जरूरत नहीं है । क्योंकि तुम लोगों पर हत्या करने का संदेह मैं नहीं कर रहा हूं ।'
अजय ने गहरी सांस ली ।
–'थैंक्यू वेरी मच, इंसपैक्टर ।' वह बोला–'आप पहले पुलिस ऑफिसर हैं, मिस्टर शुक्ला । जिसने मौका–ए–वारदात पर मौजूद पाकर भी मुझ पर शक नहीं किया ।
इंसपैक्टर पहली बार मुस्कराया ।
–'तुमसे मुलाकात तो पहली बार हो रही है । लेकिन तुम्हारे नाम से मैं एक अर्से से परिचित हूँ । तुम्हारे दोस्त इंसपैक्टर रविशंकर को भी जानता हूँ ।'
–'और क्या जानते है आप ?'
–'साल भर पहले दिनेश दत्त, रहेजा का पता लगाकर बीमा कंपनी को पचास लाख की ठगी से बचाने के साथ–साथ सेठिया का भी जिस ढंग से तुमने बंटा ढार किया था । उससे मैं बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था । तुम्हारा वो कारनामा अपने आपमें किसी चमत्कार से कम नहीं था ।'
(देखिए उपन्यास–मौत का साया ।)
–'इस वक्त मुझ पर शक न करने की मेहरबानी की यही वजह है ?'
–'नहीं । असलियत यह है तुम पर शक करने की कोई ठोस वजह अभी मेरे सामने है ही नहीं ।'
तभी कांस्टेबल ने एक लगभग पचास वर्षीय और नर्वस से नजर आते हल्के–फुल्के से आदमी के साथ अन्दर प्रवेश किया ।
–'यह मिस्टर मदान है, सर ।' वह बोला–'इस इमारत के केअर टेकर । इसका कहना है पुलिस हैडक्वार्टर्स को इन्होंने ही फोन किया था । क्योंकि आज रात इस फ्लैट में उठा पटक की काफी आवाजें सुनी थी ।'
इंसपैक्टर ने मदान को सर से पैर तक गौर से देखा ।
–'सिर्फ उठा पटक की आवाजें सुनी थीं तुमने ?' उसने पूछा ।
–'जी हाँ ।' मदान बोला ।
–'किस वक्त ?'
–'करीब दो घन्टे पहले ।'
–'तो फिर तुमने तभी फोन क्यों नहीं किया ?
–'मिस सक्सेना इस इमारत के पुराने किराएदारों में से एक थी...?'
–'थी ?' इंसपैक्टर ने टोका ।
–'जी हां, मुझे पता लग चुका है उसका मर्डर कर दिया गया ।' मदान ने कहा फिर कांस्टेबल की ओर इशारा करके बोला–'इन्होंने मेरे सामने ही फोन पर पुलिस हैडक्वार्टर्स को यह इत्तिला दी थी ।
–'हूँ, आगे बोलिए ।'
–'मिस सक्सेना सही वक्त पर किराया देने और अपने काम से मतलब रखने वाली एक शांतिप्रिय महिला थी । इसलिए उसे किसी परेशानी में डालना मैं नहीं चाहता था ।'
–'अगर ऐसी बात थी तो तुमने बाद में भी हमें क्यों इत्तिला दी ?'
–'अपनी पत्नी की जिद की वजह से । दरअसल यहाँ अजीब सी आवाजें सुनने के बाद अपनी पत्नी के बार–बार कहने पर जब मैं ऊपर आया तो आवाजें आनी बंद हो चुकी थीं । यहाँ एकदम शांति थी । इसलिए मैंने मिस सक्सेना से कुछ कहने की जरूरत नहीं समझी और वापस लौट गया । जब मैंने अपनी पत्नि को जाकर बताया तो वह मुझ पर जोर डालने लगी कि मुझे पुलिस को इत्तिला करनी चाहिए ताकि दोबारा वैसा शोर न हो । असल में उसके साथ दिक्कत यह है उसे बड़ी मुश्किल से नींद आती है और जरा सी आहट सुनकर ही जाग जाती है । और अगर किसी वजह से दस बजे तक उसे नींद नहीं आए तो फिर सारी रात वह नहीं सो पाती है । मैं काफी देर तक उसे समझाता रहा मिस सक्सेना को नाहक परेशान करना ठीक नहीं है । लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही । आखिर में मुझे उसकी बात माननी पड़ी । और मैंने पुलिस हैडक्वार्टर्स फोन कर दिया कि यहाँ कुछ गड़बड़ी है ।'
–'तुम इसी इमारत में रहते हो न ?'
–'जी हाँ, इस फ्लैट के ठीक नीचे । निचले फ्लोर पर ।
–'तुम्हारे अलावा इस फ्लोर पर या नीचे किसी और ने वे आवाजें नहीं सुनीं ?'
–'सुनी तो जरूर होंगी लेकिन इस तरफ ध्यान नहीं दिया होगा । वैसे भी इस फ्लोर पर तो ज्यादातर फ्लैट खाली पड़े हैं ।'
–'तुमने और तुम्हारी पत्नि ने सिर्फ उठा पटक की आवाजें सुनी थीं ।' अजय ने हस्तक्षेप करते हुए पूछा–'फायर की आवाज नहीं सुनी ?'
–'नहीं ।'
–'इन्हें नीचे ले जाओ ।' इंसपैक्टर ने एस० आई० को आदेश दिया–'इनकी पत्नि के अलावा दूसरे पड़ोसियों से भी पूछताछ करो ।'
एस० आई० मदान सहित बाहर निकल गया ।
–'इस आदमी ने उस वक्त अंदर न आकर शायद ठीक ही किया ।' इंसपैक्टर बोला–'संभवतया हत्यारा यहीं मौजूद था । अगर यह अन्दर आ गया होता तो उसने इसे भी मार डालना था ।'
–'वो तो ठीक है । अजय बोला–'लेकिन आपने इससे फायर की आवाज के बारे में क्यों नहीं पूछा ?'
–'मैं नहीं समझता कि फायर की आवाज इसने सुनी होगी ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि माथे पर गोली लगने से जो सूराख बना है । उसके पास बारूद से जलने के हल्के निशान मौजूद हैं । यानी हत्यारे से तकरीबन प्वाइंट ब्लैक फायर किया था । दूसरे, बैडरूम में पलंग के नीचे एक तकिया पड़ा मिला है । उस पर भी बारूद से जलने के निशान और बारूद की गंध मौजूद है । इसका सीधा सा मतलब है कि फायर की आवाज को दबाने के लिए उसने रिवाल्वर वाले हाथ पर तकिए को लपेटा था ।
–'यानी हत्यारा काफी सुलझा हुआ और शायद पेशेवर था ।' अजय ने मत व्यक्त किया ।
–'ऐसा ही लगता है ।'
–'आप हमसे कुछ और पूछना चाहते हैं, इंसपैक्टर ?' शुक्ला ने सर हिलाकर हामी भर दी ।
–'तुमने बताया था हत्प्राण तुम्हारी मदद चाहती थी । वह किस मामले में और क्या मदद चाहती थी ।'
–'यह उसने मुझे नहीं बताया ।'
–'तुमने पूछा था ?'
–'हाँ । लेकिन उसने कह दिया दोबारा फोन करके बताएगी ।'
इंसपैक्टर की खोजपूर्ण निगाहें उसके चेहरे पर जमी थीं ।
–'और दोबारा फोन उसने नहीं किया ?'
–'नहीं ।'
–'इस फ्लैट की दुर्दशा से जाहिर है हत्यारे ने बड़ी बारीकी और बेरहमी से यहाँ तलाशी ली थी । बता सकते हो, उसे किस चीज की तलाश थी ?'
–'नहीं ।'
–'तुम कुछ दिन और यहीं रुकोगे या वापस जा रहे हो ?'
–'रुकना तो नहीं चाहता था । लेकिन अब रुकना पड़ेगा ।'
–'तुम्हें भी इस केस में दिलचस्पी है ?'
–'जी हाँ ।' अजय ने बड़ी शराफत से कबूल किया ।
–'यानी तुम अपने तौर पर भी कुछ करोगे ?'
–'जी हाँ ।'
–'क्या ?'
–'यह अभी तय नहीं किया है ।'
–'ठीक है । और चाहे जो भी करो लेकिन हमारे रास्ते में आने की कोशिश मत करना ।'
–'सलाह के लिए धन्यवाद । हम जा सकते हैं ?'
–'हाँ । अपना रिवाल्वर भी ले जाओ ।' इंसपैक्टर बोला–'अगर जरूरत पड़ी तो सिद्धार्थ में ही मिलोगे न ?'
–'जी हाँ ।'
अजय ने राइटिंग डेस्क पर रखी अपनी रिवाल्वर उठाई और नीलम सहित बाहर आ गया ।
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