बेख़ौफ़-बेपरवाह प्यार

इंसान के बहुत सारे रूप होते हैं। अलग-अलग जगह पर अलग-अलग स्थिति और परिस्थितियों में उसके विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इंसान किसी स्थिति में सामान्य इंसान की तरह बर्ताव करता है तो किसी परिस्थिति में अन्दर का शैतान बाहर आ जाता है। अक्सर लोगो ने उस रूप के निष्कर्ष को गुस्से या क्रोध का नाम दे रखा है। इस गुस्से की आड़ में इंसान कुछ असामान्य काम करता है।

माया के कालेज छोड़ने के दो महीने बाद वीर और माया मिले। दोनों पार्क में बैठ कर बातें कर रहे थे। माया वीर के लिए चावल के लड्डू लाई थी। वीर ने लड्डू खाए जो काफ़ी अच्छे बने थे। थोड़ी देर तक दोनों आपस में अपने कालेज, घर से संबंधित बातें करते रहे। वीर काफ़ी दिनों के बाद माया से मिल रहा था। वीर ने माया के नज़दीक जाकर उसके हाथों को अपने हाथों में ले लिया। जब वीर ने माया के हाथों को अपने हाथों में लिया तब उसने देखा कि माया ने फिर अपने नाखून बढ़ा लिए थे। वीर कुछ मिनट तक उन बढ़े हुए नाखूनों को देखता रहा और उसके दिमाग़ में यही बात घूम रही थी कि माया को मना करने के बाद भी उसने नाखून कैसे बढ़ा लिए?

इंसान के अन्दर से गुस्सा निकलने के लिए कोई छोटी बात या मामूली-सी दरार की ज़रूरत होती है, जिससे वह गुस्सा बाहर आने का अपना रास्ता बना सके। यही वीर के साथ हो रहा था। उसके गुस्से को निकलने के लिए दरार मिल चुकी थी। वीर ने माया से पूछा कि जब मैंने तुम्हें पहले ही मना किया था कि मुझे तुम्हारे बढ़े हुए नाखून पसन्द नहीं हैं और मैं पहले भी इनको काट चुका हूँ तो यह अब तुम्ने क्यों बढ़ाए? माया अपनी बात रख पाती, इससे पहले ही वीर का गुस्सा तेज़ हो गया और उसने माया को थप्पड़ लगा दिया। थप्पड़ लगने के बाद दोनों के बीच कुछ सेकेंड की ख़ामोशी रही। माया की आँखों से आंसू निकल रहे थे। वह कुछ भी नहीं बोल रही थी। बस, आँसू उसकी आँखों से बहे जा रहे थे।

वीर वहाँ से खड़ा हुआ और माया से कहा कि तुम यहीं बैठो, मैं अभी आता हूँ। वीर पार्क से बाहर गया और दुकान से एक ब्लेड लेकर आया। जब वह माया के पास आया तो वह रो रही थी। वीर ने बिना कुछ कहे माया के अँगुलियों के बढ़े हुए नाखूनो को एक-एक कर ब्लेड से काट कर छोटे कर दिए। नाखून छोटे करने के बाद वीर ने माया से कहा कि अब आगे से ध्यान रखना, मुझे तुम्हारें हाथों में बढ़े हुए नाखून दोबारा नहीं दिखनें चाहिए। माया वहाँ चुपचाप बैठी थी। वो कुछ भी नहीं बोल रही थी। माया ने अपना हैंड़बैग उठाया और वहाँ से उठ खडी हुई। उसने वीर से कहा कि एक दिन तुमने कहा था कि बात शक़ की नहीं, हक़ की है। तो इस तरह का हक़, तुम मुझ पर जताना चाहते हो? वीर इसके आगे कुछ बोलता, माया वहाँ से चल पड़ी थी।

वीर वहीं बैठा माया के साथ हुई घटना को सोच रहा था। वीर को अब अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसने माया के साथ ग़लत किया है। उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन वीर को ख़ुद समझ नहीं आ रहा था कि उसे एकदम से इतना गुस्सा कैसे आ गया कि उसने माया के ऊपर हाथ ही उठा दिया। वो माया को समझा भी तो सकता था। वैसे भी माया इतने दिनों के बाद मिली थी और उसने उसके साथ ऐसा कर दिया। वीर को अहसास हुआ कि उसने माया के साथ बहुत ग़लत कर दिया। वीर ने अपने मोबाइल से माया को कॉल किया, लेकिन माया ने फ़ोन काट दिया। वीर ने सोचा कि माया अभी गुस्से में होगी तो बाद में बात करनी चाहिए। वीर ने मोबाइल से माया को ‘सॉरी’ का मैसेज टाइप करके भेजा, लेकिन माया की तरफ़ से कोई जवाब नहीं मिला। वीर को लगा कि आज उससे अनजाने में बहुत बड़ी ग़लती हो गई है और वीर कुछ देर के लिए वहीं पर बैठा रहा।

वीर दो दिन से माया से ‘सॉरी’ कह रहा था, तब जाकर माया की नाराज़गी ख़त्म हुई थी। उन दो दिनों में माया से ठीक से बात न होने तथा उसकी नाराज़गी के कारण वीर हज़ार मौतें मरा था। वीर कुछ भी बर्दाश्त कर सकता था, लेकिन माया उससे दूर रहे या माया से बात न हो, यह वीर को कतई मंजूर नहीं था।

रात को जब वीर और माया फ़ोन पर बात कर रहे थे तो माया ने बताया कि कल उसके घरवाले कहीं बाहर जा रहे हैं। तो वीर ने माया से पूछा कि क्या तुम भी जा रही हो उनके साथ? माया ने कहा कि नहीं, मुझे कालेज जाना है तो मैं नहीं जा रही हूँ। वीर ने तब ऐसे ही अचानक से कह दिया कि तो मैं आ जाता हूँ कल तुम्हारे घर पर तुमसे मिलने के लिए।

“नहीं, बिल्कुल भी नहीं।” माया ने कहा।

“अरे,प्लीज़ ना यार। मिलते है ना। अच्छा कम से कम दो दिन पहले जो मैंने ग़लती की है, उसकी तो माफी सही से मांगने दो मिलकर।” वीर ने कहा।

“बस, तुमने माफी मांग ली और मैंने माफ भी कर दिया है।” माया ने कहा।

थोड़ी देर ना करने के बाद माया ने कहा कि ठीक है, आ जाना घर पर। हमारा घर तो ऊपर है, लेकिन नीचे तो मेरे चाचा, चाची और दादी भी रहते है, तो उनसे क्या कहोगे?

“अब यह तो मैं कैसे बताऊँ? तुम ही बताओ कि क्या कहू उन्हें?” वीर ने पूछा।

“उनको हमारे किसी रिलेटिव का नाम ले देना, तो फिर कुछ नहीं पूछेंगे।” माया ने सुझाव दिया।

वीर और अजय, दोनों सुबह माया के घर से एक किलोमीटर दूर थे। वीर अजय को साथ इसलिए लाया था कि अजय को इस तरह का experience पहले भी था और वैसे भी कहीं कोई दिक्कत हो भी जाए तो कम-से-कम मार खाने में कोई साथ तो रहेगा। मोरल सपोर्ट नाम की भी तो कोई चीज़ होती है। वीर ने माया को फ़ोन कर दिया कि वो घर के बाहर पहुँच गया है। अजय ने वीर को माया के घर के बाहर छोड़ा और ख़ुद खेतों की तरफ़ बाइक लेकर निकल गया।

वीर जैसे ही माया के घर के अन्दर गया तो सामने ही उसकी दादी दिख गई। वीर के दिल में घबराहट ज़रूर थी, लेकिन जैसे-तैसे वीर ने हिम्मत की और दादी को नमस्कार किया। दादी कुछ बोलने को हुई, उससे पहले ही वीर सीधा ऊपर की तरफ़ चला गया। सामने ही कमरे में माया थी तो वीर सीधा वहीं चला गया। अब वहाँ थोड़ी औपचारिकता तो करनी ही थी क्योंकि माया ने नीचे यह बताया कि वीर कोई उनका दूर का रिलेटिव है। थोड़ी देर माया से बात करने के बाद माया ने वीर को अपना कमरा दिखाया और फिर किचन दिखाने के लिए लेकर गई। किचन थोड़ा साईड में अलग बना हुआ था। वीर और माया दोनों किचन के अन्दर गए तो वीर ने अन्दर से किचन का दरवाज़ा बन्द कर दिया और माया को अपने नज़दीक खींचकर गले लगा लिया। वीर अपने होंठ माया के कान के पास लेकर गया और उसे उस दिन के लिए ‘सॉरी’ कहा। जब माया ने कहा कि उसने उसे माफ कर दिया है तो वीर ने अपने होंठों को माया के होंठो पर रख दिया। पूरे किचन का माहौल रोमांटिक हो गया था। दोनों एक-दूसरे से इस कदर लिपटे रहे थे जैसे सांप चन्दन के पेड़ से लिपट जाता है। दोनों को इस बात का ज़रा भी ड़र नहीं था कि नीचे माया की चाची और दादी है। प्यार ऐसा ही तो होता है बेख़ौफ़, बेपरवाह। ऐसा ही था वीर और माया का भी प्यार, जो बेख़ौफ़ और बेपरवाह होने का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा था। जब माया के हाथ से किचन की स्लैब पर रखा एक गिलास नीचे गिरा तब दोनों मदहोशी से होश में आए। दोनों ने अपने कपड़े ठीक किए और फिर दोनों किचन से बाहर कमरे में आ गए। दोनों की शरारत भरी नज़रें एक-दूसरे को देखकर उठने-गिरने लगीं। दोनों को अपनी इस बेवकूफ़ी पर अन्दर ही अन्दर हँसी आ रही थी।

वीर के फ़ोन की घंटी बजी। उसने फ़ोन देखा तो अजय का फ़ोन आ रहा था। वीर ने घड़ी में टाइम देखा तो काफ़ी समय हो गया था। वीर ने माया से कहा कि बहुत टाइम हो गया है। अजय बाहर मेरा इन्तज़ार कर रहा है, तो मुझे निकलना होगा।

वीर माया के घर से बाहर आया तो अजय गली के बाहर बाइक पर बैठा वीर का इन्तज़ार कर रहा था। अजय ने बाइक स्टार्ट की और दोनों माया के गांव से शहर की तरफ़ निकल पड़े।