अँधेरे में फुसफुसाहट
एक भयानक रात। कराहती हवा, खुद पर उन्माद में कोड़े बरसाते पेड़, सड़क पर तेज़ बरसती बारिश, पहाड़ों पर गरजते बादल। मेरे आगे अकेलापन बिखरा हुआ था, मन का अकेलापन और शरीर से भी। पूरी दुनिया घाटी से आ रहे कुहरे से ढँकी हुई थी, एक सघन, सफ़ेद, नम नकाब।
मैं जंगल में अँधेरे के बीच रास्ता तलाश रहा था, अपने दिमाग में पहाड़ के रास्ते तलाश रहा था, कोई याद का पत्थर, कोई प्राचीन देवदार। फिर एक बिजली की कौंध में मुझे बंजर पहाड़ी और उस पर धुँध में लिपटे घर की झलक दिखाई दी।
यह एक पुराने ज़माने का घर था—उजाड़ हिल स्टेशन के बाहर चूने पत्थर का बना मकान। उसकी खिड़की में कोई रोशनी नहीं थी; शायद बिजली बहुत पहले काटी जा चुकी थी। लेकिन अगर मैं वहाँ पहुँच सका तो रात कट जायेगी।
मेरे पास कोई टॉर्च नहीं था, लेकिन तब तक चाँद जंगली बादलों से निकलकर चमकने लगा था और पेड़ कुहरे से आदिम दैत्यों की तरह निकल आये थे। मैं मुख्य दरवाज़े पर पहुँचा और उसे अन्दर से बन्द पाया। मैंने किनारे वाली खिड़की का शीशा तोड़ा, टूटे हुए काँच से अपना हाथ अन्दर किया और उसकी कुंडी को खोल लिया।
वह खिड़की सैकड़ों मानसूनों की मार खुद में लपेटे थी और उसने बहुत विरोध जताया। फिर वह खुल गयी और मैं लम्बे समय से बन्द कमरे के सीलन भरे माहौल में अन्दर आया और मेरे साथ हवा अन्दर आयी जिसने फ़र्श पर पड़े कागज़ों को बिखेर दिया और मेज़ पर पड़ी किसी अज्ञात वस्तु को गिरा दिया। मैंने खिड़की बन्द कर फिर से कुंडी लगा दी; लेकिन कुहरा खिड़की के टूटे शीशे से अन्दर चला आया और हवा इसे ऐसे बजा रही थी जैसे कोई मंजीरा हो।
मेरी जेब में माचिस थी। मैंने तीन बार घिसी तो रोशनी जली।
मैं एक बड़े कमरे में था जो फर्नीचर से भरा हुआ था। दीवार पर तस्वीरें थीं। मेंटलपीस पर गुलदान। एक मोमबत्ती स्टैंड और विचित्र बात कि कोई मकड़ी का जाला नहीं। बाहरी सारी उपेक्षा और जर्जर हालत के बाद भी घर की कोई देखरेख कर रहा था। लेकिन इससे पहले कि मैं किसी और चीज़ पर ध्यान दे पाता, माचिस की तीली बुझ गयी।
जब मैं कमरे में आगे बढ़ा, देवदार की पुरानी लकड़ी से बना फ़र्श चरमराने लगा। दूसरी माचिस की तीली जला कर मैं मेंटलपीस तक पहुँचा और मोमबत्ती जलायी और तभी यह ध्यान दिया कि मोमबत्ती स्टैंड एक वास्तविक पुरानी कलाकृति है जिसमें शीशे की झूलती कटाई है। एक परित्यक्त कॉटेज, अच्छे फर्नीचर से सज्जित। मुझे आश्चर्य हुआ कि अब तक किसी ने इसमें चोरी से प्रवेश क्यों नहीं किया? तभी मुझे एहसास हुआ कि मैंने ऐसा किया है।
मैंने मोमबत्ती स्टैंड ऊपर उठाया और कमरे के चारों ओर देखा। कमरे में वाटर कलर और तैल के बने पोट्रेट लगे थे। कहीं ज़रा भी धूल नहीं थी। लेकिन किसी ने मेरी पुकार का कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया, किसी ने मेरी सहमी हुई दस्तक का कोई जवाब नहीं दिया। ऐसा लग रहा था कि घर के लोग छुपे हुए हैं, मुझे अँधेरे कोनों और चिमनियों से तिरछी नज़र से देख रहे हैं।
मैं शयनकक्ष में गया और वहाँ एक आदमकद आईने से मेरा सामना हुआ। मेरे प्रतिबिम्ब ने भी मुझे वापस घूरा जैसे कि मैं कोई अजनबी था, जैसे मेरा प्रतिबिम्ब उस घर से सम्बन्धित हो, जबकि मैं सिर्फ़ एक बाहरी व्यक्ति था।
जैसे ही मैं आईने की तरफ़ से घूमा, मुझे लगा मैंने किसी को देखा, कोई चीज़, मेरे अलावा कोई और प्रतिबिम्ब, जो मेरे साथ ही आईने की तरफ़ से घूमी। मुझे सफ़ेदी की एक झलक मिली, एक पीला अंडाकार चेहरा, जलती आँखें, लम्बे केश, मोमबत्ती की रोशनी में सुनहरे। लेकिन जब मैंने आईने में दोबारा देखा, तो मुझे कुछ नहीं दिखा सिवाय अपने ज़र्द चेहरे के।
मेरे तलवों के पास पानी का एक सैलाब बना हुआ था। मैंने मोमबत्ती को उस मेज़ पर जमाया, बिस्तर के किनारे बैठा और अपने भीगे मोजे, जूते उतारे। फिर मैंने अपने कपड़े उतारे और उन्हें कुर्सी के पीछे टिकाया।
मैं अँधेरे में नग्न खड़ा था, थोड़ा सिहरता हुआ। वहाँ मुझे देखने वाला कोई नहीं था—लेकिन मैंने खुद को उघड़ा हुआ महसूस किया, बिलकुल ऐसा जैसे कि मैं किसी कमरे में लोगों के सामने कपड़े उतारे खड़ा हूँ।
मैं बिस्तर की चादरों में घुस गया, जो थोड़ी यूक्लिप्टस और लैवेंडर जैसी महक रही थीं—लेकिन मैंने पाया कि वहाँ कोई तकिया नहीं था। यह विचित्र था। एक बिलकुल सलीके से बना हुआ बिस्तर, लेकिन कोई तकिया नहीं! मैं उसे खोजने के लिए बहुत थक चुका था। इसलिए मैंने मोमबत्ती बुझायी और अँधेरा मेरे चारों ओर छा गया…
जैसे ही मैंने अपनी आँखें बन्द कीं, फुसफुसाहटें शुरू हो गयीं। मैं नहीं बता सकता कि ये कहाँ से आ रही थीं। ये मेरे चारों ओर थीं, हवा की आवाज़ में मिली हुईं, चिमनी के खाँसने की आवाज़ में, फ़र्नीचर के सीधा किये जाने की आवाज़ में, बाहर बारिश में पेड़ों के रोने की आवाज़ में।
कभी-कभी मैं समझ पा रहा था कि क्या कहा जा रहा था। शब्द दूर से आ रहे थे—दूरी उतनी स्थान की नहीं, जितनी समय की—
“मेरा, मेरा, यह पूरा मेरा है…”
“वह हमारा है, प्रिय, हमारा।”
फुसफुसाहटें, प्रतिध्वनियाँ, शब्द मेरे चारों ओर चमगादड़ के डैनों के साथ उड़ रहे थे, बिलकुल ही व्यर्थ की चीज़ें एक तार्किक जल्दबाज़ी के साथ।
“तुम रात्रि भोजन के लिए लेट हो गये हो…”
“वह अपना रास्ता कुहरे में भटक गया है।”
“क्या तुम्हें लगता है, उसके पास पैसे हैं?”
“एक कछुए को मारने के लिए सबसे पहले उसके पैरों को दो खम्भों से बाँधना होता है।”
“हम उसे बिस्तर से बाँध देते हैं और उसके कंठ से गर्म पानी अन्दर डालते हैं।”
“नहीं, यह ज़्यादा आसान तरीका है।”
मैं उठ कर बैठ गया। ज़्यादातर फुसफुसाहटें दूर से आ रही थीं, निर्वैयक्तिक, लेकिन अन्तिम कथन डरावने रूप से नज़दीक था।
मैंने फिर से मोमबत्ती जलायी और आवाज़ें रुक गयीं। मैं उठा और कमरे में एक चक्कर लगाया, व्यर्थ ही आवाज़ों का कोई कारण खोजने के लिए। फिर एक बार मैंने खुद को आईने के सामने अपने प्रतिबिम्ब को घूरते पाया और उस दूसरे व्यक्ति का प्रतिबिम्ब, सुनहरे बालों और चमकती आँखों वाली लड़की और इस बार उसके हाथों में एक तकिया था। वह मेरे पीछे खड़ी थी।
फिर मुझे याद आयी लड़कपन में सुनी हुई वह कहानी, दो कुँवारी बहनों की—एक खूबसूरत, एक सादी—जो अमीर, सम्भ्रांत आदमियों को पटा कर अपने निवास पर ले जाती थीं और उनका गला घोंट देती थीं। मृत्यु बहुत ही स्वाभाविक लगती और वे सालों तक ऐसा करती रहीं। यह तो दूसरी बहन द्वारा मृत्यु शैया पर की गयी स्वीकारोक्ति से सारा सच बाहर आया और फिर भी कोई उस पर विश्वास नहीं कर रहा था।
लेकिन यह कई सालों पहले की बात है और वह घर कब का गिर चुका…
जब मैं आईने की तरफ़ से घूमा, मेरे पीछे कोई नहीं था। मैंने फिर से देखा और प्रतिबिम्ब गायब हो गया था।
मैं फिर से बिस्तर में घुस गया और मोमबत्ती बुझा दी। मैं सो गया और सपने देखने लगा (या क्या मैं जगा हुआ था और ऐसा सही में हुआ था?) कि जिस औरत को मैंने आईने में देखा था, मेरे बिस्तर के पास खड़ी, मुझ पर झुकी हुई थी, अपनी आँखों से चिंगारियाँ छोड़ती। मैं उन आँखों में लोगों को घूमते देख रहा था। मैंने खुद को देखा। और फिर उसके होंठों ने मेरे होंठों को छुआ, एकदम ठंडे होंठ, इतने रूखे कि मेरे शरीर में एक लहर दौड़ गयी।
और फिर, जबकि उसका चेहरा आकृतिविहीन हो गया और सिर्फ़ उसकी आँखें बची थीं, कोई और चीज़ मुझ पर दबाव डाल रही थी, कुछ मुलायम, भारी और आकारहीन, मुझे दम घोटने वाली कैद में जकड़ रही थी। मैं अपना सिर नहीं घुमा पा रहा था, न ही मुँह खोल पा रहा था। मैं साँस नहीं ले पा रहा था।
मैंने अपना हाथ उठाया और अपने ऊपर पड़ी चीज़ को हल्के से पकड़ा। और मुझे आश्चर्यचकित करता हुआ यह आसानी से मेरे हाथ में आ गया। यह बस एक तकिया था जो किसी तरह मेरे चेहरे पर गिर गया था, लगभग मेरा आधा दम घोंटता हुआ जबकि मैं एक काल्पनिक चुम्बन का सपना देख रहा था।
मैंने तकिये को परे किया। खुद पर से बिस्तर की चादर हटायी। मैं वह फुसफुसाहट, वह बेनाम आकृति, वह तकिया जो अँधेरे में मुझ पर गिरा, सब बहुत झेल चुका था। मैं बाहर जाकर वह तूफ़ान झेल लेना सही समझ रहा था, बनिस्पत उस अभिशप्त घर में आराम करते रहने के।
मैंने जल्दी से कपड़े पहने। मोमबत्ती लगभग खत्म होने वाली थी। वह घर और वहाँ का सब कुछ किसी और समय के अँधेरे से सम्बन्धित था, मैं दिन के उजाले से वास्ता रखता था।
मैं जाने के लिए तैयार था। मैंने विशाल आईने की विकृत नक्काशी को नज़रअन्दाज़ किया। मोमबत्ती स्टैंड को अपने सामने पकड़ कर, मैं सावधानी से आगे के कमरे की ओर बढ़ा। दीवारों पर टँगी तस्वीरें जीवन्त हो आयी थीं।
एक खास तस्वीर ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उसके नज़दीक गया ताकि मोमबत्ती के मद्धिम प्रकाश में ज़्यादा ध्यान से उसका निरीक्षण कर सकूँ। यह सिर्फ़ मेरी कल्पना थी, या वह चित्र वाली लड़की मेरे सपने वाली औरत थी? क्या मैं समय में पीछे चला गया था या समय ने मुझे जकड़ लिया था?
मैं पीछे जाने के लिए मुड़ा और मोमबत्ती एक आखिरी बार चमक कर बुझ गयी, कमरे में अँधेरा करते हुए। मैं एक क्षण तक स्थिर खड़ा रहा, अपने विचारों को समेटता हुआ, अपने भय पर काबू पाता हुआ जो मुझे घेर रहा था। तभी दीवार पर एक दस्तक हुई।
“कौन है वहाँ?” मैंने आवाज़ दी।
शान्ति। और तभी, फिर एक बार, दस्तक और इस बार एक आवाज़, महीन और अनुनय भरी—“कृपया मुझे अन्दर आने दें, कृपया मुझे अन्दर आने दें…”
मैं आगे बढ़ा, दरवाज़े की कुंडी खोली और उसे खुला छोड़ दिया।
वह बाहर बारिश में खड़ी थी। पीली, सुन्दर-सी लड़की नहीं, बल्कि एक बूढ़ी औरत जिसके रंगहीन होंठ और फैले हुए नथुने थे और—लेकिन आँखें कहाँ थीं? आँखें नहीं थीं, आँखें नहीं थीं!
वह हवा के साथ मेरे बगल से गुज़री और ठीक उसी समय मैं खुले हुए दरवाज़े का फ़ायदा उठाते हुए बाहर की ओर भागा, बाहर होती बारिश में कृतज्ञतापूर्वक भागता हुआ, झरते हुए पेड़ों में घंटों खो जाने के लिए, उन सभी जोंकों पर खुश होता हुआ जो मेरे मांस पर लटक रहे थे।
और जब सुबह के साथ, अन्ततः मैंने अपना रास्ता पा लिया, चिड़ियों के संगीत और बादलों को भेदते, मैं बिखरते सूरज की रोशनी में बहुत खुश था।
और अगर आज आप मुझसे पूछें कि वह पुराना घर वहाँ अब भी है या नहीं, मैं यह बता पाने में सक्षम नहीं हो पाऊँगा। इसकी सीधी-सी वजह है कि मुझे उसे खोजने जाने की ज़रा-सी भी इच्छा नहीं है।
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