“बहुत थक गया हूं।” कहने के बाद देवांश ने सिरदर्द की टेबलेट जीभ पर रखी और दूसरे हाथ में मौजूद गिलास होठों से लगा लिया । पानी से भरा पूरा गिलास खाली करने के बाद उसने कहा ---- “सारा दिन होटल सिवाया में गुजारा। वहां के स्टाफ से झक्क मारता रहा । ”


“ ये सब करने की जरूरत क्या थी तुम्हें ?” एक सांवली लेकिन तीखे नाक-नक्श वाली अत्यन्त आकर्षक लड़की ने उसके हाथ से खाली गिलास लेते हुए कहा ----“वहां के स्टाफ को पता ही क्या था? यह ठीक है, कम्मो और बुग्गा के कमरे से निकलने के बाद तुमने चेहरे से नकाब उतार लिया था। मगर उस वक्त वहां तुम्हें किसी ने देखा नहीं था । और होटल के विधिवत रास्ते से तुम निकले भी नहीं । तुम तो रेन वाटर पाइप के साथ पिछली गली से उतरे थे न?”


“वहां जाना और वहां के स्टाफ से झक मारना इसलिए जरूरी था विनीता क्योंकि मैं थाने से उठा ही यह कहकर था। आगे चलकर किसी भी मोड़ पर अगर इंस्पैक्टर ठकरियाल को मालूम हो जाता कि न मैं होटल सिवाया गया हूं, न ही किसी से पूछताछ की है तो उसके शक के दायरे में आ जाता।"


विनीता के सांवले परन्तु रसभरे होठों पर मुस्कान उभर आई। अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से कातिल अंदाज में देवांश

की तरफ देखती बोली ---- “काफी सॉलिड गेम खेलने वाले खिलाड़ी हो तुम । हर 'प्वाइंट' का ध्यान रखते हो ।”


“तुम्हीं ने बनाया है खिलाड़ी मुझे । .... तुम्हारे प्यार ने ।” कहने के साथ उसने विनीता को बांहों में भर लिया - -“न तुम यह एहसास करातीं कि इतना सबकुछ होते हुए भी मेरा कुछ नहीं है, न मैं खिलाड़ी बनता । न तुमने यह शर्त रखी होती कि तुम मुझसे तभी शादी करोगी जब सबकुछ 'मेरा' होगा, न मैं हत्याएं करने के बारे में सोचता । एक महीने पहले तक मैं राजदान और दिव्या की हत्या करने की कल्पना तक नहीं कर सकता था । ”


विनीता ने थोड़ा उचककर देवांश के होंठ चूम लिए । पूछा ---- “जो तुम आज सोचते हो, क्या तुम्हें उसका अफसोस है ?”


“बिल्कुल नहीं।" देवांश ने इतना कसकर उसे अपनी बांहों में भींच लिया कि विनीता के पुष्ट, आकर्षक और कठोर वक्ष उसके सीने में चुभने लगे---- “बल्कि मैं तो एहसानमंद हूं तुम्हारा । तुमने मेरी आंखें खोल दीं । वह पट्टी हटा दी जो राजदान नाम के शातिर ने अपने खोखले प्यार के कपड़े से तैयार करके मेरी आंखों पर बांध रखी थी । इतना बड़ा कारोबार है... इतना बड़ा । मगर मेरे नाम कुछ भी नहीं । सबकुछ अपने ही नाम से कर रखा है उसने । तुमने ठीक कहा था ---- जो प्यार वह जताता है वह वास्तविक होता तो क्या एक प्लॉट... एक भी प्लॉट मेरे नाम से न लेता ? मगर...


“मगर ?” विनीता ने खुद को उससे अलग किया ।


“कल एक नई बात पता लगी, उसने मुझे चक्कर में डाल दिया है।”


“कौन-सी बात ?”


“सिगरेट दोगी ?”


“क्यों नहीं?” विनीता पलट गई | पलटकर होटल 'ताज' के इस शानदार 'सुईट' के फर्श पर पड़े कीमती कालीन को सफेद रंग के अपने ऊंची एड़ी वाले सैंडिल्स से रौंदती डबल बेड की ड्राज की तरफ बढ़ी |


पांच सौ पचपन का पैकिट और लाइटर उसी के 'टॉप' पर रखा था ।


देवांश की नजरें उसके पुष्ट और गोल नितम्बों पर चिपककर रह गयीं । उसके मटक-मटक कर चलने के कारण वे हाहाकारी अंदाज में थरथरा रहे थे । जो पैजामा उसने पहन रखा था, वह काफी झीने कपड़े का था । साफ नजर आ रहा था विनीता पेन्टी नहीं पहने हुए है। कूल्हों से ऊपर उसकी कमर पर कोई आवरण नहीं था। अपने जिस्म के ऊपरी हिस्से पर वह ब्लाउज जैसा कुछ पहने हुए थी । वह, जिसमें कोई बटन नहीं था। सिर्फ दो तनियां थीं जिन्हें उसने अपने वक्ष के नीचे गांठ की शक्ल में बांध रखा था ।


वह दराज के निकट पहुंची । पैकिट लाइटर उठाया और पलटी।


ब्लाऊज जैसे आवरण का गला बहुत बड़ा था। दोनों वक्षों का अधिकांश हिस्सा ही नहीं बल्कि उनके बीच की घाटी भी पूरी की पूरी नुमाया हो रही थी ।


उस वक्त तक वह विनीता के उरोजों की थरथराहट में ही खोया हुआ था जब उसने नजदीक पहुंचकर हथेली फैला दी हथेली पर पैकिट और लाइटर था । देवांश ने उन्हें उठाया । एक सिगरेट सुलगाई और बोला ---- " उन्होंने केवल इसलिए अपना बच्चा पैदा नहीं किया क्योंकि वे उस प्यार को बांटना नहीं चाहते थे जो उनका मुझमें है । "


“मतलब?”


सिगरेट पीते हुए देवांश ने पूरा वृतांत बता दिया । बहुत ही ध्यान से सुना विनीता ने और सुनने के बाद खिलखिलाकर हंस पड़ी । हंसते-हंसते पेट पकड़ लिया उसने । लोटपोट सी हो गयी । अंततः हंसती-हंसती बैड पर जा गिरी ।


“तुम हंस क्यों रही हो?” बैड के नजदीक पहुंचते देवांश ने पूछा।


“हंसूं नहीं तो और क्या करूं?” वह इस तरह बोली जैसे हंसी रुक ही न रही हो ---- “वाकई बहुत बड़ा शांतिर है तुम्हारा भाई। सबसे पहले उसने अपनी बीवी को बेवकूफ बनाया । उसके बाद तुम्हें और इंस्पैक्टर को । इंस्पैक्टर का तो पता नहीं बना या नहीं, मगर तुम और दिव्या जरूर बन गये।”


“क्या कहना चाहती हो विनीता, मैं कुछ समझा नहीं।”


“मेरी गारन्टी है देव।... गारंटी है मेरी ।” हंसी पर काबू पा चुकी विनीता बिस्तर से उठती हुई बोली- - - - “तुम्हारा भाई संतान पैदा करने लायक नहीं है। यकीनन शुक्राणु नहीं हैं उसके पास और... अपनी इस कमजोरी को अपनी बीवी से बड़े ही खूबसूरत तरीके से छुपा लिया उसने । इतने खूबसूरत तरीके से कि बीवी और जब भाई को पता लगे तो भाई भी उसे महान मान बैठे। देवता समझे । मान गई देव, मान गई । वो शख्स जिसका नाम राजदान है, हमारी सोचों से कहीं ज्यादा चालाक है। वरना सोचो, भला ये भी कोई बात हुई ?


इसका मतलब तो ये हुआ, कोई मां-बाप अपने पहले बच्चे को प्यार ही नहीं करते जो दूसरा बच्चा पैदा करते हैं? प्यार करते होते तो दूसरा बच्चा पैदा ही नहीं करते क्योंकि उससे वह प्यार बंट जाता है, जो वे पहले से करते हैं। वाह भई वाह - - - - क्या लॉजिक है !”


“शायद तुम ठीक कह रही हो ।”


“ शायद नहीं, पक्के तौर पर सच यही है देव ।”


“यकीन तो मुझे भी नहीं आया था इस अटपटी बात पर । शायद ठकरियाल को भी नहीं आया । जब मैंने दिव्या से पूछा ---- उन्होंने ऐसा फैसला क्यों किया तो उसका जवाब था ---- 'इस बारे में अपने भैया से ही बात करना।' इस जवाब का भेद अब मेरी समझ में आ रहा है । मुमकिन है सच्चाई का कुछ-कुछ इल्म उसे हो ।”


“छोड़ो देव ।” वह उसके अत्यंत नजदीक आ गई ---- “उनकी वे जानें । हमें अपने टार्गेट से नहीं भटकना चाहिए । अब हम वह सब कर चुके जो उन दोनों के मर्डर से पहले जरूरी था । ठीक कहा था तुमने ----सीधे-सीधे उनका मर्डर हो जाता तो पुलिस सीधा तुम्हें ही पकड़ती । कहना ठकरियाल का ---- जब किसी पैसे वाले का मर्डर होता है तो पहला शक उसके वारिस पर जाता है । वे दोनों एक साथ मर जाते तो पुलिस का टार्गेट तुम्हीं होते। मगर अब ---- जितना खेल हम खेल चुके हैं, उसके बाद किसी का शक तुम पर जाने का सवाल ही नहीं उठता। तुमने तो.... बल्कि उनकी जान बचाई है। सही वक्त पर टाइम बम न पकड़ लेते तो और फिर, अगर गाड़ी में टाइम बम रखवाने वाले तुम्हीं होते तो... उसमें खुद क्यों बैठते? बहुत ही दुरुस्त । बहुत ही 'परफेक्ट' प्लान रहा । इंस्पैक्टर ठकरियाल अक्षरश: वही सोच रहा है जो हम सुचवाना चाहते थे।”


“इस काम में अगर मैंने पूरी तरह सावधानी न बरती होती तो फंस सकता था विनीता।" सिगरेट को ऐश ट्रे में कुचलने के बाद देवांश ने कहा-- - " मैंने पहले ही सोच लिया था-- -- कम्मो और बुग्गा पकड़े जा सकते हैं। उन्हें मेरे बारे में कुछ पता नहीं होना चाहिए । फिर भी, इंस्पैक्टर के सामने इतना तो कह ही बैठे कम्बख्त कि नकाबपोश की कद-काठी. मेरे जैसी थी। वो तो उस रूप में अगर मैं जानबूझकर दांत भींच -भींचकर न बोला होता और उन्हें भ्रमित करने के लिए लंगड़ाकर न चला होता तो वे कुछ ऐसा न बताते तो मुझसे अलग होता । उस अवस्था में ठकरियाल का दिमाग नकाबपोश की कद-काठी पर अटक सकता था । "


“मगर तुम्हें इंस्पैक्टर के सामने कम्मो और बुग्गा को दो लाख का लालच देकर वह सब पूछने की जरूरत क्या थी? यह तो वही बात हुई कि आ बैल मुझे मार ।” 


“तुम समझ नहीं रही हो विनीता । जिस शख्स को भविष्य में होने वाले डबल मर्डर केस की इन्वेस्टीगेशन करनी है, 'फाइनल स्ट्रोक' से पहले उस शख्स की मानसिकता को चारों तरफ से घेर घोटकर इस प्वाइंट पर लाना बेहद जरूरी है कि देवांश तो किसी हालत में राजदान और दिव्या का हत्यारा हो नहीं सकता और फिर मैं जानता था कम्मो और बुग्गा नकाबपोश के बारे में उतना कुछ जानते ही नहीं हैं जो मेरे लिए खतरा बन सके । अतः पूछताछ का नाटक करने में हर्ज क्या था । उससे हमें नुकसान नहीं फायदा हुआ है। राजदान और दिव्या का मर्डर होने के बाद ठकरियाल सारी जिन्दगी ऐसे शख्स को ढूंढता फिरेगा जो लंगड़ाकर चलता हो ।” ।


“मेरे ख्याल से अब हमें अपना दिमाग बेकार की बातों में न खपाकर टार्गेट पर केन्द्रित करना चाहिए ।” कहती हुई विनीता उसके नजदीक आई और सांवली मगर सुडौल, गोल और चिकनी बाहें उसके गले में डालती हुई बोली----“सदियों से एक ही सिद्धान्त चला आ रहा है- वह शख्स कभी कामयाब नहीं हो सकता जो अपने टार्गेट से आंख हटा ले ।”


“तुम हमेशा ठीक कहती हो ।” कहने के साथ उसने अपने होंठ विनीता के होठों पर रख दिए । विनीता ने भी होंठ उसके होठों से चिपका दिए । इतना ही नहीं, अपनी जीभ

उसने देवांश के मुंह में डाल दी । देवांश उसे चुसकने लगा। किसी और ही दुनिया में पहुंच चुका था वह । कुछ देर बाद विनीता ने आहिस्ता से बड़े प्यार से अपनी जीभ बाहर निकाली । देवांश की सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थीं । याचना सी नजर आ रही थी उसके फेस पर | जैसे कह रहा हो -- - 'एक बार फिर वैसे ही करो जैसे अभी-अभी किया था और... विनीता ने उसे किसी भी मर्द को चित्त कर देने वाले अंदाज में देखते हुए कहा ---- “ -- “व्हिस्की पियोगे?”


“किस चीज का नाम ले दिया? उससे कई गुना ज्यादा अच्छी चीज पी रहा था । ”


खिलखिलाकर हंस पड़ी विनीता। उससे अलग होती बोली ---- “बहुत शैतान होते जा रहे हो तुम । जरा सी छूट दी नहीं कि लगे मंजिल की तरफ बढ़ने ।”


“मंजिल तक पहुंचने ही कहां देती हो तुम । उससे पहले ही बहुत पहले ही ठीक उसी तरह पीछे हट जाती हो, जैसे अभी-अभी हटी हो ।”


“कह चुकी हूं जनाब | ऐसी-वैसी लड़की नहीं हूं मैं । वह सब शादी के बाद । ”


" और शादी ..


उसकी बात काटने के साथ फ्रिज खोला विनीता ने । पूछा ---- “सोडे से लोगे या पानी से ?”


“नहीं विनीता। इस वक्त नहीं । मुझे घर जाना है ।”


“चले जाना | टाइम ही क्या हुआ है अभी? वैसे भी, अभी है तो हमें उनका क्रियाकर्म करने के प्लान पर 'डिसकशन' करना है।” कहने के साथ उसने फ्रिज से 'ब्लैक डॉग' की बोतल निकाल ली ।


***


देवांश और विनीता अब 'सुइट' के ड्राइंग रूम में थे।


एक सेन्टर टेबल के आर-पार | दो सोफा चेयर्स पर । बीच में रखी सेन्टर टेबल पर थी 'ब्लैक डॉग' और पेप्सी की बोतल । सूखे मेवों की दो प्लेटें और दो गिलास में पेप्सी । देवांश की आंखों से हल्की-हल्की खुमारी साफ झलक रही थी। उसके जहन पर बीच-बीच में 'शबाब' के झटके भी लग रहे थे 1 विनीता जब भी अपना गिलास मेज पर रखने उठाने या सूखे मेवे उठाने के लिए झुकती, देवांश को उसकी सांवली गोलाइयों की पूरी झलक मिल जाती । उस वक्त, वह उसके लंबे नाखूनों पर सलीके से लगाई गई 'नेल पॉलिश' को देख रहा था जब विनीता ने पूछा ---- “कुछ सोचा ----कैसे पीछा छुड़ाया जाये उनसे ?”


“सच पूछो विनीता, तो सोचने का टाइम ही नहीं मिला ।”


“मेरी नजर में आई है एक तरकीब ।”


“नजर में आने से क्या मतलब ? तरकीब नजर में आती है या दिमाग में?”


“ उसे नजर में आना ही कहा जाये तो ज्यादा बेहतर होगा, क्योंकि वास्तव में वह तरकीब मेरे दिमाग की उपज नहीं है। तुम तो जानते हो - - - इतना दिमाग ही नहीं है मुझमें । मैंने तो एक किताब में तरकीब पढ़ी | अच्छी लगी । लगा---- हम भी उस तरकीब का इस्तेमाल कर सकते हैं। तुम्हें बता देती हूं। जंचे तो आगे बढ़ा जा सकता है । "


“बताओ।” कहने के साथ देवांश ने अपना गिलास उठाकर घूंट भरा |


विनीता बोली ---- “किताब में मैंने पढ़ा ---- “किताब में मैंने पढ़ा ---- पुराने जमाने में जो राजा बहुत बलवान और बुद्धिमान होते थे, जिन पर उनके दुश्मन शक्ति और बुद्धि से विजय नहीं पा सकते थे, उन्हें खत्म करने के लिए छल का इस्तेमाल किया जाता था । विषकन्याएं तैयार की जाती थीं ।”


“विषकन्याएं?”


“तुम जानते ही हो, ज्यादातर राजा विलासी हुआ करते थे। बैडरूम में नई-नई लड़कियों को भोगना और फिर उन्हें अपने हरम में छोड़ देना, शौक होता था उनका । इसी का लाभ उठाकर दुश्मन विषकन्याएं तैयार करते और राजा के बैडरूम में पहुंचा देते थे।”


“विषकन्याएं करती क्या थीं?”


“यूं तो किताब में तरह-तरह की विषकन्याओं का वर्णन है। ... मगर अपने हालात के मुताबिक मुझे जो सबसे आसान लगा, वह ये है कि विषकन्या के उरोजों के निप्पल्स पर जहर लगा दिया जाता था । दुनिया का शायद एक भी मर्द ऐसा नहीं है जो बैडरूम में उन्हें न चुसकता हो । राजा चुसकता था और मर जाता था ।”


“तरकीब न केवल लाजवाब है बल्कि दिलचस्प भी है।” होठों पर शरारती मुस्कान लिए देवांश ने विनीता के उरोजों को आंखों से पीते हुए कहा ---- “राजा साला खुद ही अपनी मौत को चुसक बैठता था ! मगर राजदान के लिए कौन सी विषकन्या तैयार करोगी तुम ?”


“विषकन्या तैयार है। तुम्हारी भाभी । ”


उछल पड़ा देवांश----"दिव्या?”


“बुराई है कुछ ?”


“वह भला राजदान को मारने के लिए अपने निप्पल्स पर जहर क्यों लगाने लगी?”


“जहर कोई और लगायेगा । इतनी खूबसूरती के साथ कि दिव्या को पता तक नहीं लगेगा कौन, कब उसके निप्पल्स पर जहर लगा गया।"


“नामुमकिन ।” देवांश कह उठा ---- “ऐसा भला कैसे हो

सकता है ?”


“वह भी सोच लिया जायेगा। फिलहाल ये बताओ तरकीब कैसी है?”


“एकदम घटिया ।”


“क्यों?”


“तुम शायद भूल रही हो ---- हमारा टार्गेट दोनों को खत्म करना है। अकेले राजदान को नहीं । और इस तरकीब से केवल वही खत्म होगा ।”


“बिल्कुल गलत । इस तरकीब से दोनों खत्म हो जायेंगे ।”


“वह कैसे ?”


“ठकरियाल घटनास्थल पर पहुंचते ही समझ जायेगा हत्या जहर से की गई है।"


“करेक्ट ।”


“ अब वह इस बात की जांच करेगा कि मकतूल के जिस्म में जहर कैसे पहुंचाया गया।”


• मानता हूं । " एक घूंट पीने के बाद देवांश ने गिलास वापस सेन्टर टेबल पर रखते हुए कहा- “वह राजदान के कमर में रखा पानी चैक कर सकता है। इसके अलावा और चीनी को भी चैक कर सकता है। मगर दिव्या के निप्पल्स बैन नही कर सकता। उन तक ध्यान जाना बहुत दूर की कौड़ी है। टकरियाल पुलिसिया है, जादूगर नहीं । मेरा दावा है विनीता, है दिव्या के निप्पल्स का ख्याल तक नहीं आयेगा उसे। 'विषकन्या' वाला ख्वाब तो चमकने से रहा।"


“यह ख्वाब उसे हम चमकायेंगे।”


“ख्वाब कैसे चमकाया जा सकता है किसी को ?”


“दूसरी किताबों के साथ ठकरियाल को यह किताब भी उनके बैडरूम से मिलेगी ।” कहने के साथ विनीता एक बार फिर झुकी । देवांश को उसके दोनों निप्पल्स के दर्शन हो गये । सेन्टर टेबल के निचले हिस्से से किताब निकालकर 'टॉप' पर रखी। उसके कवर पर किसी आर्टिस्ट द्वारा बनाई गई लड़की बनी थी । और मोटे हर्कों में लिखा था ---- “विषकन्या" । बोली ---- “यही वह किताब है जिसमें मैंने यह तरकीब पढ़ी है। इतना ही नहीं, दिव्या के पर्सनल पैन से इसमें लिखी वे लाइनें भी अंडरलाइन होंगी जिनमें उसी ढंग से हत्या करने के बारे में लिखा गया है जैसे 'राजदान' की हत्या होगी।”


'ओह!' देवांश की आंखें चमक उठीं।


“अब कहो।" विनीता ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें तिरछी कर लीं-- “कैसी रही?"


देवांश खुश होकर कहता चला गया -"ठकरियाल बगैर टाइम गंवाये घटनास्थल पर किसी लेडी पुलिस वाली को बुलायेगा और दिव्या के निप्पल्स चैक करने का हुक्म देगा।"


“ और उन पर पाया जायेगा वह जहर जिससे हत्या हुई होगी। इति सिद्धम ।” कहने के साथ विनीता ने पेप्सी से भरा गिलास खाली करके इतनी जोर से सेन्टर टेबल पर पटका कि यदि गिलास की तली मजबूत न होती यकीनन टूट जाता। बोली----“उसके बाद दिव्या भले ही चाहे जितनी रोये-चिल्लाये। घेंट फाड़-फाड़कर कहे उसने राजदान की हत्या नहीं की। उसे नहीं मालूम उसके निप्पल्स पर जहर कहां से आ गया मगर पूरी दुनिया में खुर्दबीन लेकर ढूंढने से एक भी शख्स ऐसा नहीं मिलेगा जो उसे बेगुनाह कहने की हिम्मत जुटा सके ।”


“यानी तुम्हारा मकसद उसे राजदान की हत्या के इल्जाम में सजा करा देना है ?”


“हमारा मकसद है, अपने रास्ते के दोनों रोड़ों को खत्म करना और खत्म करने के कई तरीके होते हैं देव । उनमें से एक वह है जिससे राजदान को खत्म किया जायेगा। दूसरा वह जिससे दिव्या को खत्म किया जायेगा । उस अवस्था में, जबकि दुनिया वालों की नजरों में तुम भी उसे अपने भाई की हत्यारी समझ रहे होगे । खुल्लमखुल्ला उसके खिलाफ अदालत में शहर का सबसे बड़ा वकील खड़ा कर दोगे | ऐसा वकील जो किसी हालत में उसे फांसी से कम सजा नहीं होने देगा | सीधी सी कहानी यह बनेगी कि दौलत के लालच में दिव्या ने राजदान को जहर चटा दिया।"


“मगर पति की दौलत तो एक तरह से उसके जीते जी भी पत्नी की ही होती है।”


" इस सवाल का जवाब तुम्हारी 'अभी' की बातों से मुझे सूझा है।"


"वह क्या?”


"दिव्या और राजदान की शादी को पांच साल हो गये थे । कोई बच्चा न हो सका । इससे मन ही मन दिव्या बहुत दुखी रहती थी । स्वाभाविक भी है। शादी के बाद मां बनने की औरत अपना सबसे पहला और प्राकृतिक अधिकार समझती है । न बन पाये तो कुढ़ती है। नर्क समझने लगती है अपनी जिन्दगी को | तुम्हारा वकील कोर्ट में यह कहेगा कि दिव्या भी इसी मानसिक अवस्था में थी ।... और... और राजदान के पास शुक्राणु नहीं थे। गौर करने वाली बात है, अदालत में यह बहस होने तक दुनिया में किसी के पास यह सिद्ध करने का कोई जरिया नहीं होगा कि वास्तव में राजदान बच्चा पैदा करने में सक्षम था या नहीं? अतः तुम्हारे वकील की बात ही सच मानी जायेगी । प्रमाण होगा - पांच साल तक बच्चा न होना । वकील कोर्ट में प्रूव कर देगा राजदान बच्चा पैदा करने में असक्षम था और हर औरत की तरह दिव्या के दिल में मां बनने की तीव्र इच्छा थी। अपनी इस इच्छा को पूरी करने के लिए उसके सामने दो रास्ते थे। पहला - - - - वह राजदान को तलाक देकर दूसरी शादी कर लेती । दूसरा ---- राजदान से पीछा छुड़ा लेती। पहला रास्ता अपनाने पर उसे राजदान की दौलत से महरूम होना पड़ता । यह उसे गंवारा नहीं था । अतः दूसरा रास्ता चुनने पर मजबूर हुई । उसने सोचा था ----राजदान की मौत के कुछ दिन बाद दूसरी शादी कर लेगी। इस तरह दौलत की मालकिन भी बनी रहेगी और मां भी बन जायेगी । मगर दुर्भाग्य----सारी चालाकियों के बावजूद वह पकड़ी गई । ” 


“वैरी गुड ।” देवांश उछल पड़ा ---- “बहुत ही शानदार प्लान है। कहीं कोई 'लोच' नहीं। आने वाले वक्त में हर शख्स वही सोचेगा, उसी पर विश्वास करेगा विनीता जो इस वक्त कह रही हो । एक भी आदमी यह कल्पना नहीं कर सकता कि सच्चाई यह नहीं है । और... और...!” जोश में भरा देवांश आगे जाने क्या कहना चाहता था कि पता नहीं क्या सोचकर चुप रह गया।


“क्या कहने वाले थे तुम?” उत्साह में भरी विनीता ने पूछा।


देवांश ने गिलास उठाया। खाली किया और वापस मेज पर रखता बोला ---- “मैं सोच रहा था ----अगर दिव्या का कोई आशिक पैदा कर दिया जाये तो इस कहानी में चार चांद लग जायेंगे।”


“वाकई... वाकई।” विनीता उछल पड़ी ---- “क्या तुम ऐसा कर सकते हो ?” 


“श - शायद ही ।” कुछ सोचते हुए देवांश ने कहा । फिर अपने ने ही दिमाग में आये किसी ख्याल के कारण सोफे से उछल पड़ा वह, मुंह से निकला ---- “बल्कि पक्की-हां| मैं एक शख्स को उसका आशिक 'बना' सकता हूं। और... और... विनीता, वह लंगड़ाकर भी चलता है । वाह, उसी से तो प्रेरणा मिली थी मुझे। उसी से प्रेरित होकर तो मैं नकाबपोश के रूप में कम्मो के सामने लंगड़ाकर चला था ।”


“कौन है वो ?”


“समरपाल ! 'राजदान ' एसोसियेट' का चीफ एकाऊंटेन्ट।” अपने ही ख्याल से रोमांचित होता देवांश कहता चला गया ---- “बुग्गा और कम्मो के बयानों से जो लंगड़ा ठकरियाल के दिमाग में पैदा हुआ होगा, वह भी उसे मिल जायेगा । यही... यही ठीक रहेगा विनीता । दिव्या के आशिक के बगैर ये कहानी अधूरी सी लग रही थी। अब कम्पलीट लगती है।”


“लेकिन----समरपाल को दिव्या का आशिक साबित कैसे करोगे?”


“सोचता हूं। दूसरा पैग बनाओ।” देवांश ने कहा--- " अब मेरा दिमाग काफी तेज चल रहा है ।”


विनीता तुरन्त दूसरा पैग बनाने में जुट गई । देवांश कमरे में तेजी से चहलकदमी कर रहा था । साफ जाहिर था वह बहुत गहराई से कुछ सोच रहा है । इस बीच सेन्टर टेबल पर रखे पैकिट से निकालकर उसने एक सिगरेट भी सुलगाई। इस वक्त खुद ही में वह कुछ इतना खोया हुआ था कि विनीता में ने कब पैग बना लिया, उसे ध्यान ही नहीं रहा । पैग बनाने के बाद विनीता ने उसका गिलास उठाया। नजदीक पहुंची और बहुत ही रोमांटिक मूड में बोली ---- “लो मेरे राजा, ब्लैक डॉग का यह पैग तुम्हारे दिमाग को काले कुत्ते की तरह दौड़ा देगा ।”


देवांश पलटा । विनीता की चमकदार आंखों में झांका । मुस्कराया । और उसके हाथ से गिलास लेकर होठों से लगाया। दूसरे पैग को एक ही सांस में पी गया वह । इस

वक्त पूरी मस्ती में नजर आ रहा था । गिलास को सेन्टरटेबल पर रखने के बाद विनीता की तरफ पलटकर बोला


“ कल्पना करो सीन की। बैड पर राजदान की लाश पड़ी है। पुलिस आ चुकी है। ठकरियाल समझ चुका है हत्या जहर से हुई है, मगर यह समझ में नहीं आ रहा जहर दिया कैसे गया है। स्वाभाविक रूप से राजदान एसोसियेट्स का लगभग सारा स्टाफ घटनास्थल पर मौजूद होगा । समरपाल भी । न भी हुआ तो 'मैं' फोन करके बुला लूंगा । फिर ठकरियाल के सामने उसे कोई ऐसा काम बताऊंगा जिसके लिए उसे चलना पड़े। मुझे पूरा यकीन है, उसकी चाल देखते ही ठकरियाल के दिमाग की घंटी बज उठेगी। समरपाल को उसी वक्त दबोच लिया जायेगा। फिर पुलिस उसके घर पहुंचेगी। तलाशी लेगी और वहां से बरामद होगी ये किताब 'विषकन्या' ।”


“ओह! तो इसे तुम वहां से बरामद कराना चाहते हो ?”


“तुम्हारे प्लान में बस इतना ही चेंज किया है मैंने । बाकी सबकुछ ज्यों का त्यों है । वे लाइनें भी दिव्या के पर्सनल पैन से ही 'अण्डरलाइन' होंगी, जिनमें उस ढंग से हत्या करने का विवरण होगा जैसे हत्या हुई होगी । ”


“वैरी गुड देव | वैरी गुड | "


“अण्डरलाइन देखते ही मैं चौंकूंगा । कहूंगा----अरे, यह तो गोल्डन इंक वाला वैसा ही पैन इस्तेमाल किया गया है जैसा भाभी पर है | दुर्लभ है वह पैन । कीमत है पचास लाख । उसमें डायमंड लगे हैं। पिछली बार भैया जापान से भाभी के लिए लाये थे । इतना कीमती पैन समरपाल पर कहां से आया ।... और बस! इससे आगे का काम ठकरियाल का होगा।"


“आगे का काम ही क्या रह गया, रास्ता तो दे ही दिया तुमने ठकरियाल को ।”


“तो बोलो! क्या करेगा ठकरियाल ?”


“समरपाल के घर से पूरे लाव-लश्कर के साथ वापस ‘राजदान विला' पहुंचेगा । किसी की एक नहीं सुनेगा वह। सीधा बैडरूम में जायेगा । तलाशी लेगा और तलाशी में मिलेगा वह पैन जिसकी उसे तलाश होगी ।”


“अब फोन करेगा वह लेडी पुलिस वाली को ।” बात देवांश ने पूरी की ---- “वह चैक करेगी दिव्या के निप्पल्स और वे निप्पल्स ठकरियाल के दिमाग में सारी कहानी स्पष्ट कर देंगे । इतने बड़े सुबूत के बाद कोई नहीं बचा सकेगा उन्हें ।”


“बहुत ही शानदार |... बहुत ही शानदार प्लान है देव । अब सिर्फ यह सोचना बाकी रह जाता है कि जहर दिव्या के निप्पल तक पहुंचेगा कैसे?”


“यह सवाल तो मैंने सबसे पहले उठाया था ।” खुशी से झूमते देवांश ने कहा ---- “दरअसल हमारे प्लान में सबसे मुश्किल काम यही है । एक औरत के निप्पल्स पर जहर लगाना है, वह भी इस तरह कि वह जान न सके यह कारस्तानी कब और कौन कर गया । किसी की आंखों से काजल चुरा लेने जैसा काम है ये। बल्कि शायद उससे भी मुश्किल। आंखें ‘आपके' सामने नंगी होती हैं मगर जहां जहर लगाना है, वे हमेशा आवरण में होते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है कोई किसी औरत के निप्पल्स से छेड़छाड़ कर जाये और औरत को पता न लगे? ऐसा हो ही नहीं सकता । असंभव है विनीता। नामुमकिन।”


“यही तो । यही तो यह 'प्वाइंट' होगा देव जो पुलिस को उसके अलावा और कुछ सोचने ही नहीं देगा जो हम सुचवाना चाहते हैं।”


“मगर ये काम करेगा कौन?”


“तुम?”


“म-मैं?” एक ही झटके में देवांश का नशा काफूर हो गया।


“क्यों? बुराई है कुछ ?”


“व-विनीता। प-पागल तो नहीं हो गयीं तुम ?”


“वाकई ।” उसके सांवले मगर रसीले होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई----“पागल ही हो गयी लगती हूं मैं । वरना...वरना अपने देव को किसी और के वक्षों के दर्शन करने, उनसे छेड़छाड़ करने का मौका नहीं देती । मगर करूं क्या? कोई चारा भी तो नहीं है । राजदान की मौत अगर किसी और ढंग से हुई तो दिव्या का फंसना इतना 'श्योर' नहीं होगा। और फिर जब प्लान हम बना रहे हैं तो आंखों का काजल चुराने जैसे इस काम को अंजाम देने क्या कोई और आयेगा।"


“म-मगर सोचो तो सही विनीता | कैसे कर सकूंगा मैं ये ?” 


“तुम कर लोगे ।" वह उसके अत्यन्त नजदीक आई- "मैं जानती हूं तुम कर सकते हो ।” कहने के साथ उसने देवांश के कंधे पकड़े। उसकी आंखों में झांकती बोली- “मुझे अपने देव के दिमाग पर पूरा भरोसा है । वह जरूर कोई ऐसी तरकीब उगल देगा जिससे ये नामुमकिन काम हो सके । जानते हो इतना भरोसा क्यों है मुझे---- क्योंकि मुझे प्यार की ताकत का अहसास है। मैं जानती हूं---- जितना प्यार तुम मुझसे करते हो, उतना किसी युग में किसी ने किसी से नहीं किया। प्यार में तो वो ताकत होती है देव कि लोग रेगिस्तान में पानी के फूल खिला देते हैं । भरोसा रखो खुद पर।"


देवांश के मुंह से बोल न फूट सका ।


कुछ यूं विनीता की आंखों में खोकर रह गया वह जैसे 'हिप्नोटाईज' हो गया हो । विनीता ने उचककर उसके होंठ चूमे। कहा- - "यह समां तरकीब सोचने में गंवाने का नहीं है।"


“फ-फिर ?” देवांश के मुंह से इतना ही निकल सका ।


“एक वादा करो।” विनीता ने उसकी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए थे ।


देवांश के मुंह से निकला ---- “कैसा वादा ?”


“दिव्या के उरोजों को देखकर तुम बहकोगे नहीं ।” अब वह उसकी तनी हुई छाती पर मौजूद लम्बे-लम्बे बालों से खेल रही थी ।


“कैसी बातें कर रही हो विनीता ?” देवांश का ध्यान भटकने लगा----“तुम सोच भी कैसे सकती हो मैं तुम्हारे अलावा किसी को चाह सकता हूं?"


“मैंने देखा है----दिव्या के उरोज बहुत पुष्ट हैं। बिल्कुल गोल और दूध से गोरे भी। जबकि मैं काली हूं। हूं न ?” कहने के साथ उसने धीरे से हाथ बढ़ाकर अपनी शर्ट में लगी गांठ खोल दी । सांवले उरोज अनावृत होकर यूं थरथरा उठे जैसे जबरदस्ती कैद किये गये जंगली कबूतरों ने पिंजरे से बाहर आकर अंगड़ाई ली हो ।


देवांश की नजर अभी उन पर नहीं पड़ी थी । विनीता के शब्द उसके दिल में नश्तर बनकर चुभे थे । बोला- "तुम क्या हो, मेरे दिल से पूछो विनीता।”


“तो बोलो ना... क्या हूं मैं ?” कहने के बाद उसने अपने दांत उसकी छाती में गड़ा दिए और जीभ की नोक से छेड़खानी करने लगी ।


उसकी इस हरकत के बाद जवाब देने का होश ही कहां रह गया देवांश को । मदहोश हो गया वह । उसे खुद नहीं मालूम बांहों ने कब विनीता को जकड़ लिया और उस क्षण... देवांश के संपूर्ण जिस्म में बिजली सी कौंध गई ।


अपने नग्न सीने पर विनीता के निर्वस्त्र उरोजों की गुदगुदाहट लिए अजीब-सी कठोरता को महसूस करते ही वह परिन्दे की मानिन्द आकाश में उड़ने लगा । खड़े हुए निप्पल्स की चुभन तक को वह साफ महसूस कर रहा था। सब कुछ भूल गया देवांश | सबकुछ । सिर्फ एक बात याद थी उसे । यह कि- - विनीता उसके समक्ष पहली बार 'इतनी खुली' है । उसे इस मौके का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। उसके हाथ विनीता के नितम्बों पर जा कसे। दोनों गोलाइयों को पहले उसने थपथपाया। फिर जोर से भींचा और उसके जिस्म को अपने जिस्म से सटाता चला गया। विनीता ने कोई विरोध नहीं किया । देवांश ने अपने होंठ उसके होठों पर चिपका । दिए । होठों को चिपकाये ही चिपकाये विनीता को गोद में उठा लिया उसने ।


सोफे की तरफ बढ़ा ।


उसके नजदीक पहुंचा और फिर, विनीता को छुईमुई के फूल की तरह सोफे पर लिटा दिया। अब सांवली छातियां उसके सामने थीं। मानो पर्वत चोटियां उसी को देख रही हों । विनीता ने आंखें बंद कर रखी थीं । जैसे लाज आ रही हो । जैसे देखना न चाहती हो देवांश क्या देख रहा है जबकि हकीकत यह थी कि वह सबकुछ देख रही थी । महसूस कर रही थी । देवांश झुका और उसके जिस्म पर बिछता चला गया।


कमरे का तापमान प्रतिपल दहकता जा रहा था ।


देवांश बहकता चला गया । उसका हाथ पैजामे के नाड़े तक पहुंचा उस वक्त उसको 'गिरह को टटोल रहा था जब कमरे में कोयलसी कुकी |


दोनों चौंके । एक दूसरे के जिस्म पर गर्दिश करते हाथ रुक गये।


देवांश ने सिर थोड़ा ऊपर उठाकर सुइट के मुख्य द्वार की तरफ देखा और झुंझलाये हुए स्वर में पूरभ "कौन है ?"


"पुलिस | " बाहर से सपाट लहजे में कहा गया।


करेंट-सा लगा दोनों के दिलो दिमाग को ।


पलक झपकते ही इस तरह अलग हो गये जैसे रिप्रंग ने विपरीत दिशा में उछाला हो । देवांश ने तेजी से अपनी शर्त के बटन बंद करने शुरू किये । विनीता ने शर्ट की गांठ लगा ली। बाहर से आवाज आई "पट खोलिए देवांश बाबु"


"ठ- ठकरियाल ! ये तो ठकरियाल की आवाज है।" देवांश के हलक से चीख ही जो निकल गई।


पीला पड़ गया विनीता का चेहरा है?" "यह यहां क्या कर रहा


"प पता नहीं | म मैं छुप जाता हूं।" बुरी तरह हड़बड़ाया हुआ देवांश बैडरूम की तरफ लपकता बोला ---- “त-तुम दरवाजा खोलो... मुझे पूछे तो...


“पागल मत बनो देव। उसे मालूम है तुम यहां हो ।”


"कैसे मालूम है “क- कैसे ?” देवांश के होश फाख्ता थे ---- "कैसे उसे?”


“म - मुझे क्या पता ? उसने तुम्हारा नाम लिया है। अब छुपा नहीं जा सकता ।” कहने के साथ विनीता ने जल्दी से हुक पर टंगा एक कोट उतारकर पहन लिया । फुल बाजू का एक ऐसा कोट था वह जिसने विनीता की नग्नता पूरी तरह ढांप ली थी ।


तभी बाहर से पुनः ठकरियाल की आवाज आई ---- “किस काम में मशगूल हो मिस्टर देवांश ? दरवाजा खोलने में इतना ? विलम्ब क्यों हो रहा है ? "


“ खुद को सम्भालो देव, दरवाजा खोलो।” कहने के साथ विनीता ने उसे दरवाजे की तरफ धकेला और 'विषकन्या' उठाकर कोट की जेब में डाल ली ।